Tuesday, April 25, 2017

विवाह,तलाक,दहेज आदि से सम्बन्धित प्रश्न और हल

1-तलाक के अन्तिम होने के पहले सगाई किसी भी प्रकार उचित नहीं है।

समस्या-


क्या आपसी रजामंदी के तलाक मैं तलाक होने से पहले सगाई की जा सकती है?   हमें तलाक के लिए अर्जी दाखिल किये हुए करीब तीन महीने हो गए हैं और करीब तीन महीने बाद फिर हमारा तलाक होगा।

समाधान-

ह सही है कि सगाई के बारे में कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। लेकिन हमारी राय में सगाई भी वही कर सकता है जो कि विवाह करने की योग्यता रखता हो। जब तक तलाक की डिक्री पारित न हो जाए। यहाँ तक कि उस की अपील का समय व्यतीत न हो जाए तब तक सगाई भी नहीं करना चाहिए। क्यों कि सगाई विवाह करने का वादा है, लेकिन यह तभी किया जा सकता है जब विवाह की योग्यता हासिल हो जाए।
आप कल्पना करें कि आप की पत्नी तीन माह बाद जब न्यायालय में बयान होने वाले हैं उस दिन तलाक की सहमति से इन्कार कर दे। वह न्यायालय से कहे कि मुझे सोचने के लिए दो माह का अतिरिक्त समय चाहिए और न्यायालय समय दे दे। क्यों कि तीन माह बाद भी डिक्री तो तभी पारित हो सकेगी जब पति-पत्नी दोनों के बीच तलाक के मामले में सहमति बनी रहती है। ऐसी स्थिति जब आप सगाई कर लेते हैं तो जिस स्त्री से आप सगाई करते हैं उस स्त्री की सामाजिक स्थिति बहुत खराब हो जाएगी। यदि किसी कारण से तलाक में बाधा हो गयी और आप उस स्त्री से विवाह नहीं कर पाते हैं तो वह इस के लिए आप को दोष दे सकती है कि आप की वजह से उसे यह सब नुकसान उठाना पड़ा है। इस के लिए वह आप से क्षतिपूर्ति की मांग कर सकती है और इस के लिए वह वाद भी संस्थित कर सकती है और अपराधिक मुकदमा भी कायम हो सकता है।
हमारा अपना कहना यह है कि सगाई की रस्म अपने आप में गलत है। यदि स्त्री-पुरुष के बीच यह सहमति हो गयी है कि उन्हें विवाह कर लेना चाहिए। वे सारी बातों और शर्तों पर सहमत हो चुके हैं तो फिर सगाई बेमानी है सीधे विवाह ही कर लेना चाहिए। अब जब धीरे धीरे स्थितियाँ समाज में ऐसी बनने लगी हैं कि स्त्री-पुरुष विवाह के स्थान पर लिव इन पसंद करते हैं और इस तरह के लोगों की संख्या बढ़ रही है, सगाई की रस्म निरर्थक हो चुकी है उसे समाप्त हो जाना चाहिए। यह रस्म सुविधा पैदा करने के स्थान पर संकट अधिक उत्पन्न करती है। अनेक विवाहों में तो वह एकदम औपचारिक रस्म हो कर रह गयी है। विवाह की अंतिम रीति होने के केवल कुछ घंटों या एक दिन पहले होने लगी है। इस कारण इस प्रथा का अंत हो जाना चाहिए।

2-क्या सगाई तोड़ देने से दहेज का मुकदमा बन सकता है?

प्रश्न--- 
मेरा एक लड़की से जनवरी में रिश्ता पक्का हुआ था, मई में मेरी उस के साथ सगाई हो गई। सगाई के बाद उन लोगों का व्यवहार बदल गया। रिश्ता पक्का होते समय शादी लखनऊ से करने की बात तय हुई थी। फिर वे इलाहाबाद से करने को कहने लगे। हमने इस विषय पर उन से बात की औऱ वे हमारी बात मान गए। लेकिन लड़की विवाह के बाद इलाहाबाद में पढ़ना चाहती है। ऐसी बहुत सी छोटी-बड़ी बातें हैं मुझे लगता नहीं कि वह लड़की मेरे परिवार के साथ रह पाएगी। मैं इस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाना चाहता हूँ सगाई के समय हमने एक लाख का सोना लड़की को दिया था। अभी लड़की वालों ने चार लाख रुपए शादी करवाने के लिए हमारे खाते में भेजे हैं। मुझे लगता है मैं उस लड़की के साथ नहीं रह सकता मेरे रिश्ता तोड़ने पर क्या वे दहेज का झूठा मुकदमा तो नहीं दायर कर देंगे। हम उन का पूरा पैसा वापस लौटाना चाहते हैं औऱ अपना सोना वापस लेना चाहते हैं। कृपया समाधान बताएँ।  
उत्तर – – –

ज कल इस तरह की समस्याएँ बहुत देखने को मिल रही हैं। पहले जब रिश्ता होता था तो समाज बीच में होता था और विवाह पूरी तरह से सामाजिक संबंध होता था। आज कल यह सिमट कर दो परिवारों के बीच रह गया है और भविष्य की दिशा भी साफ दिखाई दे रही है कि आगे यह सिमट कर पति-पत्नी के बीच की बात हो कर रह जाएगी। लेकिन कानूनन विवाह पति-पत्नी के बीच का ही संबंध है। आप के बीच चल रही विवाह की बातचीत में जो सब से गलत बात हुई वह यह कि सगाई समारोह विवाह के बहुत समय पहले संपन्न कर दिया गया। मेरी व्यक्तिगत समझ यह है कि विवाह के पहले के एक-दो सप्ताह पूर्व ही कोई समारोह आदि होने चाहिए और उस के पहले वर-वधु और उन के परिजनों के बीच यह निश्चित हो जाना चाहिए कि विवाह होना ही है। जहाँ तक वर-वधु को उपहार देने का प्रश्न है वह तो विवाह के समय ही दिए चाहिए, उस के पूर्व कदापि नहीं। 
प का विवाह अभी हुआ नहीं है, उस के पहले ही संबंधों में इतनी खटास आ चुकी है तो यह संबंध जीवन भर चल पाएगा,यह संभव नहीं लगता। यदि चलता भी है तो ये खटास बीच में रहेगी। इस कारण इस संबंध को किसी भी स्थिति में समाप्त कर देना ही बेहतर है। सगाई हुए तीन माह से ऊपर हो चुके हैं और अब तक विवाह नहीं हुआ है तो फिर दहेज लेन-देन का कोई प्रश्न ही नहीं है। दहेज का कोई भी मुकदमा चलने का कोई प्रश्न अभी उत्पन्न नहीं हुआ है। आप ने कुछ सोना उपहार में दिया है वह विवाह तक उन के पास अमानत ही है।  और आप के पास उन का चार लाख रुपया आप के पास शादी के खर्च के बतौर अमानत रखा है। निश्चित रूप से सगाई आदि पर दोनों पक्षों का कुछ खर्च भी हुआ होगा। अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि हम इतना रुपया खर्च कर चुके हैं। लेकिन जो भी खर्च दोनों पक्षों ने किया है इसी प्रयास में किया है कि विवाह हो जाएगा। 
प स्पष्ट रुप से लड़की और उस के परिजनों से कहें कि यह रिश्ता अब नहीं चल सकता है और दोनों ने जो कुछ लिया दिया है उसे एक दूसरे को वापस कर दें और मिल बैठ कर इस रिश्ते को यहीं समाप्त कर दें। स्वयं लड़की और
        उस के परिजनों को भी चाहिए कि वे इस रिश्ते को समाप्त कर दें। जो संबंध बनना था  और जिस में बनने के पहले ही संदेह उत्पन्न हो चुके हैं। उसे समाप्त कर देने में कोई बुराई नहीं है। अभी कुछ भी बिगड़ा या बना नहीं है। यदि आपसी बातचीत से मामला समाप्त हो जाता है तो उत्तम है। लेकिन संबंध समाप्त होने का एक समझौता अवश्य आपस में लिख लिया जाना चाहिए कि दोनों ने आपसी समझ से रिश्ते की बातचीत को इसी स्तर पर समाप्त कर लिया है। यदि आपसी बातचीत से बात न बन रही हो तो आप सब बातें स्पष्ट करते हुए किसी स्थानीय अधिवक्ता की सहायता लेते हुए उस के द्वारा एक नोटिस लड़की और उस के पिता को भिजवा दें जिस में स्पष्ट रुप से विवाह न कर पाने के कारणों को अंकित करते हुए अपना सोना लौटाने और आप के पास रखी उन की अमानत राशि वापस प्राप्त करने की बात लिखवा दें। मुझे लगता है कि इस से बात बन जाएगी। रिश्ते की बात समाप्त हो जाने से कोई भी अपराधिक मुकदमा नहीं बन सकता है यह बात स्पष्ट है। अभी तक कोई विवाद यदि है भी तो वह केवल दीवानी प्रकृति का और उपहारों और अमानतों के लेन-देन मात्र का है। 
3-विवाहिता की परेशानी समझने का प्रयत्न करें, और हल निकालें
प्रश्न----
मेरे साले की पत्नी अपने मायके गई हुई है और  आने से मना कर रही है। उसे लेने के लिए दो बार जा चुके हैं। एक बार पहले भी वह गई थी और बहुत समझाने पर आई थी। विवाह 19 अप्रेल 2010 को हुआ था। उन के मायके वाले कहते हैं कि लड़की वहाँ नहीं जाएगी। लड़का बहुत परेशान रहता है, बहुत रोता है। कहता है कहीं पति के सात पूरे रिश्ते वालों को दहेज प्रथा में ना फँसा दे। हमें क्या करना चाहिए?
 उत्तर –
मुझे लगता है यह मामला आपसी विश्वास-अविश्वास का है। साले की पत्नी को अपने पति पर और उस के परिवार पर विश्वास उत्पन्न नहीं हुआ है। वह खुद को पराए घर में समझ रही है। आप तो लड़के के बहनोई हैं। आप अपने साले की ससुराल जाइए, बिलकुल अकेले। हो सके तो दो एक  दिन के लिए वहाँ रहिए। यदि उन के परिवार में रहने की स्थिति न हो तो उस नगर में रहिए। साले की पत्नी की जो भी तकलीफ हो उसे समझने की कोशिश कीजिए। उस परिवार के साथ यह विश्वास पैदा कीजिए कि आप उन की समस्या को समझते हैं और उस का हल निकालेंगे। आप को समस्या का पता लग जाए तो उस का हल निकालने का प्रयत्न कीजिए। 
भी विवाह को एक  साल भी नहीं हुआ है। इतनी जल्दी पति-पत्नी में विश्वास पैदा होना आसान नहीं है। अक्सर होता यह है कि जैसे ही लड़की ससुराल पहुँचती है उसे उस के दायित्व बता दिए जाते हैं और सभी उस से उसी के अनुरूप अपेक्षा करते हैं, जिन्हें निभा पाने में वह स्वयं  को सक्षम नहीं पाती है। वह नए परिवार में आई है, उसे इस नए परिवार को समझने में समय लगता है। यदि ससुराल में एक भी व्यक्ति उस की बात को समझने और उसे अपना समझ कर समझाने वाला हो तो बात बन जाती है। यह काम आम तौर पर अच्छी सास कर सकती है। लड़की को लगे कि सास और उस की माँ में कोई अधिक अंतर नहीं है तो परेशानी हल हो सकती है। 

दि  आप के प्रयत्नों से बात बन जाए तो ठीक है, अन्यथा आप साले की पत्नी और मायके वालों से साफ बात करें कि विवाह के उपरांत तो लड़की को अपने पति के साथ ही रहना चाहिए और वह उन के साथ नहीं रहना चाहती है तो उस का कोई हल निकाला जाए। आपसी बातचीत से इस समस्या का हल निकालने का प्रयत्न करें। यदि इन सब प्रयत्नों का कोई हल नहीं निकलता है तो फिर आप अपने साले से हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 में दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना के लिए आवेदन प्रस्तुत कराएँ जिस में सारे तथ्यों को बताते हुए अपनी आशंकाओं को भी अवश्य  अंकित कराएँ। 

4-ससुराल वालों के परेशान करने के कारण भतीजी ससुराल नहीं जाना चाहती, वे उस के दहेज को भी नहीं लौटाना चाहते, हम क्या करें?

प्रश्न-----
मैं ने अपनी भतीजी का विवाह दो साल पहले इंदौर किया था किन्तु ससुराल वालों ने उसे बहुत परेशान किया। अब भतीजी ससुराल नहीं जाना चाहती। लड़के वाले उस का दहेज का सामान नहीं लौटा रहै हैं। हमें क्या करना चाहिए। 
 उत्तर —

प ने अपने प्रश्न में कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं लिखा है। किसी भी मामले में कानूनी सलाह प्राप्त करने के लिए मामले के सभी और अधिकतम तथ्यों से अवगत कराना चाहिए। अन्यथा सलाह देना संभव नहीं होता है। मेरा अन्य पाठकों से भी यही आग्रह है कि तीसरा खंबा को कोई भी प्रश्न कानूनी सलाह के लिए प्रेषित करने से पूर्व मामले का अधिक से अधिक विवरण प्रेषित करें तथा सभी महत्वपूर्ण तथ्य अंकित करें।
प के विवरण से पता लगता है कि आप की भतीजी किन्हीं कारणों से अपनी ससुराल नहीं जाना चाहती। आप को पता करना चाहिए कि वे कारण क्या हैं? क्या वे ऐसे कारण हैं जिन के आधार पर वह अपने पति के साथ दाम्पत्य जीवन बिताने से इन्कार कर सकती है? क्या उस के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया है? यदि उस के साथ किया गया व्यवहार क्रूरतापूर्ण रहा है तो वह अपने पति के साथ दाम्पत्य जीवन बिताने से इन्कार कर सकती है और अपने माता-पिता के साथ अथवा पृथक निवास कर सकती है। यदि आप की भतीजी के पास जीवन यापन के स्वयं के साधन नहीं हैं तो वह अपने पति से जीवन निर्वाह के लिए भरण-पोषण की राशि प्राप्त कर सकती है। इस राशि को प्राप्त करने के लिए महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत अथवा धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत शिकायत न्यायालय को प्रस्तुत की जा सकती है और न्यायालय भरण पोषण के लिए उपयुक्त धनराशि आप की भतीजी को उस के पति से दिलाने के लिए आदेश कर सकता है। 
प का मूल प्रश्न यह था कि भतीजी के ससुराल वाले दहेज का सामान नहीं लौटा रहे हैं, आप क्या करें? किसी भी स्त्री को विवाह के समय दहेज में अथवा उस के पहले और बाद में मिले समस्त उपहार उस का स्त्री-धन है। यदि वह ससुराल में नहीं रह रही है तो ससुराल में छूट गई उस की यह समस्त संपत्ति ससुराल वालों के पास अमानत है। यदि ससुराल वाले इस संपत्ति को उसे लौटाने से इन्कार करते हैं तो यह धारा 406 भा.दं.संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। आप की भतीजी को ससुराल वालों ने बहुत परेशान किया है जो कि क्रूरता हो सकता है, यदि ऐसा है तो यह धारा 498-ए भा.दं.सं. के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। आप चाहें तो इन दोनों मामलों में संबंधित पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखा सकते हैं, या फिर न्यायालय में शिकायत प्रस्तुत कर संबंधित पुलिस थाना को भिजवा सकते हैं। इस मामले में उस के पति और ससुराल वालों के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो कर अन्वेषण होगा और वे गिरफ्तार किए जा सकते हैं। पुलिस समस्त स्त्री-धन बरामद कर लेगी, तब आप न्यायालय में आवेदन कर के उसे प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करने पर आप की भतीजी का वापस उस की ससुराल लौटने का म

5-दहेज उत्पीड़न के आरोपों को पहले मिथ्या साबित करें, तभी मिथ्या अभियोजन की कार्यवाही कर सकते हैं

प्रश्न---
मेरे भैया और भाभी आपस में ताल-मेल नही बैठा पा रहे हैं और लड़ते-झगड़ते रहते थे।  पापा ने दोनों से कहा आप लोगों को रहना है तो सही से रहो या कहीं किराए पर देखो। भाभी ने भैया से कहा मैं तुम्हारे घर में अलग नही रह पाऊंगी तो भैया शहर छोड़ दूसरे शहर में किराए पर कमरा लेकर रहने लगे। एक दिन भैया वापस घर चले आए और उन्होंने बताया कि उन की सास और एक दो औरतें उसे अपने साथ ले गई जब कि भैया काम पर गए हुए थें। भैया ने एक लिखित अर्जी डीएम के पास दी। उसके बाद भाभी और परिवार वालों ने मेरे पूरे परिवार पर दहेज उत्पीड़न का केस दायर कर दिया। जबकि हम लोग कभी उनके किराए वाले घर पर नहीं गए। जब कि भाभी ने आरोप लगाया है कि हम सब लोग कार में आए और उन के साथ मारपीट कर चले गए।
आप ये बताएं क्या मैं या मेरे परिवार वाले उनपर झूठा केस लगाने के आरोप में मान हानि का दावा कर सकते हैं?

उत्तर —

मारे समाज में स्थिति यह है कि न तो पुरुष अपनी पत्नी का चुनाव सोच समझ कर करता है और न ही स्त्री। अनेक बार पारिवारिक संस्कॉतियों और सोच में बहुत अंतर होता है। यही आपस में मतभेद का कारण बनता है। ये मतभेद अनेक बार सुलझाने के लायक होते हैं और अनेक बार न सुलझाने लायक होते हैं। पहली दशा में मतभेदों को सुलझा कर शादी को बचाने का प्रयत्न करना चाहिए। दूसरी अवस्था में शादी को जितनी जल्दी आवश्यक हो समाप्त कर देना चाहिए। आप के द्वारा दिए गए विवरण से लगता है कि मामला दूसरे प्रकार का है। जब पति-पत्नी परिवार के संरक्षण में सही न रह सकें और फिर अकेले भी तो विवाह का टूट जाना ही बेहतर है।
प का मूल प्रश्न था कि आप की भाभी द्वारा कराई गई झूठी रपट और मुकदमे के लिए उन पर मानहानि का मुकदमा हो सकता है या नहीं। वास्तव में यह मामला मानहानि से कुछ और अधिक का है। एक बार जब पुलिस और फिर न्यायालय के समक्ष आ चुका है तो पहले उसे अदालत के सामने मिथ्या साबित किया जाना चाहिए। यदि आप सब इस मामले में निर्दोष साबित हो जाएँ तो फिर यह लगभग सिद्ध हो जाएगा कि आप को परेशान करने की नीयत से ही यह मुकदमा किया गया था। वैसी स्थिति में आप अपनी भाभी और उन का सहयोग करने वालों के विरुद्ध मानहानि और अन्य कार्यवाहियाँ कर सकते हैं और तब आप दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का वाद भी संस्थित कर सकते हैं। इस मामले में आप को अपने स्थानीय वकील से अवश्य सलाह करना चाहिए। 

6-विधिक सेवा प्राधिकरण को आवेदन करें, योग्य होने पर सरकारी खर्च पर वकील मिलेगा

प्रश्न---
1. मेरी पत्नी ने मुझ पर धारा 406 और धारा 498-ए का का झूठा मामला दर्ज कराया है। मैं अपनी बात को कैसे अदालत के सामने रखूँ? मेरे पास वकीलों को देने के लिए पैसे नहीं हैं क्या मुझे जेल में रहना होगा? 
2.क्या कोर्ट मैरिज करने के चार साल बाद दहेज की धारा लगाई जा सकती है? जब कि कभी दहेज की मांग की ही नहीं। 
3.क्या धारा 406, 498-ए में जमानत मिलती ही नहीं है?

उत्तर —
क तो आपने नाम ऐसा रखा हुआ है कि यदि पुलिस को यह नाम पता लगेगा तो आप से कुछ विशिष्ठ व्यवहार कर सकती है। यह विशिष्ठ व्यवहार आप के लिए लाभदायक भी हो सकता है और हानिकारक भी। वैसे पुलिस का रवैया आप खुद जानते हैं। यदि उन के पास तिल्ली या कोई ऐसा ही दाना उन के पल्ले पड़ जाए तो वे तब तक दबाते हैं जब तक उस से तेल निकलने की संभावना होती है। लेकिन रेत को वे देखते ही पहचान लेते हैं और जानते हैं कि इस से तेल नहीं निकाला जा सकता। फिर वे उस से रेत के दाने जैसे ही व्यवहार करते हैं।
भी आप का मामला अदालत तक नहीं पहुँचा है, पुलिस तक ही है। पुलिस ने यदि आप को गिरफ्तार कर लिया तो ही वह आप को अदालत में प्रस्तुत करेगी। तब अदालत तक आप का जाना हो सकेगा। लेकिन जब तक आप के विरुद्ध चालान पेश नहीं होता है आप को अदालत से कुछ कहने का अवसर नहीं मिलेगा। इस कारण से जब तक आप को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर लेती है. आप पुलिस के अन्वेषण अधिकारी जिस के पास मामला अन्वेषण के लिए है उस के सामने अपना पक्ष स्पष्ट कर सकते हैं। यदि वह अधिकारी आप की बात सुनने से इन्कार करे तो आप पुलिस के उच्चाधिकारियों को अपनी बात लिख कर दे सकते हैं।
दि आप यह समझते हैं कि भा.दं.संहिता की धाराएँ 406 और 498-ए केवल दहेज के कारण ही लागू हो सकती हैं तो यह गलत धारणा है। यदि आप अपनी पत्नी के साथ क्रूरता पूर्ण व्यवहार करते हैं तो भी धारा 498-ए लागू होगी। यह क्रूरता मानसिक भी हो सकती है। आप यह न समझें कि यह धारा केवल दहेज के कारण ही प्रभाव में आ सकती है। धारा-406 स्त्री-धन के सम्बंध में है। यदि आप की पत्नी की कोई भी संपत्ति आप के कब्जे में है और आप उसे लौटाने से मना करते हैं या रोक कर रखते हैं तो धारा-406 लागू होगी। आप को चाहिए कि आप अन्वेषण अधिकारी को ऐसी सारी संपत्ति स्वयं ही सौंप दें और उसे सारी बात बताएँ। यह उस के विवेक पर है कि वह क्या करता है? 
दि आप के पास वकील के लिए पैसा नहीं है तो आप जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष एक आवेदन कीजिए कि आप को कानूनी सहायता चाहिए। यदि आप को योग्य माना गया तो आप को वहाँ से वकील की सुविधा प्राप्त हो जाएगी। जिस की फीस सरकार अदा करेगी।
धारा 406 व 498 ए में जमानत हो जाती है। लेकिन यह अन्वेषण समाप्त हो जाने पर या पुलिस को अन्वेषण के लिए आप की आवश्यकता न रहने पर ही संभव हो सकता है। 

7-वधु को दिए गए सभी उपहार दहेज नहीं, स्त्री-धन हैं।

समस्या-
मैंने पिछले साल नवंबर में अपनी समस्या रखी थी जिसका समाधान भी आप ने दिया था। मैंनेअभी तक अपना स्त्रीधन वापस पाने के लिए धारा ४०६ के तहत अथवा अन्य कोई भीमुकदमा दायर नहीं किया है। कृपया मुझे बताएँ कि क्या ४०६ की कोई परिसीमनअवधि है? मेरे पास इस संबंध में फोन कॉल की आखिरी रिकॉर्डिंग २३ जून २०१३की है।इस कॉल में स्त्रीधन को वापस न करने की बात की गई है परंतुस्त्रीधन में कौन-कौन से गहने हैं तथा अन्य सामानों का विवरण नहीं है। क्याइससे मुझे दिक्कत हो सकती है?
मेरे पति ने अब मेरे विरुद्ध वैवाहिकसंबंधों की पुनर्स्थापना के लिए धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत मुकदमादायर कर दिया है जिसमें मुझ पर तथा मेरे माता-पिता पर उल्टे-सीधे आरोप लगाएगए हैं और यह कहा गया है कि समस्त स्त्रीधन मेरे पास है। सुनवाई की तिथि15 मई दी गई थी। लेकिन मेरा जाना संभव न हो पाने के कारण मैं नहीं जा सकी और मैं ने न्यायालय को एक प्रार्थना पत्र डाक से प्रेषित कर दिया है। यह मुकदमा उस नगर के पारिवारिक न्यायालय में दायर किया गयाहै जहाँ मेरी ससुराल है तथा जहाँ से हमारे विवाह को विशेष विवाह अधिनियम केअंतर्गत पंजीकृत किया गया था। इस नगर में फिलवक्त केवल मेरे सास ससुर रहतेहैं। जबकि मेरे पति म.प्र. के एक शहर में चले गए हैं। अलग होने के पूर्वमैं पति के साथ उ.प्र. में रह रही थी और हमारा विवाह हिंदू रीति रिवाजों सेपटना में हुआ था। तो क्या मैं यह मुकदमा अपने शहर पटना में स्थानांतरितकरवा सकती हूँ? मैं अभी यहीं पर कार्यरत हूँ।
मेरे पिताजी अवकाशप्राप्त सरकारी कर्मचारी हैं। यदि इस वाद के प्रत्युत्तर में हम विवाह केसंबंध में दिए गए दहेज का जिक्र करते हैं तो क्या इससे उन्हें परेशानी होसकती है?

समाधान-

धारा 406 आईपीसी में कोई लिमिटेशन नहीं है आप कभी भी इस की शिकायत पुलिस को दर्ज करवा सकती हैं या फिर न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर सकती हैं। यह वास्तव में स्त्री-धन जो कि पति या उस के परिजनो के पास है उसे मांगे जाने पर देने से इन्कार कर देने पर उत्पन्न होता है। आप के पति ने उसके पास जो आप का स्त्री-धन है उस के बारे में यह मिथ्या तथ्य अपने आवेदन में अंकित किया है कि वह आप के पास है। इस तरह वह आप के स्त्री-धन को जो पति के पास अमानत है उसे देने से इन्कार कर रहा है। इसी से धारा-406 आईपीसी के लिए वाद कारण उत्पन्न हो गया है। आप जितनी जल्दी हो सके यह परिवाद पुलिस को या फिर न्यायालय में प्रस्तुत कर दें। यह सारा स्त्री-धन आपके पति के कब्जे में आप के विवाह के समय पटना में सुपूर्द किया गया था इस कारण से उस का वाद कारण भी पटना में ही उत्पन्न हुआ है और आप यह परिवाद पटना में प्रस्तुत कर सकती हैं।
हेज के लेन देन पर पूरी तरह निषेध है तथा यह लेने वाले और देने वाले दोनों के लिए अपराध भी है। किन्तु पुत्री को या पुत्रवधु को उपहार दिए जा सकते हैं जो कि उस का स्त्री-धन हैं। आप के मामले में जो भी नकद या वस्तुएँ आप के पिता ने, आप के संबंधियों और मित्रों ने या फिर आप के ससुराल वालों ने आप को दी हैं। वे सभी स्त्री-धन है और वह आप के पति या ससुराल वालों के पास अमानत है। आप के मांगे जाने पर न देने पर धारा 406 आईपीसी का अपराध होता है।
प धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रकरण में आप के उपस्थित न होने से आप के विरुद्ध एक तरफा डिक्री पारित हो सकती है। यह डिक्री वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए होगी। जिस का मात्र इतना असर है कि यदि आप डिक्री होने के एक वर्ष तक भी आप के पति के साथ जा कर नहीं रहती हैं तो इसी आधार पर आप के पति को आप से विवाह विच्छेद करने के लिए आवेदन प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा। इस कारण यदि आप इस मुकदमे में जा कर अपना प्रतिवाद प्रस्तुत नहीं करती हैं तब भी उस में आप को किसी तरह की कोई हानि नहीं होगी।
प यदि विवाह विच्छेद चाहती हैं तो आप उस के लिए तुरन्त पटना में विवाह विच्छेद की अर्जी प्रस्तुत कर दीजिए। इस अर्जी के संस्थित होने के उपरान्त आप धारा-9 के प्रकरण को पटना के न्यायालय में स्थानान्तरित करने के लिए भी आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं।

8-दहेज में प्राप्त वस्तुएँ व नकदी स्त्री-धन है स्त्री उन्हें कभी भी ससुराल वालों से मांग सकती है।

समस्या-
मेरे पति घर से अलग रहते हैं, लेकिन मुझ को नहीं ले जाते हैं। मेरे पति सारा पैसा भी घर पर देते हैं और मुझे अपना घर खर्च नौकरी कर के निकालने को कहते हैं। अब उन्हों ने तलाक का नोटिस भेजा है। अपने माँ बाप के सिखाने पर मुझ से तलाक लेना चाहते हैं। क्या हम दोनों अलग रह सकते हैं? क्या मुझे दहेज में दिया गया सारा सामान और नकदी वापस मिल सकती है?
समाधान-
दि आप के पति आप को घर खर्च आप से नौकरी कर के निकालने को कहते हैं तो समझिए कि वे आप को खुद पर बोझा समझते हैं।  आप के पति के परिवार वाले भी चाहते हैं कि आप दोनों का विवाह टूट जाए। लगता है आप का विवाह हुए अधिक समय नहीं हुआ है। ऐसे में यदि आप इस विवाह को बनाए रखती हैं तो जीवन मुश्किलों से ही निकलने वाला है।
प के पति के पास तलाक का कोई मजबूत आधार नहीं है। जिस के कारण वे तलाक ले सकते हों।  इस कारण तलाक का नोटिस कोई मायने नहीं रखता है।  विवाह में रहते हुए पति पत्नी के अलग अलग रहने में कोई बाधा नहीं है लेकिन पति या पत्नी में से कोई भी जान बूझ कर अलग रह रहा हो और दाम्पत्य के दायित्वों का निर्वाह नहीं कर रहा हो तो दूसरा उस के विरुद्ध धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। इस आवेदन पर न्यायालय दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की डिक्री पारित कर देगी। लेकिन इस डिक्री का विशिष्ट अनुपालन कराया जाना संभव नहीं है। किसी को जबरन किसी के साथ रहने को बाध्य नहीं किया जा सकता है। अधिक से अधिक भरण पोषण की राशि अदा करने का आदेश दिया जा सकता है। इस डिक्री का यही असर होता है कि दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की डिक्री पारित होने पर भी यदि कोई उस की पालना न करे तो इस पालना न करने के आधार पर तलाक प्राप्त किया जा सकता है।
किसी स्त्री को  अपने मायके से दहेज में प्रदान की गई वस्तुएँ, नकद राशि तथा अन्य उपहार उस का स्त्री-धन है।  स्त्री को अपने ससुराल से, अपने पति से तथा मायके व ससुराल वालों से मिले सभी उपहार भी स्त्री-धन हैं जिस का स्वामित्व स्त्री का है। स्त्री कभी इन की मांग अपने ससुराल वालों से कर सकती है। यदि कोई उस स्त्री के मांगने पर इन वस्तुओं को नहीं देता है तो वह अमानत में खयानत का धारा 406 आईपीसी के अंतर्गत अपराध करता है। इस के लिए वह पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवा सकती हैं या फिर न्यायालय के समक्ष स्वयं परिवाद प्रस्तुत कर सकती है। पुलिस स्त्री का सारा स्त्री-धन बरामद कर सकती है जिसे आप न्यायालय में आवेदन कर के प्राप्त कर सकती है। आप भी ऐसा कर सकती हैं।
दि आप के पति आप को अपने साथ नहीं रखते हैं, आप का खर्चा नहीं देते हैं या आप को मायके में रहने के लिए बाध्य करते हैं तो आप भरण पोषण के लिए धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत भरण पोषण की राशि प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकती हैं। आप के भरण पोषण के लिए राशि प्रदान करना आप के पति का दायित्व है, आप के पति को तलाक के बाद भी जब तक आप फिर से विवाह नहीं कर लेती हैं या पर्याप्त रूप से कमाने नहीं लगती हैं तब तक यह भरण पोषण की राशि आप को अदा करनी पड़ेगी।

9-पत्नी के प्रस्ताव के अनुसार स्त्री-धन लौटा कर सहमति से तलाक के लिए आवेदन करें, लेकिन पहले दाम्पत्य की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन अवश्य प्रस्तुत कर दें

समस्या-
मेरी शादी जून 2009 में हुई।  शादी के बाद से ही पत्नी के मायके वालों के हस्तक्षेप के चलते हमारे वैवाहिक जीवन में कड़वाहट आने लगी।  मेरी पत्नी अपने मायके वालों के अनुसार ही चलती है और मेरे घर वालो को पसंद नहीं करती है।  मेरे घर वालों द्वारा कही गई छोटी से छोटी बात जो उसके हित के लिए कही जाती उस को भी वह बढ़ा चढ़ाकर अपनी मम्मी से कह देती।  फलस्वरूप हमारे दोनों परिवारों में टकराव कि स्थति आ गई।   पत्नी भी आये दिन झगड़ा करती है जिस वजह से कलह रहने लगी।  शादी के बाद पत्नी मुझे शहर से बाहर जैसे दिल्ली जाकर वहा जॉब तलाशने के लिए दबाव बनाने लगी।  मैंने उसकी बात मान कर घर छोड़ दिया और नॉएडा में जॉब करने लगा।  पत्नी भी साथ रहने लगी।  एक वर्ष तक नौकरी करता रहा।  लेकिन माँ कि बीमारी के चलते मुझे फिर से वापस आना पड़ा और हमेशा के लिए घर में रहने का निश्चय किया।  लेकिन पत्नी को यह बिलकुल मंजूर नहीं हुआ और झगड़कर अपने मायके चली गयी।  आज उसे मायके गए 4 महीने हो गए हैं।  तब से उसने न ही मेरी कोई खबर ली और न मेरे घर वालों की।  मेरी उससे कोई बात नहीं हुई तो मैं उससे मिलने ससुराल गया लेकिन वो मेरे पास नहीं आई और मिलने से इंकार कर दिया।  फिर दो दिन बाद मैं पिताजी और ताउजी के साथ गया।  उसे लेने के वास्ते तो उसने और उसके घर वालो ने भेजने से मना कर दिया और गलत आरोप लगाकर दहेज़ का मुकदमा लगाने कि धमकी देने लगे।  तलाक के लिए भी कहा रहे हैं।  हम लोग घर वापस आ गए लेकिन मेरी माँ और दीदी ने फ़ोन कर बात की तो उनका वही जवाब है कि मुझे मेरा सामान वापस कर दो और अब फैसला होगा।  घर आने के लिए बिलकुल भी राजी नहीं है।   मुकदमा कर के मेरे घर वालों को जेल भेजने कि धमकी दे रहे हैं।  मैं आपको बता दूँ कि शादी से लेकर अभी तक मेरी तरफ से या मेरे घर वालों की तरफ से दहेज़ के नाम पर एक रुपये की भी मांग नहीं कि गयी है।   आपसी कलह और झगड़े के चलते मैंने अपनी पत्नी को एक बार डाँटा जरूर था, वो भी तब जब उसने जिद में आकर अपने शरीर को नुक्सान पहुँचाने कि कोशिश की, जैसे दरवाजा बंद करके फांसी लगाने कि कोशिश,  ब्लेड से हाथ कि नस काटने कि कोशिश या फिर मेरे सामने अपना सर दीवार पर पटकने के कारण।  मेरे घर वाले और मैं अपनी पत्नी को बहुत चाहते थे।  लेकिन मेरी पत्नी ने उस चाहत को नहीं समझा।  वह सिर्फ अपने मायके वालों से मतलब रखती रही।  मैंने बहुत कोशिश की कि उसे मना लूँ, लेकिन वो नहीं मान रही है।  कृपया मार्गदर्शन करें कि कैसे मैं उस के द्वारा लगाये गए मुक़दमे से अपना और अपने परिवार वालों का बचाव कर सकता हूँ? जिस से हमें परेशानी और बदनामी का सामना न करना पड़े।
समाधान-
प की परिस्थितियाँ स्पष्ट और विकट हैं।  आप की पत्नी आप के साथ नहीं रहना चाहती और आप से वैवाहिक सम्बन्धों का विच्छेद अर्थात तलाक चाहती है।  उस के मायके वाले उस के साथ हैं।  हो सकता है अपने मायके वालों को उस ने मनगढ़न्त कहानियाँ सुना रखी हों।  आप के कथनों से लग भी रहा है कि उस ने पहले फाँसी लगाने, दीवार से सिर फोड़ने और हाथ की नस काटने की कोशिश की है।  ऐसी परिस्थिति में वह 498-ए भा.दं.संहिता के अन्तर्गत क्रूरता का व्यवहार करने का आरोप लगा सकती है।  उसे विवाह के समय मिला स्त्री-धन भी कुछ तो आप के पास होगा ही।  इस तरह वह आप के विरुद्ध धारा 406 भा.दं.संहिता का आरोप भी आप पर लगा सकती है।  इन दोनों आरोपों में आप की और आप के परिवार वालों की गिरफ्तारी भी हो सकती है।  बाद में भले ही जमानत पर आप लोग छूट जाएँ।  आप गिरफ्तारी पूर्व जमानत के प्रावधान का उपयोग भी नहीं कर सकते क्यों कि यह प्रावधान उत्तर प्रदेश में प्रभावी नहीं है।
सी स्थिति में आप के पास केवल यही मार्ग शेष रह जाता है कि आप उस की और उस के परिवार वालों की बात मान लें।  उस का जो भी स्त्री-धन है उसे लौटा दें तथा सहमति से विवाह विच्छेद का आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत कर दें।  इस के लिए आप दोनों परिवार बैठ कर निर्णय कर सकते हैं कि क्या किया जाए और कैसे किया जाए? प्रारंभ में इस संबंध में एक समझौते पर आप दोनों पहुँच जाएँ और उस समझौते को स्टाम्प पेपर पर लिख कर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर करवा कर उसे नोटेरी पब्लिक के यहाँ तस्दीक करवा लिया जाए।
मझौते के लिए बातचीत करने के पहले एक काम अवश्य करें कि आप अपनी ओर से पारिवारिक न्यायालय के समक्ष एक आवेदन धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए अवश्य प्रस्तुत कर दें।  जिस से विकट परिस्थिति उत्पन्न होने पर आप यह कह सकें कि आप के मन में आज भी दुर्भावना नहीं है और आप पत्नी के साथ दाम्पत्य निर्वाह करने को तैयार हैं।

10-यदि वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना संभव न रह गई हो तो सहमति से विवाह विच्छेद श्रेयस्कर है।

समस्या-
मेरी शादी 2009 में हुई थी,  मेरी पत्नी अजमेर की रहने वाली हैं। हम ने प्रेम विवाह किया था। मैं ने तो अपने घर पर सब कुछ बता दिया था पर वो लड़की अपने घर वालों से अपनी शादी के बारे में बता नहीं पाई। उसकी नौकरी जयपुर में थी इसलिए उसे मेरे साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मेरे घर वालों ने उसे कहा कि तुम्हारे घर वालों से बात करे तो उसने कहा की वो टाइम आने पर खुद कर लेगी। पर मेरे चाचा जी ने उसके पापा से बात की तो उन्होंने कहा की मेरी बड़ी बेटी की शादी नहीं हुई है उसकी शादी हो जाएगी तब इनकी शादी की बात खोल देंगे । जब उनकी बड़ी बेटी की शादी हो गई तब हम ने उन्हें शादी की बाद सब को बताने को कहा तो उन होने 2011 में लड़की को घर भेजने को कहा और बोले तीन चार दिन बाद आकर ले जाना। में जब लेने गया तो लड़की ने कहा की मेरी मम्मी की तबीयत खराब हैं बाद में आउंगी।  कुछ टाइम बाद मुझे तलाक का नोटिस मिला , मैं ने जयपुर में धारा 9 के तहत वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना का केस किया। लड़की के न आने पर उसका फैसला मेरे हक में कर दिया गया। अजमेर में जो तलाक का केस लड़की ने मुझ पर किया उसका फैसला भी मेरा हक में हो गया।  अब लड़की ने हाईकोर्ट में अजमेर वाले फैसले के खिलाफ अपील की है। में ये जानना चाहता हूँ की आगे क्या होगा? एक बात और कि मैं अनुसूचित जाति का हूँ और लड़की सामान्य वर्ग की है।  इस बात को लेकर उसके पापा ने मुझ पर जाति सूचक शब्दों से संबोधित किया था जिस का मैं ने उन पर मुकदमा किया था, पर वो मुकदमा मैं ने वापस ले लिया था।  क्या अब मैं उन पर मानहानि का केस कर सकता हूँ। मैं एक व्यापारी हूँ मेरा सारा काम मेरी पत्नी के नाम की फर्म से चलता है। वो मेरी बहिन के साथ भी उसकी फर्म में पार्टनर है, मतलब कि वो मेरा साथ हर कागजी कार्यवाही में हैं। इन केस की वजह से मैं अपने काम में भी बराबर ध्यान नहीं दे पा रहा। हमारे बच्चे नहीं हैं, वो २ बार गर्भवती हुई थी, पर उसका दोनों बार गर्भपात हो गया था। उसने अपने तलाक के नोटिस में क्रूरता का या मारपीट का इल्जाम नहीं लगाया। न ही पैसे की लेन देन का बस वो बिना शर्त तलाक चाहती है। पर क्यों ये नहीं बताया। बाद में उसने अपने बयानों में पेसे का लेनदेन और मेरे द्वारा माँ बाप को डरना धमकाना बताया पर वो दोनों केस में जीत चुका हूँ। में ये जानना चाहता हो की अब हाईकोर्ट में क्या हो सकता है?
समाधान-
प के वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के मामले में आप के पक्ष में डिक्री हो चुकी है। जिस की कोई अपील नहीं हुई है तथा डिक्री की पालना में आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहने लगी है। इस तरह आप के पास विवाह विच्छेद के लिए आधार मौजूद है। पत्नी द्वारा किए गए विवाह विच्छेद के मामले में आवेदन निरस्त हो गया। उस ने उच्च न्यायालय में अपील की है। उस मुकदमे में क्या आधार आप की पत्नी ने तलाक के लिए लिया था, क्या तथ्य वर्णित किए थे तथा उस पर क्या साक्ष्य ली गई थी यह तो आप के मामले की पूरी पत्रावली देखे बिना कोई भी वकील या विधिवेत्ता नहीं बता सकता। लेकिन जो तथ्य यहाँ आप ने प्रकट किए हैं उन से प्रतीत होता है कि आप की पत्नी के पास विवाह विच्छेद के लिए कोई मजबूत आधार नहीं है और उच्च न्यायालय भी इस मामले में विवाह विच्छेद की डिक्री पारित नहीं करेगा।
दि आप की पत्नी आप के साथ रहना नहीं चाहती है और विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करना चाहती है तो मेरे विचार से आप का संबंध अब बना नहीं रह सकता। जब संबंध के जल्दी ही पुनः स्थापित न होने की कोई संभावना न हो तो उसे बनाए रखने का कोई लाभ नहीं। वैसी स्थिति में सहमति से अलग हो जाना सब से श्रेयस्कर है। इस से दोनों पक्षों के बीच कोई कटुता उत्पन्न नहीं होती और कम से कम मानवीय संबंध बरकरार रह सकते हैं। आप अपनी पत्नी से खुल कर बात करें और पूछ लें कि क्या साथ रहने की तनिक भी संभावना है? यदि नहीं तो आप को पत्नी की इच्छा का सम्मान करते हुए सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री हेतु आवेदन करने का प्रस्ताव अपनी पत्नी के समक्ष रखना चाहिए। इस के साथ आप शर्त ये रख सकते हैं कि आप के जिन जिन व्यवासायों में वह भागीदार है उन से वह बिना कुछ लिए दिए रिटायर हो जाएगी तथा भविष्य के लिए कोई खर्चे की मांग नहीं करेगी न भविष्य में कभी खर्चे की मांग करेगी।

11-मध्यस्थों के माध्यम से दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना अथवा सहमति से तलाक के लिए प्रयत्न करें

समस्या-
मेरा विवाह मई 2003 में हुआ था। पत्नी मार्च 2004 में मेरे परिवार वालों पर गलत आरोप लगा कर और मेरे परिवार को बदनाम कर के चली गई तथा मार्च 2004 से उस के मायके में रह रही है।  हम कई बार उसे लेने भी गए पर वह वापिस नहीं आई। अभी जनवरी 2012 में हमारे समाज के कुछ लोग बीच में पड़े और मेरी पत्ती को मेरे घर छोड़ गए।  वह रात भर रही और दूसरे दिन सुबह वापस अपने मायके चली गई। जाते समय बोलती गई कि यदि तुम अपने माता-पिता से अलग रहो तो ही मैं आप के साथ रहूंगी। मैं अपने माता-पिता से अलग नहीं रहना चाहता हूँ। क्या मैं तलाक के लिए अर्जी दे सकता हूँ
समाधान-
प की पत्नी मार्च 2004 से जनवरी 2012 तक स्वैच्छा से आप से अलग रही। आप के कई बार लेने जाने पर भी वह नहीं आई। उस ने किसी तरह की कोई कार्यवाही न्यायालय में भी संस्थित नहीं की। इस का सीधा अर्थ यह है कि वह आप के साथ नहीं रहना चाहती है। यदि वह आप को अपने माता-पिता से अलग कर के आप के साथ रहना चाहती है तो उस के पीछे कोई ठोस कारण होना चाहिए। इस तरह यदि आप की पत्नी के पास इस के लिए कोई ठोस कारण नहीं है तो इस का अर्थ यह है कि उस ने आप को पिछले आठ वर्ष से वैवाहिक संबंधों से दूर रखा है। यह एक आधार है जिस के आधार पर आप उस के विरुद्ध तलाक का मुकदमा दाखिल कर सकते थे। लेकिन आप ने भी उस के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की। आप उस के विरुद्ध दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए भी कार्यवाही संस्थित कर सकते थे वह भी आपने नहीं की है।
ब जनवरी में आप की पत्नी एक रात आप के घर में रही है। उस रात आप के संबंध उस के साथ कैसे रहे हैं यह स्पष्ट नहीं है। यदि उस रात आप के साथ उस का कोई शारीरिक संबंध नहीं रहा है तो आप उस के विरुद्ध धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक का मुकदमा इस आधार पर कर सकते हैं कि उस ने विगत आठ वर्षों से आप के साथ दाम्पत्य जीवन का त्याग कर रखा है। आप चाहें तो तलाक का मुकदमा न कर के हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा- 9 के अंतर्गत दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का मुकदमा भी दायर कर सकते हैं। यदि उस मुकदमे में उस का जवाब नकारात्मक रहता है तो उसी मुकदमे को आप विवाह विच्छेद के मुकदमे में परिवर्तित करवा सकते हैं।
दि आप तलाक के लिए अथवा दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए अपनी पत्नी के विरुद्ध मुकदमा करते हैं तो आप की पत्नी धारा-24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत मुकदमे का खर्चा, आने जाने का खर्चा और मुकदमे के दौरान भरण पोषण के खर्चे की मांग कर सकती है, न्यायालय इस आवेदन को सहज ही स्वीकार कर लेगा और आप को न्यायालय के आदेश के अनुसार धन आप की पत्नी को देना होगा। इस के अतिरिक्त आप की पत्नी आप के विरुद्ध धारा 125 दं.प्र. संहिता के अंतर्गत भी भरण पोषण का आवेदन प्रस्तुत कर सकती है जो स्वीकार किया जा सकता है और वह भऱण पोषण राशि भी आप को देनी होगी। इन में से जो भी भरण पोषण आदेश बाद में होगा उस में न्यायालय पिछले आदेश को तब ध्यान में रखेगी जब आप उसे इसे ध्यान में रखने का निवेदन करेंगे। आप की पत्नी आप के विरुद्ध धारा 498-ए व धारा 406  भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत फर्जी या वास्तविक अपराधिक मामला भी चला सकती है। जिस में साक्ष्य प्राप्त होने पर आप को पुलिस द्वारा गिरफ्तार भी किया जा सकता है।
प को इन सभी बातों को ध्यान में रख कर कोई विधिक कार्यवाही करनी होगी।  इस के लिए आप को अपने नजदीक के अच्छे वकील से राय करनी चाहिए। मेरी राय यह है कि आप दोनों के बीच यदि दाम्पत्य की कोई संभावना नहीं है और आप की पत्नी आप के साथ रहने की इच्छुक नहीं है तो आप के समाज के जो लोग आप की पत्नी को आप के घर छोड़ कर गए थे उन की मध्यस्थता का लाभ उठा कर बातचीत करनी चाहिए और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के अंतर्गत दोनों पक्षों की सहमति से विवाह विच्छेद के लिए आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए। यह आवेदन का निर्णय एक वर्ष से कम की अवधि में हो सकता है।

12-क्या मुझे पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा? क्या मुझे तलाक मिल सकता है?

