Tuesday, April 25, 2017

भरण पोषण के सम्बन्ध में

1-भरण पोषण की राशि में धारा 127 दं.प्र.सं. के अंतर्गत संशोधन कराया जा सकता है।

समस्या-

मेरी  शादी सन् 2008 में हुई थी। मेरी आर्थिक स्थिति के चलते मेरी पूर्व पत्नी ने मुझसे तलाक ले लिया था। मेरा तलाक सन् 2014 में मेरठ (उ0प्र0) न्यायालय में हुआ था। तलाक के बाद धारा 125 में खर्चे के मुकदमें का भी फैसला भी 2014 में ही हो गया था। जिसके बाद कोर्ट के आदेश पर प्रति माह मुझे अपनी पूर्व पत्नी को रूप्यै 3500/- का भुगतान करना पड़ता है। जो मैं कोर्ट में जमा करवाता हूँ। भुगतान में 2000/-रूपये मेरी पत्नी का और 1500/-रूपये मेरी बेटी का होता है। मेरी बेटी जो कि अब 7 वर्ष की है जो की मेरी पूर्व पत्नी के साथ ही है। चूंकि मैं अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ रहता हूँ। मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। अभी मुझे मालूम हुआ है कि मेरी पूर्व पत्नी डिग्री काॅलेज में प्राईवेट लेक्चरार हो गई है। सैलरी का मुझे नहीं पता कि कितनी मिलती है लेकिन प्राईवेट लेक्चरार को भी लगभग 20-25 हजार की सैलरी मिलती है। मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या मेरी पूर्व पत्नी नौकरी करते समय भी मुझसे खर्चा लेने की अधिकारी है? क्या मुझे न्यायालय से कोई समाधान मिल सकता है? जिससे मुझे खर्चा ना देना पड़े क्यूंकि मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। कृपया उचित समाधान बतायें।

समाधान-

         आप को न्यायालय के समक्ष दो तथ्य प्रमाणित करने होंगे। पहला यह कि आप की आय नहीं है या बहुत कम है। दूसरा यह कि आप की पत्नी वास्तव में 20-22 हजार रुपया कमाने लगी है। आप इन्हें प्रमाणित करने के लिए सबूत जुटाइए। केवल आप के कहने मात्र से अदालत ये दोनों तथ्य साबित नहीं मानेगी।

यदि आप पर्याप्त सबूत जुटा लेते हैं और उक्त दोनों तथ्यों को साबित करने में सफल हो सकते हों तो धारा 127 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं और पूर्व में जो आदेश धारा 125 के अंतर्गत दिया गया है उसे संशोधित किया जा सकता है।
यदि वास्तव में आप की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और आप इस तथ्य को प्रमाणित कर देते हैं तो पत्नी को दी जाने वाली मासिक भरण पोषण राशि बन्द की जा सकती है। लेकिन बेटी के लिए दी जाने वाली राशि कम होने की बिलकुल सम्भावना नहीं है।
2-पत्नी धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम तथा धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत एक साथ भरण पोषण प्राप्त कर सकती है
समस्या-
क्या पत्नी धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम तथा धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत एक साथ दोनों उपबंधों में भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी है?
धारा- 24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत यह उपबंध किया गया है कि जब हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत पति-पत्नी के मध्य कोई भी प्रकरण किसी न्यायालय के समक्ष लंबित हो और पति या पत्नी में से किसी की भी स्वयं के भरण पोषण के लिए तथा प्रकरण के आवश्यक खर्चों के लिए कोई स्वतंत्र आय नहीं हो तो वह न्यायालय प्रार्थी के विरुद्ध अप्रार्थी को न्यायालय के आवश्यक खर्चों के लिए तथा मुकदमे के लंबित रहने के दौरान अप्रार्थी के भरण पोषण के लिए आवश्यक राशि प्रतिमाह अदा करने का आदेश प्रदान कर सकता है।
इस तरह यह उपबंध केवल हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत संस्थित किए गए प्रकरणों पर ही लागू है और इस के अंतर्गत अप्रार्थी को प्रार्थी से केवल मुकदमे के लंबित रहने की अवधि के लिए ही भरण पोषण राशि अदा किए जाने का आदेश दिया जा सकता है।
स के विपरीत धारा-125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत पत्नी को पति से भरण पोषण राशि अदा किए जाने का आदेश दिया जा सकता है जो तब तक प्रभावी रहता है जब तक कि उसे धारा-127 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत संशोधित या निरस्त नहीं कर दिया जाता है।
दोनों उपबंध पृथक पृथक हैं और दोनों में पृथक पृथक प्रभावी आदेश न्यायालय द्वारा प्रदान किए जा सकते हैं। इन में से किसी एक उपबंध में पहले से भरण पोषण की राशि अदा करने का कोई आदेश प्रभावी हो तो दूसरे उपबंध में आदेश होने के पूर्व यह आधार न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है कि प्रतिपक्षी को एक उपबंध के अंतर्गत पहले से भरण पोषण राशि प्राप्त हो रही है। ऐसी अवस्था में न्यायालय इस तर्क पर ध्यान देगा और दूसरा आदेश पूर्व आदेश को ध्यान में रखते हुए पारित करेगा। यदि न्यायालय पूर्व में पारित आदेश का ध्यान न रखते हुए दूसरा आदेश पारित करता है तो दूसरे आदेश के विरुद्ध अगले न्यायालय में अपील या निगरानी याचिका प्रस्तुत कर उसे दुरुस्त कराया जा सकता है। इस तरह दोनों आदेश उचित होंगे और दोनों आदेशों के अंतर्गत भरण पोषण राशि अदा करना आवश्यक होगा।
स संबंध में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अशोक सिंह पाल बनाम मंजूलता (AIR 2008 MP 139, 2008 (2) MPHT 275) के प्रकरण में सभी तथ्यों और विधि की विवेचना करते हुए दिनांक 14 जनवरी 2008 को निर्णय पारित किया है वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आप अपने वकील से उक्त निर्णय के प्रकाश में विमर्श कर आगे कार्यवाही करने या न करने का निर्णय ले सकते हैं।

नियमित भरण पोषण राशि हेतु धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आवेदन करें

समस्या-
मेरी शादी 2003 में हुई थी, कुछ सालों बाद मेरे ससुर, पति, देवर और सास ने एफडी तुड़वाकर एक लाख रुपए लिए और कुछ ससुर ने अपने पैसे जोड़कर एक ज़मीन खरीदी।  वो ज़मीन उन्हों ने मेरे पति और देवर के नाम पर खरीदी।  कुछ सालों बाद उन्हों ने मेरे साथ मारपीट शुरू कर दी।  तब मैं ज़मीन के ओरिजिनल पेपर लेकर अपने मायके आ गयी।  फिर मैं ने उन पर 498क का केस चला दिया।  इस पर मेरे ससुराल वालों ने तलाक़ का मुक़दमा डाल दिया।  वे एक बार भी कोर्ट के सामने उपस्थित नहीं हुए और कोर्ट ने तलाक़ का मुक़दमा खारिज़ हो गया।  8000 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से एक साल का खर्चा बाँध दिया।  क्या वह मुझे अब मिल सकता है?  दो सालों से जो 498क का केस डाला था वो भी अभी तक चालू नहीं हुआ।  क्या वह केस दब कर रह गया?  जब की पुलिस कह रही है कि हम ने चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी है। फिर मुझे पता चला कि उन्हों ने वह ज़मीन चोरी छुपे बेच दी है, जब कि उस के ओरिजिनल पेपर्स मेरे पास ही हैं।  मैं जानना चाहती हूँ कि उस ज़मीन पर मेरा कोई अधिकार है या नहीं? बिना ओरिजिनल पेपर के क्या ज़मीन बिक सकती है?  मेरे दो बच्चे भी हैं और मेरा आय का कोई साधन नहीं है, मैं अपने मायके में रह रही हूँ।
समाधान-
प के ससुर, देवर और पति ने आप की एक लाख रुपए की एफडी तुड़वा कर रुपया लिया और जमीन खरीदी उस में आप का स्वामित्व नहीं है।  उस जमीन को जिन व्यक्तियों के नाम से खरीदा गया था वे विक्रय कर सकते हैं।  जमीन के स्वामित्व के मूल दस्तावेज आप के पास होने से कुछ नहीं होता।  दस्तावेज खोने की बात कह कर उस की प्रमाणित प्रतियाँ रजिस्ट्रार दफ्तर से प्राप्त की जा सकती हैं और भूमि को आगे बेचा जा सकता है।  यदि आप उस जमीन को बेचे जाने से रोकना चाहती हैं तो आप को इस के लिए एक लाख रुपए की ब्याज सहित वापसी के लिए दीवानी वाद दाखिल कर के उस जमीन को बेचे जाने से रोकने के लिए कार्यवाही करनी होगी। यह कार्यवाही भी उस न्यायालय में करनी होगी जहाँ वह जमीन स्थित है।  इस के लिए आप जमीन के स्वामित्व के कागजात और एफडी तुड़वाने का विवरण बता कर अपने वकील से सलाह करें, वे आप को उचित मार्गदर्शन कर सकेंगे।
प ने जो 498क की शिकायत पुलिस को की है उस में आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत करने की सूचना पुलिस ने आप को दी है।  अब उस में न्यायालय आरोप तय करेगा उस के बाद ही आप को साक्ष्य (गवाही) देने के लिए समन भेजेगा।  इस काम में समय लग सकता है।  यदि आप जानना चाहती हैं कि उस मुकदमे में क्या हो रहा है तो पुलिस से आरोप पत्र प्रस्तुत करने की तिथि और न्यायालय जान कर उस न्यायालय में अपने मुकदमे की स्थिति की जानकारी अपने वकील के माध्यम से जान सकती हैं।
प के विरुद्ध जो तलाक का मुकदमा दाखिल किया गया था वह आप के पति के न्यायालय के समक्ष उपस्थित न होने से खारिज कर दिया गया है।  इस मुकदमे के लंबित रहने के दौरान आप की ओर से जो आवेदन धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया था उस में आप को न्यायालय व्यय तथा भरण पोषण देने का आदेश हुआ होगा।  यह आदेश केवल तलाक की याचिका के लंबित रहने की अवधि के लिए दिया जा सकता है।  इस आदेश के अनुसार आप भरण पोषण राशि वसूल कर सकती हैं।  इस के लिए आप को उसी न्यायालय में आदेश के निष्पादन के लिए दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 10 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत करना होगा।   इस आवेदन पर आरंभ कार्यवाही से आप की भरणपोषण की राशि की वसूली हो सकती है।
प अपनी संतान और स्वयं अपने भरण पोषण के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं।  इस कार्यवाही के द्वारा आप भरण पोषण प्राप्त करने के लिए  स्थाई आदेश प्राप्त कर सकती हैं।  इस आदेश में समय और परिस्थितियों के अनुसार भरण पोषण की राशि में वृद्धि करने, कम करने या समाप्त करने के लिए संशोधन कराए जा सकते हैं तथा भरण पोषण राशि अदा न करने पर न्यायालय में आवेदन किया जा सकता है जिस की अदायगी न करने पर पति को जेल भेजा जा सकता है।

भरण पोषण के मामले में प्रतिपक्षी को पहली पेशी पर ही जवाब और दस्तावेज प्रस्तुत करना चाहिए

समस्या-मेरी उम्र 30 वर्ष है, मेरी पत्नी मेरे माता-पिता के साथ नहीं रहने के कराण अपने पिता के घर चली गई है। मेरी प्तनी ने बिलकुल ही झूठा दहेज का मुकदमा धारा 498-ए भा.दंड संहिता तथा भरण पोषण का धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत कर दिया है। मैं प्राइवेट नौकरी करता हूँ। मेरा वेतन 5180/- रुपए प्रतिमाह है। उज्जैन कुटुम्ब न्यायालय की न्यायाधीश ने बिना मेरी सेलरी स्लिप देखे ही 3000 रुपए प्रतिमाह का अंतरिम भरण पोषण का आदेश दे दिया है। क्या ये सही है? मैं अब क्या कर सकता हूँ? क्या अब मुझे अब अपनी सेलरी स्लिप दे देनी चाहिए?
समाधान-
प ने यह नहीं बताया कि आप की पत्नी क्यों आप के माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती है। वैसे यह तर्क आम है कि आज कल की पुत्र-वधुएँ सास-ससुर के साथ नहीं रहना चाहतीं। पर इस के पीछे एक बात यह भी है कि सास-ससुर उन्हें गए जमाने की बहुओं की तरह रखना चाहते हैं। यदि बात इतनी सी है तो आप को पत्नी और माता-पिता से बात कर के अपने मसले के सुलझाने का प्रयत्न करना चाहिए।
धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के मामले में पहली दूसरी सुनवाई के समय ही अंतरिम भरण पोषण का आदेश दिया जा सकता है। कानून के अनुसार अंतरिम भरण पोषण भत्ते का आदेश न्यायालय को आवेदन प्रस्तुत होने के 60 दिनों में करना होता है। इस कारण से इस तरह के मामलों में पहली सुनवाई के समय ही अंतरिम भरण पोषण के आवेदन का जवाब तथा अपनी आपत्तियाँ प्रस्तुत करनी चाहिए और साथ में जरूरी दस्तावेज भी प्रस्तुत करना चाहिए। किसी न्यायालय का यह कर्तव्य नहीं है कि वह खुद पक्षकार से किसी खास दस्तावेज को प्रस्तुत करने के लिए कहे। प्रत्येक पक्षकार को अपने पक्ष के समर्थन के लिए आवश्यक दस्तावेज जल्दी से जल्दी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने चाहिए। आप की गलती है कि आप ने अपनी सेलरी स्लिप न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं की। अभी भी आप पूछ रहे हैं कि इसे प्रस्तुत करना चाहिए या नहीं। आप को आगामी पेशी पर सब से ताजा सेलरी स्लिप अर्थात अप्रेल 2013 के माह की प्रस्तुत करना चाहिए। यदि आप को लगता है कि अंतरिम गुजारा भत्ता अधिक तय हो गया है तो आप को मूल आवेदन का जवाब तो प्रस्तुत करना ही चाहिए उस के साथ एक अलग से आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए जिस में कहना चाहिए कि आप अपनी पत्नी को साथ रखने को तैयार हैं वही बिना किसी कारण के आप के साथ नहीं रह रही है। इस के अलावा आप को सेलरी स्लिप के साथ अपनी आय के बारे में न्यायालय को बताना चाहिए कि आप पर अपे माता-पिता का भी खर्च है इस कारण से अलग रहने वाली अपनी पत्नी को आप के वेतन के एक तिहाई वेतन से अधिक भरण पोषण भत्ता दिया जाना उचित नहीं है। आप को उसे कम करने की प्रार्थना न्यायालय से करना चाहिए।

