Wednesday, April 17, 2019

जनप्रतिनिधि अधिनियम नहीं देता है चुनाव आयोग को यह अधिकार कि वह सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के कर्मचारियों का कर ले

अधिग्रहण-बाॅम्बे हाईकोर्ट

April 2019 8:56 PM बाॅम्बे

           हाईकोर्ट ने माना है कि जनप्रतिनिधि अधिनियम ( प्यूपल रेप्रीजेंटेशन एक्ट) 1950 चुनाव आयोग या उसके किसी अधिकारी को यह अधिकार नहीं देता है कि चुनाव में ड्यूटी देने के लिए वह किसी सहायता प्राप्त निजी स्कूल के शिक्षण या गैर-शिक्षण कर्मचारियों की सेवाओं अधिग्रहण कर ले या उनकी सहायता ले। दो सदस्यीय खंडपीठ के जस्टिस ए.एस ओका व जस्टिस एम.एस सनकचलेचा इस मामले में गोरेगांव,मुम्बई के दो स्कूलों की तरफ से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे। 
         याचिकाकर्ताओं ने असिस्टेंट इलैक्ट्रोल रजिस्ट्रेशन आॅफिसर के तीन आदेशों को चुनौती दी थी। इन आदेश में स्कूलों के गैर-शिक्षण कर्मियों की सेवाएं भी चुनाव ड्यूटी में लेने की बात कही गई थी।          
        याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जनप्रतिनिधि अधिनियम के सेक्शन 29 के तहत आॅफिसर के पास सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के कर्मियों की सेवाएं चुनाव में लेने का अधिकार नहीं है। इसके अलावा यह भी मांग की गई थी कि लोक प्रतिनिधि अधिनियम 1951( रेप्रीजेंटेशन आॅॅफ दा प्यूपल एक्ट 1951) के सेक्शन 159 के तहत यह घोषित किया जाए कि प्रतिवादी नम्बर एक से आठ तक ( जो कि भारतीय चुनाव आयोग व उसके अधिकारी है) के पास यह अधिकार नहीं है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों के कर्मचारियों की सेवाएं अनिश्चितकाल तक अधिग्रहण कर ले। कोर्ट ने जनप्रतिनिधि अधिनियम 1950 के सेक्शन 29 को देखने के बाद कहा कि-इस सेक्शन को पढ़ने के बाद साफ हो जाता है कि चीफ इलैक्ट्रोल आॅफिसर इस सेक्शन के तहत मिले अपने अधिकारों का प्रयोग करके सिर्फ राज्य की स्थानीय प्राधिकरणोंके कर्मचारियों की सेवाएं ले सकता है या उनका अधिग्रहण किया जा सकता है। 
         स्थानीय प्राधिकरणों के बारे में न तो एक्ट 1950 में परिभाषित किया गया है और न ही एक्ट 1951 में। ऐसी परिस्थितियों में साधारण खंड अधिनियम 1897 (जरनल क्लाज एक्ट 1897) से रेफरेंस लेना जरूरी है। साधारण खंड अधिनियम 1897 में स्थानीय प्राधिकरण की परिभाषा देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि-स्थानीय प्राधिकरण की परिभाषा को सामान्य तौर पर पढ़ने के बाद ही यह साफ हो रहा है कि राज्य से सहायता प्राप्त निजी स्कूल स्थानीय प्राधिकरण की परिभाषा में नहीं आते है। इस बात पर भी कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता या उनके स्कूल पर सरकार या निगम के प्रबंधन का कोई नियंत्रण है। ऐसे में एक्ट 1950 के सेक्शन 29 के तहत याचिकाकर्ताओं या उनके सहायता प्राप्त स्कूलों को भेजा गया नोटिस अधिकारक्षेत्र से बाहर है।
         भारतीय चुनाव आयोग के वकील प्रदीप राजागोपाल ने भी माना कि तीनों आदेश बिना अधिकारक्षेत्र के जारी किए गए है और इस बात पर कोई आपत्ति जाहिर नहीं की। हालांकि महाराष्ट्र राज्य की वकील गीता शास्त्री और राजागोपाल ने बयान दिया कि शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की सेवाएं एक निश्चित व विशेष अवधि के लिए ही ली जा सकती है। जिसमें तीन दिन की ट्रेनिंग के लिए व दो दिन मतदान के लिए होते है। कोर्ट ने इस बयान को स्वीकार कर लिया। इसलिए कोर्ट ने इस मामले में दायर याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और असिस्टेंट इलैक्ट्रोल रजिस्ट्रेशन आॅफिसर के आदेशों को रद्द कर दिया।

NI अधिनियम की धारा 143A (अंतरिम मुआवज़ा) को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े ]

17 April 2019 11:15 AM

        पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट ऐक्ट (एनआईए) की धारा 143A को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं है जबकि 148 के प्रावधान उन लंबित अपीलों पर लागू होंगे जिस दिन इसके प्रावधान को लागू करने की अधिसूचना जारी की गई। न्यायमूर्ति राजबीर सहरावत ने कहा कि अधिनियम कि धारा 143A ने आरोपी के ख़िलाफ़ एक नया दायित्व तय किया है जिसका प्रावधान वर्तमान क़ानून में नहीं था।
         लेकिन धारा 148 को यथावत रहने दिया गया है; और कुछ हद तक इसे आरोपी के हित में संशोधित किया गया है। वर्ष 2018 में इस अधिनियम दो नए प्रावधान जोड़े गए। इसमें पहला है धारा 143A जिसके द्वारा निचली अदालत को आरोपी को अंतरिम मुआवज़ा देने का आदेश जारी करने का अधिकार दिया गया है पर यह राशि 'चेक की राशि' से 20% से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। एक अन्य धारा 148 जोड़ा गया जो अपीली अदालत को आरोपी/अपीलकर्ता को यह आदेश देने का अधिकार देता है कि वह निचली अदालत ने जो 'जुर्माना' या 'मुआवजा' चुकाने को कहा है उस की 20% राशि वह जमा करे।
          वर्तमान मामले में कोर्ट के समक्ष जो अपील लंबित है वे निचली और अपीली अदालतों के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील है। अधिनियम की नई धारा 143A के प्रावधानों को आधार बनाकर फ़ैसले दिए गए जिसे अब चुनौती दी गई है। कोर्ट ने कहा, "चूँकि अधिनियम का जो संशोधन हुआ है उसमें इस नए प्रावधानों को पिछले प्रभाव से लागू करने का प्रावधान नहीं है विशेषकर लंबित मामलों में। इसलिए लंबित मामलों के बारे में जो कि इन प्रावधानों के लागू होने के पहले से मौजूद हैं, के बारे में इन नए प्रावधानों के आधार पर फ़ैसला नहीं दिया जा सकता।
          कोर्ट ने कहा, "…अंतरिम मुआवज़ा जो कि किसी मामले में करोड़ों रुपए भी हो सकता है और ऐसे व्यक्ति के लिए जो कुछ लाख रुपए भी मुश्किल से जुगाड़ सकता है, इस धारा का परिणाम तबाही पैदा करने वाला हो सकता है…इसलिए इस प्रावधान को ज़्यादा से ज़्यादा आगे होने वाले इस तरह के मामलों में लागू किया जा सकता है क्योंकि वर्तमान मामले में आरोपी इस बात से अवगत होगा कि वह जो कर रहा है उसका परिणाम क्या हो सकता है …पर ये प्रावधान उन मामलों में लागू नहीं हो सकते जहाँ अदालती कार्रवाई उस समय शुरू हुई जब ये संशोधित प्रावधानों का अस्तित्व भी नहीं था।
           अदालत ने धारा 148 के बारे में कहा कि किसी दोषी व्यक्ति से जुर्माने या मुआवजे की राशि वसूलने का प्रावधान सीआरपीसी में धारा 148 के अस्तित्व में आने से पहले से ही मौजूद है। ये प्रावधान दोषी/अपीलकर्ता को ज़्यादा राहत देने वाला है।

Monday, April 1, 2019

आइये जाने FIR के बारे में


              कोई भी अपराध मात्र एक पीड़ित के खिलाफ अपराध नहीं होता बल्कि वह सामाजिक सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था को एक चुनौती होता है. इसलिए जब भी कोई अपराध होता है तो पीड़ित तो एक निजी व्यक्ति ही होता है फिर भी राज्य / सरकार उस अपराध के विरुद्ध कार्यवाही करती है.
            अपराधी को उचित सजा दिलाना और न्याय सुनिश्चित करना पीड़ित का नहीं बल्कि राज्य का कर्तव्य एवं अधिकार माना जाता है, यह प्रक्रिया FIR दायर करने से शुरू होती है.
           आज के लेख में हम FIR और उससे जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करेंगे. FIR क्या होती है? FIR या प्रथम दृष्टया रिपोर्ट जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, अपराध के सम्बन्ध में पुलिस को दी गयी प्रथम सूचना होती है.
 हर पुलिस थाने में एक रजिस्टर जिसे FIR बुक कहा जाता है, रखी होती है.
FIR दायर करने का तात्पर्य है अपराध की सूचना उस बुक में लिखवाना/ रिकॉर्ड करवाना.
FIR का उद्देश्य होता है कि अपराध की समुचित पड़ताल और कानूनी कार्यवाही सम्बंधित मशीनरी को प्रारम्भ किया जा सके. कौन FIR दायर करवा सकता है?
            भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार न केवल पीड़ित बल्कि कोई भी व्यक्ति जिसे किसी अपराध के घटित होने की जानकारी हो वह FIR दर्ज़ करवा सकता है.
            भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 के तहत कुछ मामलों में हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह निम्नलिखित अपराध या उसकी संभावना के सन्दर्भ में पुलिस को सूचित करें-
१. राज्य के विरुद्ध अपराध जैसे- भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना, उसकी तैयारी करना.
२. लोक शान्ति के विरुद्ध अपराध जैसे- unlawful assembly , riot
३. food aduleration , सार्वजानिक जल स्त्रोत, हवा आदि को हानि पहुँचाने से सम्बंधित मामले.
४. हत्या, किडनेपिंग, लूट, डकैती के मामले.
५. सार्वजानिक रोड, जलाशय, लैंड मार्क, सार्वजानिक सम्पति को पहुँचाने से सम्बंधित मामले.
६. करेंसी नोट, बैंक नोट की जालसाज़ी से जुड़े मामले. क्या FIR पुलिस का अनिवार्य कर्तव्य है?

         भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता अनुसार अपराधों को दो श्रेणी में बाँटा गया है- संज्ञेय एवं गैर संज्ञेय अपराध. संज्ञेय अपराध मूलतः गंभीर अपराध होते है जैसे हत्या, बलात्कार आदि. संज्ञेय अपराध के आरोपित को पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है. इस तरह के मामलों की सूचना मिलने पर पुलिस तुरंत FIR दर्ज़ करने के लिए बाध्य है.
            अगर दी गयी सूचना से ये स्पष्ट है कि सज्ञेय अपराध घटित हुआ है तो पुलिस के लिए यह अनिवार्य है कि वह FIR बिना किसी प्रारम्भिक जाँच के तुरंत रजिस्टर करें. हालाँकि कुछ संज्ञेय अपराधों में भी पुलिस तुरंत FIR न रिकॉर्ड कर प्राम्भिक जांच कर सकती है, ये मामलें इस प्रकार से है-

१. वैवाहिक और घरेलू मामले
२. व्यावसायिक मामले
३. भ्रष्टाचार सम्बंधित मामले
४. डॉक्टर या हॉस्पिटल द्वारा लापरवाही के मामले
५. ऐसा कोई मामला जहाँ मामले की सूचना देने/ रिपोर्ट करने में बिना किसी संतोषजनक कारण असामान्य देरी हुई हो. दूसरी ओर, गैर संज्ञेय मामले काम गंभीर मामले होते है, इसलिए गैर संज्ञेय मामलों में पुलिस सीधे फिर नहीं दर्ज़ करती.
         आप मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा १५५(२) के तहत प्रार्थना पत्र पेश कर सकते है.

कहाँ दायर करें FIR?
              अधिकांशतः FIR उस थाने में दायर की जाती है जिस थाने के अधिकार क्षेत्र में अपराध हुआ हो. पर पुलिस आपकी सूचना को रिकॉर्ड करने से इस आधार पर मना नहीं कर सकती कि अपराध का स्थान उनके कार्यक्षेत्र से बाहर है. ऐसी स्थिति में पुलिस 'जीरो FIR' रिकॉर्ड करती है और सम्बंधित थाने को आपकी FIR भेज देती है.
           पुलिस अगर FIR करने में आनाकानी करे तो क्या करे? अगर पुलिस संज्ञेय अपराध के मामले में भी आपकी FIR न रजिस्टर करें तो आप निम्लिखित विकल्प अपना सकते हैं- आप उच्च पुलिस अधिकारीयों SP, DIG आदि को पुलिस द्वारा FIR न लिखने की सूचना दे सकते है. यह अधिकारी सम्बंधित पुलिस अधिकारी को FIR दायर करने का निर्देशन दे सकता है.

  आप यह कार्य SP को डाक द्वारा पत्र भेजकर कर सकते है.

आप संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १५६(३) तहत प्रार्थना पत्र दायर कर सकते है. इस प्रार्थना पत्र पर मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दायर करने और मामले की तहकीकात का आदेश दे सकता है.

  तीसरा, आप हाई कोर्ट के समक्ष संविधान के अनुच्छेद २२६ के तहत यह प्रार्थना पेश कर सकते है कि पुलिस आपकी FIR दायर करे. FIR दायर करवाते समय किन-किन बातों का रखे ख्याल?- हालांकि पुलिस का कर्तव्य है की मौखिक दी गयी सूचना को भी रजिस्टर करे फिर भी वास्तविक व्यवहार में ये ज्यादा उपयुक्त होगा कि आप थानाधिकारी को सम्बोधित करते हुए लिखित में अपनी शिकायत पेश करे जिसके आधार पर पुलिस FIR दायर करेगी. FIR रिकॉर्ड होने के बाद आपको पढ़ कर सुनाई जाये, यह आपका हक़ है.
            यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि FIR लिखने में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं की गयी है जैसे- आपके द्वारा दी गयी सूचना में किसी तरह का फेरबदल करना या सूचना का कोई महत्वपूर्ण बिंदु छोड़ देना इत्यादि.
           FIR रिकॉर्डिंग पर आपका हस्ताक्षर या अंगूठे का चिन्ह लेना अनिवार्य है.
           बिना कोई शुल्क दिए FIR की कॉपी पाना आपका अधिकार है. उसकी माँग अवश्य करें.
           FIR की कॉपी में दिए गए FIR नंबर या DD नंबर के आधार पर आप अपनी FIR का ऑनलाइन को भी ट्रैक कर सकते है. इसलिए कॉपी और नंबर को संभाल कर रखे. FIR दायर करवाने में देरी ना करें. हालाँकि अपराध विधि इस सिद्धांत कार्य करती है कि चूँकि अपराध सिर्फ पीड़ित के खिलाफ नहीं समाज के खिलाफ अपराध है इसलिए सिविल मामलों जैसे समय की पाबंदियां आपराधिक मामलों पर नहीं लागू होती, इसलिए सामान्यत: FIR दायर करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है. फिर भी FIR दायर करने में अनावश्यक देरी नहीं होनी चाहिए.
           FIR दायर करने में देरी होने पर भी अपराधी के खिलाफ तहकीकात और कानूनी कार्यवाही की जा

सकती है फिर भी FIR दायर करने में हुई देरी अपराधी के विरुद्ध केस को कमजोर बनाती है.

कोर्ट में FIR दायर करने में हुई देरी का स्पष्टीकरण देना अनिवार्य होता है.
FIR आपराधिक घटना का विस्तृत ब्यौरा या इनसाइक्लोपीडिया' नहीं होती.
FIR में मुख्यत: घटना की प्रमुख-प्रमुख बिंदुओं को ही संक्षिप्त रूप में रजिस्टर किया जाता है.
ट्रायल के दौरान FIR मुख्य साक्ष्य भी नहीं होती. पर फिर भी FIR लिखवाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपराध सम्बंधित मुख्य-मुख्य बातें भलीभांति रूप में लिख ली जाये क्योंकि FIR का प्रयोग कुछ उद्देध्यों के लिए ट्रायल के दौरान किया जा सकता है जैसे- बयानों में किसी विरोदाभास के सन्दर्भ में, किसी बयान की सम्पुष्टि के लिए आदि. इसलिए आवश्यक है कि आप अपराध की सूचना पूर्ण सच्चाई, बिना बढ़ाये- चढ़ाये, बिना कुछ छुपाए दे.
           महिलाओं के लिए FIR दायर करने के लिए खास सुविधाएँ- अगर अपराध महिलाओं पर अत्याचार जैसे बलात्कार, छेड़छाड़ आदि से सम्बंधित है तो FIR महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही रजिस्टर की जाएगी ताकि पीड़ित महिला बिना किसी संकोच या भय के अपनी बात कह सके.
          महिला अपराधों के निम्नलिखित मामलों में महिला पुलिस अधिकारी ही FIR रजिस्टर करेंगी- १. तेजाब फेंक कर महिलाओं को पहुंचाने से सम्बंधित मामले। २. यौन उत्पीड़न। ३. बलात्कार सम्बन्धी मामले. ४. छेड़छाड़, शील भंग, पीछा करना से सम्बंधित मामले.
         उपर्युक्त मामलों में अगर पुलिस अधिकारी FIR नहीं करें तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 166A तहत दंड प्राप्ति का हक़दार है.
             उपर्युक्त मामलों के सन्दर्भ में अगर पीड़िता शारीरिक या मानसिक रूप से नि:शक्त है तो FIR पीड़िता के घर या उसकी मर्ज़ी के किसी अन्य स्थान पर दायर की जाएगी.
ऐसे मामले में इंटरप्रेटर आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करना अनिवार्य है.

          हमारे देश में बड़ी संख्या में मामलों की रिपोर्टिंग नहीं की जाती जिससे अपराधियों को बढ़ावा मिलता है और पीड़ितों को उचित न्याय भी नहीं मिल पता.
          ऐसे में जरूरी है कि हम FIR पहलुओं को समझे और अपराध की सूचना पुलिस को दे.
हाल ही में भारत सरकार 'SMART POLICE INITIATIVE' लायी है जिसके तहत लगभग ७ अपराधों सम्बंधित सूचना ऑनलाइन पोर्टल (https://digitalpolice.gov.in/ncr/State_Selection.aspx )
द्वारा दी जा सकती है. पोर्टल पर लॉग-इन कर बिना पुलिस स्टेशन जाए ही रिपोर्ट दायर की जा सकती है. इस तरह के ऑनलाइन पोर्टल अलग- अलग राज्यों ने भी शुरू किये है. आप उनके बारे में भी पता कर सकते है.


