लीज की संपत्ति का पुत्र के नाम हस्तान्तरण कैसे हो?
समस्या-
मेरी दादी की एक दुकान इंदिरा गांधी जिला चिकित्सालय रोगी कल्याण समिति के काम्प्लेक्स के अंतर्गत है । दुकान 2000 सन में रोगी कल्याण समिति से क्रय की गई थी। किरायेदारी पर रोगी कल्याण समिति 500 रुपये किराया हर माह किरायेदारी के रूप में सभी दुकानदार से लेती है। दादी अब यह चाहती है की दुकान पापा जी के नाम से हस्तान्तरित हो जाये । समिति केअध्यक्ष कलेक्टर महोदय होते हैं और सचिव जिला अस्पताल के सर्जन होते है। दादी ने रोगी कल्याण समिति को आवेदन भी दे दिया है, जन सुनवाई में कलेक्टर ने यह बताया था कि यदि दादी दुकान पापा के नाम करना चाहती है और अन्य पुत्रों को कोई आपत्ति नहीं है तो वह कोर्ट जाने में स्वतंत्र है। लेकिन आवेदन देने के बाद समिति के बाबू काम नहीं कर रहे हैं बोलते है कि कोर्ट जाओ। इस पर हम ने उन से कहा कि दादी अभी जीवित है और जीवित अवस्था में दुकान जिसे चाहे उसे दे सकती है। दादी और पिताजी को क्या करना चाहिए।
समाधान-
आप के द्वारा प्रेषित तथ्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि दुकान का स्वामित्व रोगी कल्याण समिति का है और दुकान आप की दादी के नाम लीज पर है। लीज पर दी गयी संपत्ति को हस्तान्तरित करने के लिए मूल स्वामी की अनुमति की आवश्यकता है। दादी के नाम जो लीज डीड है उस की शर्तों पर निर्भर करता है कि दादी दुकान कैसे अपने किसी पुत्र या अन्य व्यक्ति के नाम हस्तान्तरित कर सकती है। सब से पहला काम तो यह किया जा सकता है कि दादी एक वसीयत कर के दुकान को आप के पिता के नाम वसीयत कर दे और इस वसीयत को उप पंजीयक के कार्यालय में वसीयत करा दिया जाए। इस से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि दादी के देहान्त के तुरंत बाद यह दुकान आप के पिता जी के स्वामित्व में स्वतः ही आ जाएगी। तब आप के पिताजी वसीयत की प्रमाणित प्रति रोगी कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत कर लीज का नामान्तरण उनके नाम करने का आवेदन कर सकते हैं।
विकल्प में आप यह भी कर सकते हैं कि आप उप पंजीयक कार्यालय में लीज डीड को दिखा कर यह पूछ सकते हैंं कि क्या दादी इस लीज को विक्रय या दानपत्र के माध्यम से आप के पिता जी को हस्तान्तरित कर सकती है। यदि उन्हें कोई आपत्ति न हो तो दान पत्र लिख कर उसे पंजीकृत करवा कर दादी उस दुकान को आप के पिताजी के नाम कर सकती है। पंजीकृत दानपत्र के आधार पर लीज आपके पिताजी के नाम नामांतरित करने के लिए रोगी कल्याण समिति को आवेदन किया जा सकता है। वसीयत और दान पत्र दोनों के आधार पर लीज का नामान्तरण न किए जाने पर न्यायालय के समक्ष व्यादेश जारी करने के लिए समिति के विरुद्ध वाद प्रस्तुत किया जा सकता है।
12 वर्ष के उपरान्त प्रतिकूल कब्जा हो जाने से मूल स्वामी कब्जे का वाद नहीं कर सकता।
समस्या-
हम 1978 से एक मकान में रहते हैं जो पहले खाली प्लाट था। 1976 में मेरे पापा ने उस में मकान बनाया था। उस मकान में बिजली कनेक्शन मेरे पापा के नाम से है। एक व्यक्ति स्वयं को उस जमीन का मालिक बता कर उसे खाली करने को कहता है या फिर उस की कीमत 14 लाख रुपये मांग रहा है। प्लाट का क्षेत्रफल 50X40 वर्गफुट है। हमें क्या करना चाहिए?
समाधान-
आप के पापा उक्त भूखंड पर 1976 से मकान बना कर निवास कर रहे हैं। आपके पापा और उस व्यक्ति के मध्य किसी तरह का किराया नामा भी नहीं है और कोई किराया भी अदा नहीं करते हैं। इस तरह आप के पिताजी का उक्त भूखंड पर 12 वर्ष से अधिक सय से कब्जा है. अब मूल स्वामी उस भूखंड पर कब्जे का वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता। अप के पापा का उक्त भूखंड पर 36 वर्ष से कब्जा है जो अब प्रतिकूल कब्जा Adverse Possession हो चुका है। आप के पापा का यह कब्जा प्लाट का स्वामी नहीं हटा सकता।
आप के पापा को कोई भी कानूनी कार्यवाही उस व्यक्ति के विरुद्ध नहीं करनी चाहिए और इस बात की प्रतीक्षा करनी चाहिए कि वह व्यक्ति स्वयं आप के पापा के विरुद्ध भुखंड के कब्जे के लिए कार्यवाही करे। तब उस कार्यवाही में आप के पापा प्रतिकूल कब्जे के आधार पर अपनी प्रतिरक्षा कर सकते हैं।
इस के अतिरिक्त आप के पापा को चाहिए कि उक्त भूखंड पर अपने 30 वर्षों से अधिक 36 वर्षों के कब्जे के आधार पर नगरपालिका/नगरविकास न्यास से अपने नाम पट्टा हासिल करने की कार्यवाही कर पट्टा हासिल करें।
लायसेंस समाप्त करने का नोटिस दे कर अवधि समाप्त होने पर कब्जे का दीवानी वाद प्रस्तुत करें
समस्या-
सन 1970 में मेरे पिताजी ने एक जमीन की रजिस्ट्री अपने नाम पर करवाई। उस जमीनका नामांतरण होने के बाद जमाबंदी मेरे पिताजी के नाम से कायम है। अद्यतनराजस्व रसीद भी मेरे पिताजी ने कटाया हुआ है। इस में से किसी भी कागजात परमेरे चाचा जी का नाम नहीं है। उस जमीन पर हमारे साथ हमारे चाचा जी भी मकानबनाकर वास करते हैं। मेरे पिताजी अब उन्हें इस जमीन से हटाना चाहते हैं,परन्तु मेरे चाचा जी जमीन नहीं छोड़ रहे हैं। जब कि आज मेरे चाचा जी के पासपिताजी से ज्यादा जमीन रहने के लिये उपलब्ध है। । खतियान में मेरे चाचा जी का नाम भी दर्ज हो गया है। ऐसी स्थिति में क्या करनाचाहिये?
समाधान-
आप के चाचा जी आप के पिता जी की जमीन में बने मकान में निवास करते हैं इस कारण उन का नाम खतियान में चढ़ गया है। लेकिन उस से आप के चाचा जी को उस मकान या जमीन का स्वामित्व का अधिकार नहीं मिल गया है।
वह जमीन आप के पिता जी की खरीदी हुई है इस कारण उस के तथा उस पर बने मकान के स्वामी वही हैं। आप के चाचाजी उस जमीन पर बने मकान में आप के पिताजी की अनुमति से निवास कर रहे हैं। चाचाजी की हैसियत उस मकान पर एक लायसेंसी जैसी है।
किसी भी लायसेंसी का लायसेंस नोटिस दे कर समाप्त किया जा सकता है। आप के पिताजी को चाहिए कि वे किसी वकील से नोटिस दिलवा कर लायसेंस समाप्त करने तथा जमीन व मकान खाली कर उस का कब्जा सौंपने की सूचना चाचा जी को दे दें। लायसेंस समाप्त करने की तिथि के बाद तक यदि चाचाजी जमीन व मकान खाली कर के आप के पिताजी को नहीं सौंपते हैं तो आप के पिताजी उक्त जमीन व मकान का कब्जा प्राप्त करने के लिए दीवानी वाद न्यायालय में प्रस्तुत कर सकते हैं। यही उस जमीन व मकान को प्राप्त करने का एक मात्र उपाय है।
स्वामित्व के आधार पर संपत्ति के कब्जे का वाद प्रस्तुत करें।
समस्या-
मेरी दादी ने 20 दिसम्बर 1994 को मकान का हिबानामा 113 गज का मेरे नाम और 57 गज मेरे पिताजी के नाम किया था। पिताजी ने 57 गज की रजिस्ट्री मेरी बहिन के नाम 2 फरवरी 1999 को करवा दी। अब मेरा एक भाई मेरे घर के ऊपर वाले हिस्से पर कब्जा कर के बैठा है और खाली नहीं कर रहा है। वह मुझ से झगड़ा करता है। मैं ने 19 जनवरी 2012 को पुलिस में लिखित शिकायत की है। वह घर में हिस्सा मांगता है। मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
आप ने जो विवरण दिया है उस से पता लगता है कि मकान आप के स्वामित्व का है और आप का भाई बहुत समय से मकान के ऊपर वाले हिस्से में रह रहा है। उसे रहते हुए कम से कम छह माह से अधिक तो हो ही गए हैं। ऐसी स्थिति में उस से किसी संक्षिप्त कानूनी कार्यवाही के माध्यम से कब्जा लेना संभव नहीं है।
निश्चित रूप से आप का भाई उक्त मकान में किसी न किसी की अनुमति से ही आ कर रहने लगा होगा। इस तरह वह एक अनुमति के अंतर्गत निवास कर रहा है। वह किसी की भी अनुमति से रह रहा हो। लेकिन आज आप उक्त संपत्ति के स्वामी हैं और आप का भाई उक्त संपत्ति में आप की अनुमति के बिना नहीं रह सकता। आप के भाई की वर्तमान स्थिति जो भी है यह कहा जा सकता है कि वह किसी अनुज्ञप्ति (लायसेंस) के अधीन वहाँ निवास कर रहा है। आप को चाहिए कि आप एक कानूनी नोटिस दे कर उस की उस की अनुज्ञप्ति को निरस्त करें और उसे कहें कि वह मकान खाली कर के उस का कब्जा आप को सौंप दे। अन्यथा आप कब्जा प्राप्त करने के लिए दीवानी वाद दाखिल करेंगे।
इस नोटिस की अवधि समाप्त होने पर आप संपत्ति के स्वामी होने और अनुज्ञप्ति के निरस्त हो जाने के आधार पर संपत्ति का कब्जा प्राप्त करने का दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। इस वाद के लिए आप को जिस संपत्ति पर आप का भाई कब्जा कर के बैठा है उस के बाजार मूल्य पर न्यायालय शुल्क अदा करनी होगी। यह न्यायालय शुल्क उक्त संपत्ति के बाजार मूल्य की 7.5 प्रतिशत के लगभग हो सकती है।
स्थाई संपत्ति पर विपरीत कब्जा हो जाने की तिथि से 12 वर्ष पूर्ण होने तक ही कब्जे का वाद किया जा सकता है
समस्या-
मेरे पैतृक घर के पीछे 8फीट चौडा एवम 25 फीट लम्बा एक रास्ता है जिसको कि मेरे बाबाजी ने यहाँ के जमींदार से 1966 में खरीदा था। उस रास्ते के बिल्कुल आगे के 10 फीट की जगह पर एक दबंग टाईप के व्यक्ति ने करीब 11 साल से कब्जा किया हुआ है। वो वहाँ से कब्जा नहीं हटाना चाहता है एवम् मारपीट को तैयार हो जाता है। मेरे पास सिर्फ बाबा के नाम की वो रसीद है जो उन्हें जमींदार ने रास्ता खरीदने पर 1966 में दी थीl उचित सलाह दें।
समाधान –
कोई भी भूमि स्थावर संपत्ति होती है। कोई भी स्थावर संपत्ति यदि उस का मूल्य 100 रुपए या उस से अधिक का हो तो उसे केवल पंजीकृत विलेख के माध्यम से ही स्थानान्तरित किया जा सकता है। यदि उस रास्ते की खरीद कीमत 100 रुपया या अधिक हुई तो यह रसीद रास्ते के हस्तान्तरण का सबूत नहीं बन सकती। यदि रास्ते की कीमत 100 रुपए से कम की थी तो उसे संपत्ति के हस्तान्तरण के सबूत के बतौर न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है।
दबंग पड़ौसी को उक्त रास्ते की भूमि पर कब्जा किए यदि 12 वर्ष नहीं हुए हैं तो आप का कब्जा समाप्त होने और उस का कब्जा होने की तिथि से 12 वर्ष पूर्ण होने के पूर्व आप कब्जे के लिए दीवानी वाद दीवानी न्यायालय में दर्ज करावें। अन्यथा उस व्यक्ति का कब्जा हुए 12 वर्ष पूर्ण हो जाने पर उस व्यक्ति से कब्जा किसी भी भाँति वापस प्राप्त करना असंभव हो जाएगा। मियाद अधिनियम के अन्तर्गत कब्जा वापसी के लिए दीवानी दावा कब्जा प्राप्त करने की तिथि से 12 वर्ष की अवधि तक ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
विपरीत कब्जे के आधार पर आप बचाव कर सकते हैं।
समस्या –
मेरे दादा के भाई ने अपने प्लाट जो की उनको सरकार से पट्टे पर मिला था के एक हिस्से में मेरे दादा को घर बना के दिया और बाकी हिस्से में खुद रहते थे। हमें वहाँ रहते हुए 40 साल का समय हो गया है। गृहकर दादा के भाई के नाम से आता रहा है। प्लाट का पट्टा भी उन्ही के नाम से है। पट्टा 1956 में 99 वर्ष के लिए सरकार ने दिया था, जो की 33 साल की 3 किश्तों में था। दादा के भाई के स्वर्गवास के बाद 2011 में उनकी पत्नी ने उस घर को सरकार की फ्री-होल्ड नीति अनुसार फ्री-होल्ड कराने का आवेदन किया है। मुझे डर है कि कहीं फ्री-होल्ड करने के बाद वह मुझे घर से निकलने का आदेश न दे दे। मेरे नाम सिर्फ बिजली और पानी का बिल आता है, वह भी मेरे हिस्से का। नगर पालिका में एक बार मेरे पिता जी ने अपने नाम से गृहकर लगवाया था जो कि मेरे दादा के भाई के द्वारा आपत्ति करने पर कट गया था। अभी पूरा गृहकर दादा के भाई की पत्नी के नाम से आता है। मैंने उनके द्वारा किये गए फ्री-होल्ड के आवेदन पर अपनी आपत्ति डीएम को लिखित रूप में दर्ज करा दी है एवं स्वयं भी अपनी माताजी के नाम से फ्री-होल्ड के लिए आवेदन कर दिया है। मार्गदर्शन करें कि मैं क्या करूँ? क्या मुझे कोर्ट में उनके फ्री-होल्ड के विरुद्ध स्टे के लिए आवेदन करना चाहिए? अगर वे मुझे मकान खाली करने का नोटिस देते हैं और कोर्ट जाते हैं तो उस स्थिति में क्या होगा?
समाधान-
भूखंड आप के दादा के भाई के नाम पट्टे पर है। दादा के भाई ने उसी प्लाट पर आप को मकान बना कर दिया है जिस में 40 वर्ष से आप रह रहे हैं। इन चालीस वर्षों में आप के रहने पर किसी तरह की कोई आपत्ति किसी ने नहीं की है और आप के हिस्से के नल बिजली के कनेक्शन आप के नाम से हैं तथा बिलों का भुगतान आप करते हैं। इस तरह आप का उक्त संपत्ति पर विपरीत कब्जा (adverse possession) हो चुका है। वे आप से कब्जा पुनः प्राप्त नहीं कर सकते। यदि वे कब्जा प्राप्त करने के लिए कोई कानूनी कार्यवाही करते हैं तो विपरीत कब्जे के आधार पर खारिज हो सकती है।
आप ने पूरे भूखंड को उन के नाम फ्री-होल्ड पर करने की आपत्ति सही ही की है। यदि किसी भी तरह से पट्टेदार से भूमि का कब्जा किसी अन्य को हस्तांतरित हो गया है तो फिर पट्टेदार को पूरे भूखंड का फ्री-होल्ड स्वामी नहीं बनाया जा सकता। इस तरह आप ने अपने कब्जे के भूखंड के हिस्से को आप की माता जी के नाम करने का आवेदन भी ठीक ही किया है। इस के लिए आप को न्यायालय जाने की आवश्यकता नहीं है। पहले डीएम को अपना निर्णय देने दो। यदि आप का फ्री-होल्ड करने का आवेदन निरस्त होता है या आप के दादा की पत्नी का आवेदन पूरे भूखंड के लिए स्वीकार किया जाता है तो उन आदेशों को सक्षम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और तब उपयुक्त अस्थाई निषेधाज्ञा के लिए आवेदन कर के स्थगन तथा अस्थाई निषेधाज्ञा भी प्राप्त की जा सकती है। बस आप अपने हिस्से के मकान पर कब्जा बनाए रखें।
प्रतिकूल आधिपत्य बचाव का सिद्धान्त है।
समस्या-
प्रतिकूल आधिपत्य Adverse possession के मामले में क्या दस्तावेज आवश्यक हैं?मेरेपास एक प्रॉपर्टी है जिस में पिछले 50 वर्षों से विद्यालय संचालित है।वास्तविक रूप से जो मकान मालिक थे उनकी मृत्यु हो चुकी है और उनकी कोईसंतान या नजदीकी रिश्तेदार नहीं है। 1998 तक हमने किराया दिया उसके बादसे उनकी मृत्यु उपरांत किराया बंद हो गया। नगर पालिका दस्तावेजों में हमटैक्स पेयर हैँ, टैक्स आदि जिम्मेदारी हम पूरी कर रहे हैँ।कृपया बताइये किहम किस तरह मकान मालिक की पूर्ण हैसियत हासिल कर सकते हैँ?