 प्रश्न---
मेरी शादी फरवरी 2010 में हुई थी। शादी के तीन माह बाद मेरी पत्नी मायके चली गई। कोशिश करने पर भी वह नहीं मानी। मुझे मजबूरन धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम में आवेदन करना पड़ा उस का भी जवाब अभी तक नहीं दिया। उस ने भरण-पोषण के लिए धारा 125 दं.प्र.सं. में आवेदन प्रस्तुत कर दिया है, जिस में उस ने दस हजार रुपए खर्चा मुकदमा और पाँच हजार रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण राशि की मांग की है। पत्नी को घर से गए दस माह हो गए हैं। उस के मायके जाने का कारण मुझे भी समझ नहीं आ रहा है, मैं ने एक बार उसे डाँटा भर था। उस के मामा और चाचा ने मेरे परिवार के साथ बद्तमीजी की और झूठ-मूट लिखवा लिया कि मैं ने उस का गला दबाया है और प्रताड़ित किया है। जब कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब तो मेरा परिवार भी उसे पसंद नहीं करता है। क्या मुझे अपनी पत्नी को भरण-पोषण देना पड़ेगा? यदि साल बीतने पर भी मेरी पत्नी धारा-9 के मुकदमे में नहीं आई और जवाब नहीं दिया तो क्या मुझे तलाक की डिक्री मिल जाएगी?  
 उत्तर –
प ने धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत किया है और धारा 125-दं.प्र.संहिता के मुकदमे में आप अपनी प्रतिरक्षा कर रहे हैं। आप ने इस काम के लिए वकील से संपर्क किया होगा और सारे तथ्य बताए होंगे। आप को सही और सटीक सलाह आप के वकील दे सकते हैं। लेकिन आप ने मुझ से प्रश्न किया है, इस का अर्थ है कि आप अपने वकील पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। या तो आप को अपने वकील पर विश्वास करना चाहिए, या फिर आप को अपना वकील बदल लेना चाहिए। क्यों कि सही और सटीक सलाह तो वकील ही दे सकता है। 
प ने चाहे दबाव से ही सही लेकिन यह लिख कर दिया है कि आप ने अपनी पत्नी का गला दबाया और उसे प्रताडि़त किया। इस तरह आप की पत्नी प्रथम दृष्टया यह साबित कर सकती है कि उसे के पास आप से अलग रहने का उचित कारण उपलब्ध है। यदि वह यह साबित कर सकी कि उस के पास उचित कारण है तो फिर आप को धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत भरण-पोषण राशि अदा करनी पड़ सकती है। इस के उलट आप को यह साबित करना होगा कि जो कुछ आप का लिखा हुआ है वह दबाव डाल कर लिखवाया गया, जिसे साबित करना आसान नहीं होगा।
प ने धारा-9 का मुकदमा किया है, जो कि दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना के लिए है, न कि तलाक के लिए। यदि आप की पत्नी इस मुकदमे में उपस्थित नहीं होती है तो भी आप को दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना ही डिक्री प्राप्त होगी न कि तलाक की। आप को तलाक प्राप्त करने के लिए एक आवेदन और प्रस्तुत कर के धारा-9 के मुकदमे को धारा-13 के मुकदमे में परिवर्तित कराना होगा अथवा तलाक के लिए अलग से आवेदन करना होगा। इस के लिए आप को तलाक के लिए वैधानिक आधार भी तलाशना पड़ेगा। वर्तमान में आप के पास पत्नी द्वारा आप का अभित्यजन एक आधार है, लेकिन यह भी पत्नी के अंतिम बार मायके चले जाने की तिथि से एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर ही उपलब्ध हो सकेगा। 

धिक अच्छा तो यह होगा कि दोनो पक्ष मिल कर आपस में कोई समझौता कर लें। यदि  आप की पत्नी भी तलाक के लिए सहमत हो जाए तो आप सहमति से तलाक के लिए आवेदन कर दें। वह अधिक आसान होगा। इस काम के लिए किसी मध्यस्थ की तलाश करनी चाहिए। क्यों कि अदालत से मामला अंतिम होने तक बहुत समय गुजर जाएगा। इस बीच आप को धारा-125 में भरण-पोषण राशि अपनी पत्नी को अदा करनी पड़ सकती है।

13-दाम्पत्य अधिकारों की स्थापना की डिक्री की पालना न करना तलाक का आधार है।

समस्या-
मेरी पत्नी ने मुझ पर विवाह विच्छेद का मुकदमा कर रखा था, जिसे कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया है। मैं ने धारा 9 के तहत दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का मुकदमा दायर कर रखा था जो मेरे पक्ष में डिक्री हो गया है। मतलब मैं दोनों जगह से मुकदमा जीत गया। मेरी पत्नी के घर वाले मुझे उस से बात नहीं करने देते। अब मुझे क्या करना होगा जिससे वह वापस आ जाये। अगर वह हाईकोर्ट में अपील करती है तो क्या होगा?
समाधान-
प ने दोनों मुकदमों में जीत हासिल की है। लेकिन आप की पत्नी को उच्च न्यायालय में इन निर्णयों के विरुद्ध अपील करने का अधिकार है। यदि वह अपील करती है तो जिन आधारों पर वह अपील करेगी आप को उन्हें गलत सिद्ध करना होगा। इस कारण से आप को चाहिए कि अपील होने पर अपनी पैरवी के लिए अच्छा वकील मुकर्रर करें।
किसी भी व्यक्ति को कानून के माध्यम से किसी अन्य के साथ रहने को बाध्य नहीं किया जा सका है। इस कारण से दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के मुकदमें में जो डिक्री पारित की गई है उसे मानते हुए आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहती है तो आप के पास एक ही उपाय यह है कि आप इस डिक्री की पालना न करने के कारण उस के विरुद्ध विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करने हेतु आवेदन कर सकते हैं, यह तलाक का अतिरिक्त आधार है। इस आधार पर आप को विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो सकती है। आप को इस से लाभ यही होगा कि आप विवाह विच्छेद के उपरान्त अपनी पत्नी के भरण पोषण के दायित्व से मुक्त हो सकते हैं।

13-पत्नी नहीं चाहे तो कोई भी जबरन उसे आप के साथ रहने को बाध्य नहीं कर सकता। बेहतर है विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर लें

समस्या-

मेरा विवाह एक मंदिर में हिन्दू विधि से हुआ था। बाद में विवाह का पंजीयन भी करा लिया। मेरे पास विवाह का कोई चित्र नहीं है।  विवाह के दस माह बाद मेरी पत्नी ने न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत किया कि वह विवाहित नहीं है और मैं ने उस से जबर्दस्ती से शादी के रजिस्ट्रेशन पर हस्ताक्षऱ करवा लिए हैं। इस के उपरान्त मेरी पत्नी ने दूसरा विवाह कर लिया है। मैं ने परिवार न्यायालय में वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन किया है। मेरी पत्नी उस प्रकरण में उपस्थित नहीं हुई न्यायालय ने एक तरफा कार्यवाही घोषित कर दी है। अब मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
प की पत्नी जिस ने आप के साथ विवाह किया है अब उस विवाह को जारी नहीं रखना चाहती है। उस ने इस के लिए आप के विरुद्ध परिवाद प्रस्तुत किया है कि आप ने जबरदस्ती रजिस्ट्रेशन आवेदन पर हस्ताक्षर करवा लिए हैं। लेकिन पंजीकरण मात्र हस्ताक्षर करने से नहीं होता। पति पत्नी को विवाह पंजीयक के समक्ष उपस्थित होना होता है। इस कारण से परिवाद तो चलेगा नहीं।
प की पत्नी ने दूसरा विवाह कर लिया है। एक विवाह में रहते हुए दूसरा विवाह वैध नहीं है। आप की पत्नी का उस के दूसरे पति के साथ रहना ठीक नहीं है। यह धारा 494 भा.दंड संहिता के अंतर्गत अपराध भी है। आप चाहें तो अपनी पत्नी के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट करवा सकते हैं या फिर न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर सकते हैं।
लेकिन यदि आप चाहते हैं कि आप की पत्नी आप के साथ आ कर रहे तो यह तब तक संभव नहीं है जब तक वह स्वयं आप के साथ नहीं रहना चाहती है। यदि आप वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए एक तरफा डिक्री भी प्राप्त कर लेते हैं और वह फिर भी आप के साथ नहीं रहना चाहती है तो कोई भी उसे जबरन आप के साथ रहने को बाध्य नहीं कर सकता। अधिक से अधिक आप तब अपनी पत्नी के विरुद्ध वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की डिक्री की पालना न करने पर विवाह विच्छेद की डिक्री के लिए आवेदन कर सकते हैं। ऐसा आवेदन तो आप अभी भी उस के द्वारा किए गए परिवाद और दूसरे विवाह की साक्ष्य प्रस्तुत कर जारता के आधार पर भी प्रस्तुत कर सकते हैं और विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकते हैं और ऐसी डिक्री प्राप्त हो जाने पर अन्य स्त्री के साथ विवाह कर सकते हैं। मेरे विचार में आप के लिए अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद कर दूसरी स्त्री के साथ विवाह करना ही उचित है।

14-पति और पुत्र को छोड़ कर प्रेमी के साथ भाग कर आप प्रेमी को अपराधी बना देंगी।

समस्या-
मेरी शादी को सात साल हुए हैं। मेरे एक चार वर्ष का बच्चा भी है। मैं अपने पति से खुश नहीं हूँ। मैं ने अपने पति से तलाक मांगा भी, लेकिन उस ने देने से इन्कार कर दिया। मैं किसी और से प्यार करती हूँ और वह भी मुझे बहुत प्यार करता है। उस की अभी तक शादी नहीं हुई है। हम दोनों शादी करना चाहते हैं। हम दोनों भाग जाएँ तो क्या होगा?
समाधान-
प के नाम से पता लगता है कि आप हिन्दू हैं। हिन्दू विधि के अनुसार हिन्दू विवाह एक विधिक संस्था है जो एक स्री व एक पुरुष का विवाह होने से अस्तित्व में आता है। जब एक बार कोई भी स्त्री-पुरुष एक विवाह में बंध जाते हैं तो दोनों एक दूसरे से विधिक रूप से कर्तव्यों और अधिकारों में बंध जाते हैं। हिन्दू विवाह केवल न्यायालय की डिक्री से अथवा जीवन साथी के मृत्यु पर ही समाप्त हो सकता है। एक विवाह में रहते हुए एक स्त्री और एक पुरुष दूसरा विवाह नहीं कर सकता। आप की भी स्थिति यही है कि जब तक आप अपने पति से विवाह विच्छेद की डिक्री न्यायालय के माध्यम से प्राप्त नहीं कर लेती हैं तब तक आप दूसरा विवाह नहीं कर सकतीं।
प के एक चार वर्ष का पुत्र भी है। आप पति से अप्रसन्न हैं और इसीलिए आप उन से तलाक चाहती हैं और एक अन्य युवक से जिसे आप प्यार करती हैं और वह भी प्यार करता है के साथ भाग जाना चाहती हैं। जब आप ने विवाह किया था तब आप अपने पति से न तो प्रसन्न थीं और न अप्रसन्न। क्यों कि आप अपने पति के साथ नहीं रही थीं। साथ रहने पर ही पता लगा कि आप उस के साथ प्रसन्न नहीं हैं।  आप ने उन के साथ सात वर्ष बिताए और अब अप्रसन्न हैं। अप्रसन्नता के कारण आप ने नहीं बताए हैं। लेकिन जिस युवक से आप प्यार करती हैं उस के साथ भी आप भी अभी तक नहीं रही हैं। आप यह निर्णय कैसे कर सकती हैं कि आप उस के साथ प्रसन्न ही रहेंगी? अर्थात् आप के जीवन में पति से अप्रसन्न रहते हुए भी एक निश्चितता है। लेकिन यदि आप उस युवक के साथ भाग गईं तो आप का जीवन पुनः अनिश्चित हो जाएगा। आप उस के साथ प्रसन्न रह सकती हैं यह निश्चित नहीं किया जा सकता।
प निश्चित रूप से अपने पुत्र को तो प्रेम करती होंगी। आप के भाग जाने से उसे भी आप को छोड़ना पड़ेगा और उस से व उस के प्रेम से वंचित हो जाएंगी। आप एक बच्चे को माँ के स्नेह और संरक्षण से वंचित कर देंगी। आप उसे साथ ले जाएंगी तो फिर आप उसे अपने पिता के संरक्षण और प्रेम से वंचित करेंगी। आप ने यह नहीं बताया कि आप के पति आप से प्रेम नहीं करते हैं। लगता तो यही है कि वे आप से प्रेम करते हैं, अन्यथा वे आप को तलाक देने को तैयार हो जाते।
प के उस युवक के साथ भाग जाने के बाद। आप के पति आप की तलाश करेंगे। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएंगे। पुलिस आप को व आप के प्रेमी को पकड़ कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेगी। आप की चिकित्सकीय जाँच भी होगी। जिस में सहज रूप से यह प्रमाणित हो जाएगा कि आप ने उस युवक के साथ यौन संबंध बनाए हैं। आप तो इस में किसी तरह के अपराध की दोषी नहीं होंगी लेकिन वह युवक आप के साथ यौन संबंध बनाने का अर्थात जारता का दोषी होगा क्यों कि वह जानबूझ कर एक ऐसी स्त्री के साथ यौन संबंध स्थापित करेगा जो कि किसी दूसरे की पत्नी है। उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 497 में पाँच वर्ष के लिए दंडित किया जा सकता है। ऐसी अवस्था में आप उस युवक के साथ किसी भी स्थिति में प्रसन्न नहीं रह सकेंगी। आप का घर उस प्रेमी युवक के साथ भी नहीं बसेगा। आप न तो घर की रहेंगी और न घाट की।
स अवस्था में आप के पास दो ही विकल्प हैं। एक तो आप अपने पति से विवाह विच्छेद के लिए न्यायालय को आवेदन करें और विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करें फिर उस युवक के साथ संबंध बनाएँ। दूसरा विकल्प यह है कि आप जिन कारणों से अपने पति से अप्रसन्न हैं उन्हें अपने पति को बताएँ और उन से अपने मतभेद दूर कर के उन के साथ प्रेम पूर्वक जीवन निर्वाह करें। इस से आप को अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ना पड़ेगा। आप चाहें तो अपनी इस समस्या के लिए किसी पारिवारिक काउंसलर की मदद भी ले सकती हैं जो आप को और आप के पति की काउंसलिंग कर के मतभेदों को सुलझाने में बड़ी भूमिका अदा कर सकता है।

15-पंचायत व तहसीलदार के समक्ष हुआ विवाह विच्छेद वैध नहीं है, परिवार या जिला न्यायालय से डिक्री प्राप्त करें

समस्या-
मेरा मित्र 100 प्रतिशत दृष्टिहीन है, उसका विवाह 2006 में एक दृष्टिवान लड़की से हुआ।  वो प्रारंभ से ही उसके साथ मानसिक उतपीड़न करती थी, आज उनके 2 बच्चे हैं।  मेरा मित्र हिमाचल सरकारी कर्मचारी है। उसकी पत्नी के कई लोगों के साथ अवैध शारीरिक संबंध है। जिसका प्रमाण कई बार मिल चुका है। अपनी गलती उसने सादे कागज पर भी स्वीकार की है। 30 जून 2012 को वो तहसीलदार के सामने उसे तलाक देकर चली गई थी। पर 3-4 महिने बाद वो पुनः आ गई।  मजबूरन उसे वो फिर रखनी पड़ी। उनके दो बच्चे 1 बेटा 1 बेटी जिन्हें वह जो  मेरे मित्र के पास छोड़कर चली जाती है। उसके कुछ दिनों बाद वह पुनः पंचायत के समक्ष उसे तलाक देकर चलई गई। यह तलाक जनवरी 2013 को हुआ था। पर मैंने उसे सलाह दी थी कि वो सेशन कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन करे। दोनों बच्चे उसके पास हैं। वो उसे धमकी देती है कि अगर तू अदालत में गया तो वो उस से खर्चे के रूप में आधा वेतन लेगी। जिससे मेरा मित्र बहुत परेशान है।  दृष्टिहीनता तथा दो बच्चों के कारण वो खुद ही खर्चे से तंग है। मेरा मित्र काफी मानसिक तनाव में है। मैं कुछ जानकारियाँ आप से चाहता हूँ।
1  क्या मेरा मित्र तहसीलदार व पंचायत के तलाक के बाद विवाह कर सकता है? तलाक में उसकी पत्नी ने उसे इसकी स्वतंत्रता दी है।
2 जैसा कि मैं कह चुका हूं कि उसने पंचायत के समक्ष व तहसिलदार ने तलाक में उसके हस्ताक्षरों को सत्यापित किया है, क्या वो फिर भी अदालत में मेरे मित्र के विरुद्ध मुकदमा कर सकती है? 
3 अगर मेरा मित्र विवाह करता है तो क्या उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही हो सकती है? पंचायत के तलाक के बाद उसका नाम मेरे मित्र के परिवार रजिस्टर से काट दिया गया है। 
4. अगर वो खर्चे का दावा करती है तो उसे कितना खर्चा देना होगा, वो आज कल प्राईवेट कंपनी में कार्य कर रही है। दोनों बच्चे मेरे मित्र के पास है।
समाधान-
प के मित्र की पत्नी ने उसे पंचायत और तहसीलदार के समक्ष तलाक दिया है। हिन्दू विधि में तलाक नहीं होता, यह शब्द केवल पुरुष द्वारा मुस्लिम विवाह विच्छेद के लिए है। हिन्दू विधि में पूर्व में तलाक जैसा कोई प्रावधान नहीं होने से बाद में जब हिन्दू विवाह अधिनियम के द्वारा विवाह विच्छेद अस्तित्व में आया तो लोग उसे भी तलाक कहने लगे हैं। हिन्दू विधि में विवाह विच्छेद केवल सक्षम न्यायालय की डिक्री से ही मान्य है।  इस के लिए सक्षम न्यायालय परिवार न्यायालय और उस के न होने पर जिला न्यायालय है। चूंकि जिला न्यायाधीश ही सेशन कोर्ट का भी पीठासीन अधिकारी होता है इस कारण से कई लोग उसे भी सेशन न्यायाधीश कह देते हैं। आप के मित्र को तुरन्त जिला न्यायालय या परिवार न्यायालय यदि वहाँ हो तो विवाह विच्छेद के लिए आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए। मित्र की पत्नी के लिखे हुए पत्र और तहसीलदार या पंचायत के सरपंच और उन व्यक्तियों की गवाही से जिन के उन तलाकनामों पर हस्ताक्षर हैं प्रमाणित किया जा सकता है कि मित्र की पत्नी का दूसरे पुरुष से संबंध है और विवाह विच्छेद हासिल किया जा सकता है। क्रूरता का आधार भी लिया जा सकता है।
क्षम न्यायालय से डिक्री प्राप्त होने से पहले आप के मित्र को विवाह नहीं करना चाहिए। क्यों कि तहसीलदार और पंचायत के समक्ष दिया गया तलाक विवाह विच्छेद नहीं है और कानूनन मित्र की पत्नी अभी भी उस की पत्नी है। यदि ऐसा किया तो उसे एक हथियार मित्र के विरुद्ध मिल जाएगा। मित्र की पत्नी नौकरी करती है इस कारण वह भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। लेकिन आप के मित्र को उस के विरुद्ध यह साबित करना होगा कि वह नौकरी करती है और उस का वेतन उस के जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त है। यदि किसी तरह निर्वाह भत्ते का आदेश वह प्राप्त कर भी ले तो भी उसे एक तिहाई वेतन से अधिक नहीं मिलेगा क्यों कि उन के दोनों बच्चे आप के मित्र के साथ रहते हैं।
प के मित्र की कानूनी और तथ्यात्मक स्थिति अच्छी है। पत्नी मुकदमे तो कर सकती है लेकिन उस से उसे कुछ नहीं मिलेगा। इसलिए आप के मित्र को घबराने की जरूरत नहीं है। बस कानूनन विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करनी होगी तथा उस के विरुद्ध कोई मुकदमा या मुकदमे होते हैं तो उन का मुकाबला करना होगा।

16-पूर्व पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री न्यायालय से प्राप्त नहीं की, वही वैध पत्नी है और भरण पोषण की अधिकारी है।

समस्या-
मैं रायपुर के एक स्कुल मे व्याख्याता पद पर कार्यरत हूँ। मेरा विवाह 1986 में हुआ था। और कुछ दिनों बाद मेरी पत्नी से मेरा झगड़ा होना चालू हो गया, घर में भी सभी सदस्यों से उनका हमेशा झगड़ा होता रहता था। मेरी पत्नी बार बार मायके चली जाती थी और मैं बार बार उनको लेने जाता था। मेरी पत्नी के मायके वाले मुझे धोखा देकर ये ‘शादी करवाये थे। मेरी पत्नी बचपन से ही विकलांग थी। ये सब ‘शादी के बाद पता चला जब मेरी पत्नी की विकलांगता बढ़ती गई, इस विकलांगता के कारण मेरा वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रह पाता था। उन्होने मुझे धोखा देकर मेरी दांपत्य जीवन से खिलवाड़ किये। तभी मैंने अपनी ‘शादी के 6 महीने बाद सामाजिक तौर से उन्हे तलाक दे दिया उसके बाद वो अपनी मायके में रहने लगी और 3 माह बाद पुत्र को जन्म दिया। मैं पुत्र को लेने भी गया मगर उन्होंने मुझे पुत्र को देखने भी नहीं दिया और मेरे उपर दबाव बनाया गया कि मैं दूसरी ‘शादी कर लूँ। मैं कब तक उनका और अपने पुत्र का इंतजार करता। मुझे भी तो अपने जीवन में आगे बढ़ना था। इसलिए मैं ने उनकी सहमति से दूसरी ‘शादी कर लिया। उसके बाद भी मैं अपने पहली पत्नी और बच्चे से कभी कभी मिलने जाता था और मुझसे जैसा बन पाता मैं उनकी आर्थिक मदद करता था। मैं उस समय एक प्राइवेट नौकरी करता था मुझसे ज्यादा मेरी पहली पत्नी के मायके वाले सम्पन्न थे। मैं जब भी जाता मुझे अपने पुत्र से मिलने नहीं दिया जाता था। 1995 में मुझे सरकारी नौकरी मिली व्याख्याता पद पर। उसके बाद मैं बीच बीच में जाकर उनकी आर्थिक मदद करता रहा और अपनी पहली पत्नी के पुत्र की पढ़ाई का खर्चा उठाता रहा फिर 2010 में मेरा पुत्र मेरे पास आया पढ़ाई के लिये और ज्यादा आर्थिक मदद मांगने के लिए। उस समय मैं ने अपने पहली पत्नी के पुत्र को 3 लाख रु. दिया जिसका मेरे पास कोई लिखित साक्ष्य नहीं है। इसी बीच मेरी पत्नी ने मुझ से अपने भरण पोषण की मांग कि मगर मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी उसके बाद भी मुझे मजबूरी वश कर्ज लेकर उन्हे समाजिक तौर पर 3 लाख रु. एकमुश्त राशि देना पड़ा, उस राशि को मैं ने उसके पुत्र के खाते में डलवाया जिसका पर्ची मेरे पास है। वर्तमान में मैं कुल 10 लोगों का भरण पोषण कर रहा हूँ। मेरी दुसरी पत्नी और दुसरी पत्नी से प्राप्त दो पुत्री और दो पुत्र, अपनी माता जी और अपनी विधवा बहन जिसका इस दुनिया मे मेरे सिवा कोई नहीं है और मेरी विधवा बहन की तीन पुत्रियों का, सभी के भरण पोषण का भार मेरे ही उपर है। मेरी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है हमेशा कर्ज से लदा रहता हूँ। जिसकी वजह से मैं अपने वर्तमान 4 बच्चो को उच्च शिक्षा नहीं दे पाया, मगर मै अपनी पहली पत्नी के पुत्र को एमबीए कोर्स करवाया ताकि आगे भविष्य मे मेरा पुत्र अपना और अपनी माँ का भरण पोषण कर सके। मेरी पहली पत्नी का पुत्र 27 वर्ष का है जो 2010-2012 तक एमबीए कोर्स पूरा कर लिया था। अब वर्तमान (जनवरी 2014) में मेरी पहली पत्नी भरण पोषण के लिए और राशि मांगने लगी मगर मेरी स्थिति किसी भी प्रकार से राशि देने लायक नही थी मुझ पर बहुत कर्ज था मैं 2011-2012-2013 में अपने तीनो भांजी की शादी की, जिसका कर्ज आज तक चुका नहीं पाया हूँ और अब मुझे अपनी दोनों पुत्रियों की ‘शादी करना है मेरी पहली पत्नी ने जनवरी 2014 से मार्च 2014 तक भरण पोषण की राशि के लिए बहुत दबाव बनाया मगर मेरी स्थिति ही देने लायक नही थी तो मै कहाँ से लाकर उनको पैसा देता। उसके बाद जून 2014 में मेरी पहली पत्नी और उनका पुत्र मिलकर कुटुम्ब न्यायालय रायपुर में धारा 125 के तहत भरण पोषण के लिए केस कर दिए हैं और मेरे द्वारा बताए गए सभी उपरोक्त कथन को झूठा करार दिया जा रहा है मुझे जबरदस्ती फँसाया जा रहा है कि मैं ने बिना तलाक के दूसरी ‘शादी की है और आवेदिका को मार पीट कर प्रताडित करके अपने घर से भगाया जिसकी वजह से आज आवेदिका विकलांग हो गयी है। इस तरह से न्यायालय में झूठा, बनावटी आवेदन प्रस्तुत किया गया है। मेरा वेतन 50000 महिना है और मेरा किसी भी प्रकार से आय का साधन नहीं है मेरी पहली पत्नी ने महिना 15000 और अंतरिम राशि भी 15000 की मांग की है जिसका न्यायालय द्वारा अंतरिम राशि 8000 रु फैसला किया गया है जिसे वर्तमान में मै देने के लिए सक्षम नहीं हूँ। पर भी मजबूरीवश देना पड़ रहा है। महोदय मेरा सवाल यह है कि मैं ने अपनी पहली पत्नी और पुत्र के लिए इतना सब कुछ किया उसके बाद भी उन लोगों ने मुझसे दुश्मनी रखी। उन्होने तलाक के 27 वर्ष बाद केस दायर किये हैं। आपके हिसाब से न्यायालय द्वारा अंतरिम राशि के लिए कितना रु. फैसला दिया जाना चाहिये था और अंतिम फैसला कितना रु. तक का दिया जा सकता है वैसे आवेदिका विकलांग है। न्यायालय द्वारा मेरे पक्ष मे फैसला नहीं हो सकता क्या? मेरे पक्ष के लिए आपके हिसाब से अच्छे से अच्छा समाधान बताइए, और वे लोग आपसी समझौते के लिए भी तैयार नहीं हैं। मेरा एक और सवाल है कि मेरी पहली पत्नी के पुत्र ने बंजर भूमि सम्पत्ति के लिए जिला न्यायालय रायपुर में भी केस दायर किया है मेरे पास जो भी भूमि है सभी अपने आय से अर्जित (स्वअर्जित) भूमि है मेरे पास एक भी भूमि पैतृक सम्पत्ति नहीं है क्या मुझे अपने पुत्र को भूमि में हिस्सा देना पड़ेगा?
समाधान-
प का विवाह 1986 में सम्पन्न हुआ था उस के 31 वर्ष पूर्व भारत में हिन्दू विवाह अधिनियम पारित हो कर अस्तित्व में आ चुका था। जिस में यह उपबंधित किया गया था कि कोई भी व्यक्ति अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते उस से विवाह विच्छेद किए बिना दूसरा विवाह नहीं कर सकता। यदि ऐसा दूसरा विवाह किया जाता है तो वह अवैध होगा। इस अधिनियम के पूर्व की स्थिति यह थी कि हिन्दू विवाह में विवाह विच्छेद संभव नहीं था। एक बार विवाह हो जाने के उपरान्त दोनों सदैव के लिए पति पत्नी रहते थे। इस अधिनियम से पहली बार हिन्दू विधि में विवाह विच्छेद होना आरंभ हुआ। लेकिन यह विवाह विच्छेद केवल न्यायालय की डिक्री से ही हो सकता था।
स तरह आप की जो स्थिति है उस के अनुसार आप ने अपनी पहली पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री न्यायालय से प्राप्त नहीं की है और वह अभी भी आप की वैध पत्नी है। आप का कथन है कि आप ने अपनी पहली पत्नी और उस के मायके वालों की सहमति से दूसरा विवाह किया है। लेकिन इस सहमति का कोई सबूत नहीं है। पत्नी से विवाह विच्छेद किए बिना आप उस की सहमति से भी विवाह नहीं कर सकते थे। इस कारण से आप का दूसरा विवाह वैध नहीं है। हालांकि दूसरे विवाह से उत्पन्न आप के सभी बच्चे आप की वैध संतानें हैं।
प आप की विधिक स्थिति यह है कि पहली पत्नी आप की वैध पत्नी है जिस से आप के एक वयस्क पुत्र है। दूसरी पत्नी आप की वैध पत्नी नहीं है लेकिन उस से उत्पन्न संताने वैध हैं। इस तरह आप की पहली पत्नी को आप से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। आप ने पूर्व में उसे मदद की है और पुत्र को पढ़ाया लिखाया है तो ये आप का कर्तव्य था। उस को करने के कारण आप आज अपनी पहली पत्नी को भरण पोषण देने बच नहीं सकते। उसे भरण पोषण देना पड़ेगा। न्यायालय ने जो राशि आप की पत्नी के भरण पोषण के लिए अंतरिम रूप से तय की है वह भी उचित प्रतीत होती है और आप पर 10 व्यक्तियों के भरण पोषण का भार होने की स्थिति को देखते हुए ही दिलायी जानी प्रतीत होती है। अन्यथा स्थिति में यह 15-20 हजार तक की हो सकती थी।
प का पूर्व पत्नी से उत्पन्न पुत्र वयस्क है और अपना भरण पोषण करने में समर्थ है इस कारण से वह आप से भरण पोषण व अन्य खर्चे मांगने का अधिकारी नहीं है। यदि न्यायालय किसी भी प्रकार से इस 8000 रुपए प्रतिमाह के भरण पोषण के खर्चे को स्थाई कर देता है तो आप को इसे बड़ी राहत समझना चाहिए। आप पर बहुत खर्चे हैं आप की आय कम है। यह तो आप को उस समय सोचना चाहिए था जब आप अपने परिवार को बढ़ा रहे थे। अब सोचने से कुछ नहीं होगा। आप केवल एक स्थिति में इन परिस्थितियों से बच सकते थे कि पहले ही पूर्व पत्नी से सहमति से विवाह विच्छेद और स्थाई भरण पोषण की राशि न्यायालय से तय करवा लेते जिस से आप को उन दायित्वों से मुक्ति मिल जाती। लेकिन अब यह सब संभव प्रतीत नहीं होता।
प की जो भी संपत्ति आप की स्वअर्जित है उस पर आप की किसी भी पत्नी या संतान का कोई अधिकार नहीं है। आप के पहले पुत्र ने जो दावा किया है वह चलने योग्य नहीं है। आप अपनी स्वअर्जित संपत्ति को किसी को भी विक्रय कर सकते हैं या हस्तान्तरित कर सकते हैं या उस की वसीयत भी कर सकते हैं। उस में कोई बाधा नहीं है।

जीवन कर्ज में बिताने से अच्छा है तलाक के लिए मुकदमा लड़ा जाए।

समस्या-
मेरा विवाह 30 मई 2010 में मेरे शहर से 15 किलोमीटर दूर लालकुआँ नाम के कस्बे में  जिला नैनीताल, में हुआ था।  सगाई 28 नवम्बर 2009 को मेरे शहर किच्छा जिला उधमसिंह नगर, उत्तराखण्ड के एक होटल में हुई।  विवाह के 2 महीने बाद से ही मेरी पत्नी फ़ैशन डिजाईनिंग का कोर्स घर से 15 कि.मी. दूर रुद्रपुर में करने लगी।  सारा खर्च मैं देता था।  जुलाई 2011  में वह अपनी मर्जी से रुद्रपुर में  होस्टल में रहने चली गई।  वहां भी मैं लगभग 15000 रुपये प्रति माह देता रहा। वह बार-बार होस्टल में मिलने आने की जिद करती थी।   मैं सरकारी प्राईमरी स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर उत्तरप्रदेश में घर से 13 कि.मी. दूरी पर कार्यरत हूँ, मेरे लिये रोज रोज ड्यूटी छोड कर जाना संभव नहीं था, वह फोन से एवं एसएमएस से तलाक देने की बात करने लगी और यह भी कहती रही कि मेरे पिताजी को मत बताओ।    मेरे घर के पीछे ही उसके सगे मामा रहते हैं, मैं ने उनसे यह बात बताई,  उन्हों ने उसके पिता से कहा, उसके पिता उसको होस्टल से अपने घर ले गये।  नवम्बर में उसके पिता का फ़ोन आया कि अब वह ऐसा नहीं करेगी, आप आकर उसे ले जायें।   9 नवम्बर को मै उसे घर ले आया।   उसके साथ उसकी छोटी बहन भी आई।   16 नवम्बर को दोनो बहनें घर में रखे गहने आदि ले कर अपने घर चली गईं। इन दोनों को जाते हुए मेरी कॉलोनी के बहुत से लोगों ने देखा।  उसके बाद उसने मोबाईल नंबर बदल लिया और उसके परिवार वाले मुझे धमकी देने लगे कि मैं उन्हें 8 लाख रुपये दे दूं।  वरना दहेज एक्ट में जेल जाने को तैयार रहूँ।   फ़िर वह महिला हेल्प लाईन, हल्द्वानी, जिला नैनिताल में गये।   वहां पर उसने घर आने से मना कर दिया।   हेल्प लाईन से यह रिपोर्ट लग गई।   इसके बाद वे लोग मेरे उपर जान से मारने की धमकी देने व 498-ए आईपीसी आदि धाराओं के आरोप लगा कर धारा 156 में अदालत चले गये।   मेरी पत्नी ने सगाई के बाद मुझसे 50000 रुपये यह कह के मांगे थे कि उसके पिता ने उसे रुपए दिए थे लेकिन ब्यूटी पार्लर की दुकान में मेरे बैग से किसी ने निकाल लिए मैं ने तभी उस के खाते में अपने खाते के चैक से 20,000 रुपए जमा कराए थे। मैं ने पुलिस को ये सबूत, उसकी पढाई के खर्चे की रसीदें,  इन्कम टैक्स रिटर्न,  फ़ार्म 16 दिए तो उनका यह परिवाद खारिज हो गया।  ब्यूटी पार्लर वाले ने भी सारा सच बताते  हुए लिखित में सब कुछ दे दिया।  पैसे चोरी होने की बात झूठी थी।  पूरा परिवार मिला हुआ था।  फ़िर वे लोग कम्पलेन्ट केस में चले गये।  वह केस भी उनका  खारिज हो गया। इन के वाद दायर करने से पहले ही मैने पत्नी को घर लाने का केस कर दिया था।  उस केस में भी अदालत में वह घर न आने की बात कह चुकी है,  फ़ैसला आना बाकी है।   मेरे घर से जो गहने आदि ले कर वह गई थी उसका सबूत भी है।  उन लोगो ने सभी समान पड़ौसी के घर में रखा था वह अपना बयान देने को तैयार है।   मेरे शहर में अच्छे वकील की कमी हैं।  वह कहते हैं कि 4-5 लाख दे कर समझौता कर लो।  मेरे उपर पहले ही 3 लाख का लोन है।  वह लड़की दूसरे लडको के साथ घूमती रहती है।  उसके पिता कहते हैं, आप को क्या मतलब है।  उसके मामा मेरे पक्ष में ही हैं,  अतः मेरे तीन प्रश्न है कि
  1. क्या मेरी पत्नी अदालत से घर आने का आदेश होने के बावजूद गुजारा भत्ता ले सकती है?
  2. उनके केस खारिज हो चुके हैं,  मैं मानहानि या कोई किसी और प्रकार का केस उन पर कर सकता हूं?
  3. क्या करुँ कि तलाक मिल जाये?
समाधान-
प की सारी कहानी आप ने स्वयं ही बता दी है।  आप की पत्नी अपना जीवन खराब कर रही है और इस काम में उसे उस के पिता का पूरा योगदान मिल रहा है।  ये लोग किसी भाँति सुधर नहीं सकते।  आप का यह सोचना ठीक है कि आप को तलाक ले लेना चाहिए।  उस ने जो बाधाएँ आप को जीवन में खड़ी की हैं उन का अच्छे से मुकाबला आप ने कर लिया है। अब विवाह विच्छेद के लिए तो आप को जिला मुख्यालय पर ही कार्यवाही करनी होगी।  वहाँ आप को अच्छे वकील मिल जाएंगे।
प की पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश हो सकता है या नहीं? यह तनिक मुश्किल प्रश्न है। इस का उत्तर देना असंभव है।  लेकिन अब तक जो कुछ हो चुका है उस के बाद कोई भी न्यायालय गुजारा भत्ता उसे दिलाना उचित नहीं मानेगा।  लेकिन आप को उस के लिए गुजारा भत्ता के प्रकरण में ठीक से पैरवी करनी पड़ेगी और अब तक जो भी कार्यवाहियाँ हुई हैं उन की प्रतिलिपियाँ व अन्य दस्तावेजी सबूत के साथ गवाहों की गवाहियाँ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करनी होंगी।  इतना ही कहा जा सकता है कि यदि आप की तरफ से मुकदमे की पैरवी ठीक से हुई तो आप की पत्नी गुजारा भत्ता प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेगी।  लेकिन यदि प्रतिवाद ठीक न हुआ तो गुजारे भत्ते का आदेश हो सकता है।  इस मुकदमे को आप को ठीक से लड़ना ही होगा।  क्यों कि गुजारा भत्ते का आदेश हुआ तो वह पुनर्विवाह तक के लिए गुजारा भत्ता प्राप्त कर सकती है जो कि एक बड़ी मुसीबत हो सकता है।
प की अब तक हुई कार्यवाहियों से संबंधित सभी दस्तावेजों के अध्ययन से ही यह कहा जा सकता है कि आप मानहानि का अथवा दुर्भावनापूरण अभियोजन का मुकदमा अपनी पत्नी और उस के पिता के विरुद्ध कर सकते हैं अथवा नहीं। इस मामले में आप को अपने नजदीक के किसी जिला मुख्यालय पर किसी अनुभवी वकील की राय और सहायता प्राप्त करनी चाहिए।
प विवाह विच्छेद की डिक्री ले सकते हैं।  दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना के मुकदमे में आप को डिक्री मिल जाने के उपरान्त वह आप के पास न आए तो आप इस आधार पर तलाक का मुकदमा कर सकते हैं। अकारण वैवाहिक संबंधों से इन्कार करना व एक वर्ष से अधिक से आप से अलग रहना दूसरा आधार हो सकता है।  इस के अतिरिक्त क्रूरतापूर्ण व्यवहार व अन्य आधार भी आप को उपलब्ध हो सकते हैं।
कील समझौते की इसलिए सलाह देते हैं कि न्यायालय की कार्यवाही में कुछ वर्ष गुजर जाएंगे जब कि सहमति से तलाक आठ दस माह में हो सकता है। तलाक हुए बिना आप दूसरा विवाह कर के अपना जीवन आरंभ नहीं कर सकेंगे।  लेकिन जब आप पर पहले ही तीन लाख का कर्ज है तब पाँच लाख खर्च कर के आप तलाक लें और फिर दूसरे विवाह पर भी खर्च करेंगे तो आगे के जीवन में अत्यधिक कठिनाई हो जाएगी।  इस कारण से आप को तलाक के लिए मुकदमा ही लड़ना चाहिए बजाए इस के कि आप पाँच लाख रुपए दे कर समझौता करें और सहमति से तलाक प्राप्त करें। हाँ लाख-दो लाख में बात बन जाए तो ऐसा किया जा सकता है।  वैसे भी यदि आप यह रुख अपना लेंगे कि आप कुछ नहीं देंगे तो कुछ समय बाद आप की पत्नी और उस के पिता लाख-दो लाख रुपए में समझौता करने को खुद भी प्रस्ताव रख सकते हैं।
प के मामले में हमारी राय यही है कि आप को दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री प्राप्त करने के बाद अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद की कार्यवाही शीघ्र कर देनी चाहिए। डरने की कोई वजह नहीं है आप सही हैं और न्यायालय में भी सही प्रमाणित होंगे।

काला जादू जैसी कोई चीज दुनिया में नहीं होती।

समस्या-
मेरी आयु 30 साल है।  हाल ही में मेरी शादी हुई है।  मेरे राइट पैर में पोलियो है जिस के कारण अपंगता 40% सरकारी प्रमाणपत्र की हिसाब से होती है।  मेरी जीवनसंगिनी की आयु 27 वर्ष है और उसकी त्वचा पर व्हाइट स्पॉट हैं।  वह नौकरी में है और उस की अपनी आमदनी है। उस के मायके में घर का किराया भी मिलता है, लेकिन घर की स्थिति गरीब है। मेरे यहाँ शादी के बाद सारे फंक्शन्स को 15 दिन लगे और उसके बाद हम अपने बेडरूम में रहने लगे।  जब बीवी के साथ सोना शुरू किया तब उस रात को बीवी ने बताया की वो 6 महीने कोई बच्चा और सम्बन्ध नहीं चाहती। उस का कारण बताती थी की उसने 6 महीने के लिए ऑफिस से छुट्टी ली है और जॉब छोड़ने के लिए 3 महीने की नोटिस देनी पड़ेगी।  अगर वो बच्चा रखती है तो उसे ऑफिस में जाने में दिक्कतें आएंगी और उसे अच्छा नहीं लगेगा।  उसने ये भी बोला कि उसने शादी माँ और उसके जीजाजी के फ़ोर्स के कारण जल्दबाजी में की है वरना उसका विचार था कि उसका विवाह और 12 महीने के बाद हो।  उसने कहा कि उसे मुझ से शादी करने से कोई एतराज़ नहीं था।  मैं ने उसे 3 महीने तक इसकी अनुमति दे दी।  लेकिन वह इस के बाद भी इसे नामंजूर करने लगी।  मैं उस के साथ सोया, लेकिन हमारा सम्बन्ध नहीं बना है। उसके बाद 4-5 दिन हमारी नोक झोंक ही चलती रही और साथ साथ सोते रहे।  वह मानने को तैयार ही नहीं कु वो 6 महीने के अन्दर बच्चे के लिए प्रयास करे।  मैं ने उसे मनाने की कोशिश की कि उसकी उम्र माँ बनने के लिए उचित है लेकिन वह नहीं मानी। कुछ दिन बाद वो किसी काम से 2 दिन मायके हो आई।  उस के बाद मैं ने उसे फिर से राजी करने की कोशिश की।  पर वो अपनी बात पर अड़ी रही।  मैं ने उसे बताया महिलाएँ प्रेग्नेन्सी के दौरान भी काम करती हैं, पर वो नहीं मानी और उसने मुझे पटाया था कि अगर वो खुश नहीं रही तो बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा जो मुझे सही लगा।  उसके बाद मैं ने मेरा फैसला सुना दिया कि हम हमारे दोनों के कुछ रिश्तेदारों के साथ मीटिंग करके तुम्हे साल भर मायके में रहने की अनुमति दे दी जाएगी।  उस के यहाँ रहने से कुछ गड़बड़ी ना हो जाये और बच्चा गिरना मुझे पसंद नहीं।  वो मीटिंग का नाम सुनाने के बाद वो मीटिंग का जोरदार विरोध करने लगी और करती रही।  पर मैं अड़ा रहा।  मेरे तेवर देख के वो मीटिंग लेने से डर गयी और दबाव में आ के उसने कहा कि अब जो मैं चाहता हूँ वो वही करेगी।  लेकिन मुझे कुटुंब नियोजन के कुछ साधन इस्तेमाल करने होंगे।  उस के नाखुश होने के बात का मुझपर ज्यादा ही प्रभाव पड़ गया था। फिर से वो 2 दिन के लिए मायके काम के कारण गयी और वहाँ बीमार पड़ गयी।  उस की बीमारी साधारण नहीं (टाइफ़ाइड) है।  वह आज तक बीमार है और वहीं रह रही है।  बीच बीच में फोन पर बात करते वक़्त वो शुरुवात में कहती रहती थी कि वहाँ के लोग अनचाहे सवाल करते रहते हैं। तब मैं ने मीटिंग का उद्देश्य पटाया फिर भी वो नहीं मान रही।  वह आने पर जोर दे रही है और मैं मीटिंग पे।  हाल यह है कि अब वो रिश्तेदारों को झूठ बोल के रह रही है कि वो कुछ दिन पहले आयी है।  मैं मीटिंग ले के उसका वहाँ रहना आसान बनाना चाहता हूँ।  उसे झूठ बोलने की बहुत ख़राब आदत है।  बिना कारण के वो कई बार झूठ बोलती रहती है जो मुझे पसंद नहीं। मैं उच्च मध्यम खानदान से हूँ और वो गरीब खानदान से है।  उसके बर्ताव में शंका नजर आती है।  हमें तो लगता है कि वो काला जादू कर रही है लेकिन सबूतों के साथ उसे पकड़ा नहीं है।  लेकिन जैसे वो बर्ताव करती है वैसे तो जरूर काली दाल लग रही है।  ऐसा लगता है कि उसने पैसे की लालच में शादी करली है।  मेरी बहुत सी बातों को वो नज़र अंदाज़ कर देती है।  पत्नी हो कर भी वो मेरी बहुत सी बातें टाल देती है।  वह हमारे घर के सारे सदस्यों को काबू में रखना चाहती है और हो सके तो दुनिया के बाहर भेजना चाहती है।  संपत्ति अपने नाम करवाना चाहती है।  ज्यादातर वो पैसा उड़ाने का सोचती है।  उस ने शादी से पहले कहा था कि वह नौकरी नहीं करना चाहेगी।  मेरे अपाहिज होने के कारण और साम्पत्तिक स्थिति ठीक होने के कारण। उस के नौकरी करने पर जोर भी नहीं दिया था।  उसे लग रहा होगा कि हम काफी अमीर हैं और पैसा खर्च करना हमारे लिए आम बात है और उसे यहाँ आ कर यही करते रहना है।  हमारी साम्पत्तिक स्थिति उच्च मध्यमवर्गीय है।  पर हम सही कारणों के लिए ही पैसा खर्च करते हैं।  मौज मजे तक ठीक है, लेकिन अनचाही चीजों पर और जरूर से बहुत ज्यादा हम खर्च नहीं करते। मेरी शादी को अब 6 महीने होने आये हैं।  हम साथ सोए है लेकिन सम्बन्ध नहीं बना है।  5-7 दिन ही हम साथ सोए हैं और घंटो में कहा जाए तो 14-15 घंटे।  उसका बर्ताव और मनीषा देख के लगता है कि वो सिर्फ संपत्ति की मन्शा रखती है। क्या 6 महीने के अन्दर आसान तलाक संभव है?  हमारे घर वाले तो उसे बेटी की तरह रखते हैं।  लेकिन ये उसके लिए कोई मायने नहीं रखता।  मैं अभी प्राइवेट कंपनी में कम्प्यूटर ऑपरेटर की जगह काम कर रहा हूँ।  वो तलाक भी ले ले तो क्या उसे आधी प्रॉपर्टी जो वो चाहेगी देनी होगी? (वैसे वो काला जादू करके सारी ले लेना चाहती है) अपाहिज के लिए कोई मदद मिल जाए तो अच्छा होगा। मैं हो सके तो उस से तलाक ही चाहूँगा। जो मुझे और मेरे परिवार को काला जादू करके ख़तम करना चाहती है उस का मैं जीवनभर कैसे साथ दूँ?
समाधान-
प ने अपनी समस्या में अनेक बार यह कहा है कि आप की पत्नी काला जादू कर रही है। लेकिन यह नहीं बताया कि कैसे कर रही है? और उस के लक्षण क्या हैं? जब आप यह सोच चुके हैं कि वह काला जादू कर रही है तो आप को अपनी सोच माननी पड़ेगी क्यों कि आप अपनी सोच के बन्दी हैं। आप की अपनी सोच आप की पत्नी से आप के रिश्ते को आगे नहीं बढ़ने देगी। इस सोच के साथ आप अपनी पत्नी की ओर से सदैव ही आशंकित रहेंगे और आप का जीना दूभर हो जाएगा। इसलिए आप ने आगे भी यह ठीक ही सोचा कि हो सके तो आप को अपनी पत्नी से तलाक ले लेना चाहिए। अभी सरकार ने वह कानून पास नहीं किया है जिस के अनुसार तलाक होने पर पत्नी को पति की आधी संपत्ति मिलती है। लेकिन आज भी यदि पत्नी को तलाक मिलता है तो उसे उस को दहेज में अपने मायके से प्राप्त सामान और नकदी, परिचितों और ससुराल से प्राप्त उपहार उस का स्त्री-धन है। उसे तो आप की पत्नी ले ही लेगी। फिर वह उस के पिता द्वारा विवाह में खर्च हुई धनराशि की मांग भी करेगी जो उचित ही है। इस के अलावा यदि आप उस का नौकरी करना साबित नहीं कर पाए या उस की आमदनी कम हुई तो वह जब तक दूसरा विवाह नहीं कर लेगी तब तक मासिक भरण पोषण का खर्च भी मांगेगी जो न्यायालय उसे दिला ही देगा। यह राशि 2000 रुपया प्रतिमाह से ले कर 10-20 हजार रुपया प्रतिमाह आप की आर्थिक व सामाजिक स्थिति के अनुसार होगा। आप कह ही चुके हैं कि आप उच्च मध्यमवर्गीय संपन्न परिवार के व्यक्ति हैं। आप को तलाक लेने के लिए इतना तो खर्च करना होगा।
लेकिन तलाक लेने में अभी बाधा है। विवाह की तिथि से एक वर्ष की अवधि समाप्त होने के पहले तलाक के लिए कोई अर्जी न्यायालय में दाखिल नहीं की जा सकती। यदि आप अपनी पत्नी को सहमति से तलाक लेने के लिए मना लें और वह मान भी जाए तो भी शादी की तारीख के एक साल बाद तो आप ऐसी अर्जी पेश कर पाएँगे। अदालत उस के छह माह बाद ही तलाक की डिक्री पारित कर सकता है। यदि आप की पत्नी सहमति से तलाक के लिए न मानी तो आप को किसी न किसी आधार पर तलाक लेना पड़ेगा। आप की पत्नी उस का विरोध करेगी। दोनों तरफ से वाद प्रतिवाद होगा, गवाह सबूत होंगे तो ऐसे में तीन-चार साल तो लग ही जाएंगे। उस के बाद आप की पत्नी उस की अपील प्रस्तुत कर दे तो चार-पाँच साल अपील में लग जाएंगे। तब तक आप दूसरा विवाह नहीं कर सकेंगे। वैसे भी जो तथ्य आप ने बताए हैं उन से आप के पास तलाक का फिलहाल कोई आधार आप के पास नहीं है। आप के और आप की पत्नी के बीच यौन संबंध स्थापित नहीं हुए हैं इस तथ्य के आधार पर तलाक नहीं लिया जा सकता है। वैसे यदि आप की पत्नी इस मामले का प्रतिवाद करे तो इसे आप की कमजोरी साबित कर सकती है।
प ने काला जादू का उल्लेख किया है। दुनिया में काला जादू नाम की कोई चीज नहीं होती। जो होती है वह केवल शंकाओं के आधार पर व्यक्ति का मानसिक भ्रम होता है। आप को भी आप की पत्नी के बारे में मानसिक भ्रम है। आप की पत्नी आप से यौन संबंध क्यों नहीं बनाना चाहती इस का कारण आप को खोजना चाहिए। आप को चाहिए कि आप आप की पत्नी को समझने का प्रयास करें और उसे आप को समझने दें। अभी आप का विवाह हुए दिन ही कितने हुए हैं। आप दोनों का साथ कुछ ही दिन का है। आप ये क्यों सोचते हैं कि एक अपरिचित स्त्री विवाह होते ही आप से ठीक से परिचित हुए बिना ही अपना शरीर आप को सौंप देगी। यह पहले के जमाने में हुआ करता था। आज कल नहीं होता। आज कल की लड़कियाँ, कम से कम जो अपने पैरों पर खड़ी हैं यह भी सोचती हैं कि छह माह पति के साथ रह कर देख लिया जाए कि वहाँ उस का गुजारा हो सकता है या नहीं। यदि लड़के भी इसी तरह सोचने लगें तो बात बन सकती है। आप दोनों अपने पैरों पर खड़े हैं। दोनों स्वावलंबी रह कर एक अच्छे दाम्पत्य का निर्माण कर सकते हैं। पर जिस तरह से आप काले जादू का उल्लेख कर रहे हैं। उस से लगता है कि आप की पत्नी यदि आधुनिक विचारों की हुई तो उस ने आप के विश्वास से यह सोच लिया हो कि कैसा दकियानूसी पति मिला है? इस के साथ मेरा निबाह मुश्किल है। हो सकता है वह यही सोच रही हो।
मारी सलाह है कि आप अपनी पत्नी के लिए आप के दिमाग में बैठी सभी शंकाएँ निकाल दें और किसी मैरिज काउंसलर से मिलें। उसे अपनी समस्या बताएँ। वह आप की बहुत सी गलफहमियाँ दूर कर सकता है। उस के बाद आप की पत्नी से मिल कर उस की गलफहमियाँ दूर कर सकता है। दोनों को आपस मिला कर दोनों की गलतफहमियाँ दूर कर के आप दोनों के दाम्पत्य के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।  काला जादू जैसी कोई चीज दुनिया में नहीं होती। दूसरे आप को छह माह में कोई तलाक नहीं मिल सकता। तलाक मिलने में अभी कम से कम डेढ़ साल तो लगेगा। अधिक से अधिक पाँच सात साल भी लग सकते हैं और यह भी हो सकता है कि तलाक मिले ही नहीं।

आपस में मामला निपटाएँ या अच्छे काउंसलर की मदद लें।

समस्या-
मारी शादी एक प्रेम विवाह था। हमारी एक 6 साल की बेटी भी है। मेरी पत्नी पिछले 11 माह से मायके में है। मेरी पत्नी चाहती है कि मकान-जमीन का बँटवारा हो जाए। मेरी पत्नी बिना तलाक लिए मेरे से 5000/- रुपए गुजारा भत्ता प्राप्त करती है। वह मुझे हमेशा आत्महत्या की धमकी देती है। मेरा घर सुविधा वाला है। फिर भी वह अलग अपार्टमेंट [20 लाख ] खरीदना चाहती है। सर मैं निजी काम करता हूँ, तो मेरी क्षमता अभी अपार्टमेंट खरीदने की नहीं है। मेरी पत्नी की दो बहन भी हैं, जिन्होंने अपने-अपने पति को छोड़ रखा है। मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
प का प्रश्न बहुत अधूरा है। आप ने यह नहीं बताया कि पत्नी किस जमीन मकान का बँटवारा चाहती है? और वे किस के स्वामित्व के हैं? आप का सुविधा वाला घर आप के स्वामित्व का है या संयुक्त स्वामित्व का है?
किसी भी पत्नी को यह अधिकार नहीं कि वह संयुक्त स्वामित्व की संपत्तियों में पति के हिस्से का बँटवारा चाहे। आप का सुविधा वाला घर भी संयुक्त स्वामित्व का प्रतीत होता है। जिस की सुविधाएँ बहुत से लोग एक साथ साझा करते हैं। आप की पत्नी ये सब सुविधाएँ स्वयं के लिए चाहती है बिना किसी के साथ साझा किए। यही कारण है कि वह आप पर अलग अपार्टमेंट लेने के लिए दबाव बना रही है। उस की दो बहनें अपने पतियों को छोड़ कर स्वतंत्र रूप से रह रही हैं। उन से भी उसे प्रेरणा तो मिलती ही है।
कोई भी व्यक्ति किसी को उस की इच्छा के विरुद्ध साथ नहीं रख सकता। इस कारण इस समस्या का हल यही है कि आप और आप की पत्नी इस मसले को आपस में बैठ कर सुलझाएँ। यदि आपस में बैठ सुलझाना संभव न हो तो किसी अच्छे काउंसलर की मदद लें। यदि आप कानूनी रास्ता चुनेंगे तो वह भी दबाव को बनाए रखने के लिए अनेक कानूनी उपायों की शरण में जा सकती है जो आप की समस्या को बढ़ाएंगे ही घटाएंगे नहीं।

पत्नी से मतभेद सुलझाने के लिए कानूनी उपाय करने से पहले किसी काउंसलर की मदद लें

समस्या-
मेरा विवाह 21.01.2011 को हुआ था।  मेरी पत्नी विवाह की पहली रात से ही मेरे साथ अपमानजनक व्यवहार करती है। मैं ने सामंजस्य बिठाने का बहुत प्रयत्न किया। लेकिन बात नहीं बनी। वह अधिकतर अपने मायके में रहती है और 12.07.2012 से नियमित रूप से अपने मायके में रह रही है। मेरे माता-पिता ने कई बार उस की विदाई के लिए प्रयास किया लेकिन वह नहीं आयी। उस के माता-पिता भी केवल बेटी के हिसाब से काम कर रहे हैं और मेरा जीवन बरबाद हो रहा है। कृपया बताएँ मुझे क्या करना चाहिए।
समाधान-
प ने अपनी यही समस्या पहले अंग्रेजी में भेजी थी। तब हम ने आप को यह सलाह दी थी कि अंग्रेजी में बहुत सी वेबसाइट्स हैं जो यह काम करती हैं आप को वहाँ सलाह लेना चाहिए। यह वेबसाइट हिन्दी वालों के लिए है जिन्हें यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। हम हिन्दी पाठकों की सभी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाते हैं, क्यों कि समस्याएँ अधिक मिलती हैं और हमारे पास समय और संसाधन उतने नहीं हैं। लेकिन आप ने फिर समस्या को रोमन हिन्दी में पुनः प्रेषित कर दिया। खैर¡
प ने समस्या को खोल कर नहीं रखा। आप को आप की पत्नी किस तरह अपमानित करती है? आप ने सामंजस्य बिठाने के क्या प्रयत्न किए? आप दोनों के बीच मतभेद किन बातों को ले कर हैं? आप के माता-पिता ने विदाई कराने के क्या प्रयास किए और कैसे किए? आप की पत्नी के माता पिता किस तरह अपनी बेटी के हिसाब से काम करते हैं? आप का जीवन किस तरह बरबाद हो रहा है?  कोई भी तथ्य आप ने यहाँ नहीं रखा है। आप की पत्नी आप के साथ रहने को मना करती है तो कुछ तो कारण बताती होगी, वे भी आपने नहीं बताए हैं। हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है कि आप की इन समस्याओं के बारे में जान लें। तब आप का यह अपेक्षा करना कि हम आप की समस्या का कोई समाधान बताएंगे यह कैसे संभव है?
स तरह के मामलों में जब तक पाठक समस्या से संबंधित अधिकतम जानकारी हमें नहीं देता है तब तक हम कोई उपाय नहीं बता सकते। आप की बात से सिर्फ इतना पता लगता है कि आप और आप की पत्नी के बीच आपसी व्यवहार को ले कर मतभेद हैं जिस के कारण आप की पत्नी आप के साथ नहीं रह रही है। हो सकता है उसे आप के साथ रहने में कोई परेशानी आ रही हो। मेरा सुझाव है कि किसी तरह का कानूनी उपाय करने के स्थान पर आप को किसी अच्छे काउंसलर की मदद लेनी चाहिए जो आप से तथा आप की पत्नी से आपसी विवाद को समझ कर उस का हल सुझा सके। आप बिना सोचे समझे किसी कानूनी उपाय के चक्कर में पड़ेंगे तो हो सकता है आप बहुत सारी समस्याओं से घिर जाएँ और उन से निकलने का कोई मार्ग ही सूझे।

पत्नी को वापस कैसे लाया जाए?

समस्या-
मेरा मेरी पत्नी के साथ मामूली झगडा था, जो आपसी बातचीत से सुलझ सकता था। परन्तु  पत्नी की भाभी और भाभी के मित्र ने मिल के हमारे मामूली झगडे को एक भंयकर रुप दे दिया  उसका परिणाम ये हुआ कि मेरी पत्नी मुझ से  दूर रह रही है।  मैं ने उसे घर लाने के लिये हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा- ९ के अंतर्गत न्यायालय में मुकदमा कर दिया है। लेकिन मेरी पत्नी अभी तक न्यायालय में उपस्थित नहीं हो रही है। पत्नी की भाभी और उस के मित्र ने मिल कर मेरी पत्नी से धारा 498-अ और 406 आईपीसी के मुकदमे कर दिए हैं। मैं जब भी अपनी पत्नी से मिलने का प्रयत्न करता हूँ वे दोनों मेरे प्रयत्न को असफल कर देते हैं। उन्हों ने मुझे पर दं.प्र.सं. की धारा 107 के अंतर्गत भी मुकदमा किया है।  मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी पत्नी यह सब नहीं कर सकती। मुझे मेरी पत्नी की भाभी और उस के मित्र को उन के गुनाह का सबक सिखाना है और अपनी पत्नी को अपने घर लाना है। मैं पुलिस में भी गया था लेकिन पुलिस मेरी सुनती नहीं। बार बार मुझे ही प्रताड़ित किया जाता है। इस काम में मुझे मेरे ससुराल के पक्ष से मदद नहीं मिल सकती। क्योंकि हमारा विवाह हमारे घर वालों की मर्जी के खिलाफ हुआ था। मुझे अब क्या करना चाहिए? न्यायालय यदि धारा-9 के मामले में मेरे पक्ष में एक पक्षीय निर्णय कर दे तो क्या मैं अपनी पत्नी को घर आने के लिए मजबूर कर सकता ह
समाधान-
प के प्रश्न से पता लगता है कि आप और आप की पत्नी के बीच बड़े मतभेद नहीं हैं। फिर भी आप दोनों के बीच ऐसा कुछ हुआ है जिस से अन्य लोगों को आप के बीच आग लगाने का अवसर मिल गया है। वैवाहिक मामलों में यही स्थिति सब से गंभीर होती है। इस स्थिति में बहुत फूँक फूँक कर कदम रखने की जरूरत होती है। आप को पुलिस की मदद नहीं मिल रही है, क्यों कि पुलिस के पास पहले आप की पत्नी गई है। वैसे भी पुलिस तब तक कुछ नहीं कर सकती जब तक कि आप की पत्नी स्वयं समस्या का हल समझौते से नहीं चाहती है।
प मुम्बई में निवास करते हैं, वहाँ निश्चित रूप से आप के अपने क्षेत्र में कुछ महिला संस्थाएँ अवश्य होंगी जो कि पति-पत्नी के इस तरह के झगड़ों को सुलझाने का काम करती होंगी। आप को किसी ऐसी संस्था से संपर्क करना चाहिए जिस से उस संस्था का कोई अनुभवी कार्यकर्ता आप की पत्नी से संपर्क करे और काउंसलिंग के माध्यम से आप दोनों के बीच जो गाँठ पड़ी है उसे सुलझाने का प्रयत्न करे।  निश्चित रूप से गुस्से में आ कर आप ने कोई ऐसा कदम उठाया है जिस से आप की पत्नी की नाराजगी इस स्तर पर जा पहुँची है। समझौते की राह तभी खुलेगी जब कि आप अपनी इस गलती को अपनी पत्नी के सामने स्वीकार करें और भविष्य में इस तरह का व्यवहार न करने का वायदा करें।
धारा-9 के मुकदमे में दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना की डिक्री किसी भी तरह से हासिल करने के उपरान्त भी जीवन साथी को साथ रहने को किसी तरह बाध्य नहीं किया जा सकता। उस डिक्री के पारित होने का लाभ बस इतना ही है कि यदि जीवन साथी डिक्री के बाद भी साथ न रहना चाहे तो डिक्री धारक इसी आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री के लिए आवेदन कर सकता है। लेकिन डिक्री पारित होने के उपरान्त जीवन साथी के साथ एक दिन भी साथ रह लिया गया हो तो विवाह विच्छेद का यह आधार भी समाप्त हो जाता है।
प अपनी पत्नी को वापस अपने साथ देखना चाहते हैं तो पहले उस के लिए प्रयत्न करें। अभी पत्नी की भाभी और उस के मित्र को सबक सिखाने का इरादा एक तरफ रखें। जब तक पत्नी आप के साथ न हो आप उन्हें सबक सिखाने में कामयाब नहीं हो सकते।

काउंसलिंग वैवाहिक विवादों का अच्छा समाधान प्रस्तुत कर सकती है

समस्या-
मेरी शादी 2008 में हुई थी।  दो साल बाद मेरी जुड़वाँ बेटियाँ हुई जिनको मेरी पत्नी पालना नहीं चाहती थी और 25 दिन के बच्चों को छोड़ कर घर में क्लेश कर के और मेरे ऊपर मिथ्या आरोप लगाते हुए दोनो बच्चों को मेरे पास छोड़ कर मायके चली गयी थी।  रिश्तेदारों से काफ़ी बात-चीत करने के बाद लगभग 8 माह बाद वह वापस आ गयी।  दो- चार दिन ठीक से रहने के बाद फिर से क्लेश करना शुरू कर दिया।  क्लेश की वजह से मैं तनाव में रहने लगा।  वह हर वक़्त तलाक लेने की धमकी, या फिर आत्महत्या लेने की या फिर जेल मे बंद कराने की धमकियाँ देने लगी।  चार माह तक मेरे घर में ज़बरदस्ती रहने के बाद एक बेटी को लेकर बिना कुछ कहे वापस अपने मायके चली गई।  इन 4 महीनों में एक बार भी मेरा उस के साथ शारीरिक संबंध नहीं हुआ।  पिछले 9 माह से मैं एक बेटी को पाल रहा हूँ और एक उसके पास है।  ना तो कोई उसने क़ानूनी कार्यवाही की है और ना ही संपर्क करने की कोशिश की है।  जिन रिश्तेदारों के माध्यम से मेरी बात होती थी अब उन लोगो ने कुछ भी कहना सुनना बंद कर दिया है।  मुझे ही अपने जीवन से नफ़रत होने लगी है।  मुझे कोई रास्ता नही दिखाई दे रहा है।  कोई वकील धारा-9 के मुकदमे की सलाह देता है, लेकिन उसमें खर्चे आदि के मुक़दमे हो सकते हैं।  कोई वकील केवल काउंसलिंग के लिए कहता है।  जिसका कोई लाभ नहीं।  समझ में नही आता मैं क्या करूँ?  मेरे घर में मेरी 58 वर्ष की माँ हैं जो अध्यापन करती हैं,  एक भाई ड्रग एडिक्ट है, एक बहिन है जो बैंक में नौकरी करती है और एक मेरी 2 वर्ष की बेटी है।  एक बेटी पत्नी अपने साथ ले गई है।  मेरी केवल मोबाइल रिपेयर की दुकान है।  जिससे महीने का खर्च भी मुश्किल से चलता है।  जैसे तैसे करके गुजारा करता हूँ।  तनाव काफ़ी होने के वजह से दुकान पर भी ध्यान नहीं दे पा रहा हूँ।  लेकिन बेटी को पालने में कोई कसर नही छोड़ता हूँ।
 1-मुझे क्या अपनी पत्नी से तलाक़ मिल सकता है?
2-क्या मैं दूसरी बेटी की माँग कर सकता हूँ?
3-क्या मुझे जेल में जाना पड़ सकता है?
4-क्या मुझे खर्चा आदि भी देना पड़ सकता है?
 समाधान-
प के द्वारा दिए गए विवरण से पता लगता है कि आप की समस्या का आरंभ दो जुड़वाँ पुत्रियों के पैदा होने के साथ हुआ है।  हो सकता है आप की पत्नी संतान को जन्म देने के लिए ही तैयार नहीं रही हो और जब उसे पता लगा हो कि वह संतान को जन्म देने वाली है तो वह परेशानी में आ गई हो।  फिर किसी तरह उस ने एक संतान के लिए स्वयं को तैयार भी कर लिया हो। लेकिन जब जुड़वाँ बेटियाँ मिली हों तो वह परेशान हो गई हो और उस परेशानी से न निपट पाने के कारण अपनी ही संतानों को छोड़ कर चली गई हो। पत्नी के इस तरह चले जाने पर ही आप सब को पत्नी की समस्या के रूप में देखना चाहिेए था। लेकिन संभवत: उसे पत्नी के दोष के रूप में देखा गया।  अनेक बार ऐसा होता है कि हम किसी घटना को अपने जीवन में अभी नहीं देखना चाहते लेकिन वह अनायास आ पड़ती है तो घबरा उठते हैं।  लेकिन जीवन इस से तो नहीं चलता। जीवन तो आने वाली समस्याओं का सामना करने से चलता है।  मेरे विचार में आप को काउंसलिंग पर विचार करना चाहिए।  हो सकता है कि पहले जब आप की पत्नी आप के पास आई हो तो यह सोच कर आई हो कि जैसे भी हो वह अपनी संतानों को पालेगी।  हो सकता है आप ने और आप के रिश्तेदारों ने यह आश्वासन दिया हो कि सास और पति उसे इस काम में मदद करेगा।  लेकिन आप की माता जी अपने अध्यापन के कार्य के कारण और आप अपने व्यवसाय के कारण इस बात पर ध्यान ने दे सके हों। मुझे लगता है आप, आप की पत्नी और आप की माता जी तीनों को काउंसलिंग की आवश्यकता है।
प ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि मायके से लौट कर आने के बाद आप का पत्नी से कोई शारीरिक संपर्क नहीं हो सका है।  जो स्त्री एक बार में ही अनिच्छा से दो संतानें प्राप्त कर चुकी हो वह असुरक्षित यौन संबंध से तो निश्चित ही दूर रहेगी।  मुझे तो इस में कुछ भी गलत नहीं लगा।  इस के लिए आप को चाहिए कि आप सुरक्षित और स्थाई प्रकार के सुरक्षा उपाय कर सकते थे जिस से संतान उत्पन्न न हो।  यदि परिस्थितियाँ ऐसी ही रही हैं तो आप को काउंसलिंग पर ध्यान देना चाहिए। यदि परिस्थिति ऐसी ही रही है तो काउंसलिंग एक अच्छी चीज है आप को उस तरफ ध्यान देना चाहिए। अभी तक आप की पत्नी ने कोई कानूनी कदम नहीं उठाया है, इस स्थित में काउंसलिंग आप की समस्या का एक अच्छा समाधान प्रस्तुत कर सकती है।  मेरा मानना तो यह है कि आप को यह सोच कर कि पत्नी की परेशानियों का हल किस प्रकार निकाला जा सकता है, कोई योजना बनानी चाहिए।  फिर आप को अपनी ससुराल जा कर अपनी पत्नी से बात करनी चाहिए कि आप उस की परेशानी नहीं समझ सके थे, लेकिन अब आप की समझ में आ गया है कि उस की परेशानी क्या है। अब बच्चे तो हो ही गए हैं, उन का पालन पोषण करना तो माता-पिता का दायित्व है। दोनों किसी तरह संभालेंगे।  अपनी पत्नी को मनाइये और घर ले आइये।  निश्चित रूप से यह काम एक बार में सम्भव नहीं है। लेकिन तीन-चार बार में अवश्य हो जाएगा।  इस काम में आप किसी ऐसे व्यक्ति की भी मदद ले सकते हैं जिस पर आप की पत्नी विश्वास कर सके।  आप की पत्नी की कोई सहेली हो तो उस के माध्यम से यह काम आसानी से हो सकता है। लेकिन आप को पहले उसे समझाना पड़ेगा। एक बार वह समझ गई तो फिर आप को अपनी पत्नी को समझाना आसान हो जाएगा।
प ने पूछा है कि आप को तलाक मिल सकता है क्या?  तलाक के लिए किसी न किसी ऐसे आधार की आवश्यकता आप को होगी जो कि तलाक के लिए कानून द्वारा निर्धारित हैं।  मुझे अभी तो ऐसा कोई आधार दिखाई नहीं दे रहा है।  हाँ, जब आप की पत्नी को अंतिम बार आप का घर छोड़े एक वर्ष हो जाए तो आप एक वर्ष के लगातार दाम्पत्य त्याग के आधार पर आप तलाक की अर्जी लगा सकते हैं।  लेकिन उस में वही सब परेशानियाँ खड़ी होंगी।  आप को न केवल अपनी पत्नी के लिए अपितु अपनी पुत्री के लिए भी तुरंत उतना खर्चा देना होगा जितना अदालत निर्धारित कर देगी।  आप की क्षमता ऐसी नहीं कि आप निरंतर खर्चा दे सकें।
प अपनी बेटी की अभिरक्षा के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं।  लेकिन उस स्थिति में न्यायालय इस आधार पर निर्णय करेगा कि बेटी का हित कहाँ रहने में है। यह सब न्यायालय के समक्ष लाए गए तथ्यों और साक्ष्य पर निर्भर करेगा।
स विवाद के बीच यदि आप की पत्नी धारा 498क और 406 आईपीसी का मुकदमा दर्ज करवा दे या फिर धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता में आवेदन प्रस्तुत करे उस में यह आदेश हो जाए कि पत्नी और पुत्री के लिए हर माह निश्चित खर्च देना होगा और आप वह खर्च न दे सकें तो आप को जेल भी जाना पड़ सकता है।
प को पत्नी और पुत्री का खर्चा देना पड़ सकता है।  एक बार पत्नी के भरण-पोषण की राशि अदा करने से आप को भले ही मुक्ति मिल जाए।  लेकिन पुत्री के भरण पोषण का खर्चा तो आप को देना ही होगा।
न तमाम परिस्थितियों में केवल एक मार्ग आप के सामने शेष रहता है कि आप पत्नी की मानिसिकता और परेशानी को समझें और उसे समझाएँ उस की मदद करें तो हो सकता है आप का और आप की पत्नी का यह गृहस्थ जीवन बच सके।  इन तमाम परिस्थितियों में आप यह भी सोचें कि आप को दोनों पुत्रियाँ मिल जाएँ और पत्नी से तलाक हो जाए तब भी आप क्या पुत्रियों को उन की माँ दे सकते हैं।  अभी भी आप की एक पुत्री माँ से वंचित है तो दूसरी पिता से वंचित है।  यदि आप प्रयास कर के दोनों को माता-पिता दे सकें तो यह सब से उत्तम होगा। आप की समस्या का हल भी इसी में से निकलेगा।  तीसरा खंबा आशा करता है कि आप अपनी समस्या को हल कर पाएंगे और अपना, अपनी पत्नी और अपनी पुत्रियों के पटरी पर से उतरे हुए जीवन को फिर से पटरी पर ला सकेंगे।

आप धारा 498-ए व 406 आईपीसी के मुकदमे में अपना बचाव कर सकते हैं

समस्या-
मेरी शादी २००८ में हुई थी। दो वर्ष बाद जुलाई २०१० में मेरी दो जुड़वाँ बेटियों का जन्म हुआ। जुड़वाँ होने के कारण बच्चियां अविकसित थी।] काफी दिनों तक वेन्टीलेटर व अन्य मशीनों पर रही,  लाख कोशिशों के बाद उनको बचाया जा सका। जब लड़कियां हॉस्पिटल से घर आयी तो मेरी पत्नी ने अपनी माँ के बहकावे में आकर दोनों बेटियों को पालने से मना कर दिया। यहाँ तक की उन बच्चियों को अपना दूध भी नहीं पिलाया उनकी परवरिश करने के बजाये घर में पत्नी और सास ने घर में में खूब क्लेश किये और २५ दिन के नवजात बच्चों को छोड़ कर चुपचाप मायके चली गयी। हमने जब अपने सालो से इस बारे में बात की तो उन लोगो ने हम लोगों को धमकिय दी पत्नी भी साथ रहने को तैयार नहीं हुई। छह माह बाद मैं ने एक प्रार्थना पत्र जिला विधिक समझैता केन्द्र में दाखिल किया जिस बाद मेरे साले घर पर आये और हम लोगों को बहुत बुरा भला कहा। न्यायालय में भी मेरी पत्नी ने साथ रहने से मना कर दिया और प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया गया।  लगभग १५ दिन बाद अचानक पत्नी वापस घर आ गयी और रहने लगी मैं ने समझा अब ठीक से रहेगी लेकिन दो चार दिन बाद ही फिर से कलह करने लगी। लगभग ६ महीने घर पर रही इसके बाद एक बेटी को लेकर मेरी अनुपस्थिति में चुपचाप फिर मायके चली गयी। काफी प्रयास के बाद भी जब बात नहीं बनी तो हमने आपकी और अन्य वकील की सलाह पर १ अप्रैल २०१३ में तलाक का मुकदमा कर दिया है जिस में क्रूरता, किसी अन्य से सम्बन्ध , तीन वर्षों से कोई शारीरिक सम्बन्ध न होना और साथ साथ ना रहने  के आधार लिए गए हैं और जिसकी पहली तारीख पर पत्नी नहीं आयी थी। वर्तमान में एक बच्ची मेरे पास है और एक इंग्लिश मध्यम स्कूल में पिछले पांच माह से शिक्षा प्राप्त रही है। मैंने अपनी माँ के साथ दोनों बेटियों की बेहतर ढंग से परवरिश की। मेरी माँ प्राइवेट स्कूल में टीचर है और मेरी मोबाइल रिपेयरिंग की शॉप है जो कि बेटियों की परवरिश करने के कारण समय से नहीं खुलती थी और उस से मेरा व्यवसाय ठप्प हो गया, अब पूरी तरह से माँ पर ही निर्भर हूँ। मैं अपनी दोनों बेटियों से बहुत प्यार करता हूँ। कृपया मुझे ये बताएँ कि –
  1. दूसरी बच्ची जो मेरे पास है क्या पत्नी उसे पा सकती है?
  2. क्या मुझे दूसरी बच्ची की अभिरक्षा भी मिल सकती है?
  3. क्या हम लोगों का तलाक हो पायेगा?
  4. क्या मुझे मासिक खर्च पत्नी को देना पड़ सकता है?
  5. यदि हम पर दहेज़ आदि के मुक़दमे होते है तो क्या बचाव हो पायेगा?
समाधान-
प ने जो तथ्य यहाँ रखे हैं। उन तथ्यों के बारे में अपनी और माँ की गवाही के अतिरिक्त कम से कम दो विश्वसीय साक्षियों के बयान आप को अपने विवाह विच्छेद के प्रकरण में कराने चाहिए। आप के पास दस्तावेजी सबूत भी पर्याप्त मात्रा में प्रतीत होते हैं। आप को दुकान का व्यवसाय ठप्प होने संबंधित कुछ न कुछ दस्तावेजी सबूत भी प्रस्तुत करने होंगे। आप के तथ्यों को आप को ठीक से प्रमाणित करना होगा। इस के अतिरिक्त आप को पत्नी के बारे में तथा जो बालिका पत्नी के साथ है उस की परवरिश के बारे में तथ्य रखने होंगे। यदि उस की परवरिश आप के पास जो बालिका है उस से बेहतर नहीं हो रही है और उसे भविष्य में उस का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, यह आप प्रमाणित कर सके तो आप को अपनी दूसरी बालिका की अभिरक्षा भी प्राप्त हो सकती है। तथ्यों से बिलकुल नहीं लगता कि जो बालिका आप के पास है उस की अभिरक्षा आप की पत्नी प्राप्त कर सकती है। आप को विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो सकती है।
प की दूसरी बालिका जो आप की पत्नी के साथ निवास कर रही है उस की अभिरक्षा आप को प्राप्त नहीं होती है तो आप को पत्नी और बेटी के लिए भरण पोषण का खर्चा देना पड़ सकता है। लेकिन यदि आप प्रमाणित कर सके कि आप की कोई आय नहीं है और पत्नी कमाती है तो उस से बच भी सकते हैं। यह भी हो सकता है कि पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री के समय आप भरण पोषण के मामले में न्यायालय को कहें कि यदि भरण पोषण ही दिलाना है तो एक मुश्त दिला दिया जाए जिसे कैसे भी आप दे देंगे और बाद में उस के दायित्व से मुक्त हो सकते हैं। वैसे इस बात की संभावना कम है कि आप के विरुद्ध धारा 498-ए व 406 भा.दं.संहिता के मुकदमे आप पर होंगे। लेकिन यदि हुए तो आप ठीक से अपना बचाव कर सकते हैं।

क्रूरता के आधार पर आप की बहिन अपने पति के विरुद्ध कार्यवाही कर सकती है।

समस्या
मेरी बहन काविवाह को लखनऊ के एक संयुक्त परिवार में 14 साल पहले हुआ। उसेअपनी ससुराल मे मानसिक प्रताड़ना दी जाती रही है, जिसे मेरी बहन पिछ्ले 14 सालोंसे झेलती आ रही है। उस के साथ घर के पुरुष और महिलाओं द्वारा अभद्रव्यवहार,भाषा का प्रयोग किया जाता रहा है। एक पुत्र 12 साल का है जो शारीरिक रूप से कमज़ोर है। अपनी माँ पर हो रहे इस दुर्व्यवहार से सहमा रहता है और उसकाविकास रुक गया है। पतिसुनते नहीं हैं और अपने भाई का साथ देते हैं। पति के भाईपेशे से वकील हैं और सारा परिवार इसी बात का दम्भ भरता है। मेरी बहन संगीतविशेषरज्ञहै और उसे घर से बाहर आने जाने भी नहीं दिया जाता है। उस का जीवन औरकेरियर बर्बाद हो रहाहै। क्या बहन न्यायिक पृथक्करण/ विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकती है औरअपने नाबालिग पुत्र को अपने साथ रख सकती है?
समाधान-
प की समस्या में यह स्पष्ट नहीं है कि आप की बहन और उस के पुत्र के साथ किस तरह का शारीरिक मानसिक दुर्व्यवहार किया जा रहा है। लेकिन जो किया जा रहा है वह क्रूरता है। इस क्रूरता के आधार पर आप की बहन न्यायिक पृथक्करण की डिक्री प्राप्त कर सकती है। यदि वह चाहे तो विवाह विच्छेद की डिक्री भी प्राप्त कर सकती है। वह नाबालिग पुत्र को अपने साथ भी रख सकती है। इस के साथ साथ स्वयं अपने लिए व अपने पुत्र के लिए भरण पोषण का खर्च भी प्राप्त कर सकती है।
स के लिए उसे स्वयं अपने पुत्र सहित परिवार से अलग रहना होगा या लखनऊ छोड़ कर मथुरा आ कर रहना होगा। एक बार दोनों अलग रहने लगें तो फिर न्यायिक पृथक्करण/ विवाह विच्छेद, घरेलू हिंसा व भरण पोषण के लिए कार्यवाही कर सकती हैं। यदि वह मथुरा आ कर रहने लगे तो ये सभी कार्यवाहियाँ मथुरा में संस्थित की जा सकती हैं।

विवाह में कुछ नहीं बचा है, स्थाई पुनर्भरण और विवाह विच्छेद के लिए आवेदन करना चाहिए।

समस्या-
मेरी बहिन की उम्र् 28 वर्ष है उस की शादी 2004 में हुई थी। एक वर्ष तक उन का आना जाना अपने ससुराल में रहा। उस के बाद कुछ अनबन हो जाने की वजह से उन लोगों ने मेरी बहिन को हमारे यहाँ छोड़ दिया। तब से ले कर अब तक उन लोगों ने अभी तक खबर नहीं ली है। मेरी बहन अब वहाँ जाना नहीं चाहती। वह उस समय के हादसे को ले कर डरी हुई है। मैं धारा 125 व धारा 498ए लगाना चाहता हूँ। कृपया मुझे सुझाव दें।
समाधान-
प की बहिन लगभग नौ वर्षों से मायके में है और उस के ससुराल वालों ने अब तक उस की खबर नहीं ली है। आप की बहन भी पुराने हादसे से बैठे हुए भय के कारण वहाँ जाना नहीं चाहती है। इस मामले में आप कुछ करना चाहते हैं लेकिन आप के करने से तो कुछ भी नहीं होगा। यदि आप की बहिन करना चाहेँ तो बहुत कुछ हो सकता है। आप केवल उन की मदद कर सकते हैं।
प की बहिन को अपने ससुराल से आए 9 वर्ष से अधिक समय हो चुका है। इस बीच कोई घटना नहीं हुई है। इस कारण से 498ए आईपीसी का कोई आधार स्पष्टतः नहीं है। आप की बहिन के साथ जो भी घटना हुई थी उसे हुए भी 9 वर्ष का अर्सा हो चुका है। 498ए में प्रसंज्ञान लेने की अवधि मात्र 3 वर्ष है। वैसी स्थिति में इस मामले में को सफलता मिलना पूरी तरह संदिग्ध है और आप की बहिन को 498ए आईपीसी में नहीं उलझना चाहिए। यदि आप की बहिन का कुछ स्त्री-धन उस के ससुराल में छूट गया है और उसे उस की ससुराल वाले लौटा नहीं रहे हैं तो आप की बहिन धारा 406 आईपीसी में अमानत में खयानत के अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा सकते हैं या फिर मजिस्ट्रेट के न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर पुलिस को जाँच के लिए भिजवाया जा सकता है। इस प्रथम सूचना रिपोर्ट या परिवाद में 9 वर्ष पूर्व हुई घटना और क्रूरता का उल्लेख भी किया जाना चाहिए। यदि पुलिस समझती है कि धारा 498ए आईपीसी भी बनता है तो वह 406 के साथ साथ इस धारा के अन्तर्गत भी मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।
प की बहिन धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत अपने भरण पोषण का व्यय प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकती है। इस धारा के अन्तर्गत अन्तरिम रूप से भी बहिन को भरण पोषण राशि देने कि लिए न्यायालय आदेश दे सकता है। यदि आप की बहिन को भरण पोषण की राशि मिलने लगती है तो उन्हें कुछ राहत मिलना आरंभ हो जाएगा।.
प की बहिन का विवाह हुए दस वर्ष हो चुके हैं उस में से 9 वर्ष से वह अपने मायके में है। ऐसी स्थिति में उस के विवाह में कुछ शेष नहीं बचा है। बेहतर है कि आप की बहिन उस के साथ 9 वर्ष पूर्व हुई क्रूरता और उस के बाद उस के परित्याग को आधार बना कर इस विवाह को वैधानिक रूप से समाप्त करने के लिए विवाह विच्छेद की याचिका धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत करे और एक मुश्त स्थाई पुनर्भरण प्राप्त करने के लिए भी इसी आवेदन में प्रार्थना की जाए। यदि आप की बहिन के ससुराल वाले पर्याप्त राशि भरण पोषण के रूप में देने को तैयार हों तो सहमति से विवाह विच्छेद का आवेदन भी प्रस्तुत किया जा सकता है। एक बार आप की बहिन इस विवाह से मुक्त हो जाए तो स्वतंत्र रूप से अपना जीवन नए सिरे से जीना तय कर सकती है।

विवाह विच्छेद हेतु क्रूरता और परित्याग के आधार

समस्या-
मैं पाँच वर्ष से विवाहित हूँ।  मेरी पत्नी विगत 10 वर्षों से द्विध्रुवीय विकार तथा तीव्र अवसाद (Bipolar disorder and acute depression) की समस्या से पीड़ित है।  मुझे अपनी पत्नी कि उक्त समस्या की जानकारी विवाह के दो वर्ष के बाद हुई।  मैं ने पतनी और उस के मायके वालों से इस संबंध में बातद की लेकिन वे इस समस्या को हल करने में मदद को तैयार नहीं हैं।  पत्नी ने मुझे धमकाया है कि वह मेरे ही सामने कूद कर आत्महत्या कर लेगी। अब वह पिछले दो वर्षों से अपने पिता के घर पर है।  मुझे वैधानिक विवाह विच्छेद के लिए क्या करना चाहिए?  मैं जानता हूँ कि उस की स्वास्थ्य संबंधी समस्या के कारण मुझे विवाह विच्छेद प्राप्त नहीं हो सकता।
समाधान-
प का यह कहना सही है कि आप की पत्नी को जो स्वास्थ्य संबंधी समस्या है उसे आधार बना कर आप का विवाह विच्छेद नहीं हो सकता। यदि आप उन सारी परिस्थितियों और तथ्यों को कुछ विस्तार से प्रकट करते जिन के चलते आप की पत्नी उस के मायके में दो वर्ष है तो हमें आप को समाधान बताने में कुछ आसानी होती।
दि दो वर्ष से आप की पत्नी मायके में है तो संभवतः इस कारण से कि वह यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि उसे कोई स्वास्थ्य समस्या है और यदि है तो वह विवाह के पहले से है। संभवतः वे यह समझते हैं कि यह स्वीकार कर लेने से वे दोषी सिद्ध हो जाएंगे। आप को उन्हें यह समझाने का प्रयत्न करना चाहिए था कि यदि वे ये दोनों बातें स्वीकार कर भी लेते हैं तो भी विवाह पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा। हो सकता है कि वे इस समस्या के चिकित्सकीय हल के तैयार हो जाते। खैर, वह समय निकल चुका है।
प ने पूरी सद्भावना के साथ अपनी पत्नी और उस के मायके वालों के समक्ष अपनी पत्नी के स्वास्थ्य के बारे में बात की उस समस्या के चिकित्सकीय हल की बात की है। यदि वे इस सद्भावना पूर्ण कृत्य को अन्यथा लेते हैं और आप को धमकाते हैं और आप की पत्नी अपने मायके जा कर बैठ जाती है तो निस्सन्देह यह आप के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार है। इस के साथ ही आप की ओर से कोई कारण न होने पर भी आप की पत्नी ने अपने मायके जा कर बैठ कर आप को दांपत्य जीवन से वंचित किया है। इस तरह उस ने विगत दो वर्षों से आप का परित्याग किया हुआ है।
प अपनी पत्नी के विरुद्ध क्रूरता और परित्याग के आधारों पर विवाह विच्छेद हेतु आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। यदि इस बीच कोई समझौते की गुंजाइश निकलेगी भी तो न्यायालय के समक्ष निकल जाएगी। न्यायालय का स्वयं यह दायित्व है कि तलाक के प्रत्येक मामले में वह दोनों पक्षों के मध्य एक बार दाम्पत्य को बचाने हेतु समझाइश करे और दोनों के मध्य समझौता कराने का प्रयत्न करे।

पत्नी 6 वर्ष से नहीं आ रही है तो परित्याग के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री हेतु आवेदन प्रस्तुत करें

समस्या-
मेरी शादी 21/05/06 को सीकर हुई थी।  शादी के बाद मेरी पत्नी केवल एक दिन के लिए ही मेरे घर आई।  शादी के साढ़े छः वर्ष बीतने के पश्चात भी मेरे ससुराल वाले मेरी पत्नी को मेरे साथ नहीं भेज रहे हैं।   मैंने सारी पंचायतें, रिश्तेदार बुलवाकर मसला हल करने की हर संभव कोशिश की पर कोई नतीजा नहीं निकला।   कृपया करके इसका उचित हल बताएं कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत मैं क्या कदम उठा सकता हूँ?  फिर तलाक के विकल्प के बारे में भी उचित सलाह दें?
समाधान-
विवाह के छह वर्ष से आप की पत्नी आप से पृथक है इस तरह उस ने आप का परित्याग किया हुआ है।  आप के पास तलाक के लिए परित्याग का मजबूत आधार है।  आप पत्नी को लाने के लिए समस्त प्रयत्न पंचायत और रिश्तेदारों के माध्यम से कर चुके हैं।  परित्याग को साबित करने के लिए पंचायत के सदस्य और रिश्तेदार मौजूद हैं जिन की गवाही और पंचायत ने कोई लिखित निर्णय किए हों तो वे सब आप को उपलब्ध हैं।  ऐसी स्थिति में आप को तुरंत इसी आधार पर हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत विवाह विच्छेद हेतु आवेदन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। विवाह से संबंधित विवादों में देरी का परिणाम ठीक नहीं होता इस से एक साथ दो जीवन नष्ट होते हैं।
प के प्रश्न से ऐसा प्रतीत होता है कि आप अभी भी यह आस लगाए हैं कि शायद न्यायालय के दखल से आप की पत्नी आप के पास आ कर रहने लग सकती है। लेकिन इस की संभावना कम प्रतीत होती है।  फिर भी हर वैवाहिक मामले में न्यायालय का कर्तव्य है कि वह पति पत्नी के बीच समझौते का प्रयत्न करे।  आप के द्वारा विवाह विच्छेद हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने पर भी न्यायालय द्वारा यह प्रयत्न किया जाएगा। यदि आप को लगे कि पत्नी वापस आ कर आप के साथ रहने को तैयार है तो वहाँ समझौता किया जा सकता है।  यदि नहीं तो साक्ष्य से परित्याग साबित कर के विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त की जा सकती है।

मानसिक क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद

राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर पीठ ने दाम्पत्य जीवन में क्रूरता के मुद्दे पर तलाक के सवाल पर जिला न्यायालय के निर्णय को अपास्त करते हुए कहा है कि तलाक के लिए सिर्फ शारीरिक ही नहीं, मानसिक क्रूरता भी पर्याप्त है।
न्यायाधीश आरएस चौहान ने मयूर विहार, दिल्ली निवासी गोपाल शर्मा की विविध अपील का निस्तारण करते हुए यह निर्णय किया।  गोपाल शर्मा ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 28 के तहत पत्नी अनुसूइया के क्रूर व्यवहार से तंग आ कर विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करने की प्रार्थना की थी।
बीकानेर के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश प्रथम ने शर्मा के आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि आवेदनकर्ता अपनी पत्नी के क्रूर व्यवहार को साबित करने में असफल रहा है।  इसके बाद शर्मा ने उच्च न्यायालय में अपील दायर करते हुए कहा कि प्रार्थी की पत्नी के व्यवहार की उसकी पुत्रियों व अन्य गवाहों ने पुष्टि की है।
प्रार्थी गोपाल शर्मा की पत्नी ने अपने व्यवहार से पति व उसके माता पिता सहित अपने बच्चों को भी परेशान कर रखा था।  पति को बेवजह तंग करना व घर में कलह का वातावरण बनाए रखने से प्रार्थी के समक्ष पत्नी को तलाक देने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं रह गया था।

हिन्दु विवाह विच्छेद न्यायालय के बाहर संभव नहीं

समस्या-
मेरी शादी को तीन माह हुए हैं।  मैं एक मध्यवर्गीय परिवार से हूँ लेकिन मेरी पत्नी एक धनी परिवार से आई है। हम  दोनों में आप सी समझ नहीं बन पा रही है। हम लोग अपना विवाह विच्छेद करना चाहते हैं। लेकिन हम यह भी चाहते हैं कि हमारा तलाक बिना अदालत जाए हो जाए। क्यों कि अदालत में तलाक में कई साल लग जाएंगे।  मेरी पत्नी भी तलाक चाहती है क्यों कि विवाह के पहले वह किसी से प्यार करती है और उसी से विवाह करना चाहती है। उस के अनुसार यह शादी उस की मर्जी के खिलाफ हुई है।  क्या कोई तरीका है कि हमारा तलाक बिना अदालत हो जाए और वह वैध भी हो?
समाधान-
भारत में निवास करने वाले सभी मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों, यहूदियों,  वे जो कि यह सिद्ध कर सकें कि वे  हिन्दू विधि से शासित नहीं होते तथा अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को छोड़ कर सभी पर हिन्दू विवाह अधिनियम प्रभावी है। आप के विवरण के अनुसार आप पर भी हिन्दू विवाह अधिनियम प्रभावी है। इस अधिनियम में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिस से न्यायालय के बाहर किसी तरह विवाह विच्छेद किया जा सके। इस तरह आप का और आप की पत्नी के बीच विवाह विच्छेद केवल न्यायालय की डिक्री से ही संभव है।
प के विवाह को केवल तीन माह हुए हैं। शायद ही दुनिया में कोई पति पत्नी ऐसे मिलें जिन के बीच इतने कम समय में आपसी समझदारी विकसित हुई हो। आम तौर पर समझदारी बनने में कुछ वर्ष लग जाते हैं। इस कारण दोनों ही पक्षों को लगातार आपसी समझदारी विकसित करने का प्रयत्न करना चाहिए। स्त्री पुरुष के बीच विवाह कोई गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं है जिसे जब चाहो तब कर लिया जाए और जब चाहो तब तोड़ दिया जाए। अभी जितना समय आप लोगों ने एक साथ गुजारा है वह तो एक दूसरे को पहचानने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। आप की पत्नी सोचती हैं कि जिस व्यक्ति से वह विवाह करना चाहती थीं वह तलाक के बाद उन से विवाह कर लेगा। हो सकता है अब वह विवाह से इनकार कर दे। फिर उन के पास क्या मार्ग शेष रहेगा? मेरे विचार में आप दोनों को अपने रिश्ते को समझना चाहिए और उसे मजबूत बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
दि आप तलाक लेना चाहेँ तो वर्तमान में एक तरफा तलाक का कोई आधार आप लोगों के पास नहीं है। यदि दोनों सहमत हों भी तो भी विवाह होने के एक वर्ष की अवधि तक तलाक की अर्जी न्यायालय स्वीकार नहीं करेगा। यदि एक वर्ष प्रतीक्षा करने के बाद आप लोग अर्जी लगाएँ तो भी कम से कम आठ माह और लग जाएंगे तलाक होने में। इस तरह आप के पास लगभग डेढ़ वर्ष का समय अभी साथ रहने के लिए है। यदि इस बीच आप दोनों कोशिश करें और ऐसी स्थिति लाएँ कि तलाक की आवश्यकता नहीं रहे। तो आप लोग इस निर्णय को टाल सकते हैं और अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि तलाक के बाद आप दोनों अपने जीवन को सुखी बना सकेंगे। हो सकता है बाद भी ऐसी ही परेशानियाँ आप दोनो को देखनी पड़े। इस से तो अच्छा है कि वर्तमान परेशानी को हल किया जाए।

कोई न्यायालय या कानून अपराध करने की अनुमति नहीं दे सकता।

समस्या-
मेरा विवाह मई 2007 में हुआ था। पत्नी के साथ विवाद हुआ। स्थिति यह है कि मैं अपनी पत्नी के साथ किसी स्थिति में नहीं रह सकता। वर्तमान में मैं धारा 125 दं.प्र.सं. के आदेश के अनुसार पत्नी को गुजारा भत्ता दे रहा हूँ। हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत प्रकरण 2010 से लंबित है। मेरी माता जी की उम्र 65 वर्ष है वे हृदयरोग की रोगी हैं। पिता जी का देहान्त हो चुका है। माताजी घर का सारा कार्य करती हैं। उन की स्थिति दयनीय है वह दिन-रात मेरे भविष्य को ले कर चिंतित रहती हैं। नाम नौकरी पेशा हूँ। मेरी माताजी की देखभाल करने वाला घर में कोई नहीं है। क्या मेरा मामला न्यायालय में लंबित रहते हुए मुझे दूसरे विवाह की अनुमति प्राप्त हो सकती है। जिस से मेरी दूसरी पत्नी मेरी मातजी की देखभाल कर सके और धारा 494 दंड प्रक्रिया संहिता का अपराध करने से बच सकूँ।
समाधान-
हिन्दू विवाह अधिनियम में पहली पत्नी से विवाह संबंध विच्छेद हुए बिना दूसरा विवाह अवैध है। यदि आप पहले विवाह का विच्छेद हुए बिना दूसरा विवाह करते हैं तो निश्चित रूप से यह धारा 494 भा.दं.संहिता का अपराध होगा और आप की पत्नी उस के लिए आप के विरुद्ध पुलिस थाना को या न्यायालय को शिकायत कर सकती है और आप को सजा हो सकती है। कोई भी कानून या न्यायालय किसी व्यक्ति को अपराध करने की अनुमति नहीं दे सकता।
सारा दोष इस बात का है कि हमारे न्यायालय वैवाहिक मामलों में शीघ्र निर्णय नहीं करते। होना तो यह चाहिए कि किसी भी वैवाहिक मामले में एक वर्ष की अवधि में निर्णय हो जाए और एक वर्ष में अपील। लेकिन जितनी संख्या में वैवाहिक विवाद सामने आते हैं उतनी संख्या में न्यायालय नहीं है। न्यायालयों की स्थापना का कर्तव्य राज्य सरकारों का है। लेकिन राज्य सरकारें इस ओर ध्यान नहीं देतीं। इस तरह आप जैसे लोगों और उन के आश्रितों का जीवन यदि दुष्कर हो रहा है तो उस की जिम्मेदार राज्य सरकारें हैं।
क हमारी सोच का भी दोष है। हम सोचते हैं कि पत्नी घर को संभालने के लिए होती है। लेकिन आज कल लड़कियाँ भी ऐसा ही सोचती हों यह सही नहीं है। बहुत सी महिलाएँ इसे घरेलू सेविकाओं का काम समझती हैं। अनेक महिलाएँ विवाह के बाद अपना घर परिवार संभालती हैं बहुत नहीं संभालती हैं। आप दूसरा विवाह करें और फिर वही किस्सा हो जो पहली बार हुआ है तो फिर आप क्या करेंगे?
मेरी राय में आप का विवाह विच्छेद हुए बिना आप का दूसरा विवाह करना और उस के बारे में सोचना सही नहीं है। आप यह कर सकते हैं कि अपनी परिस्थितियों का वर्णन करते हुए जिस न्यायालय में आप का मामला लंबित है उसे एक आवेदन दें कि परिस्थितियों को देखते हुए न्यायालय आप के मामले का निपटारा शीघ्र करने के लिए आप के मुकदमे की सुनवाई दिन प्रतिदिन के आधार पर करे। यदि न्यायालय आप के निवेदन को स्वीकार कर लेता है तो आप को शीघ्र विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो जाएगी। यदि न्यायालय आप के आवेदन को अस्वीकार करता है तो आप उस के आदेश के विरुद्ध एक रिट याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर निवेदन कर सकते हैं कि वह न्यायालय को निर्देश दे कि वह आप के मामले की सुनवाई दिन प्रतिदिन के आधार पर करे। तब तक आप अपनी माता जी की सहायता कि लिए किसी विश्वसनीय घरेलू सेविका की व्यवस्था कर सकते हैं।

सामान्य परिस्थिति में संतान की अभिरक्षा वयस्क होने तक माता को ही प्राप्त होती है।

समस्या-

मेरे पति डिलिवरी के पहले से ही मुझे धमकी देते थे कि मेरा बच्चा मुझे दे दो और तुमको जहाँ जाना हो चली जाओ। इसके अलावा वो शराब पीकर मेरे बच्चे के पास आते हैं जिससे उस पर बुरा असर पड़ता है। वो अभी छोटा है और उल्टियाँ करने लगता है।  हमारी विचारधारा में बहुत अंतर है और हमारे बहुत झगडे होते हैं। मेरे पति अक्सर मुझे कहते हैं की अगर मुझे अलग होना है तो वो आसानी से मुझको तलाक दे देंगे। शादी के वक्त उन्होंने अपनी असली उम्र छुपा ली थी। बाद में मुझे पता चला कि वो मुझसे 15 साल बड़े हैं। जनरेशन गैप के कारण वो चाहते हे की मैं उनके पैर के निचे रहूँ।  कहते हैं कि हम तुम्हे मारेंगे भी पीटेंगे भी, अगर रहना है तो रहो वर्ना मत रहो। मेरे परिवार में मेरी माँ अकेली है और कोई नहीं है जो मेरा साथ दे सके। मेरे पति को अगर मैं सहमति से तलाक का आवेदन लगाती हूँ और उन्होंने सहमति से तलाक नहीं लिया मुकर गए तो में अगला स्टेप क्या उठा सकती हूँ? मेरा बच्चा 5 महीने का है और मैं सेंट्रल की जॉब में हूँ और मेरे पति प्राइवेट जॉब में। मैं चाहती हूँ कि न केवल मेरा बच्चा 7 साल के लिए बल्कि हमेशा के लिए मेरे पास रहे। मुझे क्या करना चाहिए? क्या मुझे पति से अलग हो जाना चाहिए या उनकी गाली गलौच बर्दाश्त करके रहना चाहिए क्यों कि मेरा बच्चा बहुत छोटा है।
समाधान-
पका विवाह बेमेल विवाह है। आप के पति ने अपनी उम्र छुपा कर आप से विवाह तो कर लिया लेकिन उन्हें अब अहसास है कि उन्हों ने गलती की है। वे खुद उस विवाह को संभाल नहीं पा रहे हैं। वे आप से अलग होना चाहते हैं। लेकिन वे चाहते हैं या तो तलाक सहमति से हो या फिर आप खुद उस के लिए पहल करें।
प का बच्चा छोटा है केवल इस आधार पर आप का इस बेमेल विवाह में रहना उचित नहीं है। यह न केवल आप के लिए अपितु आप की संतान के लिए भी ठीक नहीं है।जरा आप सोचिए बच्चे को पालने में सर्वाधिक बल्कि लगभग पूरा योगदान आप का है। आप के पति का योगदान नहीं के बराबर रहा होगा। यदि आप खुद इस संबंध से खुश और सुखी नहीं है तो आप की संतान जिसे पालने की सर्वाधिक जिम्मेदारी आप उठा रही हैं, उस का पालन पोषण भी आप ठीक से नहीं कर सकतीं और नही उसे पालन पोषण के लिए अच्छा वातावरण दे सकती हैं।
प जिन परिस्थितियों में हैं उन में हमारी राय में आप को तुरन्त पति का घर छोड़ कर अलग अथवा अपनी माता जी के साथ रहना आरंभ कर देना चाहिए। उस के बाद आप अपने पति से बात करें कि क्या वह सहमति से विवाह विच्छेद के लिए तैयार है या नहीं। तब आप अपनी शर्त स्पष्ट कर दें कि बच्चा वयस्क होने (18 वर्ष की उम्र) तक आप के साथ रहेगा। वयस्क होने के बाद न्यायालय यह तय नहीं करेगा कि बच्चा किस के पास रहेगा। तब बच्चा खुद निर्णय करेगा कि वह किस के साथ रहे। बच्चे के भरण पोषण के लिए पिता का क्या योगदान होगा यह भी आप सहमति  से विवाह विच्छेद के समय तय कर सकते हैं।
दि आप के पति सहमति से विवाह विच्छेद के लिए तैयार न हों या ऐसी संभावना हो कि वे प्रक्रिया पूरी होने के पहले ही अपनी सहमति वापस ले सकते हैं तो आप सहमति से विवाह विच्छेद के स्थान पर हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-13 के अन्तर्गत अपनी ओर से विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं। इस के लिए पति का जो व्यवहार है वह क्रूरतापूर्ण व्यवहार की श्रेणी का है और उस आधार पर आप को आसानी से विवाह विच्छेद मिल जाएगा।
हाँ तक बच्चे की अभिरक्षा का प्रश्न है तो वह निर्णय न्यायालय बच्चे के हित को देखते हुए करता है। सामान्य परिस्थितियों में बच्चे का हित उस की माँ के साथ ही होता है इस कारण से अधिकांश निर्णय यही होता है कि बच्चा माँ के साथ रहेगा। आप की परिस्थितियों में भी इस बात की संभावना अत्यधिक है कि बच्चे की अभिरक्षा उस के वयस्क होने तक आप के पास ही रहे।  इस मामले में आप को चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है।

पत्नी सही प्रतीत होती है, अपना मामला उस के साथ मिल बैठ कर या काउंसलर के माध्यम से निपटाएँ।

समस्या-
मेरी शादी 1998 में हुई थी। हमारे दो संताने हैं। जून 2007 से पत्नी बच्चों के साथ घर छोड़ कर सुनाम चली गई जहाँ वह सरकारी नौकरी करती है। उस का वेतन 40,000/- रुपए प्रतिमाह है।  2007 के बाद हम कभी भी नहीं मिले न ही वे लोग मुझे बच्चों से मिलने देते हैं। मैं ने 2009 से सुनाम कोर्ट में बच्चों की कस्टडी के लिए मुकदमा कर रखा है पर न्यायालय में मेरी कोई बात नहीं बनी। न ही मुझे बच्चों से मिलवाया गया है। न्यायालय ने मेरे से 3000/- रुपए प्रतिमाह का खर्च पत्नी को देने को बोला है। मैं अब पत्नी से तलाक लेना चाहता हूँ। पत्नी और उस के माता-पिता और वह और रुपए की मांग कर रहे हैं मुझे पत्नी से तलाक और बच्चे कैसे मिल सकते हैं?
समाधान-
प ने अपनी पत्नी के बारे में मामूली सूचनाएँ यहाँ दी हैं। अपने और अपने बच्चों के बारे में कोई सूचना नहीं दी है। बिना किन्हीं तथ्यों के तलाक और बच्चों की कस्टडी के बारे में क्या कोई किसी को राय दे सकता है?
प ने अपने बारे में कुछ नहीं बताया। आप क्या करते हैं? क्या कमाते हैं? परिवार में कौन कौन साथ रहता है। आप की पत्नी की शिकायत क्या है? वह आप को छोड़ कर जाने की बात क्यों करती है? बच्चों से न मिलने देने के कारण क्या बताती है? और आप बच्चों को माँ के पास रखने के स्थान पर अपने पास क्यों रखना चाहते हैं?
प की पत्नी 40,000/- रुपए प्रतिमाह वेतन पाती है, सरकारी सेवा में है जिस में सामाजिक सुरक्षा अधिकतम है। वह क्यों अपना रोजगार छोड़ेगी? अदालत को भी बच्चों का भविष्य उसी के पास नजर आएगा। इस कारण से आप को बच्चों की कस्टडी मिलने का मार्ग तो न्यायालय से नहीं ही खुलेगा। आप तलाक लेना चाहते हैं और आप की पत्नी व उस के माता-पिता इस के लिए धन चाहते हैं तो गलत क्या है? आखिर आप की संतानें आप की और आप की पत्नी की हैं और यदि बालिग होने तक उन की परवरिश के खर्चे में आप के योगदान के रूप में वे कुछ धनराशि चाहते हैं तो यह तो आप को देना होगा। वर्तमान में जो 3000 रुपया प्रतिमाह खर्च अदालत ने निर्धारित किया है वह भी बच्चों के लिए है। उसे देने में आप को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यदि इसी राशि को किसी राशि का ब्याज मानें तो भी वह राशि भी चार लाख रुपया होती है। बच्चों की उम्र् बढ़ने के साथ उन का खर्च भी बढ़ेगा।
प तलाक ही चाहते हैं तो अपनी पत्नी और उस के माता-पिता से बात करें। जरूरत हो तो किसी काउंसलर की मदद लें या अदालत को ही बीच में डालें और समझौते व सहमति से विवाह विच्छेद प्राप्त कर लें।