(लेखक सुरभि करवा राष्ट्रिय विधि विश्विद्यालय, दिल्ली की छात्रा है. लेख में मदद करने के लिए वो अपने सहकर्मी शिखर टंडन को धन्यवाद ज्ञापित करती है.)

Friday, April 28, 2017

20 महत्पूर्ण कानून और अधिकार

          भारतीय संविधान ने लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत से कानूनी उपाय बताये हैं परन्तु दुर्भाग्यवश कुछ उपाय तो लोगों को अभी तक पता ही नही चल पाये हैं | इस लेख में हमने ऐसे ही कुछ कानूनों और अधिकारों की चर्चा की है जो कि साधारण लोगों / महिलाओं को शोषण से बचायेंगे | 

1.         ड्राइविंग के समय यदि आपके 100ml ब्लड में अल्कोहल का लेवल 30mg से ज्यादा मिलता है तो पुलिस बिना वारंट आपको गिरफ्तार कर सकती है | मोटर वाहन एक्ट, --         1988, सेक्शन -185,202 

2-       किसी भी महिला को शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 बजे से पहले गिरफ्तार नही किया जा सकता है | आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 

3-        पुलिस अफसर FIR लिखने से मना नही कर सकते, ऐसा करने पर उन्हें 6 महीने से 1 साल तक की जेल हो सकती है|             भारतीय दंड संहिता, 166 A 

4.         कोई भी होटल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों न हो, आपको फ्री में पानी पीने और वाशरूम का इस्तेमाल करने से नही रोक सकता है |         भारतीय सरिउस अधिनियम 1887 

5.        कोई भी शादीशुदा व्यक्ति किसी अविवाहित लड़की या विधवा महिला से उसकी सहमती से शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो यह अपराध की श्रेणी में नही आता है |       भारतीय दंड संहिता व्यभिचार, धारा 498 

6.        यदि दो वयस्क लड़का या लड़की अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं तो यह गैर कानूनी नही है | और तो और इन दोनों से पैदा होने वाली संतान भी गैर कानूनी नही है और संतान को अपने पिता की संपत्ति में हक़ भी मिलेगा |                  घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 

7.         एक पुलिस अधिकारी हमेशा ही ड्यूटी पर होता है चाहे उसने यूनिफार्म पहनी हो या नही | यदि कोई व्यक्ति इस अधिकारी से कोई शिकायत करता है तो वह यह नही कह सकता कि वह पीड़ित की मदद नही कर सकता क्योंकि वह ड्यूटी पर नही है |              पुलिस एक्ट,1861 

8.          कोई भी कंपनी गर्भवती महिला को नौकरी से नहीं निकाल सकती, ऐसा करने पर अधिकतम 3 साल तक की सजा हो सकती है|                मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 

9.          टैक्स उल्लंघन के मामले में, कर वसूली अधिकारी को आपको गिरफ्तार करने का अधिकार है लेकिन गिरफ्तार करने से पहले उसे आपको नोटिस भेजना पड़ेगा । केवल टैक्स कमिश्नर यह फैसला करता है कि आपको कितनी देर तक हिरासत में रहना है |          आयकर अधिनियम, 1961 

10.        तलाक निम्न आधारों पर लिया जा सकता है : हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कोई भी (पति या पत्नी) कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे सकता है। व्यभिचार (शादी के बाहर शारीरिक रिश्ता बनाना), शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, नपुंसकता, बिना बताए छोड़कर जाना, हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाना, पागलपन, लाइलाज बीमारी, वैराग्य लेने और सात साल तक कोई अता-पता न होने के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है।            हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-13  

11.         मोटर वाहन अधिनियम की धारा 129 में वाहन चालकों को हेलमेट लगाने का प्रावधान है। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 128 में बाइक पर दो व्यक्तियों का बैठने का प्रावधान है। लेकिन ट्रैफिक पुलिस के द्वारा गाड़ी या मोटरसाइकिल से चाबी निकालना बिलकुल ही गैर कानूनी है इसके लिए आप चाहें तो उस कांस्टेबल/अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी कर सकते हैं |        मोटर वाहन अधिनियम 

12.          केवल महिला पुलिसकर्मी ही महिलाओं को गिरफ्तार कर थाने ला सकती है| पुरुष पुलिसकर्मियों को महिलाओं को गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है| इतना ही नहीं महिलाएं शाम के 6 बजे से सुबह के 6 बजे के बीच पुलिस स्टेशन जाने से मना कर सकती हैं। एक गंभीर अपराध के मामले में मजिस्ट्रेट से लिखित आदेश प्राप्त होने पर ही एक पुरुष पुलिसकर्मी किसी महिला को गिरफ्तार कर सकता है।          दंड प्रक्रिया संहिता,1973 

13.           बहुत ही कम लोग इस बात को जानते हैं कि यदि उनका गैस सिलेंडर खाना बनाते समय फट जाये तो आप जान और माल की भरपाई के लिये गैस कम्पनी से 40 लाख रुपये तक की सहायता के हक़दार हैं | 

14.           आपको यह जानकर अचरज होगा कि यदि आप किसी कंपनी से किसी त्यौहार के मौके पर कोई गिफ्ट लेते हैं तो यह रिश्वत की श्रेणी में आता है | इस जुर्म के लिए आपको सजा भी हो सकती है |    विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (FCRA) 2010 

15.           यदि आपका किसी दिन चालान (बिना हेलमेट के या किसी अन्य कारण से) काट दिया जाता है तो फिर दुबारा उसी अपराध के लिए आपका चालान नही काटा जा सकता है |        मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2016 

16.           कोई भी दुकानदार किसी उत्पाद के लिए उस पर अंकित अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक रुपये नही मांग सकता है परन्तु उपभोक्ता, अधिकतम खुदरा मूल्य से कम पर उत्पाद खरीदने के लिए दुकानदार से भाव तौल कर सकता है |       अधिकतम खुदरा मूल्य अधिनियम, 2014 

17.            यदि आपका ऑफिस आपको सैलरी नही देता है तो आप उसके खिलाफ 3 साल के अन्दर कभी भी रिपोर्ट दर्ज करा सकते हैं | लेकिन यदि आप 3 साल के बाद रिपोर्ट करते हैं तो आपको कुछ भी हासिल नही होगा|         परिसीमा अधिनियम, 1963 

18.            यदि आप सार्वजनिक जगहों पर "अश्लील गतिविधि" में संलिप्त पाये जाते हैं तो आपको 3 महीने तक की कैद भी हो सकती है| परन्तु "अश्लील गतिविधि" की कोई स्पष्ट परिभाषा नही होने के कारण पुलिस इस कानून का दुरूपयोग करती है |          भारतीय दंड संहिता की धारा 294 

19.            यदि आप हिन्दू हैं और आपके पास आपका पुत्र है, पोता है या परपोता है तो आप किसी दूसरे लड़के को गोद नही ले सकते हैं | साथ ही गोद लेने वाले व्यक्ति और गोद लिए जाने वाले बच्चे के बीच कम से कम 21 वर्ष का अंतर होना जरूरी है |         हिंदू गोद लेना और रखरखाव अधिनियम,1956 

20.           यदि आप दिल्ली में रह रहे हैं तो आपका मकान मालिक आपको बिना नोटिस दिए जबरन मकान खाली नही करा सकता है |           दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम 1958, धारा 14