समाधान-
प्रतिकूल आधिपत्य Adverse possession का सिद्धान्त बचाव का सिद्धान्त है। यदि आप का किसी स्थाई संपत्ति पर आधिपत्य है तो वह आधिपत्य वैधानिक रीति से अर्थात कानूनी कार्यवाही के बिना हटाया नहीं जा सकता। उदाहरण के रूप में जिस संपत्ति पर आप का आधिपत्य है उसे किसी न्यायालय की डिक्री या आदेश से ही हटाया जा सकता है। इस के लिए उस के आधिपत्य का दावा करने वाले व्यक्ति को न्यायालय की शरण लेनी होगी।
किसी भी स्थावर संपत्ति का आधिपत्य प्राप्त करने के दो ही वैधानिक तरीके हैं। यदि संपत्ति पर किसी का आधिपत्य जबरन छीन लिया गया हो तो छीने जाने से पहले जिस व्यक्ति का आधिपत्य था वह इस आधिपत्य छीने जाने से 60 दिनों की अवधि में धारा 145 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत परिवाद प्रस्तुत कर सकता है तब न्यायालय सुनवाई कर के जिस का भी आधिपत्य पहले साबित हो जाता है उसे दिला देता है।
दूसरा मार्ग यह है कि आधिपत्य का दावा करने वाला व्यक्ति आधिपत्य प्राप्त करने का दावा करे। इस तरह का दावा प्रतिकूल आधिपत्य होने के 12 वर्ष की अवधि के उपरान्त नहीं किया जा सकता। यदि कोई दावा भी करेगा तो वह अवधि अधिनियम के अनुरूप न होने से निरस्त कर दिया जाएगा।
इस का सीधा अर्थ यह है कि प्रतिकूल आधिपत्य होने के आधार पर आप खुद कोई दावा नहीं कर सकते।
आप के मामले में आप 1998 तक तो किराएदार रहे हैं तब आप का आधिपत्य एक किराएदार की हैसियत से था। लेकिन उस के बाद से आप का प्रतिकूल आधिपत्य हो गया। आप के इस प्रतिकूल आधिपत्य को 16 वर्ष हो चुके हैं। इस कारण कोई व्यक्ति तो इस संपत्ति का कब्जा प्राप्त नहीं कर सकता।
लेकिन यदि किसी संपत्ति का कोई दावेदार नहीं होता तो वह संपत्ति हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा -29 के अन्तर्गत सरकार में निहीत हो जाती है। आप के मामले में यह संपत्ति कानून के प्रभाव से सरकार में निहीत हो चुकी है और सरकार यदि अपनी संपत्ति पर आधिपत्य चाहती है तो वह प्रतिकूल आधिपत्य होने से 30 वर्षो के अन्तर्गत आप के विरुद्ध दावा कर सकती है।
आज की तिथि में उक्त संपत्ति का स्वामित्व राज्य सरकार का है और वह 1998 से तीस वर्षों की अवधि पूर्ण होने तक अर्थात 2028 तक उक्त संपत्ति का आधिपत्य प्राप्त करने का दावा कर सकती है। इस कारण आप के लिए उपाय यही है कि आप 2028 तक प्रतीक्षा करें। उस के बाद कोई कार्यवाही करें। एक अन्य उपया यह है कि राज्य सरकार इस तरह की संपत्तियों को कब्जेदारों को पट्टे पर देने के लिए योजनाएँ निकालती है। जब भी राज्य सरकार की इस तरह की कोई योजना आए आप योजना के अनुसार आवेदन कर के अपने या अपनी संस्था के नाम से उक्त संपत्ति का पट्टा राज्य सरकार से हासिल कर लें।
कब्जे के दावे के लिए अवधि समाप्त हो जाने पर सफलता की संभावना नहीं के समान है।
समस्या-
हम दो भाई बहन हैं पिताजी रिटायर्ड फौजी थे। उन की हत्या 1981 में हो गई थी। माँ ने 1985 में रिमेरीज कर ली है। हमारे चाचा, ताऊ, बुआ कोई नहीं है। पिताजी की हत्या के समय मेरी ऊमर 5 वर्ष और बहिन 2 वर्ष की थी। पक्का मकान पट्टा था व आधा बीधा जमीन 1971 में खरीदी गयी थी। केवल स्टाम्प पेपर पर और 55 पेनतरा जमीन थी वो जमीन मैं ने और मेरी माँ ने मेरे बालिग होने के बाद 45 बीधा बेच दी, मकान नहीं बेचा था। उसका पट्टा हमारे पास है। मकान दादाजी ने बनवाया था। पिताजी की हत्या के 4 दिन बाद से लेकर आज तक हम उस गाव में 1 रात भी नहीं गये। अभी मैं उस गाँव में गया था 2 साल पहले। हमें मालुम हुआ कि 15 बीधा जमीन व घर-मकान हमारा है। लेकिन जिन्होनें हमारी जमीन खरीदी थी। उन के पास ही मकान और वो 15 बीघा जमीन है। वो दबंग है। मुझे अभी पापाजी की अस्थिया भी विसर्जित करनी हैं। बहिन का नाम जमीन में कहीं पर भी दर्ज नहीं है। हम ने जो जमीन बेच दी उस के लिए बहिन हमारे ऊपर वाद दायर कर सकती है क्या? उस को वो जमीन मिलेगी क्या? हमें वो मकान व आधा बीधा जमीन वापस मिल सकती है? क्या हमारी माँ की पेशंन मिल सकती है? जो 15 बीघा जमीन हमारी होगी तो कैसे होगी। सुझाव दें क्या मैं अभी पापाजी की अस्थियां विसर्जित कर सकता हूँ?
समाधान-
आप के पिताजी की हत्या 1981 में हो गई। तब आप 5 वर्ष के थे तथा बहिन 2 वर्ष की थी। अर्थात आप 1994 में तथा बहिन 1997 में बालिग हो गए। आप को बालिग हुए 20 वर्ष हो चुके हैं तथा आप की बहिन को भी 17 वर्ष बालिग हुए हो चुके हैं। बालिग होने के बाद आप ने व आप की माँ ने कब जमीन बेची है यह आप ने नहीं बताया है। यदि आप ने अपनी जमीन बालिग होने के 3-4 वर्ष बाद भी बेची हो तो भी उस बात को 15 वर्ष से अधिक हो चुका है। तभी से आप का घर व 15 बीघा जमीन आप से जमीन खरीदने वाले दबंग के पास है।
अब आप को मकान व जमीन जो आप के नाम है उसे वापस लेने के लिए उसी दबंग के विरुद्ध कब्जा प्राप्त करने का वाद प्रस्तुत करना होगा। जब कि कब्जे के वाद के लिए अधिकतम समय सीमा 12 वर्ष है। यदि आप कोई वाद न्यायालय में प्रस्तुत करेंगे तो वह समय सीमा में प्रस्तुत न किए जाने के कारण निरस्त हो सकता है। जिस के विरुद्ध आप वाद प्रस्तुत करें वह अपनी प्रतिरक्षा में यह कह सकता है कि वह घर व जमीन उस के पास तभी से कब्जे में है जब से आप ने उसे शेष जमीन विक्रय की थी। इस तरह उस जमीन पर उस का प्रतिकूल कब्जा हो चुका है। इस तरह आप के द्वारा कोई भी कानूनी कार्यवाही सफल हो सकेगी इस में संदेह है। फिर भी चूंकि जमीन आप के नाम है और मकान का पट्टा भी है वैसी स्थिति में आप वाद दाखिल कर सकते हैं। लेकिन इस के लिए तमाम दस्तावेज किसी अच्छे वकील को दिखा कर उस से राय कर लें। जब तक सफलता की संभावना नहीं हो यह सब करना समय और धन का अपव्यय होगा।
यदि जमीन व मकान आप के कब्जे में होते तो बहिन आप के विरुद्ध कार्यवाही कर सकती थी। लेकिन दोनों ही तीसरे पक्षकार के पास हैं तो बहिन की भी वही स्थिति होगी जो आप की है।
आप के पिताजी की अस्थियाँ कहाँ रखी हैं यह आपने नहीं बताया। यदि आप उन अस्थियों को प्राप्त कर सकते हैं तो उन्हें विसर्जित करने में कोई बाधा नहीं है।
आप गाँव में रहते नहीं है। वह जमीन व मकान आप के काम का नहीं। आप उसे प्राप्त कर के भी बेचेंगे ही। अच्छा तो यह है कि जमीन व मकान जिस के कब्जे में है उस से सीधे बात करें कि जमीन व मकान आप के काम के नहीं हैं आप को उन्हें बेचना ही पड़ेगा। यदि वही खरीद ले तो ठीक है। उस व्यक्ति के पास उन दोनों का कब्जा तो है लेकिन वह उन का स्वामी तभी बन सकेगा जब कि वह उन्हें आप से खरीद ले। आप उसी से बात कर के उसी से सौदा कर लें तो आप को जमीन व मकान की आधी पौनी कीमत मिल सकती है। यह आप के लिए लाभ का सौदा होगा। यह कर के देख सकते हैं।
बड़े भाई के नाम से खरीदा गया मकान खुद के नाम से कैसे होगा?
समस्या-
मेरी माताजी द्वारा एक मकान वर्ष 1970 में इन्दौर में लिया गया था। चूंकि उस समय संपत्ति घर के बडों के नाम से ली जाती थी। इसलिए मेरे पापा द्वारा उक्त मकान अपने बडे भाई के नाम से रजिस्टर कराया गया था। बडे पापा जबलपुर में रहते हैं, वहीं उनकी नौकरी भी पूरी हुई है। घर खरीदने के सारे धन की व्यवस्था मेरे पापा द्वारा ही की गई थी। वह मकान खरीदने के बाद से ही हमारे कब्जे में है। इस मकान के बारे में मेरे बडे पापा को कोई ज्ञान नहीं है। मैं यह जानना चाहती हूँ कि क्या बड़े पापा की जानकारी में लाए बिना, कब्जे के आधार पर/ जल एवं विद्युत कनेक्शन के अपने नाम होने / नगर पालिका में जमा कराये जा रहे संपत्ति कर की रसीदों के आधार पर मकान को अपने नाम कराया जा सकता है अथवा नहीं। क्या कोर्ट के द्वारा उक्त मकान को हासिल किया जा सकता है?
समाधान-
आप का यह तर्क बेमानी है कि 1970 में संपत्ति बड़ों के नाम से खरीदी जाती थी। केवल संयुक्त परिवार होने पर ही संपत्ति परिवार के मुखिया के नाम से खरीदी जा सकती थी। संपत्ति भी परिवार की संयुक्त संपत्ति होती थी। आप का यह तर्क यदि तथ्यों के आधार पर साबित भी कर दिया जाए तो भी संपत्ति संयुक्त परिवार की मानी जाएगी। ऐसे संयुक्त परिवार में आप के दादा के सभी पुरुष वंशज और उन के परिवार सम्मिलित हो जाएंगे। मकान फिर भी आप की माता जी को प्राप्त नहीं हो सकेगा।
आप ने यह नहीं बताया कि आप के पिताजी मौजूद हैं अथवा नहीं। क्यों कि इस मामले में यह तथ्य बहुत महत्व रखता है। आप ने यह नहीं बताया कि आप की माता जी क्यों चाहती हैं कि मकान अब उन के नाम हो जाए? मकान पर उन का अबाधित कब्जा वर्ष 1970 से चला आ रहा है। उस में रह रही हैं। मकान के टैक्स की रसीदें उन के नाम से हैं और नल-बिजली के कनेक्शन भी उन्हीं के नाम से हैं तो 1970 से उन का कब्जा तो है ही। बात का कोई भी दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है कि कब्जा आप के पिता जी और माता जी के पास कैसे आया? ऐसी स्थिति में आप की माता जी को क्या आवश्यकता है कि वे इसे अपने नाम कराना चाहती हैं? वे उस का उपभोग करती रहें। यदि कभी आप के पिता के बड़े भाई या उन के उत्तराधिकारी आपत्ति करें और कोई कानूनी कार्यवाही करें तो यह तर्क रखा जा सकता है कि यह मकान वास्तव में आप के माता पिता ने अपनी स्वयं की आय से अपने लिए बड़े भाई के नाम से खरीदा था। इस तथ्य से बड़े भाई भी परिचित थे और उन्हों ने इसीलिए आप के कब्जे में आज तक कोई दखल नहीं किया। वैसे भी बयालीस वर्ष से आप की माताजी के कब्जे में होने से इस पर आप की माता जी का प्रतिकूल कब्जा (Adverse Possession) हो चुका है। तर्कों के आधार पर कोई भी आप की माता जी का कब्जा उन से नहीं ले सकता।
हाँ, यदि आप की माता जी चाहें और आप के पिता के बड़े भाई मान जाएँ तो उन से आप की माता जी के नाम वसीयत लिखवा सकती हैं जिस में उन की यह स्वीकारोक्ति हो कि उक्त मकान आप के पिता ने ही अपनी स्वयं की आय से खरीदा था आप के पिता का ही था और अब आप के पिता के उत्तराधिकारियों का ही है। केवल बड़े भाई को सम्मान प्रदान करने मात्र के लिए उन के नाम से खरीदा गया था। इसी कारण से अब वे उस मकान की वसीयत आप की माता जी के नाम कर रहे हैं। इस के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय नहीं है। फिर भी आप को समस्त दस्तावेज दिखा कर किसी अच्छे और विश्वसनीय स्थानीय वकील से इस मामले में विधिक राय प्राप्त कर लेनी चाहिए।
पिताजी भाइयों को संपत्ति दे कर मुझे घर से बेदखल कर रहे हैं …
समस्या-
हम तीन भाई हैं। दो छोटे भाई केन्द्रीय सरकार की नौकरी में है और मैं मजदूरी करता हूँ। दोनों भाई पिताजी से सारी संपत्ति अपने और अपनी पत्नियों के नाम लिखा चुके हैं और मुझे घर से बेघर कर रहे हैं। मैं क्या कर सकता हूँ?
समाधान-
यदि आप के पिताजी की संपत्ति उन की स्वयं की आय से अर्जित की हुई है तो उस पर आप के पिताजी का पूरा अधिकार है। उस संपत्ति को वे स्वयं बेच सकते हैं, किसी को भी दान कर सकते हैं या किसी के नाम हस्तांतरित कर सकते हैं। वे उस संपत्ति को वसीयत भी कर सकते हैं। उन की स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति किसे प्राप्त होगी यह आप के पिताजी की इच्छा पर निर्भर करता है। यदि आप अपने पिताजी से संपत्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें प्रसन्न कर के उन की इच्छा से ही प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन यदि संपत्ति आप के पिता को उन के पिता, दादा या परदादा से प्राप्त हुई है तो वह पुश्तैनी संपत्ति है। उस में आप का जन्म से हिस्सा है आप भी उस में एक भागीदार हैं। वैसी स्थिति में आप अपने पिता से कह सकते हैं कि इस पुश्तैनी संपत्ति में मेरा भी हिस्सा है मुझे दिया जाए। यदि वे देने को तैयार नहीं हैं तो आप विभाजन की मांग कर सकते हैं विभाजन के लिए भी तैयार न होने पर आप विभाजन के लिए न्यायालय में दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। लेकिन वाद प्रस्तुत करने के पहले आप को किसी स्थानीय दीवानी वकील से सलाह कर के उस के माध्यम से ही अपना वाद न्यायालय में दाखिल करना चाहिए।
पिता संपत्ति के विक्रय पर क्या कोई पुत्र आपत्ति कर सकता है?
समस्या-
मैं ने जिस व्यक्ति से खेत खरीदा है उस का पुत्र कह रहा है कि सौदा निरस्त करो नहीं तो वह अदालत में मुकदमा कर देगा। लेन-देने हो चुका है और विक्रय पत्र का पंजीयन भी हो चुका है। क्या मेरा कोई नुकसान हो सकता
समाधान-
जिस व्यक्ति के नाम वह जमीन है जिसे आप ने खरीदा है तो दूसरा कोई भी व्यक्ति चाहे वह विक्रेता का पुत्र हो या अन्य कोई निकट संबंधी उसे विक्रय पर आपत्ति उठाने का कोई अधिकार नहीं है। पहले यह आपत्ति उठायी जाती थी कि जमीन पुश्तैनी है और उस में पुत्रों का भी अधिकार/हिस्सा है। लेकिन पुश्तैनी संपत्ति में केवल उन्हीं पुत्रों को हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार है जिन का जन्म 17 जून, 1956 के पूर्व हुआ है।
दिनांक 17.06.1956 को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी हो गया था। इस अधिनियम को प्राचीन प्रचलित हिन्दू विधि पर अधिप्रभावी घोषित किया गया है। इस अधिनियम की धारा-8 के अनुसार उत्तराधिकार केवल पुत्र को ही प्राप्त होता है न कि पुत्र के पुत्र को। इस तरह किसी भी पुत्र को पुश्तैनी संपत्ति में उस के पिता के जीवित रहते कोई अधिकार या हिस्सा प्राप्त नहीं होता।
विक्रेता का पुत्र आप को मात्र धमकी दे रहा है। आप उस की परवाह नहीं करें। यदि वह कोई कानूनी कार्यवाही भी करेगा तो वह चलने लायक नहीं होगी। ऐसी कार्यवाही में आप को प्रतिवाद तो करना होगा, किन्तु आप को कोई हानि नहीं होगी।
वसीयत में प्राप्त संपत्ति व्यक्तिगत है, उस में परिवार के किसी भी सदस्य का कोई हिस्सा नहीं
समस्या-
मेरे दादाजी को 1947 में अपने पिता जी से वसीयत के द्वारा दस एकड़ कृषि भूमि मिली थी। जिसे उन्हों ने अपनी पत्नी अर्थात मेरी दादी को वसीयत कर दिया। मेरी दादी ने उस भूमि को मेरे पिताजी और उन के तीन भाइयों को वसीयत कर दिया। मेरे पिताजी ने अपने हिस्से की जमीन का एक भाग 2010 में विक्रय किया तब मेरी बुआ ने मुकदमा कर दिया। हमें पैसों की जरूरत थी इस कारण से हमने बुआ को कुछ पैसा दे कर उस से समझौता कर लिया। अब पिताजी दुबारा शेष जमीन का एक हिस्सा बेचना चाहते हैं। उक्त भूमि के बेच देने पर मेरी बहनें मुकदमा करने की धमकी दे रही हैं। यदि वे मुकदमा कर देती है तो क्या मेरी संपत्ति मकान या मेरे बैंक खाते पर कोई खतरा है
समाधान-
किसी भी व्यक्ति को यदि कोई संपत्ति वसीयत द्वारा प्राप्त होती है तो वह उस की वैयक्तिक संपत्ति होती है तथा उस में परिवार के किसी भी व्यक्ति का कोई हिस्सा नहीं होता। इस तरह आप के दादा जी को उन के पिता से जो संपत्ति वसीयत द्वारा प्राप्त हुई थी वह उन की व्यक्तिगत संपत्ति थी जिस का वे किसी भी प्रकार से हस्तांतरण कर सकते थे तथा जिसे वे वसीयत भी कर सकते थे। उन्हों ने आप की दादी को संपत्ति वसीयत कर दी जिस से वह संपत्ति पुनः दादी की व्यक्तिगत संपत्ति हो गई। उन्हों ने आप के पिता व उन के भाइयों के नाम वसीयत कर दी। इस तरह वह संपत्ति आप के पिता और उन के भाइयों की संयुक्त संपत्ति हो गई। इस संपत्ति का आप के पिता तथा भाइयों के बीच विभाजन होने पर विभाजन में आप के पिता को प्राप्त हिस्सा आप के पिता की व्यक्तिगत संपत्ति हो गया। यदि विभाजन नहीँ हुआ तो उस संयुक्त संपत्ति में उन का हित उन की व्यक्तिगत संपत्ति हो गया। वे उस संपत्ति प्राप्त अपने हिस्से को या संयुक्त संपत्ति में अपने हित को एक साथ या टुकड़ों में विक्रय करने का अधिकार रखते हैं।
आप के पिता ने उस संपत्ति का एक भाग पूर्व में विक्रय किया था। उस में आप की बुआ को दखल देने का कोई अधिकार नहीं था। लेकिन फिर भी आप के पिता ने कुछ परिस्थितियों को देखते हुए आप की बुआ से समझौता कर उन्हें कुछ रुपया दे दिया। लेकिन यह रुपया दे देने से वह संपत्ति पुश्तैनी या पैतृक नहीं हो जाती। पैतृक संपत्ति तो तब होती जब उसे आप के पिता व उन के भाई आप की दादी से वसीयत में प्राप्त करने के स्थान पर उसे उत्तराधिकार में प्राप्त करते। अब आप के पिता के पास जो भूमि शेष है उस में किसी का कोई हिस्सा नहीं है। वे अपने जीवन काल में उक्त संपत्ति को विक्रय कर सकते हैं।आप की बहिनों को उस में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। इस संपत्ति को आप के पिता द्वारा विक्रय कर देने से आप की स्वयं की संपत्ति या बैंक जमाओं पर आप की बहिनों का कोई अधिकार उत्पन्न नहीं होगा। यदि वे किसी तरह का मुकदमा करती भी हैं तो उन्हें कोई राहत प्राप्त नहीं होगी।
पैतृक संपत्ति में पृथक हिस्से के लिए बँटवारे का वाद प्रस्तुत करें
समस्या-
मैं एक पाँच वर्ष के बालक का पिता हूँ। दो वर्ष पहले मुझे मेरे पिताजी के घर से निकाल दिया गया क्योंकि मेरे पिताजी लालची प्रवृत्ति के इंसान हैं। मैं ने लव मैरिज की थी, जिसे बाद में मेरे पिता जी ने मान लिया। उस समय मेरे ससुर जी ने मुझे एक लाख रुपए और कुछ सोना दिया था। बाद में मेरे पिताजी ने और मांगना आरंभ कर दिया। मुझसे कहते थे कि अपने ससुर से पैसे मांगो, बोलना बिजनेस करना है। पर मैं ने शर्म के कारण कभी नहीं मांगा। फिर एक दिन पिताजी और मेरे बीच झगड़ा हुआ और उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया। दो वर्ष से मेरी पत्नी और बच्चा पत्नी के मायके में हैं। मैं उसी के पास के शहर में प्राइवेट नौकरी करता हूँ। भाड़े के मकान में रहता हूँ। गाँव में हमारा एक घर है जो दादा जी का है, दादाजी अब नहीं रहे। मेरे पिता जी दादा जी की इकलौती संतान हैं। हम तीन भाई हैं और मैं सब से बड़ा हूँ। क्या मैं इस संपत्ति में से कुछ प्राप्त कर सकता हूँ और अगर प्राप्त कर सकता हूँ तो उस के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा? इस में कितना समय लगेगा? यदि मेरे पिताजी उक्त संपत्ति में से कुछ को बेचना चाहें तो क्या मैं उन्हें रोक सकता हूँ?
समाधान-
परंपरागत हिन्दू विधि यही है कि यदि किसी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से कोई संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त होती है तो वह पैतृक संपत्ति है। इस में पौत्रों व परपौत्रों का भी हिस्सा होता है। लेकिन 1956 में उत्तराधिकार अधिनियम आ जाने के उपरान्त स्थिति में कुछ परिवर्तन आया। पुत्रियों और पत्नी को भी पिता का उत्तराधिकारी घोषित कर दिए जाने से ऐसी संपत्ति में पोत्रों के अधिकार पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया। फिर 2005 में उत्तराधिकार अधिनियम में पुनः संशोधन हो जाने पर स्थिति में फिर से परिवर्तन हुआ। इस कारण से इस तरह के मामलों में सही विधिक राय के लिए कुछ तथ्यों की जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक हैं। आप के मामले में यह तथ्य आवश्यक थे कि आप के दादा जी का देहान्त कब हुआ? आप के दादा जी को यह संपत्ति अपने पूर्वजों से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई थी? या उन्हों ने इसे स्वयं अर्जित किया था? आप के पिता जी की कोई बहन या बहनें हैं अथवा नहीं हैं? इन तथ्यों की जानकारी के अभाव में अंतिम रूप से सलाह दिया जाना संभव नहीं है।
आप के पिताजी को संपत्ति उन के पिता अर्थात आप के दादा जी से प्राप्त हुई है। आप के पिता के कोई बहिन नहीं थी वैसी स्थिति में यह संपत्ति एक पैतृक संपत्ति है। आप के दादा जी के देहान्त के उपरान्त यह संयुक्त हिन्दू परिवार की अविभाजित संपत्ति है। इस संपत्ति में केवल आप के पिता का ही नहीं अपितु उन की संतानों का भी बराबर का हिस्सा है।
यदि आप इस संपत्ति में से अपना हिस्सा अलग करना चाहते हैं तो आप को उक्त संपत्ति के विभाजन के लिए वाद दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत करना होगा। विभाजन के इस वाद के निर्णय में जो भी समय लगेगा वह स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इस संबंध में आप को अनुमानित समय केवल कोई स्थानीय वकील ही ठीक से बता सकता है।
यदि आप को यह आशंका है कि आप के पिता उक्त संपत्ति या उस के किसी भाग को विक्रय कर सकते हैं तो आप को तुरन्त ही न्यायालय में संपत्ति के विभाजन के लिए वाद प्रस्तुत करना चाहिए और साथ में अस्थाई निषेधाज्ञा हेतु एक आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए जिस में यह प्रार्थना करनी चाहिए कि आप के पिता या अन्य सहदायिक संपत्ति को हस्तान्तरित कर सकते हैं इस कारण से मुकदमे का निर्णय होने तक उक्त संपत्ति के किसी भी प्रकार से हस्तान्तरण पर रोक लगाई जाए। अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त कर लेने पर विभाजन के पूर्व आप के पिता या अन्य कोई सहदायिक उक्त संपत्ति या उस के किसी भाग को हस्तांतरित नहीं कर पाएगा।
इस मामले में आप को तुरन्त अपने जिला मुख्यालय पर दीवानी मामलों के अनुभवी स्थानीय वकील को सभी आवश्यक दस्तावेज या जानकारी उपलब्ध करवा कर सलाह प्राप्त करनी चाहिए।
माता से प्राप्त संपत्ति को वसीयत किया जा सकता है
समस्या-
मेरा हिन्दू परिवार है और मेरी माता को उनके पिता (मेरे नाना और नानी) के द्वारा (पैत्रिक) सम्पत्ति प्राप्त हुई और मेरी माता ने उक्त सम्पत्ति को मेरे (पुत्र के) नाम से कर दिया था। इस तरह से मैं उक्त सम्पति का पिछले 56 साल से वारिस/स्वामी के रूप में उपभोग करता चला आ रहा हूँ। मेरी पत्नी और चार संतान है में अपनी वसीयत के आधार पर उक्त सम्पत्ति को अपनी इच्छा अनुसार पत्नी और 4 संतानों में वितरित करना चाहता हूँ। यानी कि सम्पत्ति का वितरण कानून के माप से नहीं बल्कि अपनी संतानों की योग्यतानुसार कम ज्यादा देना चाहता हूँ। क्या मेरी उक्त सम्पत्ति को पैतृक सम्पत्ति की ही तरह तो नहीं माना जाएगा? क्या इस सम्पत्ति पर सिर्फ मेरा ही अधिकार है? क्या उक्त वसीयत की जा सकती है? क्या भविष्य में मेरे परिवार में कोई कानूनन विवाद तो नहीं होगा? क्या में जीवित न रहा तो तो भी ये वसीयत प्रभाव में रहेगी? मुझे क्या करना चाहिए
समाधान-
यदि किसी स्त्री को उस के माता-पिता से संपत्ति प्राप्त होती है तो वह पैतृक नहीं होती है। इस तरह प्राप्त संपत्ति पूरी तरह से उस की व्यक्तिगत संपत्ति है जिसे वह किसी को किसी भाँति हस्तान्तरित कर सकती है। इसी तरह माता से प्राप्त संपत्ति भी पैतृक संपत्ति नहीं होती। वह भी व्यक्तिगत संपत्ति ही होती है, उसमें कोई साझीदार नहीं होता। इन दोनों तरह की संपत्तियों को वसीयत किया जा सकता है।
आप अपनी माता जी से प्राप्त संपत्ति को बिना किसी संकोच के वसीयत कर सकते हैं। वसीयत में आप अपनी संपत्ति को अपनी इच्छानुसार अपने उत्तराधिकारियों के बीच अथवा उन व्यक्तियों को भी जो उत्तराधिकारी नहीं भी हैं दे सकते हैं। आप अपनी इच्छानुसार अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकते हैं। इस में भविष्य में कोई कानूनी विवाद खड़ा नहीं होगा।
वसीयत होने पर मृतक की संपत्ति का बँटवारा उसी के अनुसार होगा
समस्या-
मेरे पिताजी समेत छह भाई और एक बहिन है। सभी शादी शुदा हैं। सभी 6 भाई और 1 बहिन ने मेरे दादा की मृत्यु के बाद बैठकर लिखित में बँटवारा किया था। अब 3 भाई उस बँटवारे से इन्कार कर चुके हैं और मामला कोर्ट में है। तीन भाई किसी वसीयत का सहारा ले कर कहते हैं कि मेरे दादाजी ने तीन भाई (मेरे काका) के नाम वसीयत कर दी है और मेरे पिता समेत दो भाई और एक बहन को छोड़ दिया है। अब आप ही बतायें की हमारा पक्ष कितना मजबूत है और हम लिखित बँटवारे को किस तरह मनवा सकते हैं?
समाधान-
न्यायालय के समक्ष लंबित किसी भी मामले में निर्णय दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत अभिवचनों (दावा और जवाब दावा) तथा न्यायालय में प्रस्तुत दस्तावेजी व मौखिक साक्ष्य पर निर्भर करता है। इन सभी चीजों को जाँचे बिना कोई राय बनाना उचित नहीं है। आप ने तो यह भी नहीं बताया है कि दावा किस ने किया है और कौन उस मुकदमे में प्रतिवादी हैं?
इस मामले में एक वसीयत न्यायालय के सामने है और दूसरा एक बँटवारा जिस का लिखित मेमोरेंडम तैयार किया गया है। आम तौर पर बँटवारा पंजीकृत होना आवश्यक है तभी वह मान्य होता है। लेकिन आपस में बैठ कर मौखिक बँटवारा हो गया हो, संपत्ति का कब्जा बँटवारे के अनुसार सभी संबंधित पक्षों को दे दिया गया हो तो बाद में लिखा गया बँटवारे का दस्तावेज बँटवारे के सबूत के तौर पर न्यायालय स्वीकार कर सकता है। बँटवारा संयुक्त संपत्ति का होता है। उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति का सृजन तो संपत्ति के स्वामी के देहान्त के साथ ही निर्वसीयती संपत्ति के उत्तराधिकार से होता है। लेकिन यदि संपत्ति के स्वामी ने अपनी संपत्ति को वसीयत कर दिया हो तो फिर वह संपत्ति निर्वसीयती नहीं रह जाती और उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं हो सकती। ऐसी संपत्ति का बँटवारा सभी उत्तराधिकारियों के मध्य संभव नहीं है केवल वसीयत के अनुसार ही उस का बँटवारा हो सकता है।
अब जो मामला न्यायालय में चल रहा है उस में यदि वसीयत को चुनौती दी गई हो और यह साबित हो जाए कि जो वसीयत न्यायालय के सामने है वह सही नहीं है, कानून के अनुसार नहीं है या कूटरचित है तो ही लिखित बँटवारे पर विचार हो सकता है। वैसी स्थिति में कोई लिखित बँटवारा न होने पर भी संपत्ति सभी उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकार में प्राप्त होने के आधार पर स्वयं अदालत भी बँटवारा कर सकती है। वसीयत निरस्त न होने पर तो वसीयत के अनुसार ही संपत्ति का विभाजन होगा।
पारिवारिक संपत्ति के विभाजन के लिये स्थानीय वकील से सलाह कर के कार्यवाही करें…
समस्या-
मैं गुजरात का रहने वाला हु। मेरा गाँव “कमाणा ” हे। जो मेहसाना डिस्ट्रिक्ट के विसनगर तालुका में हे। मेरे पिताजी का नाम नयन भाई हे। और में इकलौता लड़का हु। मेरे जन्म के वक्त मेरे पिताजी की आयु 50 वर्ष थी। 2009 में 77 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया। मेरे पिताजी नयन भाई कम पढ़े लिखे और बहुत धार्मिक सोच वाले व्यक्ति थे इसलिए उन्होंने भाग्य के आधार पर जितना मिला उसी में संतोष माना। लेकिन मुझे न्याय चाहिए। ऊइसलिए आपसे मार्गदर्शन पाना चाहता हु। मेरा प्रश्न : मेरे दादाजी अम्बुभाई पटेल के पास 20 विघा खेत भूमि थी। और 4 मकान भी थे। एक मकान विसनगर शहरी विस्तार में और ३ मकान गाँव में। और 3 प्लॉट भी थे । मेरे दादाजी ने मरने से पहले कोई विल नहीं बनायीं थी। मेरे दादाजी के चार बेटे थे। १. बबल भाई २. नटु भाई ३. नयन भाई (मेरे पिताजी) ४. परसु भाई। और तीन बेटिया (१) चंचल बेन (देहांत हो चूका हे) (२) मंगू बेन (90 years) (३) बबी बेन (80 years) 1960 में उनके गुजर जाने के बाद उनके चार बेटो(मेरे पिताजी सहित) ने बिना कानूनन बटवारा किये जिसके पास जितना आया ले लिया। यहाँ दर्शाई गयी सभी संपत्ति मेरे दादाजी की है। मेरे दादाजीने अपने बलबूते पर इस संपत्ति को ‘ख़रीदा’ था । 1. बबल भाई – 90 ‘ X 20 ‘ फ़ीट का मकान (जो विसनगर सिटी के शहरी विस्तार में हे ) 2. नटु भाई- (१) 90 ‘ X 25 ‘ फिट का मकान (जो गाँव में हे ) (२) 30 ‘ X 30 ‘ फिट का प्लॉट (जो गाँव में हे ) जिसमे उन्हों ने हाल ही में मकान बना लिया हे (३) 8 विघा खेत भूमि जिसमे से 3 विघा उन्होंने बेच दी हे (जो गाँव में हे ) जिसमे से 3 विघा बबल भाई की हे (४) 100 X 20 फिट का एक दूसरा प्लाट जिसमे परसु भाई का आधा हिस्सा (जो गाँव में हे ) जिसमे उन्हों ने हाल ही में मकान बना लिया हे जो बिना बटवारा किये हुआ हे 3. नयन भाई (मेरे पिताजी ) -(१) 21 X 18 फिट का एक कच्चा मकान (जो गाँव में हे ) (२) 5 विघा खेत भूमि (मेरे पिताजी की इलाज के वक्त मुझे बेचनी पड़ी थी) 4. परसु भाई- (१) 90 ‘ X 25 ‘ फिट का मकान (जो गाँव में हे ) (२) 30 ‘ X 30 ‘ फिट का प्लॉट (जो गाँव में हे ) जिसमे उन्हों ने हाल ही में मकान बना लिया हे (३) 7 विघा खेत भूमि (जो गाँव में हे ) जिसमे से 2 विघा बबल भाई की हे (४) नटु भाई वाले 100 X 20 फिट का प्लाट जिसमे परसुभाई का आधा हिस्सा (जो गाँव में हे ) और दादाजी की चल संपत्ति के तौर पर 50 तोला सोना था। और 10 किलो चांदी थी। मेरे पिताजी कहते थे की सोना और चांदी नटु भाई के पास हे और नटु भाई ने सब हड़प कर लिया। । इस वजह से चारो भाइओ में जगडे होते थे। अब (1 ) बबल भाई (2 ) नटु भाई (3 ) नयन भाई (4 ) परसु भाई सभी का देहांत हो चूका हे । यहाँ वर्णित संपत्ति का कानूनन बटवारा नही हुआ हे। लेकिन जो सम्पति जिसके नाम के साथ दिखाई हे वो सब उन्ही के नाम पे उन्होंने ट्रान्सफर करवा ली हे। यहाँ दिख रहा हे की नयन भाई के भाइयो ने संपत्तिके वितरण में नयन भाई (मेरे पिताजी ) को अन्याय किया हे। मेरे पिताजी के हिस्से में आने वाली संपत्ति कानूनन तौर पर चाहिए। अभी चल संपत्ति (सोना चांदी ) का मेरे पास कोई प्रूफ नही हे। तो कृपा आप मुझे मार्गदर्शन दीजिये की मुझे क्या करना चाहिए। (१) चंचल बेन (देहांत हो चूका हे) (२) मंगू बेन (90 years) (३) बबी बेन (80 years) सभी अपने ससुराल में हे। उनके बच्चो के भी बच्चे हे और सभी वेलसेट हे। अगर वो धार्मिक एवं कौटुम्बिक कारणों (उनकी शादी के वक्त तथा उनके बच्चो की शादी के वक्त मेरे दादाजी ने उन्हें बहुत सारा धन दिया था। और हमारी सामाजिक परम्परा के अनुसार आज भी हम उनको उपहार देते रहते हे। इसलिए वो संपत्ति में हिस्सा मांगने से मना कर रही हे ) से संपत्ति में हिस्सा लेने से मना करती हे तो क्या करना चाहिए।
समाधान-
आप की समस्या का समाधान केवल उक्त पारिवारिक पुश्तैनी संपत्ति का बँटवारा करना है। इस के लिए आप को दीवानी न्यायालय में विभाजन का वाद प्रस्तुत करना होगा तथा उक्त संपत्ति का विभाजन किया जा कर आप के हिस्से की संपत्ति का पृथक कब्जा दिलाए जाने की प्रार्थना न्यायालय से करनी होगी।
आप का कथन है कि आप की कुछ संपत्तियों को बिना कानूनी बँटवारे के कुछ हिस्सेदारों के नाम चढ़ा दिया गया है। यह कैसे संभव हुआ यह जानकारी आप ने नहीं दी है। लेकिन इस तरह यदि कहीं नामान्तरण दर्ज हुआ है तो उसे भी चुनौती देनी होगी कि वह गलत हुआ है उसे निरस्त किया जाए।
इस संबंध में आप को समस्त रिकार्ड के साथ किसी स्थानीय वकील से राय करनी चाहिए और उस की राय और निर्देेशन के आधार पर दीवानी वाद व अन्य कार्यवाहियाँ करनी चाहिए।
दिवंगत पति की संपत्ति पर बेटी-दामाद का कब्जा कैसे हटाएँ?
समस्या-
मेरे पति के मौत के बाद मेरी बेटी और दामाद ने मिलकर मेरे घर पर कब्ज़ा कर लिया है और मुझे एवं मेरे बेटे और बहू को घर में रहने नहीं देते हैं और मेरा मकान खाली नहीं कर रहे हैं| इसका क्या समाधान है?
समाधान-
आप की समस्या स्पष्ट नहीं है। इस में यह स्पष्ट नहीं है कि आप के मकान का स्वामित्व किस का है? यदि आप के पति की मृत्यु के पूर्व आप के पति इस मकान के एक-मात्र स्वामी थे तो उन के देहान्त के साथ ही उक्त मकान पर संयुक्त स्वामित्व स्थापित हो चुका है। जिस में आप के सभी पुत्र-पुत्री और आप के समान हिस्से हैं। यदि आप के एक पुत्री, एक पुत्र हैं तो सभी को उक्त मकान पर एक तिहाई स्वामित्व प्राप्त है। इस तरह आप की पुत्री भी उक्त मकान में सहस्वामी है और आप उन्हें इस मकान से नहीं निकाल सकती हैं।
यदि उक्त मकान केवल आप के नाम है तो आप अपने पुत्री-दामाद को लायसेंसी मान सकती हैं और उन्हें विधिक नोटिस दे सकती हैं कि वे उक्त मकान को खाली कर दें। यदि वे नोटिस से मकान खाली नहीं करते हैं तो आप उन के विरुद्ध कब्जा प्राप्त करने के लिए दीवानी वाद न्यायालय में प्रस्तुत कर सकती हैं।
लेकिन यदि उक्त मकान आप के पति के स्वामित्व का था तो फिर आप को बँटवारे का दावा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर यह राहत मांगनी चाहिए कि उक्त मकान का बँटवारा कर दिया जाए। यदि उक्त मकान के तीन बराबर हिस्से न हो सकें तो उसे बेच दिया जाए। बेचने के पूर्व जो भी व्यक्ति न्यायालय द्वारा निर्धारित किए गए मकान के मूल्य की राशि का एक-एक तिहाई राशि शेष अन्य हिस्सेदारों को अदा करे उसे वह राशि अदा करने पर मकान कब्जे में दे दिया जाए। मुझे लगता है कि आप के बेटी-दामाद आप के पति की संपत्ति में से आप की बेटी का हिस्सा चाहते हैं। उन्हें वह हिस्सा दे देने पर वे मकान का कब्जा त्याग सकते हैं। यह काम आप लोग आपसी सहमति से भी कर सकते हैं। इस के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर राजीनामा प्रस्तुत कर उस के आधार पर निर्णय और डिक्री प्राप्त की जा सकती है।
यदि आप के बेटी दामाद आप को या आप की पुत्रवधू को परेशान करते हैं तो उन के विरुद्ध घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही कर इस से रोका जा सकता है।
दिवंगत पिता की संपत्ति में माता और सभी पुत्र-पुत्रियों का समान हिस्सा है
समस्या-
मेरी भाभी पाँच बहनें हैं। हमारी भाभी के पिता का अभी देहान्त हुआ है। उन्हों ने अपने जीवनकाल में काफी संपत्ति अर्जित की है। हमारी भाभी की आर्थिक स्थिति कमजोर है और आरंभ से वे ही माता-पिता की देखभाल कर रही थीं। भाभी के चार भाई हैं जो अलग अलग नौकरी करते हैं और अलग अलग रहते हैं। क्या उन के पिता की संपत्ति अपने आप माँ के नाम अन्तरित हो जाएगी? क्या हमारी भाभी का उस संपत्ति पर कोई अधिकार है? और यदि माता जी चाहे कि उन की लड़कियों का हिस्सा उन्हें मिले तो इस स्थिति में हमारी भाभी का अधिकार क्या होगा? क्या अपने आप या भाइयों की आपत्ति पर इस पर कोई रोक लग सकती है?
समाधान-
यदि आप की भाभी के पिता की संपत्ति यदि स्वअर्जित है और उन्हों ने अपनी संपत्ति के बारे में कोई वसीयत नहीं की है तो उन की संपत्ति उन की पत्नी, उन के पुत्रों और पुत्रियों सभी को समान रूप से प्राप्त होगी। जिस तरह की सूचना आपने दी है उस के अनुसार उन के पाँच पुत्रियाँ चार पुत्र तथा पत्नी हैं। इस तरह कुल दस उत्तराधिकारी हैं। इन दसों उत्तराधिकारियों में से प्रत्येक का उक्त संपत्ति में समान हिस्सा अर्थात 1/10 हिस्सा है। आप की भाभी के पिता के देहान्त के साथ ही उन की संपत्ति उन के उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति हो चुकी है। सभी उत्तराधिकारी समान रूप से उस के हिस्सेदार हैं। उत्तराधिकारियों का यह हिस्सा जब तक संपत्ति का बँटवारा नहीं हो जाता है तब तक किसी को प्राप्त नहीं होगा संपत्ति संयुक्त बनी रहेगी। इस संपत्ति में आप की भाभी का हिस्सा भी 1/10 ही है।
इन दसों उत्तराधिकारियों में से कोई भी एक दूसरे के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकता। हाँ, कोई भी अपना हिस्सा दूसरे के हक में छोड़ सकता है। आप के कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि सारी संपत्ति वर्तमान में आप की भाभी की माताजी के कब्जे में है लेकिन उन का हिस्सा उक्त संपत्ति में केवल 1/10 है। वे अधिक से अधिक अपने हिस्से को किसी के हक में छोड़ सकती हैं, लेकिन संपत्ति का स्वामित्व संयुक्त होने के कारण वे व्यवहारिक रूप से संपत्ति का कोई भाग किसी को दे नहीं सकतीं। यदि वे देना भी चाहें तो आपके भाई उस पर आपत्ति कर सकते हैं कि जब तक बँटवारा नहीं हो जाता है तब तक वे किसी को संपत्ति नहीं दे सकती हैं।
उक्त संपत्ति के दसों भागीदार चाहें तो आपस में मिल बैठ कर संपत्ति का सहमति के साथ ऐसा बँटवारा कर सकते है जो सभी को मान्य हो। लेकिन दस हिस्सेदार होने के कारण व्यवहारिक रूप से यह संभव नहीं लगता है। यदि आप की भाभी उक्त संपत्ति में से अपना हिस्सा चाहती हैं तो सब से अच्छा उपाय तो यह है कि आप की भाभी उक्त संपत्ति का बँटवारा कर के उन्हे उन का हि्स्सा देने की बात करें। यदि आपसी सहमति से बँटवारा करने को सब तैयार न हों तो वे जिला न्यायाधीश के न्यायालय में बँटवारे का वाद प्रस्तुत करें।
माता-पिता के जीवित रहते उन की संपत्ति पर संतानों को कोई अधिकार नहीं।
समस्या-
मेरी एक मित्र लड़की की एक समस्या है, जिस में आप की मदद चाहिए। उस के पास इंटरनेट न होने के कारण मैं आपको लिख रहा हूँ। उस का भाई लगातार माता-पिता पर सम्पत्ति अपने नाम करने का दबाव बनाता है। अभी तक माता -पिता की सारी सम्पत्ति उन्हीं के नाम पर है। घर में बस माता-पिता और वो दो बहन -भाई , कुल चार सदस्य हैं। वह जानना चाहती है कि माता पिता की सम्पति पर एक अविवाहित लड़की का क्या हक़ है? शादी से पहले औऱ बाद में क्या फर्क पड़ता है? क्या सम्पत्ति उसके भाई के नाम हो जाने से कोई फर्क पड़ेगा? कृपया उचित सलाह दे जिससे वो अपना हक़ आसानी से ले पाये।
समाधान-
सब से पहले तो यह जान लें कि संपत्ति दो प्रकार की होती है। स्थावर संपत्ति तथा चल संपत्ति। मकान जमीन आदि स्थावर संपत्तियाँ हैं, जब कि रुपया, जेवर, गाड़ी, बैक बैलेंस आदि चल संपत्तियाँ हैं। चल संबत्तियाँ जिस के कब्जे में हैं उसी के स्वामित्व की हैं। जब कि घर जमीन आदि जिस के नाम पंजीकृत हैं उस के स्वामित्व की हैं। पिता की संपत्ति पिता की है और माता की संपत्ति माता की है।
जब तक माता पिता जीवित हैं, उन की संपत्ति पर किसी का कोई अधिकार नहीं है। पुत्र को वयस्क अर्थात 18 वर्ष का होने तक तथा पुत्री का उस के विवाहित होने तक मात्र भरण पोषण का अधिकार है।
माता या पिता के देहान्त के उपरान्त यदि वे परिवार के या परिवार के बाहर के किसी सदस्य के नाम वसीयत कर देते हैं तो जो संपत्ति जिस के नाम वसीयत की गई है उस के स्वामित्व की हो जाती है।
यदि माता पिता किसी को भी वसीयत नहीं करते हैं अपनी चल संपत्ति अपने नाम ही छोड़ देते हैं तो उस संपत्ति पर उस के सभी उत्तराधिकारियों का समान अधिकार होता है। उदाहरणार्थ माता के देहान्त पर उन के नाम की संपत्ति पर पति, पुत्र व पुत्री का समान अधिकार होने से प्रत्येक का संपत्ति के तीसरे हिस्से पर अधिकार होगा। यदि पिता की मृत्यु हो जाती है तो उन की संपत्ति पर माता, पुत्र व पुत्री का समान अधिकार होगा इस तरह तीनो एक तिहाई संपत्ति के अधिकारी होंगे।
आप के मामले में माता पिता पर पुत्र यह दबाव डाल रहा है कि संपत्ति उस के नाम कर दी जाए। इस का अर्थ यही है कि वह संपत्ति की वसीयत अपने नाम करवाना चाहता है। जिस का असर यह होगा कि उन के देहान्त के उपरान्त संपत्ति पुत्र की हो जाएगी। शेष दोनों उत्तराधिकारियों को कुछ नहीं मिलेगा। वसीयत इस तरह भी की जा सकती है कि माता-पिता में से किसी एक के देहान्त के उपरान्त संपत्ति दोनों में से जो भी जीवित रहेगा उस की रहेगी तथा उस की भी मृत्यु हो जाने के उपरान्त पुत्र या पुत्री की होगी या फिर दोनों को क्या क्या संपत्ति प्राप्त होगी।
इस तरह वास्तव में माता-पिता की संपत्ति पर उन की संतानों को माता-पिता के जीवित रहते कोई अधिकार नहीं होता। पुत्री को विवाह तक भरण पोषण का अधिकार होता है। विवाह के बाद वह भी समाप्त हो जाता है। लेकिन माता पिता कोई निर्वसीयती संपत्ति छोड़ जाएँ तो पुत्री का उत्तराधिकार का अधिकार विवाह के बाद भी जीवन पर्यन्त बना रहता है।
आजकल पुश्तैनी संपत्तियाँ नाम मात्र की रह गई हैं। यदि कोई पुश्तैनी संपत्ति हो तो 2005 से उस में पुत्री को पुत्र के समान ही प्रदान किया गया है। उस अधिकार को कैसे भी नहीं समाप्त किया जा सकता। क्यों कि वह जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाता है।
हिन्दू पुरुष की मृत्यु के उपरान्त संतानें, पत्नी और माँ निर्वसीयती संपत्ति में बराबर की उत्तराधिकारी हैं।
समस्या-
मेरे पिताजी का निर्वसीयती देहांत हो गया है। अब उत्तराधिकारी में हम दो भाई और और हमारी माता जी हैं। हमारी माता जी का मानना है कि पति के मृत्यु के बाद पत्नी पति की सम्पत्ति की पूर्ण रूप से उत्ताराधिकारी हो जाती है, वह चाहे तो किसी को वसीयत कर सकती है या दान दे सकती है। मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे पिता जी के सम्पत्ति में माता जी का 1/3 हिस्सा होगा कि वे पूरी सम्पत्ति की अधिकारी हो जाएँगी?
समाधान-
आप की माता जी का सोचना गलत है। आप के पिताजी की संपत्ति निर्वसीयती है इस कारण हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-8 के अनुसार पुरुष की सभी सन्तानें, पत्नी और उस की माता निर्वसीयती संपत्ति में बराबर के उत्तराधिकारी हैं। आप के पिताजी की संपत्ति निर्वसीयती है इस कारण आप तीनों उक्त संपत्ति के बराबर के अधिकारी हैं और आप तीनों का बराबर हिस्सा उक्त अविभाजित संपत्ति में है।
हाँ, आप की माता जी उक्त संपत्ति में 1-3 की अधिकारी हैं और इतने ही हिस्से के आप अधिकारी हैं। आप उन्हें सलाह दें कि वे किसी वकील से पूछ कर अपनी इस शंका का समाधान कर लें। यदि वकील से भी बात न बनती हो तो आप संयुक्त अविभाजित संपत्ति के विभाजन का वाद प्रस्तुत कर दें। न्यायालय के निर्णय से उन की यह शंका दूर हो जाएगी।
वसीयत में प्राप्त संपत्ति हस्तान्तरित की जा सकती है।
समस्या-
मेरी दादीजी ने अपना मकान मेरे नाम वसीयत कर दिया। उनके देहान्त के बाद वह मकान नगर निगम में मेरे नाम पर नामांतरित हो गया। उसके बाद मैं ने होम लोन लेकर उसे फिर से बनवाया। लोन चुकता होने में अभी दस साल बाकी हैं। मेरे घर में माता पिता और एक छोटा भाई है जो बीए कर रहा है। घर खर्च की सारी ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर है, मेरी मासिक आमदनी 8000 रुपए है। इसके अलावा आमदनी का कोई साधन नहीं है। क्यों कि मेरे माता-पिता पूर्ण रूप से बीमार हैं। मेरी शादी 2010 में हो गई थी और मेरा एक 1.5 साल का पुत्र है जो कि अभी पत्नी के पास है। मेरी पत्नी को मेरे ससुर जी साथ अजमेर अपने घर ले गये हैं। पत्नी मेरे साथ रहना चाहती है, किंतु पत्नी क्रूरतापूर्ण बर्ताव के आधार पर मैं ने जिला कोर्ट में धारा 13 में विवाह विच्छेद की याचिका दायर की है। मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे मकान में मेरी पत्नी या पुत्र का अधिकार है या नहीं? क्या मैं मकान को अभी या प्रकरण के चलते धन की ज़रूरत होने के कारण बेच सकता हूँ या नहीं? पत्नी और पुत्र को प्रकरण के चलते या बाद में कितना भरण पौषण लेने का हक़ है। क्या मैं अपना घर भाई या माता को हस्तांतरित कर सकता हूँ, क्योकि मेरी पत्नी मेरे परिवार को घर से बेदखल करना चाहती है।
समाधान-
किसी भी स्त्री की संपत्ति उस की निजी संपत्ति होती है और वह उसे विक्रय कर सकती है या किसी अन्य प्रकार से हस्तांतरित कर सकती है तथा वसीयत कर सकती है। वसीयत में प्राप्त संपत्ति भी निजि संपत्ति होती है उस पर वसीयत में प्राप्त करने वाले को सभी अधिकार होते हैं उसे वह विक्रय, दान वसीयत आदि कर सकता है। इस तरह आप की संपत्ति पर आप को पूर्ण स्वामित्व प्राप्त है। आप अपने उक्त मकान को विक्रय, दान आदि के द्वारा हस्तांतरित कर सकते हैं और वसीयत भी कर सकते हैं।
आप की पत्नी और पुत्र का उक्त संपत्ति पर आप के जीवनकाल में कोई अधिकार नहीं है। यदि आप अपनी संपत्ति की कोई वसीयत न करें तो आप के जीवनकाल के उपरान्त आप की पत्नी और पुत्र को उत्तराधिकार प्राप्त हो सकता है।
आप की पत्नी और पुत्र को क्या भरण पोषण लेने का हक है? उस का उत्तर अनिश्चित है। कोई भी पत्नी और पुत्र अपने पति व पिता से उतना भरण पोषण प्राप्त कर सकता है जितना उन के पिता व पति के परिवार की हैसियत के अनुरूप उन के लिए आवश्यक हो। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप की पत्नी न्यायालय में आप की मासिक आमदनी कितनी प्रमाणित कर सकती है। जितनी आप की आमदनी होगी उस का आधी राशि दोनों को भरण पोषण के लिए दिलाई जा सकती है। यह भी हो सकता है कि उस की दो तिहाई राशि तक भरण पोषण में दिला दी जाए।
पत्नी को ससुर के मकान में पति के हिस्से से उत्तराधिकार प्राप्त होगा।
समस्या-
मेरे पति के देहान्त के बाद मैं किराए के मकान में रह रही हूँ, क्यों कि मेरी ननद ने मकान पर कब्जा कर लिया है। वह तीन विवाह कर चुकी है और तीनों पति से अलग हो गई। 1968 के बयनामे पर मेरे ससुर का नाम है, उन की मृत्यु के उपरान्त मेरे पति राजकुमार का नाम दर्ज हुआ। नगर निगम में मैं टेक्स जमा करवा रही हूँ। क्या मेरी ननद का हक है उस मकान पर? क्या ये मकान मुझे नहीं मिलेगा। बिजली का बिल, नगर निगम में मेरा नाम दर्ज है। मेरे पति के देहान्त के बाद से उस मकान के एक कमरे में मेरा ताला लगा है। मेरी ननद 45 वर्ष से उसी में है। क्या मेरे पति की संपत्ति में मेरा हिस्सा नहीं है? पुलिस कहती है कि कोर्ट से आदेश लाएँ तो हम खाली करवा पाएंगे।
समाधान-
नगर निगम में या बिजली के दफ्तर में किस का नाम दर्ज है इस से किसी संपत्ति का मालिक होना साबित नहीं होता है। वहाँ टैक्स जमा करने या फिर बिजली का बिल वसूल करने के संदर्भ में नाम दर्ज होते हैं। यदि मालिक कोई और हो और नगर निगम किसी और का नाम दर्ज कर दे तो वह तो अवैध ही होगा। किसी संपत्ति पर मालिकाना हक किस का है इसे तय करने का अधिकार तो सिर्फ न्यायालय का ही है। पुलिस का जहाँ तक प्रश्न है उन्हों ने आप को टाल दिया है। आम तौर पर न्यायालय से आदेश लाने में समय लगता है। इसी लिए पुलिस वालों ने आप को न्यायालय से आदेश लाने के लिए कह दिया है।
मकान जब खरीदा गया था तो बयनामे (विक्रयपत्र) में आप के ससुर का नाम दर्ज है। इस प्रकार वह संपत्ति आप के ससुर की हुई। यदि आप के ससुर के दो ही संतानें आप के पति और आप की ननद ही थीं तो उन दोनों का बराबर का अधिकार उस संपति पर हुआ। आप को आप के पति के देहान्त के उपरान्त उन का अधिकार उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ है। यदि आप के कोई संतान नहीं है तो आप का आधे मकान पर अधिकार है। लेकिन आप के संन्तानें हैं तो आप को व आप की सभी संतानों को उस मकान के आधे अधिकार में से बराबर का अधिकार है।
आप को इस विवाद को हल कराने के लिए न्यायालय में उक्त मकान का बँटवारा कराने के लिए दीवानी वाद दाय्रर करना चाहिए। साथ ही आप को यह मांग भी करनी चाहिए कि आप के पति के देहान्त के बाद से ही जो भी खर्चा आप म्युनिसिपल टैक्स व बिजली के बिल वगैरा पर खर्च कर रही हैं। वह भी दूसरे भागीदारों से समान अनुपात में दिलाया जाए। आप को बेदखल किए जाने की शंका हो तो इसी वाद में आवेदन दे कर अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकती हैं तथा मकान में आने जाने में बाधा पहुँचाने से दूसरे भागीदारों को रोकने का आदेश न्यायालय से प्रापत कर सकती हैं। यदि मकान का कोई हिस्सा आप की ननद द्वारा किराए आदि पर दे कर लाभ कमाने की आशंका हो तो आप मकान को रिसीवर के कब्जे में रखे जाने के लिए भी न्यायालय को आवेदन कर सकती हैं।
पत्नी के पूर्व पति से उत्पन्न संतान का संपत्ति का अधिकार और उत्तराधिकार
समस्या---
यदि स्त्री या पुरुष दूसरा विवाह करते हैं, तो उनकी अपनी संतान का दूसरे पति/ पत्नी की सम्पत्ति पर तब तक कोई क़ानूनी अधिकार नहीं होता जब तक की उस बच्चे को दूसरा पति या पत्नी क़ानूनी रूप से गोद ना ले लें। भारतीय कानून के अनुसार इस में कितनी सत्यता है। उदाहरण के बतौर क की पहली शादी से अपने पति ख की एक संतान म है, यदि क दूसरी शादी ग से करती है तो क्या उसकी पहली संतान म जो पूर्व पति ख से है, क्या उसका ग पति की सम्पत्ति पर क़ानूनी अधिकार बनता है, महज इस लिये कि उसकी माँ ने दूसरा विवाह कर लिया, या तब बनेगा जब क़ानूनी रूप से वो ग का पुत्र होगा। उसी तरह अगर ग पति के पहले से कोई संतान है तो इस स्त्री की संपत्ति पर क्या उसका अधिकार बनेगा या उसको भी गोद लेने के बाद ही अधिकार मिलेगा?
उत्तर –
आप का प्रश्न बहुत भ्रामक है। आप किस अधिकार की बात पूछ रही हैं? यह स्पष्ट नहीं है। कानून में किसी भी संपत्ति पर केवल उस के स्वामी का अधिकार होता है, अन्य किसी भी व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं होता। संपत्ति पर स्वामी का यह अधिकार तब तक बना रहता है जब तक कि वह स्वयं इसे किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित न कर दे अथवा किसी न्यायालय की डिक्री आदि से वह संपत्ति कुर्क न कर ली जाए। यह हो सकता है कि किसी संपत्ति के एक से अधिक संयुक्त स्वामी हों। तब उस संपत्ति के बारे में वही अधिकार संयुक्त रूप से उस के संयुक्त स्वामियों के तब तक बने रहते हैं जब तक कि उस संपत्ति का विभाजन न हो जाए अथवा एक संयुक्त स्वामी के हक में अन्य संयुक्त स्वामी संपत्ति पर अपना अधिकार न त्याग दें।
आप के प्रश्न के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि यदि कोई संपत्ति यदि पति की है तो उस पर पति का ही अधिकार होता है उस की पत्नी का उस में कोई अधिकार नहीं होता। इसी तरह यदि कोई संपत्ति किसी पत्नी की है तो उस पर पत्नी का ही अधिकार होता है उस के पति का उस में लेश मात्र भी अधिकार नहीं होता। पिता और माता की संपत्तियों में उन के पुत्र-पुत्रियों का कोई अधिकार नहीं होता। उसी तरह पुत्र-पुत्रियों की संपत्ति में उन के माता-पिता का कोई अधिकार नहीं होता है। जब किसी पत्नी का अपने पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता है तो उस में पत्नी के पूर्व पति की संतान के अधिकार की बात सोचना सिरे से ही गलत है। क्यों कि उन दोनों के बीच तो कोई सम्बन्ध भी नहीं है। वस्तुतः यह संपत्ति के अधिकार का मूल तत्व है कि संपत्ति केवल उस के स्वामी की हो सकती है और उस पर उसी का एक मात्र अधिकार होता है। व्यक्ति जिस संपत्ति का स्वामी है, अपने जीवनकाल में उस का किसी भी प्रकार से उपभोग कर सकता है और उसे किसी भी प्रकार से खर्च कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति चाहे तो अपनी सारी संपत्ति को अपने जीवन काल में ही खर्च कर सकता है, उसे खर्च करने में उस पर किसी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं है।
बालकों और अल्पवयस्कों का अपने माता-पिता की संपत्ति पर किसी प्रकार का कोई अधिकार नही
ं होता। उन का अधिकार केवल भरण पोषण तक सीमित है। यदि माता-पिता उन के वयस्क होने तक उनका भरण पोषण नहीं करते हैं तो उन के इस अधिकार को कानून के द्वारा लागू कराया जा सकता है। इसी तरह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ पत्नी का पति पर, पति का पत्नी पर, माता-पिता का अपनी संतानों पर भरण-पोषण का कानूनी अधिकार है और उसे भी कानून द्वारा लागू कराया जा सकता है।
ं होता। उन का अधिकार केवल भरण पोषण तक सीमित है। यदि माता-पिता उन के वयस्क होने तक उनका भरण पोषण नहीं करते हैं तो उन के इस अधिकार को कानून के द्वारा लागू कराया जा सकता है। इसी तरह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ पत्नी का पति पर, पति का पत्नी पर, माता-पिता का अपनी संतानों पर भरण-पोषण का कानूनी अधिकार है और उसे भी कानून द्वारा लागू कराया जा सकता है।
आप अपने उक्त प्रश्न में जिस अधिकार के बारे में पूछना चाहती हैं, उस से लगता है कि आप उत्तराधिकार के संबंध में बात करना चाहती हैं। उत्तराधिकार का अर्थ किसी मृत व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर अधिकार से है। भारत में उत्तराधिकार का कोई सामान्य कानून नहीं है। उत्तराधिकार लोगों की व्यक्तिगत विधि से तय होता है। मृत मुस्लिम व्यक्ति की संपत्ति पर उत्तराधिकार का प्रश्न मुस्लिम विधि से तय होता है और मृत हिन्दू व्यक्ति की संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू विधि से तय होता है। हिन्दू विधि को एक सीमा तक आजादी के बाद संहिताबद्ध किया गया है। एक मृत हिन्दू व्यक्ति की निर्वसीयती संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम से तय होता है।
उत्तराधिकार का मूल सिद्धान्त ही यह है कि एक मृत व्यक्ति की संपत्ति उस के निकटतम रक्त संबंधियों को मिलनी चाहिए। उन में पत्नी और पति को और सम्मिलित किया गया है। अब रक्त संबंधी भी दूर और पास के हो सकते हैं, इस कारण से उन की अनेक श्रेणियाँ बनाई गई हैं। प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में से एक के भी जीवित होने तक मृत हि्न्दू की संपत्ति पर उन का उत्तराधिकार होता है। प्रथम श्रेणी के जितने भी उत्तराधिकारी होंगे उन सब का मृत व्यक्ति की संपत्ति में समान अधिकार होता है। प्रथम श्रेणी का कोई भी उत्तराधिकारी न होने पर ही द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारियों को संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होता है।
आप पत्नी की पूर्व पति से संतानों पर दूसरे पति की संपत्ति के अधिकार की बात करना चाहती हैं। इस तरह का कोई भी अधिकार केवल विवाह के समय पति द्वारा स्वेच्छा से प्रदत्त किया जा सकता है या पत्नी के साथ हुई किसी संविदा के अंतर्गत ही प्रदान किया जा सकता है अन्यथा नहीं। उत्तराधिकार तो किसी भी प्रकार से उसे प्राप्त नहीं हो सकता। क्यों कि ऐसी संतान किसी भी प्रकार से पति की रक्त संबंधी नहीं हो सकती और उसे इस प्रकार का अधिकार प्राप्त होना उत्तराधिकार के मूल सिद्धांत के विपरीत होगा। वैसे भी पत्नी के पूर्व पति की संतान को अपने पिता का उत्तराधिकार प्राप्त होगा और अपनी माता का भी। जहाँ तक दत्तक संतान का प्रश्न है, किसी भी दत्तक संतान को दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता की औरस संतान की ही तरह अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। इस तरह जिसे भी दत्तक ग्रहण किया जाएगा उसे ये अधिकार प्राप्त होंगे। अब यह और बात है कि कोई पति अपनी पत्नी के पूर्व पति से उत्पन्न संतान को दत्तक ग्रहण करता है तो ऐसी संतान को दत्तक पुत्र होने के नाते ये सब अधिकार प्राप्त होंगे, न कि पूर्व पति से उत्पन्न पत्नी की संतान होने के कारण।
पत्नी की संपत्ति में पति एक भाग उत्तराधिकार में प्राप्त करने का अधिकारी है
समस्या-
मेरी माताजी के नाम पर एक भूखंड है। माताजी का देहान्त हो गया है। उन के बाद परिवार में मेरे पिताजी, मैं और मेरा एक बड़ा भाई है। बड़ा भाई अलग रहता है उस से हमारे संबंध अच्छे नहीं हैं। आप बताएँ कि उक्त भूखंड का बँटवारा कैसे होगा? बड़ा भाई कहता है कि उस भूखंड पर पिताजी का कोई अधिकार नहीं है। क्या यह सही है?
समाधान-
किसी भी हिन्दू महिला की मृत्यु हो जाने पर उस की संपत्ति के सर्वप्रथम उत्तराधिकारी उस के पुत्र, पुत्री व पति समान रूप से हैं। वे सब एक एक भाग प्राप्त करने के अधिकारी हैं। इस तरह किसी भी महिला की सम्पति में उस के पति को उत्तराधिकार प्राप्त है। आप के भाई गलत कहते हैं। आप के पिता जी को आप की माता जी की संपत्ति में उत्तराधिकार प्राप्त है तथा वे संपत्ति का एक भाग प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
आप ने बताया है कि आप दो भाई और आप के पिता आप की माता जी के उत्तराधिकारी हैं। लेकिन आप ने नहीं बताया है कि आप के कोई बहिन नहीं है। यदि आप की एक या अधिक बहिनें हैं तो वे भी एक-एक भाग प्राप्त करने की अधिकारी हैं।
इस तरह आप की माताजी की संपत्ति में यदि आप के कोई बहिन नहीं है तो आप को, आप के भाई को तथा आप के पिताजी को प्रत्येक को माताजी की संपत्ति का एक तिहाई भाग प्राप्त करने का अधिकार है। यदि आप के एक बहिन है तो आप चारों को संपत्ति का एक चौथाई और दो बहिनें हैं तो प्रत्येक को पाँचवा हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार है।
कोई वसीयत न करने पर हिन्दू स्त्री की संपत्ति उत्तराधिकार में किसे प्राप्त होगी?
समस्या---
एक परिवार में पति-पत्नी और तीन बेटे हैं। पत्नी हमेशा गृहणी रही यानी उनकी अपनी कोई आय नहीं थी। बड़े बेटे का विवाह हो चुका है और वह उसकी पत्नी के साथ अलग रहता है। शेष दोनों बेटे अविवाहित हैं और विदेश मे हैं। अभी माँ का देहांत होगया है। माँ ने कुछ कैश और एफ डी करा रखी थी जिसका उनके पति कहते हैं उनको पता नहीं है। माँ के पास कुछ जेवर भी थे जैसे 3 सोने की चैन { हर बेटे ने एक दी थी } २ सोने के कड़े { जो उन्होने बहू को मुहँ दिखाई में दिये थे और वापस ले लिये } इस अलावा एक चैन जो उनको बहू के मायके से मिली थी। मैं जानना चाहती हूँ की क्या माँ की जो ये सम्पत्ति है, उस पर बेटों और पति का अधिकार है या केवल पति का जो चीज़ बहू को मुहँ दिखाई में देने के बाद वापस ली गयी, उस पर बहू का अधिकार होगा या नहीं? जो चीज बहू के मायके से दी गयी थी सास को उस पर किसका अधिकार बनता हैं? बड़े बेटे के बेटे-बेटी का क्या क़ानूनी अधिकार हैं? बैंक में जो पैसा हैं उस पर क्या बहू का अधिकार है या बेटे के बेटे-बेटी का कोई कानूनी अधिकार है?
उत्तर –
आप ने संपत्ति का अलग-अलग वर्णन कर के प्रश्न को बहुत जटिल बना दिया है, वास्तव में यह इतना जटिल नहीं है। सब से पहले हमें यह निर्णय करना चाहिए कि कौन सी संपत्ति मृतक गृहणी महिला की थी, और कौन सी उन के पास अमानत के रूप में थी? वे गृहणी थीं, और उन की स्वयं की कोई आय नहीं थी। इस कारण से उन के पास स्वअर्जित संपत्ति नहीं थी। लेकिन कोई भी व्यक्ति उपहार के रूप में कोई भी संपत्ति अर्जित कर सकता है। इस तरह अर्जित संपत्ति उस की स्वयं की संपत्ति होती है। किसी स्त्री को किसी भी व्यक्ति से मिला उपहार उसी की संपत्ति होता है। इस मामले में जो धनराशि नकद अथवा सावधि जमा के रूप में बैंक में उन गृहणी के नाम से जमा है वह उन की स्वयं की संपत्ति थी। उन के पास तीन सोने की चैनें जो उन के बेटों ने उन्हें उपहार में दी थीं वे उन की अपनी संपत्ति थी। दो सोने के कड़े जो वे अपनी बहू को उपहार में दे चुकी थीं और वापस ले लिए थे वे पहले से ही बहू की संपत्ति हैं, उन गृहणी के पास वे केवल अमानत के बतौर रखे हुए थे। जो चैन बहू के मायके से उन्हें मिली है वह भी उन की स्वयं की संपत्ति है क्यों कि वह उन्हें उपहार में प्राप्त हुई है। इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि उन्हें वह किस से उपहार में प्राप्त हुई थी। इस तरह हम देखते हैं कि उन के पास जो भी संपत्ति आपने बताई है, उन में से बहू को उपहार में दे कर वापस ले लिए गए दो सोने के कड़ों के अतिरिक्त सभी संपत्ति उन गृहणी की हैं। बहू की अमानत पर तो उसी बहू का अधिकार है, जिसे वे सोने के कड़े उपहार में दिए गए थे। शेष संपत्ति किसे प्राप्त हो इस का निर्धारण हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के उपबंधों के अनुसार होगा।
किसी भी हिन्दू स्त्री की मृत्यु हो जाती है और वह कोई वसीयत नहीं कर जाती है तो उस की संपत्ति के उत्तराधिकार का निर्णय निम्न क्रम में होगा-
क. सर्वप्रथम उस के पुत्रों और पुत्रियों (यदि किसी पुत्र या पुत्री का देहान्त पहले ही हो गया हो तो उस के पुत्र पु्त्रियों को अपने पिता या माता के बराबर के भाग सहित) व पति को बराबर भागों में प्राप्त होगा।
अर्थात् – यदि किसी महिला के दो पुत्र, दो पुत्रियाँ और पति हैं तो उस की संपत्ति पाँच भागों में विभाजित की जाएगी और एक भाग प्रत्येक को प्राप्त होगा
क. सर्वप्रथम उस के पुत्रों और पुत्रियों (यदि किसी पुत्र या पुत्री का देहान्त पहले ही हो गया हो तो उस के पुत्र पु्त्रियों को अपने पिता या माता के बराबर के भाग सहित) व पति को बराबर भागों में प्राप्त होगा।
अर्थात् – यदि किसी महिला के दो पुत्र, दो पुत्रियाँ और पति हैं तो उस की संपत्ति पाँच भागों में विभाजित की जाएगी और एक भाग प्रत्येक को प्राप्त होगा
पिता जी की संपत्ति में माता जी का हिस्सा है, आप को विभाजन के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर देना चाहिए
समस्या---
मेरे पिता जी का देहान्त 2002 में हुआ था और हम चार भाई हैं। मेरे पिताजी एक सराकारी बैंक में क्लर्क का काम करते थे, उन के देहान्त के बाद मेर भाइयों ने जिम्मेदारी से हाथ ऊपर कर लिए थे। मेरे पिताजी की मिल्कियात में केवल एक मकान है। पहले सभी भाई मकान बेचने से इन्कार कर रहे थे मगर मैं ने किसी तरह उन को मकान बेचने पर मना लिया है। लेकिन अब वे सब मेरे माता जी का हिस्सा देने से मना कर रहे हैं। क्या मेरे माता जी का हिस्सा नहीं मिल सकता और अगर मैं वकील के माध्यम से जाऊँ तो क्या मेरे माताजी का हिस्सा बरकरार रहेगा? कृपया उचित जानकारी दें।
उत्तर –
आप ने अपने प्रश्न में बहनों का उल्लेख नहीं किया है, यदि बहनें नहीं हैं तो कोई बात नहीं है। लेकिन यदि हैं तो माता जी का ही नहीं आप के पिता की संपत्ति में बहनों का भी अधिकार निहित है। वास्तविकता यह है कि हिन्दू उत्तराधिकार विधि के अनुसार। उत्तराधिकार उसी दिन, उसी समय प्रभावी हो चुका है जिस समय आप के पिता जी का देहान्त हो गया। यदि आप के पिता ने अपनी संपत्ति के संबंध में कोई वसीयत नहीं की है तो उन के सभी उत्तराधिकारियों का विधि के अनुसार अधिकार बन चुका है। इस तरह सभी उत्तराधिकारी संयुक्त रूप से उक्त मकान के स्वामी हो चुके हैं। यदि बहिन नहीं तो आप चारों भाई और माता जी का उस संपत्ति में समान हिस्सा है। यदि बंटवारा किया जाता है तो सभी को समान हिस्सा प्राप्त होगा। यदि एक बहिन है तो फिर एक हिस्सा उस का भी होगा दो बहिनें होने पर उन दोनों का एक एक हिस्सा होगा। आप के बताए अनुसार वर्तमान में 1/5 हिस्सा प्रत्येक का है। मकान बेचने से जो राशि प्राप्त होगी उस का 1/5 हिस्सा प्रत्येक लेने का अधिकारी है, माताजी का भी 1/5 हिस्सा है।
आप वकील से नोटिस दिला दें कि सब का समान हिस्सा है और उत्तराधिकार के कानून के अनुसार संपत्ति को बेच कर सब को उन का हिस्सा दे दिया जाए। यदि यह सब सहमति से नहीं होता है तो आप तुरंत न्यायालय में विभाजन के लिए वाद दाखिल कर दीजिए। न्यायालय कानून के अनुसार बंटवारा कर देगा। चूंकि वर्तमान मकान का पाँच हिस्सों में विभाजन संभव नहीं है इस कारण से उसे विक्रय करने के उपरांत सभी को उन के हिस्से की राशि प्राप्त हो जाएगी। लेकिन होगा यह कि आपसी समझौते से जहाँ यह काम आसानी से हो सकता है वहीं न्यायालय में समय लगेगा। आप आपसी समझौते का प्रयत्न करने के लिए विभाजन का वाद प्रस्तुत करने के पूर्व अथवा बाद में जिला स्थाई लोक अदालत में आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं. वहाँ सभी भाइयों को समझा कर आप के बीच समझौते आधार पर पंचाट पारित किया जा सकता है और मामला जल्दी निपटाया जा सकता है। मेरी राय में विभाजन का वाद प्रस्तुत करने और सभी भाइयों को वाद का समन मिल जाने और उन के न्यायालय में उपस्थित हो जाने के तुरंत बाद स्थाई लोक अदालत में आवेदन प्रस्तुत करना अधिक उचित कदम होगा।
मेरे पापा मुझे अपनी संपत्ति से बेदखल कर सारी संपत्ति दूसरे भाई को देना चाहते हैं, मुझे क्या करना चाहिए ?
समस्या
हम दो भाई हैं। मेरे पापा मुझे अपनी संपत्ति से बेदखल करना चाहते हैं और सारी संपत्ति दूसरे भाई को देना चाहते हैं मुझे क्या करना चाहिए ?
उत्तर .-.-.-.
आप के पापा की वह संपत्ति जिस से वे आप को बेदखल करना चाहते हैं, यदि उन की स्वअर्जित संपत्ति है तो वे उसे जिसे चाहे दे सकते हैं, बेच सकते हैं, दान कर सकते हैं या फिर वसीयत कर सकते हैं। आप के पास उन की इस इच्छा को पूरा करने से रोकने के लिए कोई कानूनी उपाय नहीं है।
यदि आप के पापा की संपत्ति उन्हें अपने पिता से या आप के परिवार के किसी बुजुर्ग से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो ऐसी संपत्ति पुश्तैनी है और उस में आप का भी अधिकार है। आप ऐसी संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकते हैं और उस के लिए दीवानी अदालत में वाद संस्थित कर सकते हैं। वाद संस्थित हो जाने के उपरांत ऐसी संपत्ति को विक्रय करने या अन्य किसी प्रकार से हस्तांतरित करने से रोकने के लिए न्यायालय से अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकते हैं।
पापा अपनी स्वअर्जित संपत्ति से आप को बेदखल न करें, इस का कानून से इतर उपाय यह है कि पापा की सेवा करें, उन्हें प्रसन्न रखें और उन्हें इस बात के लिए मनाएँ कि वे अपनी स्वअर्जित संपत्ति से आप को बेदखल न करें।
स्वअर्जित संपत्ति और बंटवारे का अधिकार
समस्या---
सर!
मेरे मम्मी-पापा अलग अलग रहते हैं। मेरी मम्मी-पापा से अलग रहने का फैसला कर चुकी है और अब वह बंटवारा चाहती है। जहाँ हमारे पापा रहते हैं वहाँ की जमीन व मकान मेरी दादी के नाम हैं। मेरी दादी सरकारी जूनियर हाई स्कूल में प्रिंसिपल है और उन्हों ने यह संपत्ति अपने स्वयं के कमाए हुए धन से खरीदी है। मेरे बाबा भी सेवा निवृत्त प्रखंड विकास अधिकारी हैं लेकिन उन के नाम पर गाँव में संपत्ति है। मुझे यह बताने का कष्ट करें कि दादी की संपत्ति पर मेरा या मेरी मम्मी का क्या और कितना अधिकार है? उस संपत्ति में से कानूनी रूप से हमें क्या मिलेगा ?
# उत्तर —
मैं ने आप से पूछा था कि आप के दादा जी और दादी जी को संपत्ति कहाँ से प्राप्त हुई है? आप ने उत्तर में यह तो बताया है कि दादी की संपत्ति उन की स्वयं की कमाई से खरीदी हुई है। लेकिन यह नहीं बताया कि दादा जी की संपत्ति उन्हें अपने पिता से प्राप्त हुई है अथवा उन की खुद की कमाई से खरीदी हुई है।
किसी भी व्यक्ति की खुद के कमाए हुए धन से अर्जित संपत्ति को स्वअर्जित संपत्ति कहते हैं। किसी भी व्यक्ति का अपनी स्वअर्जित सम्पत्ति पर उस के जीवन काल में अधिकार रहता है। वह उस संपत्ति को किसी भी तरह से हस्तांतरित कर सकता है या अपने पास रख सकता है। वह उस संपत्ति को वसीयत कर के किसी भी व्यक्ति को दे सकता है जो उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद वसीयती की हो जाती है, लेकिन में वसीयत करने वाले के जीवन काल का खुद का उस पर अधिकार रहता है।
लेकिन यदि किसी हिन्दू पुरुष को कोई संपत्ति अपने पिता से उत्तराधिकार में मिली हो तो ऐसी संपत्ति पैतृक संपत्ति होती है। उस संपत्ति में उस की संतानों का अधिकार निहित रहता है। यदि कोई विवाद हो तो उस की संतानें पैतृक संपत्ति में अपना भाग प्राप्त करने के लिए विभाजन का वाद ला सकती हैं।
आप की दादी की संपत्ति उन की स्वअर्जित संपत्ति पर उन का अधिकार है। वे अपने जीवन काल में उसे अपने पास रख सकती हैं, उसे बेच सकती हैं, किसी को दान कर सकती हैं, ट्रस्ट कर सकती हैं या किसी भी अन्य रीति से हस्तांतरित कर सकती हैं। अपने जीवन काल के उपरांत वह संपत्ति किस को मिलेगी यह वसीयत कर सकती हैं। उस संपत्ति पर किसी भी अन्य व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन यदि आप की दादी कोई वसीयत नहीं करती हैं तो उन के देहांत के उपरांत उन की शेष संपत्ति उत्तराधिकार के नियमानुसार उन के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी। उस में उन की संतानें या पूर्व में मृत संतानों की संताने सम्मिलित होंगी। यदि इस तरह आप के पिता को कोई संपत्ति प्राप्त होती है तो उस में आप का भाग होगा जिस के लिए आप अपने पिता से विभाजन की मांग कर सकते हैं। इसी तरह का नियम आप के दादा की स्वअर्जित संपत्ति पर लागू होगा। लेकिन यदि दादा के पास कोई संपत्ति ऐसी है जो उन्हें अपने पिता या पूर्वजों से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो ऐसी संपत्ति में आप का भाग है और आप उस संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि आप को या आप की माता जी
को संपत्ति में बंटवारे का कोई हक नहीं है।
को संपत्ति में बंटवारे का कोई हक नहीं है।
आप की माताजी ने अलग रहने का निर्णय क्यों लिया यह आप ने नहीं बताया है। लेकिन कोई तो कारण रहा ही होगा। आप की माता जी के पास यदि आप के पिता जी से अलग रहने का कोई कारण है तो आप की माता जी उन से गुजारे भत्ते की मांग कर सकती हैं। जो कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125, या हिन्दू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत मांगा जा सकता है और न देने पर उसे के लिए अदालत में दावा किया जा सकता है। आप की आयु यदि 18 वर्ष से कम की है तो आप भी इन दोनों कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत कार्यवाही कर सकते हैं। लेकिन आप को या आप की माता जी को आप के दादा जी, दादी जी और पिता जी की अर्जित संपत्ति में बंटवारा कराने का अधिकार नहीं है।
अपने पिता की मृत्यु के उपरांत मेरी पत्नी का उन की संपत्ति में क्या अधिकार है?