सहमति से विवाह विच्छेद का मार्ग बनाएँ।

समस्या-
मैं मूलतः बरेली जिले का रहने वाला हूँ व अपने ही कार्यक्षेत्र (प्राइवेट) से सम्बंधित एक सजातीय वर्ग की लड़की से मेरी मुलाकात 2006 में हुई। मैं उसे प्रेम करने लगा क्यों कि कुछ समय बाद उसने अपने अतीत के बारे में मुझे लगभग काफी कुछ बता दिया जो कि आम लड़कियां कम ही बताती हैं।  उसके एक वर्ष के उपरांत दोनों ही पक्षों की पारिवारिक सहमति से मेरा विवाह 21 अप्रैल 2007 को लखनऊ में संपन्न हुआ। मेरी पत्नी अपने माँ-बाप कि इकलौती संतान है तथा शादी के कुछ महीनों के बाद हम दोनों अपने कार्य क्षेत्र दिल्ली में आकर रहने लगे। शादी के एक वर्ष बाद हम दोनों को पारिवारिक व आर्थिक स्थितियों के कारण दिल्ली से बरेली आना पड़ा। यहाँ पर मेरी पत्नी की मेरी माँ से कहा-सुनी हो जाने के कारण वो 2008 में लखनऊ जाने लगी। वह एक बार दिल्ली में भी ऐसा कर चुकी थी और मैं उसके गुस्से व स्वछंद विचारों को जान चुका था और ये भी जानता था को वो दिल की बुरी नहीं है ऊपर से वो गर्भवती भी थी। इस कारण मुझे भी उसके साथ जाना पड़ा। उस समय मेरे घर पर मेरे दो छोटे भाई मेरी माँ के साथ रहते थे व मेरी माँ एक सरकारी टीचर थी। मेरे पिता का देहांत काफी पहले हो चुका था। 
          लखनऊ जाने के बाद मेरे दो पुत्र हुए जिन की उम्र आज क्रमशः 5.5 व 4 वर्ष है। मेरी सास का देहांत 2009 में हार्टअटैक से हो चुका है व ससुर जी अक्टूबर 2014 में अपनी सरकारी नौकरी  से रिटायर होने वाले हैं और एक किराये के मकान में रहते हैं। मेरी समस्या जनवरी 2012 से शुरू हुई जब मेरे एक मित्र की शादी थी और वो अपने भाई के साथ कुछ दिन खरीददारी के लिए मेरे घर पर रुका। उस समय मै एक टूरिंग जॉब करता था। वापस आने पर एक बार फिर से वो लोग खरीदारी के लिए लखनऊ आये। उस समय मुझे मेरी पत्नी के व्यवहार में परिवर्तन महसूस हुआ जिसे मेरी पत्नी ने ज्यादा थकान को वजह बताया। 
            पर चंद दिनों के बाद मेरी जानकारी में कई चीजे आयीं जैसे असमय फोन पर बात करना, बातों को छिपाना व झूठ बोल देना जिसके लिए मैंने उसको काफी दिनों तक उसे समझाया कि उसे मुझसे ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अपने उस मित्र की शादी में मैं अपनी पत्नी व बच्चो के साथ फरवरी 2012 में बरेली गया तथा इस समय के दौरान मुझे इस बात का पूर्ण अहसास होगया कि मेरी पत्नी मेरे दोस्त के भाई को पसंद करने लगी है। वहां पर एक रात किसी कारणवश उसके ऊपर मैंने शराब के नशे में हाथ उठा दिया और उस गलती का अहसास मुझे आज तक है। उसके बाद से मेरी पत्नी ने शादी से वापस आने के बाद मेरे सामने ही उस लड़के से फोन पर बातें करना चाहे वो दिन हो अथवा रात, मैं सामने रहूँ या घर पर ना रहूं, करने लगी। दो अलग-२ बार मार्च व अगस्त में उस लड़के को मेरे कई बार मना करने के बाबजूद बरेली से लखनऊ बुलाया और वो मेरे ही घर पर रुका। 
               इस समय तक मेरे ससुर जी अथवा किसी भी दूसरे सदस्य को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। पर इन बातों के बाद एक दिन जब मैं और अधिक बर्दास्त नहीं कर सका तो मैंने इन बातों का खुलासा अपने ससुर जी को पत्नी के सामने कर दिया। और जो साक्ष्य थे उनको बताया व दिखाया भी। पर मेरी पत्नी ने उन सभी बातों को अपने पिता के सामने नकार दिया और मेरे लिए कहा कि मैं उसको परेशान करता हूँ व उस पर शक करता हूँ। ससुर जी ने यहाँ अपनी बेटी को सही माना और मुझसे कहा कि मैं उनकी बेटी पर गलत इल्जाम लगा रहा हूँ। इन बातों से परेशान हो कर मैं लखनऊ से बरेली अपने घर पर सितम्बर 2012 में वापस आगया और फोन से अपनी पत्नी के संपर्क में रहा। मैंने इस दौरान अपनी पत्नी को वो बातें बोली जो उसने मुझसे शादी से पहले अपने बारे में कही थी। जिस पर आपस में काफी झगडा हो गया तथा अक्तूबर 2012 में मै वापस गया और अपनी पत्नी से व ससुर जी से अपनी गलतियों की माफ़ी भी मांगी। पर पत्नी ने ससुर जी से ये बोल दिया कि अगर में उस घर में रुका तो वो घर से बच्चो को लेकर चली जाएगी। तब ससुर जी ने मुझे अपने एक दोस्त के पास कुछ दिन रुकवाया (लगभग 1 हफ्ता)। उसके बाद मैं उनके कहने पर ससुर जी के बड़े भाई के पास 1 महीना रहा और अपनी पुरानी जॉब को करने लगा। इस दौरान अपने बीच में अपने बच्चो से मिलता रहा।   
              पर मेरी पत्नी का ससुर जी की इस बात पर गुस्सा बढ़ गया। और एक दिन ससुर जी ने अपने भाई से कहा कि वो मुझे अब अपने घर पर ना रखे। इस पर उनके बड़े भाई ने मुझे समझाया और मुझे प्रेरित किया कि मैं अपने घर जाऊँ और अपने आप को आत्मनिर्भर बनाऊँ और कुछ समय अपनी पत्नी को दूँ। समय के साथ शायद मेरी पत्नी इन बातो को भुला दे जो कि मुझे भी सही लगी। मैं जनवरी 2013 में बरेली वापस आ गया उस लड़के व उसके परिवार से सारे सम्बन्ध समाप्त कर लिये। कुछ समय के बाद अपना कारोबार शुरू किया। इसके बाद मेरी पत्नी से बातचीत कम हो गयी क्योकि फोन पर जब भी उससे बात करता तो बातचीत एक झगडे का रूप ले लेती। जून 2013 में मैं एक बार फिर से अपनी पत्नी को मनाने गया वहां एक दिन रुका भी पर मेरी कोशिशें बेकार होती गयी। 
                  वो मेरी माँ और भाई को उल्टा सीधा कहने लगी और मेरे उपर इल्जाम लगाये कि मैं उसे बार बार  फोन करके परेशान करता हूँ और उसके चरित्र के बारे में ख़राब बोलता हूँ। जब कि वो ऐसा कुछ नहीं करती है मेरे इस तरह बोलने के कारण अब वो किसी दोस्त या रिश्तेदार से कोई मतलब नहीं रखती है, एक प्राइवेट स्कूल में अपनी जॉब करती है और खाली समय में कांट्रेक्ट बेस काम करती है। वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती है। मेरे ससुर जी ने मुझसे यह बोला कि मै मासिक रूप से 10000 रू बच्चो की परवरिश हेतु उनको दूँ। जिससे शायद मेरी पत्नी का भी दिल बदल जाये।  अपने बच्चों से मैं उन की परमीशन के बाद मिल सकता हूँ या फोन पर बात कर सकता हूँ। पर मैंने ये कहकर उनकी बात नहीं मानी कि मैं अपने परिवार को अपने साथ रख कर अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से देखभाल करना चाहता हूँ। जिस पर वो राजी नहीं हुए और कई महीने निकल जाने के बावजूद तक ऐसी ही स्थिति बनी रही। 
                  बच्चों के लिए भी अगर कुछ करना हो या बात करनी हो तो उन दोनों की परमिशन लेनी होती थी। जनवरी 2014 में जब ससुर जी के बड़े भाई द्वारा कोई बात नहीं बनी तो तो ससुर जी के बड़े भाई ने पत्नी की एक चाची जी को मध्यस्थ बनाया और चाची जी ने मुझे अपनी माँ के साथ आने को बोला। वहां अपनी माँ के साथ जाने पर मेरी पत्नी ने सभी के सामने कई तरह के झूठे इल्जाम लगाये व पुलिस, कानून की धमकी दी कि वो चाहे तो मेरे परिवार को जेल भी करा सकती है। ससुर जी ने कहा कि अभी 2 साल का समय है, मेरे पास अपने रिश्तो को सुधारने के लिए।  2 साल के बाद जब बच्चे बड़े हो जाएंगे तो तय होगा कि हम दोनों लोग साथ में रह सकते है या नहीं। मेरी पत्नी का कहना था कि वो अपने आप को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है और मैं चाहूँ तो बच्चो से लखनऊ आकर मिल सकता हूँ। पर उन्हें अपने साथ अकेले कहीं भी नहीं ले जा सकता हूँ और वो बरेली आकर नहीं रहना चाहती है, ना ही तलाक देना चाहती है। उसकी चाची जी ने कहा कि मै कुछ महीने यहाँ आता जाता रहूँ जिससे स्थिति में परिवर्तन हो और उनका प्रयास रहेगा कि वो मेरी पत्नी को साथ रहने को मना सके। कुछ समय उनकी बात को मानकर मेरी माँ व मैं वापस आ गये और अपनी ओर से मैंने सार्थक पहल करनी चाही और मै वहां पर गया भी 1-2 दिन के लिए इस उम्मीद से कि शायद मेरी पत्नी मुझसे अलग रहने की डेढ़ साल पुरानी जिद्द को छोड़ दे। पर इस दौरान मेरे प्रति पत्नी ने अपना कोई रवैया नहीं बदला। जैसे मेरे सामने फोन को साइलेंट करना या फिर उसको बंद कर देना। 
             मुझे वहाँ उन दिनों में कुछ फोटोग्राफ मिले जो कि मेरे ही घर  (जहाँ पर मेरी पत्नी इस समय रहती है) के हैं। जो उसके स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर के अर्धनग्न अवस्था में अकेले के है और उस समय के जब मैं वहां पर नहीं था। क्योकि पुराने वाले मकान को बदल कर मेरे ससुर जी पिछले लगभग 1 साल से दूसरे घर में रहते हैं  और मै ये भी नहीं जानता हूँ कि मेरे ससुर जी को इन बातों पता है भी या नहीं।
             इस बात को अभी तक किसी को नहीं बताया है क्योकि मै पुराने इतिहास को दोहराकर अपने बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहता हूँ। मेरी पत्नी अभी भी अपनी आर्थिक स्थिति व आत्मनिर्भरता का हवाला देते हुए 2 साल तक साथ में रहने को तैयार नहीं हो रही है। जब कि मैं अपने परिवार की बेहतर तरीके से देखभाल कर सकता हूँ। ये भी जानता हूँ कि अपनी पत्नी अथवा बच्चों को तब तक नहीं ला सकता हूँ जब तक कि पत्नी खुद ना चाहे। वो इस बारे में कुछ नहीं सोच रही है अब जब कि ससुर अपनी जॉब पर जाते हैं और पत्नी अपनी जॉब पर, दोनों बच्चे सुबह क्रच में जाते हैं (बड़ा बेटा वहीँ से अपने स्कूल जाता है वैन द्वारा) और शाम को पत्नी या ससुर अपनी जॉब से आने के बाद बच्चो को क्रच से लेकर आते हैं। आप मुझे ये सलाह दें कि मुझे क्या उपय़ुक्त कार्यवाही करनी चाहिए जिससे मै अपने परिवार के भविष्य को संभाल सकूँ? 
            मैं अपने कारोबार को छोड़ कर लखनऊ जा कर नहीं रहना चाहता हूँ क्यों कि मुझे या मेरे परिवार के किसी भी सदस्य को स्त्रियों के बाहर काम करने या आने जाने अथवा बात करने पर कोई आपति नहीं है। पर वो अमर्यादित न हो।  अभी तक मैंने कोई भी कानूनी कार्यवाही नहीं की है और दूसरे पक्ष के बारे में मैं नहीं जानता हूँ कि उन्होंने ऐसा कुछ किया है अथवा नहीं। मैं केवल यही चाहता हूँ कि मेरा परिवार मेरे साथ रहे। अगर मेरी पत्नी मेरे साथ बरेली नहीं रहती है तो ऐसी स्थिति में मैं उससे तलाक लेना चाहूँगा।
समाधान-
मित्र, हो सकता है आप बुरा मान जाएँ। पर सचाई तो सचाई है। आप ने अपनी पत्नी को केवल चाहा, उस से प्रेम नहीं किया। आप चाहत भी इतनी थी कि वह आप की वफादार भारतीय पत्नी बनी रहे। लगता है आप प्रेम का अर्थ अभी तक जानते ही नहीं। आप की पत्नी ने जब जरा सी स्वतंत्रता लेनी चाही तो आप के मन में संदेह पनपने लगा। तब आप को अपनी पत्नी की मामूली व्यवहारिक बातें भी आप को बेवफाई लगने लगी। आप को लगा कि आप की पत्नी किसी और को चाहने लगी है। आप को गुस्सा भी आया और आप ने पत्नी पर हाथ उठा दिया। आप के लिहाज से आप की इतनी सी हरकत पत्नी के लिए तो बहुत बड़ी थी। उस ने आप को त्याग दिया। आप की पत्नी समझती थी कि आप उसे प्यार करते हैं, उसे सम्मान देते हैं। लेकिन उस की निगाह में आप वही भारतीय परंपरागत पति निकले।
प जिन सबूतों की बात कर रहे हैं, वे कोई सबूत नहीं हैं, उन से आप की पत्नी की बेवफाई साबित नहीं होती है। आप के मन में अभी भी सन्देह का कीड़ा विराजमान है। आप के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया है। जो तगड़ा सदमा आप ने अपनी पत्नी को दिया है, वह उस से बाहर नहीं निकल पाई है। वह अब आत्मनिर्भर जीवन जीना चाहती है। उस के जीवन में आप का कोई स्थान नहीं है। यहाँ तक कि वह उस के साथ जो आप का नाम जुड़ा है उसे छोड़ना भी नहीं चाहती। जब कि आप को फिर पत्नी की जरूरत है। आप एक पत्नी चाहते हैं। वह नहीं तो उस से छुटकारा प्राप्त कर के कोई और।
त्नी आप से सिर्फ अपने बच्चों का खर्च चाहती है। आज के जमाने में दो बच्चों का खर्च 10000 रुपया प्रतिमाह अधिक नहीं है। निश्चित रूप से उसे इस से अधिक खर्च करने पड़ेंगे। उस की यह मांग वाजिब है।
दि आप की पत्नी नहीं चाहती है तो आप उसे अपने साथ रहने को बाध्य नहीं कर सकते। यह बात आप खुद अच्छी तरह जानते हैं। मेरे विचार में आप को अपनी पत्नी को प्रतिमाह खर्च देना चाहिए। यदि 10000 रुपए दे सकने की स्थिति में न हों तो कम दीजिए पर दीजिए। आप की पत्नी तपस्या पर उतर आई है। जब कि जो गलतियाँ आप ने की हैं उन में तपस्या आप को करनी चाहिए।
प विवाह विच्छेद चाहते हैं, फिलहाल उस का आप के साथ रहने से मना करना ही एक मात्र विवाह विच्छेद का आधार हो सकता है। लेकिन अलग रहने की उस की वजह अभी तो वाजिब लगती है। आप यदि कोई कार्यवाही करेंगे तो हो सकता है वह भी कानूनी कार्यवाही करे। उस के पास उस के ठोस कारण भी हैं। उस परिस्थिति में आप को परेशानी हो सकती है। कुछ दिन पुलिस और न्यायिक हिरासत में भी काटने पड़ सकते हैं।
मेरी राय में फिलहाल आप के पास कोई रास्ता नहीं है। आप चुपचाप बच्चों का खर्च देते रहें। समय समय पर बच्चों से मिलते रहें। उन्हें एक पिता का स्नेह देते रहें। बच्चों में आप के प्रति स्नेह पनपने लगे तो हो सकता है कि आप की पत्नी भी अपने बच्चों के पिता के प्रति नरम पड़े और आप का मसला हल हो जाए। मुकदमेबाजी से तो कुछ भी आप को हासिल नहीं होगा।
क काम और कर सकते हैं, आप अपने ससुर से बात कर सकते हैं कि जब उन की पुत्री आप के प्रति इतनी कठोर हो गई है तो उसे आप से विवाह विच्छेद की कर स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। वह बच्चों के लिए जितना हो सके एक मुश्त भरण पोषण राशि प्राप्त कर ले और विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करवा ले। यह काम दोनों की सहमति से हो जाए तो ही अच्छा है। अन्य कोई मार्ग आप के पास नहीं है। बच्चों की अभिरक्षा आप को कानूनी रूप से भी नहीं मिल सकेगी।

झूठ के पैर नहीं होते

समस्या
मेरा विवाह 10 मई 2006 को हिंदू रीति रिवाज से हुआ था। , मेरे दो पुत्रियाँ हैं, एक 7 साल की है ओर एक 5 साल की हो चुकी है। मेरी पत्नी अपने पिता के कहने पर चलती है और नवम्बर 2006 से अपने मायके में रह रही है जब कि दोनों बेटी मेरे पास है जो स्कूल में पढ़ती हैं, मेरी पत्नी ने मुझ पर सीजेएम कोर्ट में एक वकील से आवेदन प्रस्तुत करवा कर मुझ पर 498ए, 323, 504 आईपीसी का मुक़दमा दर्ज करवाया। जिस में मुझे पुलिस के दवाब में सरेंडर करना पड़ा और मैं 3 दिन हिरासत में रहा। जब कि मैं मार्च में फॅमिली कोर्ट में धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम का आवेदन प्रस्तुत कर चुका था। क्या मुझ को कोर्ट हिरासत में भेज सकती थी जब कि चार्ज शीट अभी प्रस्तुत नहीं हुई है? ये एक महीने पहले की बात है। क्या मेरी पत्नी मुझ से हर्जे खर्चे की अधिकारी है? क्या वो मुझ से मेरी पुत्रियों की कस्टडी ले सकती है? जब कि मैं उस को बच्चे नहीं देना चाहता। मेरी पत्नी खुद मुझ को छोड़ कर अपने मायके में अपने पिता के साथ अपनी मर्ज़ी से गई है। लेकिन इस का कोई भी सबूत मेरे पास नहीं है।
समाधान-
प ने जो समस्या लिख कर भेजी है उस में कोई गलती है। 10 मई 2006 को आप का विवाह हुआ और पत्नी नवम्बर 2006 से मायके में रह रही है। फिर आप के सात और पाँच वर्ष की दो बेटियाँ कैसे हो गईं? यदि 2006 से आप की पत्नी मायके में है तो फिर 498-ए का मुकदमा कैसे हुआ? क्यों कि उस में तो घटना के तीन वर्ष बाद प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता। ऐसा लगता है कि आप के विरुद्ध मिथ्या प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाई गई है। आप चाहें तो इस प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त करवाने के लिए उच्च न्यायालय में निगरानी याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। जब तक प्रथम सूचना रिपोर्ट न पढ़ी जाए और उस पर आप से बात न की जाए तब तक उस के बारे में अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। यह काम आप के स्थानीय वकील बेहतर कर सकते हैं।
जिस्ट्रेट आप को हिरासत में भेज सकता था इस कारण ही उस ने हिरासत में रखा। जब न्यायालय को लगा कि आप को हिरासत में रखा जाना उचित नहीं है तो उस ने आप की जमानत ले ली।
झूठ के पैर नहीं होते। यदि आप के विरुद्ध मामला बनावटी और मिथ्या है तो यह न्यायालय में नहीं टिकेगा। आप को एक ही भय हो सकता था कि आप को हिरासत में न भेज दिया जाए। अब आप वहाँ हो कर आ चुके हैं इस कारण डरने का कोई कारण नहीं है। आप मुकदमे में प्रतिरक्षा करें। यदि आप के वकील ने ठीक से मामले में प्रतिरक्षा की तो मामला मिथ्या सिद्ध हो जाएगा।
प की पत्नी जब तक विवाह विच्छेद न हो जाए और दूसरा विवाह न कर ले तब तक आप से भरण पोषण का खर्च मांग सकती है। पत्नी होने के नाते उसे यह अधिकार है आप उस के लिए तभी मना कर सकते हैं जब कि आप की पत्नी के पास आय का कोई स्पष्ट साधन हो।
दि आप की पत्नी बच्चियों की कस्टडी के लिए आवेदन करती है तो न्यायालय इस तथ्य पर विचार करेगा कि बच्चियों की भलाई किस में है और उन का भविष्य कहाँ सही हो सकता है। आप की छोटी बेटी 5 वर्ष की हो चुकी है। मुझे नहीं लगता कि आप की पत्नी उन की कस्टड़ी आप से ले सकती है।
पकी पत्नी स्वयं आप को छोड़ कर गई है इस का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं हो सकता। लेकिन आप गवाहों के बयानों से साबित कर सकते हैं कि ऐसा हुआ है।

बच्चों की अभिरक्षा के विवादों में उन का हित सर्वोपरि बिन्दु है

समस्या-
क हिन्दू महिला के एक पुत्र 9 साल का व एक पुत्री 12 साल की है उसका पति से तलाक हो गया, वह स्त्री-धन भी साथ ले गई लेकिन वह दोनों संतानों को उसके पति की कस्टडी में देकर गयी।  तलाक के दो माह बाद उसके पति की मृत्यु हो गयी।  दोनों बच्चे दादा दादी की परवरिश में हैं, अच्छे स्कूल में इंग्लिश मीडियम में शिक्षा क्लास 3 और क्लास 7 में प्राप्त कर रहे हैं।  अब उस महिला ने अपने दोनों बच्चों को पाने के लिए कोर्ट में केस दायर कर दिया है और सहायता चाही है कि दोनों बच्चों को मेरी अभिरक्षा में दिया जाये, दादा दादी बुजुर्ग हैं अनपढ़ हैं।  वैसे तो वह महिला के पास आय कोई साधन नहीं है फिर भी वकीलों की सलाह के कारण उसने प्राइवेट स्कूल में सर्विस करने का सर्टिफिकेट और ट्यूशन से आय का साधन बताया है और पिता के मकान में रहना बताया है।  बच्चों की पैतृक सम्पत्ति तो यथावत है क्योंकि अभी दोनों बच्चे नाबालिग हैं जिस पर उनके स्वत्व सुरक्षित हैं और परिवार की संयुक्त सम्पत्ति है।  लेकिन बच्चो की अभिरक्षा प्राप्त कर उसके साथ उन बच्चों की सम्पत्ति हथिया लेना उसका उद्देश्य है।  वास्तव में वह तलाक के बाद वह किसी और से शादी करना चाहती थी।  लेकिन इस बात को कोर्ट में सिद्ध नहीं किया जा सकता।  यदि बच्चों और उनकी सम्पत्ति ले कर वह किसी और से शादी कर ले तो इन बच्चों का भविष्य क्या होगा?  यदि वास्तव में वह बच्चों की हितैषी होती तो तलाक के समय बच्चे मात्र 3 और 6 साल के थे तो उस में उन के प्रति ममत्व क्यों नहीं जागा? और अब क्यों जाग उठा है? क्या जब तलाक लिया था तब उसने बच्चों को अपने साथ रखने में असमर्थता होना पाया और अब बच्चे पाना चाहती है?  जब कि वह इस बात को बहुत ही अच्छी तरह से जानती थी कि इन बच्चों को मात्र उनके दादा दादी ही पालन करेंगे, न कि उनके पिता।  क्या हिन्दू तलाकशुदा महिला यदि तलाक के बाद किसी से शादी नहीं करती है और उसके मायके बैठी रहती है तो उस का उसके मृत पति की सम्पत्ति में स्वत्व होगा या नहीं?  क्या उसके पति की म्रत्यु के बाद वह संतान को पाने का अधिकार रखती है?
समाधान-
माता-पिता के तलाक के समय बच्चों की उम्र और उन की वर्तमान उम्र में छह वर्ष का अंतर है इस का सीधा अर्थ यह है कि पिछले छह वर्ष से बच्चे अपने दादा-दादी के साथ निवास कर रहे हैं जहाँ उन्हें पर्याप्त और अच्छा संरक्षण प्राप्त हो रहा है उन के संरक्षण में बच्चों के विकास की अच्छी संभावना है।  छह वर्ष से माता से दूर रहने पर बच्चे भी अब शायद ही माता के साथ जा कर रहने की इच्छा रखते हों।  ये दो तथ्य अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, जिन के आधार पर बच्चों की अभिरक्षा दादा-दादी के पास बने रहने का निर्णय न्यायालय से प्राप्त किया जा सकता है।
प के द्वारा कुछ प्रश्न और तथ्य उठाए गए हैं।  “यदि बच्चों और उनकी सम्पत्ति ले कर वह किसी और से शादी कर ले तो इन बच्चों का भविष्य क्या होगा?  यदि वास्तव में वह बच्चों की हितैषी होती तो तलाक के समय बच्चे मात्र 3 और 6 साल के थे तो उस में उन के प्रति ममत्व क्यों नहीं जागा? और अब क्यों जाग उठा है? क्या जब तलाक लिया था तब उसने बच्चों को अपने साथ रखने में असमर्थता होना पाया और अब बच्चे पाना चाहती है?  जब कि वह इस बात को बहुत ही अच्छी तरह से जानती थी कि इन बच्चों को मात्र उनके दादा दादी ही पालन करेंगे, न कि उनके पिता।” इन सब प्रश्नों को दादा-दादी के बयान व अन्य साक्ष्य के माध्यम से न्यायालय के रिकार्ड पर लाना होगा।  इस का लाभ दादा-दादी को बच्चों की अभिरक्षा बनाए रखने में मददगार सिद्ध होगा।  प्राइवेट स्कूल व ट्यूशन के जो दस्तावेज माता ने प्रस्तुत किए हैं उन्हें स्कूल संचालक और ट्यूशन के दस्तावेज निष्पादित करने वाले व्यक्तियों के बयान न्यायालय के समक्ष कराए बिना उन्हें साबित नहीं किया जा सकता।  आप उन्हें गलत साबित करने के लिए स्कूल से स्कूल का रिकार्ड जिस में नियुक्ति पत्र, वेतन पंजिका न्यायालय से मंगवा सकते हैं।  इस के अतिरिक्त उसी स्कूल में काम करने वाले किसी व्यक्ति के तथा जहाँ बच्चों की माता रहती है उस मुहल्ले से किसी व्यक्ति के बयान कराए जा सकते हैं। जो कोई भी वकील इस मुकदमे को लड़ रहा है उसे इस मामले में अतिरिक्त श्रम करना होगा।
भी हाल ही में एक मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आया है, हालाँकि इस मामले में अभी अंतिम निर्णय पारित नहीं किया गया है लेकिन कुछ आदेश दिए गए हैं।  इस मामले में एक मुस्लिम लड़का अपने माता-पिता से बिछड़ गया था।  उसे एक हिन्दू व्यक्ति ने आश्रय दिया और बेटे की तरह पालने लगा।  उस का स्कूल में दाखिला कराया और उस ने उस का धर्म और नाम तक नहीं बदला।  कुछ वर्ष बाद बच्चे के पिता का देहान्त हो गया लेकिन माता को बच्चे का पता लगा और अब वह अपने बच्चे की अभिरक्षा प्राप्त करना चाहती है।  इस मामले में बच्चे ने कहा कि वह अपनी माता के पास न रह कर अपने पालक पिता के साथ रहना चाहता है।  सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में टिप्पणी दी है कि ऐसी हालत में बच्चे का संरक्षण उस माता को क्यों दिया जाए जब कि बच्चे का संरक्षण अच्छी तरह हो रहा है, उस के धर्म को बदला नहीं गया है और बच्चे के खोने तक की रिपोर्ट पुलिस को नहीं कराई गई थी जिस से उसे तलाश किया जा सके।  हालाँकि इस मामले में अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है और सर्वोच्च न्यायालय ने महिला से उस की आय, उस के दायित्वों और स्कूल के खर्चों आदि के बारे में एक सप्ताह में शपथ प्रस्तुत करने को कहा है।  लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के विचारों से यह स्पष्ट है कि बच्चों की अभिरक्षा के संबंध में निर्णय करने के लिए वह बच्चों के हितों और उन की इच्छा को सर्वोपरि स्थान दे रही है।  प्राकृतिक संरक्षक होने का इस मामले में उतना महत्व नहीं रह गया है।  एक-दो माह में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय इस मामले में हो जाएगा, उस पर आप को निगाह रखनी होगी।

हिन्दू पुरुष किन आधारों पर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकता है?

समस्या-
मेरी शादी 26 फरवरी 2011 को हिंदू रीति रिवाजों के साथ संम्पन्न हुई थी।  मेरे पति और मेरे ससुर दोनो इंडियन एयर फोर्स मे ऑफीसर हैं।  जब से मेरा ये रिश्ता पक्का हुआ तब से ही मेरे ससुराल वालों ने मेरे घर वालों (मैके) से मांग करनी शुरू कर दी।  मेरे पिता ने उनकी सब मांगें पूरी की क्यों कि मेरी शादी के कार्ड बाँट दिए गये थे।  मेरे ससुराल वालों ने हर बात पर अपनी मांग रखी और जब भी मेरे पिता ने असमर्थता जताई तो मेरे ससुराल वालों ने रिश्ता तोड़ने की धमकी दी।  समाज में अपनी इज़्ज़त बनाए रखने के लिए उनकी हर मांग को पूरा किया।  मेरे पिता ने शादी में 80 लाख से ऊपर का खर्च किया।  शादी हो जाने के बाद जब मेरे पति जम्मू कश्मीर चले गये। मुझे कहा कि क्वार्टर मिलने के बाद वे मुझे ले जाएंगे।  तब तक में अपने सास ससुर के पास रहने लगी।  मेरी सास ने मेरे पति के जाने के बाद ही मेरे उपर ताने कसने शुरू कर दिए।  मेरी सास कहने लगी कि मेरे पति और मेरा बेटा दोनों इंडियन एयरफोर्स में ऑफीसर है उसके हिसाब से तुम  कुछ भी दहेज नहीं लाई हो।  तुम मेरे बेटे के काबिल नहीं हो।  अपने मैके जाओ ओर ओर ज्यादा दहेज लेकर आओ। मैं ने अपने मैके में किसी को कुछ नहीं बताया क्यूकी मेरे पिता दिल के मरीज थे। और उन्हों ने बहुत कठिनाई से मेरी शादी की थी।  मैं अपनी सास के ताने चुपचाप सुनती रही।  महीने बाद मुझे मेरे पति जम्मू ले गये, वहाँ जाकर मैं और मेरे पति अच्छा जीवन काटने लगे। वहाँ पर भी मेरी सास फोन करके मुझे बहुत सुनाती थी।  जम्मू जाने के 1 महीने बाद मैं अपने ससुराल वापस आई।  वापस आने के 2 दिन बाद मेरी सास फिर से और दहेज की मांग करने लगी और कहने लगी कि अपने पिता को फोन करों और उन्हें और दहेज की मांग करो।  जब मेरी सास ने देखा कि मैं अपने पिता को कुछ नहीं बोल रही हूँ तो मेरे ससुर ने मेरे पिता को फोन करके ये कहकर बुलाया की उन्हें मेरे पिता से कुछ काम है।  मेरे पिता जब मेरी ससुराल आए तो मेरे सास ससुर ने मिलकर उन्हें बहुत अपमानित किया और धन की माँग करते हुए उनसे उनकी प्रॉपर्टी मे तीसरा हिस्सा मांगा और उन्हों ने धमकी दी की अगर उनकी माँग पूरी नहीं हुई तो वो अपने बेटे को कहकर मुझे डाइवोर्स दिलवा देंगे।  ये बात सुनते ही मेरे पिता सदमे में आ गये और चुपचाप घर चले गये।  घर पहुँच कर रोने लगे, उनको इतना दुःख पहुँचा कि अगले दिन ही उनको हार्ट अटेक आ गया।  मेरे ससुराल वालों को जब ये बात पता चली तो उन्होने मेरी माँ को कहा की ये बात किसी को मत बताना हम तुम्हारी बेटी को लड़के के साथ भेज देंगे।  वो बेटे के साथ खुश रहेगी।  कुछ महीने ठीक रहा।  लेकिन कुछ महीने बाद फिर वही ड्रामा शुरू हो गया। मैं जब भी ससुराल आती या अपने पति के साथ रहती तो हर बार मुझे डाइवोर्स देने की धमकी दी जाती।  मेरे ससुराल वाले जब फोन पर मेरे पति से बात करते थे तो मेरे पति बेवजह की बातों पर मुझसे लड़ते और मुझे मारते थे।  जब मेरे ससुराल वालों का फोन नहीं आता था और मेरे पति से उन की बात नहीं होती थी तो मेरे पति मुझे खुश रखते थे।  अब जब मैं और मेरे पति छुट्टी ले कर मेरे सास ससुर के घर आ रहे थे कि मेरे पति ने कहा की तुम अपने मैके चली जाओ और मैं अपने घर जाता हूँ।  मेरी माँ नहीं चाहती कि तुम मेरे साथ घर चलो।  मैं उन्हें समझा कर तुम्हे लेने आ जाउंगा।  मैं अपने मैके आ गयी।  मेरे पति मुझसे फोन पर बात करते थे।  जब मैं ने आने की बात की तो उन्हों ने कहा कि मेरी माँ ने मुझे तुमसे बात न करने और तुमसे ना मिलने की कसम दी है।  और कुछ दिन बाद ही मेरे पति ने मुझे डाइवोर्स पीटिशन भिजवा दी।  मैं डाइवोर्स नहीं चाहती।  मैं ये जानना चाहती हूँ कि डाइवोर्स किन आधारों पर हो सकता है अगर डाइवोर्स लड़का पक्ष चाहता है तब?  मुझे मेरे अधिकार जानने हैं कि मेरे क्या अधिकार हैं? मैं डाइवोर्स नहीं देना चाहती।  साथ ही मुझे ये जानकारी भी चाहिए कि हमारी एयर फोर्स में क्या रूल ओर रेग्युलेशन है इस मैटर को ले कर।  मुझे कोई ऐसी हेल्पलाइन नंबर्स भी चाहिए जिसका मैं समय आने पर उपयोग कर अपने लिए मदद पा सकूँ।
समाधान-
प को विवाह विच्छेद के आवेदन की प्रति मिल चुकी है।  आप को अपनी समस्या का वर्णन करते हुए यह बताना चाहिए था कि आप के पति ने किन आधारों पर विवाह विच्छेद हेतु न्यायालय को आवेदन प्रस्तुत किया है।  जिस से आप के मामले में विशिष्ठ रूप से विचार किया जा सकता। खैर।
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-13 में वे आधार बताए गए हैं जिन से एक हिन्दू पुरुष विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकता है।  ये निम्न प्रकार हैं-
  1. विवाह हो जाने के उपरान्त जीवन साथी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक रुप से यौन संबंध स्थापित किया हो।
  2. जीवन साथी के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया हो।
  3. विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से कम से कम दो वर्ष से लगातार जीवन साथी का परित्याग कर रखा हो। यहाँ परित्याग बिना किसी यथोचित कारण के या जीवनसाथी की सहमति या उस की इच्छा के विरुद्ध होना चाहिए जिस में आवेदक की स्वेच्छा से उपेक्षा करना सम्मिलित है।
  4. जीवनसाथी द्वारा दूसरा धर्म अपना लेने से वह हिन्दू न रह गया हो।
  5. जीवनसाथी असाध्य रूप से मानसिक विकार से ग्रस्त हो या लगातार या बीच बीच में इस प्रकार से और इस सीमा तक मानसिक विकार से ग्रस्त हो जाता हो कि जिस के कारण यथोचित प्रकार से उस के साथ निवास करना संभव न रह गया  हो। 
    क.    यहाँ मानसिक विकार का अर्थ मस्तिष्क की बीमारी, मानसिक निरुद्धता, मनोरोग विकार, मानसिक अयोग्यता है जिस में सीजोफ्रेनिया सम्मिलित है.
      ख.    मनोरोग विकार का अर्थ लगातार विकार या मस्तिष्क की अयोग्यता है जो असाधारण रूप से आक्रामक होना या जीवन साथी के प्रति गंभीर रूप से अनुत्तरदायी व्यवहार करना है, चाहे इस के लिए किसी चिकित्सा की आवश्यकता हो या न हो।
  6. जीवनसाथी किसी विषैले (virulent) रोग या कोढ़ से पीड़ित हो।
  7. जीवनसाथी किसी संक्रामक यौन रोग से पीड़ित हो।
  8. जीवनसाथी ने संन्यास ग्रहण कर लिया हो।
  9. जीवनसाथी के जीवित रहने के बारे में सात वर्ष से कोई समाचार ऐसे लोगों से सुनने को न मिला हो जिन्हें स्वाभाविक रूप से इस बारे में जानकारी हो सकती हो।
पर वर्णित आधारों के अतिरिक्त विवाह के पक्षकारों के बीच न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित होने के उपरान्त एक वर्ष या अधिक समय से सहवास आरंभ न होने या वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री पारित होने के उपरान्त एक वर्ष या अधिक समय से वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना न होने के आधारों पर भी विवाह विच्छेद की डिक्री पारित की जा सकती है।
प ने अपने अधिकार जानना चाहे हैं।  आप के पति ने आप के विरुद्ध विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने हेतु आवेदन कर दिया है।  आप इस आवेदन के लंबित रहने की अवधि के लिए अपने पति से निर्वाह के लिए प्रतिमाह धनराशि प्राप्त करने तथा न्यायालय व्यय प्राप्त करने के लिए धारा-24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत पहली सुनवाई के समय ही आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं, जिसे पहले निर्णीत किया जाएगा।  आप निर्वाह राशि प्राप्त करने के लिए धारा-125 दंड प्रक्रिया संहिता तथा महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत भी न्यायालय के समक्ष पृथक से आवेदन कर सकती हैं।
हेज मांगे जाने और क्रूरता पूर्ण व्यवहार करने के लिए आप अपने पति और उस के रिश्तेदारों के विरुद्ध पुलिस को शिकायत प्रस्तुत कर सकती हैं।  आप को या आप के ससुराल वालों को विवाह तय होने से ले कर आज तक जो भी भेंट नकद राशि तथा वस्तुओं के रूप में दी गई हैं वह सभी आप का स्त्री-धन है। आप तुरंत इन्हें लौटाए जाने की मांग कर सकती हैं और न लौटाए जाने पर पुलिस शिकायत कर सकती हैं।  पुलिस द्वारा शिकायतें न सुने जाने पर आप न्यायालय में अपना परिवाद प्रस्तुत कर सकती हैं।

पति पत्नी का कितने ही साल अलग-अलग रहना तलाक का आधार नहीं हो सकता

समस्या-
पति और पत्नी कितने साल तक अलग रहें तो तलाक का कारण होता है
समाधान-
ति और पत्नी कितने ही साल तक अलग अलग रहें लेकिन यह तलाक का कारण नहीं हो सकता है।
प के नाम से प्रतीत होता है कि आप हिन्दू हैं और आप पर हिन्दू विवाह अधिनियम प्रभावी है। इस अधिनियम की धारा 13 (1) (ib) के अंतर्गत यह प्रावधान है कि यदि विवाह के दूसरे पक्ष ने आवेदन करने की तिथि के ठीक दो वर्ष पहले से आवेदन करने की तिथि तक बिना किसी कारण से आवेदनकर्ता पक्ष का अभित्यजन कर दिया हो तो वह तलाक का आधार हो सकता है।
स तरह पति-पत्नी का कितने ही समय तक अलग अलग रहना कारण नहीं हो सकता। लेकिन यदि पति ने पत्नी को अथवा पत्नी ने पति को बिना किसी कारण से दो वर्षों से अधिक समय से त्याग रखा हो तो यह तलाक का आधार हो सकता है। लेकिन आवेदन करने के ठीक दो वर्ष पहले की अवधि में अभित्यजन पूर्ण होना चाहिए। यदि दोनों इस अवधि में एक दिन भी साथ रह लिए हैं तो यह आधार नहीं लिया जा सकता है। आवेदन करने के ब

साधारण आपसी गाली गलौच तलाक का आधार नहीं है

प्रश्न---
मेरी पत्नी मुझे बहुत तंग करती है बात-बात पर गंदी गंदी गालियाँ निकालती है। बहुत समझाता हूँ लेकिन नहीं समझती है। पत्नी के मम्मी-पापा को बुलाता हूँ तो कहते हैं कि पैसे नहीं हैं। लेकिन मेरी पत्नी के मांगने पर उसे पाँच-दस हजार रुपए दे देते हैं, लेकिन अपनी पुत्री को समझाने के लिए नहीं आते हैं। मैं बहुत बुरी तरह फँस गया हूँ। मुझे क्या करना चाहिए? 
 उत्तर –
प की समस्या पूरी तरह सांस्कृतिक है। वस्तुतः आप की पत्नी की परवरिश जिस वातावरण में हुई है वह बहुत अच्छा नहीं रहा है। उस वातावरण में गंदा गाली-गलौच आम बात रही होगी, जिस के कारण आप की पत्नी की आदत ऐसी पड़ गई है। आप की पत्नी के माता पिता ने धन को ही महत्व दिया, संस्कारों को नहीं। पर इस में आप की पत्नी का कोई दोष नहीं है। आप भी उसे समझाते हुए क्रोध के शिकार हो कर लड़ने लगते होंगे। यह ठीक नहीं है। आप पत्नी को प्रेम से धीरे-धीरे समझाने का प्रयत्न करें। पहले स्वयं आप की पत्नी को यह अहसास होना आवश्यक है कि उसे सुधार की आवश्यकता है।
प भी अब पत्नी की ऐसी आदत हो जाने के कारण उसे समाज में अपने साथ कम ले जाते होंगे जिस से आप को शर्म का सामना न करना पड़े। लेकिन यह ठीक नहीं है। आप को अपनी पत्नी को कम से कम अपने मित्रों और परिजनों के परिवारों के बीच साथ लेकर जाना चाहिए। अपने मित्रों और परिजनों को समझा दें कि आप की पत्नी की आदत खराब है। वे उस के साथ प्रेम पूर्वक इस तरह का व्यवहार करें जिस से आप की पत्नी को स्वयं अपने व्यवहार पर लज्जा महसूस होने लगे। यही एक मात्र रीति है जिस से आप की पत्नी में कुछ सांस्कृतिक परिवर्तन हो सकता है। आप के नजदीक यदि अच्छे वैवाहिक काउंसलर उपलब्ध हों तो आप उन की मदद ले सकते हैं। 
प के प्रश्न से लगता है कि आप तलाक के बारे में भी सोचते रहे हैं। लेकिन तलाक इतना आसान नहीं है और केवल आखिरी उपाय है। मुझे लगता है कि प्रयत्न करने पर आप अपनी पत्नी में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। तलाक के लिए कोई आधार आप के पास वर्तमान में उपलब्ध भी नहीं है। 

पत्नी के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही करने के पहले तीन वर्ष पूरे होने दीजिए।

समस्या-
मेरी पत्नी पिछले ढाई साल से अपने मायके मेरे 6 साल के बच्चे के साथ रह रही है।  मेरी शादी 14 फरवरी 2007 को हुई थी। इस के बाद घर में मेरे माँ बाप के साथ इस की न बनने के चलते ये दो बार आपने मायके चली गई थी।  इस की शर्तों को मानकर मैं दोनों बार इसे ले आया। अलग से घर किराये पर ले कर रहा। लेकिन अकेले घर न सम्भाल पाने (काम वाली बाई रहने के बावजूद) के कारण ये मुझ से छोटो छोटी बातों पर झगड़ने लगी और एक दिन मेरे साथ मारपीट भी कि जिसे देखकर मेरे पिता ने इस के माँ बाप को बुलाकर इसे वापस भेज दिया।  इन ढाई साल के दौरान एक बार मेरे माँ बाप और एक बार मैं इसे लेने गए लेकिन नए या दूसरे मकान में रहूंगी बोलकर नहीं आई। पहले हम दूसरा घर भी ले चुके है लेकिन ये रह ही नहीं पाती और मेरी माँ कभी भी गलत नहीं है तो किस आधार पर मैं उसकी शर्त मानूं? मुझे मेरे बच्चे की भी चिंता है। आज ढाई साल बाद वह मुझे फ़ोन पर कहती है कि दम है तो यहाँ आकर हमें लेकर जाओ। मुझे समझ नहीं आ रहा ये किस तरह का समझौता है। मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
ज कल परिवारों का ढाँचा पहले की अपेक्षा बहुत बदल चुका है और लगातार बदल रहा है। शादी की उम्र बढ़ गई है। लेकिन हमारे यहाँ शादियों का ढर्रा वही पुराना चला आ रहा है। शादियों का पुराना ढर्रा नए ढाँचे के साथ मेल नहीं खा रहा है। यह अन्तर्विरोध विवाहों में बहुत खलल पैदा कर रहा है। आप को जिस तरह की समस्या आ रही है वैसी समस्याएँ बहुत आम हो गई हैं।
जिस तरह आप कह रहे हैं कि आप की माँ गलत नहीं है। आप की पत्नी भी यही सोचती होगी कि उस के माता-पिता गलत नहीं हैं। पर यह आप दोनों की सोच है। फिर भी आप की स्थिति बहुत विकट है। जिस तरह आप की पत्नी ने आप के साथ मारपीट की और अब कहती है कि दम हो तो यहाँ आ कर हमें ले कर जाओ। उस से लगता है कि उस का आप के साथ रहने का मन है। बच्चे की चिन्ता होना भी स्वाभाविक है। फिर विवाहित होते हुए अपनी पत्नी से अलग रहना आसान काम नहीं है।
प ने ढाई वर्ष जैसे निकाले हैं, कम से कम छह माह या एक वर्ष और निकालिए। इस अवधि में आप अपनी ओर से शान्त रहिए और न आप के माता पिता और न ही आप स्वयं अपनी ससुराल जाइए। इस से यह होगा कि आप दोनों का अलगाव तीन वर्ष से अधिक का हो जाएगा। तब एक संकट आप का हल हो जाएगा कि आप की पत्नी आप के विरुद्ध धारा 498-ए आईपीसी और घरेलू हिंसा की कोई झूठी शिकायत नहीं कर सकेगी। यदि वह करेगी भी तो उस में आप के लिए अच्छा प्रतिवाद होगा। यह छह माह या साल भर का समय और निकाल देने के उपरान्त आप अपनी पत्नी के विरुद्ध धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। इस प्रार्थना पत्र की सुनवाई के दौरान कोई हल निकल सकता है या फिर आप के प्रार्थना पत्र पर आप को डिक्री प्राप्त हो सकेगी। आप की पत्नी फिर भी आप के साथ रहने को नहीं आती है तो आप एक वर्ष बाद विवाह विच्छेद के लिए आवेदन दे सकते हैं। बाद में आप बच्चे की अभिरक्षा के लिए भी आवेदन कर सकते हैं।

ऐसे वकील का पता बताएँ जो शत-प्रतिशत मुझे मेरा बच्चा दिलवा दे


प्रशांत वर्मा अपनी समस्या को इस तरह रखते हैं-
मेरा नाम प्रशांत वर्मा (39) है। मेरी पत्नी करीब चौदह सालों से हम से अलग रहती है। मेरा एक बच्चा भी है जो करीब तेरह वर्ष से अधिक उम्र का है। मैं अपने बच्चे को आज तक नहीं देखा है। क्या मेरा बच्चा कानूनी रूप से मुझे मिल सकता है? मेरी पत्नी ने हमारे ऊपर 498-ए और 125 का मुकदमा भी दायर किया है जो कि विचाराधीन है। मुझे किसी ऐसे एडवोकेट का पता, ई-मेल या फोन नं. दें जो शत-प्रतिशत मेरा बच्चा हम को दिला सके। क्यों कि मैं अपने बच्चे को पायलट या आईएएस अफसर बनाना चाहता हूँ। 
उत्तर-

प अपनी पत्नी से, या आप की पत्नी आप से, चौदह वर्ष से अलग रह रही है, और आप के तेरह वर्षीय पुत्र को आप ने देखा तक नहीं है। अब जब आप की पत्नी ने आप के विरुद्ध धारा 498-ए व  भा.दं.सं. और  धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत मुकदमे कर दिए हैं, तो आप को अपने पुत्र को पायलट या आईएएस बनाने की चिंता हुई है। वैसे आप की यह चिंता सद्भाविक और स्वाभाविक भी हो सकती है। किसी भी बच्चे को उस की पाँच वर्ष की उम्र तक तो उस की माँ की कस्टड़ी से वापस नहीं लिया जा सकता है। लेकिन पाँच वर्ष की आयु का होने के उपरांत आप को उस की कस्टडी प्राप्त करने के लिए कुछ करना चाहिए था। आप ने वह सब नहीं किया। उस के भरण-पोषण की कोई परवाह नहीं की, उसे देखा तक नहीं। ऐसी अवस्था में अदालत किन तथ्यों के आधार पर यह तय करेगी कि आप अपने पुत्र को पायलट या आईएएस बनाना चाहते हैं। केवल आप के द्वारा इच्छा प्रकट कर देने से तो यह समस्या हल नहीं होगी।
हाँ, पिता को पाँच वर्ष की आयु के उपरांत अपने पुत्र की कस्टड़ी प्राप्त करने का हक है। लेकिन अदालत आप को अपने पुत्र की कस्टड़ी देने का निर्णय इस आधार पर करेगी कि बालक का हित, उस का वर्तमान और भविष्य  माता-पिता में से किस के पास अधिक सुरक्षित है? आप चाहें तो बालक की कस्टड़ी के लिए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं।
कोई भी वकील शर्तिया कोई भी परिणाम  लाने का वायदा करता है तो समझिए वह आप को धोखा दे रहा है। सही वकील केवल आप के मुकदमे में पूरी होशियारी और काबिलियत से पैरवी करने का आश्वासन दे सकता है। यदि कोई इस से अधिक आश्वासन या गारंटी आप को देता है तो ऐसे वकील से काम न लेना ही ठीक है। क्यों कि वह एक मिथ्या आश्वासन दे रहा है और जिस  संविदा का आरंभ ही झूठ बोलने से हो रहा हो उस के साथ अदालत की यात्रा कभी सुखद नहीं हो सकती। बहुत से वकील गारंटी देते मिल जाएंगे, लेकिन उन के साथ आप का अनुभव अच्छा नहीं रहेगा। आप ने अपना पता-ठिकाना तक नहीं दिया है ऐसे में आप के यहाँ के किसी वकील का पता आदि दे पाना भी संभव नहीं है जो आप की पैरवी कर सके। ऐसी गारंटी कोई वकील लिखित में दे दे तो भी वह कानून के विरुद्ध होगी और उसे एक कॉन्ट्रेक्ट नहीं कहा जा सकता है।
बेहतर यही है कि आप पहले खुद सोचें कि बालक का वर्तमान और भविष्य कहाँ अधिक उत्तम होगा। यदि आप समझते हैं कि आप की कस्टड़ी में बालक का वर्तमान और भविष्य अधिक अच्छा हो सकता है तो बेझिझक कस्टड़ी के लिए आवेदन कर दें। परिणाम जो भी हो, हो। आप में अपने पुत्र के भविष्य के लिए चिंता होगी तो आप ऐसा अवश्य करेंगे। आप अपने यहाँ के किसी भी विश्वसनीय और वरिष्ठ वकील को इस काम को सौंप दें। मेरा सुझाव है कि आप गारंटी देने वाले वकील के फेर में न पड़ें। उस से आप को कोई लाभ नहीं होगा।

पत्नी आठ माह से मायके में है, क्या करूँ?

समस्या--
र जी, मेरी पत्नी को अपने मायके गए हुए आठ माह हो गए हैं लेकिन वह बोल रही है कि मैं अभी वापस नहीं आ सकती और उस के घर वाले मुझे धमकी देते रहते हैं। मैं बहुत परेशान हो चुका हूँ। कृपया आप मेरी मदद करें।
 उत्तर –
त्नी को आप जबरन तो उस के मायके से अपने घर ला नहीं सकते। उसे प्यार के बंधन से ही अपने पास रखना होगा। लगता है कि आप दोनों के बीच अभी स्नेह का वह बंधन बन ही नहीं पाया है कि वह खुद आप की और अपने गृहस्थ जीवन की परवाह करे और अपने आप चली आए। आप ने अपनी पत्नी से अवश्य ही यह पूछा होगा कि वह अभी आप के पास आ कर क्यों नहीं रह सकती? आप ने अपनी पत्नी का उत्तर प्रकट नहीं किया। कोई वजह होती तो उस का समाधान किया जा सकता था। आपने भी पत्नी के आप के साथ आ कर नहीं रहने का कोई कारण नहीं बताया है।
प कारण तलाश कर उस का समाधान स्वयं तलाशिए। यदि कोई कारण नहीं है या कारण बहुत ही मामूली है तो उस का आप के साथ आ कर नहीं रहना जायज नहीं है। आप न्यायालय में  हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत दांपत्य संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। आवेदन पर अदालत में आप की पत्नी को आना पड़ेगा और आप के साथ नहीं रहने का कारण बताना पड़ेगा। अदालत आप दोनों को साथ रहने के लिए समझाएगी भी। ऐसे अनेक मामलों में मैं ने अदालत से पति-पत्नी को साथ रहने के लिए लौटते देखा है।  यदि  पत्नी के पास आप के साथ नहीं रहने का कोई वाजिब कारण नहीं है तो अदालत आप के पक्ष में दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना के लिए डिक्री पारित कर देगी। तब भी यदि आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहती है तो अदालत आप के आवेदन पर आप के पक्ष में विवाह-विच्छेद की डिक्री पारित कर सकती है

पत्नी अलग रहने की जिद कर के मायके चली गई है, क्या करूँ ?


