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Tuesday, April 25, 2017
आईपीसी (इंडियन पैनल कोड) की धारा 354 में बदलाव 1860 से चले आ रहे कानून भारतीय दंड संहिता अथवा इंडियन पैनल कोड (आईपीसी ) की धारा 354 में स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग करना जैसी वारदातें आती थीं. इसके तहत आरोपी को एक वर्ष के लिए कारावास, जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने की सजा का प्रावधान था. साथ ही यह जमानतीय धारा भी थी. जिसमें आरोपी जमानत पर बाहर आ सकता था. दिल्ली में हुए दामिनी रेप केस के बाद कानून में खासे बदलाव हुए. धारा 354 में कई उपधाराएं तैयार की गईं. 354(क) इसके तहत अवांछनीय शारीरिक संपर्क और अग्रक्रियाएं या लैंगिक संबंधों की स्वीकृति बनाने की मांग या अनुरोध, अश्लील साहित्य दिखाना जैसी वारदातें आती हैं. वैसे तो यह बेलेबल है लेकिन इसमें कम से कम कारावास तीन वर्ष तक, जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान किया गया. इसी के तहत लैंगिक आभासी टिप्पणियों की प्रकृति का लैंगिक उत्पीडऩ भी जोड़ा गया. जिसमें आरोपी को एक वर्ष तक का कारावास हो सकेगा या जुर्माना या फिर दोनों. 354(ख) इसके तहत किसी महिला को विवस्त्र करने के आशय से स्त्री पर हमला या आपराधिक बल कर प्रयोग किया जाना. जिसमें आरोपी को कम से कम पांच वर्ष का कारावास, किंतु जो दस वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माना भी नियत किया गया. साथ ही यह धारा नॉनबेलेबल है. 354(ग) दृश्यरतिकता यानि किसी को घूरकर देखना. इसके तहत अगर किसी लड़की को कोई पंद्रह सेकंड घूरकर देख ले तो उसके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है. जिसमें कानून के तहत प्रथम दोष सिद्ध के लिए कम से कम एक वर्ष का कारावास, किन्तु जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माना. इसमें जमानत हो सकती है. अगर यही व्यक्ति दुबारा ऐसी ही घटना के लिए दोषी पाया जाता है तो इसके लिए कम से कम तीन वर्ष का कारावास जो सात वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माना भी. इसमें आरोपी की जमानत भी नहीं हो सकती. 354(घ) इसके तहत किसी लड़की या महिला का पीछा करना जैसी वारदातें शामिल हैं. जिसमें पहली बार अगर आरोपी पर दोष सिद्ध होता है तो उसको तीन वर्ष का कारावास और जुर्माना हो सकता है. वहीं अगर यही आरोपी दुबारा ऐसा करता है और उस पर दोष सिद्ध होता है तो इसके लिए पांच वर्ष तक का कारावास और जुर्माना हो सकता है. वहीं आरोपी की जमानत भी नहीं हो सकती. Share: You might also like: उपभोक्ता जागरूकता Consumer Awareness प्रेरक प्रसंग एवं बोधकथा : समस्या बोध प्रेरणा स्त्रोत छत्रपति शिवाजी ताजमहल का इतिहास - ताज मकबरा नही अग्रेश्वर महदेव शिव वरिष्ठ अधिवक्ता और कनिष्ठ अधिवक्ता के मध्य वर्तमान सम्बन्ध Linkwithin
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