Thursday, April 18, 2019

आपसी सहमति से तलाक के मामले में निर्धारित समय-सीमा को किसी दंपत्ति को हो रही व्यक्तिगत परेशानी के आधार पर नहीं कर सकते है खत्म-मध्य प्रदेश हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े


18 April 2019 3:15 PM

             मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि दोनों पक्षकारों को हो रही व्यक्तिगत परेशानी के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी(2) के तहत निर्धारित छह माह की अवधि को खत्म नहीं किया जा सकता है। इस मामले में एक दंपत्ति ने आपसी सहमति से तलाक की अर्जी कोर्ट के समक्ष दायर की थी और मांग की थी कि छह महीने के कूलिंग आॅफ यानि शीलतन की समय अवधि को खत्म किया जाए। 
           इन दोनों पक्षकारों की तरफ से दलील दी गई थी िकवह जल्दी-जल्दी कोर्ट के चक्कर नहीं काट सकते है क्योंकि उनमें से एक डाबरा में निजी स्कूल में शिक्षक है और दूसरा डाक्टर।इसलिए इस समय अवधि को खत्म करने की मांग की थी। कोर्ट ने इस अर्जी को खारिज कर दिया,जिसके बाद उन्होंने उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उस फैसले में माना गया था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी(2) के तहत दी गई समय अवधि अनिवार्य प्रकृति की नहीं है,बल्कि यह निर्देशिका प्रकृति की है। इसलिए हर मामले की परिस्थितियों व तथ्यों को देखने के बाद निचली अदालत इस समय अवधि से छूट दे सकती है। जिन मामलों में निचली अदालत को यह लगे कि दोेनों पक्षों में सुलह की कोई संभावना नहीं है और न ही साथ रहने के कोई चांस नहीं है,उन मामलों में निचली अदालत इस समय अवधि से छूट दे सकती है। 
                परंतु जस्टिस गुरपाल सिंह अहलुवानिया ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में जो आधार पक्षकारों ने दिया,वह इस अवधि को खत्म करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है क्योंकि इस मामले में दोनों पक्षकारों का कहना है कि वह बार-बार कोर्ट नहीं आ सकते है। 
            कोर्ट ने कहा कि-जब कोई पक्षकार किसी निश्चित प्रावधान के तहत कोर्ट से राहत मांगने के लिए जाते है तो उस समय उनको कानून के तहत बनाई या उपलब्ध प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। अगर वह चाहते थे कि निचली अदालत आपसी सहमति से तलाक के मामले में निर्धारित हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी(2) के तहत दी गई छह माह की अवधि को खत्म कर दे तो उनको इंगित करना चाहिए था कि अब उनके बीच वैकल्पिक पुर्नवास या आपस में साथ रहने का कोई मौका नहीं है। परंतु दोनों पक्षकारों को हो रही व्यक्तिगत परेशानी के आधार पर इस निर्धारित अवधि से छूट नहीं दी जा सकती है। इसी के साथ कोई इस मामले में दायर पुनःविचार याचिका को खारिज कर दिया।







बलात्कार के आरोपी ने कहा पीड़िता से उसकी हुई है शादी; सुप्रीम कोर्ट ने उसे शादी का प्रमाण पत्र पेश करने को कहा


18 April 2019 5:37 PM

           बलात्कार के आरोपी एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी देकर कहा है कि पीड़िता से उसकी मार्च 2018 में शादी हो चुकी है। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा उसको जारी सम्मन को निरस्त करने की उसकी अपील ठुकरा दी थी। जब आरोपी ने दावा किया कि पीडिता से उसकी शादी हो चुकी है, इस मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौडा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने उसे तीन सप्ताह के भीतर शादी का प्रमाणपत्र अदालत में पेश करने को कहा। 
          पीठ ने इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख़ तीन सप्ताह के बाद रखी है और चेतावनी दी है कि इस मामले को आगे और स्थगित नहीं किया जाएगा। अगर शादी हुई है यह साबित हो जाता है तो क्या होगा? पर सवाल उठता है कि अगर आरोपी शादी का प्रमाणपत्र पेश कर देता है और उसकी शादी सही पाई जाती है तो क्या होगा? उस स्थिति में अदालत उसकी अपील स्वीकार कर सकता है क्योंकि वर्तमान क़ानून वैवाहिक संबंध में बलात्कार को अपवाद माना गया है। 
            आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 में कहा गया है एक व्यक्ति का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध को, अगर पत्नी 15 साल से कम उम्र की नहीं है तो, बलात्कार नहीं माना जाएगा। हालाँकि यह भी नोट करना ज़रूरी है कि धारा 376B के तहत पत्नी से अलग रहने के दौरान उसके साथ यौन संबंध बनाना दंडनीय है। इस प्रावधान में कहा गया है : 
           "अगर कोई व्यक्ति अलग रहने के आदेश या किसी और वजह से अलग रह रही अपनी पत्नी के साथ उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उससे यौन संबंध स्थापित करता है तो यह दंडनीय है…यह दंड कारावास के रूप में दो साल से कम नहीं होगा और यह सात साल तक की अवधि के लिए हो सकता है और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।" इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने Independent Thought vs Union Of India मामले में 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध को बलात्कार बताया है भले ही वह शादीशुदा है या नहीं।
             दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है इस प्रावधान को चुनौती का वाद धारा 375 के तहत वैवाहिक संबंध में बलात्कार के बारे में अपवाद के प्रावधान को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला का मत है कि वैवाहिक संबंध में बलात्कार के बारे में जो अपवाद किया है उसको हटाकर ही समाज को यह संदेश दिया जा सकता है कि महिलाओं के साथ वह अमानवीय व्यवहार नहीं करसकता और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और यह कि वैवाहिक संबंध में बलात्कार की इजाज़त पति का विशेषाधिकार नहीं है बल्कि यह एक हिंसा है और एक अन्याय है जिसके लिए दंड मिलना चाहिए। न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति ने अपनी रिपोर्ट में वैवाहिक संबंध में बलात्कार के बारे में अपवाद को समाप्त किए जाने की अनुशंसा की गई हैल।






आरोपी की अनुपस्थिति में गवाहों के बयान दर्ज करना है एक साध्य उल्लंघन-सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में फिर से सुनवाई के आदेश को ठहराया सही [निर्णय पढ़े]


18 April 2019 12:16 PM

            सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अभियोजन पक्ष की गवाही के समय अगर आरोपी अनुपस्थित है तो इससे अपने आप में केस की सुनवाई दूषित नहीं होती है,बशर्ते इससे आरोपी पर कोई प्रतिकूल असर न हो।
जस्टिस उदय उमेश ललित वाली बेंच ने इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने एक मामले में फिर से सुनवाई के आदेश देते हुए निचली अदालत से कहा था कि कानूनीतौर पर गवाहों के बयान दर्ज करे।
            हाईकोर्ट ने कहा था कि पहले राउंड में जो बयान दर्ज किए गए है,उस समय आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की गई थी।
आरोपी की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने दलील दी कि आरोपी के पास यह अधिकार होता है कि उसके सामने गवाही हो। यह उसका मूल्यवान अधिकार है और इससे छेड़छाड़ करने से गंभीर प्रतिकूल असर पड़ता है।
         कोर्ट ने इन दलीलों पर सहमति जताते हुए कहा कि यह अधिकार मूल्यवान है और इस मामले में उल्लंघन हुआ है। परंतु कोर्ट ने इन सवालों पर भी ध्यान दिया।
           इस तरह के उल्लंघन का प्रभाव देखने के क्या तथ्य उपलब्ध है। क्या इससे मामले की सुनवाई प्रभावित हुई है या इस तरह का उल्लंघन साध्य है। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के चैप्टर XXV का मुख्य विषय व सेक्शन 461 में बताए गए नियम 'अनियमित सुनवाई' से संबंधित है।जिनमें कहा गया है कि किसी उल्लंघन या अनियमितता से मामले की सुनवाई नष्ट नहीं होती है या हानि नहीं पहुंचती है,बशर्ते इस अनियमितता या उल्लघंन से आरोपी को बहुत क्षति न हुई हो या उसके साथ पक्षपात न हुआ हो।
           कोर्ट ने कहा कि- हाईकोर्ट का आदेश यह नहीं है कि सारे सबूतों को फिर से पढ़ा जाए। हाईकोर्ट का निर्देश यह है कि सिर्फ उन गवाहों के बयान फिर से दर्ज किए जाए,जिनके बयान आरोपी के समक्ष नहीं हुए थे।उस निर्देश के अनुसार कोर्ट में आरोपी की उपस्थिति जरूरी है ताकि वह गवाह को कोर्ट में बयान देेते समय देख सके और उस गवाह से जिरह कर सके। इसलिए इन मूल जरूरतों को निष्ठा से पूरा किया जाए।
             इसके अलावा कोई क्षति या हानि नहीं हुई है। कोड में दिए आरोपी या याचिकाकर्ता के अधिकारों के बारे में बेंच ने कहा कि-पाॅवर की जो बात है तो पूरे मामले की दोबारा सुनवाई का आदेश दिया जा सकता है।
जबकि इस मामले में तो हाईकोर्ट ने कमतौर पर इस अधिकार का प्रयोग करते हुए सिर्फ 12 गवाहों के बयान फिर से करवाने के लिए कहा है। ऐसे में हाईकोर्ट का यह निर्देश अधिकारक्षेत्र के अंतर्गत आता है।
            ऐसे में हाईकोर्ट ने किसी भी तरह अपने अधिकारक्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया है। हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए व निचली अदालत को फिर से सुनवाई करने की अनुमति देते हुए बेंच ने कहा कि- एक परिवार के चार लोगों की मौत हुई है।
             इसलिए ऐसे मामले में समाज का भी हित होगा कि आरोपी को सजा मिले। साथ ही इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि मामले की सुनवाई निष्पक्ष हो। सिर्फ उन गवाहों के बयान फिर से दर्ज करने के लिए कहा गया है,जिनसे यह सुनिश्चित हो सके कि अभियोजन पक्ष का हित बना रहे,वहीं दूसरी तरफ आरोपी को यह अधिकार मिले िकवह गवाह को अपने खिलाफ बयान देते हुए देख सके। जिसके बाद वह अपने वकील को अच्छे से निर्देश दे पाए कि गवाह से क्या-क्या सवाल जिरह में किए जाए। इस प्रक्रिया में आरोपी के हित की रक्षा भी होगी।
           अगर हम इन दलीलों को स्वीकार कर ले कि इससे मामले की सुनवाई खराब होगी और हाईकोर्ट के पास यह अधिकार नहीं है िकवह संबंधित गवाहों के बयान फिर से दर्ज करने का आदेश दे सके,तो इससे न्याय निष्फल होगा।
            आरोपी,जिन पर चार लोगों की मौत को केस चल रहा है,उनके खिलाफ प्रभावी तरीके से सुनवाई नहीं चल पाएगी। तकनीकी तौर पर उल्लंघन होने के कारण उनके खिलाफ दर्ज सबूतों को प्रयोग नहीं किया जा सकेगा,जिससे न्याय को बहुत बड़ा अघात पहुंचेगा और न्याय निष्फल हो जाएगा