पिछले दिनों ओमप्रकाश व अन्य
बनाम राधाचरण एवं अन्य के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए
निर्णय पर तीसरा खंबा के आलेख निस्संतान
हिन्दू विधवाएँ अपनी वसीयत आज ही करें : हिन्दू उत्तराधिकार कानून तुरंत बदलने की
आवश्यकता ने एक बार पुनः इस आवश्यकता को केन्द्र में
ला दिया है कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में ऐसे संशोधन किए जाएँ जिस से आज के
हिन्दू समाज में उत्तराधिकार तर्क संगत हो सके। लेकिन कानून में संशोधन एक लंबी
प्रक्रिया है। उस में समय लगता है ऐसे में यह आवश्यकता महसूस हुई है कि हिन्दू
पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही स्वअर्जित संपत्तियों की वसीयत अवश्य कर दें। इस के
लिए यह भी आवश्यक है कि वसीयत क्या है और कैसे की जा सकती है, इसे समझा जाए।
वसीयत अपने जीवन काल के उपरांत अपनी संपत्ति के व्यवस्थापन के लिए एक व्यक्तिगत कानूनी दस्तावेज है, जिसमें वसीयत करने वाला अपनी मृत्यु के बाद उस की जायदाद का बंटवारा किस तरह किया जाए इस का ब्यौरा लिखता है।
वसीयत अपने जीवन काल के उपरांत अपनी संपत्ति के व्यवस्थापन के लिए एक व्यक्तिगत कानूनी दस्तावेज है, जिसमें वसीयत करने वाला अपनी मृत्यु के बाद उस की जायदाद का बंटवारा किस तरह किया जाए इस का ब्यौरा लिखता है।
वसीयत के द्वारा कोई भी व्यक्ति अपनी चल एवं अचल, दोनों प्रकार की संपत्ति को अपनी संतानों, संबंधियों,
मित्रों, सेवकों या किसी अन्य व्यक्ति अपनी मृत्यु के
उपरांत देने की घोषणा करता है। वसीयत तैयार करने के लिए किसी वकील या कानून के
जानकार की आवश्यकता नहीं है।
वसीयत करने वाला व्यक्ति अपनी मृत्यु के
पूर्व कभी भी अपनी वसीयत में कितनी ही बार परिवर्तन कर सकता है। लेकिन हर बार इस के लिए एक नया दस्तावेज लिखा
जाना चाहिए।
वसीयत में यह
अवश्य अंकित करना चाहिए कि जिस संपत्ति के लिए वसीयत लिखी जा रही है वह वसीयत
कर्ता की स्वअर्जित संपत्ति है अथवा उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है। हिन्दू कानून
में उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति होती है उस
में पत्नी और संतानों आदि अधिकार भी सम्मिलित होता है इस कारण से वह संपत्ति केवल
उत्तराधिकारियों को ही वसीयत की जा सकती है।
वसीयत का पंजीकरण देश के किसी भी उप रजिस्ट्रार के कार्यालय में कराया जा सकता है। वैसे वसीयत का पंजीकरण कराया जाना आवश्यक नहीं है लेकिन फिर भी पंजीकरण करवा लेना किसी भी तरह के कानूनी विवाद से बचाव के लिए ठीक रहता है।
वसीयत कैसे लिखें?
वसीयत का पंजीकरण देश के किसी भी उप रजिस्ट्रार के कार्यालय में कराया जा सकता है। वैसे वसीयत का पंजीकरण कराया जाना आवश्यक नहीं है लेकिन फिर भी पंजीकरण करवा लेना किसी भी तरह के कानूनी विवाद से बचाव के लिए ठीक रहता है।
वसीयत कैसे लिखें?
· वसीयत एक सादे कागज पर साफ साफ अक्षरों में लिखी जा सकती है। लेकिन कागज ऐसा
होना चाहिए जो दीर्घजीवी हो अर्थात एक लंबे समय तक खराब न हो। उस पर लिखे जाने वाली स्याही भी स्थाई
प्रकृति की होनी चाहिए जिस से लिखा हुआ मिटाया नहीं जा सके। वसीयत टाइप भी की जा सकती है। आज कल कंप्यूटर
पर टाइप कर के लेसर प्रिंटर से छापी गई वसीयत ठीक रहती है। पाँच या दस रुपए के स्टाम्प पेपर पर
लिखा/टाइप/छापा जाए तो बेहतर है क्यों कि स्टाम्प पेपर का कागज दीर्घजीवी होता है।
·
वसीयत करते समय कम से कम दो गवाह होना आवश्यक हैं। वसीयत पर वसीयत कर्ता के हस्ताक्षर गवाहों की
उपस्थिति में ही हों तो बहुत बेहतर है। वसीयत पर वसीयत कर्ता के हस्ताक्षर
हो जाने के बाद
वसीयत के अंत
में इन गवाहों के हस्ताक्षर वसीयतकर्ता की उपस्थति में करवाए जाने चाहिए।
गवाहों के पूरे नाम और पते भी हस्ताक्षर के नीचे अंकित किए जाने चाहिए। गवाह की उम्र वसीयत करने वाले से कम होनी
चाहिए तथा वे
वयस्क होने चाहिए।
वयस्क होने चाहिए।
· वसीयत करने वाले को लिखना चाहिए कि वह पूरे होशोहवाश में, पूरी तरह से स्वस्थ चित्त हो कर, बिना किसी दबाव से स्वेच्छा पूर्वक वसीयत कर
रहा है।
यहाँ वसीयत
कर्ता की शैक्षिक योग्यता भी लिखी जाए तो उत्तम रहेगा।
· वसीयत में यह भी लिखा जाना चाहिए कि इस तारीख के पहले की कोई भी वसीयत अमान्य
होगी। वसीयत का कोई प्रशासक भी नियुक्त किया जाना चाहिए जिस का उल्लेख वसीयत में
किया जाए कि मृत्यु के उपरांत कौन वसीयत की गई संपत्ति का बंटवारा करेगा। वसीयत के हर पृष्ठ पर क्रमांक अंकित करना
चाहिए और प्रत्येक पृष्ठ पर वसीयत कर्ता के हस्ताक्षर होने चाहिए। वसीयत के अंतिम पृष्ठ पर वसीयत के कुल
पृष्टों की संख्या भी अंकित की जानी चाहिए। यदि वसीयत में लिखने या टाइप होने के बाद
कहीं संशोधन किया गया हो तो वहाँ भी वसीयतकर्ता को हस्ताक्षर करना चाहिए।
· वसीयत कहां रखी गई है,
इस बारे में
वसीयत के प्रशासक
और वसीयत का लाभ
पाने वालों को जानकारी होना चाहिए। अपने वकील के पास वसीयत की प्रतिलिपि रखी जा
सकती है।
यदि वसीयत
पंजीकृत कराई जाए तो मूल दस्तावेज उपपंजीयक के कार्यालय में भी कुछ अतिरिक्त शुल्क
दे कर सुरक्षित रखा जा सकता है जो वसीयत कर्ता की मृत्यु के उपरांत मृत्यु का
प्रमाण प्रस्तुत कर प्रशासक या वसीयत का लाभ प्राप्त करने वालों में से किसी के
द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
·
व 1-सीयत की भाषा सीधी और सरल होना चाहिए।
· 2- वसीयत निष्पादित करने के उपरांत कुछ याद आए तो उसे अलग से दस्तावेज लिखकर
वसीयत में जोड़ा जा सकता है। यह पूरक वसीयत होगी।
· 3-यदि एक ही संपत्ति अनेक लोगों को देनी हो, तो उस का मूल्य अंकित करने के स्थान पर प्रत्येक के हिस्से वर्णन या उसका
प्रतिशत लिखा जाना चाहिए।
4-यदि वसीयत लिखने में बहुत ज्यादा संशोधन हो गए हों, तो इसकी नई प्रतिलिपि बनाना ही उत्तम होगा। अधिक उत्तम यह है कि पहले कच्ची वसीयत लिख ली जाए और अंतिम रूप से तय हो जाने पर उसे साफ लिखा/टाइप/छापा जाए।
4-यदि वसीयत लिखने में बहुत ज्यादा संशोधन हो गए हों, तो इसकी नई प्रतिलिपि बनाना ही उत्तम होगा। अधिक उत्तम यह है कि पहले कच्ची वसीयत लिख ली जाए और अंतिम रूप से तय हो जाने पर उसे साफ लिखा/टाइप/छापा जाए।
· 5-यदि वसीयत में संपत्ति का किसी तरह का ट्रस्ट के बनाए जाने की बात हो, तो उस ट्रस्ट का अलग से रजिस्ट्रेशन कराया
जाना आवश्यक है।वसीयत की विडियोग्राफी भी कराई जा सकती है। इसमें हर बात साफ-साफ बोलकर और देस्तावेज
दिखाकर रिकॉर्डिंग की जानी चाहिए।
वसीयत न करने पर-
· यदि किसी व्यक्ति ने वसीयत नहीं की है तो उस की मृत्यु के उपरांत उस के
उत्तराधिकारियों में
संपत्ति का
बंटवारा उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत ही होगा।
· भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 2
(।।) के अनुसार
वसीयत के यह प्रावधान हिंदू, सिख,
जैन, बौद्घ एवं ईसाइयों पर ही लागू होते हैं। मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है, जिसके अनुसार वे अपनी संपत्ति के एक निश्चित
भाग की ही वसीयत कर सकते हैं।
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