 समस्या--
मेरा विवाह नवम्बर 2008 में हुआ है। मेरी पत्नी घर का काम नहीं करती है और मुझे मेरे घर से अलग रखना चाहती है।  मेरे पिताजी हृदयरोगी हैं, उन्हें दो बार हृदयाघात हो चुका है और मेरी माताजी वृद्ध हैं। मेरी पत्नी अपने मायके चली गई है और कहती है कि तब तक नहीं आएगी जब तक मैं अपने पिता से अलग नहीं हो जाता हूँ। उस की इस बात में मेरे सास-ससुर भी समर्थन करते हैं।  मेरे पिता जी डरते हैं कि दहेज का मामला लगा कर जेल करवा देंगे। मैं बहुत परेशान हूँ, क्या करूँ?
 उत्तर –
प का विवाह हुए कुल ढाई वर्ष हुए हैं। इस पूरे काल में आप की पत्नी का व्यवहार कैसा रहा है इस संबंध में आप ने कुछ भी नहीं बताया है। स्त्रियों का विवाह होता है तो उन की कल्पना में एक सामान्य वैवाहिक जीवन होता है। लेकिन यदि किसी स्त्री को अपने ससुराल में पति और सास-ससुर तीनों की जिम्मेदारी उठानी पड़ जाए और उस काम में किसी का सहयोग प्राप्त नहीं हो, उलटे उसे ताने सुनने को मिलें तो यह स्थिति आ जाती है। हर कोई उस से अधिकार पूर्वक काम करने को आदेश देने लगता है। तब स्त्री यह सोचने लगती है कि वह कोई नौकरानी तो है नहीं जो सारे घर का काम करेगी। अति हो जाए तो आप के जैसी स्थिति आ ही जाती है।  मुझे नहीं लगता कि आप के वैवाहिक जीवन में और कोई परेशानी है। आप अपनी ससुराल जाएँ और अपनी पत्नी और अपने सास-ससुर से बात करें। उन्हें कहें कि माता-पिता को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता। यदि उन के स्वयं के बच्चे उन्हें ऐसी ही हालत में अकेला छोड़ दें तो उन्हें कैसा लगेगा। हाँ, वे काम का आधिक्य और ताने मारने जैसी शिकायत करें तो वह वाजिब होगी। उस का हल निकालने का प्रयत्न करें। उस के लिए घर में एक पार्ट-टाइम नौकरानी की व्यवस्था करने का प्रयत्न करें जो झाड़ू, पोचा और बरतन साफ करने जैसा काम कर ले। अपने माता-पिता को भी समझाएँ कि वे अपनी पुत्र-वधु की सेवाएँ प्रेम से ही प्राप्त कर सकते हैं, अधिकार जता कर नहीं।  मेरा सोचना है कि इस तरह बात बन सकती है। एक प्रयास में न बने तो अधिक प्रयास करें।
हाँ तक दहेज के मुकदमे से डरने की बात है। यदि आप ने या आप के परिजनों ने दहेज के संबंध में कभी कुछ भी आप की पत्नी से नहीं कहा है (जो असंभव जैसा है) तो डरने की कोई बात नहीं है। यदि कहा भी हो तो भी डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। आखिर डर कर जिया तो नहीं जा सकता है। यदि ऐसा कुछ होता है तो डरने के स्थान पर उस का मुकाबला करें। वैसे भी आज कल दहेज और स्त्री के प्रति क्रूरता के मामले पुलिस आसानी से दर्ज नहीं करती। यदि कोई मामला दर
्ज हो भी जाए तो अपना पक्ष पूरी स्पष्टता और मजबूती के साथ पुलिस के सामने रखें। यदि मामला आपसी बातचीत से हल नहीं होता है तो परिवार सलाह केंद्र में आप स्वयं आवेदन कर उन की मदद लें। यदि आप के आसपास काउंसलर सेवाएँ उपलब्ध हों तो उन की मदद भी ले सकते हैं।

पत्नी मायके से नहीं लौटती, क्या मैं तलाक ले सकता समस्या ---

सर!
मेरी समस्या अपनी पत्नी को ले कर है। मेरी शादी को एक वर्ष हो चुका है शादी के कुछ समय बाद से ही मेरी पत्नी परिवार के सदस्यों से दूर रहने लगी थी। किसी से बात नहीं करती थी। हमने कभी उस के परिवार में यह बात नहीं कही। हमें लगता था कि समय के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा। पर कुछ समय बाद वह झगड़ा कर के यह कहने लगी कि मुझे तो अब यहाँ नहीं रहना।  फिर वह अपने घर (मायके)  चली गई। उस के बाद हमारी और से उस के परिवार में बात करने पर हमें ही दोषी ठहराया गया, और कहते रहे कि हम कानून की मदद ले कर आप पर दहेज का मुकदमा करेंगे। यह सब होने के तकरीबन तीन महिने बाद उन के कुछ रिश्तेदार हमारे यहाँ मध्यस्थ बन कर आए और मौखिक राजीनामा करवा दिया। तीन चार माह सब कुछ ठीक रहा। उस के बाद करीब एक माह पहले मेरी पत्नी वापस उसी तरह से छोटी सी बात पर झगड़ कर वापस अपने मायके चली गई है। उस के परिवार वाले भी अब कुछ बात नहीं कर रहे हैं और जो मध्यस्थ थे वे भी यह कह कर चुप हो गए कि हम क्या करें? हम ने एक बार आप का समझौता करवा दिया। अब हम कुछ नहीं करेंगे।
  1. मैं ने अभी तक कहीं सलाह नहीं ली है, मुझे क्या करना चाहिए? 
  2. मेरे अधिकार क्या हैं? क्या मैं तलाक ले सकता हूँ? यदि हाँ तो कितने समय बात और किन किन कारणों से?
  3. क्या मैं किसी प्रकार का नोटिस दे कर उसे वापस बुला सकता हूँ। 
  4. यदि वह वापस आती है तो क्या मुझे कानूनी मदद लेना चाहिए ताकि वह बार बार ऐसा नहीं करे?
 समाधान —
प ने अपनी सारी समस्या रखी है, लेकिन यह नहीं बताया कि आप की पत्नी की शिकायतें क्या हैं? यदि आप यह बताते कि आप की पत्नी की शिकायतें क्या हैं, तो उन्हें ध्यान में रखते हुए समस्या का समाधान खोजा जा सकता था। वैवाहिक जीवन पति-पत्नी के सामंजस्य से चलता है। आप की कहानी से लगता है आप का परिवार एक संयुक्त परिवार है, जिस में पत्नी को अपने पति के साथ-साथ उस के परिवार के साथ सामंजस्य पैदा करना पड़ता है। सामंजस्य कभी एक तरफा नहीं होता। परिवार के सदस्यों को भी अपने बीच आए नए सदस्य के साथ तालमेल करना पड़ता है। परिवार के सभी सदस्य चाहते हैं कि वह उन की समझ के साथ परिवार में व्यवहार करे। यह सब कुछ समय में संभव नहीं होता। सब से सही रीति यह है कि घर में आई नव वधु को उस के हिसाब से रहने दिया जाए और धीरे-धीरे उसे अपने परिवार के माहौल में ढाला जाए। अक्सर ऐसा भी होता है कि विवाह को ले कर परिवार के लोगों की समाज के अनुकरण से दहेज आदि की बहुत सी आकांक्षाएँ होती हैं। वे सब कभी पूरी किया जाना संभव नहीं है। अपूर्ण आकांक्षाओं के कारण परिवार के सदस्य रोजमर्रा की बातों में और कभी कटाक्ष करते हुए अपनी बात कहते हैं जिस के कारण नव-वधु को बहुत ही बुरा महसूस होता है। यही नव-वधु के अपने ससुराल के परिवार में असामंजस्य का कारण बन जाता है। 
ब से पहले तो आप को यह जानना चाहिए कि ऐसे तो कोई कारण नहीं हैं। यदि ऐसे कारण हैं तो उन्हें दूर करने का यत्न करना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि आप को तलाक के बारे में सोचने की जरूरत है। आप को अपने परिवार को जमाने और बसाने के बारे में सोचना चाहिए और उस के लिए प्रयत्न करने चाहिए। 
र्तमान में आप के पास विवाह विच्छेद का कोई आधार उपलब्ध नहीं है। यदि आप विवाह विच्छेद के सभी आधारों को जानना चाहते हैं तो आप को हिन्दू विवाह अधिनियम का अध्ययन कर लेना चाहिए। हिन्दू विवाह अधिनियम की पुस्तक हिन्दी में किसी भी विधि पुस्तक विक्रेता के यहाँ उपलब्ध हो जाएगी, या फिर आप को अपने नजदीक के किसी विश्वसनीय वकील से सलाह करनी चाहिए।
दि आप का अपनी पत्नी और उस के मायके वालों के साथ संवाद ही नहीं है तो आप स्वयं या वकील के माध्यम से दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन के लिए अपनी पत्नी को रजिस्टर्ड ए.डी. डाक से नोटिस भिजवा दें। यदि नोटिस का कोई उत्तर आता है और संवाद स्थापित होता है तो आप बातचीत कर के अपनी पत्नी को ला सकते हैं। कोई संवाद स्थापित न होने पर आप किसी वकील की मदद से हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए परिवार न्यायालय में और आप के क्षेत्र के लिए परिवार न्यायालय न हो तो जिला न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। वहाँ समझाइश और सुनवाई के बाद दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री प्राप्त की जा सकती है। यदि इस डिक्री के उपरांत भी एक वर्ष तक आप की पत्नी आप के साथ आ कर न रहे तो फिर आप इसी आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री हेतु आवेदन कर सकते हैं।

अन्याय को देर तक सहन न करें, तुरन्त कार्यवाही करें।

समस्या--

मेरी शादी दिसम्बर 2006 में हुई थी। शादी के पहले दिन से ही मेरी सास और ननदों का व्यवहार मेरे प्रति अच्छा नहीं था। उन लोगों ने मुझ से धोखे से बहाना बनाते हुए कई बार पैसे ले लिए हैं। सास के साथ रहते हुए मेरा 2 बार इन लोगों की वजह से गर्भपात हो गया जो मुझे अब समझ में आ रहा है कि ये लोग बच्चा नहीं चाहते थे। मेरी सास और ननद के व्यवहार के चलते मैं और मेरे पति अलग किराए का घर लेकर रहने लगे। 2010 में मेरा बेटा हुआ तब मैं मेरे मायके आई कुछ दिन के लिए। जब वापस गयी तो पता चला की मेरे घर का सारा सामान एक एक बर्तन भी मेरे पति ने बेच दिया है। मेरी कार जो मेरे नाम से रजिस्टर्ड थी उसको भी ड्यूप्लीकेट साइन बना कर बेच दिया। मेरे पति के दूसरी लड़की के साथ भी रिश्ता है। अब मेरा पति मुझे मेरे मायके मे छोड़ कर भाग गया है। मुझे तलाक़ चाहिए और मैं यह चाहती हूँ कि मेरे ससुराल वालों को सज़ा भी मिले। इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

समाधान-

म यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इस हालत में आप इतने दिन क्या करती रहीं। आप के साथ इतना अन्याय हुआ है, आप को तो बहुत पहले कार्यवाही करनी चाहिए थी।

प के मामले में सब कुछ है। आप का स्त्रीधन जो आप के पति के पास था उस ने बेच कर ठिकाने लगा दिया। उस ने जिस तरह का व्यवहार किया वह क्रूरता की श्रेणी में आता है। कार को आप के फर्जी हस्ताक्षर कर के बेच दिया। आप का पति आप को मायके में छोड़ कर चला गया।

प तुरन्त स्थानीय वकील से सलाह कीजिए तथा विवाह विच्छेद के लिए आवेदन प्रस्तुत करिए आप को विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो जाएगी। इस के अतिरिक्त आप का स्त्री-धन खुर्द-बुर्द कर देने और फर्जी हस्ताक्षर कर के कार को बेच देने आप के साथ क्रूरता का व्यवहार करने के लिए पुलिस में रिपोर्ट लिखाइये या फिर न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत करिए। देर मत कीजिए

विवाह का प्रथम वर्ष पूर्ण होने तक विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत करना संभव नहीं।

समस्या
मेरी शादी 20 जनवरी 2014 को जोधपुर निवासी अनिल से हुई थी| शादी से पहले उनलोगो ने सब रस्में, शर्ते (जैसे लड़की को टाइम-टाइम पर पीहर आने-जानेदेंगे, दहेज़ नहीं चाहिए, घूंघट नहीं) जैसी बातों के लिए साफ़ कर लिया था| लेकिनवर पक्ष ने हम से कुछ बातें छिपाई जैसे उन का मकान किराये का है,लड़का दिमागसे स्वस्थ नहीं है, काम पर नहीं जाता,कर्जे में डूबा हुआ है,तलाकशुदाहै,अपराधी प्रवृति का है,उस की शादी शुदा बहन अपना घर तोड़ के बैठी हुईहै,उस की माँ एक इंसानियतहीन,बद्दजुबां,फूहड़ औरत है|मेरा रिश्ता वैवाहिकविज्ञापन से हुआ है जिस में लड़के के मामा और मेरे दूर के चाचा मध्यस्थ थे|विदाईके बाद जैसे ही मैं अपने ससुराल पहुंची,उन लोगों का असली रंग सामने आने लगा।उन्होंने अपने और मेरे पीहर के दिए हुए सोने-चांदी के गहने अपने कब्ज़े मेंकर लिए और मेरे साथ घरेलू हिंसा करने लगे| अपशब्द,रिश्तेदारों मेंगालियां,फ़ोन से मेरा संपर्क पीहर से काटना, मेरी डिग्रीयां मंगा के उस पे 20 लाख का लोन निकलवाने की साज़िश,मुझ पे हाथ उठाना,मुझे रसोई व घर के कामों कोले के नीचा दिखाना,मुझे नज़रबंद रखना आदि| मेरा पति अपने व मेरे बड़ों कातथा मध्यस्थ का कहना भी नहीं मान रहा| ऐसे में शादी के 45 दिनों बाद हीमेरे पापा मुझे अचानक आ के ससुराल से पीहर ले आये|
हाँ आने के कुछ दिनोंबाद मेने “महिला सुरक्षा व सलाह केंद्र” में इस बाबत शिकायत दर्ज करवाईतथा मेरे पति के साथ ना रहने का फैसला लिया। क्यूंकि ससुराल में मेरी जानजाने का खतरा है| इस बीच मेरे पति ने मेरे रिश्तेदारों में मुझे बदनाम करनेकी कोशिश की तथा सलाह केंद्र की सलाहकार के बुलाने पर बहुत मुश्किल सेयहाँ आया| पहली मीटिंग में तो वो आपसी सहमती से अलग होने व दहेज़ का सामानवापस करने को राज़ी हो गया। किन्तु दूसरी बार में उस ने मेरा 5 तोला सोना तथा 1.5 लाख रुपए के सामान व उपहार वापस देने से साफ़ मना कर दिया| वह पेशे सेवकील है और सब क़ानून जानता है ,फिर भी वो हमे परेशां करने व बदनाम करनाचाहता है| अब मुझे क्या करना चाहिए? कृपया कुछ सलाह दें|
समाधान-
प के पति ने आप का स्त्री-धन देने से इन्कार किया है, इस तरह वह धारा 406 आईपीसी के अन्तर्गत अमानत में खयानत का दोषी है, जिस तरह का व्यवहार उस ने व उस के परिवार ने आप के साथ वह धारा 498-ए का भी दोषी है। आप को चाहिए कि आप तुरन्त उक्त दोनों धाराओँ के अन्तर्गत मुकदमा दर्ज कराएँ, साथ ही घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-12 एवं दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-125 के अन्तर्गत भरणपोषण की राशि प्राप्त करने के लिए तुरन्त आवेदन प्रस्तुत करें।
जिन परिस्थितियों का आप ने उल्लेख किया है उन में आप का अपने पति के साथ जीवन व्यतीत करना संभव प्रतीत नहीं होता। चूंकि आप का विवाह हुए अभी एक वर्ष नहीं हुआ है इस कारण से आप विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत नहीं कर सकती। विवाह को एक वर्ष हो जाने के उपरान्त आप विवाह विच्छेद के लिए भी आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं। यदि आप को लगता है कि आप का पति आप के साथ कोई जबरदस्ती कर सकता है तो विकल्प में आप हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-10 के अन्तर्गत न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं।

न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के लिए आवेदन करें . . .

समस्या---
मेरी एक मित्र की शादी 25-4-2012 को हुई है, उसकी शादी के कुछ दिन का बाद ही उस की वाइफ हर बात पर झगड़ा करने लगी।  वो ये कहती है कि मेरी शादी तुम्हें देख कर नहीं हुई है तेरी प्रॉपर्टी देख कर हुई है तो मुझे प्रॉपर्टी में आधा हक चाहिए। शादी में मेरे दोस्त की माँ  ने अपनी बहू को काफ़ी गोल्ड ज्वेलरी चढ़ाई थी वो ये भी बार बार मांगती है कि मैं अपनी माँ के पास रखूंगी। वह इन बातों को ले कर सभी को तंग करती है। बात बात पर घर छोड़ कर चली जाती है। एक बार पुलिस स्टेशन चली गई थी। जिसकी वजह से वो लोग डर कर  बहू-बेटे को अलग कर दिया। ताकि वो समझने लगे।  अलग होने के बाद भी वह वही बात बार बार कहती है। कई बार तो पुलिस में शिकायत भी कर चुकी है कि मेरा पति मुझे मारता है।  अभी उसका  एक बच्चा है जो कि 7 माह का है। सब को लगा कि वो बच्चा होने के बाद बदल जाएगी पर इस का उलटा हुआ। अब तो ये कहती है की मुझे गहने दो नहीं तो बच्चे को जान से मार डालूंगी और ये कहूँगी कि मेरे पति ने दहेज के लिये अपने बच्चे को मार दिया है।  इतना सब हो जाने के बाद अब वो पत्नी के साथ नहीं रहना चाहता है पर वो फिर से वापस आना चाहती है पर पति तैयार नहीं है। कहता है कि उसके साथ रहने में उस की जान को भी खतरा है। अब वो उस लड़की से तलाक लेना चाहता है और बच्चा भी लेकिन पत्नी तलाक़ नहीं देना चाहती है। साथ में रहने के लिए भी पुलिस में शिकायत कर के आई है। लड़की पाँच बार पुलिस में शिकायत कर चुकी है। पर लड़के वालों ने कुछ भी नहीं किया है सिर्फ़ अपनी साफ़्टी का लिया 2 बार न.सी. किया है। अब क्या लड़की से तलाक़ लिया जा सकता है?
समाधान-
दि आप के मित्र की पत्नी उस की सास द्वारा चढ़ाए गए गहने मांगती है तो उस में कुछ गलत बात नहीं है। वे गहने यदि उसे उपहार में मिले हैं तो स्त्री-धन हैं तथा उस की संपत्ति हैं। वह उन्हें मांग सकती है। नहीं देने पर यह अमानत में खयानत होगी जो कि धारा 406 आईपीसी के अंतर्गत एक अपराध है। हाँ, यदि इस में कोई शंका हो कि पत्नी यह सब किसी झगड़े के उद्देश्य से या अन्य किसी कारण से ऐसा कर रही है तो उसे कहा जा सकता है कि पति-पत्नी के नाम से बैंक में एक लॉकर ले कर रख दिए जाएँ जिसे दोनों के साथ जाए बिना नहीं खोला जा सकता हो। वैसी स्थिति में गहनों पर दोनों का संयुक्त नियंत्रण स्थापित हो सकता है।
लेकिन उस का यह कहना की मेरी शादी तुम्हें देख कर नहीं बल्कि तुम्हारी प्रोपर्टी देख कर हुई है तो यह पति के साथ हद दर्जे की क्रूरता है। बार बार बिना किसी कारण के पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना भी क्रूरतापूर्ण व्यवहार है। बच्चे को मार डालने की धमकी देना तो निहायत दर्जे का क्रूरतापूर्ण व्यवहार है। इन कारणों से पति अपनी पत्नी से अलग रह सकता है।
न परिस्थितियों में पति को चाहिए कि वह हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के लिए अदालत में आवेदन करे कि मैं अपनी पत्नी के साथ नहीं रह सकता तथा बच्चे की अभिरक्षा के लिए भी आवेदन प्रस्तत करे। इन आवेदनों में उसे यह भी कहना होगा कि वह पत्नी को उसी मकान में जिस में अभी वह रहता है रहने का पूरा खर्चा उठाएगा। इस तरह न्यायालय से सारी परिस्थितियाँ होते हुए भी वह न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित करवा सकता है। डिक्री पारित होने पर पृथक रह सकता है। बच्चे की अभिरक्षा मिल जाए तो उसे भी अपने साथ रख सकता है। लेकिन इस के लिए उसे सारी परिस्थितियों को प्रमाणित करना होगा। यदि बाद में भी परिस्थितियाँ ऐसी ही रहें तो लंबे न्यायिक पृथक्करण के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री के लिए भी आवेदन किया जा सकता है। इस कार्यवाही के लिए किसी अच्छे स्थानीय वकील की सहायता लेनी होगी।
ह सब करने के पहले पति को अपनी पत्नी या पुलिस कार्यवाही से डरना छोड़ना पड़ेगा। अधिकांश मामलों में पतियों को असफलता इसी लिए प्राप्त होती है कि वे पुलिस कार्यवाही से तथा पत्नी द्वारा किए जाने वाले फर्जी मुकदमों से भयभीत रहते हैं। यह फिजूल का भय त्यागना होगा और पत्नी यदि ऐसा करती है तो निर्भय हो कर उस का मुकाबला करना होगा।

पति और ससुराल वालों ने क्रूरता का व्यवहार किया है तो उस की रिपोर्ट जरूर दर्ज कराएँ।

समस्या-
मेरी शादी हिंदू रीति रिवाज से राजेश लववंशी से ग्राम छनेरा, जिला खंडवा में हुई थी। हमारा 1साल का बेटा है। मेरी समस्या यह है कि मेरे ससुराल वालों ने मुझे शादी के 2 महीने के बाद से मारना पीटना शुरू कर दिया था। पर ये सोच कर मेरे मायके में नहीं बताया कि मेरे मायके वाले बहुत ग़रीब ओर सीधे सादे हैं और मेरे ससुराल वाले बहुत अमीर हैं। सभी जगह उन लोगों की काफी पहचान है। अधिकतकर काम पैसों से करवाते हैं। मुझे 15 जुलाई 2013 को घर से राजेश की बहन ने मेरे पति के कहने पर मार मार कर बच्चे सहित निकाल दिया। मेरे पति की टूरिंग जॉब है सेलेरी 250000/- रूपए है। वो उस समय टूर पर थे। मेरे पति ने मेरी झूठी रिपोर्ट 17 जुलाई 2013 को थाने में लिखवाई। मुझे जब घर से निकाला तब मुझे समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूँ। उस समय मेरी हालत बहुत खराब थी। मैं खंडवा की बस में बैठी जहाँ पर मैं और मेरा परिवार रह चुका है। खंडवा अपने दोस्त के घर जिसे मेरा परिवार जानता है उस के किराए के रूम पर सिर्फ़ अपने बच्चे के साथ 7 दिन तक रही। पुलिस ने मेरा बयान दबाब दे कर बदल लिया और मुझे उस में चरित्रहीन साबित कर दिया। साथ ही मुझ पर चोरी का इल्ज़ाम लगा दिया। मेरे परिवार वालों को धमकी दी कि हमारे विरोध में कुछ मत कहना नहीं तो हम तुम्हारी बेटी को नहीं ले जाएंगे। मेरा परिवार भी मेरा दूसरी बार घर बस जाए इस लिए मेरे ससुराल वाले जैसे बोलते गये वैसा करता गया। मुझसे भी वैसा ही करवाया। मैं 3 महीने अपने मायके में रही। उस के बाद इंदौर अलग से किराए के रूम में 6 महीने से अपने बेटे के साथ रह रही हूँ। मैं ने अदालत में भरण पोषण केस 20 ऑक्टूबर 2013 को लगाया है। मेरे पति ने लिखित जबाब में कहा है कि उसे जॉब से निकाल दिया गया है और वो अब बेरोज़गार है। मैं जानना चाहती हूँ कि मुझे और मेरे बेटे को गुजारा भत्ता मिलेगा या नहीं? मिलेगा तो कितना मिलेगा? ओर यदि तलाक़ चाहिए तो मिलेगा या नहीं? मेरे बेटे को हमेशा के लिए मैं रखना चाहती हूँ। इस के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा? इस में कितना सम लगेगा।  मेरी हालत बहुत कराब चल रही है। मेरी समस्या का समाधान जल्दी दें।
समाधान-
प के पति व ससुराल के सदस्यों ने आप के साथ अत्यधिक क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया है। उन का यह कृत्य धारा 198-ए आईपीसी में अपराध है। आप को इस के लिए पुलिस में रिपोर्ट करानी चाहिए या फिर अपने वकील की मदद से परिवाद प्रस्तुत कर पुलिस को भिजवाना चाहिए। जिस से अपराधियों के विरुद्ध कार्यवाही हो सके। उन के अपराध को साबित करने के लिए आप का बयान भी पर्याप्त है।
प भरण पोषण का मुकदमा कर चुकी हैं। उस मुकदमे के बारे में आप के वकील आप को बेहतर बता सकते हैं कि उस में कितना समय लगेगा। लेकिन अन्तरिम रूप से भरण पोषण आरंभ करने के लिए आवेदन न दिया हो तो उसे अवश्य प्रस्तुत कराएँ और मामले में गवाहियाँ होने के पहले अन्तरिम भरण पोषण आरंभ कराएँ। पति को खुद साबित करना पड़ेगा कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया है। यदि साबित न कर सके तो आप को उस के वेतन के आधार पर पाँच हजार अपने लिए और पाँच हजार अपने बेटे के लिए प्रतिमाह तक गुजारा भत्ता मिल सकता है। कुछ तो अवश्य ही मिलेगा। अन्तरिम रूप से इतना नहीं मिलेगा।
प का बेटा आप के साथ है। उसे अपने पास रखने के लिए आप को कुछ नहीं करना है। यदि आप के पति उसे अपनी अभिरक्षा में लेने के लिए कार्यवाही करें तो आप को उस कार्यवाही में अपना पक्ष मजबूती से रखना है। बच्चे का भविष्य सदैव माँ के साथ बेहतर होता है और बच्चे की अभिरक्षा उसी को मिलती है जिसे मिलने में बच्चे की भलाई हो।
प को क्रूरतापूर्ण व्यवहार और अभित्यजन के आधार पर विवाह विच्छेद (तलाक) की डिक्री प्राप्त हो सकती है।
कुछ भी हो। लेकिन यदि आप को अपना जीवन सुधारना है तो स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा। यदि आप किसी तरह अपने पैरों पर खड़ी हो जाती हैं तो ही आप खुद को मजबूत पाएंगी। यदि आप अच्छा कमाने लगती हैं तो आप का भरण पोषण भले ही बन्द हो जाए लेकिन बच्चे का मिलता रहेगा।

लगभग हर स्त्री के पास धारा 498-ए व 406 भादंसं की शिकायत का कारण उपलब्ध रहता है।

समस्या-
मैं किसी कारणवश अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद (तलाक) ले रहा हूँ। मेरे ससुराल वाले मुझे झूठे मुकदमे में फँसाने की धमकियाँ देते हैं, जैसे घरेलू हिंसा, दहेज, मारपीट आदि।  उस के बाद मैं ने एस.पी. को लिखित में शिकायत दे दी। फिर भी उन्हों ने दहेज का केस कर दिया। दोषी कौन होगा? और सजा किस को और कितनी होगी?
समाधान-
ह एक आम समस्या के रूप में सामने आता है। सामान्यतः विवाह के उपरान्त यह मान लिया जाता है कि पति-पत्नी आपसी सहयोग के साथ सारा जीवन शांतिपूर्ण रीति से बिताएंगे। लेकिन विवाह इतनी आसान चीज नहीं है। विवाह के पूर्व स्त्री और पुरुष दोनों के ही वैवाहिक जीवन के बारे में अपने अपने सपने और महत्वाकांक्षाएँ होती हैं। निश्चित रूप से ये सपने और महत्वाकांक्षाएँ तभी पूरी हो सकती हैं जब कि पति या पत्नी उन के अनुरूप हो। यदि पति और पत्नी के सपने और महत्वाकांक्षाएँ अलग अलग हैं। वैसी स्थिति में दोनों में टकराहट स्वाभाविक है। लेकिन इस टकराहट का अन्त या तो सामंजस्य में हो सकता है या फिर विवाह विच्छेद में। दोनों परिणामों तक पहुँचने में किसी को कम और किसी को अधिक समय लगता है। ऐसा भी नहीं है कि परिणाम आ ही जाए। अधिकांश युगल जीव भर इस टकराहट और सामंजस्य स्थापित करने की स्थिति में ही संपूर्ण जीवन बिता देते हैं। अपितु यह कहना अधिक सही होगा कि पति-पत्नी के बीच सामंजस्य और टकराहटों के साथ साथ चलते रहने का नाम ही एक गृहस्थ जीवन है।  यदि सामंजस्य टकराहटों पर प्रभावी हुआ तो जीवन मतभेदों के बावजूद सहज रीति से चलता रहता है। लेकिन जहाँ सामंजस्य का प्रयास मतभेदों के मुकाबले कमजोर हुआ वहीं गृहस्थ जीवन की टकराहटें पहले पति-पत्नी के दायरे से, फिर परिवारों के दायरे से निकल कर बाहर आ जाती हैं।
ब आप ने सहज रूप से यह कह दिया है कि “मैं किसी कारणवश अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद (तलाक) ले रहा हूँ”। आप ने यह तो नहीं बताया कि आप तलाक क्यों ले रहे हैं? इस बारे में एक भी तथ्य सामने नहीं है। आप ने तो पत्नी के विरुद्ध घर, परिवार, बिरादरी से बाहर आ कर अदालत में जंग छेड़ दी है। हमारे यहाँ यह आम धारणा है कि प्यार और जंग में सब जायज है। यह धारणा केवल पुरुषों की ही नहीं है स्त्रियों की भी है। आप क इस जंग में दो  दो पक्ष हैं। एक आप का और आप के हितैषियों का जो आप के तलाक लेने के निर्णय से सहमत हैं और दूसरा पक्ष आप की पत्नी और उस के मायके वालों का। दोनों पक्षों के बीच जंग छिड़ी है तो जंग में जो भी हथियार जिस के पास हैं उन का वह उपयोग करेगा। आप की पत्नी के पक्ष ने उन के पास उपलब्ध हथियारों का प्रयोग करते हुए आप पर मुकदमे कर दिए हैं। अब जंग आप ने छेड़ी है तो लड़ना तो पड़ेगा।
प ने लिखा है कि उन्हों ने दहेज का केस कर दिया है। इस से कुछ स्पष्ट पता नहीं लगता कि क्या मुकदमा आप के विरुद्ध किया गया है। आम तौर पर पत्नियाँ जब पति के विरुद्ध इस तरह की जंग में जाती हैं तो किसी वकील से सलाह लेती हैं। वकील उन्हें धारा 498-ए और 406 आईपीसी के अंतर्गत न्यायालय के समक्ष परिवाद करने की सलाह देते हैं। इस के बहुत मजबूत कारण हैं। आम तौर पर पत्नियाँ पति के साथ निवास करती हैं। उन का सारा स्त्री-धन जो उन की कमाई से अर्जित हो, जो उन्हें अपने माता-पिता, रिश्तेदारों, पति व पति के रिश्तेदारों व अन्य किसी व्यक्ति से मिला है वह पति के घर रहता है। यह पति के पास पत्नी की अमानत है। आप उसे देने से इन्कार करते हैं तो वह अमानत में खयानत का अपराध है। जंग आ चुकी स्त्री वहाँ जितना सामान होता है उस से अधिक बताती है। पति देने से इन्कार करते हैं। धारा 406 आईपीसी का मुकदमा तैयार बैठा है। क्यों की उस का स्त्रीधन कितना था या कितना नहीं, या उस ने उस की मांग भी की थी या नहीं और पति ने उसे मांग पर देने से मना किया था या नहीं यह सब तो बाद में न्यायालय में तय होता रहेगा। उस समय तो पुलिस पत्नी और उस के गवाहों के बयानों को सही मान कर पति व उस के रिश्तेदारों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करती है और आरोप पत्र प्रस्तुत कर देती है।
धारा 498-ए का मैं अनेक बार अन्य पोस्टों में उल्लेख कर चुका हूँ। यह निम्न प्रकार है-

पति या पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विय में 
498क. किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना–जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
स्पष्टीकरण–इस धारा के प्रयोजनों के लिए,“ क्रूरता” निम्नलिखित अभिप्रेत हैः–

(क) जानबूझकर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकॄति का है जिससे स्त्री को आत्महत्या करने के लिए या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) के प्रति गंभीर क्षति या खतरा कारित करने के लिए उसे प्रेरित करने की सम्भावना है ; या
(ख) किसी स्त्री को तंग करना, जहां उसे या उससे सम्बन्धित किसी व्यक्ति को किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधिविरुद्ध मांग को पूरी करने के लिए प्रपीडित करने को दृष्टि से या उसके अथवा उससे संबंधित किसी व्यक्ति के ऐसे मांग पूरी करने में असफल रहने के कारण इस प्रकार तंग किया जा रहा है ।]
ब आप स्वयं भी देखें कि इस धारा में क्या है। यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को या किसी रिश्तेदार की पत्नी के प्रति ऐसा आचरण करता है जिस से उस स्त्री को आत्महत्या करने के लिए प्रेरणा मिलती हो या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) के प्रति गंभीर क्षति या खतरा उत्पन्न होता है या फिर उसे संपत्ति या अन्य किसी मूल्यवान वस्तु की मांग के लिए प्रपीड़ित करने के लिए तंग करता है तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
स धारा को पढ़ने के बाद सभी पुरुष एक बार यह विचार करें कि इस धारा में जिस तरह स्त्री के प्रति क्रूरता को परिभाषित किया गया है, क्या पिछले तीन वर्ष में कोई ऐसा काम नहीं किया जो इस धारा के तहत नहीं आता है। कोई बिरला पुरुष ही होगा जो यह महसूस करे कि उस ने ऐसा कोई काम नहीं किया। यदि कोई यह पाता है कि उस ने अपनी पत्नी से उक्त परिभाषित व्यवहार किया है तो फिर उसे यह भी मानना चाहिए कि उस ने उक्त धारा के अंतर्गत अपराध किया है। यदि इस अपराध के लिए उस के विरुद्ध शिकायत नहीं की गई है तो यह उस की पत्नी की कमजोरी या भलमनसाहत है। इस से यह तात्पर्य निकलता है कि लगभग हर पत्नी इस तरह की क्रूरता की शिकार बनती है लेकिन शिकायत नहीं करती इस कारण उस के पति के विरुद्ध मुकदमा नहीं बनता है। लेकिन यदि स्त्री को युद्ध में लाए जाने या चले जाने के बाद ये दो हथियार तो उस के पास हैं ही, जिन का वह उपयोग कर सकती है। और भला करे भी क्यों नहीं?
ब के मूल प्रश्न का उत्तर दिया जाए कि ‘उन्हों ने दहेज का केस कर दिया। दोषी कौन होगा? और सजा किस को और कितनी होगी?’ उक्त धाराओं में पहले स्त्री न्यायालय में शिकायत प्रस्तुत करती है, फिर पुलिस उस पर प्राथमिकी दर्ज कर उस का अन्वेषण करती है और न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र दाखिल करती है। फिर न्यायालय आरोपों पर साक्ष्य लेता है, और दोनों पक्षों के तर्क सुनता है तब निर्णय करता है कि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप प्रमाणित है या नहीं। प्रमाणित होने पर दंड पर तर्क सुनता है और अंतिम निर्णय करता है। लेकिन आप चाहते हैं कि आप को इतना बड़े मामले का निर्णय हम से केवल इतना कहने पर मिल जाए कि ‘उन्हों ने दहेज का केस कर दिया। दोषी कौन होगा? और सजा किस को और कितनी होगी?’ क्या इस तरह उत्तर कोई दे सकता है? नजूमी (ज्योतिषी) से भी यदि कोई सवाल किया जाए तो वह भी काल्पनिक उत्तर देने के पहले ग्रह नक्षत्र देखता है, उन की गणना करता है तब जा कर कुछ बताता है।  तो भाई इतने से वाक्य से तो बिलकुल संभव नहीं है कि आप के इस प्रश्न का उत्तर दिया जा सके।
प को यही सलाह दी जा सकती है कि आप ने भले ही किसी न किसी महत्वपूर्ण और सच्चे आधार पर अपनी पत्नी से विवाह विच्छेद चाहते हों और वह कितना ही सच्चा क्यों न हो, आप को अपने विरुद्ध मुकदमों को सावधानी और सतर्कता से लड़ना चाहिए। क्यों कि सजा तो हो ही सकती है।

केवल आत्मनिर्भर होना ही स्त्री के भविष्य की गारण्टी हो सकती है …

समस्या-
मेरी बहन का विवाह ११ साल पहले हुआ था लड़का ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था और अपने पिता के साथ ही काम करता था उनका देवबंद में स्कूल और कॉलेज है। हमने उनसे कहा के अगर कुछ ऊँच नीच हो गयी तो कौन जिम्मेदार होगा, लड़के के पिता ने कहा में पूरी तरह से मैं लड़के की तरफ से जिम्मेदार हूँ। शादी के कुछ दिनों के बाद से ही लड़का मेरी बहन से साथ बुरी तरह से मार-पीट करता आ रहा है अगर उससे पहले खाना कटे वक्त रोटी तोड़ ली तो लड़ने लगता है कि हम पुरूष प्रधान है और तू हमसे पहले रोटी नहीं तोड़ सकती, अगर घर में कुछ चीज़ इधर उधर हो जाये तो हिंसक तरीके से बर्ताव करता है।  शादी के बाद हमें पता चला कि उसको पागलपन का मेडिकल सर्टिफिकेट मिला हुआ है कहता है कि अगर में खून भी कर दूं तो मेरा कुछ नहीं बिगड सकता अगर लड़की अपने घर फोन पर बात करती है तो छुरी ले के खड़ा हो जाता है। एक बार मारपीट में लड़की की ऊँगली तोड़ दी जिसका डॉक्टर से उनके बाप ने इलाज कराया, दो बार घर से बाहर निकाल दिया लड़की दो तीन बजे तक घर से बहार सड़क पर अकेली रही और आप सो गया। आये दिन न जाने कितनी बार बिना बात के लड़की के झापड और उसका सर दीवार से दे दे के मारता है।
धर जब से ही उसका सम्बन्ध किसी और लड़की से भी है। हमने उसके पिता से बात की तो उन्होंने बताया के लड़के ने मेरे उपर भी हाथ उठाया है मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। बहन का एक लड़का भी है १० वर्ष का। अब हम लड़की को अपने घर ले आये हैं। जब हमने लड़के से और उसके पिता से लड़की के एक्स रे रिपोर्ट और मेडिकल पेपर, और डॉक्टर की प्रेस्क्रिप्शन मांगी तो उन्होंने देने से इंकार कर दिया। लड़के का बाप तो काफी हद तक ठीक है। लेकिन उस की माँ और बहनें आये दिन लड़ती है, अब हमें बताये कि हम लड़के के खिलाफ क्या क्या कर सकते हैं। हम पूरा खर्चा बहन का, बहन के लड़के का, रहने के लिए मकान वगैरा चाहते हैं। कृपया कर के हमें दिशा दें हम देहली में रहते है और लड़का देवबंद सहारनपुर का है। रूपये पैसो की लड़के वालो के पास कोई कमी नहीं है।
समाधान-
विवाह के समय या पहले जो भी वायदे किए जाते हैं उन का कोई अर्थ नहीं होता। न ही उन को मनवाया जा सकता है। विवाह के उपरान्त किसी भी स्त्री का आत्मनिर्भर होना ही उस के अच्छे भविष्य की गारंटी हो सकता है, उस के अलावा कोई चीज नहीं। यदि स्त्री आत्मनिर्भर नहीं है तो पति के ऊपर ही सब कुछ निर्भर है, वह अच्छा हुआ तो पत्नी का जीवन जन्नत है वरना दोजख तो है ही।  स्थिति यह हो चुकी है कि आप की बहिन अपने पति के साथ नहीं रह सकती। पति उस के साथ क्रूरता का व्यवहार करता है, यह उस के साथ न रहने का सब से मजबूत आधार है। आप बहिन को अपने पास ले आए यह आप ने बहुत अच्छा किया।
प की बहिन अपने लिए और अपने पुत्र के लिए भरण पोषण का खर्च मांग सकती है। जिस में रहने का मकान की व्यवस्था और बच्चे की पढ़ाई आदि भी सम्मिलित है। इस के लिए आप की बहिन दिल्ली में या नोएडा में जहाँ वह रहती है न्यायालय में धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत और घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। आप यह करवाएँ। इस के अतिरिक्त यदि हो सके तो प्रयत्न करें कि आप की बहिन स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो जाए।

अमानत को निज-उपयोग में ले लेना अमानत में खयानत का अपराध है।

समस्या-
मेरे पास किसी से कुछ पैसे अमानती तौर पर रखे हुए हैं।  मैंने उन्हें लिखित में दे रखा है कि- ” मैंने राजीव (काल्पनिक नाम) से 50,000.00 रूपये अमानती तौर पर लिए है और ये मेरे पास अब नहीं होने के कारन में इन्हें वापिस नहीं कर सकता लकिन मैं ये मेरे पास होने पर राजीव को लौटा दूंगा”। इस दस्तावेज पर मेरे, राजीव तथा दो गवाहों के हस्ताक्षर हैं। मैं इस बारे में कुछ बातें जानना चाहता हूँ-
1- क्या भुगतान के समय राजीव मुझ से ब्याज की मांग कर सकता है?
2- क्या राजीव मुझ पर किसी एक तारीख को पैसे लौटने का दबाव बना सकता है?
3-मेरे लिए पैसे लौटाने का कितना समय है?
4-मुझे पैसे किस तरीके से वापिस करने चाहिए नगद या चेक और भुगतान के समय क्या सावधानी बरतनी चाहिए ताकि वह कल को मुझ से दोबारा पैसे न वसूल सके।
समाधान-
प ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि आप के पास राजीव की उक्त 50,000.00 रुपए की राशि अमानत के बतौर रखी है।  अमानत का अर्थ अमानत होता है। उसे सुरक्षित रखना होता है। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की अमानत को व्यक्तिगत उपयोग में ले लेता है तो यह धारा 405 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत एक अपराध है जो धारा 406 के अंतर्गत दंडनीय है। ये दोनों उपबंध निम्न प्रकार है-
405. आपराधिक न्यासभंग–जो कोई सम्पत्ति या सम्पत्ति पर कोई भी अखत्यार किसी प्रकार अपने को न्यस्त किए जाने पर उस सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है या उसे अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेता है या जिस प्रकार ऐसा न्यास निर्वहन किया जाना है, उसको विहित करने वाली विधि के किसी निदेश का, या ऐसे न्यास के निर्वहन के बारे में उसके द्वारा की गई किसी अभिव्यक्त या विवक्षित वैघ संविदा का अतिक्रमण करके बेईमानी से उस सम्पत्ति का उपयोग या व्ययन करता है, या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का ऐसा करना सहन करता है, वह “आपराधिक न्यास भंग” करता है ।

1[2[स्पष्टीकरण 1–जो व्यक्ति 3[किसी स्थापन का नियोजक होते हुए, चाहे वह स्थापन कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 (1952 का 17) की धारा 17 के अधीन छूट प्राप्त है या नहीं, तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि द्वारा स्थापित भविष्य-निधि या कुटुंब पेंशन निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी-अभिदाय की कटौती कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से करता है उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसके द्वारा इस प्रकार कटौती किए गए अभिदाय की रकम उसे न्यस्त कर दी गई है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय का संदाय करने में, उक्त विधि का अतिक्रमण करके व्यतिक्रम करेगा तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है ।]
4[स्पष्टीकरण 2–जो व्यक्ति, नियोजक होते हुए, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34) के अधीन स्थापित कर्मचारी राज्य बीमा निगम द्वारा धारित और शासित कर्मचारी राज्य बीमा निगम निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से कर्मचारी-अभिदाय की कटौती करता है, उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसे अभिदाय की वह रकम न्यस्त कर दी गई है, जिसकी उसने इस प्रकार कटौती की है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय के संदाय करने में, उक्त अधिनियम का अतिक्रमण करके, व्यतिक्रम करता है, तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है ।]

दृष्टांत 
(क) क एक मॄत व्यक्ति की विल का निष्पादक होते हुए उस विधि की, जो चीजबस्त को विल के अनुसार विभाजित करने के लिए उसको निदेश देती है, बेईमानी से अवज्ञा करता है, और उस चीजबस्त को अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

(ख) क भांडागारिक है । य यात्रा को जाते हुए अपना फर्नीचर क के पास उस संविदा के अधीन न्यस्त कर जाता है कि वह भांडागार के कमरे के लिए ठहराई गई राशि के दे दिए जाने पर लौटा दिया जाएगा । क उस माल को बेईमानी से बेच देता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

(ग) , जो कलकत्ता में निवास करता है, य का, जो दिल्ली में निवास करता है अभिकर्ता है । क और य के बीच यह अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा है कि य द्वारा क को प्रेषित सब राशियां क द्वारा य के निदेश के अनुसार विनिहित की जाएगी । क को इन निदेशों के साथ एक लाख रुपए भेजता है कि उसको कंपनी पत्रों में विनिहित किया जाए । क उन निदेशों की बेईमानी से अवज्ञा करता है और उस धन को अपने कारबार के उपयोग में ले आता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

(घ) किंतु यदि पिछले दृष्टांत में क बेईमानी से नहीं प्रत्युत सद्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए कि बैंक आफ बंगाल में अंश धारण करना य के लिए अधिक फायदाप्रद होगा, य के निदेशों की अवज्ञा करता है, और कंपनी पत्र खरीदने के बजाए य के लिए बैंक आफ बंगाल के अंश खरीदता है, तो यद्यपि य को हानि हो जाए और उस हानि के कारण, वह क के विरुद्ध सिविल कार्यवाही करने का हकदार हो, तथापि, यतः ने, बेईमानी से कार्य नहीं किया है, उसने आपराधिक न्यासभंग नहीं किया है ।

(ङ) एक राजस्व आफिसर, क के पास लोक धन न्यस्त किया गया है और वह उस सब धन को, जो उसके पास न्यस्त किया गया है, एक निश्चित खजाने में जमा कर देने के लिए या तो विधि द्वारा निर्देशित है या सरकार के साथ अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा द्वारा आबद्ध है । उस धन को बेईमानी से विनियोजित कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
(च) भूमि से या जल से ले जाने के लिए य ने क के पास, जो एक वाहक है, संपत्ति न्यस्त की है । क उस संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

406. आपराधिक न्यासभंग के लिए दंड–जो कोई आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
स तरह आप ने जो कुछ लिख कर राजीव को दिया है उस में अमानत होना और उसे अपने स्वयं के उपयोग में परिवर्तित कर लेने की आत्मस्वीकृति दी हुई है।  आप ने यह भी लिखा है कि अभी मैं लौटा नहीं सकता लेकिन मेरे पास होने पर लौटा दूंगा।  इस तरह आप ने धारा 406 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध स्वीकार किया हुआ है। राजीव आप पर अमानत में खयानत अर्थात अपराधिक न्यास भंग के मामले में पुलिस को या न्यायालय को परिवाद प्रस्तुत कर सकता है जिस में धारा 406 भा.दं.संहिता का मामला दर्ज किया जा सकता है। आप की गिरफ्तारी हो सकती है और आप के विरुद्ध मुकदमा चलाया जा सकता है जिस में आप को सजा हो सकती है।
लेकिन इस का बचाव भी है। बचाव यह है कि अपराध आप ने किसी एक व्यक्ति के प्रति किया है जिस ने उसे क्षमा कर दिया है। राजीव ने उक्त लिखत के माध्यम से आप के साथ एक संविदा की है जिस के द्वारा अमानत को उधार में बदल दिया गया है तथा उस राशि को लौटाने के लिए तब तक की छूट आप को दी है जब तक कि उतना पैसा आप के पास न हो। यदि आप के विरुद्ध कोई फौजदारी मुकदमा दर्ज हो ही जाए तो उक्त तर्क के आधार पर न्यायालय आप को जमानत प्रदान कर देगा।  इसी आधार पर प्रथमसूचना रिपोर्ट भी रद्द हो सकती है।
ह आप से ब्याज नहीं ले सकता।   क्यों कि इस लिखत में ब्याज लेने की कोई बात नहीं है।  वह आप से रुपए मांग सकता है और कह सकता है कि आप निर्धारित समय में उक्त रुपया लौटाएँ अन्यथा वह आप पर धारा 406 का परिवाद करेगा और रुपया वसूलने की कार्यवाही अलग से करेगा।
मेरी आप को सलाह है कि इस जिम्मेदारी को जितना जल्दी हो आप पूरा कर दें। राजीव का पैसा लौटा दें और उस की रसीद ले लें तथा आप के द्वारा लिखा गया उक्त दस्तावेज अवश्य वापस ले लें।  रसीद और उक्त दस्तावेज लौटाए जाने की स्थिति में रुपये का भुगतान किसी भी प्रकार से चैक या नकद किया जा सकता है।  पर यदि आप यह भुगतान अकाउण्ट पेयी चैक से करें तो सब से बेहतर है। यदि वह अकाउंट पेयी चैक से भुगतान प्राप्त करने को तैयार न हो तो उसे बैंक ड्राफ्ट से भुगतान कर सकते हैं।

धारा 409 भा.दं.संहिता किन किन पर प्रभावी हो सकती है?

समस्या-
धारा 409 भारतीय दंड संहिता क्या सरकारी कर्मचारियों या अधिकारियों के ऊपर ही लग सकता है?
समाधान-
भारतीय दंड संहिता की धारा 409 लोक सेवक द्वारा या बैंकरव्यापारी या अभिकर्ता द्वारा आपराधिक न्यासभंग के बारे में है। अपराधिक न्यास भंग क्या है यह धारा 405 में परिभाषित किया गया है जो निम्न प्रकार है-
  1. आपराधिक न्यासभंगजो कोई सम्पत्ति या सम्पत्ति पर कोई भी अखत्यार किसी प्रकार अपने को न्यस्त किए जाने पर उस सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है या उसे अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेता है या जिस प्रकार ऐसा न्यास निर्वहन किया जाना है, उसको विहित करने वाली विधि के किसी निदेश का, या ऐसे न्यास के निर्वहन के बारे में उसके द्वारा की गई किसी अभिव्यक्त या विवक्षित वैघ संविदा का अतिक्रमण करके बेईमानी से उस सम्पत्ति का उपयोग या व्ययन करता है, या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का ऐसा करना सहन करता है, वह “आपराधिक न्यास भंग” करता है।
[स्पष्टीकरण 1]–जो व्यक्ति [किसी स्थापन का नियोजक होते हुए, चाहे वह स्थापन कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 (1952 का 17) की धारा 17 के अधीन छूट प्राप्त है या नहीं], तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि द्वारा स्थापित भविष्य-निधि या कुटुंब पेंशन निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी-अभिदाय की कटौती कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से करता है उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसके द्वारा इस प्रकार कटौती किए गए अभिदाय की रकम उसे न्यस्त कर दी गई है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय का संदाय करने में, उक्त विधि का अतिक्रमण करके व्यतिक्रम करेगा तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है।]
[स्पष्टीकरण 2]–जो व्यक्ति, नियोजक होते हुए, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34) के अधीन स्थापित कर्मचारी राज्य बीमा निगम द्वारा धारित और शासित कर्मचारी राज्य बीमा निगम निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से कर्मचारी-अभिदाय की कटौती करता है, उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसे अभिदाय की वह रकम न्यस्त कर दी गई है, जिसकी उसने इस प्रकार कटौती की है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय के संदाय करने में, उक्त अधिनियम का अतिक्रमण करके, व्यतिक्रम करता है, तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है।]
सी तरह धारा 409 निम्न प्रकार है-
  1. लोक सेवक द्वारा या बैंकरव्यापारी या अभिकर्ता द्वारा आपराधिक न्यासभंगजो कोई लोक सेवक के नाते अथवा बैंकर, व्यापारी, फैक्टर, दलाल, अटर्नी या अभिकर्ता के रूप में अपने कारबार के अनुक्रम में किसी प्रकार संपत्ति या संपत्ति पर कोई भी अख्त्यार अपने को न्यस्त होते हुए उस संपत्ति के विषय में आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह [आजीवन कारावास] से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
स से स्पष्ट है कि धारा-409 भारतीय दंड संहिता केवल सरकारी अधिकारियों या कर्मचारियों पर प्रभावी नहीं है अपितु उस में सभी लोक सेवक, बैंकर, व्यापारी, आढ़तिया, प्रतिनिधि, दलाल, मुख्तार आदि शामिल हैं। इन में से किसी पर भी कोई संपत्ति न्यस्त होने और न्यासभंग करने पर वह धारा 409 भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत दंडनीय अपराध करता है।

क्या बिना तलाक के गुजारा भत्ता मिल सकता है?