गोद लेने सम्बन्दी समस्याएं व निराकरण

          जानिए बच्चा गोद लेने के नये सरकारी नियम
         नई दिल्ली। देश में तमाम नि:संतान दंपत्त‍ि हैं, जो बच्चा गोद लेना चाहते हैं, लेकिन तमाम कानूनी पचड़ों और बिचौलिये की भूमिका निभाने वाली संस्थाओं के चक्कर में फंस कर, वे इस काम में विफल हो जाते हैं। केंद्र सरकार ने बच्चा गोद लेने के नियमों में फेरबदल कर उन्हें आसान बनाया है। ये नियम 1 अगस्त 2015 से देश भर में लागू हुए हैं। चलिये देखते हैं क्या हैं बच्चा गोद लेने की नई प्रक्रिया।
                'बच्‍चों को गोद लेने की प्रक्रिया को संचालित करने वाले दिशा-निर्देश 2015'' की अधिसूचित 17 जुलाई, 2015 को दी गई थी। शिशु दत्‍तक ग्रहण संसाधन सूचना एवं दिशा-निर्देश प्रणाली के तहत आप ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
  • इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्‍य अनाथ और त्‍यागे गये बच्‍चों को गोद लेने के लिए अधिक कारगर नियमन मुहैया कराना है।
  • सम्‍भावित माता-पिताओं (पीएपी) के लिए उनके आवदेनों की स्थिति का पता लगाना संभव हो जाएगा, जिससे पूरी प्रणाली अधिक अनुकूल हो जाएगी।
  • गोद लेने की प्रक्रिया को समस्‍या रहित बनाने के लिए केयरिंग्‍स के पास गोद लिए जाने वाले बच्‍चों एवं पीएपी का एक केंद्रीकृत डाटा बैंक बनाया जा रहा है।
  • घरेलू एवं अंतर्देशीय गोद लेने की प्रक्रिया के लिए सुस्‍पष्‍ट समय-सीमा तैयार की गई है, जिससे शीघ्रता से गोद लिया जाना सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • प्रक्रिया के तहत गोद लेने के इच्छुक लोगोंकोhttp://www.cara.nic.in/Index.aspx वेबसाइट पर जाकर रजिस्टर करना होगा।
क्या होगा इन नये नियमाें के तहत:-
1. अब भारत के पीएपी को पंजीकरण के लिए गोद लेने वाली एजेंसियों के पास जाने की आवश्‍यकता नहीं है। माता-पिता अपनी योग्‍यता निर्धारित करने के लिए आवश्‍यक दस्‍तावेजों को अपलोड कर सकते हैं और ऑनलाइन रजिस्‍टर कर सकते हैं; माता-पिता गोद लेने वाली एजेंसी के पास जाए बिना गए सीधे ऑनलाइन रजिस्‍टर कर सकते हैं।
2. गृह अध्‍ययन रिपोर्ट का संचालन गोद लेने वाली एजेंसियों द्वारा किया जाता है और उन्‍हें ऑनलाइन अपलोड कर दिया जाता है।
3. पीएपी को ऑनलाइन निर्दिष्‍ट किया जाएगा जिसके बाद वे गोद लेने वाली एजेंसियों के पास जा सकेंगे।
4. अंतर्देशीय गोद लेने के मामलों में भी सभी आवेदनों को केयरिंग्‍स पर ऑनलाइन स्‍वीकार किया जायेगा तथा आवश्‍यक दस्‍तावेजों को सिस्‍टम में अपलोड करने की आवश्‍यकता होगी।
5. घरेलू एवं अंतर्राष्‍ट्रीय, दोनों ही दत्‍तक ग्रहणों में, दत्‍तक ग्रहण के बाद की कार्रवाई को केयरिंग्‍स में ऑनलाइन पोस्‍ट किया जाएगा।
6. सावधिक आधार पर वास्‍‍तविक समय ऑनलाइन रिपोर्ट सृजन सुविधा
7. सभी विशिष्‍ट दत्‍तक ग्रहण एजेंसियों को देश में एवं अंतर्देशीय दत्‍तक ग्रहण के लिए सीएआरए ऑनलाइन से जोड़ दिया गया है।
8. सीएआरए में अंतर्देशीय दत्‍तक ग्रहण के लिए आवेदन की केंद्रीकृत ऑनलाइन प्राप्ति और सीएआरए द्वारा विशेषज्ञ दत्‍तक ग्रहण एजेंसियों (एसएए) को आवेदनों का वितरण
9. देश भर में दत्‍तक ग्रहण एजेंसियों में उपलब्‍ध बच्‍चों की वास्‍तविक समय आनलाइन सूचना
10. जिला स्‍तर पर दत्‍तक ग्रहण कार्यक्रम की निगरानी के लिए जिला शिशु सुरक्षा इकाइयों (डीसीपीयू) को के‍यरिंग्‍स में जोड़ दिया गया है।
11. यह अधिक युक्तिसंगत तथा बेहद पारदर्शी दत्‍तक ग्रहण कार्यक्रम है।


केयरिंग्‍स भारत सरकार द्वारा जारी बच्‍चों के गोद लेने को शासित करने वाले दिशा-निर्देश 2015 के अनुरूप देश में शिशु दत्‍तक ग्रहण कार्यक्रम को क्रियान्वित करने, पर्यवेक्षण, निगरानी एवं मूल्‍यांकन करने में सहायक होगा।

नोट----
   1- मदर टेरेसा की मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी ने बच्चों को गोद देना बंद कर दिया है। क्योंकि मिशनरीज़ के अब अकेली मांओं को बच्चा गोद देने पर रोक लगा दी है। अकेली मांओं का कहना है कि इस फ़ैसले से बच्चों को ज़्यादा नुक़सान है।
     पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र द्वारा हाल ही में एक नियम में बदलाव किए जाने के बाद मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी द्वारा अपने अनाथालयों से बच्चे गोद देने पर रोक लगाने का समर्थन किया है।

2-वे जमाने लद गए जब बच्चों को सिर्फ बांझपन की वजह से ही गोद लिया जाता था. जो बच्चे गोद लिए जाते थे वे भी परिवार के ही किसी सदस्य के होते थे. धीरेधीरे इन नियमों में बदलाव हुआ है. अब दंपती बच्चों को अनाथाश्रम से भी गोद लेने लगे हैं. हां, इस दिशा में एक नया चलन शुरू हुआ है, वह है ‘सिंगल पेरैंटिंग’ का. अब कोई भी अविवाहित पुरुष या स्त्री भी बच्चा गोद ले सकता है.
       आजकल दंपती समय की कमी और काम के भार के चलते भी बच्चा गोद ले रहे हैं. इस से एक ओर जहां बच्चा घर आने से असीम सुख मिलता है वहीं समय और खर्चा भी कम आता है. बिजनैस ओरिएंटेड दंपती आजकल यही राह अपना रहे हैं. लेकिन कई बार वे आधीअधूरी जानकारी के चलते गलत एजेंसियों के झांसे में फंस जाते हैं. बच्चा मिलना तो दूर ये एजेंसियां उन से अच्छाखासा पैसा वसूल कर फरार हो जाती हैं. कई बार तो चोरी या अगवा किए बच्चों को आप के हाथों सौंप दिया जाता है.
       जब बच्चा गोद लेना हो, तो समय का तकाजा कहता है कि उतावलेपन को छोड़ कर समझदारी से काम लिया जाए. इस के कानूनी और भावनात्मक सभी पक्षों को ध्यान से परखना जरूरी है. एक छोटी सी गलती जिंदगी भर के लिए मुसीबत बन सकती है.
तैयार करें खुद को
       सब से ज्यादा जरूरी बात यह है कि आप मानसिक तौर पर बच्चा गोद लेने के लिए पूरी तरह तैयार हों. आप के साथसाथ आप का परिवार भी इस बात के लिए सहमत हो. अगर पहले से ही आप के बच्चा है तो उसे भी इस के लिए तैयार करें. उसे इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार करें कि घर पर आने वाला नया सदस्य उस के प्यार को बांटने नहीं, बल्कि उसे और प्यार करने आ रहा है.
       वर्ष 1985 में खुद के बच्चों वाले 44 परिवार, गोद लिए बच्चों वाले 45 परिवार और 44 ऐसे परिवार जिन में खुद के साथसाथ गोद लिए बच्चे भी रहते थे, पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि वह परिवार जहां सिर्फ गोद लिए बच्चे रहते हैं, उन परिवारों से ज्यादा खुश थे जहां अपने बच्चे के साथ गोद लिए बच्चे रहते हैं. इसलिए खुद को तैयार करना जरूरी हो जाता है ताकि भविष्य में किसी तरह के तनाव का सामना न करना पड़े. इस के बाद ही बच्चे को गोद लेने जैसा महत्त्वपूर्ण कदम उठाएं.
एजेंसी न हो फर्जी
       अकसर कई लोग फर्जी एजेंसी बना कर चोरी या अगवा किए गए बच्चों को गोद दे देते हैं. ऐसे में आप को बाद में नुकसान उठाने के साथ ही साथ बच्चे को भी खोना पड़ सकता है. इस बात की जांच कर लें कि जिस एजेंसी से आप बच्चा गोद लेने की सोच रहे हैं वह लाइसैंसधारक है. सुप्रीम कोर्ट के वकील शिवेंद्र का कहना है कि 200 से ज्यादा एजेंसियां ऐसी हैं, जो बच्चे गोद देने का अधिकार रखती हैं.
कागजात रखें तैयार
       जब भी एजेंसी से संपर्क करें, तो कागजात के बारे में पूरी जानकारी जरूर ले लें. इन्हें पहले से ही तैयार रखें, ताकि गोद लेने की प्रक्रिया के दौरान ज्यादा भागदौड़ न करनी पड़े :
द्य  बच्चा गोद लेने के लिए एजेंसी को पूरे परिवार के साथसाथ, अगर पहले से कोई बच्चा है, तो उस की भी फोटो देनी पड़ती है.
       द्य फोटो के साथ आप के आयु प्रमाणपत्र की भी मांग की जाती है. इस से लाभ यह होता है कि आप के लिए सही आयु वर्ग का बच्चा चुना जा सकता है. अकसर अधिक आयु वाले अभिभावकों को बड़े बच्चे दिए जाते हैं. इस से अभिभावक और बच्चे दोनों को सुविधा होती है.
द्य  बच्चा गोद लेने के लिए आप के पास अपने स्थायी पते के साथ ही हाल में आप जहां निवास कर रहे हैं उस पते का प्रमाणपत्र भी मांगा जाता है.
द्य  बच्चा गोद लेने के पीछे बताए गए कारणों में मुख्य कारण अगर बांझपन है, तो इस के लिए भी प्रमाणपत्र देना पड़ता है. इस प्रमाणपत्र के तौर पर स्त्री या पुरुष जो भी इस के लिए जिम्मेदार हो, उसे अपनी मैडिकल रिपोर्ट जमा करानी होती है.
       द्य  इस के अलावा बच्चा गोद लेने के इच्छुक लोगों को अपना स्वास्थ्य प्रमाणपत्र भी देना पड़ता है. इसी के साथ एचआईवी और हेपेटाइटिस बी के निरीक्षण वाली ब्लड टैस्ट की रिपोर्ट भी देनी होती है. एक बात और जो ध्यान में रखना जरूरी है कि एचआईवी और हेपेटाइटिस बी की रिपोर्ट किसी विशेषज्ञ से लेनी जरूरी है.
द्य  विवाहित अगर बच्चा गोद ले रहे हों, तो उन्हें मैरिज सर्टिफिकेट देना होगा.
द्य  अगर आप तलाकशुदा हैं और
        बच्चा गोद लेना चाहते हैं, तो भी आप को अपने तलाक के कागजात देने जरूरी होंगे.
द्य  बच्चे को गोद लेने के इच्छुक व्यक्ति से उस की चलअचल संपत्ति का स्टेटमैंट भी मांगा जाता है. 
द्य  आप बच्चे की जिम्मेदारी उठाने लायक हैं, यह साबित करने के लिए आप को आय प्रमाणपत्र भी देना होता है. 
       द्य  एंप्लायमैंट लैटर के साथ वर्तमान में मिल रही तनख्वाह की पे स्लिप देनी पड़ सकती है.
द्य  अगर आप अपना बिजनैस करते हैं, तो आप से आईटी सर्टिफिकेट मांगा जाएगा. 
साक्षात्कार लिया जाएगा
      ये सारे कागजात जमा कराने के बाद भी आप को बच्चा गोद मिल जाएगा यह जरूरी नहीं है. कागज पूरे होने के बाद आप का साक्षात्कार लिया जाएगा. दरअसल, जो भी एजेंसी बच्चा गोद देती है, वह अपनी ओर से हर संभव प्रयास करती है कि बच्चा किन्हीं सुरक्षित हाथों में ही जाए. इसलिए वह संभावित अभिभावकों के साक्षात्कार लेती है.
       इस के बाद ही वह यह फैसला लेती है कि इच्छुक व्यक्ति को बच्चा गोद देना चाहिए या नहीं. यह साक्षात्कार कई बार सिर्फ संभावित अभिभावक का या
फिर उस के पूरे परिवार का भी हो सकता है. यह निर्णय पूरी तरह से एजेंसी पर निर्भर करता है कि वह पूरे परिवार का साक्षात्कार एकसाथ लेती है या फिर एकएक सदस्य को बुला कर लेती है. इसी के साथ ही अगर एजेंसी चाहे तो वह परिवार के सदस्यों के अलावा उन के दोस्तों का भी साक्षात्कार ले सकती है.
      इन सब पड़ावों के बाद जब एजेंसी पूरी तरह से संतुष्ट हो जाती है तो वह सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर इच्छुक अभिभावकों के लिए बच्चे का चयन करती है. अभिभावक एजेंसी पर इस बात के लिए दबाव नहीं डाल सकते कि उन्हें बच्चे को खुद चुनने दिया जाए. बच्चे का चुनाव पूरी तरह से एजेंसी के हाथों में ही होता है.
पहली मुलाकात
     इस के बाद वह पल आता है जिस के लिए आप ने इतनी मेहनत की यानी अभिभावक को बच्चे से मिलाया जाता है. यह वह पल है, जब बच्चा अपने भावी अभिभावकों से पहली बार मिलता है. इसी दौरान अभिभावक को बच्चे के सभी स्वास्थ्य प्रमाणपत्र भी दे दिए जाते हैं. अगर अभिभावक अपनी संतुष्टि के लिए बच्चे का अपने डाक्टर से चैकअप करवाना चाहते हैं तो वे इस के लिए उसे अपने साथ ले जाने का हक रखते हैं.
और बच्चा हो गया आप का
       इन प्रक्रियाओं के बाद इच्छुक व्यक्ति को बच्चा गोद लेने के लिए कोर्ट में एक अर्जी देनी पड़ती है. भारतीय कानून के हिंदू अडौप्शन ऐंड मेंटेनैंस एक्ट, 1956 के तहत सिर्फ हिंदू ही बच्चा गोद ले सकते थे, लेकिन अब दूसरे धर्म के लोग भी गार्जियन ऐंड वार्ड एक्ट, 1890 के तहत अर्जी दे कर बच्चा गोद ले सकते हैं. साल 2000 से ईसाइयों को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिल गया है.
एजेंसी का फौलोअप
        इन सब परेशानियों का सामना करने के बाद अंत में आप के परिवार को एक नया और प्यारा सदस्य तो मिल गया, लेकिन एजेंसी की जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं होती. जब बच्चा अपने घर पहुंच जाता है, तो एजेंसी के लोग निरंतर उस से मिलने आते रहते हैं. इस से एक तो एजेंसी को बच्चे की पूरी जानकारी रहती है, दूसरा बच्चा भी सहज महसूस करता है.
      एजेंसी तो अपनी पूरी तसल्ली कर लेती है, लेकिन बच्चा गोद लेते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी होता है. इन्फैंट बेबी सिर्फ 25 से 39 वर्ष तक की उम्र के दंपती को दिए जाते हैं. इस से अधिक आयु के बच्चे 40 से 46 उम्र के व्यक्ति को गोद दिए जाते हैं. जिन अभिभावकों के पास पहले से ही 2 बच्चे होते हैं उन्हें किसी एक अभिभावक की जिम्मेदारी पर बच्चा दिया जाता है. अगर आप शादीशुदा हैं तो शादी के कम से कम 2 साल पूरे होने के बाद ही बच्चा गोद ले सकते हैं.
      गोद लेने के बाद बच्चे का मूल जन्म प्रमाणपत्र लेना न भूलें. अगर बच्चा मांबाप से गोद ले रहे हैं, तो इस बात का भी खयाल रखें कि पहले वाले मांबाप के पेरैंटल राइट खत्म करवाने के बाद ही बच्चे को गोद लें. अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप कानून के जानकार से मदद लेना न भूलें.

3. शिशु गोद लेने का परिचय

जब दंपति संतानप्राप्ति में असमर्थ हों, तो बच्चा गोद लेने की प्रथा, भावी माता-पिता को शिशु होने का अनुभव तथा सुख देती है । प्रत्येक वर्ष पूरे विश्‍व में सैकडों-सहस्रों बच्चे गोद लिए जाते हैं । विकसित देशों में, एक बच्चे को गोद लेने में लगभग ५०,००० यू.एस. डॉलर्स तक का व्यय हो सकता है । जबकि एक सामान्य धारणा है कि शिशु गोद लेने से उस बच्चे का भविष्य अधिक अच्छा तथा स्थिर हो जाता है, इस लेख में हम निम्न दो बातों पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करेंगे :
  • बच्चा गोद देना
  • लेने की प्रथा

4. बंध्यापन तथा गर्भधारण न कर पाने के आध्यात्मिक कारक

       जिन परिवारों में बच्चे नहीं होते, उनमें बच्चे गोद लेने की इच्छा स्वाभाविक है । गर्भधारण न कर पाना अत्यंत पीडादायक है, विशेष रूप से तब, जब हम इसका कारण नहीं जानते ।
नीचे दी गई सारणी में हमने गर्भधारण न कर पाने के कारणों का विभाजन दिया है ।
गर्भधारण न कर पाने के कारण
प्रकारप्रतिशत
१. आनुवांशिक (जैविक कारक)२०
२. मानसिक कारक३०
३. प्रारब्ध के कारण आध्यात्मिक कारक५०
३ अ. पूर्वजों के कष्ट(३५)
३ आ. अनिष्ट शक्तियों से संबंधित कष्ट(१५)
स्रोत : वर्ष २०१४ में SSRF.org द्वारा किया गया आध्यात्मिक शोध
१. अनुवांशिक अथवा जैविक कारकों में अंडोत्सर्जन(ऑव्यूलेशन) में समस्या, अवरुद्ध गर्भाशय नलिकाएं (फैलोपियन ट्यूब्स), हॉर्मोन संबंधी असंतुलन, शुक्राणु विकार इत्यादि हो सकते हैं ।
२. मानसिक स्थितियां, जैसे निराशा तथा तनाव, यौन इच्छा को घटा सकती हैं तथा हॉर्मोन (शरीर द्वारा निर्मित रसायन)के स्तर में परिवर्तन ला सकती हैं ।
३. आध्यात्मिक कारक :
अ. बंध्यापन आध्यात्मिक कारण से है, इसका एक संभाव्य लक्षण है, रोगी का निदान करने पर चिकित्सकों द्वारा अकारण बंध्यापन की समस्या बताया जाना अथवा उनका गर्भधारण में बाधा का कारण न ढूंढ पाना ।
आ. पितृदोष के कारण गर्भधारण करने में कठिनाई हो, तो भगवान दत्तात्रेय के नामजप से इस कष्ट से मुक्ति मिल सकती है ।
इ. जिन परिवारों में बच्चे नहीं होते, वे अध्यात्म के छः सिद्धांतों के अनुसार साधना कर अपने प्रारब्ध  की तीव्रता को न्यून कर सकते हैं ।
ई. सर्वोत्तम उपाय करने पर भी यदि दंपति गर्भधारण न कर पाते हों, तो आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इसे र्इश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार कर लेना ही श्रेयस्कर होगा और अपने जीवनकाल में आध्यात्मिक उन्नति के प्रयासों पर केंद्रित करना चाहिए ।
उ. तथापि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हम यह समझ सकते हैं, कि बच्चे न होना ही हमारा प्रारब्ध है तथा हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए । जो दंपति बच्चा गोद लेना चाहते हैं उनके लिए आगे के खंडों में हमने कुछ दृष्टिकोण भी दिए हैं ।
पितृदोष , प्रारब्ध  तथा भूतावेश एवं आध्यात्मिक समस्याओं से मुक्ति पाने की जानकारी संबंधी खंड SSRF के जालस्थल (वेबसाईट) पर उपलब्ध हैं ।

5. बच्चा गोद लेने का बच्चे तथा गोद लेनेवाले परिवार पर होनेवाला आध्यात्मिक प्रभाव

          वर्तमान समय में, लगभग हम सभी किसी न किसी रूप में पितृदोष (मृत पूर्वजों की आत्माओं द्वारा दिया जानेवाला कष्ट) अनुभव करते ही हैं । जिन परिवारों में बच्चे नहीं हो सकते, प्रायः उन्हें मध्यम से तीव्र स्वरूप का पितृदोष होता है । अधिकतर बंध्यापन तथा गर्भधारण न कर पाने का मूल कारण यही होता है । तीव्र पितृदोष से युक्त कोई परिवार जब एक बच्चा गोद लेता है, तो उस परिवार के तीव्र पितृदोष को वह बच्चा स्वत: ही अपना लेता है । वास्तव में आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह बच्चे के लिए हानिकारक है । इसके साथ ही, बच्चा कर्म बंधन द्वारा अपने जैविक परिवार के मृत पूर्वजों की आत्मा से भी जुडा होता है । इस प्रकार बच्चा अनजाने में ही दोनों परिवारों के मृत पूर्वजों के दो समूहों का वारिस बनता है । गोद लेने से नए परिवार के साथ नया लेन-देन भी निर्मित होता है, जिससे संबंधित व्यक्ति के जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसे रहने की संभावना बढ जाती है ।
        इसी के साथ यदि गोद लिया बच्चा भूत अथवा उच्च स्तर की अनिष्ट शक्ति से प्रभावित अथवा आविष्ट हो, तो इसका गोद लेनेवाले परिवार पर नकारात्मक प्रभाव होता है । इससे परिवार को अनुभव होनेवाले कष्ट में वृद्धि हो सकती है । यद्यपि शारीरिक पीडा चिकित्सकीय उपचार से ठीक हो सकती है, तथापि तीव्र आध्यात्मिक कष्ट केवल तीव्र साधना से ही दूर हो सकते हैं । अन्यथा ये कष्ट अगले जन्म तक भी जारी रहते हैं । यदि हम इन दृष्टिकोणों पर ध्यान दें, तो बच्चा गोद लेने के विषय पर पुनर्विचार कर सकते हैं ।

5.१ अपना बच्चा गोद देने का उद्देश्य

       माता-पिता द्वारा अपना बच्चा गोद देने के अनेक कारण हो सकते हैं । उदाहरणार्थ, कुछ लोग इस विचार से अपना बच्चा गोद देते हैं, कि उनके बच्चे को कम से कम आर्थिक रूप से स्थायी भविष्य तो मिलेगा । यह  सत्य है कि बच्चा गोद लेनेवाला परिवार संभ्रांत हो, इसकी संभावना होती है; परंतु इसके विपरीत, यदि गोद लेनेवाला परिवार अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित हो, तो बच्चे के वास्तविक माता-पिता अपने बच्चे को और अधिक आध्यात्मिक कष्ट की ओर धकेल रहे होते हैं । इसके स्थान पर यदि माता-पिता बच्चे को अपने साथ ही रखकर उसे अपने साथ साधना करने के लिए प्रेरित करें तो र्इश्वर उनकी आर्थिक स्थिति परिवर्तित कर दें, ऐसी संभावना है ।

5.२ बच्चा गोद लेने के निर्णय का उद्देश्य

       गोद लेनेवाले दंपति के बच्चा गोद लेने के निर्णय का उद्देश्य भिन्न हो सकते हैं । गोद लेना भले ही हमें अपनी इच्छा पर आधारित कृत्य प्रतीत होता हो; पर वास्तविकता यह है, कि हमारे ६५ प्रतिशत निर्णय केवल आध्यात्मिक कारणों  से लिए जाते हैं । कभी कभी बच्चा गोद लेना हमें एक पुण्य कर्म प्रतीत होता है; परंतु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह हमें सांसारिक जीवन में और अधिक लिप्त करता है । जो हमें हमारे जीवन के मूल उद्देश्य आध्यात्मिक प्रगति से विमुख कर सकता है ।

6. गोद लेने की प्रथा का सारांश तथा लोगों को इसका चयन करना चाहिए अथवा नहीं

जो परिवार गोद लेने की इच्छा रखते हैं :

        इस पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में हमारा जन्म, र्इश्वर द्वारा दिया आशीर्वाद है; क्योंकि पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा लोक है, जहां हम जीवन का मूल उद्देश्य, आध्यात्मिक प्रगति करने हेतु सर्वाधिक प्रयास कर सकते हैं । इसलिए पूरे प्रयत्न करने पर भी यदि दंपति को बच्चा न हो रहा हो, तो शुद्ध आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, इसे अपना प्रारब्ध मानकर स्वीकार लेना ही श्रेयस्कर होगा । उन्हें आध्यात्मिक रूप से उन्नति करने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । इससे गोद लिए बच्चे के साथ कोई भी लेन-देन निर्मित नहीं होगा ।
यदि यह संभव नहीं है और उन्हें ऐसा लगे कि बच्चा होना ही चाहिए, तब भी नियमित साधना कर वे अपनी तथा गोद लिए बच्चे की सहायता कर सकते हैं । परिणामस्वरूप, गोद लेने से किसी भी कारण से उत्पन्न हो सकनेवाले कष्ट को न्यून किया जा सकता है ।

जो परिवार अपना बच्चा गोद देने की इच्छा रखते हैं :

       बच्चे का आध्यात्मिक स्वास्थ्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है तथा प्राथमिकता में भी आर्थिक संपन्नता से आगे है । यदि हम आध्यात्मिक हैं तथा आध्यात्मिक उन्नति हेतु समर्पित हैं, तब इस भौतिक संसार में जीवनयापन हेतु आवश्यक सब कुछ र्इश्वर हमें देते हैं । बच्चे का जन्म भी, एक आशीर्वाद ही है तथा किसी को भी देने योग्य सर्वोत्तम भेंट है, उन्हें उनकी साधना के लिए समर्थन देना तथा सहायता करना; पर साधना अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार  होनी चाहिए न कि सांप्रदायिक साधना ।
        अंतत: जीवन के बडे निर्णय जैसे बच्चा गोद लेना अथवा देना प्राय: प्रारब्धानुसार तथा लेन-देन के हिसाब के कारण होता है । साधना हमें सदैव उच्च मार्ग चुनने की शक्ति प्रदान करती है, जो परिवार की आध्यात्मिक उन्नति हेतु सर्वाधिक योग्य होती है एवं इस प्रकार तीव्र नकारात्मक प्रारब्ध से मुक्ति मिल सकती है ।
गोद लेने-देने के नियम
- 1956 में हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट बना। गोद संबंधी नियम और प्रक्रिया इसी में बताई गई है।

कानूनी जानकार मुरारी तिवारी के मुताबिक, कोई बालिग और दिमागी रूप से तंदरुस्त शख्स ही बच्चा गोद ले सकता है।
शादीशुदा कपल तो गोद ले ही सकते हैं, अगर शादीशुदा नहीं हैं तो भी बच्चा गोद ले सकते हैं।
अगर कोई पुरुष किसी बच्ची को गोद लेना चाहता है तो दोनों की उम्र में 21 साल का फर्क होना चाहिए।
यही नियम महिलाओं के लिए भी है। महिला अगर किसी लड़के को गोद ले रही है, तो उन दोनों के बीच भी 21 साल का फर्क होना जरूरी है।
अगर किसी के बेटा या पोता है, तो वह लड़का गोद नहीं ले सकता।
अगर किसी की बेटी है, पोती है या बेटी मर चुकी है, लेकिन उसकी बेटी (नातिन) है तो भी वह लड़की गोद नहीं ले सकता।
नैचरल पैरंट्स को यह हक है कि वे आपसी सहमति से अपने बच्चे को किसी और को गोद दे सकते हैं। अगर मां या बाप में से किसी एक को भी ऐतराज होगा, तो बच्चे को गोद नहीं दिया जा सकता।
उसी बच्चे को गोद दिया जा सकता है, जिसे पहले किसी और को गोद न दिया गया हो।
गोद दिए जाने के वक्त बच्चे की उम्र 15 साल से कम होनी चाहिए और वह शादीशुदा नहीं होना चाहिए।
गोद की प्रक्रिया
गोद लेने की एक रजिस्टर्ड कानूनी प्रक्रिया होती है।
गोद की प्रक्रिया पूरी करने के लिए एक समारोह का आयोजन होता है। इसके बाद दोनों पक्ष इलाके के सब-रजिस्ट्रार के सामने पेश होते हैं और फिर स्टांप पेपर पर डीड तैयार की जाती है। डीड पर बच्चा गोद देने वाले और गोद लेने वाले दोनों पैरंट्स के फोटो लगते हैं। इस पर दो गवाहों के दस्तखत होते हैं और लिखा जाता है कि बच्चे को गोद लिया जा रहा है और इसके लिए समारोह का आयोजन हो चुका है।
इसके बाद डीड पर सब-रजिस्ट्रार के दस्तखत होते हैं और इसे रजिस्टर्ड कर दिया जाता है।
अगर कोई शख्स किसी अनाथालय से बच्चा गोद लेता है तो सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में देने वाले की जगह अनाथालय का नाम लिखा जाता है।

बच्चे के कानूनी हक
जब किसी बच्चे को किसी और को गोद दिया जाता है तो बच्चे के नाम पर जो भी प्रॉपर्टी है, वह भी उसके साथ चली जाती है।
बच्चे के नाम कोई प्रॉपर्टी न हो और उसे गोद दिया जाए, तो गोद देने वाले के यहां से उसके सभी कानूनी हक खत्म हो जाते हैं और जिसने उसे गोद लिया है, वहां उसे तमाम कानूनी हक मिल जाते हैं। 

