सुप्रीम कोर्ट ने NDPS आरोपी को बरी होने की उचित संभावना के आधार पर जमानत दी
सुप्रीम कोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट ( NDPS), 1985 के तहत आरोपी को इस आधार पर ज़मानत दे दी कि इस बात की उचित संभावना है कि वह बरी हो सकता है।
दरअसल सुजीत तिवारी के खिलाफ अभियोजन का मामला था कि वह इस बात से अवगत था कि NDPS मामले में आरोपी उसका भाई क्या कर रहा था और सक्रिय रूप से वो अपने भाई की मदद कर रहा था।
कोर्ट ने कहा कि कुछ व्हाट्सएप संदेशों और उनके स्वयं के बयान के अलावा, जिनसे उसने खुद को अलग कर लिया है, कोई अन्य सबूत नहीं है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता का मामला अन्य आरोपियों से बिल्कुल अलग है।
न्यायालय ने उल्लेख किया कि NDPS अधिनियम की धारा 37 के प्रावधान दो सीमाएं निर्धारित करते हैं; एक, यह कि अदालत प्रमुखता से इस विचार हो कि अपीलकर्ता अपराध का दोषी नहीं है और दूसरी बात, कि वह जमानत पर रहते हुए किसी अपराध की संभावना नहीं रखता है।
आरोपी को जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा, "उचित संभावना यह है कि वह बरी हो सकता है। वह 4 अगस्त 2107 यानी 2 साल से अधिक समय से गिरफ्तारी के बाद से सलाखों के पीछे है तथा 25 साल की उम्र का युवक है। वह बीटेक ग्रेजुएट है। इसलिए, इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में हमें लगता है कि यह एक फिट मामला है जहां अपीलकर्ता जमानत का हकदार है क्योंकि इस बात की संभावना है कि वह अपने भाई और अन्य चालक दल के सदस्यों की अवैध गतिविधियों से अनजान था।
अपीलकर्ता का मामला अन्य सभी अभियुक्तों से अलग है, चाहे वह जहाज का मास्टर हो, चालक दल के सदस्य या वे व्यक्ति जो संभावित खरीदारों और संभावित खरीदार को मास्टर के सामने पेश करते हैं।
कोर्ट ने जमानत देते समय कठोर शर्तें भी लगाई हैं। "
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