समस्या-
मेरी शादी 18 फरवरी 2011 को हुई थी।  मेरे पति एक ठेकदार हैं।  हमारी शादी एक प्रेम विवाह था जो अरेंज तरीके से हुआ था।  मैं आठ माह तक ससुराल में रही।  मेरे पति और उन के छोटे भाई की शादी साथ-साथ ही हुई थी।   देवरानी जल्दी ही गर्भवती हो गई, जिस के कारण सभी उसे चाहने लगे।  धीरे-धीरे मुझे और मेरे पति को ताने दिए जाने लगे।  19 नवम्बर 2011 को मेरे पति और मेरे सास-ससुर के बीच अनबन हो गई और हम दोनों उसी दिन घर छोड़ कर मेरे मायके के में आ गए।  यहाँ केवल मेरी माता जी रहती हैं और कोई नहीं रहता।  माँ का स्वास्थ्य भी खराब रहता है और उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं है।  हम चार माह वहाँ शान्तिपूर्वक रहे।  फिर मेरे सास-ससुर के फोन मेरे पति के पास आने लगे। कुछ दिन बाद मेरे पति मुझ से झगड़ा करने लगे और दिनांक 23.03.2012 को वे हमारी सगाई और विवाह में ससुराल से मुझे भेंट किए गए जेवर मुझ से झगड़ा कर के ले गए।  अपने पिताजी के यहाँ जा कर फोन पर मुझ से कहा कि अब यहाँ मत आना।  माँ पापा  तुझे रखना नहीं चाहते।  इसलिए मैं भी तुझ को रखना नहीं चाहूंगा। मुझे तुम से तलाक लेना है।  मैं तनाव में आ गई और मैं ने कोतवाली में समझौते के लिए आवेदन किया। जहाँ मेरी सास और मेरे पति मुझे अपने घर ले जाने के लिए मान गए।  लेकिन फिर फोन कर के धमकाया कि यहाँ आने की सोचना भी मत, यहाँ आ गई तो तुझे जान से मार देंगे।  धमकी के कारण मैं ससुराल नहीं गई।  मेरी माँ का स्वास्थ्य़ भी ठीक नहीं रहता।  उसे भी देखभाल करने की जरूरत है।  हम दो बहनें हैं दीदी की शादी हो चुकी है और वे माँ के पास आ कर नहीं रह सकती।  माँ के घर की भी देखभाल करने वाला कोई नहीं है जिस से मुझे बहुत परेशानी हो रही है।  अब मैं क्या करूँ?  क्या मुझे पति से बिना तलाक लिए मुआवजा मिले
समाधान-
प के और आप के पति के बीच प्रेम नहीं आकर्षण था।  आप के पति की जिद पर उन के माता-पिता मान गए और आप की शादी अरेंज तरीके से हो गई।  आप के पति के माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह होने के कारण आप के पति और आप से नाराज थे।  छोटे बेटे की पत्नी के गर्भवती होने के कारण उन्हें आप को ताने मारने का अवसर मिल गया।  आप के पति आप के साथ पिता का घर छोड़ कर आप के मायके आ गए।  लेकिन चार माह दूर रहने पर बेटे की याद सताने लगी और आप के माता-पिता ने उन्हें आप के बिना वापस आने को मना लिया।  हो सकता है इस के पीछे आप के पति की कोई आर्थिक मजबूरी रही हो, उन के पिता ने कोई धमकी दी हो कि वे आपके पति को अपनी जायदाद से वंचित कर देंगे।  हो सकता है कोई अन्य कारण ऱहा हो जिसे आप बेहतर समझ सकती हैं।
कोतवाली में पति और सास आप को अपने घर रखने को मान गए।  लेकिन बाहर आते ही फिर धमकी दे दी।  इस से ऐसा लगता है कि अभी आप के पति और आप के बीच बहुत बाधाएँ हैं।  लेकिन अभी आप के पति ने आप के विरुद्ध तलाक का मुकदमा नहीं लगाया है।  भविष्य में कोई स्थिति ऐसी भी आ सकती है कि वे आप के साथ रहने लगें।   आप तलाक लेना नहीं चाहती हैं, आप के पति के पास कोई ऐसा आधार नहीं है जिस से वे आप से तलाक ले सकें।  बिना दोनों की सहमति के तलाक संभव नहीं है।
प को ससुराल से उपहार में मिले जेवर आप की संपत्ति हैं, जिन्हें आप के पति अपने साथ ले गए हैं। वे जेवर तथा आपको अपने मायके से व अन्य व्यक्तियों से प्राप्त वस्तुएँ जो आप के पति के घर में छूट गई हैं आप के पति के पास आप की अमानत हैं।  आप उन वस्तुओँ को अपने पति से मांग सकती हैं।  आप के पति या आप की सास या ससुर इन जेवरों और वस्तुओँ को देने से इन्कार करें तो यह धारा 406 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध है। आप पुलिस में इस के लिए रिपोर्ट लिखा सकती हैं या न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर सकती हैं।  इस मामले मेँ आप के पति की गिरफ्तारी हो सकती है।
प के पति स्वयं आप के साथ अपने पिता का घर छोड़ कर आए थे और आप की माता के घर में शरण ली थी।  फिर वे स्वयं ही आप को यहाँ छोड़ गए हैं। अब वापस नहीं आने देना चाहते।  आप भी माँ के प्रति अपना कर्तव्य निभाने के लिए वहाँ नहीं जाना चाहती हैं।  आप को इन कारणों से अपनी माता जी के पास रहने का अधिकार है।  आप के पति आप को अपने साथ लॉ जाना भी चाहें तो भी आप को माता जी के पास रहने का अधिकार है।  आप के पति के माता-पिता की देखभाल के लिए आप के देवर हैं।  आप के पति आप के साथ रहना चाहें तो आप के साथ आ कर रह सकते हैं, उस में कोई बाधा नहीं है।  वैसे भी यदि मकान आप के पिता का था तो उस में आपका भी एक तिहाई हिस्सा है।  आप अपने मकान में रह रही हैं जब कि आप के पति अपने पिता के मकान में रह रहे हैं।
प के पति कमाते हैं आप का भरण पोषण करना उन का दायित्व है।  आप उन से बिना तलाक लिए गुजारा भत्ता प्राप्त करने की अधिकारी हैं। आप दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-125 में न्यायालय के समक्ष गुजारा भत्ता प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं।  न्यायालय आप को गुजारा भत्ता दिला देगा।  आप के  इस आवेदन का निर्णय न्यायालय द्वारा साक्ष्य लेने और पूरी सुनवाई के उपरान्त किया जाएगा, जिस में समय लगेगा।  लेकिन आप के द्वारा निवेदन करने पर न्यायालय तुरंत भी अंतरिम गुजारा भत्ता आप को दिला सकता है।

सब से पहले अपने विरुद्ध कार्यवाही होने के भय को त्यागें और उचित कार्यवाहियाँ करें

समस्या--
मेरी शादी २०फ़रवरी २००८ में महमूदाबाद, जिला सीतापुर से हिन्दू रीतिरिवाज से हुई थी। उस समय मैं संगीत की पढ़ाई कर रहा था, जिसमे मैं ने हमेशा उच्च स्थान प्राप्त किया। किन्तु मेरे  भाग्य की विडंबना कुछ और ही थी।  मेरी पत्नी ने शादी की पहली रात में ही  यह बताया कि उसकी शादी बिना उस की मर्जी के हुई है, छोड़ दो नहीं तो फँस जाओगे। उस के बाद मैं ने उसे काफी समझाया।  लेकिन वह मुझे गन्दी गन्दी गलियाँ देने लगी। तब  मैंने यथास्थिति से अपने  माता-पिता व  पत्नी के माता पिता को अवगत करवाया।  पत्नी के माता-पिता उनके अन्य रिश्तेदार भी साथ में आये और उन्होंने ने भी समझाया।  परन्तु उनके जाते ही पत्नी के स्वाभाव में एकदम से उग्रता आ गयी और घर में रखी वस्तुएँ इधर उधर फेंकने लगी और गन्दी गन्दी गलियाँ देने लगी।  उस के बाद से ही स्थिति ऐसी हो गई कि वह छत पर चढ़ कर चिल्लाती और अभद्रतापूर्ण वार्तालाप करती।  वह नए नए तरीकों से परेशान करती।  मेरे पिता हृदय, डायबिटीज व उच्चरक्तचाप रोगों से पीड़ित हैं तथा मेरी माता जी डायबिटिक व उच्चरक्तचाप से ग्रसित हैं।  रात में भी ३.०० बजे हो या दिन हो पत्नी को उन पर भी कोई दया नहीं आती।  हाथ जोड़ कर समझाने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।  बल्कि उसने मेरे ६५-७० वर्ष के माता पिता को धक्का दे दिया जिस से उन्हें काफी चोट भी लग गयी।  मेरे पिता जी को ह्रदयाघात होने के कारण  अस्पताल में एडमिट करवाना पड़ा।  यथास्थिति से जब उनके घर वालो को सूचित किया तो उन्होंने कहा कि बच्ची समझ कर माफ़ कर दें।   इस के बाद वो बक्सा जिस में हमारे परिवार द्वारा दिए जेवर व उपहार थे, उसे लेकर उनके पिता जी विदा कराकर चले गए।  बाद में पत्नी के पिता जी का फ़ोन आया कि वह अब बिलकुल सही हो गयी है।  हम विदा कराने गए तो वह एक बैग लेकर चलने लगी, मैंने पूछा के तुम्हारा बक्सा कहाँ है तो उस के पिता जी ने कहा कि हमें कल लखनऊ काम से आना है,आपकी गाड़ी में ले जाते नहीं बनेगा, हम कल आयेंगे तो लेते आयेंगे।  शादी के 5 वर्ष बीतने के बाद भी बक्सा वहीं है।  पत्नी के परिवार वाले बहाने बनाते हैं,  पूछने पर अब जान से मार देने  व  दहेज़ के केस में फ़ँसाने की  धमकियाँ देते हैं।  सभी परेशानियों को  देखते हुए  मैं विदा कराकर एक अन्य दूसरी जगह,  दूसरे घर में 10 जनवरी 2010 से पत्नी के साथ रहने लगा हूँ।  यहाँ पर मुझसे  बड़े एक भईया भाभी व उनकी 3 वर्ष की पुत्री भी रहती है।  दूसरे ही दिन से ही न तो वह मेरे लिए खाना ही बनाती है और ना ही अपने कमरे में आने देती है।  मेरे ऊपर थूकती है और जो भी हाथ में आता है वही मार  देती है।  कभी रसोई में बाथरूम कर देती है, ना, कभी आंगन में।  कभी रसोई  में नग्नवस्था में स्नान करती है।  छत के ऊपर टीन पर चढ़ कर चिल्लाने लगती है और उलटी सीधी हरकतें करती है।  मुझ पर भाभियों व माँ से शारीरिक संबंधों का आरोप लगाती है।  इस संदर्भ में उनके परिवार वालों को बुलाकर  लगभग  15-20 बार मीटिंग की गई।   जिसमे उन्होंने उसे समझाने की जगह उल्टा हम ही लोगो को डरया धमकाया कि वो जैसा करती है वैसा  करने दोस अन्यथा सब को  जेल में बंद करवा देंगे।  ससुराल वालों के इस व्यवहार से हम काफी दु:खी  हुए।   गत ३१.१०.२०११ को पत्नी ने कमरा  बंद करके मेरे बक्से में रखे हुए मेरे  लगभग २५- ३० कपडे निकाल कर उन में आग लगा दी।  जब मैंने धुआँ निकलते देखा तो मैंने दरवाजा खोलने की  कोशिश की।  परन्तु अन्दर से बंद होने की वजह से नहीं खोल पाया।   मैंने मोहल्ले वालों व भइया भाभी को  बुलाया जिनकी सहायता से  दरवाजा तोडा गया तो देखा की वह किनारे खड़ी हंस रही है।  जिसके बाद मोहल्ले वालों की ही सहायता से आग पर नियंत्रण पाया गया।  जिसकी सूचना उनके घर वालों को दी तो उनका भाई, मौसा व मौसा का लड़का व अन्य रिश्तेदार आये और पुलिस में सूचना  देने के लिए मना  किया।    उल्टा मुझको मारा पीटा व रिवोल्वर दिखाकर जान से मार देने की धमकियाँ  दी।  उक्त घटना से हमारा परिवार व मोहल्ले वाले सभी काफी भयभीत थे।  मेरी पत्नी में कोई परिवर्तन नहीं हुआ बल्कि फ़ोन करके अपने  भाई को बुलवा कर व फ़ोन द्वारा लगातार धमकियाँ देती है।  काफी दुखी होकर अपने भविष्य व मानसिक प्रताड़ना से बचने हेतु मैंने 3 दिसम्बर 2011 को डी.आई.जी, सी.ओ. व ए.सी.ओ. महोदय को प्रार्थना पत्र डाक से प्रेषित किया जिस में सभी तथ्यों के पुष्ट होने पर  हिदायत दी गई।   परन्तु उसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा।  जिसके बाद  पत्नी के ज्यादा बीमार पड़ने की वजह से मैंने उसे एक सरकारी अस्पताल में दिखाया तो डाक्टर ने बताया कि आपकी पत्नी मानसिक रोग से शादी से पहले से ही पीड़ित है।  जिसकी दवाई कराइ थी परन्तु हम को नहीं बताया।  अपनी पत्नी में कोई भी सुधार न देख कर व धमकियों से परेशान होकर मैंने अगस्त 2012 में विवाह विच्छेद हेतु न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर दिया है।  अब भी पत्नी के परिवार वाले मुझको फ़ोन पर धमकियाँ देते हैं और आकर मारते हैं, मंत्री व पुलिस द्वारा प्रताड़ना दिलवाने  व दहेज़ के केस में बंद करवाने की बात कहते हैं।  उक्त सन्दर्भ में वो अपने काफी सौर्सेज बताते हैं।  वे लोग  काफी क्रिमिनल मानसिकता के व्यक्ति हैं उन के वहाँ बहू के साथ डिवोर्स हो चुका है और उसने (बहू) ने  भी इनके परिवार पर दहेज़ का केस किया था। वे अपने परिवार में ही कई अन्य मुकदमे लड़ चुके हैं और  अपने को बहुत बड़ा मुकदमेबाज बताते हुए कहते हैं कि ऐसे केस में फँसा  दूंगा जिस में जिंदगी भर जेल में सड़ोगे।   मेरे भईया-भाभी के विषय में कोई प्रार्थना पत्र  नहीं गया दिया है परन्तु मोहल्ले वालों के सामने गन्दी गन्दी गलियाँ व धमकियाँ  देती है व पत्नी के  घर वाले आकर अभद्रता करते हैं।  पत्नी  अभी भी मेरे घर पर ही है, मुझे लगातार प्रताड़ित करती है व करवाती है।  ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए? उचित मार्गदर्शन करें।
समाधान-
प की समस्या पढ़ी।  आप ने बहुत गलतियाँ की हैं।  आप की पत्नी ने विवाह के पहले ही दिन यह स्वीकार किया था कि विवाह उस की इच्छा के बिना हुआ है।  तो वह सही समय था जब आप को कदम उठाना चाहिए था।  यदि बिना विवाह की इच्छा के किसी महिला ने आप से विवाह किया था और वह आप को उसे छोड़ देने को कह रही थी तो तुरन्त उस का बयान कुछ गवाहों के बीच दर्ज करवाना चाहिए था।  पुलिस को भी सूचना देना चाहिए था कि उस के परिजनों ने उस का विवाह आप के साथ उस की इच्छा के बिना कर के गलती की है।  जबरन पुत्री का विवाह किसी के साथ करना पहला अपराध था जिसे आप ने माफ कर दिया।  यदि आप की पत्नी आप के साथ आरंभ से ही नहीं रहना चाहती थी तो आप ने भी उसे उस के माता-पिता के कहने से ही सही अपने पास रखा है।  यह भी एक गलती थी जो आप ने की।  इस के पीछे आप की यह मंशा रही हो सकती है कि विवाह मुश्किल से होता है और जब हो गया है तो उसे बनाए रखा जाए।  लेकिन यही आप के लिए मुसीबत की जड़ बना हुआ है।
जैसे जैसे आप की पत्नी की उग्रता बढ़ती गई वैसे वैसे आप ने उस के मायके वालों से शिकायत की।  लेकिन आप भारतीय समाज को तो जानते हैं न?  यहाँ बेटी को विवाह के बाद पराया समझा जाता है और उस के भी पहले बोझ।  कोई भी अपनी बेटी का विवाह होने के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों में उस पराई चीज को जो बोझ है वापस अपने घर में प्रवेश क्यों कर देगा? यही कारण है कि आप के ससुराल वाले चाहते हैं कि जैसे भी हो वह आप के साथ रहे, उस बीमार मुसीबत को वे अपने घर वापस क्यों लाएँ?  जैसे ही उन्हें अवसर मिला उन्हों ने आप की पत्नी का स्त्री-धन भी अपने पास रख लिया।  वे सोचते हैं कि अब आप के पास इस बात का कोई सबूत नहीं कि आप की पत्नी अपना स्त्री-धन मायके रख आई है।  भविष्य में यदि कोई विवाद हो तो स्त्री-धन की मांग कर के आप पर दबाव बनाया जा सके।
स मामले में आप की पत्नी और उस के मायके वाले लगातार आप का सहयोग करने के  स्थान पर आप को धमकाने और आप के साथ मारपीट करने के अपराधिक कृत्य कर रहे हैं।  होना तो यह चाहिए था कि जिस दिन पहली बार उन्हों ने अपराधिक कृत्य किया उस की तुरन्त पुलिस को सूचना दे कर कार्यवाही की जाती।  एक अपराधिक कृत्य को छुपा कर हम हमेशा अपराधी को बचा कर उस का हौसला बढ़ाने का काम करते हैं।  यही आप ने किया।  हो सकता है आप उन के द्वारा मुकदमों में फँसाए जाने से डर गए हों या फिर उन्हों ने जो रसूख आप को बता रखे हों उन से आप भय खाते हों। लेकिन आप को अंत में अदालत तो जाना पड़ा ही।  यदि आप पहले ही अदालत चले जाते और सही समय पर सही कार्यवाही करते तो आप को शायद यह दिन देखने को नहीं मिलते।  आप ने तलाक के लिए मुकदमा किया है।  आप के पास तलाक के पर्याप्त आधार उपलब्ध हैं।  आप के वकील ने आप के आवेदन में उन्हें अवश्य ही समाविष्ट किया होगा।  यदि आप पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत कर सके तो आप को तलाक मिल जाएगा।
लेकिन अब भी देर नहीं हुई है।  पुरानी कहावत है ‘देर आयद दुरुस्त आयद’। आप को चाहिए कि आप अब अपने ससुराल वालों से न डरें।  यह सही है कि वे भी आप के विरुद्ध कार्यवाही कर सकते हैं।  लेकिन कार्यवाही से डरने की जरूरत नहीं है। आरंभ में परेशानी जरूर होती है।  मुकदमा लड़ना पड़ता है पर अंत में सच ही जीतता है।  आप के पास तो मुहल्ले के लोगों की बहुत सारी सच्ची साक्ष्य है।  यदि अब आप के ससुराल वाले कोई धमकी देते हैं या मारपीट करते हैं तो तुरंत पुलिस को सूचना दीजिए।  पुलिस कार्यवाही न करे तो अदालत में परिवाद प्रस्तुत कीजिए।  आप के ससुराल वालों के कितने ही रसूख हों वे अदालत की कार्यवाही को नहीं रोक सकते और न ही आप के पक्ष की सच्ची साक्ष्य को समाप्त कर सकते हैं।  आप को हिम्मत रखनी होगी और कार्यवाहियाँ करनी होंगी।  जो भी परिस्थितियाँ हैं उन में आप अपनी पत्नी के साथ हमेशा नहीं रह सकते।
धिकांश, बल्कि कहिए कि लगभग सभी पुरुष इस बात से डरते हैं कि उन के विरुद्ध 498 ए और 406 आईपीसी का मुकदमा कर दिया जाएगा।  उन्हें और उन के रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।  लेकिन यह अर्ध सत्य है।  रिश्तेदारों के विरुद्ध आसानी से कार्यवाही नहीं होती।  यदि कोई मिथ्या प्रथम सूचना रिपोर्ट आप के विरुद्ध दर्ज भी कराई जाती है तो आप  धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता में उच्च न्यायालय को आवेदन कर के उसे निरस्त करवा सकते हैं।  इस बारे में अनेक न्यायिक निर्णय आ चुके हैं।  इसलिए सब से पहले अपने विरुद्ध होने वाली कार्यवाहियों का भय त्यागिए और उचित कानूनी कार्यवाहियाँ कीजिए।  बिना कुछ किए तो आप इस समस्या से बाहर निकल नहीं सकते।  इस मामले में आप तलाक लेने गए हैं और एक बार विवाह के पश्चात पति ही सब से नजदीकी रिश्तेदार है, इस कारण से तलाक लेने के उपरान्त भी जब तक आप की पत्नी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती है या उस का दूसरा विवाह नहीं हो जाता है आप को उस के भरण पोषण के लिए न्यायालय द्वारा निर्धारित राशि अदा करनी पड़ सकती है। तलाक के उपरान्त आप की पत्नी या तो उस के मायके वालों के साथ रह सकती है या फिर अलग अकेले रह सकती है।  लेकिन आप दूसरा विवाह कर सकते हैं।

ससुराल वालों को क्रूरतापूर्ण व्यवहार पर शर्म नहीं है तो पत्नी को तुरंत विवाह विच्छेद के लिए कार्रवाई करना चाहिए

म ने अपनी बेटी की शादी दो साल पहले इंदौर में की थी किन्तु उस के ससुराल वाले उसे मारपीठ करते हैं और मायके नहीं आने देते। हम छह माह पहले उसे मायके ले आए अब हम उसे भेजना नहीं चाहते हैं और ना ही बेटी जाना चाहती है। हम ने करीब दो लाख रुपए का दहेज दिया था। लड़के वाले दहेज नहीं लौटाना चाहते हैं और कहते हैं कि हम तो आप की लड़की को ऐसे ही रखेंगे उसे रहना हो तो रहे। 
म क्या करें? कृपया सलाह दें।
  उत्तर —
प की समस्या का मूल कहाँ है उसे जानने का प्रयत्न आप को करना चाहिए। एक तो आप ने यह जाने बिना कि आप जिस परिवार में अपनी बेटी का विवाह कर रहे हैं वह कैसा है और वहाँ आप की बेटी के साथ कैसा व्यवहार होगा उस का विवाह कर दिया। अब जब उस के साथ ससुराल में दुर्व्यवहार हो रहा है तो आप परेशान हैं। आप ने अपने प्रश्न में यह भी नहीं बताया कि बेटी के साथ उस के पति का क्या व्यवहार है? उस के साथ मारपीट किन बातों को ले कर होती है। 

खैर! कुछ भी हो कैसा भी कारण क्यों न हो किसी लड़की के साथ उस के ससुराल वालों और उस के पति को मारपीट करने का कोई कारण नहीं है। इस से बुरी बात और क्रूरता कोई और हो ही नहीं सकती। उस के बाद भी वे कहते हैं कि वे आप की बेटी को ऐसे ही रखेंगे, रहना हो तो रहे। तो ऐसी स्थिति में तो आप का अपनी बेटी को ससुराल नहीं भेजना ही उचित है।
प की बेटी के साथ मारपीट कर के ससुराल वालों ने क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया है। ऊपर से वे दहेज का सामान जो कि आप की बेटी का स्त्री-धन है देने से इन्कार कर रहे हैं। उन के ये दोनों कृत्य स्पष्ट रूप से भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए और 406 के अंतर्गत दंडनीय अपराध हैं। आप या आप की बेटी इस की रिपोर्ट उस पुलिस थाने को करवा सकते हैं जहाँ आप की बेटी की ससुराल है। इस के अलावा यदि इंदौर में महिला थाना स्थापित है तो वहाँ भी आप की बेटी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है। यदि पुलिस थाना आप की रिपोर्ट दर्ज नहीं करता है और दर्ज करने में आनाकानी करता है तो आप इलाके के एस.पी. से मिल कर  या रजिस्टर्ड डाक से शिकायत कर सकते हैं, वह रिपोर्ट दर्ज कर देगा। यदि यह भी नहीं होता है तो आप की बेटी सीधे न्यायालय में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती है। न्यायालय उस शिकायत को आप की बेटी के बयान ले कर या बिना बयान लिए ही पुलिस को अन्वेषण के लिए भेज सकता है।
स के अतिरिक्त आप की बेटी के साथ क्रूरता पूर्ण व्यवहार और हिंसा हुई है जिस के लिए आप  की बेटी महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत शिकायत प्रस्तुत कर सकती है। जहाँ से उसे प्रतिमाह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का आदेश पारित हो सकता है। निर्वाह भत्ते के लिए आप कार्यवाही परिवार न्यायालय में धारा-125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत भी कर सकते हैं। 
प की बेटी के पास उस के पति से तलाक लेने के मजबूत कारण हैं। उस के साथ हिंसा हुई है और कूरता पूर्ण व्यवहार हुआ है और उस
के पति और ससुराल वालों को उस पर कोई शर्म नहीं है। वे कहते हैं कि वे ऐसा ही करेंगे। तो ऐसली स्थिति में मेरा सुझाव है कि उक्त समस्त कार्यवाहियाँ करने के साथ ही आप की बेटी को तुरंत विवाह विच्छेद के लिए भी आवेदन कर देना चाहिए। यदि शीघ्र विवाह विच्छेद हो जाता है तो आप की बेटी किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर नया जीवन आरंभ करने की दिशा में आगे बढ़ सकती है।

तलाक की नहीं, आप की माता जी को घरेलू हिंसा कानून में कार्यवाही करनी चाहिए

 समस्या---
 मेरे पिता जी हमारे पूरे परिवार को बहुत तंग करते हैं और मेरी मम्मी को कुछ अधिक ही, उन्हें तो वे बुरी तरह मारते हैं। हमारे सामने तो उन की हिम्मत इतनी नहीं होती, फिर भी उन को मानसिक रूप से बहुत परेशान करते हैं। जब भी गाँव जाते हैं वहाँ उन को रोकने वाला कोई नहीं होता इस लिए वहाँ तो उन को काफी बुरी तरह मारते हैं। मम्मी परिवार के कारण कुछ नहीं बोलती थी। मगर कब तक? अब बर्दाश्त से बाहर है। कृपया मुझे तलाक के बारे में कुछ सूचनाएँ चाहिए। तलाक के बाद मम्मी को क्या क्या सुविधाएँ मिल सकती हैं? जरा विस्तार से बताएँ। 
 उत्तर – 
ह सिलसिला मुझे लगता है, आप के जन्म के पहले शायद आप के माता-पिता के विवाह के बाद से ही जारी है और आप की माता जी उसे तब से सहन करती आ रही हैं, उन्हों ने शायद ठीक से इस का प्रतिवाद भी कभी नहीं किया, यदि किया होता तो बात यहाँ तक नहीं पहुँचती, या तो आप के पिता सुधर जाते, या फिर आप के  माता जी और पिताजी  आज  तक साथ नहीं होते। जुल्म करने वाला कोई भी व्यक्ति सशक्त प्रतिरोध के बिना रुकता नहीं है। आप स्वयं कह रहे हैं कि आप के सामने आप के पिता जी की हिम्मत नहीं होती, क्यों कि आप बीच-बचाव में सामने आ जाते हैं। लेकिन आप ने भी शायद अपनी माता जी को सिर्फ मौके पर बचाया ही है। कभी आप के पिता की इस प्रवृत्ति का विरोध नहीं किया। आप को विरोध करना चाहिए था और वह तब तक सतत जारी रहना चाहिए था जब तक कि आप के पिता इस आदत को छोड़ नहीं देते। यदि आप अपनी माँ को इस यातना से बचाना चाहते हैं तो न केवल आप को इस बात का प्रतिरोध करना होगा अपितु अपनी माता जी को इस के लिए तैयार करना होगा।
स उम्र में इस समस्या का हल तलाक नहीं है। आप की माता जी और पिताजी दोनों ही अपने लिए  कोई नया जीवन साथी बनाने की मानसिकता नहीं रखते। आप भी सिर्फ यही चाहते हैं कि माता जी अलग हो जाएँ और पिताजी उन्हें कोई यातना नहीं दे सकें। तलाक से तो विवाह से आप की माता जी को प्राप्त अधिकार और छिन जाएँगे। तलाक के उपरांत आप की माता जी अपने पिता के परिवार में रहने उन की संपत्ति का उपयोग करने के अधिकार से वंचित हो जाएंगी। वे अधिक से अधिक एक मुश्त अथवा मासिक भरण-पोषण राशि की हकदार रह जाएंगी। मेरी राय में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम में वे सभी प्रावधान हैं जो आप की चिंता और माता  जी की परेशानी दूर कर सकती है। आप को अपनी माता जी से इस अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत आवेदन मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रस्तुत करवाना चाहिए।

रेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा-17 के अंतर्गत आप की माता जी को कौटुम्बिक गृह में रहने का अधिकार प्राप्त है और उन्हें उस से बेदखल नहीं किया जा सकता। धारा-18 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट आप के पिता जी को घरेलू हिंसा कारित करने से तथा अन्य किसी भी व्यक्ति को उन की इस काम में म

न्यायालय में मजबूत पैरवी ही आप के मुकदमों के निर्णय जल्दी करने में सहायक हो सकती 

समस्या---
मेरी शादी जनवरी 2003 में हुई। 6 माह बाद ही पत्नी ने संयुक्त परिवार से अलग रहना चाहा। मैं अपनी बहिन की शादी होने तक अलग नहीं हो सकता था। मैं ने अलग हो कर रहने से इन्कार कर दिया। इस पर वह घर छोड़ कर मायके चली गई। 2006 में बहिन की शादी हुई, उस में वह आई और बहिन की शादी के बाद हम परिवार से अलग  हो गए। कुछ समय बाद आर्थिक कठिनाइयाँ आने पर वह फिर अपने मायके चली गई। इस पर मैं ने धारा 9 में दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया। आवेदन प्रस्तुत करने के दो दिन बाद ही पत्नी ने घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत मेरे और परिवार के सदस्यों के विरुद्ध आवेदन प्रस्तुत कर दिया। अब वह किसी भी शर्त पर मेरे साथ नहीं रहना चाहती है और विवाह विच्छेद के लिए भी तैयार नहीं है। वह मुकदमों में अपनी साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं कर रही है और तारीख पर तारीख लिए जा रही है। कहती है कि इस तरह से तुम्हें फँसाए रखूंगी जिस से तुम दूसरी शादी न कर सको। मेरे पास क्या कानूनी विकल्प हैं?
 उत्तर –


आशीष जी,
प को घरेलू हिंसा के मुकदमे का तो सामना करना पड़ेगा। आप उसे प्रतिवाद कर के ही समाप्त करवा सकते हैं। आप के कहने के अनुसार किसी प्रकार की घरेलू हिंसा नहीं हुई है, ऐसी स्थिति में आप की पत्नी आप के विरुद्ध कुछ भी साबित नहीं कर पाएगी और मुकदमा अंततः खारिज हो जाएगा। आप का धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम का जो मुकदमा चल रहा है उस में आप को अपनी साक्ष्य प्रस्तुत करनी चाहिए और उस में दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री जितना शीघ्र हो सके प्राप्त करनी चाहिए। आप की पत्नी एक लंबे समय से स्वैच्छा से आप के साथ नहीं रह रही है। उस ने दाम्पत्य का लंबे समय से त्याग किया हुआ है, जिस का उस के पास कोई उचित कारण नहीं है। यदि दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री आप को प्राप्त हो जाए और आप की पत्नी उस के बाद भी आप के साथ रहने को तैयार न हो तो आप इसी आधार पर आधार पर धारा-13 के अंतर्गत विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं जिस में समय कम लगेगा।
दि आप को लगता है कि धारा-9 के आवेदन के निर्णय में देरी होगी तो आप अपने धारा-9 के आवेदन को धारा-13 के आवेदन में परिवर्तित करवा सकते हैं या उसे वापस ले कर नए सिरे से भी धारा-13 के अंतर्गत आवेदन कर सकते हैं। आप को विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत करने का यह काम शीघ्र करना चाहिए। यदि आप के और आप की पत्नी के मध्य सुलह की कोई संभावना हो भी तो वह धारा-13 के आवेदन से समाप्त नहीं हो जाएगी। न्यायालय उस आवेदन की सुनवाई के दौरान भी दोनों के मध्य सुलह कराने का प्रयत्न करेगा। न्यायालय के इस प्रयास से सुलह हो जाती है तो ठीक है, अन्यथा आप शीघ्र विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकेंगे।
प की दूसरी समस्या मुकदमों का लंबे समय तक चलते रहना है। आप समझते हैं कि आप की पत्नी किसी तरह जानबूझ कर आप के मुकदमे में देरी कर रही है और न्यायालय ध्यान नहीं दे रहा है। वास्तविकता यह है कि हमारे यहाँ न्यायालय संख्या में कम होने के कारण उन के पास काम का बहुत दबाव रहता है। पक्षकारों के दबाव के कारण उन्हें मुकदमों में पेशियाँ भी जल्दी जल्दी देनी पड़ती हैं। इस से उन पर दबाव और बढ़ता है। एक-एक दिन में पचास से सौ मुकदमे अदालत के सामने होते हैं, जब कि वे मुश्किल से 20 मुकदमों में काम करने लायक होते हैं। उन्हें अधिकांश मुकदमों में पेशी बदलनी ही पड़ती है। ऐसे में किसी पक्षकार को साक्ष्य प्रस्तुत करनी हो और वह न करना चाहे और विरोधी पक्षकार उस का विरोध न करे या मामूली विरोध करे तो न्यायालय उस मुकदमे में आसानी से तारीख बदल देता है। यदि आप की पत्नी किसी मुकदमे में साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर रही है कई पेशियाँ ले चुकी है तो आप न्यायालय को स्पष्ट रूप से मजबूती से कहें कि आप की पत्नी जानबूझ कर ऐसा कर रही है। वह आवश्यकता से अधिक अवसर ले चुकी है। अदालत को उसे साक्ष्य प्रस्तुत करने का और अवसर न देकर उस की साक्ष्य समाप्त कर देना चाहिए। स्वयं के साथ आप का भी जीवन खराब कर रही है, और आप मुकदमे का शीघ्र निर्णय चाहते हैं। आप के मजबूती से जोर देकर यह कहने में आप को न्यायालय के सम्मान का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इस के बाद भी यदि न्यायालय आप की बात नहीं सुनता है तो आप इसी बात को आवेदन के माध्यम से न्यायालय में लिख कर प्रस्तुत करें। प्रत्येक आवेदन न्यायालय के रिकार्ड पर रहता है। आप की बात न्यायालय को सुननी पड़ेगी। यदि फिर भी न्यायालय मुकदमे के निपटारे में देरी करता है तो आप उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को लिखित रूप में आवेदन भेज सकते हैं कि न्यायालय मुकदमे में कार्यवाही नहीं कर रहा है और इस से आप का जीवन खराब हो रहा है। यदि इस लिखित आवेदन का भी कोई लाभ न हो तो आप एक रिट याचिका प्रस्तुत कर आप के सभी मामलों में त्वरित कार्यवाही करते हुए निश्चित समय सीमा में मुकदमों के निर्णय करने के लिए उच्च न्यायालय से निर्देश जारी करवा सकते हैं। उच्च न्यायालय द्वारा निर्देश जारी करने पर न्यायालय को आप के मुकदमों के निर्णय निर्धारित की गई समय सीमा में करने होंगे। मुकदमों में मजबूत पैरवी ही आप के मुकदमों के निर्णय जल्दी करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। 

मेरे साथ अमानवीय व्यवहार हो रहा है, क्या मुझे तलाक मिल सकता है

मेरा विवाह 2004 में हुआ था, मैं नौकरी करती हूँ और हमारे साढ़े तीन साल का एक बच्चा है जो एक  पब्लिक स्कूल में पढ़ रहा है।  त्वचा बदरंग होने से मुझे विवाह के मामले में समझौता करना पड़ा। मेरा विवाह अंतर्जातीय है वे पंजाबी हैं और मैं पंडित हूँ। पति को पैर में परेशानी है। विवाह के पूर्व मुझे और मेरे माता-पिता को बताया गया था कि लड़के के पैर में परेशानी है लेकिन वह उच्च शिक्षित है, जिस का स्वयं का घर है, आर्थिक स्थिति सुदृढ़ है, वे साधारण लड़की चाहते हैं जो लड़के को संभाल सके। विवाह के उपरांत पता लगा कि पति मानसिक रूप से भी कमजोर है, उस की नौकरी केवल भाई के संदर्भ से ही चल रही है, वेतन भी सामान्य है। मकान माँ के नाम है। वह अपना सारा वेतन अपनी माँ को देता है और उसे प्रतिदिन काम पर आने जाने का किराया माँ से मिलता है। 
समस्या विवाह के कुछ दिन बाद आरंभ हुई। मुझे कोई संक्रमण हो गया और मुझे किसी डाक्टर को नहीं दिखाया गया। एक चिकित्सक से फोन पर बात होने पर कुछ टेस्ट कराए गए जिस के लिए वे मुझे अस्पताल ले गए लेकिन टेस्टों की शुल्क और चिकित्सक द्वारा फोन पर सुझाई गई दवाओँ की कीमत मुझे ही देनी पड़ी। तब मुझे  महसूस हुआ कि मुझे अपना वेतन स्वयं अपने पास ही रखना चाहिए और मैने अपना वेतन घर पर नहीं देना तय किया। अब मेरी सास मुझे बाजार से सामान खरीद लाने की सूची देने लगी और पति पर भी दबाव बनाया कि वह मोबाइल रिचार्ज और कार के पेट्रोल का पैसा मुझ से ले। उस समय मेरा वेतन मात्र 4500/- था और हम छह व्यक्तियों के परिवार में साथ रहते थे। मेरे पति ने मेरे साथ दुर्व्यवहार आरंभ कर दिया और मेरे अपने माता-पिता और संबंधियों से मिलने में बाधा डालने लगे। मेरे पति और सास ने मुझ पर आरोप लगाया कि मैं घर से धन चुराती हूँ और अपने माता-पिता की मदद करती हूँ। बच्चे के जन्म के बाद पति मुझे माँ के कहने पर मारने और अपना सारा समय अपनी माँ के पास बिताने लगा। उस ने मेरी परवाह करना और आवश्यकताओं पर ध्यान देना बिलकुल छोड़ दिया। दो बार उस ने मुझे जान से मारने की धमकी दी। मेरे विवाह के उपरांत मेरे मायके और मायके के सम्बन्धियों के यहाँ हुए किसी भी समारोह में मुझे नहीं जाने दिया। 
मेरे पति अब भी पूरा वेतन अपनी माँ को देते हैं। मेरी सास अभी भी मुझे छोटी-छोटी बातों के लिए मानसिक रूप से प्रताड़ित करती हैं और बहुत ही कठोर और निम्न स्तर की भाषा का प्रयोग करती हैं। मैं उन्हें अपना व्यवहार सुधारने को कह कर दो बार घर छोड़ चुकी हूँ, लेकिन दोनों बार वे मुझे वापस ले आए। मेरे पति कहते हैं कि मैं कुछ नहीं कर सकता।  मेरे जेठ ने मुझे धमकाया है कि दुबारा घर छोड़ा तो ठीक नहीं होगा, वे बहुत सक्षम हैं और उन के संपर्क भी व्यापक हैं। 
मेरा वेतन अभी 7200/- रुपए है जिस में से मुझे मेरे नौकरी पर आने जाने और खर्च के लिए केवल 1200/-रुपया मिलता है। लेकिन मेरी सास मुझे बाजार से सामान लाने की कहती है जिस से इस रुपये में से उस में भी खर्च होता है। मेरी सास कहती है कि मैं अनुपयोगी और बेकार हूँ। मेरी किसी तरह की कोई मदद नहीं करता। वे मेरे बच्चे का स्कूल फीस के अलावा कोई खर्च वहन नहीं करते। साल भर से मुझे पता नहीं कि पति उस के वेतन का क्या करता है। मैं पूरी तरह परिस्थितियों से समझौता किए बैठी हूँ लेकिन परिस्थतियाँ बद से भी बदतर हैं।
वे मुझ से नौकरानी की तरह व्यवहार करते हैं। वे हमेशा मुझे बच्चे की परवाह करने को कहते हैं चाहे मुझे खाना भी ढंग का न मिला हो। मुझे हमेशा लगता है कि कुछ बरसों में वे मुझे मार डालेंगे या फिर मुझे आत्महत्या के लिए बाध्य होना पड़ेगा। बच्चे के अलावा मेरे विवाह में कुछ भी शेष नहीं रह गया है। 
मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है। कुछ  ही वर्षों में मैं काम करने के अयोग्य हो जाउंगी। विवाह से आज तक मेरे माता-पिता मेरी मदद करते रहे हैं। लेकिन जब वे नहीं रहेंगे मैं क्या कर पाउंगी? मेरे माता पिता की आर्थिक स्थिति कमजोर है जब कि मेरे ससुर सेना सेवा निवृत्त अधिकारी हैं और जेठ भी अच्छा कमाते हैं, उन की आर्थिक स्थिति अच्छी है और संपर्कों वाले हैं। ऐसी स्थिति में मैं  अच्छा वकील कैसे कर सकती हूँ? और मेरी ससुराल वाले मेरे वकील को पैसा दे कर अपनी ओर भी कर सकते हैं। 
क्या मैं तलाक ले सकती हूँ?  तलाक के उपरांत बच्चे की कस्टडी किस के पास रहेगी?  मेरे मस्तिष्क में एक स्त्री के रूप में और एक माँ के रूप में अनेक प्रश्न उठते रहते हैं। मेरी दुबारा विवाह करने में रुचि नहीं रह गई है। मैं अपनी समस्याओं का हल चाहती हूँ। मेरे माता-पिता मेरी सहायता करने को तैयार हैं लेकिन मैं अपने बच्चे के बारे में चिंतित रहती हूँ कि उस का क्या होगा? मैं उसे अपने साथ रखना चाहती हूँ।  मुझे मेरी समस्या का हल बताएंगे तो मैं बहुत आभारी रहूँगी।
उत्तर –
आप ने जितने तथ्य यहाँ अंकित किए हैं, उन से लगता है कि आप के साथ बहुत अधिक क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया है और किया जा रहा है जो जीते जी नर्क समान है। क्रूरतापूर्ण व्यवहार तलाक के लिए पर्याप्त आधार है। आप पहले भी दो बार परिवार से अलग हो चुकी हैं लेकिन उस के बाद कोई सुधार संभव नहीं हो सका है।  मेरे विचार से यह परिवार कभी नहीं सुधरेगा। आप के अलग हो जाने के बाद वे पहले की तरह सुधरने का नाटक अवश्य करेंगे, लेकिन फिर भी नहीं सुधरेंगे।
आप बहुत अधिक तो नहीं लेकिन इतना कमाती हैं कि आप अपना और बच्चे का खर्च चला सकती हैं। आप बच्चे के भरण-पोषण के खर्च के लिए भी आवेदन कर सकती हैं। बच्चे की कस्टडी उस की उम्र 5 वर्ष होने तक निर्विवाद रूप से माँ के पास रहेगी। उस के उपरांत न्यायालय कस्टडी के लिए विचार करेगी कि बच्चे का हित किसकी कस्टडी में रहने पर है। तथ्य और परिस्थितियाँ कहती हैं कि इस मामले में अदालत का निर्णय आप के हक में होगा।
मेरी राय में आप को सब से पहले तो अपने पति के परिवार से अलग अपने माता-पिता के साथ या उन के ही नजदीक अलग रहना आरंभ कर देना चाहिए और शीघ्र ही तलाक के लिए अर्जी दाखिल कर देनी चाहिए।  आप को आप का स्त्री-धन भी वापस लेने के लिए कार्यवाही करना चाहिए और अपने बच्चे के भरण पोषण की मांग भी करनी चाहिए। इस के लिए आप धारा-125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत आवेदन कर सकती हैं।  आप के साथ बहुत क्रूरता की गई है और की जा रही है। उस नर्क से निकलने के लिए अब कुछ भी सोचने की आवश्यकता नहीं है। क्रूरता का स्तर ऐसा है कि आप के पति, सास और आप के पति के भाई तीनों धारा 498-ए के अपराध के दोषी हैं। आप चाहें तो पुलिस में रिपोर्ट कर के या फिर न्यायालय में परिवाद दाखिल कर उन के विरुद्ध अभियोजन चला सकती हैं। इस मुकदमे में उन्हें सजा हो सकती है।  यह मुकदमा आप को आपसी सहमति से तलाक प्राप्त करने और बच्चे की कस्टड़ी प्र
ाप्त करने के लिए दबाव का काम भी करेगा।  इस के लिए आप को कोई विश्वसनीय और काबिल वकील कर लेना चाहिए। आप घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत भी कार्यवाही दाखिल कर सकती हैं जो वहीं होगी जहाँ आप रहेंगी। 
जहाँ तक अदालत में लगने वाले समय का प्रश्न है, वह इस बात पर निर्भर करेगा कि जिस अदालत में आप अपना मुकदमा लगाएंगी वहाँ काम कितना है? अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग समय लगता है। मुझे पता नहीं है कि आप कहाँ रहती हैं। वैसे आप  मुकदमे उस स्थान की अदालत में कर सकती हैं जहाँ आप का विवाह हुआ है या जहाँ आप ने अपने पति के साथ अंतिम बार निवास किया है। केवल धारा 498-ए का अभियोजन उस स्थान की अदालत में चलेगा जहाँ आप अभी अपने पति के साथ निवास कर रही हैं।
सब वकील ऐसे नहीं होते जो पैसा ले कर विपक्षी की मदद कर देते हों। क्यों कि उस से उन की विश्वसनीयता जु़ड़ी होती है। कम फीस ले कर काम करने वाला वकील ईमानदार हो सकता है जब कि अधिक फीस ले कर काम करने वाला वकील बेईमानी कर सकता है। इस कारण से सब से पहले वकील की विश्वसनीयता के बारे में तसल्ली अवश्य कर लें।

सब से पहले गलत व्यक्ति से विवाह की अपनी गलती को दुरुस्त करें

 समस्या-
ह वर्ष पूर्व मैं ने प्रेम विवाह किया था। हमारे पाँच वर्ष का एक पुत्र है। विवाह के कुछ माह बाद ही पति ने मेरे साथ झगड़ना आरंभ कर दिया। वह शिक्षित नहीं है, और हमेशा मदिरा के नशे में रहता है। चाहे जब मेरे साथ मारपीट कर लेता है। वह मेरी और पुत्र का पालन पोषण तो दूर परवाह भी नहीं करता दिन-रात पीता है और दोस्तों के साथ मटरगश्ती करता रहता है।  मुझे यह सब सहन करते हुए छह वर्ष हो चुके हैं, मैं अब और अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकती।  पति के छोटे भाई ने मेरे साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने की कोशिश भी की। इन सब के कारण मैं ने अनेक बार मर जाना चाहा। लेकिन हर बार पुत्र की सूरत मेरे सामने आ गई। मैं अपने पुत्र का भविष्य सँवारना चाहती हूँ।  मैं अब और उस व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती। मैं उसे तलाक देना चाहती हूँ। मुझे इस के लिए क्या करना चाहिए?
 उत्तर –
प ने स्वयं प्रेम विवाह किया। प्रेम विवाह बुरा नहीं होता। लेकिन कम से कम विवाह करने के पहले एक स्त्री और पुरुष को अपने जीवनसाथी के बारे में बहुत गहरी जानकारी होनी चाहिए। आपने वह नहीं की। अपने पति के बारे में आप शायद पहले कुछ भी नहीं जानती थीं। आप ने सिर्फ नवयुवा जीवन के स्वाभाविक शारीरिक आकर्षण को प्रेम समझा और विवाह किया। आप इसी त्रुटि की सजा पा रही हैं। किसी भी त्रुटि की सजा को समाप्त करने के लिए सब से पहले तो उस त्रुटि को दूर करना आवश्यक है। इसलिए आप का यह निर्णय कि आप को तलाक ले लेना चाहिए सर्वथा उचित है।
लाक लेने के लिए आप को चाहिए कि सब से पहले तो आप अपने पुत्र सहित अपने पति से अलग रहने की व्यवस्था करें। मुझे लगता है कि वह आप कर लेंगी। क्यों कि जिस पति के साथ आप रह रही हैं वह तो आप की परवाह करता नहीं। अपितु आप पर ही बोझा बना हुआ है। आप अपने पति से अलग रहने लगें और सब से पहले अपना और अपने पुत्र का जीवन चला सकने लायक व्यवस्था बनाएँ। इस के बाद किसी वकील से मिल कर तलाक के लिए अर्जी तैयार कर लगवाएँ। उस के साथ ही धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अपने और अपने पुत्र के भरण-पोषण के लिए अर्जी लगाएँ। इन दोनों मामलों में निर्णय होने में कुछ समय लगेगा। इस कारण से आप इन के साथ साथ महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा कानून में भी एक आवेदन प्रस्तुत करें। उस कानून के अंतर्गत इस तरह के आदेश न्यायालय पारित कर सकता है जिस से आप को भरण-पोषण के लिए कुछ राशि शीघ्र मिलने लगे। इस के साथ ही इस कानून के अंतर्गत आप की और आप के पुत्र की सुरक्षा के लिए भी उचित आदेश प्राप्त किया जा सके। 
प के साथ विवाह के कुछ समय बाद से ही पति द्वारा क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है। वह आप की और पुत्र की उपेक्षा करता है और आप के साथ मारपीट करता है। इस से अधिक क्रूरता कुछ नहीं हो सकती। यह वह मजबूत कारण है जिस के आधार पर आप अपने पति से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकती हैं।
आप की परिस्थितियों को देख कर लगता है कि यदि न्यायालय ने धारा 125 में आप को और आप के पुत्र को भरण पोषण के लिए प्रतिमाह राशि देने का आदेश किया तो वह विवाह विच्छेद के उपरांत वसूल करना असंभव जैसा हो सकता है। इस के लिए मेरी यह भी सलाह है कि विवाह विच्छेद की डिक्री के लिए आवेदन प्रस्तुत करने के  साथ ही आप न्यायालय के समक्ष हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत करें और न्यायालय से यह राहत मांगें कि तलाक के साथ आप को स्थाई पुनर्भरण राशि एक मुश्त अदा कर दी जाए। 

वह बहुत-बहुत गंदा आदमी है। मारना, पीटना शराब पीना

समस्या--
मेरी एक दोस्त है, उस की शादी को एक साल और एक माह हो चुका है वह अपने पति के साथ सात महिने से अलग  रह रही है। उन की आपस में फोन  भी बात नहीं होती है। मेरी सहेली अपने पति के साथ खुश नहीं है और उस से अलग रहना चाहती है वह बहुत-बहुत गंदा आदमी है। मारना, पीटना शराब पीना……… मेरी दोस्त की उम्र 21 साल है उन का कोई बच्चा भी नहीं है। 
आप सलाह दें …..
सलाह —
प ने अपने प्रश्न में …….. छोड़ कर बहुत कुछ कह दिया है। यह मामला नशे और पोर्नोग्राफी से एडिक्ट पति का प्रतीत होता है। मैं आम तौर पर विवाह विच्छेद की सलाह नहीं देता।  लेकिन इस मामले में मुझे लगता है कि आप की सहेली को ऐसे व्यक्ति से जल्दी से जल्दी विवाह विच्छेद करने औऱ अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयत्न आरंभ कर देना चाहिए। आप की सहेली के साथ जो भी व्यवहार हुआ है या हो रहा है वह जघन्य क्रूरता है। जिस के लिए आप की सहेली को अपने पति से अलग रहने का अधिकार है। आप की सहेली चाहे तो इस आधार पर न्यायिक पृथक्करण (Judicial Seperation) के लिए न्यायालय को आवेदन कर सकती है। उसे पृथक रहते हुए अपने लिए गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। आप की सहेली चाहे तो इसी आधार पर उस से विवाह विच्छेद भी प्राप्त कर सकती है, इस के लिए वह दं.प्र.संहिता की धारा 125.या घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत भी कार्यवाही कर सकती है। घरेलू हिंसा अधिनियम में उसे अपने पति के खर्चे पर अलग घर प्राप्त करने का अधिकार भी है। 
प को यह सब कार्यवाही करने के लिए अपनी सहेली को हिम्मत देनी होगी। यदि संभव हो तो वह पतिगृह त्याग कर अपने पिता या भाई के साथ जा कर रह सकती है और जब तक ऐसे पति से विवाह विच्छेद नहीं हो जाता है तब तक अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास कर सकती है। विवाह विच्छेद होने के उपरांत वह चाहे तो अपने नए वैवाहिक जीवन के बारे में विचार कर सकती है। 

पत्नी काम नहीं करती तथा मां, छोटे भाई और मुझ से मारपीट करती है, सलाह दें क्या करूँ?