पत्नी कोई बन्धक नहीं जो उसे सताने पर फिरौती मिल जाए।

समस्या-
मेरे पति मेरे भाई से धन चाहते हैं और भाई नहीं दे रहा है इस लिए मेरे पति ने मुझे मारा और घर से बाहर निकाल दिया। यही नहीं उन्हों ने वहाँ स्थानीय पुलिस वालों को रुपए दे कर मेरे विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट करवा दी कि मैं ने 10 तोला सोना चोरी किया है और अपने पति को मारा है। मेरी एक साल की बच्ची है। मैं अब क्या करूँ?
समाधान-
प को चाहिए था कि आप को जब मारा और घर से निकाला तुरन्त पुलिस थाना में रिपोर्ट करातीं। पर संभवतः आप इस बात से डर गईं कि पुलिस आप के पति से मिली हुई है। आप को तुरंत पुलिस अधीक्षक से मिल कर अपनी रिपोर्ट देनी चाहिए और पुलिस थाना की शिकायत भी करनी चाहिए।
वैसे आप के साथ जो व्यवहार हुआ है वह भा.दंड संहिता की धारा 498-ए का अपराध है। भारत में अधिकांश पति पत्नी को बंधक मानते हैं और सोचते हैं कि उसे कष्ट देने या या कष्ट देने की धमकी से उस के मायके वाले फिरौती की रकम दे देंगे। इस मिथक को तोड़ना पड़ेगा और उस के लिए महिलाओँ को अपने मन के भय निकाल कर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी होगी, थाना कार्यवाही नहीं करता है तो पुलिस अधीक्षक के पास जाना होगा और वहाँ भी कार्यवाही नहीं होती है तो न्यायालय में सीधे परिवाद प्रस्तुत करना होगा।
प को भी चाहिए कि पुलिस अधीक्षक को शिकायत देने के बाद भी कार्यवाही नहीं होती है तो सीधे न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत करें। आप के पति ने जो रिपोर्ट कराई है उसे साबित करना आसान नहीं है वे झूठे सिद्ध होंगे।
प को हिंसक व्यवहार के बाद घर से निकाल दिया है। आप को न्यायालय में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम में कार्यवाही करनी चाहिए। जिस में आप अपने लिए तथा अपनी पुत्री के लिए भरण पोषण का नियमित खर्च तथा पति के हिंसक व्यवहार से सुरक्षा की मांग कर सकती हैं। भरण पोषण के लिए आप धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत भी कार्यवाही कर सकती हैं। यहाँ तक कि क्रूरता की इस घटना के लिए आप अपने पति से विवाह विच्छेद के लिए आवेदन भी कर सकती है

क्रूरता की रिपोर्ट थाने में कराएँ और घरेलू हिंसा कानून की कार्यवाही करें और चाहें तो विवाह विच्छेद के लिए आवेदन करें।

समस्या-
मेरी शादी 1 दिसंबर 2007 को हुई थी। यह प्रेम विवाह था, पर मेरे पति के घर वालों ने हमें अपना लिया।  लेकिन मेरी समस्या यह है कि मेरे पति और मेरे बीच बिल्कुल नहीं बनती है। ज़रा ज़रा सी बात पर मुझे मारते हैं।  मेरी एक 2 साल की बेटी भी है।  मैं अब और उनके साथ नहीं रह सकती। आप सुझाएँ मैं क्या करूँ?
समाधान-
जिस तरह की स्थिति आप ने बताई है उस से तो बिलकुल नहीं लगता कि यह कोई प्रेम विवाह था।  आप के इस प्रेम को कच्ची उम्र का यौनाकर्षण जरूर कहा जा सकता है। खैर¡ आप के पति से आप की बिलकुल नहीं बनती और वे आप को मारते हैं। यह सीधे सीधे क्रूरता का मामला है और धारा 498-ए भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत अपराध है। आप इस की शिकायत पुलिस थाना में कर सकती हैं, तुरन्त कार्यवाही होगी। यह क्रूरता आप के पति के साथ न रहने का एक मजबूत आधार भी है। इस आधार पर आप अपनी बेटी के साथ अपने पति से अलग रह सकती हैं और उन से अलग आवास, आप के और आप की पुत्री के लिए भरण पोषण की मांग कर सकती हैं। इस के लिए आप  महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत न्यायालय में सीधे आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं। क्रूरता के आधार पर आप विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने हेतु भी आवेदन कर सकती हैं।
दि आप के पास अलग रहने की व्यवस्था हो तो जिस दिन भी आप के पति आप के साथ मारपीट करें आप बेटी के साथ तुरन्त पुलिस थाना जाएँ और रिपोर्ट कराएँ। इस रिपोर्ट पर पुलिस धारा 498-ए का मुकदमा दर्ज कर के अन्वेषण आरंभ कर देगी। उस के बाद आप आप को उपलब्ध आवास पर जा कर निवास कर सकती हैं। वहाँ रहते हुए आप अपने पति के विरुद्ध घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर अपने लिए अलग आवास, आप के और आप की पुत्री के लिए भरण पोषण की मांग कर सकती हैं। साथ ही यह आदेश भी न्यायालय से आप के पति के लिए प्राप्त कर सकती हैं कि वे आप के आवास के आस पास न आएँ और आप के व बेटी के प्रति किसी प्रकार की हिंसा न करें।
स के उपरान्त आप चाहें तो विवाह विच्छेद के लिए पारिवारिक न्यायालय को आवेदन कर सकती हैं। आप को विवाह विच्छेद के समय एक मुश्त भरण पोषण राशि भी प्राप्त हो सकती है या बेटी और आप के लिए नियमित रुप से मासिक भरण पोषण राशि अदा करने का आदेश भी हो सकता है जो बेटी को उस के विवाह तक और आप को दुबारा विवाह होने तक प्राप्त होता रह सकता है।

आप के पति के पास तलाक के लिए पर्याप्त आधार नहीं, वे आप की इच्छा के बिना विवाह विच्छेद में सफल नहीं हों सकेंगे।

समस्या-
मेरे पति मुझे तलाक देना चाहते हैं क्यों कि मैं माँ नहीं बन सकी।  हमारी शादी को साढ़े चार साल हो गए हैं।  घर में मेरी सास व जिठानी रोज ताने मारती है तथा ननद बोलती है इसे घर से बाहर निकालो। इस पर अगर मैं ने मुहँ खोला तो मुझे मेरे पति से पिटवाया जिस के कारण मेरे जिस के कारण मेरा भाई और पिता मुझे मायके ले आए जिस के बाद से मैं मायके में ही हूँ। इस के बाद मेरे पति ने मुझे तलाक का नोटिस भेजा और मुझ पर आरोप लगाया है कि मैं लड़ाई करती हूँ और उन्हें उन के माँ-बाप से अलग करना चाहती हूँ। मैं उन से तलाक नहीं चाहती हूँ। अब मेरे पति इस के लिए नहीं मान रहे हैं उन्हों ने कोर्ट से मेरे लिए नोटिस दिया है। अब अगर मैं तलाक ना देना चाहूँ तो क्या मेरी मरजी के खिलाफ कोर्ट तलाक मंजूर कर देगा? उन्हों ने मेरे ऊपर कई गलत आरोप लगाए हैं कि मैं ने बच्चा गिरवा दिया और मैं उन के साथ संभोग नहीं करना चाहती हूँ। इस में मेरी जिठानी ने उन का साथ दिया। मेरी ससुराल में कोई भी नहीं चाहता कि अब हम साथ रहें। लेकिन मैं उन के साथ ही रहना चाहती हूँ। मेरे लिए उपाय बताएँ जिस से मेरा और उन का तलाक नहीं हो।
समाधान –
किसी भी पुरुष को यदि उस की पत्नी नहीं चाहे तो उस की पत्नी से केवल मात्र कुछ आधारों पर ही विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो सकती है। आप ने जो तथ्य बताए हैं उन में से कोई भी तथ्य ऐसा नहीं है जिस के आधार पर आप के पति को आप से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो सकती हो। इस कारण से आप यह चिन्ता छोड़ दें कि आप के पति न्यायालय से आप से तलाक ले सकते हैं। जो कारण आप ने वर्णित किए हैं उन के आधार पर आप के पति आप से तलाक प्राप्त नहीं कर सकेंगे।
लेकिन जिस परिवार में सभी आप के विरुद्ध हों और पति उन के कहने पर आप की पिटाई करने को तैयार हो उस परिवार में आप कैसे जी सकेंगी यह हमारी समझ से परे है। जब तक आप के पति न समझ जाएँ कि उन्हें तलाक नहीं मिल सकता, वे आप से तलाक के बिना दूसरा विवाह नहीं कर सकते और आप की सास, जिठानी और ननद अपने निजि स्वार्थों के कारण उन्हें आप के विरुद्ध भड़का रही हैं तब तक उन के सही रास्ते पर आने की कोई गुंजाइश दिखाई नहीं देती। हमारे विचार में आप का एक लंबे समय तक अपने पति के साथ शान्तिपूर्वक रह सकना संभव नहीं हो सकेगा। वैसी परिस्थितियों में आप खुद क्या निर्णय करेंगी यह आप के ऊपर निर्भर करेगा।
फिलहाल हमारी राय यह है कि आप के साथ जो मारपीट हुई है उस से आप की सास, ननद, जिठानी और आप के पति ने आप के साथ क्रूरता की है जो कि धारा 498-ए आईपीसी के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है।  उन्हों ने आप के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार कर के घर छोड़ने को मजबूर किया है। इन परिस्थितियों में आप उन से अपना स्त्री-धन भी वापस मांग सकती हैं। नहीं देने पर धारा 406 आईपीसी का अपराध होगा। इस तरह आप उक्त दोनों धाराओं के अन्तर्गत पुलिस थाना में रिपोर्ट दर्ज करा सकती हैं या फिर सीधे मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष शिकायत प्रस्तुत कर सकती हैं। आप को यह करना ही चाहिए। इस से ही आप के पति और उन के रिश्तेदारों पर मामले में समझौता करने का दबाव बनेगा।
स के अतिरिक्त आप धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत अपने भरण पोषण की राशि देने के लिए भी न्यायालय को आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं। इस पर आदेश हो जाने पर आप के पति को आप को प्रतिमाह भरण पोषण राशि देना होगा।
प भरण पोषण की राशि के लिए, पति गृह में अलग रहने का स्थान प्राप्त करने के लिए तथा आप के पति, सास, जिठानी और ननद से अपनी सुरक्षा के लिए आदेश देने के लिए महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा का उन्मूलन अधिनियम की धारा-12 के अन्तर्गत भी आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं।
ये सब कार्यवाहियाँ करने और भरण पोषण, पतिगृह में आवास व हिंसा से सुरक्षा के आदेश हो जाने से आप के पति को समझ आने लगेगा कि उन्हें आप को प्रतिमाह खर्च देना होगा और पतिगृह में रहने का अधिकार भी देना होगा। धारा 498-ए व 406 में उन सब को सजा भी हो सकती है। इसी से आप के पति को आप से समझौता करने का दबाव बनेगा। तलाक के मुकदमे में भी यदि उन्हें लगने लगेगा कि उन्हें तलाक नहीं मिल सकेगा तो वे आप को साथ रखने के लिए तैयार हो जाएँ। ये सब कार्यवाहियाँ करते समय इस बात का भय मस्तिष्क में न लाएँ कि इस से समझौते का रास्ता बंद हो जाएगा। पुलिस तथा न्यायालय खुद भी समझौता कराने का प्रयास करेंगे और आप खुद भी समझौते का मार्ग बन्द नहीं करेंगे तो हो सकता है आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लें।

आप की बहिन अपने व अपने बेटे के लिए गुजारा भत्ता प्राप्त करने हेतु दिल्ली के न्यायालय में आवेदन कर सकती है

समस्या-
दिल्ली के एक भाई का प्रश्न
मेरी बहन का विवाह ११ साल पहले हुआ था लड़का ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था और अपने पिता के साथ ही काम करता था। देवबंद में उनके स्कूल और कॉलेज हैं। हम ने उनसे कहा के अगर कुछ ऊँच नीच हो गयी तो कौन जिम्मेदार होगा? तो लड़के के पिता ने कहा मैं पूरी तरह से लड़के की तरफ से जिम्मेदार हूँ।  शादी के कुछ दिनों के बाद से ही लड़का मेरी बहन से साथ बुरी तरह से मार-पीट करता आ रहा है।  अगर उससे पहले खाना खाते वक्त रोटी तोड़ ली तो लड़ने लगता है कि हम पुरुष प्रधान हैं और तू हम से पहले रोटी नहीं तोड़ सकती। अगर घर में कुछ चीज़ इधर उधर हो जाये तो हिंसक तरीके से बर्ताव करता है।  शादी के बाद हमें पता चला कि उसको पागलपन का मेडिकल सर्टिफिकेट मिला हुआ है और कहता है के अगर में खून भी कर दूँ तो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अगर लड़की अपने घर फोन से बात करती है तो छुरी ले के खड़ा रहता है कि क्या बात कर रही है?
क बार मारपीट में लड़की की ऊँगली तोड़ दी जिसका डॉक्टर से उनके बाप ने इलाज कराया। दो बार घर से बाहर निकाल दिया। लड़की दो तीन बजे तक घर से बाहर सड़क पर अकेली खड़ी रही और आप सो गया। आये दिन न जाने कितनी बार बिना बात के लड़की के झापड़ मार देता है और उसका सर दिवार से दे दे के मारता है। इधर उसका सम्बन्ध किसी और लड़की से भी है। हमने उसके पिता से बात की तो उन्होंने बताया कि लड़के ने मेरे उपर भी हाथ उठाया है। मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। बहन का एक लड़का भी है 10 वर्ष का। अब हम बहिन को अपने घर ले आये हैं। जब हमने लड़के से और उसके पिता से लड़की के एक्स रे रिपोर्ट और मेडिकल पेपर, और डॉक्टर की प्रेस्क्रिप्शन मांगी तो उन्होंने देने से इंकार कर दिया। लड़की के स्कूल और कॉलेज के सर्टिफिकेट भी नहीं दिए। लड़के का बाप तो काफी हद तक ठीक है लेकिन उसकी माँ और बहनें आये दिन लड़ती हैं और दहेज का ताना देती हैं। अब हमें बताये की हम लड़के के खिलाफ क्या क्या कर सकते हैं? हम पूरा खर्चा बहन का, बहन के लड़के का, रहने के लिए मकान वगैरा चाहते हैं कृपया कर के हमें दिशा दें हम देहली में रहते है और लड़का देवबंद सहारनपुर का है। रूपये पैसों की लड़के वालों के पास कोई कमी नहीं है।
समाधान-
प की बहिन के साथ बहुत अन्याय हुआ है। उस के साथ अमानवीय व्यवहार हुआ है और उस के साथ अत्यधिक क्रूरता का बर्ताव हुआ है। आपने अच्छा ही किया जो आप अपनी बहिन को इस दोज़ख से निकाल लाए। इस क्रूरतापूर्ण बर्ताव के कारण आप की बहिन को अपने पति से अलग रहने का अधिकार भी उत्पन्न हुआ है। मुस्लिम विधि के अनुसार आप की बहिन अपने पति से तलाक की मांग कर सकती है तथा तलाक न दिए जाने पर न्यायालय से तलाक भी प्राप्त कर सकती है। खैर¡ शायद अभी आप लोग ऐसा नहीं चाहते हैं।
प की बहिन को तथा बहिन के लड़के को अपने पिता से गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। इस के लिए आप की बहिन स्वयं अपनी ओर से तथा अपने बेटे की ओर से धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत देहली में जहाँ वह आप के साथ निवास करती है परिवार न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। उसे गुजारा भत्ता मिल जाएगा यहाँ तक कि आप की बहिन को न्यायालय उक्त प्रकरण की सुनवाई के दौरान भी अन्तरिम गुजारा भत्ता दिलाने का आदेश प्रदान कर सकता है। यह गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार आप की बहिन को तलाक के बाद भी जब तक वह दूसरा विवाह न कर ले तब तक है। बेटे को बालिग 18 वर्ष का होने तक गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। इसी तरह का आवेदन आप की बहिन महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत भी कर सकती है और न केवल गुजारा भत्ता अपितु अपने लिए सुरक्षा का आदेश भी प्राप्त कर सकती है।
प की बहिन के साथ जो क्रूरता हुई है वह धारा 498-ए भा.दं.संहिता के अन्तर्गत अपराध है। ससुराल में जिस जिस ने उस के साथ क्रूरता की है वे सभी अपराधी हैं। आप की बहिन की संपत्ति जो उसे उपहार के बतौर अपने मायके वालों से, ससुराल वालों से तथा मित्रों से प्राप्त हुई है वह उस का स्वयं की संपत्ति है वह उस संपत्ति को लौटाने की मांग अपने पति व उस के ससुराल वालों से कर सकती है। उस के इलाज से संबंधित दस्तावेज व शिक्षा से संबंधित दस्तावेज भी मूल्यवान प्रतिभूति हैं वह उन  की भी मांग कर सकती है। यह संपत्ति और मूल्यवान प्रतिभूतियाँ न लौटाने पर धारा 406 भा.दं.संहिता का अपराध है। इस की शिकायत आपकी बहिन पुलिस को कर सकती है और पुलिस द्वारा कार्यवाही न करने पर न्यायालय में शिकायत प्रस्तुत कर सकती है। पर क्यों कि ये अपराध देवबंद में हुए हैं इस कारण से इस की शिकायत देवबंद के पुलिस थाना या उस पुलिस थाना पर अधिकारिता रखने वाले देवबंद के न्यायालय में ही कर सकती है।
प को चाहिए कि आप दिल्ली में किसी संजीदा वकील से मिलें और अपनी बहिन व उस के बेटे की ओर से कार्यवाही तुरन्त करें। आप को धारा 498-ए तथा धारा 406 भा.दंड संहिता के अन्तर्गत कार्यवाही देवबंद में भी करनी चाहिए।

