Thursday, February 6, 2020

जूनियर वकील को धमकाने की अनुमति नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

 जूनियर वकील को धमकाने की अनुम‌ति नहीं", द‌िल्‍ली हाईकोर्ट ने मुकदमे की लागत के एक लाख रुपए वकील को देने का आदेश दिया 

6 Feb 2020 4:18 PM 

           हाईकोर्ट के आदेशों का कथित रूप से पालन न करने के आरोप में एक जूनियर वकील के खिलाफ दायर अवमानना ​​याचिका को खारिज करते हुए, दिल्ली हाईकोर्ट ने जूनियर वकीलों को दी गई धमकियों पर नाराज़गी व्यक्ति की है। अटॉर्नी की कुछ शक्तियों की वैधता का निर्धारण करने के एक मामले के संबंध में सितंबर और दिसंबर 2019 में हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों के अनुपालन की मांग करते हुए याच‌िकाकर्ता ने एक जूनियर वकील पर आवमानना का आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता ने कहा है क‌ि हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन सुनिश्‍चित करने का दारोमदार उन्हीं पर था। ज‌स्टिस प्रतिभा एम सिंह की एकल पीठ ने नोट किया कि याचिकाकर्ता ने अनुपालन के लिए वकील को कई ई-मेल भी भेजे थे। इस पर उन्होंने कहा- "आदेशों के कथित गैर-अनुपालन का यदि कोई ईलाज है तो तो वो इस कोर्ट से संपर्क करना है, न कि विरोधी पक्ष के वकील को ई-मेल भेजना और उन पर आरोप लगाना है।" अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अवमानना ​​के आवेदन में जैसी भाषा का इस्तेमाल किया है, वह अपमानजनक है। याचिकाकर्ता के अनुसार, जूनियर वकील ने "इन 5 ई-मेल में से किसी का भी जवाब देने की जहमत नहीं उठाई" और एक अवसर पर "आवेदक के लिए पेश होने वाले वकील को सूचित करने की धृष्टता की" कि मूल पॉवर ऑफ अटॉर्नी दाखिल करने का कोई इरादा नहीं है, क्योंकि अदालत से इस आशय का कोई आदेश नहीं है।" याचिकाकर्ता की भाषा पर कड़ा रुख अपनाते हुए जस्टिस सिंह ने कहा, "इस तरह के आरोप लगाना और ऐसी भाषा का उपयोग करना जैसे" वकील ने धृष्टता की" इस कोर्ट में पसंद नहीं की जाएगी। ऐसी भाषा कानूनी दलील की सीमाओं को पार करती है और विशेष रूप से उन वकीलों के खिलाफ है, जो अपनी पेशेवर क्षमता के साथ कार्य करते हैं।" मूल मामले के रिकॉर्डों के अध्ययन के बाद अदालत ने पाया कि अटॉर्नी की शक्तियों की वैधता और मान्यता का निर्णय मुख्य मामले में किया जाना था। अदालत ने कहा कि एक जूनियर वकील के खिलाफ आरोप लगाना, वह भी बिना ठोस मामले के, "पूरी तरह से अस्वीकार्य और ग़लत है।" कोर्ट ने कहा- "ऐसा करना जूनियर वकील को धमकी देने जैसा है, जो बिलकुल स्वीकार्य नहीं है। जूनियर वकील पर आरोप लगाना और उन्हें बार-बार ई-मेल भेजना, एक तरीके से, जूनियर वकील को धमकी देना है, जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।" कोर्ट ने मामले में जूनियर वकील को 1,00,000/- रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया है। मामले का विवरण: केस का शीर्षक: M/S CNA एक्सपोर्ट्स (P) लिमिटेड बनाम मानसी शर्मा व अन्य। केस नं: Cont CAS(C) 66/2020 कोरम: जस्टिस प्रतिभा एम सिंह पेशी: एडवोकेट नीलिमा त्रिपाठी (याचिकाकर्ता के लिए); एडवोकेट दीपक खोसला (प्रतिवादी के लिए) 

CRPC की धारा 391के तहत अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की अर्जी पर तुरन्त विचार किया जाना चाहिए- सुप्रीमकोर्ट

 सीआरपीसी की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की अर्जी पर तुरंत विचार किया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट 

6 Feb 2020 


 सीआरपीसी की धारा 391 अतिरिक्त सबूत प्रस्तुत करने की अर्जी पर हाईकोर्ट द्वारा विचार किये जाने से प्रतिबंधित नहीं करती है।" सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की मांग को लेकर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 391 के तहत दाखिल अर्जी पर तुरंत विचार किया जाना चाहिए। ऐसी अर्जी पर विचार के लिए अंतिम तौर पर सुने जाने वाली अपील का इंतजार नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले में हाईकोर्ट ने हत्या के एक आरोपी की अपील के तहत सीआरपीसी की धारा 391 के अंतर्गत दाखिल अर्जी का यह कहते हुए निबटारा कर दिया था कि अपीलकर्ता को अपीलों की अंतिम तौर पर सुनवाई के वक्त उपयुक्त अर्जी दाखिल करने की अनुमति दी जाती है। हाईकोर्ट ने 'भारत सरकार बनाम इब्राहिम उद्दीन 2012 (8) एससीसी 148' के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था कि अतिरिक्त सबूत को रिकॉर्ड पर लेने की अर्जी पर अपील की अंतिम सुनवाई के वक्त विचार किया जाना चाहिए। संबंधित फैसला अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने को लेकर नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश XLI नियम 27 के तहत दर्ज होने वाली अर्जी से जुड़ा है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव एवं न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में सीआरपीसी की धारा 391 के तहत अर्जी दाखिल की गयी थी, जो अपीलीय कोर्ट को खुद सबूत लेने या मजिस्ट्रेट के जरिये अथवा सत्र अदालत द्वारा सबूत लेने के लिए अधिकृत करता है, यदि कारणों को रिकॉर्ड में लेने के बाद वह इस बात से संतुष्ट है कि अतिरिक्त सबूत जरूरी है। कोर्ट ने कहा : "सीआरपीसी की धारा 391 अतिरिक्त सबूत प्रस्तुत करने की अर्जी पर हाईकोर्ट द्वारा विचार किये जाने से प्रतिबंधित नहीं करती है। दरअसल, हमारा मानना है कि अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की मांग को लेकर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 391 के तहत दाखिल अर्जी पर तुरंत विचार किया जाना वांछनीय है। ऐसी अर्जी पर विचार के लिए अंतिम तौर पर सुने जाने वाली अपील का इंतजार नहीं किया जाना चाहिए।" बेंच ने हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए उसे सीआरपीसी की धारा 391 के तहत इस अर्जी पर त्वरित सुनवाई करने का आदेश दिया। केस का नाम : असीम उर्फ मुनमुन उर्फ आसिफ अब्दुलकरीम सोलंकी बनाम गुजरात सरकार केस नं.: - क्रिमिनल अपील नं. 184/2020 कोरम : न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता अपीलकर्ता का वकील : वरिष्ट अधिवक्ता विभा दत्ता मखीजा प्रतिवादी का वकील : अधिवक्ता आस्था मेहता