समस्या--
मैं आजमगढ़ में एक मध्यम परिवार का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 30 साल है और पूरे परिवार में अकेले प्राइवेट नौकरी करता हूँ, बाकी सब बेरोजगार हैं, मेरी शादी गोरखपुर में हई है। मेरे दो बेटे तथा एक बेटी है। मेरी पत्नी घर में कोई काम नहीं करती बस चाहती है कि सब उस की गुलामी करें। यहाँ तक कि अम्मा से, छोटे भाई से मारपीट करती है, हमारे ऊपर भी हाथ उठा देती है। ऊपर से मेरे उपर दूसरी पत्नी रखने का आरोप लगाती है और जेल भेजने की धमकी देती है। घर में बना खाना लोग नहीं खा पाते, हर रोज लड़ाई होती है। लगता है किसी दिन कोई अनहोनी ना हो जाए, इस लिए हम अपनी पत्नी से मुक्ति चाहते हैं। उचित सलाह दें। 
उत्तर —

वाकई आप और आप का परिवार बहुत कष्ट में हैं। आप ने यह नहीं बताया कि यदि आप पत्नी से मुक्ति चाहते हैं तो फिर मुक्त होने के बाद आप की पत्नी जो आप के दो बच्चों की माँ भी है क्या करेगी, कहाँ जा कर रहेगी? एक इंसान चाहे वह कितना भी बुरा क्यों न हो उसे मक्खी की तरह तो निकाल कर नहीं फैंका जा सकता है। आजकल सभी नगरों में पुलिस के परिवार सहायता केंद्र हैं। आप को पहले वहाँ शिकायत करनी चाहिए। इस शिकायत के साथ आप की माता जी का शपथ पत्र संलग्न हो। परिवार सहायता केंद्र की कार्यवाही का परिणाम देखने के उपरांत आप को न्यायालय में हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 10 के अंतर्गत आप की पत्नी के क्रूरतापूर्ण व्यवहार के आधार पर न्यायिक पृथक्करण का आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए। इस कार्यवाही से या तो आप की पत्नी में सुधार आ जाएगा। यदि सुधार नहीं आता है तो न्यायिक पृथक्करण हासिल कर के आप अपनी पत्नी को परिवार और स्वयं से पृथक रख सकते हैं। यदि सुधार न आए तो इसी आवेदन को विवाह विच्छेद के आवेदन में परिवर्तित करवा कर अथवा न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के उपरांत नया आवेदन विवाह विच्छेद हेतु प्रस्तुत कर तलाक प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इस सब कार्यवाही के बाद भी आप अपनी पत्नी के लिए मासिक भरण-पोषण के दायित्व से मुक्त नहीं हो सकेंगे

मानसिक क्रूरता के लिए न्यायिक पृथक्करण प्राप्त करें

समस्या--
मेरे पति अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र हैं, मेरी कोई ननद भी नहीं है। लेकिन मुझे ससुराल में मानसिक रूप से बहुत परेशान किया जा रहा है। छोटी-छोटी बात पर मेरी दीदी के ससुराल में जा कर शिकायत की जाती है। मुझे एक पैसा भी खर्चे के लिए नहीं दिया जाता। मैं अपना और अपनी बेटी का सारा खर्च उठाती हूँ। क्या उन की संपत्ति व आय पर मेरा या बेटी का कोई हक नहीं है। आप बताएँ मुझे क्या करना चाहिए? 
 उत्तर – 

प को ससुराल में इकलौते पुत्र की पत्नी होते हुए भी परेशान किया जा रहा है, ऐसा अन्य परिवारों में भी मैं ने देखा है। आप की इस समस्या का उपचार प्रतिरोध ही है। यदि आप चुपचाप सहन करती जाएँगी तो यह सब चलता रहेगा। आप का प्रतिरोध उचित है, इस के लिए आप को अपने परिजनों से भी समर्थन जुटाना पड़ेगा। आप अपना और अपनी बेटी का खर्च खुद ही उठाना पड़ रहा है और कोई खर्च नहीं दिया जाता है तो इस का परिणाम यह होगा कि आप की अपनी आय लगातार खर्च  होती रहेगी और आप कुछ भी न बचा पाएँगी। फिर संकट के समय आप के पास अपना कोई कोष नहीं होगा और आप हमेशा दूसरों पर आश्रित बनी रहेंगी। आप की यह स्थिति बिलकुल ठीक नहीं है।  
प की बेटी सिर्फ आप की नहीं है, वह आप के पति की भी है, आप के पति का दायित्व है कि वह उस के पालन पोषण के लिए परिवार की आर्थिक स्थिति के मुताबिक खर्च करे। आप को बेटी के लिए खर्च की मांग करनी चाहिए। आप की मांग पूरी नहीं होने पर न्यायालय में दं.प्र.संहिता की धारा 125 के अंतर्गत आवेदन कर सकती हैं। न्यायालय निश्चित कर देगा कि आप को बेटी के पालन पोषण के लिए कितनी राशि प्रतिमाह दी जाए। आप के साथ जो व्यवहार हो रहा है वह क्रूरता की श्रेणी में आ सकता है। आप अपने पति व ससुराल वालों को स्पष्ट कह सकती हैं कि आप यह व्यवहार सहन नहीं करेंगी, यदि ऐसा ही सब चलता रहा तो आप न्यायालय जा कर न्यायिक पृथक्करण के लिए आवेदन करेंगी और अलग रहने लगेंगी और यदि सब कुछ ठीक नहीं रहा तो तलाक भी ले सकती हैं। आप क्रूरता के आधार पर न्यायालय से न्यायिक पृथक्करण की डिक्री प्राप्त कर सकती हैं और तलाक की भी। 

प यदि स्वयं कमाती हैं तो आप न्यायालय से न्यायिक पृथक्करण प्राप्त कर अलग रह सकती हैं। आप की समस्या का इलाज आप के अस्थाई रूप से अलग रहने से हो सकता है। शायद आप के अलग रहने से आप के पति और ससुराल वालों को कुछ समझ आ जाए। मामला सुलझ जाने पर आप व आप के पति दोनों या दोनों में से कोई एक न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर न्यायिक पृथक्करण की डिक्री को अपास्त (समाप्त) करवा सकते हैं। यदि मामला न सुलझे तो एक वर्ष बाद आप तलाक के लिए भी आवेदन कर सकती हैं।

पत्नी मेरे साथ आ कर रहने को तैयार नहीं है, मुझे क्या करना चाहिए

समस्या--

मेरी शादी 22.6.2007 को हुई थी, शादी के छः माह बाद ही मुझे पता लगा कि मेरी पत्नी की दोनों किडनी खराब है।  इसकी जानकारी मुझे पहले नहीं दी गई । मैं ने इसकी सूचना अपने ससुर को दी, उन्हों ने उसे ले जाकर लखनउ पी.जी.आई.में भर्ती करवा दिया। इसके बाद किडनी का  ट्रान्सप्लान्ट हुआ मेरी सास ने अपनी किडनी मेरी पत्नी को दी। इस बीच मैं ने हर तरह से उनकी मदद की । मैं ने इसके लिये मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक लेटर लिखा कि मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, मेरी मदद की जाये। जिसके तहत मुझे हर तरफ से पैसा मिला, मुझे एक साल में 4.20 लाख रूपये की सरकारी सहायता मिली जो मैं ने पत्नी के इलाज में लगाई। इस बीच मेरे ससुराल वालों ने मुझे मानसिक रूप से बहुत परेशान किया। पिछले तीन बरस से वह मेरे पास नहीं आई है और न ही आने को तैयार है।  मुझे तरह-तरह से परेशान किया जाता है।  कृपया मेरी सहायता कीजिये कि मैं क्या करूँ?
उत्तर —
हो सकता है कि आप की पत्नी और उस के मायके वालों को भी विवाह के पूर्व पता न हो कि उस की किडनी खराब हो गई हैं, औऱ उन्हें भी तभी पता लगा हो जब आप उन्हें चिकित्सा के लिए ले गए हों। इस के लिए आप के मायके वालों को दोष देना उचित नहीं है। आप ने अपने ससुर को पत्नी की किडनी खराब होने की सूचना दी उस के बाद उन्हों ने चिकित्सा के लिए पहल की और उसे लखनऊ अस्पताल में भर्ती कराया। आप ने चिकित्सा में भरपूर मदद की। एक स्त्री की प्राण रक्षा के लिए दोनों ने ही प्रयत्न किए हैं यह आप दोनों के कर्तव्य थे। दोनों ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसे कुछ विशेष कहा जा सके अथवा जिस का कोई न्यायिक महत्व हो।
यदि आप की पत्नी अब स्वस्थ हैं तो, और नहीं भी हैं तो भी उन्हें आप के साथ आ कर निवास करना चाहिए। इस के लिए आप को अपनी पत्नी से मिल कर स्पष्ट रूप से बात करना चाहिए और पूछना चाहिए कि वह आप के साथ आ कर क्यों नहीं रहना चाहती है। इस संबंध में आप को अपने ससुर जी से भी बात करनी चाहिए। इस बातचीत के उपरांत यह स्पष्ट हो जाए कि आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहना चाहती और अपने पिता के साथ ही रहना चाहती है तो फिर न्यायालय का निर्णय या डिक्री भी उसे आप के साथ रहने को बाध्य नहीं कर सकती। ऐसी स्थिति में आप उन्हें स्पष्ट रूप से कानूनी नोटिस भेज दें कि यदि वह आप के साथ आ कर नहीं रहना चाहती है तो आप न्यायालय से न्यायिक पृथक्करण अथवा तलाक की डिक्री प्राप्त कर लेंगे।
दि इस नोटिस के उपरांत भी आप की पत्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता है तो आप चाहें तो न्यायिक पृथक्करण अथवा सीधे तलाक के लिए न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं। तलाक का आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत कर देने का अर्थ यह कदापि नहीं होता कि अब साथ रहने की कोई गुंजाइश नहीं रही है। न्यायालय इस तरह के प्रत्येक मामले में सुनवाई आरंभ होने के पूर्व इस तरह का प्रयास करता है कि दोनों पक्षों में समझौता हो जाए और पति-पत्नी साथ रहने लगें। हो सकता है न्यायालय के इन प्रयासों का लाभ आप को मिले और आप दोनों का वैवाहिक जीवन आरंभ हो जाए। यदि नहीं होता है औऱ आप की पत्नी आप के साथ आ कर रहने को तैयार नहीं होती है तो आ
प को इसी आधार पर तलाक की डिक्री प्राप्त हो जाएगी।

कोशिश करें कि पत्नी को समझ आ जाए, वह आप के साथ रहने को तैयार हो जाए

 समस्या---
 मैं अजमेर का रहने वाला हूँ, छुटपुट धंधा करता हूँ। 2006 में मेरी शादी हुई थी, शादी के कुछ दिन बाद से ही मेरी पत्नी मायके जाने की जिद करने लगी। समझाने पर भी नहीं मानी और अपने पिता को फोन कर के मेरे घर बुला कर लड़ाई-झगड़ा करती। इस कारण उस के पिता उसे अपने साथ ले गए। और मुझ पर घरेलू हिंसा और दहेज का केस लगाने की धमकी देने लगी। मैं ने दस्तो से मशविरा कर परिवार न्यायालय में धारा 9-ए का मुकदमा कर दिया। इस पर उस ने मुझ पर घरेलू हिंसा का मुकदमा कर दिया। समाज वालों के हस्तक्षेप से मामला सुलझा। पर इस के एक साल बाद ही उस का पिता उसे वापस अपने घर ले गया। समाज में मेरी और मेरे परिवार की बुराई करता है। मेरी पत्नी को वापस भेजने को मना करता है। बताएँ मैं क्या करूँ? मेरा तीन साल का बेटा भी है, जिस का भविष्य इस कारण से खराब हो रहा है। 
 उत्तर – – – 

प की समस्या जटिल है। आप की संक्षिप्त सूचनाओं से लगता है कि आप की पत्नी किसी कारण से आप के साथ रहना नहीं चाहती है। यह कारण आप को तलाश करना होगा। हो सकता है इस का कारण आप के परिवार में हो, यदि ऐसा है तो उस कारण का पता लगा कर उसे दूर करें। हो सकता है इस का कारण उस का अतिमहत्वाकांक्षी होना हो। यदि ऐसा है तो आप का आप की पत्नी के साथ तब तक  साथ रह पाना कठिन है जब तक कि उस की महत्वाकांक्षाएँ कुछ कम हो कर यथार्थ के धरातल पर न आ जाएँ।  यदि इस के अतिरिक्त अन्य कोई कारण है तो फिर आप की पत्नी का राह पर आना दुष्कर सिद्ध हो सकता है। आप ने यह नहीं बताया कि आप के बेटे का भविष्य किस तरह खराब हो रहा है, और उस की उम्र कितनी है।  वैसे विवाह 2006 में हुआ है तो उस की उम्र अभी पाँच वर्ष की नहीं है।
प को तुरंत चाहिए कि आप पुनः धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा लगाएँ। पिछली सारी परिस्थितियों का वर्णन उस में करें। यह भी बताएँ कि किस तरह आप के बेटे का जीवन खराब हो रहा है? क्यों कि उस की उम्र अभी पाँच वर्ष की नहीं है तो वह स्कूल जाने लायक तो नहीं ही है। यदि कुछ विशेष परिस्थितियाँ हैं और आप समझते हैं कि आप के बेटे का जीवन खराब हो रहा है तो आप अपने बेटे को अपने पास रखने के लिए उस की कस्टडी प्राप्त करने के लिए भी हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-26 के अंतर्गत न्यायालय को आवेदन कर सकते हैं, लेकिन यह आवेदन आप के द्वारा धारा-9 का मुकदमा कर देने के उपरांत ही दिया जा सकता है। एक बार दोनों आवेदन प्रस्तुत कर देने पर न्यायालय आप दोनों के बीच सुलह कराने का प्रयत्न करेगा। आप को चाहिए कि आप न्यायालय को सारी परिस्थितियाँ सही-सही बताएँ और कहें कि आपसी समझाइश से मामला बन सकता है। यदि न्यायालय के न्यायाधीश को आप की बात सही लगेगी तो वह दोनों पक्षों को समझाने का प्रयत्न करेगा। यह संभव है कि इस समझाइश से बात बन जाए और आप की पत्नी आप के पास आ कर रहने लगे। यदि आप की पत्नी के आप के पास आ कर न रह पाने का कारण तीसरी प्रकृति का है तो उस का समझ पाना दुष्कर होगा और फिर पत्नी से तलाक ही बेहतर होगा।
दि फिर भी बात नहीं बनती है तो आप आप के पुत्र के पाँच वर्ष का होने तक प्रतीक्षा करें, न्यायालय से उस की कस्टडी आप को मिल जाएगी। यदि आप की पत्नी और उस के पिता में जरा भी समझ हुई तो बेटे की कस्टड़ी मिलने के बाद आप की पत्नी आप के पास आ कर रहने लगेगी। यदि फिर भी ऐसा नहीं होता है तो अंतिम मार्ग यही बचेगा कि आप सहमति से तलाक लेने का प्रयत्न करें। यदि वह भी संभव न हो तो तलाक की कार्यवाही करें। इस सब में समय तो लगेगा, लेकिन इस  के अलावा कोई मार्ग नहीं हैं। चुप न बैठें, कार्यवाही तुरंत करें।

तलाक के लिए आवेदन करने में देरी नहीं करें

समस्या--
मेरी शादी को दो साल हुए हैं। इस बीच हम दोनों में उस के जिद्दी स्वभाव और ससुराल के हस्तक्षेप के कारण कई बार लड़ाई हुई है। दो माह पहले मेरी जुड़वाँ बेटियाँ हुई हैं। मेरी सास ने मेरी पत्नी का मातृत्व समाप्त कर दिया है। उस का कहना है कि पहले ही जाँच करवा लेते और गर्भपात करवा लेते। अब मेरी पत्नी बच्चों को कोसती रहती है। उन का ध्यान नहीं रखती है। घऱ में झगड़ा कर के दस दिन बच्चों को मेरे पास छोड़ कर मायके रह कर दुबारा वापस आ गई। वह लड़कियाँ नहीं पालना चाहती। अपना दूध एक बार भी नहीं पिलाया है। मेरी सास मोबाइल पर पत्नी को लड़ाई करने के तरीके बताती रहती है। वह मुझे उकसाती है कि मैं उस के साथ मारपीट करूँ। गाली गलौच करती रहती है। मुझे लगता है लड़कियाँ होने के बाद वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती है। अब मैं तलाक लेना चाहता हूँ। बच्चे भी मैं पाल लूंगा। तलाक लेने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? मेरी सहायता करें।
उत्तर – – – 
प ने जो भी परिस्थितियाँ बताई हैं। उन से लगता है कि आप की जुड़वाँ संतानें आप की पत्नी के लिए अनिच्छित हैं, इस के कारण आप की पत्नी न केवल उन के साथ अपितु आप और आप के परिवार के साथ क्रूरता पूर्ण व्यवहार कर रही है। इस काम में आप की सास आप की पत्नी की मदद भी कर रही है। आप की पत्नी का क्रूरता पूर्ण व्यवहार तलाक के लिए मजबूत आधार है। विशेष रुप से दो माह से कम की दो बेटियों को छोड़ कर मायके चले जाना और उन्हें एक बार भी दूध नहीं पिलाना हद दर्जे की क्रूरता है और तलाक के लिए मजबूत आधार है। 
प बिलकुल देरी नहीं करें। अपने नगर के वैवाहिक मामले देखने वाले किसी वकील से सलाह लें और उन की मदद से तुरंत ही तलाक के लिए आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत करें। यदि आप के मामले में सुलह की कोई गुंजाइश होगी भी तो उस काम को अदालत को अपने कर्तव्य  के रूप में करना ही है। आप बिना किसी देरी के तलाक के लिए आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत करें।

विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह के बाद जबरन किया गया विवाह अवैध है . . .

समस्या-
मैं ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी की है। पर मेरे घरवालों ने मुझे जबरदस्ती डरा-धमका कर घर से दूर दूसरी शादी कर दी, साथ में वीडियोरिकॉर्डिंग भी शादी की करवा ली। 10 महीने तक मुझे डरा धमका कर रखा गया जिस से मैं डर कर मैं अपने पहले पति से ना बात की और ना मिली। पर एक दिन वो मेरे पास आए और बोले क्या हुआ? मुझे क्यों छोड़ दिया। तब मैं ने सब बात कह सुनाई।  तब हम दोनों घर से भाग गये (मैं हॉस्टिल में रहती हूँ)। तब मेरे पापा ने मेरे पहले पति पर अपहरण का एफ.आई.आर दर्ज करा दी। तब मैं ने सीजेएम कोर्ट में उपस्थित हो कर ये बताया कि मैं अपनी मरजी से अपने पति के साथ आई हूँ। दिक्कत यह है कि मेरे दूसरे पति ने रेस्टिट्यूशन ऑफ कंजुगल राइटस् का मुकदमा फैमिली कोर्ट में फाइल किया है। दूसरे विवाह का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। मैं क्या करूँ?
समाधान –
प व्यर्थ ही घबरा रही हैं। आप का जो पहला विवाह विशेष विवाह अधिनियम के अन्तर्गत हुआ है वह जिला विवाह अधिकारी जो कि सामान्य रूप से एक जिले का जिला कलेक्टर होता है के समक्ष हुआ है तथा पूरी जाँच के उपरान्त कानूनी प्रक्रिया के अनुरूप हुआ है। यह विवाह वैध है।
विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह होने के उपरान्त जब तक यह विवाह न्यायालय द्वारा डिक्री पारित कर के विच्छेद नहीं हो जाता है तब तक पति या पत्नी कोई भी दूसरा विवाह नहीं कर सकता है और न ही उस का दूसरा विवाह किया जा सकता है। यदि कोई खुद दूसरा विवाह करता है या किसी जबर्दस्ती के अन्तर्गत उस का दूसरा विवाह कर दिया जाता है तो ऐसा दूसरा विवाह हर हालत में अवैध है।
स तरह आप का दूसरा विवाह जो आप के पिता ने जबरन करवाया है वह पूरी तरह अवैध है। आप के दूसरे विवाह का पति कानूनन आप का पति नहीं है। उसे यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह आप के विरुद्ध किसी भी तरह से रेस्टीट्यूशान ऑफ कंजूगल राइटस् की डिक्री पारित करवा सके।
प को चाहिए कि आप परिवार न्यायालय में अपना जवाब प्रस्तुत कर दें कि आप का विवाह पहले ही विशेष विवाह अधिनियम के अन्तर्गत हो चुका था जिस का पंजीयन जिला पंजीयक के यहाँ हो रहा है। यह विवाह कभी समाप्त नहीं हुआ है। आप का दूसरा विवाह जबरन आप के माता पिता ने करवाया था जो कि पूरी तरह अवैध है। आप के विरुद्ध आवेदन प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति आप का पति नहीं है इस कारण से उस का आवेदन निरस्त कर दिया जाए। सबूत के बतौर आप अपना विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत जारी किया गया विवाह प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर सकती हैं और अपने, अपने पति के तथा गवाहों के बयानों से अपने विवाह को साबित कर सकती हैं। आप बेधड़क अपने वास्तविक और कानूनी पति के साथ निवास कर सकती हैं। जबरन विवाह करने वाला पति का आवेदन निरस्त हो जाएगा।

माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह करने के पहले बहुत सी बातों पर विचार करना जरूरी है।

समस्या-
मेरे मम्मी पापा विवाह के लिए राजी नहीं हो रहे हैं, मैं क्या करूँ?
समाधान-
स उम्र में यौन आकर्षण के कारण इस तरह के संबंध बन जाते हैं कि लड़का लड़की विवाह को तत्पर रहते हैं। उस में वे अपने माता पिता को शामिल करना चाहते हैं तो उस में माता पिता मना कर देते हैं और अक्सर बाधा भी डालते हैं। किसी विवाह योग्य उम्र प्राप्त करने वाले व्यक्ति के लिए स्वेच्छा से विवाह करना अच्छा है लेकिन इस उम्र में वे यह विस्मृत कर जाते हैं कि बाद में क्या परेशानियाँ उठानी पड़ सकती हैं। इन परेशानियों में अक्सर विवाह के बाद पति व पत्नी के बीच व्यवहार में परिवर्तन प्रमुख है। जब एक लड़का और लड़की एक दूसरे के साथ इस तरह के संबंध में आते हैं तो वे स्वयं को एक दूसरे के सामने अच्छे से अच्छा प्रदर्शित करने का प्रयत्न करते हैं और अपनी कमियों को छुपाते हैं। विवाह के बाद ये कमियाँ सामने आती हैं और दाम्पत्य जीवन को दूभर कर देती हैं।
दूसरी सब से बड़ी परेशानी यह होती है कि एक लड़की अपने माता पिता का घर छोड़ देती है और उन से उसे प्राप्त होने वाली सहायता भी बंद हो जाती है। वहीं यह भी हो सकता है कि ऐसी लड़की को विवाह के बाद लड़के के परिजन भी स्वीकार करने को तैयार न हों या बेटे के दबाव में विवाह तो स्वीकार कर लें लेकिन मन से लड़की को अपने परिवार का अवांछित सदस्य मानें। तब भी परेशानियाँ बहुत अधिक होती हैं। ऐसी परिस्थिति में कई बार लड़के यह समझ बैठते हैं कि मेरे माता-पिता ने तो पत्नी को अपना लिया है लेकिन पत्नी ही परिवार में रहने को तैयार नहीं है। वैसी स्थिति में भी बहुत परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं। और भी अनेक चीजें हैं जिन के कारण एक लड़की को माता-पिता की इच्छा के बिना विवाह करने पर परेशानियाँ उठानी पड़ सकती हैं। इन सब पर विवाह के पहले विचार करना आवश्यक है।
क बात और कि यदि माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध कोई लड़की विवाह कर रही हो तो उस के मित्रों का अच्छा सपोर्ट भी उस के पास होना चाहिए जिस से किसी तरह की परेशानी सामने आने पर कम से कम मित्र तो उस का साथ दे सकें। यदि इन सब बिन्दुओं पर विचार करने के उपरान्त भी आप समझती हैं कि माता पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया जा सकता है तो आप ऐसा विवाह कर सकती हैं।
दि आप स्वावलम्बी हैं। आप के पास कमाई का, अपना जीवन स्वयं चलाने का स्वतंत्र साधन है, विवाह के बाद पति से विवाद होने पर उस से निपटने की क्षमता है और आप ने विवाह योग्य उम्र प्राप्त कर ली है तो आप जिस व्यक्ति से विवाह करना चाहती हैं उस से कहें कि आप उस के साथ विशेष विवाह अधिनियम के अन्तर्गत जिला विवाह पंजीयक के यहाँ नोटिस दे कर विवाह करने को तैयार हैं।
ह नोटिस देने के उपरान्त विवाह पंजीयक इस नोटिस को आप के व जिस से आप विवाह करना चाहती हैं उस के निवास पर तथा अपने कार्यालय में चस्पा करेगा। कोई भी व्यक्ति 30 दिनों के भीतर उस  नोटिस पर आपत्ति प्रस्तुत कर सकता है। लेकिन यह आपत्ति केवल इस बात पर हो सकती है कि आप दोनों कानून के अनुसार विवाह करने के योग्य हैं या नहीं। यदि आप दोनों विवाह के योग्य पाए जाते हैं तो जिला विवाह पंजीयक विवाह संपन्न करवा कर उसे पंजीकृत कर देगा और आप दोनों को प्रमाण पत्र प्रदान कर देगा।

विवाद बढ़ाने से बचें, पत्नी की स्वतंत्र इच्छा जानने का प्रयत्न करें।

समस्या
मैं ने अपनी एमबीए क्लास मेट नेहा अग्रवाल से 21/04/2013 को मंदिर मे विवाह कर लिया रजिस्ट्रार ऑफ मेरेज (हिंदू मेरिज) से सर्टिफिकेट भी ले ले लिया। मैं लोकल रायपुर से हूँ ओर नेहा तितलागढ़(उड़ीसा) से है। वह हॉस्टल में रह कर पढ़ती थी। विवाह हम दोनों की इच्छा हुआ था और हम दोनो वयस्क भी थे। हम ने 11/06/2013 को अपने अपने घर में विवाह के बारे में बता दिया और पुलिस स्टेशन में अपना अपना बयान दे दिया कि हम साथ रहना चाहते हैं।  इस बीच मेरे घर वालों ने हमारे विवाह को स्वीकार कर लिया। हम ने रिसेप्शन भी दे दिया लेकिन लड़की के घर वालों ने स्वीकार नहीं किया। हम दोनो परिवार के साथ घर में ही रहते थे। इस बीच पत्नी के घर से फ़ोन आता था और उसे वापस आ जाने को कहा जाता था। लेकिन वह हमेशा मना कर देती थी।  विवाह के 7-8 माह बाद लड़की के पापा ने उसे 06/12/2013 को फ़ोन कर के कहा कि तेरी माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, मिलने आएगी क्या? मैं ने नेहा को मिलाने उस के मामा के घर रायपुर में ही ले गया। इस बीच उन्हों ने नेहा को फिर से यही कहा कि इस शादी को भूल जा अभी भी घर आ जा। लेकिन उस ने मना कर दिया। फिर उस की मम्मी से उसे मिलाया गया उस की मम्मी ने रोना शुरू कर दिया और बेहोश हो गई। उसे हॉस्पिटल ले गये। इस बीच नेहा के पापा ने कहा अभी इस की माँ की हालत ठीक नहीं है इसे अभी हॉस्पिटल में ही रहने दो। मैं ने मानवता के नाते अपनी पत्नी वहाँ छोड़ दिया कि मैं शाम को लेने आऊंगा। जब मैं शाम को वहाँ गया तो पता चला कि वो डिस्चार्ज हो कर जा चुके हैं। मैं उन मामा के घर गया तो पता चला की वो लोग मेरी पत्नी को बिना मेरी जानकारी के अपने घर तितलागढ़ ले गये हैं। मैं ने वहाँ कॉल किया। लेकिन मेरी पत्नी से कोई बात नहीं कराई गई। 4-5 दिन वेट किया फिर भी बात नहीं कराई। फिर मैं ने कोर्ट में धारा 98 का आवेदन दिया कि मेरी पत्नी को मेरी जानकारी के बिना ले के चल दिए हैं और बात नहीं कराई जा रही है। 13 को नोटिस रायपुर से निकल गया। इस बीच लड़की से मेरी कोई बात नहीं कराई जा रही थी और गोलमोल जवाब दिया जाता था। 12 दिन के बाद मेरी पत्नी का कॉल आया। उस ने मुझे कहा कि तुम मुझे भूल जाओ। मुझे डाइवोर्स दे दो हमारी शादी को बचपना समझ कर भूल जाओ। कोर्ट और पुलिस के चक्कर मत पड़ो, वरना मैं खुद बोल दूंगी कि मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना। ज़रूरत पड़ी तो मारता था गाली देता था, तुम्हारे घर वाले मुझे गाली देते थे बोल दूँगी।  जबकि मैं नेहा को 03/07/2010 से जानता हूँ। हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं।  शादी के बाद मैं ने उसे हमेशा खुश भी रखा। उस की हर ज़रूरत पूरा करता था।  अचानक वहाँ जा कर 12 दिन में ऐसा क्या हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा है कि उस के घर वाले चाहते हैं की हमारी शादी तोड़ के उस की फिर से शादी कर दें। मैं अपनी पत्नी से खुश था। मैं उसे तलाक़ नहीं देना चाहता। पर अब वह वहाँ जाने के बाद तलाक़ दे दो बोलती है। अब मैं क्या करूँ? मुझे समझ नहीं आ रहा है। 28 दिसंबर को हमें कोर्ट में बुलाया गया है।  मैं क्या करूँ। कृपया मुझे सलाह दें।
समाधान-
नेहा के परिवार वाले नहीं चाहते कि यह रिश्ता कायम रहे। वे तलाक चाहते हैं और अपनी बेटी की आप से और इस विवाह से मुक्ति चाहते हैं। इस का कारण भी स्पष्ट नहीं है। पहले नेहा से आप की बात नहीं होने दी। बाद में नेहा को जो फोन आया है वह परिवार वालों ने अपने सामने कराया है। यदि यह फोन उस ने अपनी इच्छा से अकेले में किया होता तो वह सब बातों का औचित्य भी सिद्ध करने की कोशिश करती। ऐसा लगता है कि आप की पत्नी पूरी तरह से बंदी है।
भी विवाह का एक वर्ष पूरा होने तक तो तलाक की अर्जी भी न्यायालय में नहीं दी जा सकती है। इस कारण आप के पास 21.04.2014 तक का समय है। 28 दिसंबर को जब आप न्यायालय में जाएँ तो निश्चित रूप से नेहा भी आएगी। यदि वह आती है तो आप मजिस्ट्रेट से सीधे कहें कि वह नेहा से उसे कुछ समय के लिए अकेले में बात करने दे क्यों कि वह जो कुछ भी कह रही है वह अपने परिवार के भीषण दबाव के कारण कह रही है। किसी तरह वह दबाव मुक्त हो तो आगे की बात सोची जाए।
फिलहाल आप का रुख यही होना चाहिए कि आप नेहा से बहुत प्रेम करते हैं और इस विवाह को किसी भी हालत में बचाना चाहते हैं। फिर भी आप को लगा कि नेहा की स्वतंत्र इच्छा है कि यह विवाह समाप्त हो जाए तो आप उस की इच्छा पूर्ति के लिए यह भी करने को तैयार हैं। लेकिन आप को विश्वास हो कि नेहा की स्वतंत्र इच्छा यही है। उस के परिवार वाले नेहा कि स्वतंत्र इच्छा जानने का अवसर आप को दें। इस के लिए आप यह प्रस्ताव दें कि वह कम से कम एक सप्ताह तक आप के निवास पर उस के परिजनों के दबाव के बिना रहे।
दि किसी भी तरह से नेहा पर से उस के परिजनों का दबाव हट जाता है और वह अपनी स्वतंत्र इच्छा को प्रकट करने लायक हो कर भी आप के साथ विवाह को बनाए रखने को तैयार नहीं होती है तो सहमति से विवाह विच्छेद का आवेदन 21.04.2014 के उपरान्त प्रस्तुत कर दें। उस में छह माह बाद आप दोनों के बयान न्यायाधीश के सामने होंगे। तब भी विवाह विच्छेद के लिए दोनों सहमत हुए तो ही विवाह विच्छेद की डिक्री पारित की जा सकेगी। इस तरह अभी तलाक के लिए कम से कम 10 माह का समय और लगेगा। इस बीच अपने प्रयत्न जारी रखिए। विवाद को बिलकुल न बढ़ाएँ। कम करने का प्रयत्न करें। नेहा या उस के परिजनों द्वारा आप के विरुद्ध किसी मिथ्या कार्यवाही के होने से बचें।

प्रेम विवाह कर आई स्त्री के पति का संयुक्त परिवार में हिस्सा है, वह सही कहती है कि यह घर उस का भ

समस्या--
मेरे  भाई मैंने प्रेम विवाह किया है। जिसके कारण मेरे परिवार के हालात बहुत बिगड़ गए हैं क्यों कि  जिस  लड़की से  मेरे भाई  ने विवाह किया है वो  तानाशाह  है। उस की अत्यधिक तानाशाही से मेरे परिवार में पूरा असंतोष बना हुआ है। कृपया  आप  बताएँ  कि क्या  हम  उसके  कहीं  जिम्मेदार  हैं  या लड़की के  परिवार   वाले  कहीं  जिम्मेदार हैं। हम  इस  समस्या  से  कैसे निजात  पा  सकते  हैं।  हम ने   उन  दोनों  यानि  मेरे  भाई  और  उस लड़ की  जिस से  मेरे  भाई  ने शादी  की  है को क़ानूनी  तौर  पर  बेदखल भी  करना  चाहा  लेकिन  वो  लड़की  कहती  है  कि  मैं  घर  छोड़कर  नहीं जाउंगी ये मेरा  घर  है। श्रीमान  जी  हमारा  घर  पुश्तैनी है  मेरे दादा  जी  की  मृत्यु हो चुकि है परंतु  मेरी दादी  जी  अभी  जीवित हैं। कृपया उपाय  बताएँ।  ये  भी  बताये क़ि क्या  मेरा  पुश्तैनी जमीन  में कोई  हिस्सा  बनता है,  अगर  हाँ  तो  मैं  उसे  कैसे  प्राप्त कर  सकता  हूँ?
समाधान-
दुनिया की ज्यादातर समस्याएँ समझ के फेर के कारण होती हैं। दिखने वाली अनेक समस्याएँ सिर्फ मिथ्या समस्याएँ होती हैं। उन के पीछे असल समस्या कुछ और होती है। आप अपनी समस्या पर विचार करें।
प के भाई ने अपनी इच्छा से एक लड़की से प्रेम विवाह किया। उस में कुछ गलत नहीं है, ऐसा करने का उन दोनों को अधिकार है। आप का परिवार उस लड़की को और वह लड़की आप के परिवार को ठीक से समझ नहीं रहे हैं। दोनों एक दूसरे को अपना नहीं पा रहे हैं। परिवार समझता है यह उन के परिवार में एडजस्ट नहीं कर पाएगी। लड़की समझती है कि प्रेमविवाह के कारण परिवार चाहता है कि लड़की उन के साथ नहीं रहे। यह झगड़े का कारण है। यदि परिवार यह समझे कि अब यह लड़की परिवार का हिस्सा है उसे हम कैसे भी अपनाएंगे और लड़की यह समझे कि कोई उसे परिवार से अलग नहीं कर सकता तो समस्या कुछ ही समय में हल हो सकती है।
लेकिन आप के यहाँ उस का उलटा हुआ है। लड़की का कोई कानूनी दखल आप के परिवार में नहीं है सिवाय इस के कि उस का पति उस परिवार का हिस्सा है, आप ने उसे बेदखल करने का प्रयत्न किया है। इस बेदखली का कोई अर्थ नहीं है क्यों कि उस का संपत्ति में कोई दखल या अधिकार है ही नहीं। बेदखली की इस कोशिश ने समस्या को और गंभीर किया है।
प ने उस लड़की को तानाशाह कह दिया। उस ने ऐसा क्या किया है जिस से उसे तानाशाह कहा जाए? इस बारे में एक भी तथ्य आप ने नहीं रखा है सिवा इस के कि वह इस घर को अपना कहती है। वैसे वह क्या गलत कहती है? क्या उस के पति के घर को अपना घर न कहे?
में लगता है कि आप के परिवार में सारा झगड़ा पुश्तैनी संपत्ति को ले कर है, चाहे वह घर हो या जमीन। यदि यह सारी संपत्तियाँ पुश्तैनी हैं तो परिवार के सभी सदस्यों का उस संपत्ति में अधिकार है। जिस का निर्धारण बँटवारे से हो सकता है। आप चाहें तो मिल बैठ कर संपत्तियों का बँटवारा कर लें। यदि मिल बैठ कर संभव न हो और आप अपना हिस्सा चाहते हों तो न्यायालय में बँटवारे का दावा करें। न्यायालय बँटवारा कर देगा। बंटवारे के बाद सब अपने अपने हिस्से में रह सकते हैं और उस का उपभोग कर सकते हैं। यह भी हो सकता है कि बँटवारे में हिस्से तय होने के बाद कुछ हिस्सेदार मिल कर रहें और कुछ अलग हो जाएँ।
स झगड़े का कारण भाई की पत्नी को बताना गलत है। उस के पति का भी संयुक्त परिवार की इस संपत्ति में हिस्सा है और वह इस घर को अपना कहती है तो गलत नहीं कहती है। कम से कम उसे तानाशाह कहना छोड़िए और समझिए कि वह तब तक परिवार का अभिन्न हिस्सा है जब तक परिवार और उस की संपत्ति संयुक्त है और परिवार की संपत्ति का बँटवारा नहीं हो जाता।

प्रेम विवाह में कानूनी परेशानियां

प्रेम विवाह (love marriage) करने में मुझे कानूनी रूप से क्या क्या परेशानियाँ आ सकती हैं? और उन का समाधान क्या है?
 उत्तर –
प ने अपने प्रश्न में अपनी परिस्थितियाँ नहीं बताई हैं। यदि सारी परिस्थितियाँ बताते तो आप की परेशानियों का अनुमान कर के विशिष्ठ उत्तर दिया जा सकता था।  आप का प्रश्न अत्यन्त सामान्य है। फिर भी प्रेम विवाह के बारे में सामान्य जानकारी यहाँ दी जा रही है।
‘प्रेम विवाह’ या ‘लव मेरिज’ शब्द कानून में कहीं भी परिभाषित नहीं है। इन शब्दों का उपयोग तब किया जाता है जब अपने परिवारों की सहमति के बिना या सहमति से भी कोई भी स्त्री-पुरुष आपसी सहमति से किए गए विवाहों के लिए किया जाता है। यह विवाह किसी भी पद्धति का हो सकता है। यदि दोनों परिवारों की सहमति हो तो इसे दोनों परिवारों या किसी एक परिवार की परंपरा के साथ विवाह किया जा सकता है। यदि दोनों परिवारों की सहमति हो तो इस तरह के विवाह में कोई कानूनी या सामाजिक समस्या नहीं होती। 
भारत में सभी व्यक्तिगत विधियों के अंतर्गत होने वाले परंपरागत विवाहों को मान्यता प्रदान की गई है। ये व्यक्तिगत विधियाँ विवाह करने वाले स्त्री-पुरुष के धर्म से संबंधित होती हैं। जैसे हिन्दू विवाह, मुस्लिम विवाह (निकाह), ईसाई विवाह, पारसी विवाह और यहूदी विवाह। सभी धर्मों में कुछ प्रकार के संबंधों के बीच विवाह प्रतिबंधित हैं। विवाह इन प्रतिबंधित संबंधियों के बीच हो तो वह अकृत और अवैध विवाह होता है। इस कारण से पहली सावधानी तो यह होनी चाहिए कि विवाह प्रतिबंधित संबंधों के बीच नहीं होना चाहिए। 
मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी धर्मों के अनुयायियों के अतिरिक्त सभी भारतियों को हिन्दू माना गया है। इस कारण से उन सभी पर हिन्दू विवाह अधिनियम प्रभावी है। इस कारण से यदि विवाह करने वाले स्त्री-पुरुष इन धर्मों के अनुयायी न हों तो उन्हें हिन्दू विवाह अधिनियम की शर्तों को पूरा करते हुए ही विवाह करना चाहिए। 
दि विवाह करने वाले स्त्री-पुरुष अलग अलग धर्मों के अनुयायी हों तो उन के बीच विवाह की दो रीतियाँ हो सकती हैं। उन में से कोई एक चाहे वह स्त्री हो या पुरुष अपना धर्म त्याग कर विधिपूर्वक अपने साथी का धर्म अंगीकार करे और फिर उस परिवर्तित धर्म की पद्धति के अनुसार विवाह करे। यदि दोनों ही अपना धर्म परिवर्तित नहीं करना चाहते हों और अपने-अपने धर्म में बने रहना चाहते हों तो उन्हें विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करना चाहिए। 
हिन्दू समूह में अनेक संप्रदाय हैं। जिन में से मुख्य सिख, जैन और बौद्ध संप्रदाय हैं। ये अपने-अपने संप्रदाय के अनुसार विवाह कर सकते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें हिन्दू विवाह अधिनियम की शर्तों की पालना करनी होगी। तभी उन का विवाह एक वैध विवाह कह

पत्नी को मायके से लाने के लिए बंदीप्रत्यक्षीकण सही नहीं

प्रश्न---
प्रेम विवाह करने के बाद यदि माता-पिता लड़की को उस के पति के पास न भेजें तो उस स्थिति में लड़का उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट प्रस्तुत करना चाहता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका कैसे काम करती है? पेशी के दौरान क्या क्या बयान लिए जाते हैं? यदि लड़के ने रिट प्रस्तुत की है तो क्या पेशी के दौरान केवल लड़की से बयान लिए जाते हैं, लड़के से कुछ नहीं पूछा जाता है? क्या न्यायाधीश विवाह बचाने के लिए लड़का लड़की को  नहीं समझाते? या केवल लड़की के बयान ले कर लड़की जहाँ जाना चाहती है उस तरफ भेज देते हैं? अगर लड़की माता-पिता के दबाव में गलत आरोप लगाती है तो क्या न्यायाधीश उन आरोपों को केवल लड़की के कहने पर मान लेते हैं? क्या लड़के की सुनवाई नहीं होती? अगर लड़के के पास 1. रजिस्ट्रार का विवाह प्रमाण पत्र 2. उच्च न्यायालय का प्रोटेक्शन आदेश 3. चित्र 4. फोन की रिकार्डिंग आदि हों तो लड़का किस तरह के आरोप में फँस सकता है?
उत्तर-
ब से पहले आप को जानना चाहिए कि कानूनी रूप से प्रेम विवाह नाम की कोई विवाह श्रेणी नहीं होती है। विवाह या तो परंपरागत रूप से किसी व्यक्तिगत विधि के अनुरूप होते हैं। जैसे हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी विवाह आदि।  इन के अतिरिक्त विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह संपन्न हो सकता है। आप के नाम से पता लगता है कि आप पर हिन्दू विधि लागू होगी। इस कारण से आप हिन्दू विधि के अंतर्गत अथवा विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह कर सकते हैं। हिन्दू विधि के अंतर्गत विवाह परंपरागत रूप से दोनों पक्षों के परिवारों की सहमति से उन की उपस्थिति में संपन्न हो सकता है और आर्य समाज पद्धति से संपन्न विवाह को भी हिन्दू विधि से संपन्न विवाह ही समझा जाता है लेकिन इस में दोनों परिवारों के सदस्यों का होना आवश्यक नहीं है। आज कल कई राज्यों में विवाह का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है। इस कारण किसी भी पद्धति से संपन्न विवाह का पंजीयन कराया जाना भी आवश्यक हो गया है। आप ने रजिस्ट्रार के विवाह प्रमाण पत्र का उल्लेख किया है जिस से लगता है कि आप ने आर्य समाज पद्धति से हिन्दू विवाह किया है अथवा विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह संपन्न किया है।
प के दिए गए विवरण से पता लगता है कि आप के विवाह की जानकारी वधु पक्ष को नहीं है। यदि जानकारी हो भी गई है तो वधु पक्ष उस विवाह के विरुद्ध है और आप की पत्नी को आप के पास भेजना नहीं चाहता। आप अपनी पत्नी को अपने पास लाने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत करना चाहते हैं। लेकिन इस याचिका को लेकर आप के मन में अनेक प्रकार के संदेह भी उपज रहे हैं। इस के लिए आवश्यक है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका क्या है यह आप समझ लें।
दि किसी व्यक्ति को उस की इच्छा के विरुद्ध किसी के द्वारा निरुद्ध किया गया है तो यह एक प्रकार से उस व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है और उस व्यक्ति का कोई संबंधी या मित्र बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। ऐसी याचिका पर उच्च न्यायालय जिस क्षेत्र में उस व्यक्ति को निरुद्ध किया गया हो उस क्षेत्र के पुलिस अधिकारी को निर्देश दिया जाता है कि वह इस तथ्य की जानकारी करे कि जिस व्यक्ति के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत की गई है वह निरुद्ध है और यदि वह निरुद्ध है तो उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे। इस पर पुलिस अधिकारी निरुद्ध व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता है अथवा साक्ष्य सहित यह रिपोर्ट प्रस्तुत करता है कि जिस व्यक्ति के लिए याचिका प्रस्तुत की गई है वह निरुद्ध नहीं है और स्वेच्छा से कथित स्थान पर निवास कर रहा है।
प के मामले में दोनों ही परिणाम सामने आ सकते हैं। पुलिस आप की पत्नी को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है अथवा इस तथ्य की रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकता है कि वह स्वेच्छा से अपने माता-पिता के साथ निवास कर रही है। यदि आप की पत्नी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तो उस न्यायालय उस से सिर्फ इतना पूछ सकता है कि वह अपने माता-पिता के साथ स्वेच्छा से निवास कर रही है या उसे उस की इच्छा के विपरीत रोका गया है। यदि पत्नी यह कहती है कि वह अपनी इच्छा से अपने माता-पिता के साथ निवास कर रही है और आगे भी करना चाहती है तो न्यायालय उसे उस की इच्छानुसार निवास करने की स्वतंत्रता प्रदान कर देगा। यदि पुलिस रिपोर्ट प्रस्तुत करती है तो न्यायालय रिपोर्ट की सत्यता की जाँच करेगा और यदि यह पाएगा कि आप की पत्नी स्वेच्छा से अपने माता-पिता के साथ निवास कर रही है तो वह आप की याचिका को निरस्त कर देगा।
दि आप रजिस्ट्रार का विवाह प्रमाण पत्र, उच्च न्यायालय का प्रोटेक्शन आदेश, चित्र तथा फोन की रिकार्डिंग  न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करते हैं तो इस से यह तो साबित हो जाएगा कि वह आप की पत्नी है, आप का विवाह वैध है। लेकिन फिर भी पत्नी के यह चाहने पर कि वह माता-पिता के साथ रहना चाहती है उसे स्वतंत्र कर दिया जाएगा। कोई भी न्यायालय आप की पत्नी को आप के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। केवल पत्नी के यह चाहने पर कि वह पति के साथ रहना चाहती है। उसे उस के पति के साथ भेजा जा सकता है।
प का विवाह यदि वैध है तो यह भी सच है कि आप की पत्नी दूसरा विवाह नहीं कर सकती। आप की पत्नी के माता-पिता भी उस का दूसरा विवाह नहीं करवा सकते हैं। यदि वे ऐसा कोई प्रयत्न करते हैं तो उन्हें न्यायालय के आदेश से ऐसा करने से आप रुकवा सकते हैं। आप के पास पत्नी को अपने पास लाने का सब से सही उपाय यह है कि आप हि्न्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन प्रस्तुत करें। वहाँ से आप की पत्नी को सूचना भेजी जाएगी। पत्नी का जवाब आने पर न्यायालय आप दोनों के बीच सुलह कराने का प्रयत्न करेगा। यदि वहाँ आप दोनों के मध्य सुलह हो जाती है तो ठीक है अन्यथा आप उसी आवेदन को विवाह आवेदन में परिवर्तित कर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकते हैं इस तरह से दोनों के मध्य विवाह विच्छेद हो जाएगा और दोनों विवाह से स्वतंत्र हो कर स्वेच्छा से अपने आगे का जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

परिरुद्ध पत्नी को छुड़ाने के लिए धारा 97 दं.प्र.सं. में आवेदन करें या बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत करें

समस्या-
मेरी शादी अंतर्जातीय है, मेरी शादी को दस माह हो गए हैं। मेरी पत् पढ़ाई करती है और मैं नौकरी करता हूँ। मैं ने कोर्ट मैरिज की है। शादी के दस महिने बाद जब मेरी पत्नी घर गई और शादी के बारे में बताया तो वो इस शादी को मानने के ले तैयार नहीं हुए और मेरे से बात होना भी बंद हो गई। मेरी पत्नी ने कोर्ट में सन्हा दर्ज की वो शादीशुदा नहीं है और मेरे ऊपर लगाया गया कि मैंने उसे जबर्दस्ती कोर्ट मैरिज किया मैं ने सामाजिक प्रयास किया कि मेरा पत्नी से बात कराई जाए। पर वो नहीं हो पाया साथ में उसे कहीं हटा कर रख दिया गया है। अब मैं क्या करूँ।

समाधान-
प ने यह तो बताया है कि आप ने कोर्ट मैरिज की है, लेकिन यह नहीं बताया कि कोर्ट मैरिज से आप का क्या तात्पर्य है।  अनेक बार स्त्री-पुरुष न्यायालय परिसर में उपस्थित हो कर नोटेरी पब्लिक के यहाँ एक दूसरे को पति-पत्नी मान कर साथ रहने के शपथ पत्र व अनुबंध तस्दीक करवाते हैं और यह समझ बैठते हैं कि उन की कोर्ट मैरिज हो गई है। यदि ऐसा है तो यह किसी भी प्रकार से विवाह नहीं है। इसे अधिक से अधिक लिव-इन-रिलेशन का अनुबंध माना जा सकता है। कोर्ट मैरिज जिसे वैध विवाह की संज्ञा दी जा सकती है वह जिला विवाह पंजीयक के यहां विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करने का नोटिस दाखिल करने पर तथा ऐसा नोटिस दाखिल करने के 30 दिन के उपरान्त पंजीयक के समक्ष उपस्थित हो कर विवाह पंजीकृत कराने पर संपन्न होता है। विवाह पंजीयक इस के लिए पति-पत्नी को विवाह का प्रमाण पत्र जारी करता है। इस विवाह का अभिलेख विवाह पंजीयक के यहाँ सदैव मौजूद रहता है। इस तरह के विवाह को दबाव से किया गया विवाह नहीं माना जा सकता है। यदि आप का विवाह विवाह पंजीयक के यहाँ संपन्न हुआ है तो वह एक वैध विवाह है और उसे दबाव के द्वारा किया गया विवाह नहीं कहा जा सकता है।
प की पत्नी को उस के मायके के परिवार वाले नहीं आने दे रहे हैं और आप को विश्वास है कि उसे जबरन उस की इच्छा के विरुद्ध रोका गया है तो यह एक अपराध है। यदि किसी व्यक्ति को जबरन उस की इच्छा के विरुद्ध रोका जाता है जो कि एक अपराध है तो उस के लिए जिला मजिस्ट्रेट, उपखण्ड मजिस्ट्रेट अथवा प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 97 के अंतर्गत तलाशी-वारण्ट जारी कर सकता है और उस व्यक्ति को उस के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है। ऐसा व्यक्ति मिल जाने पर तथा मजिस्ट्रेट के समक्ष लाए जाने पर मजिस्ट्रेट उस के बयान ले कर उसे स्वतंत्र करने का अथवा किसी के संरक्षण में देने का आदेश दे सकता है। धारा-97 दंड प्रक्रिया संहिता निम्न प्रकार है –

97. सदोष परिरुद्ध व्यक्तियों के लिए तलाशी – यदि किसी जिला मजिस्ट्रेट, उपखण्ड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण हो कि कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में परिरुद्ध है, जिस में वह परिरोध अपराध की कोटि में आता है, तो वह तलाशी-वारण्ट जारी कर सकता है और वह व्यक्ति जिस को ऐसा वारण्ट निर्दिष्ट किया जाता है, ऐसे परिरुद्ध व्यक्ति के लिए तलाशी ले सकता है और ऐसी तलाशी तदनुसारी ही ली जाएगी और यदि वह व्यक्ति मिल जाए तो उसे तुरन्त मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाया जाएगा, जो ऐसा आदेश करेगा जैसा उस मामले की परिस्थितियों में उचित प्रतीत हो।
प किसी अच्छे वकील की सहायता से उक्त उपबंध के अंतर्गत आप की पत्नी को मजिस्ट्रेट के समक्ष लाए जाने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं और इस से आप की समस्या हल हो सकती है।
दि आप समझते हैं कि आप की पत्नी को कहीं गायब कर दिया गया है और आप को तथा आप की पत्नी की सुरक्षा को खतरा है तो आप उच्च न्यायालय के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत कर अपनी पत्नी को मुक्त कराने तथा आप दोनों को संरक्षण प्रदान करने की प्रार्थना कर सकते हैं। इस याचिका पर उच्च न्यायालय पुलिस को आप की पत्नी को तलाश कर के न्य़ायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है।

महिला को उस की इच्छा के विरुद्ध बन्दी बनाए जाने पर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बेहतर

समस्या--
प्रेमिका को हिन्दू रीति से खून से माँग-भर कर पत्नी मानकर पिछले 15 वर्ष से लिव-इन-रिलेशन में रहा। महिला जो तलाकशुदा मुस्लिम होकर 3 बच्चों की माँ है उसे उस के सगे भाई ने घर में बँधक बना कर रखा हुआ है। पिता का साया तो 34 साल पहले ही उठ गया है अब मैं अपनी इस पत्नी-प्रेमिका को कैसे उसके भाई की कैद से मुक्त करा सकता हूँ। उस का भाई मुझे मारने का दो बार असफल प्रयास कर चुका है और मेरी पत्नी-प्रेमिका को किसी और व्यक्ति को सौंप देना चाहता है। क्योंकि वह महिला केवल मेरे पास साथ रहना चाहती है पर भाई बीच में दीवार बन कर खडा है। क्या मैं 97 के वारँट द्वारा उस की कस्टडी ले सकता हूँ यदि महिला कोर्ट में अपनी सहमति से मेरे साथ रहना चाहती है। यदि उसे वहाँ से आजाद नही कराया गया तो कहीं वह अपनी जीवन लीला ही समाप्त न कर दे। सबूत के तौर पर उस के लिखे खत मैंने सँभाल कर रखे हैं जिस में उसने अपनी चाहत प्यार का इजहार किया गया है और हमारे साथ बिताये लम्होँ की खूबसूरत फोटो भी है ।
समाधान-
धारा 97 दंड प्रक्रिया संहिता में यदि जिला मजिस्ट्रेट, उप खंड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह विश्वास हो जाए कि कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में परिरुद्ध है जिन में वह परिरोध अपराध की कोटि में आता है तो वह तलाशी वारंट जारी कर सकता है। और यदि ऐसा व्यक्ति मिल जाए तो उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। मजिस्ट्रेट मामले की परिस्थितियों के अनुरूप उचित आदेश पारित कर सकता है। आप के मामले के तथ्यों से ऐसा लगता है कि आप धारा 97 दंड प्रक्रिया संहिता का उपयोग कर सकते हैं।
प की प्रेमिका परिरुद्ध ही नहीं है अपितु बंदी प्रतीत होती है। ऐसी स्थिति में आप उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भी प्रस्तुत कर सकते हैं और वहाँ से उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश जारी करवा सकते हैं। वह धारा 97 से अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकता है। बाद में जैसा वह महिला चाहेगी वैसा आदेश दिया जा सकता है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट निरस्त कराने के लिए निगरानी तथा पत्नी को मुक्त कराने हेतु बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत करें

समस्या-
मेरा विवाह 2009 में रावतभाटा के पास एक गाँव में हुआ। मेरी पत्नी महज पाँचवीं पास है। मैं ऑटो चालक हूँ।  मैं अपने माता-पिता व भाई बहनों से अलग रहता हूँ।  एक ही छत के नीचे अलग कमरे में।  मेरे नाम अलग से गैस कनेक्शन, राशनकार्ड आदि भी हैं। मेरे अभी दो साल की एक बेटी दिव्यांशी है। मेरी पत्नी अजब के गर्भाशय में शिकायत होने पर मैंने 12 जनवरी 2013 को जेके लोन अस्पताल कोटा राजस्थान में अस्पताल अधीक्षक व गायनोलोजिस्ट डॉक्टर आरपी रावत की यूनिट में भर्ती कराया। यहां माइनर ऑपरेशन के बाद जांच प्रयोगशाला में भेजी। 24 जनवरी 2013 को छुट्टी दी। जांच रिपोर्ट में 30 जनवरी 2013 को गर्भाशय केंसर की पुष्टि हुई। लेकिन 24 जनवरी 2013 को ही मेरा साला कोटा स्थित मेरे घर से मुझे भरोसे में लेकर मेरी पत्नी व बेटी को अपने साथ रावतभाटा लेकर चला गया। 4 फरवरी 2013 को अचानक मेरी पत्नी की तबीयत खराब हुई और उसे रावतभाटा में ही एक निजी डॉक्टर को दिखाया।  बाद में उसी रात को बेहोशी की हालत में उसे कोटा ले आए।  मैं भीलवाडा था तो मेरे परिजन पत्नी को संभालने पहुँचे। मेरा साला व अन्य परिजन साथ थे। सभी रात को ही मेरी पत्नी को डॉक्टर आरपी रावत के घर ले गए। यहां डॉक्टर ने जेके लोन रेफर कर दिया। लेकिन मेरा साला व अन्य परिजन सरकारी अस्पताल न जाकर मेरे भाई को चकमा देकर अन्यत्र अस्पताल लेकर चले गए। मेरे घर वाले काफी तलाश करते रहे। उनके मोबाइल पर कई दफा कॉल व एसएमएस किए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। बाद में पता चला कि कोटा में ही श्रीनाथपुरम स्थित जैन सर्जिकल अस्पताल में ले गए थे और यहां 5 अप्रैल 2013 को गर्भाशय निकाल दिया। इस में डॉक्टर ने पति होने के नाते मेरी सलाह तक नहीं लीं।  18 अप्रैल 2013 को मैंने महावीर नगर थाने में मामले की रिपोर्ट दर्ज करवाई। पुलिस अभी जांच में जुटी हुई है। इस दरमियान न तो मुझे और न मेरे परिवार वालों को मेरी पत्नी से मेरे ससुराल वालों ने मिलने दिया। मेरी पत्नी का जैन सर्जिकल व एक अन्य अस्पताल में उपचार करवाया, ऐसा मुझे पता चला है। लेकिन उस की हालत बेहद नाजुक है। अभी उसे गांव में ही छोड़ रखा है। पता नहीं दवा गोली भी दे रहे हैं या नहीं। मेरी बेटी को भी मुझ से नहीं मिलने देते। मैंने प्रयास भी किया लेकिन मेरे साले ने मुझे जान से मारने की धमकी दी है। अब यानी 1 मई 2013 को मेरे ससुर तेजीसिंह ने मेरे व मेरे परिवार के खिलाफ जरिए इस्तगासा धारा 498 ए, 406, 313, 323, 314, के तहत रावतभाटा पुलिस स्टेशन में मुकदमा दर्ज करवा दिया है।  इस्तगासे में जिन सात बिंदुओं को आधार बनाया गया है वो सभी असत्य व मनगढ़न्त कहानी पर आधारित हैं। जो निष्पक्ष जांच में झूठे साबित होंगे। लेकिन फिलहाल मैं और मेरा परिवार काफी मानसिक टेंशन के दौर से गुजर रहा है। मेरे पिता गाँव में रहते हैं और किसान हैं। मेरे दो छोटी बहनें व एक भाई है जो अविवाहित है। इस मुकदमें की खबर से हमारी समाज में काफी बदनामी हो रही है। और भविष्य में मेरे भाई बहनों के रिश्ते होने में परेशानी बन सकती है। मैं चाहता हूं कि मेरी पत्नी व बेटी और मेरे ससुर व साले के चंगुल से निकले और हमेशा मेरे साथ रहे। ताकि मैं मेरी पत्नी का इलाज करवा सकूँ और बेटी की ठीक से परवरिश कर सकूँ। लेकिन मेरे ससुराल वाले मेरी जिंदगी को पता नहीं क्यों बरबाद करने में तुले हैं। समझाइश के काफी जतन किए लेकिन वो नहीं मान रहे। आप ही मुझे मेहरबानी करके कोई ऐसा कानूनी उपाय बताएं जिससे मेरे परिवार की खुशियाँ फिर से लौट आएँ। मेरा तो यहीं कहना है कि अगर मैं दोषी पाया जाता हूँ तो मुझे कठोर सजा मिले।  लेकिन अगर निर्दोश साबित होता हूँ तो मेरे व मेरे परिवार के खिलाफ शड़यंत्र रचने वालों के खिलाफ ठोस कार्रवाई हो। ताकि महिलाओं के संरक्षण के लिए बने कानूनों का कोई भी व्यक्ति गलत उपयोग न करें।
समाधान –
प के मामले में या तो आप के ससुराल वालों को कुछ गलतफहमियाँ हैं या फिर उन की कोई बदनियती है। यदि आप के विरुद्ध रावतभाटा पुलिस स्टेशन ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज ली है तो आप को तुरन्त उस प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त करने के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष 482 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत रिवीजन याचिका प्रस्तुत करनी चाहिए।
प की समस्या के तथ्यों से पता लगता है कि आप की पत्नी को उस के मायके वालों ने ही बंदी बना रखा है जो उस के स्वयं के हित में नहीं है।  आप को अपनी पत्नी को उस के मायके वालों से मुक्त कराने लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करनी चाहिए।

बेटी को तुरन्त नर्क से निकालिए।

समस्या-
मैं ने अपनी पुत्री की शादी दो साल पूर्व की थी।  शादी में मैं ने अपने सामर्थ्य से बढ़ कर खर्च किया ताकि मेरी बेटी का जीवन खुशहाल रहे।  परन्तु शादी के तुरन्त बाद से ही मेरे बेटी के ससुराल वालों द्वारा उसे पैसों के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा।  मेरी बेटी के सास-ससुर आए दिन बेटी को प्रताड़ित करते हैं। मेरे दामाद तथा उसका भाई बेटी के साथ मारपीट भी करते हैं।  सामाजिक भय से मैं ने एक दो बार बात करने की कोशिश भी की किन्तु वे बार बार बेटी को बरबाद कर देने की धमकी देते हैं। वे अन्य परिवारी जनों से भी आए दिन बदतमीजी करते रहते हैं और कहते हैं कि तुम मेरा कुछ नहीं  कर सकते तथा पैसों की मांग करते रहते है।  कृपया कोई सुझाव दीजिए।
समाधान-
दि आप ने अपनी समस्या में अपनी पुत्री के साथ ससुराल वालों के व्यवहार के बारे में जो कुछ लिखा है वह सब सच है तो फिर आप की बेटी का जीवन तो बरबाद हो ही चुका है।  आप की बेटी को उस के सास-ससुर प्रताड़ित करते हैं, पति व उस का भाई उस के साथ मारपीट करते हैं उस से पैसा मंगाने की बात करते हैं। इस से अधिक आप की बेटी का जीवन उस के ससुराल वाले क्या बिगाड़ेंगे? मुझे आश्चर्य है कि आप ने इन सब बातों को अब तक कैसे सहन किया? सारे अपराध आप की बेटी के ससुराल वालों ने किए हैं आप की बेटी और आप ने नहीं। सामाजिक भय उन्हें होना चाहिए आप को नहीं। आप को अपनी बेटी की तुरन्त मदद करनी चाहिए। यदि आप इतना होते हुए भी कुछ नहीं करते हैं तो निश्चित रूप से एक माता-पिता होने का हक भी खो देंगे। पैसों के लिए जो व्यवहार आप की बेटी के साथ उस के ससुराल वाले कर रहे हैं। यदि उन का चरित्र ऐसा ही है तो आप की बेटी जीवन में एक दिन भी प्रसन्न नहीं रह सकती।
प अपनी बेटी को ससुराल नाम के उस नर्क से निकाल कर ले आइये।  ऐसे ससुराल से तो अच्छा है कि वह जीवन भर अकेले जीवन गुजार दे। आप की बेटी के साथ जो अत्याचार हुए हैं वह सब क्रूरता है और धारा 498 ए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध है। आप बेटी को उस की ससुराल से बाहर निकाल कर ससुराल के क्षेत्राधिकार वाले पुलिस थाना में रिपोर्ट दर्ज कराइए। यदि पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है तो न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर उसे धारा 156 (3) दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस को अन्वेषण के लिए भिजवाइए। यदि वे विवाह के समय दिया गया दहेज और उसे सभी लोगों से मिले हुए उपहार चाहे वह ससुराल वालों और उन के संबंधियों व मित्रों से क्यों न मिले हों स्त्री-धन हैं। बेटी उन की मांग भी करे। स्त्री-धन न लौटाने पर धारा 406 भारतीय दंड संहिता का भी अपराध आप के ससुराल वालों ने किया है।
प बेटी को अपने यहाँ ले आएँ तब उस की ओर से महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम में भी न्यायालय में परिवाद करवाएँ जिस में आप की बेटी  अपने लिए सुरक्षा और भरण पोषण के खर्चे की भी मांग करे। आप अभी इतना तो करें। बाद में जैसी परिस्थितियाँ बनें उस के अनुसार आगे कदम उठाएँ। उस समय पुनः आप तीसरा खंबा से सलाह कर सकते हैं।

बेहतर है आप न्यायालय में शिकायत दर्ज कराएँ!