ससुराल में क्रूरता की शिकार महिला क्या करे?

समस्या-
दिल्ली  –
मेरी मौसेरी बहन मूल रूप से दिल्ली की निवासी है और दिल्ली में ही वर्ष 2004 में उसका विवाह हुआ था। उस के माता-पिता मध्यम वर्गीय परिवार से हैं औऱ वह इकलौती संतान है। विवाह में सामर्थ्य अनुसार दहेज़, जेवर, एवं अन्य घरेलू उपयोगी सामान उसे प्रदान किया गया था।  उसके ससुराल में श्वसुर की विगत पखवाड़े मृत्यु हुई है, अब उसके ससुराल परिवार में पति, सास, जेठ, एवं ननद हैं।  पति प्राइवेट नौकरी में है।  विवाह के 2-3 वर्षों बाद से ही उसे पति सहित परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा छोटी-छोटी बातों पर लड़ाईयां की जाती एवं उसके माता पिता को भला बुरा कहा जाता। विभिन्न  त्योहारों और अवसरों पर उसे अपने मायके से उपहार/ पैसे आदि लाने की मांग की जाती जिसे कि समय समय पर मेरे मौसा-मौसी पूरी करते रहे।  जिससे उनकी पुत्री याने मेरी बहन को कोई कष्ट न हो और उसके ससुराल वाले भी संतुष्ट रहे। किन्तु वे आदतन उसे किसी न किसी बात पर बुरा भला कहते एवं अनावश्यक रूप से उस से झगडा करते।  इस कृत्य में उसके पति, सास, ससुर, ननद (वर्तमान में विवाहित) बराबरी के साझेदार रहते।  उनके असंतोष का एक  कारण विवाह पश्चात बहन को अभी तक संतान प्राप्ति ना होना भी है। जिसका योग्य इलाज भी उसके मायके में रहकर चलता रहा है। कभी कभी मेरी बहन इन सब प्रताड़नाओं से थक हार कर कई महीनों तक अस्पताल में भी भर्ती रही है। बीच बीच में वो अपने माता पिता के पास आ जाती लेकिन उसके पति वापस माफ़ी मांग कर उसे वापस ले जाते।  किन्तु उनका व्यवहार थोड़े दिन सही रहता फिर वो सब अपनी वाली पर आ जाते।  उसके साथ घरेलू नौकरानी जैसा व्यवहार करते आये हैं। घर में भी उसे कोने में कमरा दे रखा था।  बनाना-खाना सब अलग था। पिछले कुछ वर्षों से उस पर हाथ भी उठाने लगे।  कुछ समय तक मान मर्यादा के डर से बहन ने यह बात सबसे छुपायी।  किन्तु जब अति होने लगी तब उसने ये बात अपने  माता पिता को बताई।  चूँकि वे भी दिल्ली में अकेले हैं एवं ज्यादा संपर्क भी उनका नहीं है और वे बात को ज्यादा बढ़ाना भी नहीं चाहते थे तो उन्होंने भी बेटी को समझा बुझा कर वापस भेजा और दामाद को भी अपना व्यवहार सुधारने को बोला।  किन्तु सब कुछ तात्कालिक रहता।  इन सब परिस्थितियो से मेरी बहन शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो गई है। विगत पखवाड़े उसके श्वसुर की अस्वस्थता के चलते म्रत्यु हो गई।  इसके बाद तो हद ही हो गयी।  उनके अंतिम संस्कार पश्चात से ही उसे ससुराल वालों की असहनीय प्रताड़नाओं से गुजरना पड़ा। उसके पति, ननद, जेठ, सास एवं अन्य उपस्थित परिजनों ने उसे मारा पीटा एवं घर में हुई उसके ससुर की मौत का कारण बहन को बताया।  उसे घर के कोने के कमरे में बंद कर के बाहर से साँकल लगा दी। 2-3 दिन उसे बंद रखा।  इस दौरान उसे सिर्फ पानी की बोतल दी वो भी फेंक कर।  उन सभी ने और उसकी सास ने कहा कि  तेरी वजह से ही मेरे पति की म्रत्यु हुई है।  बहन को शोक बैठक में नहीं बैठने दिया जाता और घर आये लोगों के सामने अपशब्द कहे जाते।  उक्त शोक के चलते मेरे मौसी एवं मौसा अपनी पुत्री के ससुराल शोक व्यक्त करने गए तो उन्हीं के सामने बहन को बाल पकड़ कर मारा पीटा एवं बीच बचाव करने आये उसके माता पिता को भी धक्का देकर गिरा दिया।  इस कृत्य में उपरोक्त उल्लेखित सभी ससुराल वाले शामिल थे।  इस कृत्य की सूचना तत्काल मेरे मौसाजी ने पुलिस कंट्रोल रूम पर दी, पुलिस आई भी लेकिन कि घर में शोक का समय देख कर दोनों पक्षों को समझा कर चली गई।  पुलिस के जाने के बाद उसके पति, सास और अन्य सभी ने बहन को उसके माता पिता सहित घर के बाहर निकाल दिया।  अब मेरी बहन एवं उसके माता पिता दोबारा उस घर में अपनी पुत्री को नहीं भेजना चाहते। वहाँ उसकी जान को भी खतरा है।  इसके अतिरिक्त इतनी दुःख तकलीफ जो उनकी बेटी ने भौगी है उसके विरुद्ध वे कानूनी कार्यवाही करना चाहते हैं। जिस में मूल रूप से शारीरिक प्रताड़ना देना, दहेज़ की मांग, मारपीट इत्यादि की शिकायत मुख्य हैं।  उन्हें उनके कृत्य की कड़ी से कड़ी सजा मिले इस हेतु उन्हें क्या विधिक कार्यवाही करनी चाहिए इस सम्बन्ध में योग्य कानूनी मार्गदर्शन प्रदान करें।
समाधान-
प की मौसेरी बहिन के वैवाहिक जीवन के आरंभ से ही अमानवीय व्यवहार हुआ है। इस व्यवहार की आप के मौसा-मौसी अनदेखी करते रहे जो नहीं की जानी चाहिए थी। इस में आप के मौसा मौसी की भी गलती है। वह उन की इकलौती लड़की है। दिल्ली जैसे नगर में रहते हुए उन्हें चाहिए था कि वे अपनी बेटी को पढ़ाते-लिखाते, कोई ट्रेनिंग कराते जिस से वह अपने पैरों पर खड़ी होती और जीवन को मजबूती से जीने की क्षमता प्राप्त करती। लेकिन उन्हों ने ये मार्ग अपनाने के स्थान पर उम्र होने पर उस का कन्यादान कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली। आज यदि आप की बहिन अपने पैरों पर खड़ी होती तो वह अपनी लड़ाई खुद मजबूती से लड़ने के साथ साथ अपने माता पिता का संबल बन सकती थी। लेकिन अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है।
जिस दिन आप के मौस-मौसी की उपस्थिति में उन की बेटी के साथ दुर्व्यवहार हुआ, बुलाने पर पुलिस आई और समझा कर चली गई। उसी दिन बाद में तीनों को घर से बाहर निकाल दिया गया। तभी आप को मौसा मौसी को पुलिस में लिखित रिपोर्ट देनी चाहिए थी। यदि अभी तक नहीं दी है तो अब दे दें। पुलिस इस मामले में धारा 498-ए, 323 व धारा 406 आईपीसी का मुकदमा बनाएगी। यदि पुलिस इस तरह का मुकदमा बनाने में कोताही करे तो आप की बहिन को चाहिए कि वह सीधे न्यायालय में इस के लिए परिवाद प्रस्तुत करे। न्यायालय उस परिवाद पर पुलिस को मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही करने का निर्देश दे देगा।
स क्रूरतापूर्ण व्यवहार के कारण आप की बहिन के पास अपने पति से अलग अपने माता पिता के साथ रहने का पूरा हक है, साथ ही अपने पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। आप की बहिन को न्यायालय में अपने गुजारे के लिए आवश्यक धनराशि प्रतिमाह अपने पति से प्राप्त करने के लिए धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत तथा घरेलू हिंसा अधिनियम के अंन्तर्गत आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत करने चाहिए। इस से सुनवाई के उपरान्त आप की बहिन को प्रतिमाह गुजारा भत्ता पति से प्राप्त करने का आदेश हो जाएगा।
लेकिन यह अंतिम मंजिल नहीं है। आप की बहिन को अंतिम रूप से अपने पति से अलग हो जाने के बारे में सोचना चाहिए। मेरी राय में आप की बहिन को इन सब कार्यवाहियों के साथ साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार के आधार पर विवाह विच्छेद की अर्जी भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करनी चाहिए। विवाह विच्छेद होने के उपरान्त भी जब तक आप की बहिन दुबारा विवाह नहीं कर लेती है उस के पति को यह गुजारा भत्ता उसे देना होगा। इस के साथ साथ आप की बहिन को चाहिए कि वह अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करे। यदि वह पढ़ी लिखी है तो किसी तरह की नौकरी के लिए प्रयास कर सकती है। यदि ऐसा नहीं है तो वह अपने माता-पिता के घर से किसी तरह का व्यवसाय आरंभ कर सकती है। दिल्ली में ऐसे अनेक व्यवसाय हैं जो घर पर रह कर महिलाएँ चला सकती हैं। एक बार आप की बहिन यदि अपने पैरों पर खड़ी हो जाए तो अपने पति और उस के परिवार से पूरा (गुजारा भत्ता प्राप्त करने तक का) संबंध समाप्त कर अपना स्वतंत्र जीवन आरंभ कर सकती है। यही सब से उत्तम उपाय है। यह भी हो सकता है कि धारा 498-ए, 323 व धारा 406 आईपीसी में दण्ड के भय से आप कि बहिन के पति और ससुराल वाले नरमी दिखाने लगें। लेकिन उन की यह नरमी पूरी तरह से फर्जी होगी। उन बातों में आने की कतई जरूरत नहीं है। हाँ यह हो सकता है कि वे दबाव में आ कर सहमति से तलाक का प्रस्ताव कर सकते हैं लेकिन जब तक पर्याप्त राशि आजीवन भरण पोषण के रूप में वे आप की बहिन को देने को तैयार न हों तब तक ऐसे प्रस्ताव पर विचार करने और उसे स्वीकार करने का कोई अर्थ नहीं है।

पति के विरुद्ध 498-ए का मुकदमा दर्ज करवा दिया है, मेरा दो साल का बच्चा किस के पास रहेगा?

समस्या-
मेरे ससुराल वाले मुझे बहुत तकलीफ देते थे।  बाद में पति ने भी मारना और घर से निकालना शुरु कर दिया। मैं मायके आई तो वहाँ भी शराब पी कर आने लगा और झगड़ा करने लगा। मेरे पिता को जान से खत्म करने की धमकी भी दी। मैं ने पुलिस स्टेशन में धारा 498-ए में रिपोर्ट करवा दी है। मेरे एक दो साल का बच्चा भी है। मैं क्या कर सकती हूँ? मेरा बच्चा दो वर्ष का है वह मेरे पास रहेगा या फिर उस के पिता के पास रहेगा।
प के साथ ससुराल में क्रूरतापूर्ण व्यवहार हुआ और मारपीट भी। इस मामले में आप का कहना है कि आप ने धारा 498-ए का प्रकरण पुलिस ने दर्ज कर लिया है। यदि ऐसा है तो आप के पति और ससुराल वालों के विरुद्ध एक अपराधिक मुकदमा तो दर्ज हो ही गया है। पुलिस इस मुकदमे में गवाहों के बयान ले कर और अन्य सबूत जुटा कर न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत कर देगी। अभियुक्तों को आरोप सुनाने के उपरान्त न्यायालय में सुनवाई आरंभ होगी जहाँ आप के और गवाहों के बयानों पर निर्भर करेगा कि आप के पति और अन्य अभियुक्तों को उक्त प्रकरण में दंड मिलेगा अथवा नहीं।
ब आप अपने मायके में रह रही हैं। 498-ए के प्रकरण के दर्ज हो जाने के उपरान्त आप के पति ने आप के मायके आ कर परेशान करना बंद कर दिया होगा। यदि यह बदस्तूर जारी है तो आप महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं। इस आवेदन पर आप के पति को पाबंद किया जा सकता है कि वह आप के मायके न आए और आप को तंग करना बंद करे। इसी आवेदन में आप अपने पति से अपने बच्चे और स्वयं अपने लिए प्रतिमाह भरण पोषण के लिए आवश्यक राशि दिलाने की प्रार्थना भी कर सकती हैं। न्यायालय ये सभी राहतें आप को दिला सकता है।
दि आप अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती हैं तो आप उस से विवाह विच्छेद के लिए परिवार न्यायालय में और आप के जिले में परिवार न्यायालय स्थापित न हो तो जिला न्यायालय के समक्ष आवेदन कर सकती हैं। साथ ही साथ धारा-125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रतिमाह अपने और अपने बच्चे  के लिए भरण पोषण राशि प्राप्त करने के लिए अलग से आवेदन कर सकती हैं।
हाँ तक बच्चे की अभिरक्षा/ कस्टडी का प्रश्न है, बच्चा आप के पास ही होगा और उसे आप के पास ही रहना चाहिए। उसे आप का पति जबरन आप से नहीं छीन सकता। यदि वह बच्चे की अभिरक्षा प्राप्त करने के लिए आवेदन करता है तो आप उस का प्रतिरोध कर सकती हैं। जिस उम्र का बालक है उस उम्र में उसे उस की माता से अलग नहीं किया जा सकता। इस तरह बालक भी आप के पास ही रहेगा। यदि आप दोनों के बीच विवाह विच्छेद होता है तो आप यह तय कर सकती हैं कि आप बच्चे को अपने पास रखना चाहती हैं या नहीं। यदि आप बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहती हैं और बच्चे का पिता उसे अपने पास रखना चाहता है तो आप इस विकल्प को चुन सकती हैं।

पति पत्नी व बच्चों को छोड़ कर दूसरा विवाह कर ले तो पत्नी क्या-क्या कर सकती है?

समस्या – 
मारी शादी को 7 साल हुए हैं। मेरा पति दो साल से भागा हुआ है और अलग रह रहा है,  उस ने तलाक का केस फाइल कर रखा है। लेकिन मैं उस से किसी भी कीमत पर तलाक नहीं देना चाहती हूँ। क्यों कि मेरे दो बच्चे हैं एक लड़का और एक लड़की। मैं अभी मायके में रह रही हूँ और हमारा सारा खर्चा मेरा और मेरे बच्चों का मेरे माता पिता ही उठा रहे हैं। मुझे अब पता चला है कि उस ने (पति ने) दूसरी शादी कर ली है, जिस में उस के माता-पिता का हाथ भी है। लेकिन बिना तलाक दिए कोई दूसतरी शादी कैसे कर सकता है? क्या उस की दूसरी पत्नी उस की जायज पत्नी हो सकती है? मैं उसे और उस के घरवालों को कानून के द्वारा सजा दिलाना चाहती हूँ और अपने बच्चों का हक लेना चाहती हूँ। इस के लिए मुझे क्या करना होगा?

समाधान-
कोई भी व्यक्ति स्त्री या पुरुष अपने विवाहित पति या पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह नहीं कर सकता। ऐसा विवाह हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत एक अवैधानिक विवाह है। ऐसा करना धारा 494 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध भी है जिस के लिए ऐसा विवाह करने वाले व्यक्ति को सात वर्ष तक के कारावास और जुर्माने के दण्ड से दण्डित किया जा सकता है। इस धारा के अंतर्गत पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकती है और पुलिस अन्वेषण कर के ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर सकती है। ऐसे मामले में पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज न किए जाने पर न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है जिसे न्यायालय पुलिस को अन्वेषण के लिए प्रेषित कर सकता है या स्वयं भी जाँच कर के ऐसे व्यक्ति को अभियुक्त मानते हुए उस के विरुद्ध समन या गिरफ्तारी वारण्ट जारी कर सकता है। लेकिन इस मामले में आप को या पुलिस को न्यायालय के समक्ष यह प्रमाणित करना होगा कि आप के पति ने वास्तव में विधिपूर्वक दूसरा विवाह किया है इस संबंध में आप को दूसरे विवाह का प्रमाण पत्र तथा उसे जारी करने वाले अधिकारी की गवाही करानी होगी अथवा ऐसे प्रत्यक्षदर्शी गवाह प्रस्तुत करने होंगे जिन के सामने विवाह संपन्न हुआ हो।
प दो वर्ष से अपने माता पिता के साथ रह रही हैं। आप को चाहिए था कि आप अपने पति के विरुद्ध धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत वैवाहिक संबंधों की प्रत्यास्थापना के लिए अथवा उस के दूसरा विवाह करने की सूचना मिल जाने पर धारा 10 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत न्यायिक पृथ्थकरण के लिए आवेदन करतीं। आप अब भी इन दोनों धाराओँ में से किसी एक के अंतर्गत कार्यवाही कर सकती हैं।  आप अपने लिए और अपने बच्चों के भरण पोषण राशि प्राप्त करने के लिए धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत आवेदन कर सकती हैं। आप इस के साथ ही महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत भी अपने लिए और अपने बच्चों के लिए भरण पोषण राशि प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकती हैं। आप के पति ने आप के विरुद्ध तलाक का जो मुकदमा चलाया है उस मुकदमें में भी आप हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 24 के अंतर्गत मुकदमे पर आने जाने और वकील की फीस व मुकदमे के खर्चे और अपने व अपने बच्चों के भरण पोषण के लिए आवेदन कर सकती हैं। इस धारा के अंतर्गत आप के पति से मुकदमे के लंबित रहने के दौरान उक्त राहत दिलाई जा सकती है, लेकिन यह राहत मुकदमा समाप्त होने के बाद जारी नहीं रहेगी।
प के पति ने जिस महिला के साथ दूसरा विवाह किया है वह विवाह अवैधानिक है और वह स्त्री वैध रूप से आप के पति की पत्नी नहीं है, वह किसी भी रूप में आप के पति की जायज पत्नी नहीं है। इस मामले में हो सकता है आप के पति के माता पिता ने आप के पति का सहयोग किया हो आप उन के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर सकती। यदि आप के पति के माता पिता व अन्य संबंधियों ने आप के प्रति कोई क्रूरता की हो तो उन के विरुद्ध आप पुलिस में धारा 498-ए भा.दं. संहिता के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करवा सकती हैं। इसी के साथ यदि आप का कोई स्त्री धन आप के पति या उस के किसी रिश्तेदार के पास हो और वह आप को वापस नहीं लौटा रहा हो तो धारा 406 अमानत में खयानत का आरोप भी जोड़ सकती हैं। इस मामले में पुलिस द्वारा कार्यवाही न करने पर आप न्यायालय में भी शिकायत कर सकती हैं। इस मामले में आप के पति के रिश्तेदारों को सजा हो सकती है।

पत्नी के साथ आपसी समझौता ही आप की समस्या का अंत कर सकता है

समस्या-
मेरी उम्र 42 वर्ष है। मेरी पत्नी द्वारा किए गए अनेक मुकदमे से मैं पूरी तरह परेशान हो चुका हूँ। मैं अपनी पत्नी कोअपने साथ रखना चाहता हूँ लेकिन वह मेरे साथ रहने को तैयार नहीं है। न ही वह मुझे तलाक देने के लिए तैयार है। मेरे ऊपर उस ने 498-क, 494 भा. दं.सं. तथा धारा 125 दं.प्र.सं.के अंतर्गत मुकदमा कर रखा है। मुझे आज मेरी माँ की मृत्यु के बाद अनु्कम्पा नियुक्ति मिली है लेकिन मैं मुकदमों के तनाव के कारण सरकारी नौकरी ठीक से नहीं कर पा रहा हूँ। मैंने कभी भी अपनी पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित नहीं किया। मैं ने दूसरा विवाह भी नहीं किया। लेकिन एक औरत पिछले नौ वर्षों से मेरे साथ रह रही है। मैं ठीक से जीवन नहीं जी पा रहा हूँ। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताएँ जिस से मैं मुकदमों से मुक्ति पा सकूँ और शेष जीवन तनाव रहित रीति से जी सकें
उत्तर प्रदेश
समाधान-
प ने अपनी समस्या में यह नहीं बताया है कि आप की पत्नी ने आप के साथ रहना कब से त्याग दिया है और उक्त मुकदमें कब से आरंभ हुए हैं। लेकिन इन तथ्यों से अब कोई भी अंतर नहीं पड़ता है। आप ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि पिछले नौ वर्षों से एक महिला आप के साथ निवास कर रही है। आप ने दूसरा विवाह नहीं किया है। हो सकता है आप के उस महिला के साथ लिव-इन-रिलेशन न हों, लेकिन एक पुरुष जिस की पत्नी उस के साथ निवास नहीं कर रही है लेकिन एक अन्य महिला उस के साथ निवास कर रही है तो सामान्य समझ यही बनती है कि उन दोनों के बीच लिव-इन-रिलेशन हैं। कोई भी पत्नी अपने पति के साथ किसी दूसरी स्त्री के संबंध को स्वीकार नहीं कर पाती है तब भी जब वह दूसरी स्त्री उस के पति के साथ न रहती हो। यहाँ तो अन्य स्त्री पति के साथ निवास कर रही है ऐसी अवस्था में उसे बर्दाश्त करना संभव ही नहीं है। यही कारण है कि आप की पत्नी आप के साथ नहीं रहना चाहती है। आप के विरुद्ध उस ने तमाम मुकदमे इसी कारण किए हैं।
प के साथ एक अन्य स्त्री निवास कर रही है। यह एक प्रधान और मजबूत कारण है जिस से आप की पत्नी को आप के साथ निवास करने से इन्कार करने का अधिकार उत्पन्न हो गया है। यदि उस ने अलग रहते हुए आप से भरण पोषण के खर्चे के लिए धारा 125 दं.प्र.सं. का मुकदमा किया है तो सही ही किया है। धारा-494 तथा 498-क के मुकदमे भी उस ने इसी लिए किए हैं। हो सकता है कि उसके इन दोनों मुकदमों में उसे सफलता प्राप्त न हो। पर उन्हें चलाने का आधार तो आप ने उस के लिए स्वयं ही उत्पन्न किया है। इस से यह स्पष्ट है कि आप की परेशानियाँ स्वयं आप की खड़ी की हुई हैं। यदि इन का आरंभ भले ही आप की इच्छा से न हुआ हो पर अब तो सब को यही लगेगा कि इन सब के लिए आप ही जिम्मेदार हैं।
प की समस्या का हल कानून और न्यायालय के पास नहीं है। आप की समस्या का हल आप की पत्नी के पास है। आप यदि अपनी समस्या का हल चाहते हैं तो इस के लिए आप को अपनी पत्नी की शरण में ही जाना पड़ेगा। किसी भी स्तर पर जा कर उस से समझौता करना पड़ेगा। यह समझौता कैसा भी हो सकता है। हो सकता है वह सहमति से तलाक के लिए तैयार हो जाए लेकिन उस के साथ आप को उसे एक मुश्त भरणपोषण भत्ता देना पड़ेगा। दूसरा हल यह है कि वह दूसरी महिला से आप के द्वारा सभी संबंध त्याग देने का वायदा करने पर आप के साथ निवास करने को तैयार हो जाए। लेकिन दूसरा हल मुझे संभव नहीं लगता है। पहला हल ही आप के मामले में सही हल हो सकता है। इसलिए आप को अपना हल तलाशने के लिए अपनी पत्नी से बात करना चाहिए। इस के लिए बीच के लोगों और काउंसलर की मदद भी आप ले सकते हैं। आप की समस्या का हल केवल आपसी समझौते से ही निकल सकता है।

सास से झगड़ा हुआ, माफी मांगने पर भी वह तलाक चाहती है, क्या किया जाए?

मेरा विवाह 12 दिसंबर 2009 को हुआ था। पत्नी के साथ मेरा कोई झगड़ा नहीं हुआ  लेकिन विदाई को ले कर मेरी सास से कहा सुनी हुई थी। इस में मेरी गलती थी इस लिए मैं ने उन से माफी मांग ली थी। लेकिन फिर भी वे मुझे माफ करने को तैयार नहीं हैं। अब वे चाहती हैं कि हमारा तलाक हो जाए, मेरी पत्नी भी तलाक के लिए कह रही है। जब कि मैं तलाक नहीं चाहता। कृपया
           आप के विवाह विच्छेद का कोई आधार ही नहीं है। आप तलाक नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में तलाक संभव नहीं है। निश्चित रूप से आप की सास आप से यह कह रही होगी कि तलाक रजामंदी से हो जाए। जो आप के न मानने तक संभव नहीं है। आप अपनी सास को स्पष्ट कह दें कि तलाक का कोई आधार और कारण उपलब्ध नहीं है, फिर भी वे चाहती हैं तो तलाक की अर्जी अदालत में प्रस्तुत करवा दें। न्यायालय स्वयं निर्णय कर देगा। 
लेकिन आप की सास जिद पर अड़ गई हैं। यदि उन्हो ने किसी वकील से सलाह ली तो निश्चित रूप से आप को घेरने के लिए धारा-125 दं.प्र.सं., धारा 498-ए व 406 भा.दं.सं. के अंतर्गत आप पर मुकदमे किए जा सकते हैं। इस से बचाव के लिए आप को तुरंत चाहिए कि आप हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए मुकदमा प्रस्तुत कर दें और उस में सारे तथ्य जो आप ने मुझे बताये हैं वे अंकित कर दें। इस से न्यायालय आप दोनों की बात सुन समझ कर समझौता करवा देगा। यदि समझौता संभव नहीं होगा तो आप के पक्ष में वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की डिक्री पारित कर देगा। सब से बड़ी बात तो यह कि आप धारा-125 दं.प्र.सं., धारा 498-ए व 406 भा.दं.सं. के प्रकरणों से बच सकेंगे। 

जन्म से हिन्दू व मुस्लिम के मध्य विवाह कैसे साबित किया जा सकेगा?

