Tuesday, April 25, 2017

विविध समस्याएं तथा निराकरण के उपाय

1-भूमि को पूर्व में खरीदने का दावा करने वाले व्यक्ति के कार्यवाही करने तक प्रतीक्षा करें---

मेरे पास राजू नाम का व्यक्ति आया और कहने लगा मेरे पास 4 बीघे खेत है।  1982 से 1986 तक 16 बीघे ज़मीन मैं रामू वकील की पत्नी को बेच चुका हूँ, अब मेरे पास 4 बीघे और है। यह बात 2012 की है।  मैं ने खतौनी देखी सब कुछ उसके और मेरे सलाहकारों के हिसाब से ठीक था।  मैं ने जून में फतेहपुर मे बैनामा करवा लिया। बैनामे के 40 दिन के बाद दाखिल खारिज हो कर मेरा नाम ख़तौनी में आ गया।  फिर 5 दिन बाद मैं ने नाप के लिए वकील से हदबंदी के लिए दायरा किया।  मेरे 4 बीघा की नाप हुई।  नाप के वक्त कुछ लोग आए और कहने लगे कि मेरे पास इसी नम्बर के खेत का 4 बीघे का जनवरी 2006 का बैनामा है।  यह कहकर फोटो कॉपी दिया और नाप रोकने के लिए क़ानूनगो को कहा।  पर क़ानूनगो ने कहा कि मैं क़ानून के हिसाब से अफ़सर की खतौनी के हिसाब से हदबंदी कर रहा हूँ।  वहा पर मैं परेशान हुआ कि अब क्या होगा?  मेरे साथ एक बगल के खेत वाले ने उस आदमी से सवाल किया कि आपने अभी तक दाखिल खारिज (नामान्तरण) क्यूँ नहीं कराया?  इस बेचारे को क्या मालूम कि यह खेत पहले बिक चुका है?  मैं ने उसी जगह पर उसके बैनामे की फोटो-कॉपी पढ़ी।  मैं ने पूछा अपने किससे लिया है तो मैं ने पढ़ा कि बेचने वाला पप्पू है।  उसके पास मुख्तारनामा जैसा कि बैनामे में लिखा है कि उसके पास 25-01-1997 में राजू ने पप्पू को मुख़्तार-आम बनाया है।  उस ने कहा कि उस ने पप्पू से 2006 में बैनामा करवाया है और वह आपत्ति लगवा कर मेरा बैनामा खारिज करवा देगा। मैं ने राजू को फोन किया कि यह कैसा धोका है?  इस वक्त राजू की आयु 75 साल की होगी और मेरी 40 साल। राजू कहने लगे मैं ने मुख्तार नियुक्त नहीं किया। मेरे 3 लड़के हैं मुझे पप्पू को मुख्तार नियुक्त करने की क्या जरूरत थी? फिर मैं उसी दिन पप्पू से मिला तो उस ने कहा कि मुझे याद नही है। हाँ मैं ने अभी तक बहुत ज़मीन बेची है।   इस खेत की पॉवर ऑफ अटॉर्नी मुझे रामू वकील के ज़रीए मिली है और काग़ज़ उन्हीं के पास हैं।  फिर उसी वक्त मैं रामू वकील के पास गया तो वकील साहब कहते हैं कि हाँ मैने राजू से अपनी पत्नी के नाम 16 बीघे खेत लिए हैं और राजू ने पॉवर ऑफ अटॉर्नी मेरे सामने पप्पू को दी थी। फिर मैं रात में राजू के घर गया और पूछा तो राजू ने कहा कि मैं ने किसी को भी अपने हिसाब से कोई मुख़्तार नामा नहीं लिखा है।  अगर लिखा होता तो मैं तुमको ज़मीन (खेत) क्यों बेचता? मैं तुम्हारे साथ हूँ जहाँ कहोगे मैं हर अदालत में कहूंगा।  पर इतना ज़रूर है कि मैं उर्दू में साइन बना लेता हूँ, हिन्दी मुझको लिखना पढ़ना नहीं मालूम है।  रामू मेरा वकील है 1972 से 2002 तक 16 बीघे जमीन कई बार में उसकी पत्नी के हाथ बेचे हैं। मेरे उपर एक लोन का मुक़दमा और घर का मुक़दमा के चक्कर में वकील के पास बराबर तारीखों में जाता था।  कई बार वकील साहब किस में साइन के लिए कहते थे तो मैं करता था।  मेरी माली हालत खराब होती थी तो ज़मीन बेच देता था।  मुक़दमा हार ना जाऊँ इसलिए जिस काग़ज़ में साइन को कहते थे करता था।  कभी अदालत के बाहर काग़ज़ दिए या कभी तहसील में तो मैं साइन करता था।  अब रामू वकील ने मुझसे मुख़्तार नामा लिखवा लिया हो तो मैं नहीं बता सकता।  लेकिन अभी भी मैं बहलफ कहता हूँ.  मुझको चाहे जिसके सामने पेश कर दो, मैं ने हूँस हवस में कोई मुख़्तार आम नही किया है।  यह धोका किया गया है।  फिर मैं ने दूसरे दिन राजू को अपने पास बुलाया और कहा चलो मेरे साथ क्यों कि वकिल रामू ने कहा है की मुख़्तार नामा रजिस्टर्ड है मैं आज 25-10-2012 को गया तो रजिस्ट्री ऑफीस में मोआयना में लोगों ने बताया की यह रजिस्टर्ड राजू तुम्ही ने किया होगा। साइन पहचानो राजू ने कहा साइन मेरी ही लग रही है लेकिन मैने मुख़्तार नामा नही लिखा है।  यह सब धोका किया गया है। मैं पप्पू को जानता भी नहीं हूँ।  हाँ, एक बार रामू को बस्ती में देखा है अब मैं क्या करूँ? मेरे खरीदे हुए खेत 4 बीघे जिसका दाखिल खारिज हो चुका है, हदबंदी भी हो गई है, पप्पू ने जिसको 2006 में बैनामा किया है, जिसका दाखिल खारिज नहीं है यह खेत उसको मिलेंगे या मुझको? मेरे साथ अभी भी राजू बयान देने को तैयार है।  मैं अपनी पत्थर-गड़ी करवा सकता हूँ और क़ब्ज़ा ले सकता हूँ और मैं ही असली मालिक हूँ।  मुझको सही रास्ता दिखाएँ।
समाधान-
प के पास भूमि का स्वामी खुद आया और जमीन बेचने का प्रस्ताव किया। आप ने रिकार्ड में देखा कि जमीन उसी के नाम है। यहाँ आप ने केवल एक गलती की कि आप ने केवल राजस्व रिकार्ड ही देखा। यदि आप ने विगत 12 वर्षों का रजिस्ट्रेशन विभाग का रिकार्ड भी देखा होता तो संभवतः आप को यह पता लग जाता कि उस जमीन के विक्रय पत्र का पंजीयन पहले ही हो चुका है।
प ने पूरी एहतियात बरतने के उपरान्त उक्त भूमि को खरीदा है। विक्रय पत्र का निष्पादन आप के पक्ष में हो चुका है।  राजस्व रिकार्ड में उक्त भूमि का नामान्तरण (दाखिल खारिज) आप के नाम से हो चुका है। राजस्व अधिकारियों से आप भूमि का नाप करवा चुके हैं और मौके पर विक्रेता से कब्जा प्राप्त कर चुके हैं। इस तरह आप उक्त भूमि के सद्भाविक क्रेता हैं और भूमि का कब्जा आप के पास है। आप को सभी प्रकार के भय मन से निकाल कर उक्त भूमि को अपने काम में लेना चाहिए।
जो व्यक्ति यह दावा कर रहा है कि भूमि को वह पूर्व में खरीद चुका है तो अब उसे इस भूमि पर दावा करना चाहिए। यही वह कह रहा है। लेकिन उस के दावे में दम नजर नहीं आ रहा है।  यदि उस ने भूमि पहले खरीदी है तो कब्जा क्यों नहीं लिया?  चाहे भूमि मुख्तार के माध्यम से बेची हो पर यदि कब्जा मूल स्वामी का है तो फिर कब्जा भी मूल स्वामी से प्राप्त करेगा।  इतने वर्ष पहले विक्रय पत्र का पंजीयन होने पर भी उस ने राजस्व रिकार्ड में नामान्तरण अपने नाम क्यों नहीं कराया? ये वे प्रश्न हैं जिन से उस व्यक्ति को जूझना पड़ेगा।
भूमि का पूर्व मालिक स्पष्ट रूप से कहता है कि उस ने उक्त जमीन का मुख्तार नियुक्त करने और जमीन बेचने का अधिकार किसी को नहीं दिया तो वह सही है।  उसे यह कहने की भी आवश्यकता नहीं है कि उस पर हस्ताक्षर उस के हस्ताक्षर जैसे लगते हैं।  जब उस ने खुद कोई मुख्तारनामा निष्पादित नहीं किया तो उसे स्पष्ट कहना चाहिए कि वे हस्ताक्षर उस के नहीं हैं, वह मुख्तारनामा फर्जी है।  यदि उस पर दस्तखत उस के हों भी तो भी वे धोखे से कराए गए हैं और उस वक्त तक कथित मुख्तार को वह जानता तक नहीं था।  उस के खुद के तीन बेटे हैं यदि मुख्तार ही नियुक्त करना होता तो उन में से किसी को करता। एक अजनबी को क्यों करता?  आप इसी आशय का एक शपथ पत्र मूल स्वामी से निष्पादित करवा कर उसे दो साक्षियों के समक्ष नोटेरी से सत्यापित करवा कर रखें। यह आप के काम आएगा।
चूंकि भूमि पर स्वामित्व और कब्जा आप का है, इसलिए आप को उक्त भूमि का उपयोग जो भी करना चाहते हैं करना चाहिए।  आप निश्चिंत हो कर पत्थरगड़ी करवाएँ। यदि कोई व्यक्ति उस भूमि पर अपने स्वामित्व का दावा करता है तो उसे न्यायालय जाना चाहिए, तब आप अपने बचाव के अधिकार का उपयोग कर सकते हैं।  जब तक कोई व्यक्ति आप के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही नहीं करता तब तक आप को अपनी ओर से कानूनी कार्यवाही नहीं करनी चाहिए। यदि वह व्यक्ति आप के कब्जे में दखल देता है या भूमि का आप की इच्छानुसार वैध उपयोग में बाधा डालता है तो भूमि के खातेदार होने के नाते आप न्यायालय में निषेधाज्ञा हेतु दावा प्रस्तुत कर उस के विरुद्ध अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकते हैं। यदि वह व्यक्ति आप के विरुद्ध उस के पास के दस्तावेजों के आधार पर कार्यवाही करता है तो उसे कार्यवाही करने दें।  उस के द्वारा ये दस्तावेज या उन की प्रतियाँ न्यायालय मे प्रस्तुत करने पर उन के फर्जी होने के आधार पर आप पुलिस थाने के माध्यम से या सीधे अपराधिक न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत करें जो आप मूल स्वामी के शपथ पत्र के आधार पर कर सकते हैं।

2-विक्रय-पत्र के पंजीयन हेतु मृत विक्रेता के उत्तराधिकारियों पर संविदा के विशिष्ट अनुपालन का वाद किया जा सकता है

समस्या-
मेरठ, उत्तर प्रदेश से युवराज ने पूछा है-
म एक घर में पिछले 30 साल से रह रहे हैं और जिसका मुख़्तार नामा और विक्रय पत्र हमारे पिता जी के नाम है।  विक्रेता ने संपत्ति को विक्रय कर दिया था और पिताजी ने उस संपत्ति का संपूर्ण विक्रय मूल्य अदा कर के संपत्ति पर कब्जा प्राप्त कर लिया था। एग्रीमेंट में सम्पूर्ण संपत्ति का अधिकार हर प्रकार से पिता जी को दिए जाने की बात अंकित है लेकिन पिता जी ने उसकी रजिस्ट्री नहीं कराई थी। तीन महीने पहले पिता जी की मृत्यु हो गई है, मूल विक्रेता की भी मृत्यु हो चुकी है। ऐसी स्थिति में हम किस प्रकार रजिस्ट्री अपने नाम कर सकते हैं या इस के लिए मुझे क्या करना होगा?
समाधान-
कोई भी अपंजीकृत विक्रय पत्र जिस में विक्रय की गई अचल संपत्ति का मूल्य 100 रुपए से अधिक का है मान्य नहीं है। इस कारण विक्रयपत्र का पंजीकृत होना आवश्यक है।  आप ने जिसे विक्रय पत्र कहा है वह विक्रय का इकरारनामा है जिस में विक्रय का संपूर्ण मूल्य प्राप्त कर के विक्रेता ने संपत्ति का कब्जा क्रेता को दे दिया है। क्यों कि संपत्ति का मूल्य दिया जा चुका है और कब्जा भी हस्तांतरित हो चुका है वैसी अवस्था में यदि कोई उस संपत्ति पर से आप का कब्जा हटाने का प्रयत्न करता है या कब्जे के लिए दावा करता है तो आप के पास संपत्ति हस्तान्तरण अधिनियम की धारा 53-ए के अंतर्गत यह प्रतिरक्षा ले सकते हैं कि आप विक्रय मूल्य अदा कर चुके हैं। आप के विरुद्ध उक्त संम्पत्ति का कब्जे का कोई भी दावा निरस्त हो जाएगा। लेकिन बिना विक्रय पत्र के पंजीकरण के आप उक्त संपत्ति के स्वामी नहीं कहलाएंगे और किसी भी सरकारी रिकार्ड में संपत्ति पर आप का स्वामित्व स्थापित नहीं माना जाएगा।
प ने यह नहीं बताया कि उक्त विक्रय संविदा के अंतर्गत विक्रय पत्र का पंजीकरण कराने के लिए क्या शर्त अंकित की गई थी। यदि उस में यह अंकित था कि जब भी क्रेता तैयार होगा तभी विक्रेता विक्रय पत्र का पंजीयन करवा देगा तो आप के पास अब भी उपाय मौजूद है। जो विक्रेता की जिम्मेदारी थी वही उस के उत्तराधिकारियों की जिम्मेदारी है और जो क्रेता का अधिकार है वही क्रेता के उत्तराधिकारियों का अधिकार है। इस कारण आप अपने पिता के सभी उत्तराधिकारियों की ओर से किसी वकील के माध्यम से एक विधिक नोटिस विक्रेता के उत्तराधिकारियों को भिजवाएँ कि वे उक्त संपत्ति का विक्रय पत्र आप के पिता के उत्तराधिकारियों के पक्ष में निष्पादित कर के उस का पंजीयन कराएँ। नोटिस में इस के लिए एक माह तक का समय दिया जा सकता है। यदि इस नोटिस के उपरान्त भी विक्रेता के उत्तराधिकारी विक्रय पत्र निष्पादित कर उस का पंजीयन नहीं कराते हैं तो आप विक्रेता के उत्तराधिकारियों के विरुद्ध दीवानी न्यायालय में विक्य पत्र का निष्पादन कर उस का पंजीयन कराने के लिए संविदा के विशिष्ट पालन के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।

3-विक्रय पत्र में बेची गयी संपत्ति का पूरा वर्णन न हो तो विक्रेता से संशोधन विक्रय पत्र निष्पादित करवा कर पंजीकृत करवाएँ

समस्या-
 हम ने पानीपत में एक मकान खरीदा है, 28 अगस्त को उस के विक्रय पत्र की रजिस्ट्री हुई है।  ह्मारे मकान का प्लाट कुल 78 गज का है। लेकिन मकान के ग्राउंड फ्लोर की 17 गज जमीन बेची हुई है जिस में अब एक डाक्टर की दुकान है। इस तरह भूतल पर प्लाट और निर्माण 61 गज का है और प्रथम तल 78 गज में ही बना हुआ है। अब हमारी रजिस्ट्री केवल 61 गज की हुई है जिस में प्रथम तल 78 गज में निर्मित है। क्या यह हमारे लिए भविष्य में परेशानी का कारण बन सकता है? इसी बात को सोच कर पिताजी बहुत तनाव और अवसाद में हैं। क्या हमें यह गलती ठीक करवानी चाहिए? यदि ठीक करवाएँ तो कैसे होगी?
 समाधान-
 कोशिश यह की जाती है कि सभी समस्याओं का हल जल्दी से जल्दी प्रस्तुतद किया जाए। आप ने कल शाम को प्राप्त हुआ, आज आप ने तुरंत उस का उलाहना भी दिया। यदि आप को बहुत ही शीघ्रता थी तो इस का हल तुरंत आप को उसी वकील या रजिस्ट्री कराने वाले डीडराइटर से पूछ लेना चाहिए था। वह निश्चित रूप से बता देता।
दि आप को बेचा गया भूखंड रजिस्टर्ड विक्रय पत्र में केवल 61 गज का ही अंकित है और यह अंकित नहीं है कि प्रथम तल पर 78 गज में निर्माण है। तो निश्चित रूप से यह आप के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। वास्तव में विक्रय पत्र में बेचे जाने वाली संपत्ति का पूर्ण विवरण अंकित होना चाहिए था। उस में अंकित होना चाहिए था कि भूखंड 78 गज का था जिस पर दो मंजिला मकान बना हुआ है। इस में से ग्राउंड फ्लोर का 17 गज का भूखंड और उस पर भूतल पर बना निर्माण किसी अन्य व्यक्ति को विक्रय किया जा चुका है लेकिन उस पूर्व में बेच दिए गए 17 गज के भूखंड पर बने निर्माण की छत वर्तमान में आप को बेची जा रही संपत्ति में सम्मिलित है। विक्रय पत्र में प्रत्येक तल पर निर्मित क्षेत्रफल अलग अलग लिखा जाता है जिस में आप के मामले में लिखा जाना चाहिए था कि भूतल पर 61 गज का भूखंड और उस पर निर्मित क्षेत्रफल 61 गज, प्रथम तल पर पूर्व में बेचे गए 17 गज भूखंड व प्रथम तल की छत सहित निर्मित क्षेत्रफल 78 गज है। इस  तरह संपूर्ण निर्मित क्षेत्रफल 139 गज है।
प को विक्रय पत्र को एक बार ध्यान से जाँच लेना चाहिए कि उस में यह स्पष्ट है कि नहीं कि पूर्व में बेचे गए भूखंड के भाग और उस पर निर्मित भूतल के निर्माण की छत तथा उस छत पर निर्मित हो रहे निर्माण सहित आप को विक्रय की जा रही है। यदि यह स्पष्ट नहीं है तो निश्चित रूप से आप के लिए परेशानी का कारण है। आप को इसे तुरंत दुरुस्त करवा लेना चाहिए।
स त्रुटि को ठीक करवाने में न्यायालय का कोई काम नहीं है। कोई भी विक्रय विक्रेता और क्रेता के मध्य हस्तांतरण है। जिस का पंजीयन पंजीयक के यहाँ होना आवश्यक है।  उस विक्रय पत्र से उतनी ही संपत्ति पर आप को अधिकार प्राप्त हुआ है जितनी उस में स्पष्ट रूप से अंकित है।  इस अस्पष्टता का लाभ उठा कर 17 गज भूखंड और उस पर निर्मित भूतल का स्वामी प्रथम तल के उस के ऊपर निर्मित हिस्से पर अपना अधिकार जता कर आप को परेशान कर सकता है।  अब चूंकि यह मामला क्रेता और विक्रेता के बीच का है तो दोनों के बीच ही सुलझ सकता है। इस के लिए आप को विक्रेता से कहना पड़ेगा कि प्रथम तल के 17 गज के निर्माण के बारे में विक्रय पत्र में कुछ नहीं लिखा है इस लिए उस 17 गज के भूतल के निर्माण की छत तथा उस पर प्रथम तल पर निर्मित निर्माण के लिए एक और विक्रय पत्र उसे निष्पादित कर पंजीकृत करवानी होगी। यदि यह केवल विक्रय पत्र के प्रारूपण या टंकण की त्रुटि है तो एक संशोधन विक्रय पत्र निष्पादित करवा कर उस का पंजीयन करवाना पड़ेगा।  इस के लिए आप विक्रेता से बात करें और 17 गज के प्रथम तल की छत तथा उस पर निर्मित प्रथम तल के निर्माण के विक्रय पत्र अथवा संशोधन विक्रय पत्र की रजिस्ट्री जितना शीघ्र हो करवाएँ। यदि विक्रेता आनाकानी करे तो फिर आप को पूर्व में हुए विक्रय की संविदा (सेल एग्रीमेंट) में यह बात लिखे होने के आधार पर विक्रेता के विरुद्ध दीवानी न्यायालय में संविदा के विशिष्ट पालन का मुकदमा यह अतिरिक्त विक्रय पत्र निष्पादित कराने और उस का पंजीयन करवाने के लिए लाना पड़ेगा।

4-धोखे के आधार पर पंजीकृत कराए गए विक्रय पत्र को निरस्त कराने हेतु दीवानी वाद प्रस्तुत करें

समस्या-
मेरे पति ने दिनांक 27.03.1998 को कामेश्वर चौधरी से मेरे नाम से दो कट्ठा जमीन के विक्रय पत्र की रजिस्ट्री करवाई थी। लेकिन जमीन का दाखिल-खारिज (mutation) मेरे नाम से 22.12.2009 तक नहीं हुआ था।  इसी बीच मेरी बेटी किरण कुमारी ने हमसे यह दो कट्ठा जमीन के विक्रय पत्र की रजिस्ट्री दिनांक 23.12.2009 को अपने नाम से करा ली।  लेकिन इसका भी दाखिल-खारिज किरण कुमारी के नाम से दिनांक 26.10.2010 तक नहीं हुआ। किरण कुमारी ने एक कट्ठा जमीन शांति देवी को दिनांक 27.10.2010 को बेच दी।  मैं यह जानना चाहती हूँ कि बिहार सरकार समस्तीपुर जिला की जमीन के खरीद एवं बिक्री के नियम के अनुसार जमीन का दाखिल-ख़ारिज शांति देवी के नाम से होगा या नहीं? मेरी बेटी किरण कुमारी ने जमीन के विक्रय पत्र की जो रजिस्ट्री हम से अपने नाम कराई है वह धोखा देकर कराई है।  मैं क्या कानूनी कार्यवाही उस के विरुद्ध कर सकती हूँ? कृपया हमें उचित सलाह दें।
समाधान-
प की मूल समस्या यह है कि आप से जो विक्रय पत्र आप की बेटी ने आप से कराई है वह धोखा दे कर कराई है।  यह धोखा किस प्रकार दिया गया है? इस का कोई विवरण आप ने अपने प्रश्न में नहीं दिया है। इस कारण यह अनुमान करना संभव नहीं है कि आप वह धोखा न्यायालय के समक्ष साक्ष्यों से साबित कर सकेंगी या नहीं।
दि आप को पूरा विश्वास है कि आप अपनी बेटी द्वारा आप से किए गए धोखे को साक्ष्य से साबित कर सकती हैं तो आप को चाहिए कि आप धोखा दे कर विक्रय पत्र निष्पादित कराने के आधार पर इस विक्रय पत्र और उस के पंजीयन को निरस्त कराने के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करें। लेकिन आप को पहले यह तय करना होगा कि आप के पास इस धोखे को साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं या नहीं हैं।  यह तय करना आसान नहीं है।  इस के लिए आप को अपने जिला मुख्यालय के किसी अनुभवी दीवानी मामलों के वकील से मिलना चाहिए और उस से सलाह करनी चाहिए।  वह आप से पूछताछ कर के यह बता सकेगा कि आप को यह वाद प्रस्तुत करना चाहिए या नहीं?
भी तक आप के नाम जमीन को खरीद का जो विक्रय पत्र निष्पादित किया गया है उस के आधार पर नामान्तरण (दाखिल-खारिज) नहीं हुआ है। वह आप के नाम और आगे जमीन के अन्य खरीददारों के नाम हो सकेगा या नहीं यह कहना आसान नहीं है।  क्यों कि प्रत्येक राज्य के राजस्व नियम पृथक पृथक हैं।  तीसरा खंबा को वर्तमान में प्रभावी बिहार राज्य के राजस्व कानून और नियमों की जानकारी उपलब्ध नहीं है।  लेकिन आप यदि आप से धोखे से निष्पादित कराया गया विक्रय पत्र निरस्त कराने के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करती हैं तो इस वाद के साथ ही उक्त जमीन का दाखिल-खारिज करने को रोके जाने के लिए अस्थाई निषेधाज्ञा का प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है और वह तथा उस के बाद के  विक्रय पत्रों के आधार पर होने वाले जमीन के सारे दाखिल-खारिज किए जाने से रुकवाए जा सकते हैं।

5-भूमि की किस्म गलत लिखने पर पंजीकृत विक्रय पत्र निरस्त कराया जा सकता है

समस्या-
पिता जी ने कृषि भूमि उद्योग को बेची। उस भूमि में पेड़ पौधे थे।  लेकिन उद्योग ने कृषि भूमि को रजिस्ट्री में बंजर भूमि बिना पेड़ पौधे की भूमि लिखाया, पैसे भी बंजर भूमि हिसाब से दिया। पेड़ पौधे का पैसा नहीं दिया। विक्रय पत्र की रजिस्ट्री में जबरन हस्ताक्षर करवा लिये। क्या रजिस्ट्री वैध है?
समाधान-
किसी भी विक्रय पत्र का पंजीयन रजिस्ट्रार कार्यालय में होता है। यदि विक्रय पत्र में पेड़ पौधे वाली भूमि को बंजर लिखाया गया था तो वहीं आपत्ति की जानी चाहिए थी। जब तक विक्रय पत्र को दीवानी न्यायालय से निरस्त नहीं कराया जाता है तब तक उसे वैध ही माना जाएगा। यह सब इस लिए किया जाता है ताकि उद्योग को अधिक स्टाम्प ड्यूटी तथा पंजीयन शुल्क न देनी पड़े।
प के पिता जी के पास एक मार्ग यह है कि वे उप पंजीयक तथा कलेक्टर स्टाम्प को शिकायत करें कि स्टाम्प ड्यूटी व पंजीयन शुल्क बचाने के लिए उद्योग ने विक्रय पत्र में भूमि का मूल्य कम लिखाया है और आप के पिता जी को भी कम दिया गया है। इस से स्टाम्प शुल्क की कमी के कारण रजिस्ट्री में आपत्ति लग जाएगी तथा उस में कलेक्टर स्टाम्प के यहाँ सुनवाई होगी।
प के पिताजी को तुरन्त उद्योग को नोटिस देना चाहिए कि जमीन पेड़ पौधे वाली है और आप को जमीन का मूल्य कम दिया गया है और विक्रय पत्र में भी कम लिखाया गया है। इस कारण से वे आप के पिताजी को शेष मूल्य का भुगतान करें अन्यथा आप के पिताजी विक्रय पत्र निरस्त कराने के लिए वाद दायर करेंगे। साथ ही जो धोखाधड़ी की है उस के लिए पुलिस में रिपोर्ट लिखाएंगे और पुलिस ने कार्यवाही न की तो सीधे न्यायालय में शिकायत करेंगे।
ह सब करने के पहले आप के पिताजी को इस बात के दस्तावेजी सबूत इकट्ठा करने होंगे जिस से वह जमीन पेड़ पौधे वाली साबित हो न कि बंजर साबित हो। अन्यथा किसी भी स्तर पर आप के पिता जी जमीन को पेड़ पौधे वाली साबित नहीं कर सकेंगे और सारे प्रयास असफल हो जाएंगे।

6-धोखे से निष्पादित कराए गए विलेख को दीवानी वाद प्रस्तुत कर निरस्त कराया जा सकता है।

समस्या-
किसी ने हमारे साथ धोखाधड़ी से हमारी जमीन की रजिस्ट्री करवा ली है।  क्या अब हम उसको किसी भी तरीके से केन्सिल करवा सकते हैं। क्या मैं उस व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर सकता हूँ।
मैं ने पहले भी यह जानकारी लेने के लिए कल 20 नवम्बर 2012 को भी आपकी साइट पर निवेदन किया था, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला।  इसका जवाब जल्दी देना।
समाधान-
दि आप मुतमईन हैं कि आप के साथ धोखाधड़ी हुई है तो आप अपनी रजिस्ट्री को निरस्त करवा सकते हैं। लेकिन इस के लिए आप को न्यायालय में पर्याप्त सबूतों के आधार पर धोखाधड़ी को साबित करना होगा। इस के लिए आप को रजिस्टर्ड विक्रय पत्र को निरस्त करवाने के लिए दीवानी न्यायालय में दीवानी वाद प्रस्तुत करना होगा। आप उस के साथ ही धोखाधड़ी करने वालों के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट लिखवा कर अपराधिक मुकदमा भी चला सकते हैं। यदि पुलिस कार्यवाही नहीं करती है तो आप मजिस्ट्रेट के न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर उसे धारा 156 (3) के अंतर्गत पुलिस थाना को भिजवा सकते हैं। लेकिन धोखाधड़ी को साबित करने वाले साक्ष्य आप पुलिस को उपलब्ध कराव सकेंगे तभी उस मामले में पुलिस आरोप पत्र दाखिल करेगी।
प ने अंग्रेजी में अपनी समस्या लिखी थी। उस का भी समय पर उत्तर दिया जाता। तीसरा खंबा पर एक दिन में एक ही समस्या का समाधान किया जाता रहा है। इन दिनों समस्याएँ अधिक प्राप्त होने के कारण हम दिन में दो समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं। वर्तमान में यह हमारी अधिकतम क्षमता है। आवश्यकता समझते हुए कुछ प्रश्नों के उत्तर जल्दी भी दिए जाते हैं लेकिन आम तौर पर क्रमबद्धता के साथ ही उनका उत्तर दिया जाता है। अनेक प्रश्न बिना किसी विवरण के, अपर्याप्त विवरण के अथवा अधूरे विवरण के होते हैं। उन का समाधान करना संभव नहीं होता है। यदि किसी समस्या का समाधान एक-दो सप्ताह में न मिले तो समस्या दुबारा प्रेषित कर देनी चाहिए।

7-अचल संपत्ति क्रय करने पर क्रेता को क्या खर्चे देने होंगे?

समस्या-
मैं एक मकान खरीदना चाहता हूँ। उस मकान की कीमत अदा करने के अतिरिक्त मुझे और क्या क्या खर्चे देने होंगे? कृपया बताएँ?
समाधान-
ब भी किसी संपत्ति के क्रय विक्रय का सौदा होता है तो दोनों पक्ष क्रेता और विक्रेता मिल कर तय करते हैं कि लेन-देन क्या होगा और किस तरह होगा?   मकान, दुकान, खेत आदि अचल संपत्ति के क्रय विक्रय का सौदा करना हो तो यह देखा जाना चाहिए कि बेची-खरीदी जा रही संपत्ति पर कोई भार तो नहीं है, जैसे, उस संपत्ति पर कोई कर्ज तो नहीं ले रखा है, किसी सरकारी विभाग का कोई टेक्स आदि तो बकाया नहीं है। जब भूमि फ्री-होल्ड की होती है तो उसे बिना किसी की अनुमति के बेचा जा सकता है। लेकिन यदि पट्टे (लीज होल्ड) की संपत्ति हो तो उस में पट्टाकर्ता (लेसर) की अनुमति लिया जाना आवश्यक है। यदि पट्टाकर्ता ऐसी अनुमति प्राप्त न की गई हो तो खरीददार विक्रय पत्र के पंजीयन के बाद जब उस संपत्ति का नामान्तरण अपने नाम कराने जाएगा तो उसे भारी जुर्माना राशि अदा करनी पड़ सकती है।
ब भी संपत्ति का मूल्य तय करने की बात होती है तो आम तौर पर उस का बाजार मूल्य ही तय होता है।  यदि संपत्ति पर किसी तरह का भार हो और उस भार की अदायगी विक्रेता को करनी होती है, तब विक्रय मूल्य उस के बाजार मूल्य के समान तय होता है। लेकिन यदि किसी संपत्ति पर भार हो और उस की अदायगी क्रेता को करनी हो तो संपत्ति का क्रय मूल्य उसी अनुपात में कम हो जाता है। इस तरह यह दोनों पक्षों के बीच हुई विक्रय की संविदा पर निर्भर करता है कि किसे क्या देना और करना है। किसी भी सौदे में संपत्ति पर भारों की समस्त देनदारी विक्रेता की ही मानी जाएगी। क्यों कि क्रेता तो संपत्ति को समस्त भारों से रहित ही खरीदता है और विक्रेता को केवल संपत्ति का मूल्य और विक्रय पत्र के पंजीयन का खर्च अदा करता है। इस के अलावा जो भी खर्चे होते हैं उन की अदायगी विक्रेता का दायित्व है। यदि विक्रय पत्र के पंजीयन के लिए किसी तरह का कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्था से प्राप्त करना आवश्यक हो तो उसे प्राप्त करने की जिम्मेदारी भी विक्रेता की है। लेकिन यदि विक्रय संविदा में यह तय हो गया हो कि यह खर्च क्रेता वहन करेगा तो यह सब खर्च फिर क्रेता का दायित्व हो जाता है।  यदि सौदे में कुछ भी न लिखा हो तो फिर यह सब खर्चे विक्रेता की जिम्मेदारी होंगे। वैसे भी किसी क्रेता को इसी शर्त पर ही कोई सौदा करना चाहिए कि वह केवल विक्रय मूल्य अदा करेगा तथा विक्रय पत्र के पंजीयन का खर्च उठाएगा, शेष सभी जिम्मेदारियाँ विक्रेता पर छोड़नी चाहिए। इसी के आधार पर संपत्ति का विक्य मूल्य तय करना चाहिए।
ब क्रेता विक्रेता की किसी जिम्मेदारी को ले लेता है तो अक्सर वह फँस जाता है। उसे वह जिम्मेदारी पूरी करनी होती है और विक्रेता निर्धारित अवधि में पूरा विक्रय मूल्य अदा करने पर दबाव डालता है। लेकिन यदि जिम्मेदारी विक्रेता की हो तो वह सारी जिम्मेदारियाँ पूरी करने  के उपरान्त ही क्रेता से पूरा मू्ल्य वसूल करने और विक्रय पत्र का निष्पादन करने की बात कह सकेगा। यदि तय समय में विक्रेता संपत्ति के विक्रय से पूर्व की सारी औपचारिकताएँ पूर्ण नहीं कर पाता है तो क्रेता सौदा निरस्त कर के क्रेता से उसे अदा कर दी गई अग्रिम राशि और हर्जाना वसूल करने की स्थिति में होता है। यदि किसी क्रय-विक्रय संविदा में अनापत्ति प्रमाण पत्र सहित समस्त खर्चो के मामले में कुछ भी नहीं तय हुआ है तो वे सभी खर्च उठाने की जिम्मेदारी विक्रेता की है।

8-हस्तान्तरण विलेख के पंजीयन के बिना आप स्थावर/अचल संपत्ति के स्वामी नहीं हो सकते।

समस्या-
मैंने कुछ जमीन लगभग २० वर्ष पहले अनुसूचित जाति के लोगो से खरीदी है, उस जमीन की असली मालिक ग्राम पंचायत है। यह जमीन ग्राम पंचायत द्वाराअनुसूचित जाति के लोगों को दी गयी थी| अनुसूचित जाति की जमीन होने के कारनउसकी रजिस्ट्री नहीं हो रही है। मैंने कुछ लोगों से पंचायत में उसकेखरीदने और उसके कब्जे का साधारण कागज पर लेख लिया है जिस में गवाह के रूप मेंग्राम पंचायत की मुहर भी सरपंच द्वारा लगाई हुई है तो कुछ स्टाम्प पेपर परनोटरी द्वारा अटेस्टेड है। अब मैं उस जमीन पर घर बनाना चाहता हूँ उस जमीन परमेरा कब्ज़ा भी तभी से है जब से वो जमीन मैंने खरीदी है। यदि मैं उस जमीन परघर बना लूँ तो कोई दुविधा तो नहीं होगी।
समाधान-
ह ठीक है कि आप ने जमीन खरीदी है जिस के सबूत के रूप में आप के पास सादे कागज पर विक्रय विलेख है और स्टाम्प पर नोटेरी का अटेस्टेशन भी है। पर ये सब मात्र एग्रीमेंट हैं। इन दस्तावेजों से अचल संपत्ति का हस्तान्तरण नहीं हो सकता। इन दस्तावेजों के आधार पर इतना तो माना जा सकता है कि आप ने उक्त जमीन खरीदने का सौदा किया। उस की कीमत अदा कर दी और कब्जा प्राप्त कर लिया। बीस साल से आप का कब्जा है। लेकिन आप किसी भी तरह उस के स्वामी नहीं हुए हैं। क्यों कि किसी भी स्थावर संपत्ति का स्वामित्व केवल रजिस्टर्ड हस्तान्तरण पत्र के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
मुझे लगता है कि इस जमीन के विक्रय पत्र का पंजीयन न हो सकने का कारण यह नहीं है कि वह जमीन अनुसूचित जाति के लोगों की है। इस का मूल कारण यह होना चाहिए कि जमीन उन्हें पंचायत ने मकान बना कर रहने को दी। उन्हों ने मकान नहीं बनाया बल्कि उस का कब्जा आप को बेच दिया। पंचायत ने उन्हें कभी उस का स्वामित्व हस्तान्तरित ही नहीं किया था। जिस से वे उस के मालिक नहीं बन सके। जो व्यक्ति खुद किसी संपत्ति के मालिक नहीं हैं वे कैसे आप को स्वामित्व हस्तान्तरण कर सकते हैं। यदि ग्राम पंचायत उन्हें पट्टा जारी करती और वे उस पट्टे का पंजीयन करवा लेते तो वे उस जमीन के स्वामी हो सकते थे। तब वे आप को वह भूमि हस्तान्तरित कर के उस का पंजीयन करवा सकते थे।
ब आप मकान तो बना सकते हैं, हो सकता है उस में कोई भौतिक बाधा खड़ी न हो। लेकिन ग्राम पंचायत जो कि सरकार की प्रतिनिधि है। सरकार के किसी निर्णय के आधार पर उस भूमि पर से उस के अनुसूचित जाति के लोगों का आवंटन रद्द कर सकती है। वैसी स्थिति में आप का उक्त जमीन पर कब्जा भी अवैध हो सकता है। उस पर से आप को हटने के लिए भी कहा जा सकता है। हालांकि ऐसे मामलों में अक्सर यह होता है कि सरकार या ग्राम पंचायत उक्त भूमि का प्रीमियम ले कर कब्जेदार को पट्टा जारी कर देती है और कब्जेदार उस पट्टे का पंजीकरण करवा कर लीज होल्ड स्वामित्व प्राप्त कर लेता है।

9-उत्तराधिकारियों द्वारा मृतक की संपत्ति का विक्रय


पिताजी का स्‍वर्गवास जुलाई 2008 में हो गया था। उन्‍होंने करीब तीन दशक पूर्व एक  नगरीय भूखंड खरीदा था। अब हम वह भूखंड बेचना चाहते हैं। इसके लिए हमें क्‍या क्‍या कानूनी कवायद करनी होगी?  परिवार में मां के अलावा मैं और मेरा छोटा भाई है। हम दोनों विवाहित हैं। मेरे परिवार में पत्‍नी व एक पुत्री (5 माह) है। छोटे भाई के परिवार में पत्‍नी के अलावा एक पुत्री (14 वर्ष) एवं एक पुत्र (9 वर्ष) हैं। भूखंड बेचने की सभी में सहमति है और कोई विवाद नहीं है। कागजात अभी भी पिताजी के ही नाम पर हैं। मैं यह जानना चाहता हूं कि इस भूखंड की बिक्री किसके हस्‍ताक्षर से होगी, मां या हम दोनों भाइयों में से कोई भी या हम सभी संयुक्‍त रूप से करेंगे ? क्‍या बिक्री से पूर्व नामांतरण आदि जैसी कोई प्रक्रिया कराना होगा ? क्‍या हमें किसी प्रकार का कोई कर आदि भी देना होगा ? कृपया संक्षेप में पूरी प्रक्रिया सिलसिलेवार ढंग से बताएं। यदि कोई पोस्‍ट इससे संबंधित पूर्व में प्रकाशित की हो तो उसका लिंक दे सकते हैं। 
 उत्तर –
प ने यह नहीं बताया कि यह भूखंड लीज-होल्ड का है अथवा फ्री-होल्ड का है। यदि यह भूखंड लीज होल्ड का है तो आप को पहले नगर पालिका/विकास न्यास/प्राधिकरण में नामांतरण करवाना होगा और उस के उपरांत उसे विक्रय करने की अनुमति प्राप्त करनी होगी। यदि कोई लीज रेंट आप की ओर बकाया होगा तो उसे जमा किए बिना न तो नामांतरण हो सकेगा और न  ही विक्रय करने की अनुमति प्राप्त हो सकेगी। यह आप को पिताजी के नाम जो विक्रय पत्र पंजीकृत है उसे पढ़ने से पता लग जाएगा कि भूखंड लीज-होल्ड का है अथवा फ्री-होल्ड का है। यदि भूखंड फ्री-होल्ड का है तो इस तरह की या किसी भी प्रकार की अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।
प के पिता जी के देहान्त के साथ ही उनके प्रथम श्रेणी के सभी उत्तराधिकारी संयुक्त रूप से उस भूखंड के स्वामी हो चुके हैं। आप के मामले  में आप, आप का भाई और आप की माता जी इस भूखंड के स्वामी हैं। किसी भी संपत्ति के विक्रय पत्र पर उस के सभी स्वामियों अथवा उन के मुख्तार-आम के हस्ताक्षर आवश्यक हैं, उन का पंजीयन के लिए उप पंजीयक के कार्यालयम में उपस्थित होना भी आवश्यक है।  इस कारण से इस भूखंड को विक्रय करने के लिए इस के विक्रय पत्र पर आप तीनों को ही हस्ताक्षर करने होंगे और उप पंजीयक के कार्यालय में उपस्थित होना पडे़गा। यदि आप तीनों में से कोई एक या दो विक्रय पत्र को पंजीयन कराने के लिए उपलब्ध होने की स्थिति में नहीं हों तो आप तीनों में से किसी को भी, शेष दो व्यक्ति मुख्तारनामा-आम (General Power of Attorney) निष्पादित कर उसे अपना मुख्तार आम नियुक्त कर सकते हैं।  इस मुख्तारनामे के आधार पर मुख्तार स्वयं अपनी ओर से तथा जिन्हों ने उसे मुख्तार-आम नियुक्त किया है उन की ओर से संपत्ति को विक्रय करने के लिए विक्रय का इकरारनामा (संविदा) निष्पादित कर सकता है और विक्रय पत्र निष्पादित कर उसे पंजीकृत करवा सकता है। 
प ने अपनी और अपने भाई की पत्नी और बच्चों का भी उल्लेख किया है। लेकिन इस संपत्ति में अभी उन का कोई अधिकार नहीं है। इस कारण से उन का इस के विक्रय से कोई संबंध भी नहीं होगा। 

10-विवाह के पूर्व ही मृत्यु हो जाने पर संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा?

मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे पिता के भाई अविवाहित थे तभी उन का देहान्त हो गया था। उन की संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा? 
 उत्तर – 
क हिन्दू की संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम से शासित होता है। पुरुषों का उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-8 से शासित होता है। इस अधिनियम के अंतर्गत एक अनुसूची दी गई है। इस अनुसूची में उत्तराधिकारियों को कुछ श्रेणियों में विभाजित किया गया है। यदि किसी हिन्दू पुरुष का देहान्त हो जाता है तो सब से पहले इस अनुसूची की प्रथम श्रेणी में वर्णित जितने भी उत्तराधिकारी हैं संपत्ति उतने ही भागों में विभाजित की जाती है और प्रत्येक उत्तराधिकारी को एक भाग प्राप्त होता है। इस अनुसूची की प्रथम श्रेणी के जितने भी उत्तराधिकारी संबंधी हैं उन में माता को छोड़ कर सभी उत्तराधिकारी ऐसे हैं जो कि विवाह संबंध से ही उत्पन्न होते हैं। यदि आप के चाचा जी का विवाह नहीं हुआ था और उन के देहान्त के समय आप के चाचा जी की माता जी अर्थात आप की दादी जी जीवित थीं तो आप के चाचा जी की सारी सम्पत्ति आप की दादी जी को प्राप्त होगी। 
लेकिन यदि आप की दादी का देहान्त आप के चाचा जी के देहान्त के पूर्व हो चुका था तो फिर प्रथम श्रेणी का कोई भी उत्तराधिकारी जीवित नहीं होगा और संपत्ति द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारियों को क्रम से प्राप्त होगी। उस समय यदि आप के दादा जी जीवित थे तो सम्पत्ति उन्हें प्राप्त होगी। यदि वे भी जीवित नहीं थे तो फिर चाचा जी की संपत्ति उन के भाई-बहनों की संख्या के बराबर भागों में विभाजित की जा कर प्रत्येक भाग प्रत्येक भाई और बहन को प्राप्त होगा। यदि कोई भाई और बहिन जीवित नहीं था तो भाइयों और बहनों के पुत्र-पुत्रियों की संख्या के समान हिस्सों में विभाजित की जाएगी और प्रत्येक को एक भाग प्राप्त होगा। यदि इन में से भी कोई जीवित न हो तो आगे भी व्यवस्था की गई है। लेकिन आप स्वयं एक भाई के पुत्र हैं। इसलिए इस प्रश्न का उत्तर यहीं समाप्त हो जाता है। अब आप अपने परिवार की स्थिति के अनुसार आकलन कर लें कि आप के चाचा जी की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा। 

11-दिवंगत पिता की संपत्ति में विवाहित और अविवाहित पुत्रियों का अधिकार है


क्या दादालाई संपत्ती और पिता की संपती में विवाहित और अविवाहित पुत्री का हक या हिस्सा होता है?
उत्तर —
किसी भी व्यक्ति के पास दो प्रकार की संपत्ति हो सकती है। एक वह संपत्ति जो उस ने स्वयं अर्जित की है और दूसरी वह जो उसे उत्तराधिकार में मिली है। वसीयत से प्राप्त संपत्ति स्वअर्जित संपत्ति है। उत्तराधिकार में मिली संपत्ति में उस व्यक्ति की संतानों का अधिकार भी निहीत होता है। किसी भी हिन्दू व्यक्ति की संपत्ति यदि वह व्यक्ति कोई वसीयत नहीं करता है तो उस की मृत्यु होते ही उस की संपत्ति में उस के उत्तराधिकारियों का हित निहीत हो जाता है और उस के द्वारा छोड़ी गई संपत्ति संयुक्त सम्पत्ति में परिणत हो जाती है। यह संपत्ति तब तक संयुक्त बनी रहती है जब तक कि उस का कोई भी हिस्सेदार विभाजन नहीं करा लेता है।
र्तमान हिन्दू उत्तराधिकार कानून के अनुसार दादालाई संपत्ति में विवाहित और अविवाहित पुत्रियों का अधिकार है। पिता की मृत्यु के उपरांत उन की निर्वसीयती संपत्ति में भी विवाहित और अविवाहित पुत्रियों का अधिकार बना हुआ है।
लेकिन खेती की भूमि के सम्बन्ध में प्रत्येक प्रांत का कानून पृथक हो सकता है। इस का कारण यह है कि कृषि भूमि पर स्वामित्व सदैव राज्य का ही होता है। कृषक केवल उस का खातेदार और कब्जेदार होता है। यदि प्रान्तीय कानून में यह कहा गया है कि खातेदारी अधिकारों के उत्तराधिकार के मामले में भी व्यक्तिगत उत्तराधिकार की विधि प्रभावी होगी तो वहाँ भी हिन्दू उत्तराधिकार का नियम लागू होने के कारण अविवाहित और विवाहित पुत्रियों का अधिकार होगा। यदि किसी प्रांत में यह नियम न हो कर कोई और नियम है तो कृषि भूमि के मामले में वह नियम प्रभावी होगा। इस की जानकारी प्रांतीय कानूनों से ही की जा सकती है।

12-मिथ्या तथ्य प्रकट कर के नौकरी हासिल करना अपराध है …

समस्या-
मेरी बहिन की शादी 18 की उम्र की होने के पहले हो गई थी। शादी के के बाद आज तक ससुराल में नहीं गई। बहिन ने सीआईएसएफ में नौकरी के लिए आवेदन किया था जिस में उस ने खुद का स्टेटस अविवाहित होना लिखा है। अब उस का चयन भी हो गया है। ससुराल वाले कह रहे हैं कि हम शिकायत करेंगे कि तूने शादीशुदा होते हुए भी अविवाहित लिख कर नौकरी ली है।

समाधान-
प की बहिन ने गलती की है। किसी भी नौकरी के लिए आवेदन करते समय कभी कोई गलत तथ्य नियोजक को नहीं बताने चाहिए। आप की बहिन यदि अपना स्टेटस विवाहित लिखती तब भी उस का चयन हो जाता क्यों कि चयन में इस का कोई अन्तर नहीं पड़ता कि आप की बहिन विवाहित है या नहीं है।
वेदन प्रपत्र में गलत सूचना देने के कारण आप की बहिन का चयन निरस्त किया जा सकता है। 18 वर्ष की उम्र से कम उम्र में विवाह होने से वह स्वतः ही अकृत नहीं होता है। वह तब तक कायम रहता है जब तक कि उसे न्यायालय द्वारा अकृत घोषित नहीं कर दिया जाए।
प की बहिन को चाहिए कि वह तुरन्त अपने नियोजकों को सूचित करे कि उस ने गलती से अपना स्टेटस विवाहित के स्थान पर अविवाहित लिख दिया है और इसे दुरुस्त किया जाए। इस का परिणाम क्या होगा यह तो नियोजन देने वाले अधिकारियों पर निर्भर करेगा। वे आप की बगन की गलती को माफ भी कर सकते हैं और गलत सूचना देने के लिए उस का आवेदन पत्र निरस्त भी कर सकते हैं। लेकिन इस तथ्य को छुपा कर किसी तरह नौकरी प्राप्त कर ली जाती है तो वह बड़ा अपराध होगा जिस का शमन किया जाना किसी प्रकार संभव नहीं हो सकेगा। कभी भी जब भी नियोजक को इस बात का ज्ञान होगा कि गलत तथ्य प्रकट कर के नौकरी हासिल की गई है उसे न केवल नौकरी से हटाया जा सकता है बल्कि अपराधिक मामले में उसे अभियोजित किया जा कर दंडित भी किया जा सकता है।

यदि आप की बहिन की उम्र अभी 20 वर्ष पूरी नहीं हुई है और आप व आप की बहिन चाहते हैं कि उस का विवाह अकृत घोषित हो जाए तो आप की बहिन The Prohibition of Child Marriage Act,2006 की धारा 3 के अन्तर्गत आवेदन प्रस्तुत कर उसे अकृत घोषित करवा सकती है।

13-क्या शादी के बाद लड़की अपने पापा के घर रह सकती है?

समस्या –
क्या शादी के बाद लड़की अपने पापा के घर रह सकती है? यदि हाँ तो किस आधार पर?
समाधान
प का प्रश्न बिना किसी संदर्भ के है। इस कारण इस प्रश्न के अनेक आयाम हो सकते हैं। एक संदर्भ इस का यह हो सकता है कि लड़की पिता के घर रहना चाहती है और पिता उसे अपने घर रखने से इन्कार कर रहा है। तब प्रश्न यूँ होता कि क्या एक लड़की को विवाह के उपरान्त भी अपने पिता के घर रहने का अधिकार प्राप्त है? दूसरा संदर्भ यह हो सकता है कि एक लड़की विवाह के उपरान्त भी अपने पिता के साथ रह रही है और उस के पिता के साथ रहने पर उस के पति को आपत्ति हो सकती है। तब प्रश्न यह होगा कि पत्नी क्या पति को त्याग कर पिता के घर रह सकती है? तीसरा संदर्भ यह हो सकता है कि पति और पिता दोनों को लड़की के पिता के साथ रहने पर आपत्ति नहीं है लेकिन पिता के साथ रह रहे भाइयों को आपत्ति हो सकती है। तब प्रश्न यह हो सकता है कि विवाह के उपरान्त भी पिता को पुत्री को अपने घर रखने का अधिकार है क्या? हम यहाँ इन तीनों ही प्रश्नों के संदर्भ में विचार करेंगे। लेकिन कुछ प्रश्न हम यहाँ और आप के विचारार्थ प्रस्तुत करना चाहते हैं।
क्या विवाह के उपरान्त भी एक लड़का अपने पिता के घर रह सकता है? क्या उसे ऐसा अधिकार है? क्या वह अपनी पत्नी को छोड़ कर पिता के घर रह सकता है? क्या विवाह के उपरान्त भी पिता को पुत्र को अपने घर रखने का अधिकार है? हमें आश्चर्य नहीं है कि इस तरह के प्रश्न लड़कों/पुरुषों के संबंध में आम तौर पर नहीं पूछे जाते। यहाँ तक कि इस तरह के प्रश्न किसी के मस्तिष्क में उत्पन्न ही नहीं होते। उस का मुख्य कारण है कि हमारा समाज ही नहीं वरन् दुनिया भर का समाज पुरुष प्रधान समाज है। इस समाज की सामान्य मान्यता है कि विवाह के उपरान्त स्त्री को उस के पति के घर जा कर रहना चाहिए। पिता के घर और संपत्ति पर विवाह के उपरान्त स्त्री का कोई अधिकार नहीं है। वर्तमान पुरुष प्रधान समाज स्त्री को मानुष ही नहीं समझता। वह समझता है कि स्त्री एक माल है। वह समझता ही नहीं है अपितु उस के लिए इस शब्द का प्रयोग भी करता है।
लेकिन समाज में उपस्थित जनतांत्रिक, समतावादी, साम्यवादी और स्त्री मुक्ति आंदोलन ने स्थिति को बदला है। इस बदलाव का परिणाम यह हुआ कि भारत के संविधान ने स्त्री और पुरुष को समान दर्जा दिया। उस के बाद कानूनों के बदलने का सिलसिला आरंभ हुआ। एक हद तक कानून बदले गए। लेकिन आज भी कानून के समक्ष स्त्री को पुरुष के समान दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है। हम आप के प्रश्न के संदर्भों में कानूनी स्थिति पर विचार करते हैं।
भारत में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता का मूल अधिकार प्रदान किया गया है। इस कारण से प्रत्येक वयस्क स्त्री या पुरुष जहाँ चाहे वहाँ निवास कर सकती/सकता है चाहे उस का विवाह हुआ है या वह अविवाहित है। यदि कोई चाहता/चाहती है कि वह पिता के घर रहे और यदि पिता को आपत्ति नहीं है तो वह पिता के घर रह सकता/सकती है। पिता के साथ रहने में किसी तरह की कोई बाधा नहीं है। यदि पिता के साथ रहने वाले व्यक्ति का पति या पत्नी भी उस के साथ रह रहा/रही है तो कोई संकट उत्पन्न नहीं होगा। पिता के घर पुत्र का रहना तो सामान्य बात है और अक्सर ऐसे पुत्र के साथ पत्नियाँ भी बहुधा रहती ही हैं। समस्या तब उत्पन्न होती है जब एक स्त्री विवाह के उपरान्त उस के पिता के साथ रहती है। अब यदि उस का पति भी उस के साथ आ कर रहने लगे और स्त्री के पिता को कोई आपत्ति नहीं हो तो कोई कानूनी समस्या उत्पन्न नहीं होती। बस इतना मात्र होता है कि समाज यह कहता है कि वह घर जमाई बन गया है। समाज इसे निन्दा की बात समझता है। पर यह भी अक्सर होता है और सामान्य बात है।
लेकिन यदि कोई स्त्री अपने पति की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता के साथ रहती है तो कानूनी समस्या उत्पन्न होती है। प्रत्येक विवाहित स्त्री व पुरुष का यह दायित्व है कि वह अपने जीवनसाथी के साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करे। लेकिन इस से उस निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है। पति यह कह सकता है कि पत्नी सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह नहीं कर रही है। वह कानून के समक्ष पत्नी से सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करने की डिक्री प्राप्त करने का आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। न्यायालय इस आवेदन को स्वीकार कर पत्नी को पति के साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन निर्वाह करने का आदेश डिक्री के माध्यम से दे सकता है। लेकिन न्यायालय ऐसा तभी कर सकता है जब कि पत्नी के पास अपने पति से अलग निवास करने का उचित कारण उपलब्ध न हो। पत्नी को ऐसा आदेश दे दिए जाने पर भी यदि पत्नी पति के साथ निवास नहीं करना चाहती है तो ऐसे आदेश की जबरन पालना नहीं कराई जा सकती है। ऐसे आदेश का प्रभाव मात्र इतना होता है कि पति को पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का आधार प्राप्त हो जाता है।

क और परिस्थिति यह हो सकती है कि पिता विवाहित पुत्री को अपने साथ रखना चाहता है लेकिन पिता के पुत्र आपत्ति करते हैं। इस से कोई कानूनी समस्या उत्पन्न नहीं होती। क्यों कि भाइयों को ऐसी आपत्ति करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
क अन्य स्थिति यह हो सकती है कि विवाहित पुत्री पिता के घर रहना चाहती है लेकिन पिता इस के लिए तैयार नहीं है। वैसी स्थिति में पुत्री को यह अधिकार नहीं कि वह पिता के घर निवास कर सके। यदि विवाहित पुत्री असहाय है और उस का पति भी उस का भरण पोषण करने व आश्रय देने में सक्षम नहीं है तो वह पिता से भरण पोषण व आश्रय की मांग कर सकती है और इस के लिए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। न्यायालय पिता की क्षमता को देख कर उचित आदेश प्रदान कर सकता है।
ब से विकट स्थिति तो तब उत्पन्न होती है जब किसी स्त्री को अपने पति का आश्रय भी नहीं मिलता और पिता भी आश्रय देने को तैयार नहीं होता। वैसी स्थिति में यदि स्त्री स्वयं अपना भरण पोषण करने में समर्थ न हो तो उसे दर दर की ठोकरें खाने को विवश होना पड़ता है। इस कारण यह जरूरी है कि प्रत्येक स्त्री अपने पैरों पर खड़ी हो और अपना भरण पोषण करने में सक्षम बने। स्त्री मुक्ति का एक मात्र उपाय यही है कि स्त्रियाँ अपने पैरों पर खड़ी हों।

14-क्या मैं अपने वास्तविक पिता की संपत्ति में हिस्सा प्राप्त कर सकती हूँ?

मेरा जन्म मेरे पिता के निवास पर ही हुआ था, लेकिन मेरी  माता ने मेरे पिता को छोड़ कर दूसरे गाँव में किसी अन्य व्यक्ति से नाता विवाह कर लिया। अब मेरे पिता, माता और माता के दूसरे पति का देहान्त हो चुका है।  मैं अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा लेना चाहती हूँ परन्तु मेरे पास अपने पिता की पुत्री होने का कोई प्रमाण नहीं है। मुझे क्या करना चाहिए?
 उत्तर-
प का अपने वास्तविक पिता की संपत्ति में चाहे वह उन की स्वयं की अर्जित की हुई हो, अथवा पैतृक हो हिस्सा है। लेकिन यह भी आवश्यक है कि आप को किसी भी कार्यवाही करने के पहले इस तथ्य को साबित करने वाला सबूत जुटाना पड़ेगा कि आप अपने पिता की पुत्री हैं। 
पने पिता की पुत्री होने की साक्ष्य जुटाने के लिए आप अपने पिता के गाँव में ऐसे साक्षियों को तलाश कर सकती हैं जो न्यायालय के समक्ष यह बयान दे सकें कि आप की माता जब आप के पिता को छोड़ कर नाते गई थी तब आप पैदा हो चुकी थीं। आप के जन्म का साक्ष्य भी मिल सकता है। निश्चित रूप से उस गाँव में जहाँ आप पैदा हुई थीं आप के जन्म के सबूत अवश्य होंगे। इस बात की गवाही देने  वाला व्यक्ति भी मिल सकता है कि जब आप की माता नाते आई तब आप को साथ ले कर आई थी। इस बात की गवाही तो आप के धर्मपिता के परिवार का ही कोई सदस्य दे सकता है। आप के नाना नानी के परिवार के लोग यदि मौजूद हों तो वे भी साक्ष्य दे सकते हैं। 
साक्ष्य जुटाने के लिए आप को प्रयत्न तो करने होंगे।  जब आप इस तरह की साक्ष्य जुटा लें तो आप अपने पिता की संपत्ति के विभाजन का वाद न्यायालय में प्रस्तुत कर सकती हैं। न्यायालय में यदि कोई विवाद उत्पन्न हो तो आज कल  डीएनए परीक्षण की तकनीक भी मौजूद है। यदि आप के पिता की अन्य संताने मौजूद हों तो उन के डीएनए सैंपल और आप के डीएनए सैंपल का उपयोग भी किया जा सकता है।

15-पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा लेने के लिए क्या करें?

मेरे पिता मांगीलाल जी का स्वर्गवास 1965 में हो गया था। हम अपने पिता की तीन संतानें हैं, दो पुत्र और एक पुत्री। लेकिन मेरे पिता की संपंत्ति में मेरा हिस्सा बिलकुल नहीं छोड़ा गया है। मैं क्या कर सकती हूँ?
 उत्तर –
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 17 जून 1956 को लागू  हो गया था। उस के बाद से ही पिता की संपत्ति में पुत्री को प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में सम्मिलित किया गया है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उस की निर्वसीयती संपत्ति में उस की पत्नी, पुत्र और पुत्रियाँ समान भाग की अधिकारी हैं। आप के  द्वारा बताए गए तथ्यों के अनुसार यदि आप की माता जी जीवित नहीं हैं और आप के दो भाई जीवित हैं  तो आप के पिता की संपत्ति के तीन भाग होने चाहिए जिस में से एक भाग की आप स्वामिनी होंगी। किसी भी व्यक्ति का देहान्त होते ही उस की संपत्ति उस के उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति में परिवर्तित हो जाती है। इस तरह आप के पिता के देहान्त के उपरान्त आप के पिता की संपत्ति भी उन के उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति में परिवर्तित हो गयी है। इस संयुक्त संपत्ति में आप का भी हिस्सा सम्मिलित है। 
हो सकता है कि इस संयुक्त संपत्ति पर आप के भाइयों का कब्जा रहा हो और यह भी हो सकता है कि उन्हों ने उपयोग की दृष्टि से उस संपत्ति को दो भागों में विभाजित कर दोनों उस पर काबिज हो गए हों। लेकिन स्वामित्व के लिहाज से वह संपत्ति आज भी संयुक्त संपत्ति ही है और उस में आप का हिस्सा मौजूद है, जब तक कि उस संपत्ति का विभाजन नहीं हो जाता है। संपत्ति का विभाजन उस संपत्ति के सभी भागीदार आपसी सहमति से कर सकते हैं और इस विभाजन को पंजीकृत करवा सकते हैं। लेकिन आपसी सहमति संभव नहीं हो तो समस्त संपत्ति का विभाजन करने और अपने हिस्से का कब्जा दिलाए जाने के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया जा सकता है। 
प को करना, यह चाहिए कि आप अपने भाइयों से कहें कि तीनों बहन-भाई आपस में बैठ कर संपत्ति का बँटवारा कर लें और उसे पंजीकृत करवा लें। यदि भाई सहमत नहीं होते हैं तो आप को अपने क्षेत्र के किसी अच्छे और विश्वसनीय वकील से मिल कर उस के माध्यम से पिता की संपत्ति के विभाजन के लिए वाद न्यायालय में प्रस्तुत करना चाहिए।

16-पिता के जीवित न होने पर दादी की संपत्ति का बँटवारा

मेरे घर में आरम्भ से ही विवाद रहा है। पापा दादी और मैं अलग रहते थे और एक भाई तथा दो बहनें बहन माँ के साथ अलग रहती थीं। लेकिन सरकारी कागज में अलग नहीं थे। दादी ने अपने जीवनकाल में अपनी सारी संपत्ति पापा के नाम वसीयत कर दी थी और उसके कुछ दिनों के बाद पापा ने अपनी सारी संपत्ति मेरे नाम कर दी। किन्तु दुर्भाग्य से पापा की मृत्यु दादी से पहले हो गयी। अब जो संपत्ति दादी के नाम है, मेरा भाई उसे बेचने की धमकी दे रहा है। इस समय मेरी दोनों बहनें भी मेरे साथ रहती है और उनकी सारी जिम्मेदारी भी लिखा पढ़ी में मेरे ही ऊपर है। ऐसी स्थिति में दादी की संपत्ति क्या पापा के नाम होकर मेरे नाम होगी? जबकि वह दादी से पहले ही गुजर गए थे। दादी के नाम एक घर है बाकि एक खेत पापा के नाम है और इन्हीं लोगों के द्वारा बैनामा लिखा गया था। मुझे भाई को मकान बेचने से रोकने के लिए क्या करना चाहिए?

 उत्तर –
कान आप की दादी के नाम था और जमीन पिताजी के नाम, जिस के बैनामे अर्थात विक्रय पत्र दादी और पापा के नाम ही लिखे गए थे। इस से स्पष्ट है कि दोनों संपत्तियाँ उन की स्वअर्जित सम्पत्तियाँ थीं जिस से वे अपने अपने स्वामित्व की सम्पत्तियों की वसीयत कर सकते थे। आप की दादी ने मकान को पापा के नाम वसीयत कर दिया। लेकिन पापा का देहान्त आप की दादी के पहले हो गया। ऐसी स्थिति में वह वसीयत निरर्थक हो गई। हालाँकि आप ने यह नहीं बताया है कि आप की दादी अभी जीवित हैं या उन का भी देहावसान हो चुका है। वस्तुतः आप की दादी द्वारा आप के पापा के नाम की गई वसीयत व्यर्थ हो गई है क्यों कि उन का देहान्त दादी के पहले हो गया था। यदि दादी अभी जीवित हैं तो दादी उस संपत्ति की फिर से वसीयत कर सकती हैं। यदि दादी का देहान्त हो चुका है तो फिर वसीयत के निरर्थक हो जाने के कारण उस सम्पत्ति (मकान) पर अब दादी के सभी उत्तराधिकारियों का अधिकार है। आप के पापा ने जो वसीयत की है उस में इस मकान का उल्लेख भी न होगा। यदि हो भी तो उस का कोई अर्थ नहीं है। क्यों कि उन का अपने जीवनकाल में मकान में कोई हित उत्पन्न नहीं हुआ था।
प के पिता ने अपनी सम्पत्ति (खेत) की वसीयत आप के नाम कर दी थी। इस तरह खेत इस वसीयत के अनुसार आप की संपत्ति हो चुका है। आप चाहें तो राजस्व रिकार्ड में पापा के देहान्त की सूचना दे कर वसीयत के आधार पर कृषि भूमि के खाते में नामान्तरण अपने नाम करवा सकते हैं। इस तरह खेत के सम्बन्ध में कोई विवाद शेष नहीं रहा है।
सल विवाद मकान के सम्बन्ध में है जिस की स्वामी आप की दादी थीं। इस घर की जो वसीयत आप की दादी ने आप के पिताजी के नाम की थी उस के निरर्थक हो जाने के कारण वह सम्पत्ति निर्वसीयती हो गई है। उस मे दादी के उत्तराधिकारियों का हित निहित हो चुका है। दादी के उत्तराधिकारियों में आप के दादा व दादी की सभी संताने अर्थात आप के पिता, पि

17-पिताजी ने अपनी अर्जित आय से संपत्ति माँ के नाम खरीदी थी। संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा?

मुम्बई से ---- ने पूछा है … 
सर!
हिन्दू संपत्ति कानून मुंबई महाराष्ट्र के हिसाब से माँ बेटियों और बेटों का  संपत्ति बंटवारे का क्या अधिकार है? मेरे पिताजी ने मरने से पहले किसी प्रकार की कोई वसीयत नहीं बनाई । सारी जायदाद मेरे पिताजी द्वारा अर्जित की गई है और माँ के नाम पर है तो सर बंटवारे का क्या नियम है? और कितना वक्त लग सकता है?
 उत्तर …
हिन्दू उत्तराधिकार का नियम बहुत स्पष्ट है।  किसी भी हिन्दू पुरुष ने वसीयत नहीं की हो तो उस के देहांत के उपरांत उस की संपत्ति में उस के प्रथम  श्रेणी के उत्तराधिकारी समान हिस्सों में भागीदार हो जाते हैं। प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में, विधवा पत्नी, सभी पुत्र और पुत्रियाँ और माता सम्मिलित हैं।  यदि पुत्र-पुत्रियों में से किसी की पहले ही मृत्यु हो गई हो तो उन के पुत्र पुत्रियां उस मृतक पुत्र या पुत्री के हिस्से के हकदार होंगे।
आप के मामले में आप के पिता ने केवल मकान ही संपत्ति के रूप में छोड़ा है और वह भी आप की माँ के नाम है। इस तरह वह मकान एक बेनामी संपत्ति है। बेनामी अंतरण अधिनियम 1988 के अनुसार अब बेनामी संपत्ति का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है और कोई भी संपत्ति उसी की मानी जाती है जिस के नाम वह संपत्ति होती है. लेकिन उस में यह अपवाद भी है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी या अविवाहित पुत्री के नाम से खरीदी जा सकती है लेकिन उस स्थिति में यही माना जाएगा कि जिस व्यक्ति ने उक्त संपत्ति खरीदी है वह जिस के नाम से खरीदी है उस के ही लाभ के लिए खरीदी है।
इस कानून में एक अपवाद यह भी है कि किसी अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार के सदस्य के नाम कोई भी संपत्ति पूरे परिवार के लाभ के लिए खरीदी जा सकती है। लेकिन अदालत में यह प्रमाणित करना होगा कि संपत्ति पूरे परिवार के लाभ के लिए खरीदी गई थी। ऐसा प्रमाणित हो जाने पर वह संपत्ति पूरे संयुक्त परिवार की होगी और सभी उस संपत्ति के हिस्सेदार होंगे। आप के मामले में बहुत से तथ्य ऐसे हैं जिन की व्यक्तिगत रूप से जानकारी के बाद ही यह तय किया जा सकता है कि आप की माता जी के नाम जो संपत्ति आप के पिता ने खरीदी थी उसे संयुक्त परिवार की संपत्ति माना जाएगा अथवा केवल आप की माता जी की संपत्ति माना जाएगा। इस प्रश्न पर कोई भी वकील दस्तावेजों के अध्ययन के उपरांत ही स्पष्ट राय दे सकता है। आप के लिए यह उचित होगा कि आप उक्त संपत्ति के स्वामित्व के दस्तावेजात की प्रमाणित प्रतियाँ संबंधित उप पंजीयक से प्राप्त कर संपत्ति के मामलों की जानकारी रखने वाले वकील को दिखाएँ और स्पष्ट राय प्राप्त करें। 

18-माँ और दादी से प्राप्त संपत्ति पैतृक क्यों नहीं है?

दादा से उत्तराधिकार में पिता को प्राप्त संपत्ति पैतृक है और उस में संतानों का अधिकार निहित है तो दादी से पिता को प्राप्त संपत्ति में संतानों का अधिकार क्यों नहीं है? क्या वह पैतृक नहीं है।
  उत्तर- 
ब आप ने मुझे टेलीफोन पर पूछा कि क्या दादी से पिताजी को मिली संपत्ति क्या पैतृक नहीं है तो अचानक मैं मुस्कुरा उठा। मैं ने आप को जवाब दिया -नहीं। फिर आप ने पूछा कि ऐसा क्यों नहीं है? तो मेरी हँसी छूट गई। वह इसलिए कि आप के प्रश्न का उत्तर तो आप के प्रश्न में ही छिपा हुआ था। आप उस पर ध्यान ही नहीं दे पा रही थीं। आखिर किसी को भी अपनी माता से प्राप्त संपत्ति पैतृक कैसे हो सकती है? उसे तो भाषा में भी पैतृक नहीं कहा जा सकता। अधिक से अधिक उसे मातृक कह सकते हैं। पर आप के प्रश्न का उत्तर इतना सादा भी नहीं है।
हिन्दू विधि के अतिरिक्त किसी भी अन्य व्यक्तिगत विधि में पैतृक संपत्ति का सिद्धान्त नहीं है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरान्त उस व्यक्ति की संपत्ति उत्तराधिकार में जिस व्यक्ति को प्राप्त होती है वह उस की संपत्ति हो जाती है और उस व्यक्ति को अधिकार होता है कि वह उस संपत्ति का किसी भी प्रकार से व्ययन करे। लेकिन हिन्दू विधि में यह सिद्धान्त है कि यदि किसी व्यक्ति को अपने किसी भी सपिंड पुरुष पूर्वज अर्थात पिता, पितामह, प्रपितामह आदि से कोई संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त होती है तो वह पैतृक संपत्ति है और उस में ऐसे संपत्ति प्राप्तकर्ता उत्तराधिकारी के उत्तराधिकारियों का हित निहित होता है। यदि उत्तराधिकारी अविवाहित हो या उस के कोई संतान न हो तो वह उस संपत्ति का व्ययन कर सकता है। लेकिन यदि वह अपनी संतान के जन्म तक पुरुष पूर्वज से प्राप्त संपत्ति को धारण किए रहता है तो किसी संतान के गर्भ में आते ही ही उस का अधिकार उस सम्पत्ति में निहित हो जाता है। तब वह उस संपत्ति का व्ययन स्वेच्छा से नहीं कर सकता है। इस के विपरीत पुरुष पूर्वजों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति पैतृक नहीं हो कर व्यक्तिगत संपत्ति है और उस पर उत्तराधिकारी के जीवित रहते किसी अन्य व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं होता। ऐसा उत्तराधिकारी इस संपत्ति का इच्छानुसार व्ययन कर सकता है।
रंपरागत हिन्दू विधि में स्त्रियों को बहुत सीमित उत्तराधिकार प्राप्त था। उन्हें उत्तराधिकार में जो संपत्ति प्राप्त होती थी उस का वे व्ययन नहीं कर सकती थीं, केवल उस संपत्ति से प्राप्त आय का  उपयोग कर सकती थीं और उन के देहान्त के उपरान्त वह संपत्ति जिस पूर्वज से प्राप्त होती थी उसी के उत्तराधिकारियों को मिल जाती थी।

19-उत्तराधिकार में प्राप्त किसी भी संपत्ति पर केवल प्राप्तकर्ता का ही अधिकार होगा, उस के पुत्र पुत्रियों का नहीं।

समस्या-
झाँसी, उत्तर प्रदेश अग्रवाल पूछते हैं –
क्या माता से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति में बेटी का अधिकार होता है?
समाधान-
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम दिनांक 17 जून 1956 से प्रभावी हुआ है। इस अधिनियम के प्रभावी होने के उपरान्त इस अधिनियम के अंतर्गत उत्तराधिकार में प्राप्त किसी भी संपत्ति पर केवल उत्तराधिकार में प्राप्त करने वाले व्यक्ति का ही अधिकार होता है अन्य किसी का नहीं।
स अधिनियम की धारा 14 के अनुसार किसी भी स्त्री की संपत्ति उस की व्यक्तिगत संपत्ति होती है। इस कारण उस से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति भी संपत्ति को प्राप्त करने वाले की व्यक्तिगत संपत्ति होगी। धारा-15 की उपधारा (क) के अंतर्गत ही किसी को मातृपक्ष की संपत्ति प्राप्त हो सकती है। इस उपधारा में कहा गया है कि किसी स्त्री की मृत्यु के उपरान्त उस की संपत्ति उस के पुत्र-पुत्रियों (और पूर्व मृत पुत्र पुत्रियों की संतानों) को प्राप्त होगी। इस में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि जीवित पुत्र पुत्रियों के पुत्र पुत्रियों को भी संपत्ति प्राप्त होगी।  इस कारण से माता या मातृ पक्ष से प्राप्त संपत्ति पर केवल संपत्ति प्राप्त करने वाले का ही अधिकार होगा। यह उस की स्वयं की संपत्ति होगी। उस में संपत्ति प्राप्त करने वाले व्यक्ति के जीवित रहते उस के पुत्र पुत्रियों का कोई अधिकार नहीं होगा।

20-बेनामी संपत्ति क्या है? संपत्ति के बेनामी हस्तांतरण पर रोक किस तरह की है?

दिनेश जी आप की बात समझ में नहीं आई आज, अगर कोई आदमी अपनी पत्नी के नाम से मकान या कोई संपत्ति बनाता है, ओर फ़िर उन दोनों के मरने के बाद वो संपत्ति या मकान आनामी कहलाएगी या बाकी बचे परिवार के नाम होगा? कृपया दोबारा से विस्तार से समझाएँ।
“बेनामी हस्तांतरण” कानून द्वारा उस हस्तांतरण को कहा गया है जिस में। कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति को धनराशि के बदले हस्तांतरित करता है जिस की धनराशि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चुकाई या उपलब्ध गई हो। 
इस तरह हस्तांतरित संपत्ति को बेनामी संपत्ति कहा गया है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति भाटिया जी की पत्नी को बेचता है लेकिन उस की कीमत भाटिया जी की पत्नी के स्थान पर भाटिया जी ने चुकाई या उपलब्ध कराई हो। इस तरह यह संपत्ति बेनामी संपत्ति कहलाएगी। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि संपत्ति खरीदी तो भाटिया जी ने लेकिन उसका विक्रय पत्र पत्नी के नाम लिख कर रजिस्टर करवा लिया। इस तरह उस संपत्ति के वास्तविक स्वामी तो भाटिया जी हुए लेकिन दस्तावेजों और रिकार्ड में यह संपत्ति भाटिया जी की पत्नी के नाम दर्ज रहेगी।
1988 के पहले यह स्थिति थी कि इस बेनामी संपत्ति का वास्तविक स्वामी वही व्यक्ति माना जाता था जिस ने उस संपत्ति को खरीदने के लिए धनराशि चुकाई हो। लेकिन संपत्ति जिस के नाम दस्तावेजों या रिकार्ड में होती थी वह उसे दस्तावेजों के सहारे से किसी को बेच देता या दान, हस्तांतरण आदि कुछ कर देता तो बाद में इस तरह के विवाद अदालतों में आते थे कि वह संपत्ति तो बेनामी थी और वास्तविक स्वामित्व किसी और का था। इस से निरर्थक विवाद बहुत होते थे। 1988 में भारतीय संसद ने बेनामी हस्तांतरण (निषेध) अधिनियम  1988 पारित किया। इस में यह प्रावधान रखा गया कि कोई भी व्यक्ति बेनामी हस्तांतरण में शामिल नहीं होगा तथा किसी संपत्ति को बेनामी बता कर स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति को उस का वास्तविक स्वामी बताते हुए कोई भी वाद, दावा या कार्यवाही नहीं कर सकेगा। इस तरह किसी भी संपत्ति को बेनामी बताते हुए दायर होने वाले मुकदमों का अदालत में प्रस्तुत किया जाना बंद हो गया।  बेनामी हस्तांतरण को इस कानून के द्वारा दंडनीय अपराध बना दिया गया जिस में तीन वर्ष तक की कैद की सजा का प्रावधान है जो बिना जुर्माने या जुर्माने के साथ हो सकती है। दूसरी ओर बेनामी घोषित की गई संपत्ति को सरकार  द्वारा अपने कब्जे और स्वामित्व में  लेने का प्रावधान भी किया गया। 
लेकिन इस कानून में यह अपवाद भी रखा गया कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी या अविवाहित पुत्री के नाम से बेनामी संपत्ति खरीद सकता है जिसे अपराध नहीं समझा जाएगा।  जब तक इस के विरुद्ध तथ्य किसी अदालत में प्रमाणित नहीं कर दिया जाए तब तक यह माना जाएगा कि वह संपत्ति खर

21-क्या मैं दादा जी की संपत्ति में विभाजन के लिए वाद ला सकता हूँ?

मेरे पितामह (दादाजी) की संपत्ति मेरे चाचा जी के पास है, यह संपत्ति चाचा जी के पास रहे इस मामले में मेरे पिताजी ने भी सहयोग किया। लेकिन अब मैं चाहता हूँ कि इस संपत्ति में मुझे मेरा हिस्सा मिले। क्या मुझे इस संपत्ति में मेरा हिस्सा मिल सकता है? हम दो भाई और चार बहने हैं। क्या  मेरी बुआ भी इस संपत्ति में अपना हिस्सा क्लेम कर सकती हैं? 

उत्तर – – –

निश्चित रूप से आप उस संपत्ति में जो कि आप के दादा जी की है औऱ चाचा जी के पास है उस में अपने हिस्से का दावा कर सकते हैं।
प के दादा जी के देहावसान के समय ही उन की समस्त ऐसी संपत्ति जिस के संबंध में कोई वसीयत नहीं की गई थी, उन के उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति में परिवर्तित हो गई। दादा जी  के उत्तराधिकारियों में उन की सभी जीवित संताने, मृत संतानों के उत्तराधिकारी, तथा जीवित पत्नी और माता सम्मिलित हैं। इन सब को दादा जी की संपत्ति में एक-एक हिस्सा मिलेगा। आप के पिता को भी उस में एक हिस्सा प्राप्त होगा। 
प के पिता को प्राप्त हिस्से का विभाजन आप करवा सकते हैं। उस विभाजन में भी आप के पिता यदि जीवित हैं तो एक हिस्सा उन का होगा तथा एक-एक एक हिस्सा उन की संतानों का होगा। जैसा कि आप ने बताया आप छह भाई बहन हैं। आप के पिता के जीवित होने की स्थिति में उन का एक हिस्सा और आप की माता जी का एक हिस्सा जोड़े जाने पर  आठ हिस्से होंगे। इस तरह आप के दादा की संपत्ति में आप के पिता के हिस्से का 1/8वाँ भाग आप को प्राप्त होगा। यह हो सकता है कि किसी भी स्तर पर कोई उत्तराधिकारी अपना हिस्सा किसी के भी हक में त्याग सकता है। इस तरह आप अनुमान लगा सकते हैं कि आप को विभाजन का वाद संस्थित करने पर क्या प्राप्त होगा? यदि आप समझते हैं कि वह हिस्सा इतना है कि उस के लिए आप को विभाजन की लड़ाई लड़ना चाहिए तो अवश्य लड़ें। इस के लिए आप दीवानी न्यायालय में विभाजन के लिए वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। यह भी हो सकता है कि विभाजन के वाद के लंबित रहने के दौरान पक्षकारों में विभाजन पर आपसी सहमति से कोई समझौता हो जाए और न्यायालय समझौते के आधार पर विभाजन की डिक्री पारित कर दे।

22-निर्वसीयती हिन्दू पुरुष की मृत्यु के उपरांत कोई उत्तराधिकारी न होने पर उस की संपत्ति किसे प्राप्त होगी?

किसी निर्वसीयती हिन्दू पुरुष की मृत्यु के उपरांत संतानें, पत्नी और माता तो प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी हैं। इन के अतिरिक्त भी प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी हैं। जैसे पूर्वमृत पुत्र की संतानें, पूर्वमृत पुत्री की संतानें, पूर्वमृत पुत्र की विधवा, पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की संतानें और पूर्व मृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र की विधवा। ये सभी प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी हैं और इन्हें अन्य संतानों, विधवा और माता के साथ ही उत्तराधिकार का अधिकार प्राप्त है। 
दि प्रथम श्रेणी का कोई उत्तराधिकारी जीवित न हो तो द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकार प्राप्त होगा। इस श्रेणी में अनेक प्रविष्ठियाँ हैं …..
1. मृतक का पिता यदि जीवित है तो सब से पहले संपूर्ण संपत्ति उसे प्राप्त होगी;
2. पिता के जीवित न होने पर, पुत्र की पुत्री के पुत्र, पुत्र की पुत्री की पुत्री, भाई और बहन को समान भागों में  प्राप्त होगी;
3. उपरोक्त में से कोई भी जीवित न होने पर, पुत्री के पुत्र के पुत्र, पुत्री के पुत्र की पुत्री, पुत्री की पुत्री के पुत्र और पुत्री की पुत्री की पुत्री को समान भागों में प्राप्त होगी;
4. उपरोक्त में से कोई भी जीवित न होने पर, भाई के पुत्र, बहिन  के पुत्र, भाई की पुत्री, बहिन की पुत्री को समान भागों में प्राप्त होगी;
5.उपरोक्त में से कोई भी जीवित न होने पर, पिता के पिता व पिता की माता को समान भागों में प्राप्त होगी;
6. उपरोक्त में से कोई भी जीवित न होने पर, पिता की विधवा व भाई की विधवा को समान भागों में प्राप्त होगी;
7. उपरोक्त में से कोई भी जीवित न होने पर, पिता के भाई और पिता की बहिन को समान भागों में प्राप्त होगी;
8. उपरोक्त में से कोई भी जीवित न होने पर, माता के पिता व माता की माता को समान भागों में प्राप्त होगी;
9. उपरोक्त में से कोई भी जीवित न होने पर, माता के भाई और माता की बहिन को समान भागों में प्राप्त होगी। 
दि किसी निर्वसीयती हिन्दू पुरुष की मृत्यु के उपरांत उपरोक्त में से कोई भी उत्तराधिकारी जीवित न होने पर उस की संपत्ति हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा -29 के अनुसार उस की संपत्ति सरकार में निहित हो जाएगी और सरकार उस संपत्ति को मृतक के उन समस्त दायित्वों और अधिकारों के अधीन अपने आधिपत्य में ले लेगी जो एक उत्तराधिकारी को प्राप्त होते। 

23-पिताजी मकान से निकालना चाहते हैं, मैं क्या करूँ?


महोदय,
हम दो भाई और दो बहनें हैं, मेरी दोनों बहनों की शादी 1994 में और हम दोनो भाइयों की शादी 1996 में हो चुकी है। मेरे पिता जी ने जो मेरे दादा के नाम पर मकान था उसे 1997 में बेच कर उस रुपए से दूसरा प्लॉट अपने नाम पर खरीद कर नया मकान बनाया और हम सब उस मकान में रहने लगे। इस मकान में आते ही मरे पिता जी और माता जी ने हम दोनों भाइयों से और हमारे बच्चों से झगड़ा करना शुरू कर दिया। ऊपर से मरे मामा जी और मेरी मम्मी जी के मामाजी आते और हमारे साथ झगड़ा करते हैं। हमारी दोनों बहने भी हमारे पिताजी की तरफ हैं। मेरी इतनी आमदनी नहीं है कि मैं दूसरी जगह रहने लगूँ। कृपया हमारी समस्या का समाधान बताएँ।

उत्तर
आप की समस्या वास्तव में आम निम्नमध्यम वर्गीय परिवारों की व्यथा-कथा है। यहाँ संतानों के बालिग हो कमाने लायक हो जाने और उन के विवाह हो जाने पर माता-पिता की आकांक्षा रहती है कि अब वे माता-पिता की सेवा करें और उन का खर्च भी उठाएँ। अधिक उम्र में माता-पिता कमाने की स्थिति में भी नहीं रहते। उन्हें अपनी पुत्रियों के प्रति भी अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करना पड़ता है। दूसरी ओर इस युग में अधिकतर बेटे जिन की आय बहुत अधिक नहीं होती, अपनी आय में अपने पारिवारिक सामाजिक स्तर को बनाए रखने में अक्षम होते हैं। यहीं विवाद शुरू होता है। आर्थिक बदहाली से परिवार में पहले नाराजगी और फिर झगड़े आरंभ होते हैं। फिर कटुता बढ़ती है और नौबत वहाँ तक आ जाती है जहाँ तक आप के परिवार में पहुँच चुकी है। इन समस्याओं के हल अदालत में कानूनी तरीके से सुलझाना बेहद कठिन होता है। यदि ये झगड़े आपसी समझ से बैठ कर सुलझा लिए जाएँ तो बहुत अच्छा है। आप अपनी बात को अपने माता-पिता के सामने तसल्ली से रखेंगे तो शायद उन्हें समझ आ जाएगा। मुझे लगता है कि आप दोनों भाइयों और आप की पत्नियाँ इस माहौल में संतुष्ट नहीं हो सकी हैं और उन्हों ने आप के माता-पिता के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जिस के कारण यह नौबत आ गई है। इसी कारण से आप के मामा, बड़े मामा और  दोनों बहनें भी आप के माता-पिता का पक्ष लेती हैं। आप दोनों भाई अपनी पत्नियों को समझाएँ और फिर परिवार में समस्या का हल निकालें तो बेहतर होगा। इस सलाह को अन्यथा न लें। 
जहाँ तक कानून का प्रश्न है, आप के पिता का वर्तमान मकान रेकॉर्ड में उन की स्वअर्जित संपत्ति के रूप में दर्ज है और उस पर उन का पूरा अधिकार है। इस मकान को पुश्तैनी मकान को बेच कर बनाया गया है तो यह पुश्तैनी संपत्ति माना जा सकता है, लेकिन इस के लिए आप को इस संपत्ति को पुश्तैनी संपत्ति बताते हुए उस के विभाजन के लिए दावा करना होगा। जिस में आप को यह साबित करना होगा कि यह मकान पुश्तैनी मकान को विक्रय कर के उस धन से बनाया गया था। इस के लिए दस्तावेज और गवाहियाँ करानी होंगी। इस विभाजन में पाँच हिस्से होंगे एक आप के पिता का और चार आप भाई बहनों के। आप के हिस्से में केवल पाँचवाँ भाग आएगा। इस दावे में आप अपने दादा जी की समस्त संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकते हैं। इस दावे में आप एक आवेदन प्रस्तुत कर उस मकान से दावे कि निर्णय तक आप को न निकाले जाने की आज्ञा भी अदालत से प्राप्त कर सकते हैं। 
लेकिन विभाजन के दावे बहुत मुश्किल होते हैं। जिस तरह हमारे देश में जरूरत की केवल 20% अदालतें हैं, मुकदमों के निर्णय देरी से होते हैं। इस तरह के दावों में अनेक बार पीढ़ियाँ गुजर जाती हैं। इस लिए मेरी सलाह है कि इस समस्या को आपसी समझौते से हल कर लिया जाए तो बेहतर होगा। आप आपसी समझौते के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण में आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं जहाँ प्राधिकरण सब को बुला कर समझौता कराने की कार्यवाही कर सकता है।  इस के लिए आप को किसी अच्छे विश्वसनीय स्थानीय वकील की मदद लेनी होगी।

24-क्या पुश्तैनी संपत्ति वसीयत की जा सकती है?

सर जी, मेरा एक सवाल है!मेरे चाचा की अपनी कोई औलाद नहीँ है।उन्होने अपने साले की बेटी को पाला है। उस लडकी की शादी हो चुकी है।मेरे चाचा अपना हिस्सा उस लडकी को देना चाहते है।क्या मेरे पुरखो की जमीन जायदाद पर उस लडकी का हक बनता है।क्या मेरे चाचा को ऐसा करने का कानूनी हक है, अगर हाँ तो कोई बात नही अगर नहीं, तो मुझे आपति है।  किरपया ऊतर देने का कष्ट करेँ। आपका अभार होगा।
उत्तर –
पुश्तैनी जायदाद का अर्थ है अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए और वह अपनी कोई वसीयत न छोड़े तो उस के मरते ही उस के उत्तराधिकारी अपने अपने रिश्ते के हिसाब से उस के अधिकारी हो जाते हैं। चूंकि उस संपत्ति में अनेक लोगों का हिस्सा होता है, इस कारण से वह संपत्ति अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति कही जाती है। जब तक इस संयुक्त पारिवारिक संपत्ति का विभाजन नहीं होता है यह संयुक्त बनी रहती है।  आपसी सहमति से अथवा न्यायालय द्वारा जैसे भी हो जब इस संपत्ति का बंटवारा हो जाता है तो सभी भागीदारों को उन का भाग मिल जाता है। वैसी स्थिति में वह संपत्ति अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति नहीं रह जाती। उस पर वैयक्तिक स्वामित्व स्थापित हो जाता है। क्यों कि यह संपत्ति उस व्यक्ति की स्वअर्जित संपत्ति नहीं होती इस कारण से यदि उस के उत्तराधिकारी जन्म ले चुके हों तो उस व्यक्ति को इस संपत्ति को व्ययन करने का अधिकार नहीँ होता। लेकिन यदि उस का कोई उत्तराधिकारी नहीं है तो ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति उत्तराधिकार में प्राप्त हुई अपनी इस संपत्ति का किसी भी तरह से व्ययन कर सकता है।
मनोज कुमार जी के मामले में जिसे पुश्तैनी संपत्ति कहा गया है वह उन्हों ने अपने चाचा के हिस्से की बताई है। इस से प्रतीत होता है कि पुश्तैनी संपत्ति का विभाजन हो चुका है। चूंकि चाचा के कोई संतान नहीं है इस कारण से उन के चाचा को पूरा अधिकार है कि वे उस संपत्ति को किसी को भी वसीयत कर के दे दें, या दान कर दें या विक्रय कर दें। इस में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस संपत्ति पर किसी और का कोई अधिकार नहीं है और मनोज कुमार जी का भी नहीं है।
इस प्रश्न से एक बात और निकल कर आती है कि मनोज कुमार जी के चाचा ने अपने साले की लड़की को पाला पोसा है। जिस से ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हों ने उसे गोद ले लिया था। कोई भी अन्य उत्तराधिकारी न होने पर गोदपुत्र या गोदपुत्री उन की एक मात्र उत्तराधिकारी भी हो जाएगी। ऐसी अवस्था में कोई वसीयत आदि न करने पर भी उन की यह संपत्ति उस गोदपु्त्री को ही प्राप्त होगी। मनोज कुमार जी को उस संपत्ति के उन के चाचा द्वारा किसी भी प्रकार से व्ययन
करने पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

25-पिता स्वअर्जित संपत्ति को कैसे भी बाँट सकता है, लेकिन पुश्तैनी संपत्ति को नहीं


पिता जीवित हैं, उन के पाँच पुत्र हैं। एक पुत्र की पिता से नहीं बनती है इसलिए वह अलग रहता है। पिता ने कुछ धनराशि का बँटवारा किया लेकिन चार हिस्सों में। जो पुत्र अलग रहता था उसे कोई राशि नहीं दी। क्या यह उचित बात है? क्या इस तरह पिता कानूनी तौर पर अपनी पूरी संपत्ति का बँटवारा चार हिस्सों में अपनी मर्जी से कर सकता है? 
उत्तर — 
प का प्रश्न हिन्दू परिवार में बँटवारे के संबंध में है। किसी भी व्यक्ति की स्वयं की आय से अर्जित संपत्ति चाहे वह चल संपत्ति हो या फिर अचल संपत्ति वह उस की निजि संपत्ति है। इस संपत्ति को वह व्यक्ति जैसे चाहे वैसे खर्च कर सकता है या उसे अपने जीवनकाल में अन्य व्यक्तियों को दे सकता है या उस की वसीयत भी कर सकता है। इस पर किसी का भी कोई अधिकार नहीं है। इस संपत्ति के मामले में कोई भी व्यक्ति कोई आपत्ति नहीं कर सकता और न ही कानूनी रूप से कोई दावा आदि कर सकता है। 
दि कोई पुश्तैनी संपत्ति किसी परिवार के पास है तो कोई भी कर्ता उसे केवल संपूर्ण परिवार के हित में ही व्यय कर सकता है, ऐसी सम्पति में संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों का अधिकार होता है। यदि पिता के जीवनकाल में ऐसी संपत्ति का बँटवारा भी होता है तो परिवार के प्रत्येक सदस्य को उस का निर्धारित हिस्सा प्राप्त होगा। कोई भी कर्ता उस का बँटवारा मनमाने तरीके से नहीं कर सकता।
प के मामले में बाँटी गई संपत्ति रुपया है, यदि वह किसी संयुक्त परिवार की संपत्ति का भाग है या उस की आय से प्राप्त हुआ है तो एक पुत्र को उस का हिस्सा नहीं देना उचित नहीं है। लेकिन यदि यह धनराशि पिता की स्वअर्जित संपत्ति है तो वह चाहे जैसे उसे खर्च कर सकता है या औरों को दे सकता है इस पर किसी को आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं है।

26-व्यक्ति के जीवनकाल में उस की स्वअर्जित संपत्ति पर किसी अन्य का कोई अधिकार नहीं

समस्या-

49 comments:

Unknown said...

श्रीमान् जी, क्या कोई पत्नी व पुत्री क्रमश अपने पति/पिता से विरासत में मिली सम्पति की वसीयत कर सकती है?

Unknown said...

श्रीमान् जी, क्या कोई पत्नी व पुत्री क्रमश अपने पति/पिता से विरासत में मिली सम्पति की वसीयत कर सकती है?

Unknown said...

महोदय नमस्कार
मैं अहमद जिला देवरिया उत्तर परदेस से हू।मेरे पिताजी के पिता जी के नाम पर एक पुश्तैनी जमीन थी जिसका बंटवारा 37 साल पहले मेरे पिता और उनके छोटे भाई ने आपसी रजामंदी से कर ली थी।मेरे पिता ने अपने हिस्से के 15*40स्क्वायर फुट के प्लाट पर 37 साल पहले ही पक्का मकान बनवा लिया कितु उनके भाई ने अपने हिस्से के 15*40 पर कोई निरमाण नहीं करवाया।अब मेरे पिता उनके भाई एवं भाई की पत्नी तीनों की मृत्यु हो चुकी है।मेरी माँ जीवित और स्वस्थ है।
अभी तक उस पुश्तैनी जमीन के खसरे मे पिता के पिताजी का ही नाम दर्ज है,लेकिन मकान के पिछले 37 सालों की टैक्स पावती,37 साल पुरानी मकान की नंबर प्लेट की पावती मे भी पिताजी का ही नाम है।पिता की मृत्यु के बाद घर का जल कर/बिजली बिल मेरे ही नाम से आ रहा।मेरे परिवार के सद्स्यो का नाम भी राशन कारड मे है तथा सभी के जाति/निवास पत्र भी बने है।पिताजी के मकान का नगर निगम टाउन एरिया से स्वीकृत नक्शा भी पिताजी के नाम पर है।
अब विवाद का विषय यह है कि मेरे पिता के भाई का इकलौता पुत्र 37 साल पहले हुए बंटवारे को मान नही रहा उसका कहना है कि जमीन के खसरे मे उसके पिता के पिता का नाम है तथा बंटवारे की कोई बात नही लिखी।अब वह छल कप मारपीट पर उतारू है मकान और उसके पीछे मौजूद उसके खुद के प्लाट का बंटवारा करने को कह रहा।मैने उससे कहा कि यदि 37 साल पहले बंटवारा नही हुआ होता तो तुम्हारे पिताजी क्या यह मकान बनाने देते,अपने भाई पर केस न कर दिये होते।लेकिन वह नही मान रहा और न ही मुझपर बंटवारे विवाद पर कोर्ट केस कर रहा क्यों कि वह जानता है कि उसका मकान मे कोई हक नहीं, वह यही कह रहा कि अपना मकान हमको बेच दो या आधा हिस्सा दो,नहीं तो झूठे केस मे फंसाकर सबको जेल करवा देगे।
महोदय इन परिस्थितियो में मुझे क्या कदम उठाना चाहिये। इस समय मैं मध्यप्रदेश मे नौकरी कर रहा हू, मेरा परिवार भी साथ में है और गांव के मकान में मेरा ही ताला लगा है।किस तरह से मकान का खसरा अपने नाम से बनवा सकता हू जिस्से कि भविष्य मे कभी उसे बेच सकूँ। क्या चाचा का पुत्र मेरे पिता का आधा मकान हङप लेगा?? क्या मेरे पास मौजूद डाक्युमेंट से मेरे नाम से खसरा बन जाएगा?? कृपया उचित सलाह दीजिए मै क्या करूं?

Unknown said...
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Unknown said...

श्री मान जी मेरा सवाल यह है कि कोई औरत तलाक कोटे से नॉकरी लगती है तो वह पुनर्विवाह कर सकती है या नही।
यदि कर सकती है तो कितने समय बाद या और क्या नियम है,तलाकशुदा कोटे से नॉकरी पाने के बाद पुनर्विवाह के।
कृपया मार्गदर्शन करें।

Unknown said...

Mere khet ka rasta kha se he kese pta kru vasiyat me jo rasta likha h vo jinke khet se h vo kah rhe he ki unki vasiyat me rasta nahi likha h Parvati Bol rha h rasta ispst nahi h me kaha se sabut lau plz help

Unknown said...

Dear sir, I am Sanjay Kumar Patel Ambedkar Nagar, Maine Akbarpur Ambedkar Nagar me ek land purchase Kiya.dakhil kharij Mila but map pass ke liye jab lekhpal ki report Lene Gaya to use Kaha"ye no.banjar h."aur report se inkar kiya.what did I do?pls help me sir...

रंजना said...

मेरी शादी 15 जुलाई 2016 को लव हुई ,मैं. सरकारी अध्यापिका हू मेरे पति प्राइवेट टीचर है शादी से लेकर अब तक मेरे माता पिता ने सहयोग किया मै sc caste से हू मेरे पति सामान्य श्रेणी में आते है पति ने अपने घर वालों को मेरी जाति नहीं बताई है और उनके घर वाले रुढिवादी है पति के घर वाले जानते है कि वो शादी कर चुके है फिर भी पति और उनके घर वाले अपने पड़ोसी और खानदान में शादी की बात द्दुपा रखी है !
2)पति मुझे और घर वालों से नफरत करते है गाली भी देते है!
3)गुस्सा आने पर मेंरे पास नहीं अाते है मेरे सास ससुर इसके लिए उनका विरोध नहीं करते है
4)पति धमकी देते है कि अगर मैने तलाख नही दिया तो वो सरकारी नौकरी लगने पर मुझे जीने नही देगे और प्राइवेट मे मेरे साथ नही रहेगे!
कहते है कि तू मेरा कुद्द नही कर सकती ना तो पारिवारिक तौर पर ना कानूनी तौर पर

Anonymous said...

सर मेरा नाम आनन्द गौतम जो हम अनुसूचित जाति से है मेरे पाँच भाइ बहन है सर हमारे गाँव में पुस्तैनी बाग है मां बाप के मरने के बाद पुस्तैनी जमीन हमारे नाम खतौनी मे दर्ज है सर मै आज के समय में बेचना चहता हूं पर कुछ लोग जो मुस्लिम जो दबंग है वो बेचने नहीं दे रहे हैं वो कहते है पापा तुम्हारे हमारे नाम मुख्तारनामा आम किया है अगर तुम लोग इसे बेचोगे तो हम तुम्हे जेल की हवा खिला देंगे और घर जबरन ज़ब्त कर लिया जायेगा तो हम लोग डर के मारे वहां नहीं जाता हूँ अब आप ही बताएं हम लोग क्या करें जबकि पुलिस उनका ही साथ दे रही है ये सर मामला उत्तर प्रदेश के लखनऊ का रहने वाला हूँ

Unknown said...

Mere pas mere papa ka mujhe diya hua plot h aur uski vasiyat mere pas h mere nam h lekin mera bada bhai use sale nahi. Karne de raha him log 2 bhai 6 behen h agar batwara hota h to bhi jitni jammen me bekna chahta hu to vo mere hisse me aati h lekin mera bada bhai kehta h ki usne stay le rakhi h so plz mujhe btaye ki me kya karu

Unknown said...

Mere pas mere papa ka mujhe diya hua plot h aur uski vasiyat mere pas h mere nam h lekin mera bada bhai use sale nahi. Karne de raha him log 2 bhai 6 behen h agar batwara hota h to bhi jitni jammen me bekna chahta hu to vo mere hisse me aati h lekin mera bada bhai kehta h ki usne stay le rakhi h so plz mujhe btaye ki me kya karu

नीरज वर्मा said...

सं 1993 में एक बटवारा का वाद न्यायालय श्रीमान उपजिलाधिकारी नानपारा के यहाँ आंधी बनाम सेवक चला था जिसमे उपजिलाधिकारी महोदय ने 1/2 अंश निर्धारित किया था उसके बाद हल्का लेखपाल ने कुर्रा एवं नक्शा 1/2 का दाखिल किया । आंधी ने अपने 1/2अंश का स्टाम्प दाखिल कर बी आर जारी करा लिया और तनहा खाता अपने नाम कर लिया परंतु सेवक ने अपने 1/2अंश का स्टाम्प नहीं दाखिल कर सका और आंधी सेवक के 1/2अंश में फिर सहखातेदार दर्ज हो गया । आंधी के मरने के बाद सेवक के 1/2 अंश में उसकी पुत्री की विरासत भर दी गयी तब सेवक खाते में दर्ज आंधी की पुत्रियों ने थोड़ी जमीन बेच दी । सेवक कुछ सालों के बाद अपना हिस्से का स्टाम्प दाखिल कर बी आर जारी करा कर अपना 1/2 आंश अलग तनहा अपने नाम करना चाहता है क्या ये सम्भव है।

नीरज वर्मा said...

इसकी जानकारी मुझे मेरे जीमेल आई डी vermaneeraj123000@gmail.com पर दीजियेगा ।

नीरज वर्मा said...

इस सवाल का जवाब कृपया मेरे मेल आई डी vermaneeraj123000@gmail.com पैर दीजियेगा

Unknown said...

मैं अपने निजी जमीन में घर बना रहा हु जो बाजार में है। लेकिन वहा एक समस्या रास्ते की बनी हुई है। रास्ते के लिए जो जमीन है वहा पहले नहरी(vc) था लेकिन अब सरकारी अधिकारी बता रहे है की ये जमीन सरकारी है आप यहाँ रास्ता नही बना सकते। मेरे साथ साथ बहुत को ये समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अगर रास्ते मे सरकारी जमीन आ रही है तो क्या सरकार रास्ते के लिये जमीन नही देगी। किर्पया मेरे सवाल का जवाब जल्दी दे हो सके तो mail kr दे धन्यवाद।

Unknown said...

Sir pustani jamin 30 decimal piche rkbs jyda hai.05 dec. Samne hai 4 hissidar ke beech aapsi batwara ke aadhar par maine makan 2008 me bnaya 1993 me ptachala ki usme nagar palika ke 05 dec hai maine 5 dev chodkar boundry bana liya.ab ngar plika khati hai rakba me jitna jyda hai wah palika ki jami hai jabki mere purwaj ki jamin hai abhi mai us bhumi par makan bana liya hu kriya diya hai to meri pichhe ke ghar ko toda jayega pl
Guide me

Unknown said...

श्रीमान मेरे दादाजी की जमीन मृत्यु के बाद भी लगातार उनके नाम पर चलती हैं और फिर सुनियोजित ढंग से दुसरे नाम कर दिया जाता है एस डी एम से नकल मांगने पर नहीं दी जाती हैं उसके बाद क्रम से गृह मंत्रालय दिल्ली तक से मामले को लेकर गया लेकिन कोई समाधान नहीं हो रहा है मामला 2001 का है मुझे इसकी जांच सीबीआई से करवानी है क्या और कोई रास्ता है या करोड़ रूपये की सम्पत्ति को फोजी होने के डंड के कारण छोड कर भारत माता की सेवा ही करूं।

Unknown said...

Sir mere papa ne ek dukan 2 sal pahle li thi ek byakt ne kaha tumhe dukan pagdi pr milegi orr 150 rupaye kiraya pr month dena hoga dukan tumhari hogi hamne dukan k malik se dukan le li orr ab pata chala ki jo dukan hamne li h vo sarkari jamin pr bani h ab nagar nigam se notice aya h ki dukan khali karo
Ape muje bataye ki is samasya ka ky samadan h ham apni dukan kaise bacha sakte h orr ky court me mukadama chala sakte h apne hak k liye

Unknown said...

Sir Mene Apne sasur ji se jammen karhidi he to mere sasur ji ki choti betiyan jo sadi Sudahe vo mujh pe case karne ki dhamki deti h to kya Kru sir ji please koi upay btae mere pass restrie h namakan he sab kuch he phir bhi bolti he ki thumhara se Adhi jameen le lenge

Unknown said...

9415239510 contect kriye smadhan ho jayega

Unknown said...

9415239510 advocate hariom upadhyay se samprk kre ..

Unknown said...

9415239510 advovate hariom upadhyay.samprk kre

Unknown said...

9415239510 advovate hariom upadhyay.samprk kre

Anonymous said...

Sir apsi batware ka mai zameen kharida tha Jo mere name se dakhil kharij bhi ho gya hai 3 khate dar the mai 1 ka kharida tha aur 2 khate dar sarkari batwara Ab chahite h to kya sarkari batwara ho sakta hai

Unknown said...

Sir plz bataye ki pita k property bechne pr putra koi aaptti lga skta he ya nhi??

Unknown said...

Sir

My Bihar madhubani Panchayat khajuri gram fatepur ke niwasi hu mere purwajo se rehrha hu
My jis Jamin pe purwajo se rehrha hu wo jamin Ka koe dusra aadami farji paper bnake ke hamlog ko bedakhal krna Chahta hi sir ap bataey mujhe kya krna prega mere madad kijiy eskeliye my SDA apki abhari rahunga

Unknown said...

जमीन का नाप करने वाले सरकारी अधिकारी को बुलाने की प्रक्रिया क्या है

Unknown said...

महोदय मेरी पत्नी की बुआ जिनका कोई संतान नही है तथा बुआ विधवा है इसलिए बुआ ने मेरी पत्नी को वचपन से ही अपने साथ रखा हुआ है और वर्तमान में भी रख रही है लेकिन उनका बुआ की बहन का लड़का जो पिछले 7 साल से उसी घर मे रह रहा है इस पर आपत्ति कर रहा है कि शादी के बाद मेरी पत्नी को बुआ के साथ नही रहना चाहिए । बो केवल बुआ की संम्पत्ति चाहता है बुआ की सम्पत्ति का असली हकदर कौन होगा ।और मेरी पत्नी को क्या करना चाहिए कृपया उचित सलाह दे ।

Unknown said...

मैने 5 एकड़ भूमि खरीदी है जिसका सीमांकन भी हो चुका है लेकिन बाजू बाले किसान ने आपती लगा दी है क्यों कि वह जमीन पट्टे कि है उसने आपती लगाई है कि सरकारी भूमि गरीबों को पट्टे पर दी थी और मैने बिना सक्षम अनुमती के लि है श्री मान जी बताईऐ क्या करू मैं

रजनीकांत said...

हेलो सर मेरा नाम रजनीकांत त्रिपाठी है सर मेरी माता जी ने 12 बिसवा भूमि ख़रीदी है। विक्रेता ने अपने हिसे से 4 बिसवा जमीन अपने हिसे से ज्यादा बेच दी है तो क्या सर मेरा बैनामा निरास्थ होगा ।

Unknown said...

श्री मान जी मेरा सबाल है के मेरे पिका तिन भाई है, मेरे पिता जी ने दुसरी महीला के चक्कर मे अपनी गंदी आदतो के चक्कर मूझे बिस वर्ष पहले छोड़ दिया मेरी गादी ने दादा ने मेरा पालन पोसन किछ समय बाद बुआऔ के व नाना मामा के यहां भटकाया अैसे ही मेरा आज तक का सफर रहा है , मेरी माँ को व मेरी बहन को पिता जी ने छोड़ दिया है बिना तलाक दिसे अलग रह रहें है आज मेरे पिता ने किसी की कोई देख भाल नही कि है नै ही मेहनत से कोई सम्पत्ती नही बनाई है मेरे पिता जी हमेसा से ही बड़े ही चालाक किसम के हैं और मेरी माँ को भी धोका देकर फरार रह रहें है यहां तक के मेरी माँ ने एक मुकदमा मेरी छोटी बहन व अपने खर्चे के लिये सन २००८ मे दायर किया था लेकिन मेरे पिता जी बड़ी चतुराई से न्यालय से कोई खर्चा नै बंधे तो चुपचाप माँ को तिन चार दिन रखा और अपने दोस्तो से योन सोंषड़ कराकर भगा दिया और पिछा छुड़ा लिया गूप्त रूप से दुसरी महीला के साथ नाजायज संभंध रखने लगे और मेरी भी कोई खोज खबर व पता नही लगाया जब मूझे ग्यान हुआ के मेरे दादा जी का देहांत हो गया 2003 मे तो मेरे पिता के मेरे दादा जी से पोने दो बिघा खेत नाम आते ही बिक्र कर दिया और मेरे हिस्से का कोई जमीन नही दी नै छोड़ी और एक घेर जो ग्राम आबादी भूमी का बटबारा आपस मे परिवार मे तिनो भाईयो ने सुयम करके उसे भी बिक्रय कर दिया है और उसमे भी मूझे कुछ नही दिया और एक पूस्तैनी हबेली 130 गज मे कुछ कमरे बने और मेरे ताई ताऊ ने मेरे हिस्से की चालीस गज मे कमरे बने कब्जा रखें है उनका कहना है के बटबारे मे हमारे हिस्से मे आई लेकिन 130 गज मे मेरी चाची को चालीस गज का प्लोट मोके पर है व एक गांव मे बैठक भी चाची को मीली और मेरे पिता के हिस्से हबेली के सामने दो प्लेट पचास गज के हैं जो की मेरी दादी ने कहा था के यह मेरे हिस्से का प्लोट है लेकिन बह प्लोट भी मेरी ना मोजदगी ताई व तहेरे भाई कब्जा करते कुट्टी काटने की मसीन लगा रखी है और ताई साथ मे हिस्से मिला प्लोट पचास गज का है लेकिन हबेली मे हमारा भी बराबर का हिस्सा है लेकिन मांगने पर मेरे साथ मार पिट की और पुलिस सिरायत व मुकदमा भी २०१७ दिनांक २७.१२.२०१७ को दर्ज कराया लेकिन पुलिस को मेरे पिता ने झुटे बयान व मेरे तहेरे भाई ने झुचे बयान दिये के मेरे कि कोई चल अचल संपत्ती नही है और बिक्रय कर दी है लेकिन उसका बैनामा दिनांंक 28.12.2017 को ही पुलिस को झुटे बयान देकर कर दिया है कुंडमे मे ही और आज भी मेरे हिस्से कि हबेली व प्लोट ुर कब्जा तहेरे भाई का पुलिस ने घुस खाकर एस डि एम कोर्ट को दोनो पक्स का चलान करके छोड़ दिया मेरा दादिलाई जमीन मे अअधीकार नही दिलाया मेरी दादी का देहांतं 24.11.2017 मे होते ही मेरे पिता के 11 बिसा खेत नाम आते ही बिक्रय कर दिया मेरी सगी बुआ को और मुझे कुछ नही दिया मूझे पता चलते ही चालिस दिन के भीतर बैनामा दाखिल खारिज नै किया जाये पर एस डि एम व सिऔ महोदया जी को प्रार्थना पत्र नोटरी कराकर देदिया था और आज तक बैनामे पर आपत्ती है लेकिन तहिसलादार व पटबारी का कहना है के आप पैरवी नही करोगे तो बैनामा दाखिल खारिज होने से नही रोक सक्ते और मुझे न्सायलय मे केस डालने के लिये कहा जै रहा है दिवानी का लेकिन महेदय मेरी आर्थीक इस्थीती खराब है और मै दुर रहकर महनत मझदुरी कर रहा हूं और पैरवी नही कर सक्ता और मै इतना नही कमा पाता के खुद केस का खर्चा उठा सकूं लेकिन मूझे अपना हक हासील करना है कियोंकी दोशीगंढ़ो ने हम पर बहुत अन्याय किया व पिका ने व परिवार ने दादी कि इच्छा थी के मुझे जमीन जायेजाद मे कुछ मिले सर यह है मेरे जिवन कि सच्ची घटना जो मूझ पर घटी है अब आप मूझे सही मार्ग दर्शन करायें के मै अपना अधीकार कैसे प्राप्त करूं अपने पिता के जिवीत रहते जमीन दादिलाई है और मै पोत्र होने के नाते अपना सुयम का हक चाहता नै के पिता का चाहे बह मेरे हक मे एक मकान बनाने लायक व काम काज करने लायक ही प्राप्त हो मूझे सही सलहा देने के लिये मै आप के इस ग्रूप का बहुत आभारी रहुगां आप कि अती क्रपा होगी प्रार्थी रविन्दर सिहं चौहान जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश

Unknown said...

Banana 20 sal ke bad burst ho Jaya he ya nhi

Unknown said...

Bainama 20 sal ke bad .Bina dakhil kharij swtah nirst ho jata he ya nhi

Unknown said...

श्रीमान जी मेरे परदादा के दो बेटे मोडा व गोरधन थे। भूमाप के समय सम्वत 2012 में दो खसरों मे परदादा चोला का नाम पड़ा है जबकि तीन खसरो मे सिधा ही मोडा का नाम पड़ गया है जबकि तीनो खसरो मे गोरधन का आधा कब्जा है कानुन क्या कहता ?



Unknown said...

मेरा नाम सुमित है मेरे दादा जी की मृत्यु सन 2009 में हुई । और मेरे पापा
जी लोग 4 भाई है और दादी जी भी है । मेरे दादा जी ने 1971 में जमीन खरीदी थी । और अब न दादा जी जीवित है और न वो जीवित है जिससे दादा जी ने जमीन खरीदी थी अब जमीन की रजिस्ट्री है पर नामांतरण नही हुआ है मुझे नामांतरण कराने के लिए क्या क्या करना पड़ेगा । आप मुझे सलाह दीजिये ।

Unknown said...

Seemankan radda karane ka time kitna din k under hota hai

Unknown said...

Advocate Vinod Singh Bhati.dist .court bulandshshar 8859318375

no way said...

दादा जी ने उनके लड़के को 1958 निकाह में मकान दे दिया
दादा जी के छोटे भाई जो कि अंधे थे से 1991 में सरपंच ने मिलकर अन्य को रजिस्ट्री करवा दी नामन्तरन भवन निर्माण अनुमति सभी दे दी लेकिन कब्जा नही दिया वो आज तक हमारे पास है

जो रजिस्ट्री हुई वो मोके पर लंबाई चौड़ाई में है ही नही
तो उसने हाथ से काट पीटी कर के लंबाई चौड़ाई सही कर ली लेकिन इसका प्रमाण नही ह की उसने ये सब कब करवाया।
रजिस्ट्री कैंसिल कैसे हो पायेगी

Unknown said...

Sir ji namskar
Sir ek proparty Meri mataji k naam h
Meri mataji ko ye proparty aapney father s mili h. राजस्व रिकॉर्ड में meri mataji ka naam h परंतु राजस्व रिकॉर्ड में वह जमीन मेरी माता जी के फादर ने पट्टे पर दी है पट्टा 99 साल का है वह जमीन मेरी माता जी जी के फादर को दान में मिली थी अब हरियाणा में एक एक्ट के अनुसार मेरी माता जी उस जमीन की मालिक बन गई है मालिक खाने में मेरी माता जी का नाम है परंतु पट्टे पर दूसरे का नाम क्या हम इस जमीन को सेल कर सकते हैं
क्या हम उसकी लीज डीड को कानून के हिसाब से हटा सकते हैं कृपया यह बात बताएं

Unknown said...

बेनाम अगर आते वक्त पैसे बाद में देने की बात की गई परंतु बेनाम हो जाने के बाद मुझे पैसे नहीं दिए गए अब मैं क्या करूं और कैसे साबित करूं

unknown said...

Humne ek land buy kari hai usme do log partner hai but registery mai ek ke sign hai. Please suggest me hume kya karna h ab.

Unknown said...

मेरे पिता जी जिवीत है पिता जी से जमीन मेरे दादा से मिली और बैनामा कर दिया है मै अपने पिता एक ही लड़का हूं लेकिन मेरी दादिलाई मे मेरा हिस्सा नही देना चाहतें है मै हिन्दू परीवार से हूं पिता ने मेरे तहेरे भाई अुने सगे भतीजे के नाम बैनामा कर दिया है दादा जी कि खुद कि खरीदी एक दुकान कसवा मे है जिसमे वाद भी बिचारधीन है और काऊंटर क्लेम मेरे पक्स मे है जिसमे मेरा एक बटा तीन भाग है न्यायलय मे 2007 से वाद चल रहा है और मेरा काउंटर क्लेम 2014 से ही मान्य है और मेरे पिता ने प्रतीवादी के वारिशान तहेरे भाई को केस चलते 2017 मे बैनामा एक बटा तीन के आधे भाग का कर दिया है और धोके से चुपचाप तहेरे भाई ने कब्जा ले लिया मै बहुत परेसानी मे हूं मै़ेरा आत्म दहा करने मन करता है न्यायलय मे तारिख पर तारीख और जल्दी से कहीं सुनवाई नही मै बहुत उल्झन मे पड़ गया हूं सायद मेरी म्रत्यू भी हो सकती है बेईमानीयां देख देख कर न्यायलय मे काफी समय लगता है केस मे मै बहुत दुखी हूं मेरी समस्या का समाधान करें जिससे मेरा मन हल्का हो सके किया मेरा पिता दादा के हिस्से कि जमीन यदी पिता बैनामा कर दें तो किया मै न्यायलय से अपना अधीकार प्राप्त कर सकता हूं जिससे मूझे दोवारा जिने का अधिकार मील सके आप सर आप मेरी समस्याऔं का समाधान बतायेगे तो मै रहूगां नही तो आत्म दाह कर लूगां कियोकीं मै बहुत परेसान किया जा रहा हूं मूझे सब घुमा फिरा रहें है

Saroj Sahadev said...

Sir Mera name Saroj kumar sahadev h Mere Nanaji ki sampati p meri mummy ka adhikar Milega ya nai ??.. Mere mamaji power of petrerny apne name se karwa liye h aur sabhi jamin ko bech rhe h aur meri mummy ko koi v hissa nai de rahe h. Kya power of eterny cancel kiya jaa sakta h sir plese help me mujhe kya karna chahiye apni mummy ko apna haq dilane ke liye

Unknown said...

Sir, mene ek plot kharda hai.jo pahale ek kisan kisan ki jameen thi us ne us per plot banakar becha aur us jameen par usane bank se loan le rakha tha.mene jis aadami se plot kharida usane bhi loan ka jikr nahi kiya aur plot mujhe bech diya aur registry mere nam karwa diya. Bad mene check kiya ki us par par bank ka loan vah jameen bank ke pass bandhak. Please batao me kiya karo

Unknown said...

मेरा नाम योगेन्द्र सिंह है मे मध्यप्रदेश के मन्दसौर के एक कस्बै का रहने वाला हूँ मैं बचपन से अपने नाना नानी के साथ रहता हूँ मेरे एक मामा और मेरी मम्मी सहीत पाचँ मौसी है मेरे नाना जी के पास छः हेक्टर जमीन थी सन् 2008 मे किसी कारण वस मेरे नाना जी कि मृत्यु हो गई सारी जमीन मेरे नानी और मेरे मामा मौसी के नाम चडवा दी गई बैक से लोन लेने के चक्कर में व हमारे मामा कि मानसिक हालत ठीक नहीं होने के कारण मेरी नानी और मोसीयो ने छः हेक्टेयर जमीन मेरे मामा कि पत्नी एव उसके 2 लडके जो उस समय ना बालिग थे के नाम विश्वास में आकर नामान्तरण करवा दीया, नामान्तरण के छः सात वर्ष बाद जब लडके बालिग हो गए तब वो नानी से विवाद करने लगे और उन्हें बे घर करने कि धमकीयाँ देने लगे एसी परिस्थिति में मेरी नानी और मौसियाँ अपने आप को ढगा सा महसुस कर रही है व पछता रही है कि हम उस समय एसा नहीं करते तो हमे और हमारी माँ को यह दिन नहीं देखना पडता, हाँ नामान्तरण उन्होने स्टाम पर लिखकर नहीं करवाया था कोरे कागज पर साईन कर कूछ पटवारी से लेन देन करके करवाया था उपरोक्त समस्या का समाधान बतावे आपसे विनम्र अनुरोध है

Unknown said...

Mere pitah aur unake Bhai ke bich title suit ke dwara batwara hua kya usame mili sampati mein bête ka HISSA hoga

Unknown said...

सर मैंने जमीन खरीदी बैनामा भी हो गया। परंतु दाखिल खारिज के दौरान उसके भाई ने आपत्ति लगा दी है। case अभी court मे है। मैं उस आदमी से दिए गये पैसा वापस लेना चाहता हूँ । मुझे पैसा वापस लेने का तरीका बताए.. please sir

AJEET'S BLOG said...

सर मैंने एक प्लाट का बैनामा करवाया था जो कि खेत के रूप में था और उस पर प्लॉटिंग की गई थी जिसकी दाखिल खारिज नही हो सकती थी और सारे प्लाट एक के बाद एक रजिस्टर्ड बैनामे के द्वारा बिकते थे।मैंने भी एक प्लाट धारक से बैनामे के द्वारा इसको खरीदा था।लगभग 7 वर्ष मेरा कब्जा रहा और मैंने उसमे नीव भरबाई और भराब भी डलवाया।फिर मैंने उसका बैनामा एक व्यक्ति को कर दिया उसके पास भी इसका कब्जा वर्तमान तक लगभग 12 वर्ष तक रहा फिर वह जमीन सरकार द्वारा अधिग्रहित कर ली गयी उसने जमीन को अपना बताते हुए अधिग्रहण में मुआवजे के रूप में व्यावसायिक की दर से मुआवजा दिए जाने के लिए कहा लेकिन सरकार ने नही माना और उसने सामान्य डर पर मिलने वाला मुआवजा नही लिया।।अब क्रेता मेरे पास आया और कह रहा है कि मैंने उसको फर्जी वैनामा कर दिया है वह जमीन मेरे द्वारा बैनामा करने से पहले ही खेत के मूल मालिक द्वारा किसी को बैनामा कर दिया गया है।ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए क्या मेरे ऊपर वह कोई केस कर सकता है ।

Unknown said...

मेरे दादा जी ने 1976मे जमीन खरीदी थी,,लकिन उसका दाखिल खारिज नही हो सका ,,हमारे पास original बेनामा हैं,,,अब दाखिल खारिज करना है,तो क्या करे plss बताये ,,,ओर जिससे जमीन खरीदी थी वो ,agree नही हैं,