समस्या--
मेरा विवाह 14 जुलाई 2013 को संपन्न हुआ था। विवाह के दस दिन बाद ही मेरे पति और सास ने मुझे दहेज कम लाने के लिए कहना आरंभ कर दिया, मेरा पूरा वेतन उन्हें देने के लिए कहने लगे। मुझे खर्चों के लिए धन देने से मना कर दिया। इस के बाद पति ने गाली गलौच करना आरम्भ कर दिया। कुछ माह बाद मुझे पता लगा कि पति रोज शराब पीता है। शराब पीने के बाद मुझे गालियाँ देता है। कभी कभी मुझे पीटता भी है। इन तथ्यों की जानकारी मिलने पर मेरे पिता मुझे अपने घर ले जाने के लिए आए। उस समय भी ससुराल वालों ने गाली गलौच किया और बहुत नाटक किया। तब मेरे भाई ने 100 नंबर पर फोन किया। पुलिस ने आने के बाद परिस्थितियों पर नियंत्रण किया। पति के परिवार के साथ बहुत बहस के बाद भी वे मुझे अपने घर रखने को तैयार नहीं हुए तब मैं ने महिला शाखा में शिकायत की। वहाँ महिला थानेदार ने 3 सुनवाई तक मेरा पक्ष लिया लेकिन चौथी सुनवाई से ही वह यह कहने लगी कि आप पति पक्ष से 3 लाख रुपए तथा उपहार, फर्नीचर व अन्य दहेज का सामान ले लें। लेकिन मैं ने कहा कि हम विवाह में 9 लाख रुपया खर्च कर चुके हैं। जिस की पूरी विगत भी दे दी गई थी।  लेकिन वह 3 लाख से अधिक दिलाने को तैयार नहीं हुई और कहा कि आप को इतना पैसा लेने के लिए तो अदालत जाना होगा। मेरा परिवार पहले ही बहुत धन खर्च कर चुका है और पिताजी ने अपने रिटायरमेंट का सारा धन शादी में लगा दिया था। कृपया सुझाव दें कि मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
ति और सास के दुर्व्यवहार के कारण तथा दहेज की मांग को लेकर गाली गलौच करने व मारपीट करने का ज्ञान होने पर आप के पिता आप को अपने घर ले जाने को आए थे। जिस पर आप के ससुराल वालों ने नाटक किया और पुलिस बुलानी पड़ी। उस के बाद आप ने स्वयं किन परिस्थितियों में वापस अपनी ससुराल जाने का निर्णय किया यह बाद हमारी समझ से परे है। इतना कुछ हो जाने के बाद उन्हीं परिस्थितियों में पुनः लौटने का निर्णय तो एक तरह से पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। आप खुद नौकरी करती हैं और आत्मनिर्भर हैं। वैसी परिस्थिति में एक क्रूरतापूर्ण वैवाहिक जीवन का तो कोई अर्थ नहीं है। हाँ यदि परिस्थितियाँ सुधरने की कोई संभावना हो तो ऐसा सोचा जा सकता है।
विवाह के 10 दिन बाद दहेज कम लाने की शिकायत करना और दहेज की मांग को लेकर गाली गलौज व मारपीट करना तो धारा 498-ए भा.दं.संहिता के अन्तर्गत अपराध है और आप का स्त्री-धन न लौटाना धारा 406 भा.दं.संहिता में अपराध है। लेकिन आप ने इस की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई है या फिर पुलिस ने नहीं की है। पुलिस महिला सहायता केन्द्र ने आप की शिकायत को एक अपराध के रूप में दर्ज नहीं किया अपितु यह कोशिश की कि किसी तरह आप दोनों में समझौता हो जाए। उस के लिए भी शिकायत आप ने ही की थी।
ब आप के पति और सास आप को नहीं रखना चाहते हैं तो इस का सीधा अर्थ यही है कि उन की नीयत पहले से ही अच्छी नहीं थी। वे चाहते थे कि आप कमाती रहें, उन्हें देती रहें और घर में भी काम करती रहें। उन्हें लगा है कि उन की यह मंशा कभी पूरी नहीं होगी इस कारण से वे अब आप के साथ विवाह को जारी नहीं रखना चाहते हैं। आप के लिए भी वैसी परिस्थिति में उन के साथ विवाह को जारी रखना उचित नहीं है।
ब तक महिला थानेदार को लगा कि वह दोनों पक्षों में कोई समझौता करवा सकती है वह आप को उधर से मिला अधिकतम प्रस्ताव आप को बताती रही। लेकिन इस से अधिक संभव नहीं होने पर उस ने आप के सीधे यह कहा कि इस के लिए आप को न्यायालय जाना पड़ेगा। उस का सुझाव सही है। महिला सहायता केन्द्र इस से अधिक कुछ नहीं कर सकता। अब आप या तो संबंधित पुलिस थाने में उक्त दोनों अपराधों के लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाएँ, या फिर न्यायालय में शिकायत करें। पुलिस आप को न्यायालय में शिकायत करने का सुझाव इस कारण दे रही है कि इस से आप को एक प्रोफेशन वकील की सहायता मिलेगी तो आप अपने मामले को ठीक से लड़ सकेंगी।
मारी राय में आप को न्यायालय में उक्त धाराओं के अन्तर्गत शिकायत प्रस्तुत कर देनी चाहिए। यह शिकायत न्यायालय द्वारा अन्वेषण हेतु पुलिस थाने को भेज दी जाएगी। तब आप के इस मामले में वकील की भूमिका समाप्त हो जाएगी। आ जाएगी और अन्वेषण के बाद उस पर पुलिस आप की सास व पति के विरुद्ध आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत कर देगी। तब आप को केवल अपने बयान देने के लिए ही न्यायालय में जाना पड़ेगा।
प चूंकि खुद कमाती हैं इस कारण भरण पोषण प्राप्त करने के लिए कोई आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत करने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप के विवाह को एक  वर्ष पूरा  होने तो आप विवाह विच्छेद के लिए आवेदन प्रस्तुत नहीं कर सकतीं। एक वर्ष हो जाने पर आप विवाह विच्छेद के लिए आवेदन कर सकती हैं। आप के स्त्री-धन का एक हिस्सा तो पुलिस उन से बरामद कर लेगी जो आप को न्यायालय से सुपूर्दगी पर वापस मिल जाएगा। बाकी राशि को आप जब विवाह विच्छेद का आवेदन करें तो स्थाई पुनर्भरण के रूप में मांग कर सकती हैं।
ह भी हो सकता है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के बाद आप का ससुराल पक्ष कुछ अधिक धन दे कर समझौता करने को तैयार हो जाए। तब बहुत सारी परेशानियों से बचने के लिए किसी ठीक ठाक समझौते पर पहुँचा जा सकता है।

किसी भी व्यक्ति को दोषसिद्ध हो जाने के बाद ही सजा दी जा सकती है

समस्या-
मैं ने अपने पति और सास, ससुर के विरुद्ध दहेज, मारपीट, गाली गलौच का मुकदमा पेश किया हुआ है। केस करते ही पति गिरफ्तार हो गया। लेकिन सास और ससुर को गिरफ्तार नहीं किया गया। ससुर पुलिस में हैं शायद इस लिए वे लोग जमानत पर छूट गए। मुकदमा कर देने के बाद भी अभी तक उन के खिलाफ कोई वारंट भी नहीं निकला है और वे सभी खुले आम घूम रहे हैं। आखिर उन्हें सजा कब मिलेगी? उन के खिलाफ मेरे पास रिकार्डिंग भी है। जिस में उन सब ने हमें जान से मारने की धमकी भी दी हुई है। ये एफ.आई.आर. मैं ने दिसम्बर 2009 में करवाई थी। अभी तक इस का कोई अता-पता नहीं है। क्या ये मुकदमा रद्द हो गया है?  मुझे अब उन्हें कैसे भी सजा दिलवानी है। उन्हों ने मुझ पर गंदे गंदे आरोप लगाना शुरु कर दिया था जिस से मेरी बदनामी भी हुई। क्या मैं उन पर मानहानि का मुकदमा भी दायर कर सकती हूँ। उन्हें क्या क्या सजा मिल सकती है।

समाधान-
प ने जो प्रथमं सूचना रिपोर्ट  (एफआईआर) की थी उस पर पुलिस ने कार्यवाही की है. उसी के कारण आप के पति की गिरफ्तारी हुई और उन्हें जेल में रहना पड़ा। बाद में उन की जमानत हो गई। शायद आप के सास और ससुर को भी अदालत ने अग्रिम जमानत दे दी है। इस कारण से उन्हें भी गिरफ्तार नहीं किया गया। अब आप को यह पता नहीं है कि आगे क्या हुआ।
जिस मामले में आप के पति को 2009/2010 में गिरफ्तार किया गया है उस मामले में यह नहीं हो सकता है कि पुलिस ने न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल न किया हो। निश्चित रूप से पुलिस ने न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया होगा और आप के पति व सास, ससुर के विरुद्ध न्यायालय में मुकदमा चल रहा होगा। आप चाहें तो उस पुलिस स्टेशन से जिस में आपने रिपोर्ट दर्ज कराई थी जानकारी कर सकती हैं।
प की शिकायत आप के विरुद्ध क्रूरता का व्यवहार करने, मारपीट करने, गाली-गलौच करने और स्त्रीधन वापस न करने के बारे में होगी। इस मामले में धारा 498-ए, 406, 323, और 504 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत मुकदमा दर्ज हुआ होगा और आप का स्त्री-धन बरामद करने के लिए आप के पति की गिरफ्तारी हुई होगी। बाद में उन्हें जमानत दे दी गई होगी। यह सब स्वाभाविक है। क्यों कि जब तक मुकदमे के दौरान सबूतों और गवाहियों से यह साबित नहीं हो जाता कि अभियुक्तों ने उक्त धारा के अंतर्गत जुर्म किया है यही माना जाएगा कि वे निरपराध हैं। इस कारण से किसी को भी बिना साबित हुए जेल में रखना उचित नहीं है। किसी भी व्यक्ति को दोषसिद्ध हो जाने के बाद ही सजा दी जा सकती है।  मुकदमे के दौरान वे जमानत पर रहते हैं और न्यायालय द्वारा दंडित होने के उपरान्त य़दि वे अपील करना चाहते हैं और अपील के निर्णय तक सजा को निलम्बित रखने का आवेदन करते हैं तो न्यायालय मामले की गंभीरता के आधार पर सजा को निलंबित रख सकता है। अपील में भी सजा बरकरार रहने पर दोषियों को जेल में सजा काटने के लिए भेजा जाता है।
मारी न्याय व्यवस्था की सब से बड़ी कमी यह है कि उस के पास जरूरत की 20 प्रतिशत अदालतें भी नहीं हैं। अदालतों में मुकदमों का अम्बार लगा है। इस के लिए राज्य सरकारें और केन्द्र सरकारें दोषी हैं कि वे पर्याप्त मात्रा में अदालतें स्थापित नहीं करती हैं। इस कारण से मुकदमों के फैसले में कई कई वर्ष लग जाते हैं।आप का मुकदमा भी न्यायालय में सुनवाई आरंभ होने के इन्तजार में रुका होगा। जब भी उस में गवाही की स्थिति आती है आप को न्यायालय से समन प्राप्त होगा तब आप गवाही के लिए प्रस्तुत होंगी तभी आप अपने पास के सभी सबूत न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकती हैं। आप चाहें तो उक्त मुकदमे का पता कर के उस में अपनी ओर से वकील नियुक्त कर सकती हैं जो आप की ओर से मुकदमे की देखभाल करे और आप की पैरवी करे। वैसे आप की ओर से सरकारी वकील पैरवी कर रहा होगा।
प की बदनामी करने के लिए आप अलग से मुकदमा दायर कर सकती हैं। इस के लिए आप को स्वयं न्यायालय में शिकायत दर्ज करानी होगी और उस मुकदमे की हर तारीख पर उपस्थित होना पड़ेगा। इस के लिए आप किसी वकील से संपर्क कर के उस के माध्यम से धारा 500 भा.दं.संहिता के अंतर्गत न्यायालय में शिकायत प्रस्तुत कर सकती हैं।
मेरे राय में जितना कुछ हो गया है उस के उपरान्त आप का यह विवाह अब बचे रहने के लायक नहीं रह गया है। आप को चाहिए कि आप विवाह विच्छेद के लिए आवेदन करें और विवाह विच्छेद करवा कर अपने जीवन का नया आरंभ करने की बात पर विचार करना चाहिए।

बेशक प्रेम विवाह कर सकते हैं, लेकिन चार वर्ष बाद

समस्या-
मेरी उम्र 17 वर्ष की है। क्या मैं प्रेम विवाह कर सकता हूँ।
समाधान-
बेशक, आप प्रेम विवाह कर सकते हैं, लेकिन कम से कम चार वर्ष आप को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। भारतीय कानून में विवाह की न्यूनतम आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष और स्त्रियों के लिए 18 वर्ष है। इस से पहले विवाह कर के आप अपराध करेंगे जिस का आप पर और आप का विवाह कराने वाले पुरोहित पर अपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है जिस में कारावास के दंड से दंडित किया जा सकता है।
वैसे भी अभी आप की उम्र कुछ बनने की है। शायद आप अभी विवाह का अर्थ नहीं समझते। विवाह से अनेक दायित्व मनुष्य पर उत्पन्न होते हैं। पहले इंसान को उन दायित्वों को पूरा करने के लायक होना आवश्यक है। दूसरों पर या पैतृक संपत्ति पर निर्भर करते हुए इन दायित्वों को पूरा करना बहुत दुष्कर होता है। यदि आप किसी से प्रेम करते हैं और उस से विवाह करना चाहते हैं तो यह और भी जरूरी है कि विवाह कोई अपराध नहीं हो। आप को अपने प्रेम को और विकसित करना चाहिए। इस के लिए आप के पास चार वर्ष का समय है। इस में न केवल आप अपना विकास करें अपितु अपने प्रेम की प्रगाढ़ता में वृद्धि करें। जब विवाह की आयु प्राप्त कर लें तो फिर विवाह करें।

बहुत कठिन है राह पनघट की …

समस्या-
मैं बी.एस.सी. अंतिम वर्ष का छात्र हूं में पिंकी (जो कि बी.एस.सी. कॉलेज से पूर्ण कर चुकी है) नाम की लडकी से प्यार करता हूं और पिंकी भी मुझे चाहती है हम दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते हैं। हम दोनों उम्र में बालिग हैं लेकिन जब हम ने ये बात अपने परिजनों को बताई तो पिंकी के परिजनों ने मिलकर मेरी पिटाई कर दी। वो लोग राजनीतिक लोगों के संपर्क में रहते हैं इस लिये मेरे परिजनों ने पुलिस में रिर्पोट नहीं करने दी। मेरे और पिंकी के परिजनों ने मुझे और पिंकी को एक दूसरे के संपर्क में न रहने की चेतावनी दी है पिंकी और मैं अब भी एक दूसरे को चाहते हैं शादी करना चाहते हैं। मेरी अभी कोई जॉब भी नहीं लगी है और मैं निम्न श्रेणी लिपिक की तैयारी कर रहा हूँ। एक परीक्षा भी दे दी है जिस का परिणाम आने ही वाला है। हम दोनों के परिवार वाले हमारी शादी करने के विरोध में हैं। पिंकी के तीन भाई हैं और वो गुंडा टाईप के हैं। मेरे परिवार के पास कोई ताकत नहीं है लड़ने की कि हम उनकी बराबरी कर सकें। पिंकी हर हालत में मेरे साथ रहना चाहती है। उस के घर वालों ने उसका घर से बाहर भी निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया है। फिर भी हम एक कामवाली बाई के माध्यम से एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। अगर मैं अकेला पुलिस के पास गया तो पुलिस हो सकता है पिंकी के परिजनों के साथ मिलकर मुझे ही किसी तरह फँसा कर मुजरिम न बना दे। पिंकी और मैं क्या करें?
समाधान-
पिंकी के परिवार वालों ने आप को मिल कर पीट दिया। यह एक अपराध था जिस की रिपोर्ट थाने में कराना चाहिए था। क्यों कि आप का परिवार उन का मुकाबला नहीं कर सकता इस कारण से आप के परिवार ने आप को रिपोर्ट नहीं कराने दी और आप मान गए। आप में इतना भी साहस नहीं कि अपने परिवार वालों के विरुद्ध जा कर आप अपने साथ हुए अपराध की रिपोर्ट करा सकें। आप परिणामों से डर गए। आप के परिवार वाले पिंकी के परिवार वालों से डरते हैं। इस कारण यदि आप यह विवाह करते हैं तो वे आप का साथ नहीं देंगे। पिंकी के परिवार वाले पहले ही आप से और पिंकी से खफा हैं। फिर भी किसी तरह आप यह विवाह कर लेते हैं तो दोनों परिवार आप के विरुद्ध हो जाएंगे। यदि दोनों परिवार आप के विरुद्ध कुछ भी न करें तब भी वे आप को अपने साथ तो नहीं रखेंगे। आप और पिंकी दोनों बेरोजगार हैं। आप दोनों की आय का कोई और साधन नहीं है। आप दोनों अपने अपने परिवारों पर निर्भर हैं। जब यह सहारा आप से छिन जाएगा तो आप दोनों जिएंगे कैसे?
पिंकी बी.एससी. कर चुकी है, आप अभी बी.एससी. में अटके हैं। नौकरी के लिए आवेदन दिया है लेकिन उस का मिलना कितना कठिन है उस का अनुमान आप को नहीं है। ऐसे में आप दोनों विवाह की सोच रहे हैं यही आप दोनों का सब से बड़ा दोष है। जो बच्चे परिवार की इच्छा से विवाह कर रहे हैं वे भी जब तक स्वयं के पैरों पर खड़े नहीं हो जाते विवाह नहीं करते। कानून ने विवाह की उम्र कुछ भी क्यों न तय कर दी हो। लेकिन विवाह की उम्र तब तक नहीं होती जब तक कि लड़का और लड़की दोनों अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाएँ और अपने जीवन को एक दूसरे के बिना भी सुचारु रूप से चलाने में सक्षम न हो जाएँ। अभी तो आप के पनघट की राह बहुत कठिन है।
दि आप दोनों एक दूसरे से वास्तव में प्रेम करते हैं और यह केवल मात्र यौनाकर्षण नहीं है तो आप दोनों को चाहिए कि पहले दोनों पैरों पर खड़े हो जाएँ। कमाई करें और कम से कम एक-एक दो-दो लाख रुपये का बैंक बैलेंस बना लें। समाज में कुछ अपने समर्थक भी बनाएँ, क्यों कि आप को उस समाज से टकराना है जो आप के विवाह को होते नहीं देखना चाहता। फिर सोचें कि आप दोनों को क्या करना है? यदि इतना आप ने यह सब कर लिया तो आप दोनों अपने अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध जा कर विवाह करने की सोच सकते हैं। इस से पहले कुछ भी करना बचपना है। अभी तो आप को विवाह की सोच को त्याग देना चाहिए। आप इतना कुछ कर लें, तब भी आप दोनों यह विवाह करना चाहेंगे तो आप को अपना रास्ता भी मिल जाएगा। न मिले तो तब तीसरा खंबा से फिर से पूछ लेना तब हम आप को उपाय बता देंगे।

नवविवाहित अन्तर्जातीय युगल को अपने परिजनों से खतरा हो तो पुलिस संरक्षण के लिए रिट याचिका प्रस्तुत करे।

समस्या-
मैंने अपनी प्रेमिका से एक साल पहले शादी की थी, आर्य समाज में। अभी ये बात दोनों में से किसी के घर वालों को नहीं मालूम है। पत्नी अभी अपने घर पर ही रहती है। अब हम लोग साथ रहना चाहते हैं। दोनों ही अलग अलग जाति के हैं लेकिन हिन्दू दोनों लोग है। कौन सा ऐसा कदम उठायें कि जिस से पत्नी के घर वाले मेरे और मेरे घर वालों को कोई नुक्सान न पहुँचाएँ।
समाधान-
प इस बात से डरे हुए हैं कि जैसे ही आप की पत्नी अपने परिवार को छोड़ कर आप के साथ रहने लगेगी वे आप के विरुद्ध पुलिस में शिकायत करेंगे या फिर आप के साथ कोई अपराधिक गतिविधि करेंगे। यदि वे पुलिस में शिकायत करते हैं तो आप की पत्नी के बयान पर निर्भर करेगा कि वे आप के व आप के परिवार वालों के साथ क्या करते हैं। यदि आप अपनी पत्नी पर विश्वास करते हैं तो उसे अपने साथ ला कर रह सकते हैं।
दि आप को पत्नी के परिजनों द्वारा आप के या आप के परिवार के साथ कोई अपराध करने का अंदेशा है तो आप दोनों सीधे उच्च न्यायालय में एक संयुक्त रिट याचिका लगाएँ कि आप विवाहित हैं लेकिन आप के परिजन इस अंतर्जातीय विवाह के कारण आप दोनों के साथ और एक दूसरे के परिजनों के साथ कोई भी अपराध घटित कर या करवा सकते हैं। आप को पुलिस और प्रशासन के संरक्षण की आवश्यकता है। उच्च न्यायालय आप को पुलिस संरक्षण प्रदान करने का आदेश संबंधित पुलिस अधिकारियों को दे सकता है।

कोर्ट मैरिज क्या है? यह कैसे की जाती है?

समस्या-
मैं एक लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूँ।  लेकिन समस्या यह है कि हम दोनों भिन्न जातियों के हैं और लड़की के माता-पिता इस विवाह से सहमत नहीं हैं। कृपया बताएँ कि हमारा विवाह कैसे हो सकता है? कोर्ट मैरिज के बारे में विस्तार से बताएँ।
समाधान-
दि आप दोनों वयस्क हैं तो आप विवाह कर सकते हैं।  इस के लिए माता-पिता की सहमति की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस अंतर्जातीय विवाह के लिए आप को समाज में विरोध सहन करना होगा।  यह भी हो सकता है कि लड़की के माता-पिता आप के विरुद्ध लड़की को बहला फुसला कर ले जाने उस का अपहरण करने और उस के साथ बलात्कार करने जैसे आरोप भी लगा सकते हैं।  एक बार पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर लेने के उपरान्त आप को गिरफ्तार भी किया जा सकता है।  लड़की को उस के माता-पिता के संरक्षण में दिया जा सकता है। सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि लड़की पुनः अपने माता-पिता के संरक्षण में जाने के उपरान्त भी आप के पक्ष में यह बयान दे कि उस ने आप से स्वेच्छा से विवाह किया है और वह आप के साथ रहना चाहती है। यदि आप के विरुद्ध की मुकदमा दर्ज हो जाए और आरोप पत्र दाखिल हो तो आप को उस का मुकाबला करना होगा।  यदि आप इन सब के लिए तैयार हैं तो आप यह विवाह कर सकते हैं।
कोर्ट मैरिज नाम की कोई चीज नहीं होती है।  लेकिन हमारे यहाँ विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत होने वाले विवाह को ही कोर्ट मैरिज कहा जाता है।  इस के अलावा कछ वकील लड़के-लड़की दोनों से एक एक शपथ पत्र लिखवा कर एक दूसरे को दे देते हैं जिस में लिखा होता है कि वे बालिग हैं और पति-पत्नी के रूप में स्वेच्छा से साथ रहने को सहमत हैं।  इस तरह स्त्री-पुरुष का साथ रहना विवाह कदापि नहीं है। इसे अधिक से अधिक लिव इन रिलेशन कहा जा सकता है।
विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत स्त्री-पुरुष जाति के अंतर और धर्म के अंतर के बावजूद भी विवाह कर सकते हैं।  इस के लिए स्त्री-पुरुष को निर्धारित प्रपत्र में विवाह करने के आशय की एक सूचना ऐसे जिले के जिला विवाह अधिकारी को जो कि राजस्थान में जिलों के कलेक्टर हैं, प्रस्तुत करना होता है जिस में विवाह के पक्षकारों में से कोई एक निवास करता हो। साथ ही नोटिस जारी करने की शुल्क जमा करनी होती है जो कि नाम मात्र की होती है। इस आवेदन के साथ दोनों स्त्री-पुरुषों के फोटो पहचान पत्र प्रस्तुत करने होते हैं। इस संबंध में पूरी जानकारी जिला कलेक्टर कार्यालय में विशेष विवाह अधिनियम के मामले देखने वाले लिपिक से प्राप्त की जा सकती है।  यह आवेदन प्रस्तुत करने पर यह कलेक्टर  के कार्यालय की नोटिस बुक में रहता है जिसे कोई भी व्यक्ति देख सकता है और कार्यालय के किसी सार्वजनिक स्थान पर चिपकाया जाता है।  यदि विवाह के इच्छुक दोनों व्यक्ति या दोनों में से कोई एक किसी दूसरे जिले का निवासी है तो यह नोटिस उस जिले के कलेक्टर को भेजा जाता है और वहाँ सार्वजनिक स्थान पर चिपकाया जाता है। इस नोटिस का उद्देश्य यह जानना है कि दोनों स्त्री-पुरुष विवाह के लिए पात्रता रखते हैं अथवा नहीं। यदि विवाह में कोई कानूनी बाधा न हो तो नोटिस जारी करने के 30 दिनों को उपरान्त तथा आवेदन प्रस्तुत करने के तीन माह समाप्त होने के पूर्व कभी भी जिला विवाह अधिकारी के समक्ष विवाह संपन्न कराया जा सकता है। जिस के उपरान्त जिला विवाह अधिकारी विवाह का प्रमाण पत्र जारी कर देता है।
प चाहें तो आप हिन्दू विधि के अनुरूप किसी पंडित से भी अपना विवाह करवा सकते हैं और पंडित द्वारा प्रदत्त विवाह प्रमाण पत्र, विवाह के चित्रों और विवाह के साक्षियों के हस्ताक्षरों के साथ विवाह का पंजीयन नगर या ग्राम के विवाह पंजीयक के कार्यालय में करवा सकते हैं।

सामाजिक समस्या से सामाजिक रूप से ही निपटना होगा।

समस्या-

मैं ने अपनी मर्जी से क़ानूनी तौर पर शादी की है।  हम उँची जाति के है और मेरी पत्नी निम्न जाति की है।  जबकि मैं जाति -पाती में विश्वास नहीं करता  और मेरा परिवार भी मेरी इस शादी से खुश है।  परन्तु समस्या यह है कि हम एक गांव में रहते हैं जिसके कारण मेरी इस शादी से गांव के कुछ लोग मेरे परिवार वालों के ऊपर ताने कसते हैं और बे-वजह की बातों से मेरे परिवार वालों को तकलीफ देते रहते हैं।  यहाँ तक कि मेरे परिवार वालों का घर से बाहर निकलना मुस्किल हो गया है।  सबसे बड़ी समस्या तो ये है कि मुझसे बड़ा एक मेरा भाई भी है जो कि अभी कुंवारा है, उसके रिश्ते में मेरी शादी विशेष रूप से रोड़ा साबित हो रही है, क्योंकि मेरे परिवार वाले भले ही मेरी शादी से खुश हों लेकिन समाज के हर उस व्यक्ति को समझाना मुश्किल है जो जाती-पाती में आज भी विश्वास करते हैं और ऐसी शादी को नहीं मानते।  इसी कारणवश मेरा बड़ा भाई भी मुझसे नफरत करने लगा है।  क्योंकि कानून जो भी हो लेकिन रिश्ता करने वाले कानून को नहीं बल्कि समाज को देखते हैं, मेरा भाई परिवार की सहमति से शादी करना चाहता है वो कानूनन की जाने वाली शादी को नहीं चाहता। कृपया मुझे बताएं की समाज  (गांव) के अपशब्द बोलने वाले लोगों के खिलाफ हम कैसे क़ानूनी हल निकल सकते है और मेरे भाई की शादी की समस्या कैसे हल हो।  ये भी बताएं कि क्या मेरे और मेरी पत्नी के खिलाफ मेरा भाई क्या कोई मुकदमा पेश कर सकता है तथा मेरा और मेरी पत्नी का पैतृक जायदाद में कोई अधिकार है।  जायदाद मेरे दादा जी की है और दादा जी का स्वर्गवास हो चुका है।
समाधान-
प की समस्या कानूनी नहीं अपितु सामाजिक है। हमारा कानून आगे बढ़ गया है और समाज बहुत पीछे छूट गया है। समाज में परिवर्तन का काम नहीं के बराबर है। आप की समस्या तभी समाप्त हो सकती है जब कि समाज बदले। आप की समस्या यह है कि आप उसी जाति समाज से सम्मान पाना चाहते हैं जिस के कायदों का आप ने उल्लंघन किया है। वह आप को सम्मान तभी दे सकता है जब कि वह आप के इस विवाह को स्वीकार कर ले। यह कानूनन नहीं किया जा सकता। इस के लिए तो समाज को बदलना होगा। यदि समाज में 5 प्रतिशत विवाह भी आप जैसे विजातीय संबंधों में होने लगें तो समाज का नियंत्रण समाप्त होने लगेगा। इस के लिए आप को समाज में चेतना का संचार करना पड़ेगा। जो जाति समाज रूपी कीचड़ से निकल कर खुली हवा में साँस लेना चाहते हैं उन्हें इस के लिए काम करना पड़ेगा। आप के विवाह के बाद जाति समाज ने जो व्यवहार आप के साथ किया है उस से आप का भाई व परिवार डर गया है। आप को उस का भय निकालना होगा। आप के प्रति जो व्यवहार किया जा रहा है उस का उद्देश्य यही है कि आप और आप का परिवार डरा रहे। लेकिन यदि यह भय निकल जाता है तो समय के साथ गाँव वालों का व्यवहार भी सामान्य होने लगेगा। यदि आप का भाई अच्छा खाता कमाता है तो यह समस्या कुछ समय बाद स्वतः सामान्य हो जाएगा और उसी जाति समाज से आप के भाई के लिए रिश्ते आने लगेंगे। इस समस्या का कोई कानूनी हल नहीं हो सकता।
हाँ तक आप के व आप के परिवार के अपमान का प्रश्न है। आप को लगता है कि आप का कुछ अधिक ही अपमान किया जा रहा है तो आप अपमान करने वालों के विरुद्ध मानहानि के अपराधिक और दीवानी मुकदमे दायर कर सकते हैं। ऐसे एक दो मुकदमे दायर होने से इस तरह का व्यवहार करने वालों में मुकदमे का भय होगा और वे ऐसा व्यवहार करना बंद कर देंगे। लेकिन मुकदमा करने के बाद भी आप का व्यवहार ऐसे लोगों से शत्रुतापूर्ण न हो कर सबक सिखा कर पुनः मित्रता स्थापित करने वाला होना चाहिए तभी आप इस सामाजिक समस्या का मुकाबला कर सकेंगे। वे लोग जो कर रहे हैं वे नहीं जानते कि गलत कर रहे हैं उन्हें बाद में इस का अहसास होगा। वे अभी अपनी सड़ी गली परंपराओं की रक्षा कर रहे हैं।
प की पुश्तैनी संपत्ति का प्रश्न है तो उस में आप का हिस्सा पूरी तरह बना हुआ है। यदि उस में आप का हिस्सा है तो वह अन्तर्जातीय विवाह करने के कारण आप से नहीं छीना जा सकता है। उस पर आप का अधिकार है। आप विभाजन का मुकदमा कर के अपने हिस्से का पृथक कब्जा प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन आप की पत्नी का उस में कोई हिस्सा नहीं होगा। वैसे भी आप जाति में परिवार की सहमति से विवाह करते तब भी आप की पत्नी का उस में कोई हिस्सा नहीं होता।

मैं तलाक नहीं चाहता, मुझे क्या करना चाहिए?

समस्या---
मेरा विवाह 30 नवंबर 2006 को हुआ था, विवाह के छह माह तक सब ठीक रहा। छह माह के बाद से मेरी ससुराल वाले मुझे अपना घर छोड़ कर अपने यहाँ मकान ले कर रहने के लिए कहने लगे। मेरे ससुर मेरी पत्नी को 16 सितंबर 2008 को विदा करा कर ले गए।  फिर जब में विदा कराने गया तो वह विदा नहीं किये और मुझे बेइज्जत कर के भगा दिया। वापस आ कर मैं ने धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम में दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन अदालत में प्रस्तुत किया। दूसरा पक्ष अदालत नहीं आया जिस से मुझे एक-तरफा डिक्री प्राप्त हो गई।  अदालत के आदेश पर भी मेरी पत्नी नहीं आई तो मैं ने उस के अदालत की डिक्री के निष्पादन का आवेदन प्रस्तुत किया हुआ है। मेरी पत्नी ने मेरे ऊपर धारा 125 दं.प्र.संहिता और धारा 13 व धारा 27 हिन्दू विवाह अधिनियम का मुकदमा कर दिया है। मैं तलाक नहीं चाहता मेरे एक दो वर्ष की संतान भी है। मेरी पत्नी मुझे उस से मिलने नहीं देती। मैं तलाक नहीं चाहता हूँ, मुझे उचित सलाह दें।    
उत्तर –
ब से अच्छी बात यह है कि आप ने तलाक नहीं लेने की इच्छा प्रकट की है। निश्चय ही इस के पीछे आप का अपनी संतान के प्रति मोह और प्रेम है। लेकिन विवाह के छह माह उपरांत ही आप के ससुराल वाले उन के नजदीक मकान ले कर रहने पर दबाव डालने लगे? फिर भी आप की पत्नी आप के साथ लगभग दो वर्ष तक रही और उस ने आप की संतान को जन्म दिया, इस के बाद वह अपने मायके गई और अब आने से इन्कार करती है? आप ने इन दो बातों के कारणों की तह में जाने का प्रयत्न नहीं किया। हो सकता है आप एक संयुक्त परिवार में या माता-पिता, भाई-बहनों के साथ रहते हों और कुछ ऐसे कारण हों जिन्हों ने आप की पत्नी को परेशान किया हो और उस वातावरण में वह स्वयं को असहज पाती हो और उस की समझ यह बनी हो कि वह सब को तो बदल नहीं सकती जिस से उस की परेशानी समाप्त हो जाए। इन परिस्थितियों में उस ने निर्णय लिया हो कि तभी आप दोनों का जीवन सही हो सकता है जब कि आप अपने परिवार से दूरी बना कर अपनी गृहस्थी बसाएँ। वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी कोई जड़ वस्तु नहीं होते। वे जीवन्त होते हैं और उन के बीच का संबंध भी जीवन्त होना चाहिए। मुझे लगता है कि आप और आप की पत्नी के बीच कोई गलतफहमी है जिसे आपसी बातचीत से दूर किया जा सकता है। मेरी राय में तो आप अपने सारे पूर्वाग्रहों को त्याग कर एक बार अपनी ससुराल जाएँ, वहाँ दो चार दिन रहें और अपनी पत्नी से प्यार और स्नेह से पूछें कि आखिर क्या कारण है कि वह आप के साथ आप के परिवार में नहीं रहना चाहती है। यदि आप स्वच्छ मन से इस नतीजे पर पहुँचे कि उस की बातों में दम है तो फिर विचार करें कि आप को अपनी गृहस्थी चलाने के लिए अब क्या करना चाहिए?
रना स्थिति तो यह बनी है कि धारा-9 की डिक्री आप के पास है। इस का निष्पादन नहीं कराया जा सकता है। केवल इतना किया जा सकता है कि एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर आप अपनी पत्नी से तलाक ले सकें। आप की पत

पति-पत्नी के बीच बहुत से मुकदमे हो जाने पर स्थाई लोक अदालत की सहायता लें।

मेरा नाम बलिन्दर है।  मैं एक गैर सरकारी संस्थान में काम करता हूंI  मेरी आय 8000 रूपए प्रतिमाह है।  लेकिन पूरे परिवार कि जिम्मेदारी मुझ पर है।  मेरा विवाह 12.11.2010 को हिन्दू रीति रिवाज से सम्पन्न हुआ था। लगभग 1 वर्ष तक पत्नी मेरे साथ रही और कुछ समय बाद उसके घरवाले उस को मेरी पत्नि को मेरे मना करने के बाद भी उसकी रजामंदी से उसको लेकर चले गये। तब से वह वहीं रह रही है। लेकिन कुछ समय बाद ग्राम पंचायत द्वारा आपसी सहमति से लिखित समझौता हो गया है।  लेकिन समझौते के अनुसार तलाक न्यायालय से होना जरूरी था।  जिसके लिए मेरी पत्नि की और से न्यायालय में 13 बी हिन्दू विवाह अधिनियम का आपसी सहमति से तलाक मुकदमा भी किया।  लेकिन वह न्यायालय में हाजिर नही हुयीI वह पंचायत द्वारा तय किया गया भरण पोषण खर्च पहले ही मांग रही थी। जो कि हमने पहले देने से मना कर दिया।  उसके बाद उनके मन में लालच आ गया और वह ज्यादा पैसे की मांग करने लगी जो कि मैं देने में असमर्थ हूँ।  सहमति से तलाक का मुकदमा शायद खारिज हो गया है। अब जून 2013 में मेरे और परिवार वालों के खिलाफ धारा-498 A भा.दं.संहिता का केस कर दिया जिस में मुझे दो दिन तक जेल भी जाना पड़ा। अभी मैं और परिवार वाले जमानत पर हैं।  लेकिन मैंने घर बसाने का धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम का मुकदमा दर्ज किया है। लेकिन 4 तारीख लग चुकी है और वह अभी तक न्यायालय में हाजिर नहीं हुयी है। उसके बाद मेरी पत्नि ने 125 दं.प्र. संहिता का भरण पोषण का केस भी किया है।  साथ में घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज किया है।  उनका मकसद हमें न्यायालय में बार बार बुलाकर परेशान करना है।  मैं आपसे यह जानना चाहता है कि जो मैंने घर बसाने का धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम  का मुकदमा दर्ज किया है उसके बावजूद भी मुझे मेरी पत्नि द्वारा 125 दं.प्र. संहिता में भरण पोषण का क्या खर्च दना पड़ेगा तथा इस का का क्या प्रावधान है?
समाधान –
प बिलकुल सही समझे। आप की पत्नी आप से तलाक चाहती है और ठीक ठाक धनराशि भरण पोषण हेतु चाहती है। इस के लिए पंचायत में समझौता हो चुका है। जिस की प्रति आप के पास अवश्य होगी। आप को सभी मुकमदमों में उक्त समझौते की प्रति प्रस्तुत करना चाहिए और उस के आधार पर यह प्रतिरक्षा लेनी चाहिए कि सब कुछ समझौते से हो चुका था लेकिन आप की पत्नी और उस के माता पिता के मन में बेईमानी आ गई जिस के कारण ये सब मुकदमे किए हैं।
लेकिन आप की पत्नी ने किसी वकील की सलाह ली और उस की सलाह से आप पर दबाव बनाने के लिए ये सब मुकदमे किए हैं। धारा 498-ए का मुकदमा वे साबित नहीं कर पाएंगे यदि आप की प्रतिरक्षा में अच्छा वकील हुआ तो आप सब उन में दोष मुक्त हो जाएंगे।
धारा-9 का मुकदमा कर देने पर यदि आप के वकील ने ठीक पैरवी की तो आप के पक्ष में डिक्री हो सकती है। इस के आधार पर धारा 125 का मामला भी आप के विरुद्ध खारिज हो सकता है लेकिन उस के लिए भी आप के वकील को बहुत श्रम करना होगा।
फिर भी सब से अच्छा मार्ग यही है कि किसी तरह से आपसी समझौते की सूरत निकाली जाए। इस के लिए आप आप के जिले की स्थाई लोक अदालत में आवेदन दे सकते हैं जिस में सारी बात ईमानदारी से स्पष्ट रूप से लिखें। इस से स्थाई लोक अदालत आप के सारे मुकदमों को अपने पास मंगवा कर राजीनामें की बात कराएगी। यदि राजीनामा हो गया तो आप को जल्दी ही इन सब से मुक्ति मिल जाएगी। आप को स्थाई लोक अदालत को कहना चाहिए कि राजी नामे का आधार पंचायत का फैसला होना चाहिए। आप को पंचायत के निर्णय से कुछ अधिक भरण पोषण राशि आप की पत्नी को देनी पड़ सकती है। लेकिन अच्छा और जल्दी निकलने वाला हल राजीनामे से सारे मुकदमों का निपटारा किया जाना ही है।

पत्नी या उस के माता-पिता से फर्जी मुकदमे करने की धमकी मिलने पर क्या करें?

समस्या-
मेरा विवाह 2008 में हिन्दू रीति रिवाज से हुआ था।  दो वर्ष तक हमारा वैवाहिक जीवन बहुत अच्छी तरह से चल रहा था।  लेकिन उस के बाद मेरी सास और ससुर ने मेरी पत्नी को मेरे परिवार के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया।  मेरे परिवार में माँ और एक छोटा भाई है।  मेरी पत्नी लगभग दो वर्ष से अपने मायके में है।  मैं ने उसे लाने की कई बार कोशिश की। पर उस की एक ही जिद रही है कि जब तक मैं अपने परिवार से अलग नहीं हो जाता तब तक वह नहीं आएगी।  मैं ने उसे मना कर दिया कि मैं अपनी माँ और भाई को नहीं छोड़ सकता।  उस के बाद मेरी पत्नी ने मुझ पर घरेलू हिंसा का मुकदमा कर दिया।  जिस का निर्णय यह हुआ कि प्रार्थना पत्र आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया।  मुझ पर जो आरोप पत्नी ने लगाए उन्हें वह साबित नहीं कर सकी।  न्यायालय ने मुझे आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से रुपए 1000/- प्रतिमाह गुजारा भत्ता अपनी पत्नी को देने का आदेश दिया।  उस के बाद पत्नी ने धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर दिया है, जिस में उस ने यह मिथ्या तथ्य अंकित किया है कि मेरी आमदनी एक लाख रुपया बताई है।  पिछले एक साल से पत्नी पेशी पर नहीं आ रही है, जानबूझ कर केस लटका रखा है।  इस दौरान भी मैं ने उसे खूब समझाया पर वह मानने को तैयार नहीं है।  अब मेरे ससुर ने मुझे धमकी दी है कि मैं ने अपने परिवार को नहीं त्यागा तो मेरे ऊपर 498 ए भा. दंड संहिता सहित चार मुकदमे और लगवा देंगे।  मेरे कोई संतान भी नहीं है।  मैं बहुत परेशान हूँ।
समाधान-
ह आजकल एक आम समस्या हो चली है।  अधिकांश पतियों की शिकायत यही होती है कि पत्नी को उस के माता-पिता ने भड़काया और वह पति को छोड़ कर चली गई।  उस का कहना है कि परिवार छोड़ कर अलग रहो तो आएगी। मना करने पर वह मुकदमा कर देती है।  लेकिन यह जानने की कोशिश कोई नहीं करता कि ऐसा क्यों हो रहा है? समस्या के आरंभ में ही यह जानने की कोशिश की जाए और काउंसलिंग का सहारा लिया जाए तो ऐसी समस्याएँ उसी स्तर पर हल की जा सकती हैं।  लेकिन आरंभ में पति-पत्नी दोनों ही अपनी जिद पर अड़े रहते हैं, मुकदमे होने पर समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है।  दोनों और इतना दुराग्रह हो जाता है कि समस्या का कोई हल नहीं निकल पाता है।
तीसरा खंबा को पति की ओर से इस तरह की शिकायत मिलती है तो उन में अधिकांश में पत्नी और उस के मायके वालों का ही दोष बताया जाता है।  पति कभी भी अपनी या अपने परिवार वालों की गलती नहीं बताता।  जब कि ऐसा नहीं होता।  ये समस्याएँ आरंभ में मामूली होती हैं जिन्हें आपसी समझ से हल किया जा सकता है।  ये दोनों ओर से होने वाली गलतियों से गंभीर होती चली जाती हैं और एक स्तर पर आ कर ये असाध्य हो जाती हैं।  आरंभ में पत्नी अपनी शिकायत पति से ही करती है।  ये शिकायतें अक्सर पति के परिवार के सदस्यों के व्यवहार से संबंधित होती हैं।  पहले पहल तो पति इन शिकायतों को सुनने से ही इन्कार कर देता है और पत्नी को ही गलत ठहराता है।  दूसरे स्तर पर जब वह थोड़ा बहुत यह मानने लगता है कि गलती उस के परिवार के किसी सदस्य की है तो वह अपने परिवार के किसी सदस्य को समझाने के स्थान पर अपनी पत्नी से ही सहने की अपेक्षा करता है।  यदि आरंभ में ही पत्नी की शिकायत या समस्या को गंभीरता से लिया जाए और दोनों मिल कर उस का हल निकालने की ओर आगे बढ़ें तो ये समस्याएँ गंभीर होने के स्थान पर हल होने लगती हैं।
में लगता है कि यदि इस स्तर पर भी काउंसलिंग के माध्यम से प्रयत्न किया जाए आप की समस्या भी हल हो सकती है।  काउंसलिंग जिन न्यायालयों में मुकदमे चल रहे हैं उन से आग्रह कर के उन के माध्यम से भी आरंभ की जा सकती है।  काउंसलर के सामने दोनों अपनी समस्याएँ रखें और उन्हें मार्ग सुझाने के लिए कहें।  काउंसलर दोनों को अपने अपने परिजनों के प्रभाव से मुक्त कर के दोनों की गृहस्थी को बसाने का प्रयत्न कर सकते हैं।  खैर¡
किसी भी कार्य को करने के लिए किसी व्यक्ति को यह धमकी देना कि अन्यथा वह उसे फर्जी मुकदमों में फँसा देगा, भारतीय दंड संहिता की धारा 503 के अंतर्गत परिभाषित अपराधिक अभित्रास (Criminal Intimidation) का अपराध है। धारा 506 के अंतर्गत ऐसे अपराध के लिए दो वर्ष के कारावास का या जुर्माने का या दोनों से दंडित किया जा सकता है।  आप को पत्नी और उस के माता-पिता ने यह धमकी दी है कि वे आप के विरुद्ध फर्जी मुकदमे लगा देंगे।  यदि आप यह सब न्यायालय में साक्ष्य से साबित कर सकते हैं कि उन्हों ने ऐसी धमकी दी है तो आप को तुरंत धारा 506 भा.दं.संहिता के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए।  जिस से बाद में पत्नी और उस के माता-पिता द्वारा ऐसा कोई भी मुकदमा कर दिए जाने पर आप प्रतिरक्षा कर सकें।  ऐसा परिवाद प्रस्तुत कर देने के उपरान्त आप को अपने वकील से एक नोटिस अपनी पत्नी को दिलाना चाहिए जिस में यह बताना चाहिए कि उस का स्त्री-धन आप के पास सुरक्षित है और कभी भी वह स्वयं या अपने विधिपूर्वक अधिकृत प्रतिनिधि को भेज कर प्राप्त कर सकती हैं।  इस से आप धारा 406 भारतीय दंड संहिता के अपराधिक न्यास भंग के अपराध में प्रतिरक्षा कर सकेंगे। इस के साथ ही आप हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत पत्नी के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए भी आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए।