सेक्शन 482 का प्रयोग उन मामलों में नहीं, जहां आरोप को कोर्ट में साबित करने की आवश्यकताः सुप्रीम कोर्ट
2 Feb 2020
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग उन मामलों में नहीं किया जा सकता, जहां आरोपों को कोर्ट में साबित करने की आवश्यकता होती है।
इस मामले में आरोप था कि एक सहकारी बैंक के कर्मचारियों के साथ मिलीभगत कर आरोपी के मृतक पिता ने अपने पद का दुरुपयोग किया। उन्होंने रिश्तेदारों को जाली दस्तावेजों के आधार पर फर्जी ऋण प्रदान किया और वित्तीय अनियमितताएं की। आरोपी पर आपीसी की धारा 420, 406, 409, 120 बी आईपीसी के तहत आरोप दायर किया गया था।
रिवीजन पिटीशन में हाईकोर्ट ने पाया था कि प्रतिवादियों के खिलाफ धारा 420 और 120 बी आईपीसी के तहत अपराधियों स्थापित नहीं हो सकता है। यह माना गया कि इस बात का कोई दावा नहीं किया गया है कि ऋण इस जानकारी के साथ दिया गया कि वे ऋण का भुगतान नहीं करेंगे।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने राज्य द्वारा दायर अपील को अनुमति देते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने प्री-ट्रायल स्टेज पर पूरे मामले की जांच की है कि क्या अपराध सेक्शन 420 और 120-बी के तहत किया गया है या नहीं ।
पीठ ने कहा-
"प्रतिवादियों के पिता जब बैंक के प्रेसिडेंट थे, उन्हें कैश क्रेडिट लिमिट अनुदान लाभ दिया गया। आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग उन मामलों में नहीं किया जा सकता है, जहां आरोपों को अदालत में साबित करने की आवश्यकता होती है।
जिस तरह से बिना उचित दस्तावेजों के ऋण दिया गया और यह तथ्य कि प्रतिवादी अपने पिता की उदारता के लाभार्थी रहे हैं, प्रथम दृष्टया आईपीसी की धारा 420 और 120-बी के तहत किया गया अपराध है। यह कहा जा सकता है कि बैंक के अन्य अधिकारियों को अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) और 13 (2) के तहत आरोपित किया गया है।"
केस टाइटल: स्टेट ऑफ मध्य प्रदेश बनाम योगेंद्र सिंह जादौन व अन्य
केस नं: CRIMINAL APPEAL NO 175 OF 2020
कोरम: जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता