Wednesday, April 17, 2019

जनप्रतिनिधि अधिनियम नहीं देता है चुनाव आयोग को यह अधिकार कि वह सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के कर्मचारियों का कर ले

अधिग्रहण-बाॅम्बे हाईकोर्ट

April 2019 8:56 PM बाॅम्बे

           हाईकोर्ट ने माना है कि जनप्रतिनिधि अधिनियम ( प्यूपल रेप्रीजेंटेशन एक्ट) 1950 चुनाव आयोग या उसके किसी अधिकारी को यह अधिकार नहीं देता है कि चुनाव में ड्यूटी देने के लिए वह किसी सहायता प्राप्त निजी स्कूल के शिक्षण या गैर-शिक्षण कर्मचारियों की सेवाओं अधिग्रहण कर ले या उनकी सहायता ले। दो सदस्यीय खंडपीठ के जस्टिस ए.एस ओका व जस्टिस एम.एस सनकचलेचा इस मामले में गोरेगांव,मुम्बई के दो स्कूलों की तरफ से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे। 
         याचिकाकर्ताओं ने असिस्टेंट इलैक्ट्रोल रजिस्ट्रेशन आॅफिसर के तीन आदेशों को चुनौती दी थी। इन आदेश में स्कूलों के गैर-शिक्षण कर्मियों की सेवाएं भी चुनाव ड्यूटी में लेने की बात कही गई थी।          
        याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जनप्रतिनिधि अधिनियम के सेक्शन 29 के तहत आॅफिसर के पास सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के कर्मियों की सेवाएं चुनाव में लेने का अधिकार नहीं है। इसके अलावा यह भी मांग की गई थी कि लोक प्रतिनिधि अधिनियम 1951( रेप्रीजेंटेशन आॅॅफ दा प्यूपल एक्ट 1951) के सेक्शन 159 के तहत यह घोषित किया जाए कि प्रतिवादी नम्बर एक से आठ तक ( जो कि भारतीय चुनाव आयोग व उसके अधिकारी है) के पास यह अधिकार नहीं है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों के कर्मचारियों की सेवाएं अनिश्चितकाल तक अधिग्रहण कर ले। कोर्ट ने जनप्रतिनिधि अधिनियम 1950 के सेक्शन 29 को देखने के बाद कहा कि-इस सेक्शन को पढ़ने के बाद साफ हो जाता है कि चीफ इलैक्ट्रोल आॅफिसर इस सेक्शन के तहत मिले अपने अधिकारों का प्रयोग करके सिर्फ राज्य की स्थानीय प्राधिकरणोंके कर्मचारियों की सेवाएं ले सकता है या उनका अधिग्रहण किया जा सकता है। 
         स्थानीय प्राधिकरणों के बारे में न तो एक्ट 1950 में परिभाषित किया गया है और न ही एक्ट 1951 में। ऐसी परिस्थितियों में साधारण खंड अधिनियम 1897 (जरनल क्लाज एक्ट 1897) से रेफरेंस लेना जरूरी है। साधारण खंड अधिनियम 1897 में स्थानीय प्राधिकरण की परिभाषा देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि-स्थानीय प्राधिकरण की परिभाषा को सामान्य तौर पर पढ़ने के बाद ही यह साफ हो रहा है कि राज्य से सहायता प्राप्त निजी स्कूल स्थानीय प्राधिकरण की परिभाषा में नहीं आते है। इस बात पर भी कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता या उनके स्कूल पर सरकार या निगम के प्रबंधन का कोई नियंत्रण है। ऐसे में एक्ट 1950 के सेक्शन 29 के तहत याचिकाकर्ताओं या उनके सहायता प्राप्त स्कूलों को भेजा गया नोटिस अधिकारक्षेत्र से बाहर है।
         भारतीय चुनाव आयोग के वकील प्रदीप राजागोपाल ने भी माना कि तीनों आदेश बिना अधिकारक्षेत्र के जारी किए गए है और इस बात पर कोई आपत्ति जाहिर नहीं की। हालांकि महाराष्ट्र राज्य की वकील गीता शास्त्री और राजागोपाल ने बयान दिया कि शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की सेवाएं एक निश्चित व विशेष अवधि के लिए ही ली जा सकती है। जिसमें तीन दिन की ट्रेनिंग के लिए व दो दिन मतदान के लिए होते है। कोर्ट ने इस बयान को स्वीकार कर लिया। इसलिए कोर्ट ने इस मामले में दायर याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और असिस्टेंट इलैक्ट्रोल रजिस्ट्रेशन आॅफिसर के आदेशों को रद्द कर दिया।

NI अधिनियम की धारा 143A (अंतरिम मुआवज़ा) को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े ]

17 April 2019 11:15 AM

        पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट ऐक्ट (एनआईए) की धारा 143A को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं है जबकि 148 के प्रावधान उन लंबित अपीलों पर लागू होंगे जिस दिन इसके प्रावधान को लागू करने की अधिसूचना जारी की गई। न्यायमूर्ति राजबीर सहरावत ने कहा कि अधिनियम कि धारा 143A ने आरोपी के ख़िलाफ़ एक नया दायित्व तय किया है जिसका प्रावधान वर्तमान क़ानून में नहीं था।
         लेकिन धारा 148 को यथावत रहने दिया गया है; और कुछ हद तक इसे आरोपी के हित में संशोधित किया गया है। वर्ष 2018 में इस अधिनियम दो नए प्रावधान जोड़े गए। इसमें पहला है धारा 143A जिसके द्वारा निचली अदालत को आरोपी को अंतरिम मुआवज़ा देने का आदेश जारी करने का अधिकार दिया गया है पर यह राशि 'चेक की राशि' से 20% से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। एक अन्य धारा 148 जोड़ा गया जो अपीली अदालत को आरोपी/अपीलकर्ता को यह आदेश देने का अधिकार देता है कि वह निचली अदालत ने जो 'जुर्माना' या 'मुआवजा' चुकाने को कहा है उस की 20% राशि वह जमा करे।
          वर्तमान मामले में कोर्ट के समक्ष जो अपील लंबित है वे निचली और अपीली अदालतों के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील है। अधिनियम की नई धारा 143A के प्रावधानों को आधार बनाकर फ़ैसले दिए गए जिसे अब चुनौती दी गई है। कोर्ट ने कहा, "चूँकि अधिनियम का जो संशोधन हुआ है उसमें इस नए प्रावधानों को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं है विशेषकर लंबित मामलों में। इसलिए लंबित मामलों के बारे में जो कि इन प्रावधानों के लागू होने के पहले से मौजूद हैं, के बारे में इन नए प्रावधानों के आधार पर फ़ैसला नहीं दिया जा सकता।
          कोर्ट ने कहा, "…अंतरिम मुआवज़ा जो कि किसी मामले में करोड़ों रुपए भी हो सकता है और ऐसे व्यक्ति के लिए जो कुछ लाख रुपए भी मुश्किल से जुगाड़ सकता है, इस धारा का परिणाम तबाही पैदा करने वाला हो सकता है…इसलिए इस प्रावधान को ज़्यादा से ज़्यादा आगे होने वाले इस तरह के मामलों में लागू किया जा सकता है क्योंकि वर्तमान मामले में आरोपी इस बात से अवगत होगा कि वह जो कर रहा है उसका परिणाम क्या हो सकता है …पर ये प्रावधान उन मामलों में लागू नहीं हो सकते जहाँ अदालती कार्रवाई उस समय शुरू हुई जब ये संशोधित प्रावधानों का अस्तित्व भी नहीं था।
           अदालत ने धारा 148 के बारे में कहा कि किसी दोषी व्यक्ति से जुर्माने या मुआवजे की राशि वसूलने का प्रावधान सीआरपीसी में धारा 148 के अस्तित्व में आने से पहले से ही मौजूद है। ये प्रावधान दोषी/अपीलकर्ता को ज़्यादा राहत देने वाला है।