मुस्लिम दंपत्तियों को बच्चा गोद लेने की अनुमति---

गोद लेना (Adoption) एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सामान्यतः किसी बच्चे के जैविक अभिभावकों(Biological Parents) के उसके पालन-पोषण में असमर्थ होने पर उस बच्चे को किसी अन्य दंपत्ति द्वारा अपनाया जाता है और उस बच्चे को अपने दत्तक माता-पिता (Adoptive Parents) की जैविक संतान के अनुरूप ही कानूनी और सामाजिक दर्जा प्राप्त होता है। भारत में फिलहाल बच्चा गोद लेने का ऐसा कोई सर्वमान्य नियम नहीं है जो सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होता हो। हिंदू दत्तक-ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956(Hindu Adoptions and Maintenance Act, 1956) केवल हिंदू, सिख, जैन तथा बौद्ध धर्म के अनुयायियों को ही बच्चा गोद लेने की अनुमति देता है। इस अधिनियम के तहत गोद लेने वाले दंपत्ति को अपनी दत्तक संतान के कानूनी माता-पिता(Legal Parents) के रूप में मान्यता प्राप्त होती है और गोद लिए गए बच्चे को अपने दत्तक माता-पिता की जैविक संतान के समान ही उत्तराधिकार संबंधी अधिकार प्राप्त होते हैं जबकि मुस्लिम, ईसाई, यहूदी एवं पारसी जैसे अल्पसंख्यक समुदाय अपने धार्मिक ग्रंथों में वर्णित प्रावधानों पर आधारित निजी कानूनों (Personal Laws) द्वारा प्रशासित होते हैं और इन अल्पसंख्यक समुदायों के पर्सनल लॉ में बच्चा गोद लेने का प्रावधान नहीं है। हालांकि इन अल्पसंख्यक समुदायों के निःसंतान दंपत्ति गार्जियंस एंड वार्ड्स एक्ट1890′ (Guardians and Wards Act, 1890) के तहत किसी बच्चे को अपनाकर उसके संरक्षक (Guardian) की भूमिका अदा कर सकते हैं। उन्हें उस बच्चे के कानूनी माता-पिता के रूप में मान्यता नहीं प्राप्त होती तथा बच्चे के 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात संरक्षणकर्ता की उनकी भूमिका भी स्वतः समाप्त हो जाती है।
       
  • 19 फरवरी, 2014 को उच्चतम न्यायालय ने किशोर न्याय (बच्चों की देख-रेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000′[The Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2000 ]में वर्ष 2006 में किए गए संशोधनों में वर्णित प्रावधानों की व्याख्या करते हुए अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में यह व्यवस्था दी है कि किसी भी धार्मिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को बच्चा गोद लेने का अधिकार है।
  • मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सथशिवम, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई तथा न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की तीन-सदस्यीय पूर्णपीठ ने शबनम हाशमी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया तथा अन्य के मामले का निस्तारण करते हुए यह व्यवस्था दी है कि किशोर न्याय (बच्चों की देख-रेख एवं संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006’ की धारा 41 के तहत मुस्लिम पर्सनल लॉ की बंदिशों के बावजूद मुसलमानों को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार है।
  • न्यायालय के अनुसार, किशोर न्याय संशोधन अधिनियम, 2006 की धारा 41 में सभी धर्मों और जातियों के लोगों को एक-समान रूप से बच्चा गोद लेने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किशोर न्याय अधिनियम, 2000 में वर्ष 2006 में कुछ संशोधन किया गया था और उसी संशोधन के अनुसार, देश में गोद लेने की धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया (Secular Adoption Process) की शुरुआत हुई थी लेकिन इसके बाद भी इस संबंध में देश में स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण गोद लेने के मसले पर शंका बनी हुई थी।
  • खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने फैसला सुनाते हुए कहा ‘‘मुस्लिम पर्सनल लॉ, मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति को बच्चा गोद लेने से रोक नहीं सकता और व्यक्तिगत धार्मिक मान्यताओं के कारण किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता’’।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित प्रावधानों के तहत जब तक देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) नहीं बन जाती, तब तक मुस्लिम पर्सनल लॉ पर किशोर न्याय अधिनियम हावी रहेगा।
  • न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि किशोर न्याय अधिनियम गोद लेने का हक देने वाला एक सकारात्मक कानून है, कानून में कोई बाध्यता नहीं है।
  • बच्चा गोद लेने वाले माता-पिता ऐसा करने या न करने के लिए स्वतंत्र हैं, अगर वे चाहें तो अपने पर्सनल लॉ की मान्यताओं का पालन कर सकते हैं।
  • हालांकि न्यायालय ने गोद लिए जाने के बच्चे के अधिकार (Right to be Adopted) तथा माता-पिता को बच्चा गोद लेने के अधिकार (Right to Adopt) को संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार (Fundamental Right) घोषित करने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया।
  • उल्लेखनीय है उच्चतम न्यायालय ने यह ऐतिहासिक निर्णय समाज सेविका शबनम हाशमी द्वारा वर्ष 2005 में दायर की गई एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए दिया है।
  • शबनम को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत गोद लेने की अनुमति नहीं दी गई थी जिसके बाद उन्होंने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
  • उच्चतम न्यायालय ने किशोर न्याय अधिनियम की जिस धारा 41 की व्याख्या करते हुए यह निर्णय दिया है, उसके अंतर्गत ऐसे बच्चों, जो अनाथ, उपेक्षित तथा संस्थागत या गैर-संस्थागत तरीकों के जरिए दुरुपयुक्त हैं; को दत्तक-ग्रहण के माध्यम से किसी जिम्मेदार व्यक्ति को सौंपने का प्रावधान है।
  • अनेक राज्य सरकारों ने इस धारा के प्रावधानों के अनुसार नियमावली बनाई है जिसके तहत किसी बच्चे को दत्तक के रूप में सौंपा जाता है।
  • इस निमित्त ‘कारा’ (CARA : Central Adoption Resource Agency) नामक संस्था ने राष्ट्रीय स्तर पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
  • उल्लेखनीय है कि ‘कारा’ भारत सरकार के महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय है।
  • यह भारतीय बच्चों को गोद लेने संबंधी मामलों की निगरानी एवं विनियमन हेतु उत्तरदायी एक नोडल संस्था के रूप में कार्य करती है।

         यदि आप हिन्दू हैं और आपके पास आपका पुत्र है, पोता है या परपोता है तो आप किसी दूसरे लड़के को गोद नही ले सकते हैं | साथ ही गोद लेने वाले व्यक्ति और गोद लिए जाने वाले बच्चे के बीच कम से कम 21 वर्ष का अंतर होना जरूरी है | हिंदू गोद लेना और रखरखाव अधिनियम,1956 

अडॉप्शन एक्ट क्या है कानूनी प्रक्रिया


डॉप्शन को लेकर समाज की प्रचलित धारणाएं अब खत्म हो रही हैं। एंजेलिना जोली और सुष्मिता सेन जैसी सलेब्रिटीज द्वारा बच्चे गोद लिए जाने के बाद आम लोग भी इस दिशा में सोचने लगे हैं। हाल ही में फिल्ममेकर करन जौहर ने बच्चा गोद लेने की इच्छा जहिर की है। हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण कानून 1956 में बना और 21 दिसंबर 1956 को लागू हुआ। यह कानून हिंदुओं जैसे-वीराशैव, लिंगायत, ब्रह्म समाज, प्रार्थना या आर्य समाज को मानने वालों पर लागू होता है। यह बौद्ध या जैन धर्म सहित सिखों पर भी लागू होता है। इसका अर्थ है कि यह कानून उन सभी पर लागू होता है जो मुसलिम, पारसी तथा ईसाई नहीं हैं। यानी यह सिर्फ उन पर लागू नहीं होता जो किसी रीति-रिवाज, परंपरा या व्यवहार के आधार पर साबित करेंगे कि वे हिंदू नहीं हैं।
इस एक्ट के तहत वे बच्चे हिंदू माने जाएंगे जो कानूनी अथवा गैरकानूनी हैं, मगर जिनके माता-पिता हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख हैं। वे बच्चे भी हिंदू हैं जिनके माता-पिता में से कोई एक हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख है और उस बच्चे की परवरिश हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख समुदाय के धार्मिक, पारिवारिक व सामाजिक परिवेश में हुई है। ऐसे बच्चे भी हिंदू हैं, जिन्हें उनके माता-पिता ने त्याग दिया है, मगर उनका पालन-पोषण हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख परिवार में हुआ है। ऐसे लोग भी इस कानून के तहत आएंगे, जो धर्म परिवर्तन के बाद हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख बन गए हैं।
यह कानून अनुसूचित जनजाति के लोगों पर लागू नहीं होगा।
गोद लेना तभी कानूनी होगा, जब कानूनी निर्देशों के तहत होगा। ऐसा न होने पर यह गैरकानूनी होगा। इसमें गोद लेने-देने वाले का कोई अधिकार या कर्तव्य नहीं होगा।
गोद लेने की शर्ते
-जो व्यक्ति गोद ले रहा हो, वह इसके योग्य हो और उसे कानूनी अधिकार हो।
-जो व्यक्ति गोद दे रहा हो, वह कानूनन गोद देने का अधिकार रखता हो।
-जिसे गोद लिया जा रहा हो, उसे भी यह अधिकार हो कि वह गोद दिया जा सके।
-एक हिंदू किसी दूसरे हिंदू को गोद ले सकता है।
कुमार सुरसेन बनाम बिहार राज्य एआइआर 2008 पटना, 24
-गोद देने-लेने की प्रकिया तब पूरी होगी जब दोनों तरफ के लोग और समाज के लोगों के बीच विधिवत गोद लेने-देने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। यह कोई गुप्त आयोजन नहीं होगा।
एम गुरुदास बनाम रसरंजन एआइआर 2006 सुप्रीम कोर्ट 3275
-दत्तक लिए जाने वाले व्यक्ति को उसे गोद लेने वाले की संपत्ति लेने के लिए यह साबित करना होगा कि वह वास्तविक या नैसर्गिक परिवार से संपत्ति संबंधी सभी अधिकार खो चुका है।
-गोद लिए-दिए जाने वाला व्यक्ति पागल या मानसिक रूप से विक्षिप्त न हो।
गोद कौन ले सकता है
-कोई भी हिंदू पुरुष यदि स्वस्थ मस्तिष्क वाला और बालिग है तो वह बेटा या बेटी गोद ले सकता है। यदि उसकी पत्नी जीवित है तो वह पत्नी की रजामंदी से बच्चा गोद लेगा। यह रजामंदी तब आवश्यक नहीं होगी जब पत्नी ने संन्यास ले लिया हो या हिंदू धर्म का परित्याग कर दिया हो या उसे किसी कोर्ट द्वारा पागल या मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित कर दिया गया हो।
-अब वर्ष 2010 में दत्तक कानून के तहत स्त्रियों को भी पुरुषों के समान ही गोद लेने का अधिकार दे दिया गया है। अब वे भी पति की रजामंदी से बच्चा गोद ले सकती हैं (पहले ऐसा नहीं था)। यदि पति ने संन्यास ले लिया हो, धर्म परिवर्तन कर लिया हो या किसी कोर्ट से पागल घोषित कर दिया गया हो तो वह बिना पति की अनुमति के बच्चा गोद ले सकती है। यानी कोई भी स्वस्थ मस्तिष्क वाली बालिग, विवाहित-अविवाहित या तलाकशुदा स्त्री गोद ले सकती है। अगर उसके पति की मृत्यु हो चुकी हो, उसे अदालत ने पागल घोषित कर दिया हो, वह संन्यासी हो गया हो या धर्म परिवर्तन कर चुका हो तो वह बिना पति की अनुमति के भी बेटा या बेटी गोद ले सकती है। -तलाकशुदा स्त्री तथा तलाकशुदा की तरह रहने वाली स्त्री में अंतर है। यदि शारीरिक दोष के कारण स्त्री शादी के बाद से ही पति से अलग रह रही है तो वर्षो बीत जाने पर भी वह विवाहित ही कहलाएगी। यदि वह अकेले बिना पति की रजामंदी के बच्चा गोद लेती है तो यह अवैध होगा।
माता-पिता दे सकते हैं गोद
वे लोग गोद दे सकते हैं, जो बच्चे के वास्तविक या नैसर्गिक माता या पिता हैं।
वर्ष 2010 के संशोधन के अनुसार माता-पिता के जीवित होने पर दोनों में से कोई एक भी बेटा-बेटी गोद दे सकता है, लेकिन जो गोद दे रहा है, उसे पति या पत्नी से सहमति लेनी होगी।
जहां माता-पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी हो या वे संन्यास ले चुके हों या दोनों ने बच्चे को त्याग दिया हो या दोनों अदालत द्वारा पागल घोषित किए जा चुके हों, वहां बच्चे का अभिभावक अदालत की पूर्व अनुमति से बच्चे को गोद दे सकता है।
(यह संशोधन 1962 में किया गया था) अभिभावक को गोद देने की अनुमति देने से पहले अदालत जांच करेगी कि इसमें बच्चे की भलाई निहित है अथवा इस प्रक्रिया में बच्चे की रज्ामंदी भी ली गई है। यदि बच्चा इतना बडा न हो कि अपना भला-बुरा जान सके तो अदालत यह निर्णय लेगी। वह देखेगी कि गोद लेने-देने में किसी पक्ष ने संपत्ति या पैसे का लेन-देन तो नहीं किया।
नोट : इस कानून के तहत माता-पिता का अर्थ नैसर्गिक माता-पिता से है, गोद लेने वाले माता-पिता से नहीं। (संशोधन 1962)
अभिभावक कौन है
अभिभावक वह है, जो बच्चे और उसकी संपत्ति सहित उसकी देखभाल करता है। यह व्यक्ति माता-पिता की वसीयत या अदालत द्वारा नियुक्त किया जा सकता है।
किसे ले सकते हैं गोद
-जो लडका या लडकी हिंदू हो।
-पहले किसी और ने गोद न लिया हो।
-विवाहित न हो। हालांकि किसी धर्म में ऐसे रिवाजों के अनुसार वह विवाहित भी हो सकता है-जैसे जैन धर्म में।
-21 वर्ष से कम उम्र का हो। यदि किसी के रीति-रिवाज इसकी इजाजत दें तो बात अलग है, जैसे जैन धर्म में।
लेकिन एक मामले में दिगंबर जैन धर्म को मानने वाला 30 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति इस प्रथा को साबित नहीं कर पाया, इसलिए उसका गोद लिया जाना अवैध ठहराया गया।
(एआइआर 2006 मुंबई, 123)
-गोद लेने वाले माता-पिता गोद लिए जाने वाले बच्चे से कम से कम 21 वर्ष बडे हों। उनका कोई भी हिंदू बेटा, पोता या पडपोता जीवित न हो।
-यदि कोई दंपती बेटी गोद लेता है तो उसकी कोई जीवित हिंदू बेटी या पोती न हो।
-यदि गोद लेने वाला पिता है और बेटी गोद ली जानी है तो बेटी उससे कम से कम 21 वर्ष छोटी होनी चाहिए।
-यदि कोई स्त्री बेटा गोद लेती है तो वह बेटे से 21 वर्ष बडी होनी चाहिए।
-एक ही बच्चा ज्यादा व्यक्तियों द्वारा सम्मिलित रूप से गोद लिया जा सकता है।
-बच्चा गोद लेते-देते समय दोनों पक्ष के माता-पिता या अभिभावक का होना आवश्यक है। गोद देने-लेने की प्रक्रिया गुप्त तरीके से या किसी बंद कमरे में न होकर समाज के सामने समारोहपूर्वक और विधि-विधान से होनी चाहिए।
गोद लेने के बाद अधिकार
गोद लेने के बाद बच्चे को कुछ अधिकार मिलते हैं और उसके कुछ कर्तव्य भी होते हैं-
1. एक बार गोद लेने-देने की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद वह बच्चा या वे युवक-युवती अपने पिछले परिवार के किसी व्यक्ति से विवाह संबंध में नहीं बंध सकते। गोद दिए जाने के बावजूद गोद देने वाला परिवार उनका नैसर्गिक परिवार ही रहेगा।
2. यदि उक्त गोद लिए हुए बच्चे को अपने पूर्व परिवार से कोई संपत्ति प्राप्त हुई थी या उसके कुछ दायित्व या अधिकार थे तो वे गोद लेने की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद भी जारी रहेंगे।
3. लेकिन एक बार गोद ले लिए जाने के बाद वह अपने पूर्व परिवार की संपत्ति के लिए किसी अन्य को मालिक या वारिस नहीं बना सकेगा।


गोद लेने का कानून 

          कई पति-पत्नी बच्चे के लिए तरस जाते हैं . किसी करणवश अगर उन्हें बच्चा नहीं होता , तो बच्चा गोद लेने का कानून भी है . बच्चा न होने का कारण सिर्फ महिला ही नहीं होती . पति या पत्नी दोनों की किसी शारीरिक कमी के कारण यह हो सकता है . ऐसी हालत में केवल महिला को दोषी ठहराना अनुचित है .
अगर पति-पत्नी चाहें तो बच्चा गोद ले सकते हैं . इससे जुड़े कानून को ‘ Hindu Adoption और Maintenance Act 1956 ‘ कहते हैं . एक शादीसुदा दंपति इस कानून के तहत बच्चा गोद ले सकता है .
एक विधवा या तलाकशुदा औरत भी बच्चा गोद ले सकती है . यहाँ तक कि बच्चा गोद लेने के लिए लड़की का शादीशुदा होना भी जरुरी नहीं . एक बालिग लड़की या लड़का बच्चा गोद ले सकता है . कानून की निगरानी में परिवार के सदस्य बच्चा गोद दे सकतें हैं . बच्चा अनाथालय या सरकारी मान्यताप्राप्त संस्था से गोद लिया जा सकता है .
बच्चा गोद लेने और देने में लेने वाले की माली हालत देखी जाएगी . उसके क़ानूनी कागजाद बनाए जाएंगे . अदालत के जरिए बच्चा गोद लिया और दिया जाएगा .
गोद लिए बच्चे को वे सभी अधिकार मिले हैं जो माँ के पेट से जन्मे बच्चे को सहज प्राप्त होते हों .
बच्चा गोद लेने का यह कानून हिन्दू धर्म के लीगों पर लागु होता है .
ईसाई और मुसलमानों के लिए गोद लेने के कानून के तहत वे बच्चा गोद ले सकते हैं , पर वे ‘ संरक्षण ‘ के रूप में ही गोद ले सकते हैं . 21 वर्ष की आयु के बाद बच्चा आजाद हो सकता है . इस कानून को ” Guardians And Wards Act , 1890 ‘ कहते है . इसमें गोद लेने वाले पालक ही होंगे , माँ-बाप नहीं .