समस्या--
सर,
मेरी पत्नी माता-पिता की इकलौती संतान है। गाँव में कृषि भूमि है, घर है, पत्नी के पिता का देहान्त मार्च, 2010 में हो गया है। पत्नी की माता जी अपनी पुत्री को कुछ भी नहीं देना चाहती है। कृषि भूमि का बैनामा या वसीयत पत्नी के चाचा के लड़के को करने का मन बना लिया है। ऐसी स्थिति में पत्नी का किस संपत्ति में किस कानून की किस धारा के अनुसार क्या अधिकार बनता है? कानूनी सलाह कितने ही वकीलों से कर ली है। कोई उचित सलाह नहीं मिल सकी है। कृपया उचित सलाह दें जिस से कोई गलत कदम नहीं उठे।
उत्तर —
आप की समस्या बहुत जटिल नहीं है। आप की पत्नी के पिता के देहान्त के समय उन के दो ही उत्तराधिकारी हैं। एक पत्नी और दूसरी पुत्री। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-10 के अनुसार आप की पत्नी के पिता की जो भी संपत्ति है, चाहे वह खेती की भूमि हो, मकान हो , बैंक जमाएँ हों या कोई चल संपत्ति हो, समस्त संपत्ति पर उन की मृत्यु के साथ ही उन के दोनों उत्तराधिकारियों, अर्थात् आप की पत्नी और उन की माताजी को बराबर का हक प्राप्त हो चुका है। आधी संपत्ति पर आप की पत्नी की माताजी का अधिकार है और आधी पर आप की पत्नी का अधिकार है। अब क्यों कि संपत्ति का अभी विभाजन नहीं हुआ है, इस लिए समस्त संपत्ति पर दोनों का सामूहिक स्वामित्व है औऱ संपत्ति अविभाजित संपत्ति है। आप की पत्नी सक्षम न्यायालय में संपत्ति के विभाजन का वाद संस्थित कर के अपना अधिकार प्राप्त कर सकती है।
कृषि भूमि के विभाजन के लिए वाद राजस्व न्यायालय में दाखिल किया जा सकता है। दीवानी न्यायालय में सारी ही संपत्ति का विभाजन का वाद दाखिल किया जा सकता है। इस मामले में आप स्थानीय वकीलों से सलाह कर सकते हैं। आप को आप के जिला मुख्यालय पर जिला न्यायालय में प्रेक्टिस करने वाले वरिष्ठ दीवानी मामलों के वकील से इस मामले मे सलाह करनी चाहिए, और संतुष्ट होने पर उन्हें विभाजन के लिए वकील नियुक्त करना चाहिए।
हिन्दू स्त्री की संपत्ति का उत्तराधिकार
समस्या-
एक विधवा स्त्री बीमार है। वह अपनी संपत्ति किसी को लिखी नहीं है। साथ ह उस के कोई सन्तान नहीं है। उस के पति की मृत्यु के बाद सारे कर्मकाण्ड उस के पति के चचेरे भाई ने किए हैं। क्या संपत्ति पर उस के पति की विधवा बहिन की पुत्रवधु का हक जायज है कि विधवा स्त्री के भाई के पुत्र का दावा जायज है?
समाधान-
आप ने यह नहीं बताया कि यह विधवा स्त्री जीवित है अथवा उस का देहान्त हो चुका है। आप के प्रश्न से प्रतीत होता है कि उक्त विधवा स्त्री का देहान्त हो चुका है और अब उस की संपत्ति पर विवाद है। खैर¡
किसी भी हिन्दू स्त्री की संपत्ति उस की अबाधित संपत्ति होती है। अपने जीवन काल में वह इस संपत्ति को किसी को भी दे सकती है, विक्रय कर सकती है या हस्तान्तरित कर सकती है। यदि वह स्त्री जीवित है तो वह अपनी संपत्ति को किसी भी व्यक्ति को वसीयत कर सकती है। जिस व्यक्ति को वह अपनी संपत्ति वसीयत कर देगी उसी को वह संपत्ति प्राप्त हो जाएगी। चाहे वह संबंधी हो या परिचित हो या और कोई अजनबी।
यदि उस विधवा स्त्री का देहान्त हो चुका है तो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-15 के अनुसार उस की संपत्ति उस के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।
1. किसी भी स्त्री की संपत्ति सब से पहले उस के पुत्रों, पुत्रियों (पूर्व मृत पुत्र-पुत्री के पुत्र, पुत्री) तथा पति को समान भाग में प्राप्त होगी। इस श्रेणी में किसी के भी जीवित न होने पर …
2. उस के उपरान्त स्त्री के पति के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी। पति का कोई भी उत्तराधिकारी जीवित न होने पर …
3. स्त्री के माता-पिता को प्राप्त होगी। उन में से भी किसी के जीवित न होने पर …
4. स्त्री के पिता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी। उन में से भी किसी के जीवित न होने पर …
5. माता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।
क. किन्तु यदि कोई संपत्ति स्त्री को अपने माता-पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो स्त्री के पुत्र-पुत्री (पूर्व मृत पुत्र-पुत्री के पुत्र, पुत्री) न होने पर स्त्री के पिता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।
ख. यदि कोई संपत्ति स्त्री को पति से या ससुर से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो स्त्री के पुत्र-पुत्री (पूर्व मृत पुत्र-पुत्री के पुत्र, पुत्री) न होने पर उस के पति के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।
आप के मामले में केवल दो उत्तराधिकारियों पति की विधवा बहिन की पुत्रवधु एवं विधवा स्त्री के भाई के पुत्र का उल्लेख किया है। इन में से विधवा स्त्री के भाई का पुत्र तो निश्चित रूप से उस स्त्री के पिता का उत्तराधिकारी है जो कि चौथी श्रेणी का उत्तराधिकारी है। जब कि विधवा बहिन का पुत्र ही पति के चौथी श्रेणी के उत्तराधिकारियों में सम्मिलित है लेकिन विधवा बहिन की पुत्रवधु पति के किसी भी श्रेणी के उत्तराधिकारियों में सम्मिलित नहीं है। इस प्रकार उत्तराधिकार के क्रम में विधवा स्त्री के भाई का पुत्र ही उस विधवा स्त्री की संपत्ति का उत्तराधिकारी होगा।
हिन्दू पुरुष का उत्तराधिकार
समस्या-
कृपया हमें कृषि भूमि के सम्बन्ध में उत्तराधिकार कि वर्तमान वरीयता सूची और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम कि वर्तमान उत्तराधिकार की वरीयता सूची की जानकारी देने का कष्ट करें ।
समाधान-
उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि में उत्तराधिकार किस प्रकार होगा? इस पर एक पोस्ट “उत्तरप्रदेश में कृषि भूमि पर उत्तराधिकार की विधि” पहले तीसरा खंबा पर लिखी जा चुकी है। इसे आप यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं।
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत किसी पुरुष के लिए उत्तराधिकार सूची निम्न प्रकार है ….
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
एक पुरुष के उत्तराधिकार के लिए अनुसूची-
प्रथम श्रेणी
पुत्र, पुत्री, विधवा, माँ, एक पूर्व मृतक पुत्र के पुत्र, एक पूर्व मृतक पुत्र की पुत्री, एक पूर्व मृतक की पुत्री के पुत्र, एक पूर्व मृतक की पुत्री की पुत्री, एक पूर्व मृतक पुत्र की विधवा, पूर्व मृतक पुत्र के पूर्व मृतक पुत्र का पुत्र, एक पूर्व मृतक पुत्र के एक पूर्व मृतक पुत्र की पुत्री, एक पूर्व मृतक पुत्र के एक पूर्व मृतक पुत्र के पुत्र की विधवा।
पुत्र, पुत्री, विधवा, माँ, एक पूर्व मृतक पुत्र के पुत्र, एक पूर्व मृतक पुत्र की पुत्री, एक पूर्व मृतक की पुत्री के पुत्र, एक पूर्व मृतक की पुत्री की पुत्री, एक पूर्व मृतक पुत्र की विधवा, पूर्व मृतक पुत्र के पूर्व मृतक पुत्र का पुत्र, एक पूर्व मृतक पुत्र के एक पूर्व मृतक पुत्र की पुत्री, एक पूर्व मृतक पुत्र के एक पूर्व मृतक पुत्र के पुत्र की विधवा।
द्वितीय श्रेणी
1. पिता।
2. (1) पुत्र की पुत्री का पुत्र (2) पुत्र की पुत्री की पुत्री, (3) भाई, (4) बहन।
तृतीय श्रेणी
(1) पुत्री के पुत्र का पुत्र , (2) पुत्री के पुत्र की पुत्री, (3) पुत्री की पुत्री का पुत्र, (4) पुत्री की पुत्री की पुत्री।
चतुर्थ श्रेणी
(1) भाई का पुत्र (2) बहन का पुत्र, (3) भाई की पुत्री (4) बहन की पुत्री।
पंचम श्रेणी
पिता के पिता, पिता की माँ।
षष्टम श्रेणी
पिता की विधवा, भाई की विधवा है.
सप्तम श्रेणी
पिता के भाई, पिता की बहन।
अष्टम श्रेणी
माँ के पिताजी, माँ की बहन।
नवम श्रेणी
माँ का भाई, माँ की बहन।
स्पष्टीकरण – इस अनुसूची में भाई बहन के लिए यूटेराइन ब्लड से उत्पन्न एक भाई या बहन का संदर्भ नहीं शामिल नहीं है।
मुसीबत किसी भी समय धरती फोड़ कर बाहर निकल सकती है
समस्या-
हमारे पापा लोग 6 भाई है 2 चाचा बाहर नौकरी करते हैं। हमारे सब से छोटे चाचा की शादी लगभग 20 वर्ष पूर्व ग्वालियर से हुयी थी। चाची झूठा दहेज प्रकरण लगाकर लगातार पैसों की मांग कर रही है। इस में हमारे पापा और एक चाचा का नाम झूठा फँसाया गया है। चाची चन्देरी में हमारे यहाँ रहती थी। एक साल पूर्व घर से पूरा जेवरात ले कर भाग गई और चन्देरी थाने में प्रकरण दर्ज करा दिया जो झूठा है। हमें क्या करना चाहिए।
समाधान-
हमारा समाज बहुस्तरीय है। संविधान और कानून जहाँ स्त्रियों को बराबरी का अधिकार देता है वहीं हमारा समाज इस के लिए अभी तैयार नहीं है। वह पुरानी रवायतों को बनाए रखना चाहता है जिस में स्त्रियों को अधिकार नहीं थे। अभी कितने लोग हैं जो माता, पिता की मृत्यु पर बहनों को संपत्ति में बराबर का अधिकार देना चाहते हैं? एक लड़की विवाह कर के ससुराल आती है साथ में कुछ जेवर और दहेज लाती है। वह 20 साल तक संयुक्त परिवार में रहती है। सुबह उठने से ले कर सोने तक काम करती है। घर के पुरुष दिन भर काम कर के कमाते हैं, जितना वे काम करते हैं उस से कम स्त्रियाँ घरों पर नहीं करतीं। पुरुषों को उन के काम का पूरा वेतन मिलता है या व्यवसाय से लाभ मिलता है जो पुरुषों की सम्पत्ति हो जाती है। लेकिन स्त्रियों को उन के काम के बदले क्या मिलता है? कुछ नहीं। उन स्त्रियों में से कोई एक अपने पति या ससुराल वालों के व्यवहार से या अनथक परिश्रम से थक कर अपने जेवर ले कर चली जाती है। अपने जो सामान आप के यहाँ छोड़ गई है उन की मांग करती है या उन्हें पाने के लिए मुकदमा कर देती है तो लोग उसे ही दोषी ठहराते हैं। वास्तव में तो जितनी संपत्ति पति ने पिछले 20 सालों में कमा कर बचाई है उस में आधी तो उस की पत्नी की ही है। क्यों कि उस में उस के श्रम की बलि चढ़ी है।
अब केन्द्र सरकार जल्दी ही कानून बनाने वाली है कि पति पत्नी के बीच यदि तलाक होाग तो पति की आधी संपत्ति पत्नी के नाम हस्तांतरित हो जाएगी अर्थात पति की सम्पत्ति में आधा हक पत्नी का होगा। इस कानून से सावधान हो जाइए। सब लोग जो अपनी पत्नी को ये अधिकार नहीं देना चाहते वे कानून बनने के पहले ही अपनी पत्नी को तलाक दे देंगे तो लाभ में रहेंगे वर्ना पत्नी ने बाद में तलाक मांग लिया तो आधी संपत्ति से हाथ धो बैठेंगे।
आप को चाहिए कि आप का परिवार अपनी शेष बहुओं को संभाले उन से मनुष्य की तरह व्यवहार करे। यह मानें कि परिवार की समृद्धि में स्त्रियों का बराबर का हक है। उन्हें पारिवारिक निर्णयों में बराबरी प्राप्त है। जहाँ तक आप की चाची का प्रश्न है तो उस से मिलें। परिवार की गलतियाँ जो रही हों उन्हे स्वीकार करें। उसे मनाएँ। उसे कहें कि वह भी परिवार का उसी तरह समान हिस्सा है जैसे परिवार के अन्य पुरुष और महिलाएँ हैं। वह मान जाती है और मुकदमा खारिज करवा कर वापस आने को तैयार हो जाती है तो बहुत अच्छा है। नहीं होती है तो उसे उस के हक की राशि देकर चाचा-चाची के बीच सहमति से तलाक करवाइए। इस पर भी न माने तो अच्छा सा वकील करें जो कानूनी नुक्ते निकाल कर आप को इस मुकदमे की मुसीबत से बचा सके।
अब तो सब को यह सोच लेना पड़ेगा कि स्त्रियों को परिवार में बराबरी का अधिकार दे ही दें। उन्हें इंसान समझें, परिवार की बराबर की इकाई समझें। उन्हें बराबर का अधिकार भी दें। न देंगे तो मुसीबत किसी भी समय धरती फोड़ कर बाहर निकल सकती है।
बँटवारे का वाद प्रस्तुत कर संपत्ति के कब्जे और स्वामित्व में परिवर्तन को रोकने के लिए आवेदन करें
समस्या-
दिल्ली में हमारी संपत्ति है। दादा जी का देहान्त 2006 में हो गया है। उन्हों ने अपनी संपत्ति का कोई बँटवारा नहीं किया और न ही कोई वसीयत की है। पिताजी और सब से छोटे चाचा दिल्ली में रहते हैं, शेष सब केरल में निवास करते हैं। सब से छोटे चाचा संपत्ति पर कब्जा करने की नीयत रखते हैं। कुछ समय पहले उन्हों ने संपत्ति पर लगे पेड़ों को बिना किसी से सलाह किए और अनुमति प्राप्त किए काट दिया और अपने काम में ले लिया। मेरे पिताजी उस समय तुरंत छोटे भाई से जा कर बात करते उस के पहले ही छोटे चाचा ने उन्हें अपने काम में ले लिया। अब वे कहते हैं कि मैं सारी प्रोपर्टी पर कब्जा कर लूंगा। हम उक्त प्रोपर्टी के बारे में स्थगन प्राप्त करना चाहते हैं। संपत्ति के सभी मूल दस्तावेजात पिता जी के पास हैं। हमें क्या करना चाहिए?
समाधान-
आप के दादा जी का देहान्त होते ही उन की संपत्ति पर उन के सभी उत्तराधिकारियों का संयुक्त स्वामित्व स्थापित हो चुका है जो कि संपत्ति का बँटवारा होने और सब को अपने हिस्से की संपत्ति पर कब्जा प्राप्त होने तक बना रहेगा। संयुक्त स्वामित्व का लाभ उठा कर आप के एक चाचा उक्त संपत्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं तो उन्हें तुरंन्त रोका जाना चाहिए।
आप के पिता को चाहिए कि वे तुरन्त बिना कोई देरी किए संपत्ति के बँटवारे के लिए वाद प्रस्तुत करें। इस वाद में आप के पिताजी के सभी भाई और बहनें तथा यदि आप की दादी जीवित हैं तो वे भी पक्षकार बनाई जाएंगी। इसी वाद में अलग से आवेदन कर के आप उक्त संपत्ति के कब्जे और स्वामित्व में किसी भी तरह का परिवर्तन न किए जाने के लिए न्यायालय से व्यादेश प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप के चाचा उक्त संपत्ति की आय को अपने काम में ले रहे हैं तो आप के पिताजी इसी वाद मे एक आवेदन दे कर संपूर्ण संपत्ति किसी रिसीवर के कब्जे में देने तथा उस की आय को बँटवारे के लिए सुरक्षित रखने का आदेश न्यायालय से प्राप्त कर सकते हैं।
पुश्तैनी संपत्ति में पुत्रियों का हिस्सा
समस्या-
हमारी पुश्तैनी जायदाद जयपुर में स्थित है। बीस वर्ष पहले पिताजी ने उस के तीन हिस्से किए। एक स्वयं रखा और एक-एक हिस्सा मुझे और मेरे भाई को दे दिया। मेरी दो बहनें हैं जो बीस साल पहले अविवाहित थीं, लेकिन अब विवाहित हैं। क्या बीस साल पहले जो विभाजन हुआ था वह वैध था? अब पिताजी अपना हिस्सा मेरे भाई को देना चाहते हैं। क्या वे उन का हिस्सा मेरे भाई को दे सकते हैं?
समाधान-
बीस वर्ष पूर्व आप की बहनों को पुश्तैनी संपत्ति में भरण पोषण का अधिकार था। इस कारण से उन का हिस्सा पुश्तैनी संपत्ति में था। इस तरह बीस वर्ष पूर्व किया गया संपत्ति का विभाजन वैध नहीं कहा जा सकता। यदि आप की बहनें चाहें तो न्यायालय से उक्त विभाजन को निरस्त करवा सकती हैं।
अभी आप के पिता जीवित हैं, वर्तमान कानूनी स्थिति में पुत्रियों को पिता की तथा पुश्तैनी संपत्ति में उतना ही अधिकार है जितना कि आप दोनो भाइयों को था। इस कारण से यदि आप के पिता अपने हिस्से को आप के भाई को किसी भी प्रकार से हस्तांतरित करते हैं तो वह भी वैध नहीं होगा।
पुत्रियों को पिता के उत्तराधिकार में पुत्रों के समान अधिकार है।
चुन्नीलाल की स्व-अर्जित 4 एकड भूमि थी। चुन्नीलाल की म़त्यु 1977 में हदयघात से हो गई। चुन्नीलाल के 4 पुत्र एवं 3 पुत्री हैं। खसरे में, वर्तमान में चारों भाईयों का नाम है। क्या अब हिन्दू उत्तराधिकार 2005 के तहत तीनों पुत्रियों का नाम खसरे में आ सकता है? ताकि बटवारे में हिस्सा मिल सके, वर्तमान में किसी भी प्रकार का चारों भाईयों में कोई बटवारा नहीं हुआ है और न ही कोई विवाद है। क्या वर्तमान में चल रहे पुत्री उत्तराधिकार का लाभ मिल सकता है?
समाधान-
संदर्भित 4 एकड़ जमीन चुन्नीलाल की स्वअर्जित थी। इस कारण से उन के देहान्त का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-8 के अनुसार होना है। जिस में 2005 के संशोधन अधिनियम के पहले भी यह उपबंध था कि पिता की संपत्ति में पुत्री का अधिकार पुत्रों के समान ही है अर्थात उन का भी उक्त संपत्ति में 1/7 हिस्सा है। 2005 का जो संशोधन है वह पुत्रियों को केवल सहदायिक/पुश्तैनी संपत्ति में जन्म से अधिकार प्रदान करता है।
तीनों पुत्रियों को चाहिए कि वे अपने भाइयों के नाम खुले नामान्तरण आदेश की अपील प्रस्तुत करें और जमीन के हस्तान्तरण पर रोक लगाने के लिए अस्थाई निषेधाज्ञा जारी कराएँ। इस के साथ ही कोई भी एक पुत्री अपने सभी भाइयों, बहिनों और राज्य सरकार को पक्षकार बनाते हुए उक्त संपत्ति के विभाजन का वाद प्रस्तुत करे और भूमि के हस्तान्तरण पर रोक के लिए अस्थाई निषेधाज्ञा जारी कराए।
आप वैध पत्नी नहीं लेकिन वैध पुत्रियों की माँ और संरक्षिका हैं, आप को पुत्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ना चाहिए।
समस्या-
सर, मेरा विवाह आज करीब 16-17 वर्ष पूर्व हिन्दू रीति से हुआ था। विवाह के करीब एक साल बाद मेरे पति से मेरा झगडा बढ गया और मैं अपना ससुराल छोड कर अपने मायके में आ गई और उसके बाद करीब ३-४ साल में अपने ससुराल नहीं गई, न ही वहां से मुझे कोई लेने आया। उस के बाद मेरे घर वालों ने मेरा दूसरा विवाहकरा दिया।दूसरे पति के साथ मैं 8-10 वर्ष रही। करीब 2 वर्ष पहले पहले मेरे दूसरेपति का स्वर्गवास हो गया, जिन के दो बालिग २ पुत्र हैं। उनकी मां का यानी मेरे दूसरे पति की पहली पत्नी का देहान्त मेरी दूसरी शादी के 2 वर्ष पहले ही देहान्त हो गया था। मेरे दूसरे पति सरकारी कर्मचारी थे और मेरे पहलेपति भी सरकारी कर्मचारी थे अब मैं ने अपने दूसरे पति के स्थान पर अनुकंपानियुक्ति एवं उनके समस्त देय स्वत्वों के लिए आवेदन दिया है जिस पर मेरेदूसरे पति के बच्चों ने आपत्ति प्रकट की हैं। वे चाहते हैं कि अनुकम्पानियुक्ति उन दोनों भाइयों में से किसी एक भाई को मिले और में चाहती हूं किअनुकंपा नियुक्ति मुझे मिले। क्योंकि मेरी दो पुत्रियां हैं। लेकिन मेरेदूसरे पति के सर्विस बुक में उनकी पहली पत्नी का नाम है और बाकी सभीनोमीनेशन भी उनकी पहली पत्नी के दोनों बच्चों के नाम पर है जो कि अभी भीहै।मेरा नाम सर्विस बुक व किसी भी रिकार्ड में नहीं है। मेरादूसरा विवाह भी वैदिक हिन्दू रीति से नहीं हुआ है। मेरा पहला पति भीजीवित है जिन से मेरा डिवोर्स नहीं है और न ही मेरे पहले पति ने अभी तक शादीकी है। मेरे दूसरे पति के दोनों बच्चे मुझे उनकी पत्नी नहीं मानते हैं। में उनकी अनुकम्पा नियुक्ति एवं उनके सभी समस्त देय स्वत्व चाहती हूं।उस के लिए मुझे क्या करना चाहिए? क्योंकि अगर यह प्रकरण कोर्ट में पहुंचताहै तो मेरे पास मेरे पहले पति से डिवोर्स नहीं है इस बारे में आपकी राय चाहतीहूं। अगर यह प्रकरण कोर्ट में चला जाता है तो मुझे स्वयं को डिवोर्स पेपर और दूसरीपत्नी साबित करना होगा। मेरी दूसरी शादी का कोई वेलिडरजिस्ट्रेशन भी नहीं है ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
आप की स्थिति से स्पष्ट है कि आप के पहले पति से आप का विवाह विच्छेद आज तक नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में आप कानूनी रूप से अपने पहले पति की पत्नी बनी हुई हैं। हिन्दू विधि में एक पति की वैध पत्नी होते हुए आप दूसरा विवाह नहीं कर सकती थीं। इस कारण आप का दूसरा विवाह वैध नहीं था। आप अपने दूसरे पति की पत्नी नहीं थीं। आप की दोनों पुत्रियाँ यदि दूसरे पति से हैं तो उन्हें तो दूसरे पति की पुत्री होने का अधिकार है लेकिन आप का पत्नी होने का नहीं। आप का दूसरे पति से जो भी सम्बन्ध था वह पति पत्नी का न हो कर लिव इन रिलेशन का था। आप के दूसरे पति भी इस सम्बन्ध को लिव इन रिलेशन ही मानते रहे अन्यथा वे अपनी सर्विस बुक आदि सेवा अभिलेख में पत्नी के स्थान पर आप का नाम अंकित करवाते। आप किसी भी स्थिति में अपने आप को अपने दूसरे पति की पत्नी साबित नहीं कर सकतीं। आप को अनुकम्पा नियुक्ति किसी स्थिति में नहीं मिल सकेगी इस कारण उस की लड़ाई लड़ना आप के लिए निरर्थक सिद्ध होगा।
आप की दोनों बेटियाँ आप के दूसरे पति की पुत्रियाँ हैं, उन के परिवार का अभिन्न हिस्सा हैं और मृतक आश्रित हैं और आप उन की माता हैं इस कारण उन की संरक्षक हैं।
आप की दोनों पुत्रियों का आप के दूसरे पति के सेवा में रहते हुए देहान्त हो जाने के कारण मिलने वाले परिलाभों पर पूरा अधिकार है। आप की पुत्रियाँ अवयस्क हैं इस कारण उन के हितों की रक्षा करने का पूरा दायित्व आप का है। इस कारण एक संरक्षक की हैसियत से आप अपनी पुत्रियों को उन के अधिकार दिला सकती हैं। आप के पति के सेवा संबंधी लाभों में पुत्रियों का हिस्सा मिले इस के लिए आप उन की ओर से आवेदन कर सकती हैं। आप की दोनों पुत्रियाँ नाबालिग हैं इस से वे परिवार पेंशन पाने की की भी अधिकारी हैं। आप को पति के लाभों में पुत्रियों के हिस्से और उन की परिवार पेंशन के लिए लड़ना चाहिए। इस मामले आप दूसरे पति के बालिग पुत्रों से बात कर के समझौता भी कर सकती हैं कि उन में से किसी एक को अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त करने में आप आपत्ति नहीं करेंगी यदि वे पति के सेवा लाभों में पुत्रियों का हिस्सा, परिवार पेंशन और आप के पति की चल अचल संपत्ति में पुत्रियों का हिस्सा देने को तैयार हों। यदि वे इस के लिए तैयार न हों तो आप अपनी पुत्रियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ सकती हैं।
संयुक्त संपत्ति में अपना पृथक हिस्सा प्राप्त करने के लिए विभाजन का वाद प्रस्तुत करें
समस्या-
मेरे नानाजी की कुल चार संतान हैं जिस में एक लड़की यानी मेरी माँ के अलावा तीन लड़के (मेरे मामा) हैं। मेरे नाना जी की अभी हाल में ही मृत्यु हो गयी है, लेकिन नानी जी जीवित हैं। नाना जी की मृत्यु के पहले उन्होंने कोई वसीयत नहीं बनायीं थी। उन्हें एक कृषि भूमि उन के चाचाजी से वसीयत में प्राप्त हुई थी। नाना जी ने कुछ जमीन मेरी मम्मी को उप पंजीयक के यहाँ २५००० रुपये का बिक्री पत्र बनवाकर मेरी माँ के नाम करवा दी थी। अब नाना जी के देहान्त के उपरान्त उन की शेष जमीन उत्तराधिकार के अनुसार बराबर भागो में बांटनी है। मुझे पता चला है कि नाना जी ने या मामा जी में से किसी ने मम्मी से धोखे से हस्ताक्षर करवाकर यह लिखवाया था कि मुझे मेरा हिस्सा मिल गया है और मुझे अब इस जमीन में कोई हिस्सा नहीं चाहिए। कृपया आप मुझे बताइए की इस तरह से धोखे से हस्ताक्षर करवा कर बने हुए दस्तावेज की वजह से मेरी माँ को अब हिस्सा मिलेगा या नहीं अगर नहीं तो इसे प्राप्त करने के लिए क्या करना पड़ेगा ?
समाधान-
आप के नाना जी को जो संपत्ति वसीयत के द्वारा आप के नाना जी के चाचा जी से प्राप्त हुई थी वह पुश्तैनी संपत्ति नहीं थी और आप के नाना जी उस संपत्ति या उस के किसी भाग को किसी को भी विक्रय, उस की वसीयत कर सकते थे तथा किसी भी प्रकार से हस्तान्तरित कर सकते थे। उन्हों ने आप की माता जी को जो संपत्ति हस्तान्तरित की थी वह विक्रय पत्र के माध्यम से हस्तान्तरित की थी। ऐसे हस्तान्तरण को किसी भी प्रकार से किसी संयुक्त संपत्ति में से हिस्सा देना नहीं कहा जा सकता है। वेसे भी उस संपत्ति में किसी का सहस्वामित्व नहीं था तथा उस में नानाजी के जीवित रहते हुए किसी को हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। इस कारण किसी दस्तावेज पर यह लिखा होना कि आप की माता जी ने हिस्सा प्राप्त कर लिया है कुछ भी प्रमाणित नहीं करता है। इस तरह का लिखा हुआ कोई भी दस्तावेज निरर्थक है।
आप के नानाजी शेष भूमि की कोई वसीयत नहीं कर गए हैं तो वह भूमि अब उत्तराधिकार के नियम के अनुसार विभाजित होने योग्य है। आप के नानाजी के देहान्त के समय से ही उस भूमि में उन के उत्तराधिकारियों का अधिकार निहित हो गया है। आप के नानाजी के उत्तराधिकारियों में आप के नानीजी, तीन मामाजी और एक आप की माताजी कुल पाँच मौजूद हैं। इस कारण से उक्त भूमि के अब पाँच समान अधिकार वाले स्वामी हो गए हैं। उन में से कोई भी भूमि संपत्ति के विभाजन के लिए वाद प्रस्तुत कर अपना हिस्सा प्राप्त कर सकता है। आप की माता जी भी न्यायालय में अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए विभाजन और अपना पृथक हिस्सा प्राप्त करने का वाद प्रस्तुत कर सकती हैं। आप के नानाजी के जीवनकाल में लिखे गए किसी ऐसे दस्तावेज के आधार पर जिस में आप की माता जी ने स्वीकार किया है कि वे उन का हिस्सा प्राप्त कर चुकी हैं, उत्तराधिकार में उन का हिस्सा प्राप्त करने के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
पिताजी की मिल्कियत का हिस्सा प्राप्त करने के लिए क्या किया जाए?
समस्या-
मुझे मेरे पिताजी के नाम की मिल्कियत से हिस्सा लेना है, मुझे इस के लिए क्या करना होगा? हम चार भाई थे, मैं सब से छोटा हूँ। मुझे से बड़े भाई की एक्सीडेंट में मृत्यु हो चुकी है, उन की पत्नी के साथ मेरा विवाह हुए 16 वर्ष हो गए हैं, उन की एक लड़की भी थी जो अभी 16 वर्ष की हो गई है। मेरे बड़े भाई हमें हिस्सा देने से मना करते हैं। कहते हैं कि सब मैं ने ही किया है तुमने कुछ नहीं किया है। मिल्कियत पिताजी के नाम पर है। पापा-मम्मी का स्वर्गवास हो गया है। मैं क्या करूँ? मुझे रास्ता दिखाएँ।
समाधान-
आप के पिता के नाम जो संपत्ति है उस में आप के पिता जी के सभी उत्तराधिकारियों का हिस्सा है। जिस में आप के चारों भाई तथा बहिनें हों तो वे भी हिस्सेदार हैं। यदि बहिन नहीं है तो माता जी का देहान्त हो जाने से अब पिताजी की संपत्ति के चार हिस्से होंगे जिस में एक एक हिस्सा सभी भाइयों को प्राप्त होगा। आप एक हिस्से के अधिकारी हैं। आप के दिवंगत भाई के हिस्से का आधा उन की विधवा का है जिस का विवाह आप के साथ हो चुका है और आधा हिस्सा उनकी पुत्री को प्राप्त होगा। आप के भाई के इस कथन से कि सब कुछ उन्हीं ने किया है पिता जी की संपत्ति के उत्तराधिकार पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
आप को अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए जिला न्यायालय के समक्ष विभाजन का वाद प्रस्तुत करना होगा।
अविभाजित संपत्ति का हिस्सेदार अपना हिस्सा बेच सकता है। अपने हिस्से पर पृथक कब्जे के लिए बँटवारे का वाद प्रस्तुत करें।
समस्या-
मेरे दादा जी की मृत्यु के बाद अब तक जमीन का बंटवारा नहीं हुआ है। मेरी विधवा चाची ने कुछ जमीन की बिक्री कर दी है। अगर यह अनुचित है तो हमें क्या करना चाहिए? मेरे पिताजी दो भाई हैं। हम किस प्रकार बंटवारा करें कि सम्बंधित जमीन पर पूर्णतः हक़ मिल जाय?
समाधान-
आप के दादा जी की मृत्यु के बाद आज तक बँटवारा नहीं हुआ है। इस का अर्थ यह है कि आप के दादा जी की संपत्ति अभी तक अविभाजित हिन्दू परिवार की संपत्ति है।
अविभाजित हिन्दू परिवार की संपत्ति में कोई भी हिस्सेदार उस संयुक्त संपत्ति में अपने हिस्से को बेच सकता है उसे बेचे जाने में कोई बाधा नहीं है। विक्रय पत्र का जो पंजीयन हुआ है वह भी उस के अपने हिस्से की संपत्ति का ही हुआ होगा। यदि आप की चाची ने संपत्ति में उस के हिस्से से अधिक हिस्सा विक्रय कर दिया है तो यह गलत है। चाची सिर्फ अपना हिस्सा ही विक्रय कर सकती थी। आप उस विक्रय पत्र को चुनौती दे सकते हैं और विक्रय पत्र को इस हद तक निरस्त करवाने के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। जिस हद तक चाची ने उस के हिस्से से अधिक का विक्रय किया है।
यदि चाची ने उस का हिस्सा या उस के हिस्से से कम भूमि का ही विक्रय किया है तो इस में कोई गलती नहीं है। इस विक्रय से सिर्फ इतना अंतर पड़ा है कि जिस हिस्से की स्वामिनी आप की चाची थीं और संयुक्त संपत्ति में हिस्सेदार थीं विक्रय किए गए हिस्से के संबंध में उस भूमि का क्रेता भी आप की संपत्ति का हिस्सेदार हो गया है।
इस अविभाजित परिवार की संयुक्त संपत्ति में यदि कोई एक भी हिस्सेदार अपना हिस्सा अलग करवाना चाहता है तो वह बँटवारे के लिए दावा प्रस्तुत कर सकता है। यदि कृषि भूमि का प्रश्न है तो यह दावा राजस्व न्यायालय में प्रस्तुत करना होगा। यदि बँटवारे में अन्य संपत्तियाँ भी हैं तो उस के लिए दावा दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत करना होगा।