मस्या-
मैं एक मुस्लिम लड़की के साथ विगत नौ वर्ष से रह रहा हूँ।  हम दोनों बिना विवाह किए सहमति से साथ साथ रह रहे थे।  जिस के कारण राशन कार्ड, और अन्य दस्तावेजों (पासपोर्ट, जीवन बीमा पॉलिसी, संतान के जन्म प्रमाण पत्र, उस के एम. कॉम. की अंक तालिका) में उस का नाम मेरी पत्नी के रूप में अंकित है।  अब मेरे एवं मेरे माता पिता पर उस ने धारा 498-ए, 294, 323, 34 भा.दं.संहिता के अन्तर्गत मिथ्या प्रकरण दर्ज करवाया और हमें 12 दिन तक जेल में रहना पड़ा।  उस ने धारा 125 दं.प्र.संहिता के अन्तर्गत भरण पोषण के लिए भी मुझ पर प्रकरण न्यायालय में प्रस्तुत किया है।  सभी प्रकरण न्यायालय में लंबित हैं।  पुलिस ने दबाव दे कर मेरा बयान लिख लिया कि वह मेरी पत्नी है।  हमारे विवाह का कोई अन्य प्रमाण नहीं है।  क्या पुलिस द्वारा दबाव में दर्ज किए गए बयान को आधार मान कर न्यायालय द्वारा धारा 125 दं.प्र.संहिता के अन्तर्गत अन्तरिम आदेश दिया जा सकता है            छत्तीसगढ़
समाधान-
स्त्री पुरुष के बीच पति-पत्नी का संबंध विवाह से उत्पन्न होता है तथा विवाह प्राकृतिक नहीं अपितु एक सामाजिक और विधिक संस्था है।  आप एक हिन्दू हैं और वह स्त्री जिस ने आप के विरुद्ध स्वयं को आप की पत्नी बताते हुए मुकदमे किए हैं एक मुस्लिम है।  आप दोनों के मध्य वैवाहिक संबंध या तो विशेष विवाह अधिनियम के अन्तर्गत विवाह के सम्पन्न होने और उस का पंजीकरण होने से स्थापित हो सकता है या फिर आप के इस्लाम ग्रहण करने पर मुस्लिम विधि के अनुसार निक़ाह के माध्य़म से हो सकता है अथवा उस महिला द्वारा मुस्लिम धर्म त्याग कर हिन्दू धर्म की दीक्षा लेने पर सप्तपदी के माध्यम से हो सकता है।  उस महिला को स्वयं को आप की पत्नी साबित करने के लिए यह प्रमाणित करना होगा कि इन तीन विधियों में से किसी एक के माध्यम से आप के साथ उस का विवाह संपन्न हुआ था।  जो तथ्य आप ने अपने प्रश्न में अंकित किए हैं उन से ऐसा प्रतीत होता है कि वह स्वयं को आप की पत्नी सिद्ध नहीं कर सकती।
धारा-125 दं.प्र.संहिता में पत्नी को भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है लेकिन उस का पुरुष के साथ वैध रूप से विवाहित होना भी आवश्यक है। इस धारा में पत्नी शब्द को आगे व्याख्यायित करते हुए उस में ऐसी पत्नी को सम्मिलित किया गया है जिस का विवाह पति के साथ विच्छेद हो गया है और जिस ने पुनः विवाह नहीं किया है।  इस से भी स्पष्ट है कि केवल विधिक रूप से विवाहित स्त्री ही धारा-125 के अन्तर्गत भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी है।  इस धारा के अन्तर्गत किसी भी ऐसी स्त्री को अपने उस पुरुष साथी से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार नहीं है जो उस के साथ स्वैच्छा से लिव-इन-संबंध में रही है और जिस संबंध से एक या एकाधिक संतानें उत्पन्न हुई हैं। इस तरह वह महिला आप से भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है।
लेकिन आप के प्रश्न से पता लगता है कि आप दोनों के लिव-इन-संबंध से एक या एकाधिक संतानें हैं। ऐसी किसी भी संतान के लिए आप पिता हैं और वह स्त्री माता है। ऐसी वैध या अवैध अवयस्क संतान को जो कि स्वयं का भरण पोषण करने में असमर्थ है अपने पिता से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार धारा-125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत है।  आप के साथ लिव-इन-संबंध से उस स्त्री द्वारा जन्म दी गई संतान को भी आप से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है। अवयस्क अपने संरक्षक के माध्यम से ऐसा आवेदन कर सकता है।  यदि उस स्त्री ने जो आवेदन धारा-125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आप के विरुद्ध प्रस्तुत किया है उस में उस संतान के लिए भी भरण-पोषण की मांग की गई है तो न्यायालय द्वारा उस संतान के लिए भरण पोषण राशि दिलाया जाना  निश्चित है।  इस के लिए आप को तैयार रहना चाहिए।
प के प्रश्न का सार है कि पुलिस द्वारा दबाव में लिए गए बयान के आधार पर क्या वह स्त्री पत्नी सिद्ध की जा सकती है।  तो ऐसा बहुत सारे तथ्यों और उस प्रकरण में आई मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य पर निर्भर करता है।   यदि आप ने उक्त मामले में यह कहा है कि आप का यह बयान दबाव में लिया गया था तो फिर आप पर यह साबित करने का दायित्व आता है कि पुलिस ने आप पर दबाव डाला था।   यदि आप यह साबित कर पाए कि पुलिस ने ऐसा बयान देने के समय दबाव डाला था या आप पुलिस हिरासत में थे तो ही आप के उस बयान को साक्ष्य के बतौर प्रयोग नहीं किया जा सकता।  लेकिन पुलिस ने पहले बयान दर्ज किया होगा और बयान दर्ज करने के बाद आप की गिरफ्तारी दिखाई होगी।  आप के इस का प्रश्न का समुचित उत्तर समस्त साक्ष्य का अध्ययन किए बिना किया जाना संभव नहीं है।  पर मेरा मानना है कि यदि प्राथमिक तौर पर यह साक्षय रिकार्ड पर हो कि वह स्त्री जन्म से मुस्लिम है और आप जन्म से हिन्दू हैं तो फिर जब तक दोनों में से किसी एक के धर्म परिवर्तन या फिर विशेष विवाह अधिनियम में विवाह का पंजीकरण साबित किए बिना आप दोनों को पति-पत्नी साबित किया जाना संभव नहीं है।

क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत अवधि के बाद पूर्व पति से भरण पोषण प्राप्त नहीं कर सकती ?

प्रश्न-
 जनाब शरीफ़ ख़ान साहब ने सवाल किया है कि क्या तलाक शुदा मुस्लिम महिला इद्दत की अवधि के बाद भी अपने खाविंद से धारा 125 दं.प्र.संहिता में जीवन निर्वाह भत्ते के लिए आवेदन कर प्राप्त कर सकती है, यदि उस ने विवाह नहीं किया हो?
उत्तर-
  जनाब शरीफ़ ख़ान साहब मुस्लिम महिला ( तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986 (Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986) पारित होने के पहले तक तो स्थिति यही थी कि एक मुस्लिम तलाकशुदा महिला पुनर्विवाह करने तक अपने पूर्व पति से जीवन निर्वाह के लिए भत्ता प्राप्त करने हेतु धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत आवेदन कर सकती थी और प्राप्त कर सकती थी। लेकिन इस कानून के पारित होने के उपरांत यह असंभव हो गया।  इस कानून के आने के बाद स्थिति यह बनी कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला  इस कानून की धारा 5 के अंतर्गत भरण-पोषण की राशि के लिए आवेदन कर सकती है, लेकिन वह केवल उन व्यक्तियों से जीवन निर्वाह भत्ता प्राप्त कर सकती है जो उस की मृत्यु के बाद उस की संभावित संपत्ति के वारिस हो सकते हैं या फिर वक्फ बोर्ड से यह भत्ता प्राप्त कर सकती है। लेकिन धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत नहीं।
सुप्रीमकोर्ट ने इसी कानून के आधार पर बिल्किस बेगम उर्फ जहाँआरा बनाम माजिद अली गाज़ी के मुकदमे में उपरोक्त बात को स्पष्ट किया कि एक तलाकशुदा महिला अपने लिए तो नहीं लेकिन यदि उस की संतानें उस के पास हैं तो उन के लिए भरण पोषण प्राप्त करने के लिए वह धारा 125 दं.प्र.संहिता में आवेदन कर सकती है।

तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत अवधि के बाद पुनर्विवाह तक पूर्व पति से भरण पोषण प्राप्त सकती है

नाब शरीफ़ ख़ान साहब ने सवाल किया था कि क्या तलाक शुदा मुस्लिम महिला इद्दत की अवधि के बाद भी अपने खाविंद से धारा 125 दं.प्र.संहिता में जीवन निर्वाह भत्ते के लिए आवेदन कर प्राप्त कर सकती है, यदि उस ने विवाह नहीं किया हो? तीसरा खंबा पर 19.05.2010 को प्रकाशित पोस्ट क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत अवधि के बाद पूर्व पति से भरण पोषण प्राप्त नहीं कर सकती ? में  उस का उत्तर दिया गया था कि मुस्लिम महिला ( तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986 (Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986) पारित होने के पहले तक तो स्थिति यही थी कि एक मुस्लिम तलाकशुदा महिला पुनर्विवाह करने तक अपने पूर्व पति से जीवन निर्वाह के लिए भत्ता प्राप्त करने हेतु धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत आवेदन कर सकती थी और प्राप्त कर सकती थी। लेकिन इस कानून के पारित होने के उपरांत यह असंभव हो गया।  इस कानून के आने के बाद स्थिति यह बनी कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला  इस कानून की धारा 5 के अंतर्गत भरण-पोषण की राशि के लिए आवेदन कर सकती है, लेकिन वह केवल उन व्यक्तियों से जीवन निर्वाह भत्ता प्राप्त कर सकती है जो उस की मृत्यु के बाद उस की संभावित संपत्ति के वारिस हो सकते हैं या फिर वक्फ बोर्ड से यह भत्ता प्राप्त कर सकती है। लेकिन धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत नहीं। सुप्रीमकोर्ट ने इसी कानून के आधार परबिल्किस बेगम उर्फ जहाँआरा बनाम माजिद अली गाज़ी के मुकदमे में उपरोक्त बात को स्पष्ट किया कि एक तलाकशुदा महिला अपने लिए तो नहीं लेकिन यदि उस की संतानें उस के पास हैं तो उन के लिए भरण पोषण प्राप्त करने के लिए वह धारा 125 दं.प्र.संहिता में आवेदन कर सकती है।
स पोस्ट के प्रकाशन के उपरांत उन्मुक्त जी ने आगे का मार्गदर्शन किया और बताया कि -शायद इस प्रश्न का सही जवाब २००१ के उस लोक हित याचिक के फैसले में निहित है जिसमें डैनियल लतीफी ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम को चुनौती दी थी। मैं इस निर्णय को पढ़ कर अपनी राय कायम करता उस के पूर्व ही जनाब शरीफ खान साहब जो कि राजस्थान के एक छोटे नगर में वकील हैं स्वयं श्रम किया और मुझे सुप्रीम कोर्ट द्वारा 4 दिसंबर 2009 को शबाना बानो बनाम इमरान खान के मुकदमे में पारित निर्णय प्रेषित किया। इस में सु्प्रीमकोर्ट ने यह निर्धारित किया है कि डेनियल लतीफ़ी और इक़बाल बानो के मुकदमे में प्रदान किए गए निर्णयों को एक साथ पढ़ने और विचार करने पर यह स्पष्ट होता है कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से तब तक भरण-पोषण राशि प्राप्त करने की अधिकारिणी है जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती है। इसी निर्णय में अंतिम रूप से यह निर्णय भी दिया गया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत इद्दत की अवधि के उपरांत भी तब तक भरण-पोषण राशि प्राप्त कर सकती है जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती है।
स तरह अब यह स्पष्ट है कि एक लाकशुदा मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत इद्दत की अवधि के उपरांत भी तब तक भरण-पोषण राशि प्राप्त कर सकती है जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती है। तीसरा खंबा महिलाओं के लिए लाभकारी कानून की
अद्यतन स्थिति इस के पाठकों तक पहुँचाने में आदरणीय उन्मुक्त जी के मार्गदर्शन और जनाब शरीफ़ ख़ान साहब, अधिवक्ता के सहयोग के लिए आभारी है।
                                                                                                    संतान के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता
प्रश्न---
मेरी पत्नी तीन वर्ष से मेरे साथ नहीं रहती है। मैं ने एक साल पहले हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की डिक्री न्यायालय से प्राप्त की है। मेरी पत्नी ने धारा 125 दं.प्र.संहिता का आवेदन न्यायालय के समक्षन प्रस्तुत किया है मेरी एक संतान भी है जिस के लिए न्यायालय ने अंतरिम भत्ता देने का आदेश किया है। मैं इस कार्यवाही को रुकवाना चाहता हूँ इस के लिए मुझे क्या करना होगा?  धारा 125 दं.प्र.संहिता से बचने का कोई मार्ग हो तो सुझाएँ।  
 उत्तर – 
प न्यायालय से वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की डिक्री प्राप्त कर चुके हैं। इस डिक्री में यह तय हो चुका है कि आप की पत्नी के पास आप से अलग रहने का कोई उचित कारण विद्यमान नहीं है। यदि ऐसा है तो आप की पत्नी यदि यह साबित नहीं करती है कि उस के उपरांत कोई अन्य कारण उत्पन्न हुआ है तो वह आप से धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आप से गुजारा भत्ता प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है। यदि वह एक वर्ष की अवधि में आप के पास आ कर नहीं रहने लगती है तो आप अपनी पत्नी के विरुद्ध विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत कर उस की डिक्री भी प्राप्त कर सकते हैं। 
हाँ तक आप की संतान का प्रश्न है, यदि वह पुत्र है तो आप पाँच वर्ष की आयु का हो जाने पर उस की कस्टडी़ लेने के लिए आवेदन कर सकते हैं। यदि पुत्र के हित में न्यायालय यह समझती है कि उस की कस्टडी आप को दिलाई जानी चाहिए तो वह उस की कस्टड़ी आप को दिला सकती है। जब तक आप को अपने पुत्र की कस्टड़ी प्राप्त नहीं होती है आप को उस के भरण-पोषण की राशि जो न्यायालय ने निर्धारित की है वह देनी होगी। यदि वह पुत्री है तो फिर आप को अपनी पुत्री की कस्ट़डी तब तक प्राप्त नहीं होगी जब तक कि आप के परिवार में कोई महिला आप की पुत्री को संरक्षण देने वाली न हो और आप की पुत्री का आपकी पत्नी द्वारा ठीक से पालन-पोषण नहीं किया जा रहा हो। आप की संतान आप की है उस के पालन पोषण की जिम्मेदारी भी आप की है। संतान के मामले में धारा-125 दं.प्र.संहिता के आदेश से आप बच नहीं सकते।

त्नी यदि पति के साथ न रहे तो भी क्या गुजारा भत्ता की अधिकारी है

प्रश्न--
संतान न हो और शादी के पहले दूसरे वर्ष में ही पत्नि साथ रहना बन्द करदे तो भी क्या गुजारा भत्ता पति पर आरोपित हो जाता है ? 
 उत्तर – 

कोई भी विवाहित स्त्री यदि स्वयं अपने भरण-पोषण में असमर्थ हो तो वह विभिन्न कानूनों के अंतर्गत अपने लिए भरण पोषण के लिए न्यायालय में आवेदन या वाद प्रस्तुत कर सकती है। इन में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत आवेदन, हिन्दू  दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत दीवानी वाद और 2005 का घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के प्रावधान प्रमुख हैं। हिन्दू  दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत दीवानी वाद लाने पर वादिनी को वाद के मूल्य पर न्यायशुल्क अदा करनी होती है, जिस के कारण इस का व्यवहार बहुत कम होता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत आवेदन और 2005 का घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग सर्वाधिक हो रहा है। इस में भी धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता का उपाय सब से अधिक और बहुत लंबे समय से उपयोग में लिया जा रहा है। हम आज यहाँ इस के प्रावधानों का उल्लेख करेंगे। 
धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता निम्न प्रकार है – 
125. पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण के लिए आदेश – 
(1) यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति- 
(क) अपनी पत्नी का, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या
(ख) अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क सन्तान का चाहे वह विवाहित हो या न हो, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या 
(ग) अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है), जिस ने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या
अपने माता-पिता का जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, भरण पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरण-पोषण करने से इन्कार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इन्कार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निर्देश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संन्तान पिता या माता के भरण-पोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठाक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिस को संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दे;
परन्तु मजिस्ट्रेट खण्ड (ख) में निर्दिष्ट अवयस्क पुत्री के पिता को निर्देश दे सकता है कि वह उस समय तक ऐसा भत्ता दे जब तक वह अवयस्क नहीं हो जाती है यदि मजिस्ट

हिन्दू पत्नी के लिए भरण पोषण हेतु कानूनी उपाय

क्या धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता और धारा 12 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत मुकदमे एक साथ चल सकते हैं, या कोई प्रतिबंध हैं?
 उत्तर –
त्नी के लिए गुजारा भत्ता/भरण पोषण प्राप्त करने के लिए अनेक विधिक उपाय हैं। जिन में सब से पहला और उत्तम उपाय हिन्दू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत दीवानी वाद प्रस्तुत करना। यदि इस उपाय के अंतर्गत किसी हिन्दू पत्नी का गुजारा भत्ता निर्धारित कर दिया गया है तो फिर कोई भी अन्य उपाय किया जाना संभव नहीं है और न्यायालय के समक्ष अन्य किसी भी अधिनियम में आवेदन पोषणीय नहीं होगा। हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 24  केवल वैवाहिक विवाद के लंबित रहने के दौरान भरणपोषण दिलाती है और धारा 25 विवाद के निपटारे के बाद के लिए। यदि इन में से किसी धारा में गुजारा भत्ता निर्धारित कर दिया गया है तो हिन्दू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम की धारा 18 के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी आवेदन पोषणीय नहीं होगा।
दि धारा 125 दं.प्रक्रिया संहिता में गुजारा भत्ता निर्धारित कर दिया गया है तो उक्त वर्णित दोनों उपाय उस  के बाद भी उपयोग में लिए जा सकते हैं, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम की धारा-12 के अंतर्गत  गुजारे भत्ते का आवेदन पोषणीय नहीं होगा। इस सम्बन्ध में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 30 अगस्त 2010 को रचना कथूरिया बनाम रमेश कथूरिया के मामले में दिया गया निर्णय महत्वपूर्ण है। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम में महिलाओं को गुजारा भत्ता प्राप्त करने के लिए कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता, अपितु वह केवल तुरंत महिला को सहायता प्रदान करने के लिए एक उपाय मात्र है। यदि किसी भी अन्य उपाय द्वारा गुजाराभत्ता निर्धारित कर दिया गया है तो फिर इस अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती है।
गुजारे भत्ते के लिए एक हिन्दू पत्नी के पास चार तरह के उपाय उपलब्ध हैं। लेकिन उस में मजेदार बात यह है कि यदि उसे किसी भी न्यायालय से गुजारा भत्ता मिलने का आदेश या निर्णय नहीं हुआ है तो फिर चारों अधिनियमों के अंतर्गत एक साथ चार आवेदन अलग अलग न्यायालयों में प्रस्तुत किए जा सकते हैं और चारों मामलों में विचारण एक साथ हो सकता है। लेकिन यदि  हिन्दू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम की धारा 18 में गुजारा भत्ता तय हो जाए तो धारा 125 दं.प्रक्रिया संहिता और घरेलू हिंसा के आवेदन आगे नहीं चल सकेंगे।   धारा 125 में आदेश हो जाने पर घरेलू हिंसा अधिनियम में कार्यवाही नहीं की जा सकती। लेकिन शेष दोनों उपाय प्राप्त किए जा सकते हैं। किसी भी अधिनियम में आदेश हो जाए तो घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत गुजारा भत्ता के लिए आवेदन पोषणीय नहीं होगा।

पतिगृह में रहते हुए भी भरण-पोषण मांगा जा सकता है और निवास का स्थान भी

  प्रश्न--
मेरी शादी को दो हुए हैं, हमने प्रेम विवाह किया था। लेकिन शादी से मेरी सास प्रसन्न नहीं है और बात-बात पर ताना देती रहती है। मैं एक प्रोफेशनल महिला हूँ, पर मेरा वेतन कम है। शुरू में तो मेरा पूरा वेतन मेरी सास ले लेती थी। पर अब दो माह से मैं ने देना बंद कर दिया है क्यों कि मुझे कुछ नहीं मिलता था। मेरे पति मुझ से झूठ बोलते हैं और कोई बात नहीं बताते। अभी चार माह पहले ये कनाडा गए थे मुझे झूठ बोला कि कम्पनी के माध्यम से जा रहा हूँ पर ऐजेंट के माध्यम से छात्र वीजा ले कर तीन साल के लिए गए थे और पासपोर्ट में खुद को अविवाहित बताया था। इन सब बातों का मुझे इन के लौट आने पर पता लगा। मैं ने इन सब बातों के बारे में मैं ने अपने पति से पूछा तो साफ मना कर दिया। ये ऐसे ही करते हैं झूठ बोलते हैं और फिर मुकर जाते हैं। मुझे दो साल में आज तक इन्हों ने कोई पैसा नहीं दिया बल्कि लेते ही रहे हैं। मेरा सारा सोना जो मेरे शादी के समय मिला था वह मेरी सास ने बेच दिया है। ये लोग वित्तीय रूप से अच्छे हैं, खुद का व्यवसाय है पर मुझे मानसिक रूप से तंग करते हैं। क्या मैं अपने पति से अपने ससुराल में रहते हुए भी खर्चा मांग सकती हूँ? और कैसे इस परिस्थिति का सामना करूँ? मैं अकेले ही हूँ, मेरे मां-बाप वित्तीय रूप से कमजोर हैं। मुझे अपना भविष्य असुरक्षित लगता है इस लिए मैं बचत करना चाहती हूँ, ताकि कुछ भी गलत होने पर काम आ सके। इस के लिए मैं इन लोगों से क्या बोलूँ? कानूनी तौर पर मेरा वेतन भी ना मांगें और कुछ मुझे भी पैसे दे दिया करें। क्या  पति के वेतन में ये मेरा हक बनता है।   
  उत्तर – – –
प का प्रेम विवाह तो असफल हो चुका है। अब आप के साथ उन महिलाओं से भी बुरी स्थिति है जो माता-पिता के कहने से विवाह करती हैं। लेकिन इन परिस्थितियों से घबराने की आवश्यकता नहीं है। आप को अपने जीवन यापन  का खर्च प्राप्त करने का अधिकार केवल अपने पति से है। लेकिन उस के लिए आप को प्रमाणित करना होगा कि आप के पति की आय आप से बहुत अधिक है। वैसी स्थिति में आप अपना वेतन खुद रखते हुए भी पति से गुजारा भत्ता इस आधार पर मांग सकती हैं कि आप को अपने पति के स्टेटस से जीवन यापन करने का हक है। आप को इस तरह से मानसिक रूप से प्रताड़ित करना घरेलू हिंसा है। जिस के लिए महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा कानून बना हुआ है। आप घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत अपना आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत कर सकती हैं। इस में आप को अपने पतिगृह में रहने का हक मिलेगा और साथ ही यदि आप के पति की आय को आप अपनी आय से बहुत अधिक होना प्रमाणित कर सकें तो आप को कुछ गुजारा भत्ता भी मिल सकता है। 

प चाहें तो अपना सोना जो आप की सास ने बेच दिया है उस की भी मांग कर सकती हैं। क्यों कि आप का सोना आप का स्त्री-धन जो अमानत के बतौर आप की सास के पास था। उस ने उसे बेच कर अमानत में खयानत की है जो कि धारा 406 भा.दं
.प्र. संहिता के अंतर्गत अपराध है। इस के लिए आप की सास और आप के पति के विरुद्ध धारा-406 का अपराध दर्ज हो सकता है। यदि प्रमाणित हो सका तो इस के लिए उन्हें सजा भी हो सकती है। आप यह सब अपने पति के घर में रहते हुए करना चाहती हैं इस के लिए आप को बहुत मजबूत होना पड़ेगा। आप को स्थानीय महिला संगठनों और पुलिस के परिवार सहायता केंद्र की मदद लेनी चाहिए।

पत्नी पति और उस के परिजनों पर भरण-पोषण, घरेलू हिंसा, दहेज का मुकदमा कर दे तो बचाव में क्या करें?


विगत आलेख में हमारे पाठक ????? जी ने पांच सवालों के उत्तर चाहे थे, शेष रहे चार सवाल ये हैं……
    1. सर, जब लड़की वाले लड़के वालों पर मैंटीनेंस, घरेलू हिंसा, दहेज आदि के केस लगा देते हैं तो क्या लड़के वालों के पास बचाव में कोई ऐसा केस नहीं है जो वे लड़की वालों पर लगा सकें?
    2. सर, मैं ने एक वकील से सलाह ली तो वे बोले कि कोई भी लड़की वालों की रजिस्ट्री मत लेना। सर, इस से क्या होगा? क्या यह मेरे पक्ष में होगा? और यदि यह सही है तो कब तक मैं ऐसा करूँ?
    3. सर, क्या मैंटीनेंस के, घरेलू हिंसा के तथा दहेज केस में स्टे ले सकता हूँ? और कब तक?
    5. सर, मेरी पत्नी तीन साल से अपने मायके में है तो क्या घरेलू हिंसा बनती है?
उत्तर
पत्नी पति और उस के परिजनों पर भरण-पोषण, घरेलू हिंसा, दहेज का मुकदमा कर दे तो बचाव में क्या करें?
लगता है, श्री ????? बहुत ही डरे हुए हैं। या तो इन सज्जन ने खुद गलतियाँ की हैं और  उन के कारण खुद भयभीत हैं या फिर ये लोगों के किस्से सुन कर डर गए हैं।  इन के प्रश्नों से लगता है कि अभी तक कोई मुकदमा इन की पत्नी की ओर से नहीं हुआ है।  तीन वर्ष से इन के साथ नहीं रह कर अपने पिता  के साथ रह रही है।  अब यदि पत्नी के साथ इन सज्जन ने उचित व्यवहार नहीं किया है और घरेलू हिंसा की है तो ये तीनों मुकदमे करना  इन की पत्नी का वाजिब अधिकार है। फिर तो एक ही राह रहती है कि ये खुद किसी तरह पत्नी को मना कर  अपने साथ रखें और झगड़ा समाप्त करें। यदि ये गलती स्वीकार कर लें और भविष्य में न करने  का आश्वासन दें तो यह समस्या का घर में ही, अथवा संबंधियों या मित्रों की मध्यस्थता से  समाधान हो सकता है।  यदि इन की कोई त्रुटि नहीं है तो फिर दूसरा मार्ग है।  
अब यदि इन की कोई गलती नहीं तो ये भयभीत क्यों हो रहे हैं? इन की पत्नी तीन साल से अधिक समय से इन के साथ नहीं रह रही है। यदि ये चाहते हैं कि अपने साथ रखें और यह विवाह कायम रहे तो किस का इंतजार कर रहे हैं? हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत अदालत में वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना की  अर्जी पेश करें।  यदि इस काम में इन्हों ने देरी की तो इन्हें उक्त तीनों मुसीबतों बचाना किसी के भी लिए आसान नहीं होगा। धारा- 9 की अर्जी लगा देने के उपरांत उक्त तीनों ही मुकदमे चला पाना इन की पत्नी के लिए आसान नहीं होगा।  यदि पाठक श्री ????? जी की पत्नी के पास इन से अलग रहने का कोई वाजिब कारण हुआ तो फिर धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम की अर्जी नहीं चल पाएगी।  यह भी हो सकता है कि श्री ????? जी और इन की पत्नी के बीच अब वैवाहिक  संबंध की कोई अवस्था ही नहीं रह गई हो। वैसी स्थिति में बिना युक्तियुक्त कारण के तीन वर्ष से इन के साथ न रह कर अलग रहना या पिता के पास रहना एक ऐसा कारण है कि श्री ????? जी उस के आधार पर धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत सीधे विवाह विच्छेद (तलाक) की डिक्री प्राप्त करने के लिए अर्जी अदालत में पेश कर सकते हैं। 
श्री ????? जी को जिस किसी वकील ने सलाह दी है कि कोई भी रजिस्ट्री मत लेना, बहुत ही गलत सलाह दी है। इस का लाभ कुछ भी नहीं है और नुकसान बहुत हैं। यदि पत्नी ने कोई नोटिस इन्हें दिया और इन्होंने डाक लेने से मना कर दिया तो अदालत यही मानेगी कि इन्हों ने जानबूझ कर नहीं लिया और इन्हें नोटिस की जानकारी थी। जब यह माना ही जा

बीबी पिता के बहकावे में मायके जा कर भरण-पोषण का मुकदमा किया है, क्या करूँ

प्रश्न--______________ 
.मेरी शादी को 9 साल हो गया।  मेरे एडवोकेट ससुर (75 वर्षीय) ने कई बार दहेज कानून की धमकी देकर अब तक काफी परेशान कर दिया है।  मै एक सरकारी कर्मचारी हूँ।  अब चार माह  से मेरी बीबी अपने मायके में है।  वे लोग मेरि बीबी को बहका कर जब तब धन वगैरा ले जाते हैं।  तंग आकर मैं ने अपनी बीबी को डाँटा तो वह मायके चली गयी।  जब मैं उसे लेने गया तो उन लोगों ने मेरे साथ मारपीट कर दी जिस की डाक्टरी रिपोर्ट भी मेरे पास है।  जब मेने मार पीट कि शिकायत  थाने मे दी तो उन लोगों  ने मुझ पर दहेज कानून घरेलू हिंसा की शिकायत थाने में दे दी और मुझ पर अपनी शिकायत वापस करने का दबाव बनाया।  अब उन लोगों ने मेरे खिलाफ भऱण-पोषण का केस एसीजेएम के यहाँ पंजीकृत कर दिया है।  कृपया बताएँ, मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर____________

फीरोज भाई, आप के विवाह को 9 वर्ष हो चुके हैं, निश्चित रूप से आप दोनों के संतानें भी होंगी।  आप ने उन का उल्लेख नहीं किया है।  आश्चर्य की बात तो यह है कि इन नौ वर्षों में आप और आप की पत्नी के बीच आपसी विश्वास विकसित नहीं हो सका।  जब कि गृहस्थी आपसी विश्वास से चलती है।  सरकारी कर्मचारी होने के कारण यह तो हो नहीं सकता है कि आप के बीच आर्थिक तंगी के कारण कोई विवाद हो।  अब आप की बीबी अपने मायके चली गई है और उस ने भरण-पोषण का मुकदमा कर दिया है तो आप को उस का सहृदयता के साथ मुकाबला करना चाहिए।
आप को चाहिए कि आप अदालत में जवाब दें कि “आप की बीबी का मायके में जा कर रहने का कोई कारण नहीं है, उसे आप के साथ आ कर रहना चाहिए।  फिर भी वह अलग रहना चाहती है तो आय और पारिवारिक खऱचों को ध्यान में रखते हुए आप कुछ भरण-पोषण राशि उसे देने को तैयार हैं लेकिन यह राशि आप तभी तक दे सकते हैं जब तक वह अपने मायके में रहती है।”  यह जवाब देने के साथ ही आप को चाहिए कि आप अपनी बीबी विरुद्ध उसे आप के साथ रह कर वैवाहिक जीवन व्यतीत करने के लिए आदेश दिए जाने हेतु अदालत में मुकदमा करें।  अदालत आप दोनों के मध्य समझौता कराने का प्रयत्न करेगी, क्यों कि इतने लम्बे वैवाहिक जीवन के उपरांत आपसी समझ से समझौता कर लेना ही सब से बेहतर उपाय है।  फिर भी जहाँ आप रहते हैं और जहाँ आप के विरुद्ध मुकदमा किया गया है वहाँ दीवानी मामलों के जानकार किसी अच्छे अनुभवी वकील से मिल कर सलाह और सेवाएँ अवश्य प्राप्त करें।

मैं पति से न्यायिक पृथक्करण चाहती हूँ

मैं 48 वर्ष की कामकाजी महिला हूँ, मेरे दो बच्चे हैं। पति एक प्रोपर्टी डीलर हैं और घर चलाने के लिए कोई धन नहीं देते। यहाँ तक कि कोई बैंक बैलेंस भी नहीं है, उन्होंने कोई सम्पत्ति भी नहीं बनाई है, किसी तरह से भी वित्तीय मदद नहीं करते। बच्चों को पढ़ाने में भी कोई मदद नहीं करते। अक्सर मदिरापान करते हैं, मैं ने घर में पीने पर आपत्ति उठाई क्यों कि यह घर मुझे अपनी नौकरी के कारण आवंटित हुआ है और इसलिए भी कि मदिरापान के उपरांत मुझ से दुर्व्यवहार किया है और मुझे पीटा है। मैं अब अपने आप को इन सब परिस्थितियों में जकड़ा हुआ और स्वयं को शोषित अनुभव करती हूँ। मैं कानूनी पृथक्करण चाहती हूँ। इस में कितना समय लगेगा? कृपया सलाह दें। 
 उत्तर –
प को तुरंत ही न्यायिक पृथक्करण के लिए न्यायालय में आवेदन कर देना चाहिए, बिना किसी देरी के। आप यह आवेदन परिवार न्यायालय और यदि आप के क्षेत्र में परिवार न्यायालय स्थापित न हो तो जिला जज के न्यायालय में इस के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 10 के अंतर्गत प्रस्तुत कर सकती हैं। इस के लिए कोई एक अथवा वे सभी आधार लिए जा सकते हैं जो कि एक तलाक के लिए आवश्यक हैं। आप के विवरण से लगता है कि आप न केवल घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं अपितु क्रूरता की शिकार भी हुई हैं। यह न्यायिक पृथक्करण के लिए पर्याप्त आधार है।
प के साथ अत्यंत बुरा व्यवहार उस व्यक्ति के द्वारा किया जा रहा है, जो अपने परिवार के लिए पूरी तरह गैर जिम्मेदार है और उलटे आप के साथ क्रूरता से पेश आता है। वह आप के परिवार के साथ रहने का अधिकार खो चुका है। वह घर आप का है, वह वहाँ बिना आप की अनुमति के नहीं रह सकता। आप घरेलू हिंसा की शिकार भी हुई हैं। आप को स्वयं अपनी ओर से तथा अपने बच्चों की ओर से तुरंत घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 18 व 19 के अंतर्गत राहत प्राप्त करने के लिए आप के निवास स्थान के क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के न्यायालय में आवेदन करना चाहिए। मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा  18 (ग) के अंतर्गत  यह आदेश पारित कर सकता है कि आप के पति आप के नियोजन स्थान तथा आप के बच्चों के विद्यालय में प्रवेश न करे, धारा 18(घ) के अंतर्गत यह आदेश दे सकता है कि वह आप के साथ किसी प्रकार से कम्युनिकेट न करे, धारा 18 (ङ) के अंतर्गत यह आदेश दे सकता है कोई संयुक्त बैंक या अन्य किसी प्रकार का खाता आप दोनों के द्वारा चलाया जा रहा हो तो उसे ऑपरेट न करे, संयुक्त संपत्ति का व्ययन न करे और स्त्री-धन को आप से अलग न करे और अपने किसी भी व्यक्ति से आप को प्रताड़ित न कराए। मजिस्ट्रेट इसी अधिनियम की धारा 19 (ख) (ग) के अंतर्गत यह आदेश दे सकता है कि जिस घर में आप रहती हैं आप का पति और उस का कोई भी नातेदार उस घर में न आए और आसपास भी न फटके। 19 (घ) में वह आप के किसी शामलाती घर को बेचने या किसी अन्य तरीके से हस्तांतरित न करने का आदेश भी आप के पत

घरेलू हिंसा के मामले में स्त्री किस किस न्यायालय में अपनी अर्जी प्रस्तुत कर सकती है?

मेरी बीवी ने मेरे खिलाफ घरेलू हिंसा के तहत नासिक के न्यायालय में दर्ज करवा दिया है, क्या मैं उसे मुम्बई स्थानान्तरित नहीं करवा सकता?
उत्तर – – – 
रेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत यह प्रावधान है कि व्यथित व्यक्ति (इस मामले में आप की पत्नी) उस  न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय में अपनी अर्जी दाखिल कर सकती है जिस की सीमाओं के भीतर-
1-  व्यथित व्यक्ति स्थाई रुप से या अस्थाई रूप से निवास करता है या कोई कारोबार करता है या कोई नौकरी करता है; या
2- प्रत्यर्थी अर्थात जिस के विरुद्ध अर्जी दी गई है वह निवास करता है या कारोबार करता है; या
3- वाद हेतुक उत्पन्न हुआ है।
स तरह व्यथित व्यक्ति को अर्जी दाखिल करने के लिए तीन विकल्प दिए गए हैं और वह तीनों में से किसी भी विकल्प का उपयोग कर सकता है। उसे इन तीनों ही स्थानों की अदालतों में अपनी अर्जी दाखिल करने का अधिकार है। मेरा अनुमान है कि आप की पत्नी अस्थाई रूप से नासिक में निवास कर रही है ऐसी स्थिति में उसे नासिक में अपनी अर्जी दाखिल करने का अधिकार है। जिस के कारण आप को उस अर्जी को स्थानांतरित कराने का अधिकार नहीं है। हाँ नासिक में अर्जी का विचारण न हो सकने के बहुत ही गंभीर कारण हों तो किसी अन्य न्यायालय में उक्त अर्जी से उत्पन्न मुकदमे को स्थानान्तरित कराया जा सकता है लेकिन तब अदालत का चुनाव आप नहीं कर सकते। स्थानान्तरित करने वाली अदालत ही उस अदालत का चुनाव करेगी जिस में उक्त मुकदमा स्थानांतरित किया जाएगा। उस में भी यह देखा जाएगा कि अर्जी दाखिल करने वाले पक्ष की सुविधा क्या है। 
स अधिनियम के अंतर्गत  किसी भी क्षेत्राधिकार प्राप्त न्यायालय का आदेश पूरे भारत में प्रवृ्त्त कराया जा सकता है। इस कारण से आप के विरुद्ध दाखिल की गई अर्जी में पारित हुए आदेशों का पालन मुम्बई अथवा भारत के किसी भी क्षेत्र में कराया जा सकता है। 
प को अपना मुकदमें नासिक जा कर ही प्रतिरक्षा करनी होगी।

ओसीडी रोग से ग्रस्त पत्नी को छोड़ने की नही, उस के साथ जीवन बिताने की सोचें

मेरी शादी गत नवम्बर में हुई थी। परंतु मेरी पत्नि और मेरे ससुराल वालों ने मुझे शादी से पहल ये नहीं  बताया कि मेरी होने वली पत्नी ओसीडी नामक बीमारी से पीड़ित है तथा उसकी उम्र भी मुझ से छुपाई गई मेरी पत्नी मुझ से पाँच साल बड़ी है। अब हालत ये है कि वो कोई भी घरेलू व सामाजिक काम नहीं कर पाती है या सही नहीं कर पाती है।  मेरा उसके साथ रहना नामुमकिन है। मेरि पत्नी इस बात पर सहमत है कि उस के पिता जी ने मुझ से धोखा किया  है, वह तलाक के लिये भी तत्पर है।  पर उस के पिता इस से सहमत नहीं हैं और दहेज का मुकदमा करने की धमकी देते हैं। क्योंकि कि वे अपनी बेटी डरा-धमका कर या बहला फुसला कर झूठा मुकदमा कर सकते हैं। कृपया सलाह दें कि मैं क्या करूँ?
 उत्तर – – –
आप स्वयं अवश्य जानते होंगे कि यह ओसीडी रोग क्या है? इसे अंग्रेजी में (Obsessive compulsive Disorder) और हिन्दी में जुनूनी बाध्यकारी विकार कहते हैं। इस की चिकित्सा हो सकती है और इस रोग से ग्रसित व्यक्ति के साथ सफल वैवाहिक जीवन बिताना असंभव नहीं है। यह सही है कि हर व्यक्ति यह चाहता है कि उस की पत्नी सामान्य हो। जब वह अपनी पत्नी को असामान्य पाता है तो निश्चित रूप से उसे बहुत निराशा होती है।  प्रत्येक व्यक्ति को विवाह करने के पहले अपनी होने वाली जीवन संगिनी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करना चाहिए। आप ने ऐसा नहीं किया। आपने विवाह के लिए रिश्ता तय करने के पहले अपनी पत्नी के बारे में जानकारियाँ हासिल करने का प्रयत्न ही नहीं किया। आप शायद खुद उस से मिले ही न हों। जब आप ने खुद उस के बारे में नहीं जानना चाहा तो वह या उस के परिजन आप को क्यों बताएँगे कि वह कैसी है और उस की उम्र क्या है? मैं समझता हूँ कि इन मामलों में गलती आप की है।  आप की पत्नी के पिता की गलती तो मात्र इतनी है कि उन्हों ने अपनी बेटी की कमियों के बारे में नहीं बताया। आप ने भी नहीं जानना चाहा तो यह कैसे कहा जा सकता है कि उन्हों ने छुपाया है।  इसे धोखाधड़ी नहीं कहा जा सकता इसे आप की असावधानी या लापरवाही कहा जा सकता है।
अब जब आप उस से विवाह कर चुके हैं तो वह आप की पत्नी है। उस के दायित्व उस के पिता से अधिक आप के हैं।  आप की पत्नी सच्ची है जिस ने स्वीकार किया कि उस के पिता ने तथ्य छुपा कर गलती की है। वह बेचारी आप से सहमति से विवाह विच्छेद करने को तैयार है। सिर्फ इसलिए कि आप दूसरा विवाह कर सकें और अच्छा जीवन बिता सकें। वह इस बीमारी से ग्रसित होने के बावजूद एक भारतीय पत्नी की तरह आप के लिए समर्पित है। आप उस की जिम्मेदारी उठाने से बचना चाहते हैं। यह सही है कि आप बहुत परेशानी में हैं।  लेकिन परेशानियाँ किस के जीवन में नहीं आती हैं।  मैं ने इस बीमारी से ग्रसित अनेक महिलाओं को देखा है और उन के पतियों को उन के लिए परेशानियाँ उठाते हुए जीवन बिताते देखा है। निश्चित रूप से वे पति प्रशंसा के योग्य हैं। यह भी तो हो सकता था कि पहले आप की पत्नी को यह बीमारी न होती और विवाह के कुछ वर्ष बाद या एक-दो संताने होने के बाद होती। तब भी क्या आप इसी तरह सोचते।

मेरी राय तो यह है कि आप पत्नी से प्रेम पूर्वक रहें। उस के मन में जो भय इस बीमारी के कारण आवश्यक रूप से उत्पन्न होते हैं उन्हें चिकित्सकों की राय के अनुसार व्यवहार करते हुए और उस की चिकित्सा कराते हुए कम करने का प्रयत्न करें। इस काम को करते हुए कुछ दिन बाद आप को अच्छा लगने लगेगा। आप यह सोचना बंद करें कि वह उम्र में बड़ी है। बहुत पत्नियाँ उम्र में बड़ी हैं। मेरा मानना है कि यदि आप ने उस के प्रति सकारात्मक सोच से यह सब किया तो कोई भी अन्य स्त्री उस से अधिक अच्छी पत्नी साबित न हो सकेगी।
जहाँ तक कानूनी सलाह का प्रश्न है। आप उस से धोखाधड़ी और ओबीसी रोग के आधारों पर विवाह विच्छेद की डिक्री हासिल नहीं कर सकेंगे। आप को उसे आजीवन भरणपोषण भत्ता भी देना होगा। यह अधिक बरबादी का मार्ग है। इस से अच्छा है कि उस के साथ प्रेम पूर्वक जीवन बिताने की मानसिकता बनाएँ। तीसरा खंबा की शुभकामनाएँ आप के साथ होंगी और हमें विश्वास भी है कि आप इस तरह एक अच्छा और नेक जीवन बिताएंगे।

हिन्दू विधि में तलाक यूँ ही केवल चाहने से नहीं हो जाता

क नौजवान इंजिनियर ने अपनी व्यक्तिगत समस्या को इस तरह रखा है …
मैं एक इंजिनियर हूँ, आठ माह पूर्व मेरा विवाह हुआ है। मैं अपनी पत्नी को पसंद नहीं करता। मेरी एक क्लास मेट के साथ मेरे विवाहेतर संबंध हैं। मैं उसे पाँच वर्षों से जानता हूँ और उसे प्यार करता हूँ। इस कारण से अब मैं अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता हूँ और अपनी प्रेमिका के साथ रहना चाहता हूँ। मैं शादी से कभी खुश नहीं रहा। हमारे बीच सेक्स नहीं है। क्या तलाक संभव है? यदि हाँ तो क्या शादी में लिया हुआ दहेज, सात लाख रुपया कैश भी वापस करना पड़ेगा और पत्नी को भरण पोषण भी करना पड़ेगा?  और किस आधार पर मुझे तलाक के लिए आवेदन करना होगा?
उत्तर … 
इंजिनियर साहब!
आप एक अपराध तो कर चुके हैं कि आप ने विवाह किया और दहेज व सात लाख रुपया कैश लिया। यह दहेज और कैश राशि स्त्री-धन है। यदि यह आप के या आप के किसी परिजन के पास है तो आप की पत्नी की अमानत मात्र है। यह तो आप को आप की पत्नी द्वारा मांगे जाने पर तुरंत लौटाना होगा वरना आप धारा-406 भारतीय दंड संहिता के अपराधी होंगे। आप का विवाह एक हिंदू विवाह है और हिन्दू विवाह अधिनियम से शासित होता है। उस में पति जब चाहे तब अकारण या किसी भी कारण से तलाक नहीं ले सकता। उसे विवाह विच्छेद के लिए केवल इस कानून के अंतर्गत वर्णित आधार ही उपलब्ध हैं। आप ने जो विवरण दिया है उस से कोई भी ऐसा आधार आप के पास नहीं है जिन के कारण आप तलाक ले सकते हों।
आप ने जो विवरण दिया है उस से लगता है कि आप ने खुद अथवा अपने माता-पिता की दहेज प्राप्त करने की इच्छा के लिए विवाह किया है। जो कि निकृष्ठतम विवाह है। हिन्दू विधि में विवाह को पवित्र सूत्रबंधन माना है जिसे जीवन पर्यंत निभाना होता है। आप जब किसी लड़की से प्रेम  करते थे जिस से आप के विवाहेतर संबंध भी थे तो आप को यह विवाह करना ही नहीं था। इस तरह आप ने उस लड़की के साथ भी छल किया जिस से आप प्रेम करते थे। आप के विवाह कर लेने के उपरांत उस लड़की की मानसिक स्थिति क्या होगी? यह तो वही जान सकती है।
आप की पत्नी जिस के साथ आप ने विवाह किया है और उस के माता पिता ने आप को भरपूर दहेज भी दिया इस लिए कि उस का वैवाहिक जीवन सुख और शांति से बीते और उसे एक प्रेम करने वाला पति मिले। जिस लड़की ने इतना दहेज ले कर आप के साथ विवाह किया है, उस के भी तो कुछ अधिकार होंगे ही। आप ने उन पर विचार ही नहीं किया। हो सकता है उसे आप के विवाहेतर संबंधों की जानकारी हो और इसी कारण आप दोनों के बीच सेक्स के संबंध नहीं बने हों। आम तौर पर भारतीय अरेंज्ड विवाहों में और सब बातों के होते हुए भी पति-पत्नी के बीच सब से पहला रिश्ता सेक्स के माध्यम से ही बनता है और बाद में धीरे-धीरे प्रेम औरस्नेह उपजता है। संताने उन्हें प्रगाढ़ करती हैं।
मेरी राय में आप को अपनी पत्नी के साथ जीवन बिताने के बारे में विचार करना चाहिए और अपने विवाहेतर संबंधों को त्याग देना चाहिए।  यदि आप ऐसा न करें तो आप

अदालत की डिक्री के बावजूद पत्नी को पति के साथ रहने का बाध्य नहीं किया जा सकता

री शादी दिसम्बर 2005 में हुई थी। अब मेरी पत्नी फरवरी से अपने मायके में है।  मैं उसे लेने कई बार गया। लेकिन वह नहीं आई। जून 2009 में मना करने पर मैं ने उसे लाने का केस लगा दिया जो एक्सपार्टी हो गया है। मेरी पत्नी ने भिवानी में खर्चे का केस लगाया है।  उस का कहना है कि मैं उसे मारता हूँ और बहिन बना कर रखता हूँ जो सच नहीं है। पहले यह कहती थी कि अलग होने के बाद आउंगी। अलग हो गया तो भी नहीं आई। मैं उस को हर शर्त पर लाने को तैयार था लेकिन फिर भी नहीं आई। मेरा वेतन 4000 मासिक है। उस में मेरे माता-पिता का भी गुजारा करना है। मै उस को लाना चाहता हूँ। वह पैसों के पीछे दौड़ती है। मैं क्या करूँ? क्या उस का खर्चा मांगना जायज है जब कि मैं अपने पूरे परिवार से अलग रहने को तैयार हूँ।
उत्तर – – – 
प तो पत्नी की हर शर्त मानने को तैयार हैं। लेकिन आप की पत्नी फिर भी नहीं आना चाहती है। वह पैसों के पीछ भागती है। निश्चित रूप से आप की पत्नी आप से पीछा छुड़ाना चाहती है। उसे आप का वेतन 4000 रुपए कम लगता है। यदि आप माता-पिता से अलग भी रहेंगे तो भी आप की पत्नी को 4000 रुपए प्रतिमाह का वेतन कम ही लगेगा। यही कारण है कि वह आप के साथ आ कर रहने को तैयार नहीं है। उसे आप की कमजोरी भी पता लग गई है कि आप हर कीमत पर उसे पाना चाहते हैं। शायद उसी कमजोरी का वह लाभ उठाना चाहती है।
अब यदि वह आना नहीं चाहती है तो उसे लाने का मुकदमा (धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम) जीत जाने पर भी वह नहीं आना चाहती है तो नहीं ही आएगी। अदालत, पुलिस या कोई भी ताकत उसे आप के साथ आ कर रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। लेकिन यदि अदालत के फैसले के बाद भी वह नहीं आती है तो आप को यह अधिकार मिल जाता है कि आप उस से तलाक ले सकते हैं।  
मेरे विचार में तो आप को तलाक का मुकदमा कर ही देना चाहिए। क्यों कि इस तरह की पैसों के पीछे भागने वाली पत्नी आप को सारे जीवन परेशान ही करती रहेगी। आप के साथ ऐसी ही पत्नी टिक सकती है जो कि आप के सीमित साधनों में गुजारा करने की मानसिकता रखती हो। तलाक का मुकदमा कर देने से हो सकता है आप की वर्तमान पत्नी का यह भ्रम टूट जाए कि आप उसे ही हर हालत में लाना चाहते हैं। वैसी स्थिति में समझौते की गली भी निकल सकती है।
जैसी परिस्थितियाँ आप ने वर्णित की हैं उन में आप की पत्नी का खर्चे का दावा करना उचित नहीं है लेकिन आप को अपनी सब बातें अदालत में मजबूती के साथ साबित करनी पड़ेंगी। अन्यथा खर्चा तो आप को देना पड़ सकता है। इस के लिए आप अपने यहाँ किसी अच्छे वकील की मदद लें जो आप का मुकदमा लड़ सके।

तलाक के बारे में नहीं, पत्नी को मित्र बनाने और उस के साथ जीवन बिताने के बारे में सोचिए

मेरी शादी फरवरी 2010 को हुई। शादी को ले कर मेरे परिवार वालों और दुल्हन के परिवार वालों के बीच थोड़ी बहुत अनबन लगी रहती थी। शादी अपने ही संबंधियों में हुई है। मेरे परिवार में केवल तीन सदस्य हैं मैं मेरी माँ और पिताजी।  शादी को दो माह भी नहीं बीते थे कि पत्नी हमारे घर पर कुछ ऐसा करती थी जिस से मेरी माँ को बिगड़ना पड़ता था, जैसे जलती गैस के सामने झपकी लेना, खाना ठीक से न बनाना, जरा से डांटने पर जहर खा लेने की धमकी देना आदि। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आखिर में वो ऐसा क्यों कर रही है। फिर मेरी माँ या मैं ने किसी ने भी उसे मारा-पीटा नहीं बल्कि उसे समझाया कि ऐसे नहीं ऐसे करो, इस सब के बावजूद चार माह घर में रहने के बाद वह अपने मायको चली गई और वहाँ जाते ही उस ने हम लोगों के खिलाफ खूब झूट-मूट की बातें कहीं और यह भी खहा कि लोगों ने मुझे बहुत मारा-पीटा। भगवान जानात है कि मैं खुद दहेज प्रथा और महिलाओं के प्रति हिंसा का विरोधी रहा हूँ। उस की कही उन बातों को सुन कर अवाक् रह गया। उस के चाचा और मामा ने मुझे और मेरे परिवार को फोन पर खूब गालियाँ दीं, बदतमीजी की सारी हदें पार कर दीं। वहाँ जाने के पाँच दिन बाद वह अस्पताल में खून की कमी के कारण भर्ती हो गई। वहाँ के लोगों ने सोचा कि सब ससुराल वालों ने किया है इस कारण उस के मामा ने हमारे परिवार के सारे लोगों के ऊपर पैसा दे कर एफआईआर कर दी। हालाँ कि पुलिस आई और पूछताछ कर के चली गई, मामला ठंडा पड़ गया। मैं अपनी पत्नी को देखने अस्पताल में गया तो वहाँ उस के परिवार वालों ने बहुत ही बुरा सलूक किया। मुझे जब पता गा कि उसे खून की कमी है तो वहाँ के डाक्टर के कहने पर मैं ने अपना खून देने का प्रस्ताव किया तो उस के परिवार वालों ने नहीं देने दिया। इस के बाद कब वह अस्पाताल से घर वापस आ गई मुझे पता नहीं लगा। अब चार माह होने पर उन्हों ने मेरी पत्नी को मेरे यहाँ भेजने से मना कर दिया। मगर हम ने धारा-9 के अंतर्गत अदालत में आवेदन कर दिया है। तीन तारीखें हो चुकी हैं लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। मैं उसे लाऊँ या न लाऊँ। मेरे परिवार की इज्जत उछलनी थी वह उछाल चुकी है।  मेरी माँ को गठिया की शिकायत है इस लिए परिवार में बहुत परेशानी हो रही है। कोई कहता है दूसरी शादी कर लो, कोई कहता है जैसे भी हो अपनी पत्नी को ले कर आओ। 
क्या मेरे लिए अपनी पत्नी को लाना ठीक होगा? यदि नहीं तो तलाक कैसे मिल सकता है?
 उत्तर – – – 
पने समस्या का केवल एक पहलू सामने रखा है। आप का विवाह रिश्तेदारी में हुआ है, और विवाह के पहले ही दोनों परिवारों में बात-बात पर तनातनी आरंभ हो गई। रिश्तेदारियों का मेरा अनुभव ऐसा है कि दो तरह के रिश्तेदार होते हैं। एक वे जो हर बात को बनाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, दूसरे वे जो हर बात को बिगाड़ने का अवसर तलाशते रहते हैं। आप के मामले में भी आप की पत्नी के चाचा और मामा वगैरह ऐसे ही लगते हैं। यदि उन में जरा भी यह भावना होती कि उन की भतीजी/भांजी का परिवार बना रहे तो वे आप और आप के परिवार के साथ पहले सहज तरीके से बात करते और विवाद के बिन्दु तलाश करने का प्रयत्न करते, जो दोनों ही परिवारों में हो सकते थे। फिर उस विवाद का हल करने का प्रयत्न करते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
प की पत्नी के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि उस का व्यवहार ऐसा क्यों था, जब तक कि उस का खुद का कथन सामने न हो। आप ने उल्लेख किया है कि आप की माता जी गठिया रोगी हैं और वे काम नहीं कर सकती, इस कारण से आप को बहुत परेशानी उठानी पड़ रही है। तो यह एक कारण हो सकता है जो आप की पत्नी के व्यवहार का कारण बना हो। हर लड़की विवाह के बारे में जब सोचती है तो वह अपने पति और उस के साथ अपने जीवन बारे में सोचती है। उस सपने में सास-ससुर व अन्य ससुराली मुश्किल से ही प्रवेश करते हैं। यहाँ ससुराल में उसे दिन भर घर का सारा काम करते हुए अपने सास-ससुर को संभालना है। निश्चित रूप से आप लोगों का विवाह नया था तो रात को भी आप की पत्नी को आप को समय देना होता होगा। हो सकता है उस की नींद ही पूरी न होती हो और उसे गैस के सामने झपकी आ जाती हो। मुझे लगता है आप ने ससुराल में एक सद्य विवाहिता के कर्तव्यों पर तो पूरा जोर दिया, लेकिन उस के सपनों के बारे में सोचा तक नहीं। हो सकता है आप की पत्नी की अपने मायके में काम करने की आदत नहीं रही हो। उसे काम करना भी तो आप के यहाँ ही आ कर सीखना था। अपनी परेशानी कोई भी नयी विवाहिता अपने पति तक से नहीं बाँटती। यह तो पति को ही देखना होता है कि उसे कोई परेशानी तो नहीं है। आपने कितनी बार इन परेशानियों के बारे में विचार किया? वह कभी बताती भी है तो पति उसे कह देता है कि वह अपने माता-पिता को कुछ नहीं कह सकता। पत्नी को ही सब कुछ एडजस्ट करना होगा। ऐसे में हो सकता है आप की पत्नी का खाना-पीना कम हो गया हो, जैसा कि अक्सर नयी विवाहितों के साथ होता है। इसी कारण से व रक्ताल्पता की शिकार हो गई हो। यह तो आप ने भी स्वीकार किया है कि आप के यहाँ आप की पत्नी को डाँटा गया है और उस की समझाइश भी की गई है। यदि मेरे अनुमान सही हैं तो यह तो किसी महिला के साथ मारपीट कर देने से भी अधिक बड़ी क्रूरता होगी।
मुझे लगता है कि इन सभी परिस्थितियों में आप के लिए तलाक के बारे में सोचना बहुत बड़ी गलती होगी। आप ने शायद ऐसा इस लिए भी सोच लिया कि आप के अपनी पत्नी के साथ प्यार, नेह और लगाव रिश्ते अभी बने ही नहीं। शारीरिक रिश्ते होना एक अलग बात है। मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि प्रेम साहचर्य से उत्पन्न होता है। आप का आप की पत्नी के साथ साहचर्य ही कितना सा रहा है? आप को अभी अपनी पत्नी के साथ जीवन बिताने के बारे में सोचना चाहिए। अब आप की समस्या के दो पहलू हैं। एक तो आप की पत्नी के वे रिश्तेदार जो आप की पत्नी की दशा देख कर आप से लड़ने पर उतारू हैं। उन्हें आप के और आप की पत्नी के बीच से हटाना जरूरी है और यह तभी हो सकता है जब आप की अपनी पत्नी के साथ निकटता बढ़े। हमारे जमाने में तो शादी के बाद छह-छह माह पत्नी मायके जा कर रहा करती थी। तब दोनों के बीच निकटता के लिए डाकिया बहुत काम आता था। पहले साल तो यह तक होता था कि पति-पत्नी दोनों को रोज पत्र लिखा करते थे। पर डाक का तो अब काम नहीं रह गया है। पर अब मोबाइल हैं। आप अपनी पत्नी के साथ मोबाइल के माध्यम से संपर्क बनाइए। उसे समझिए और खुद को उसे समझाइए। इस के लिए अनेक अवसर तलाशे जा सकते हैं। आप उसे विश्वास दिलाइए कि चाहे आप के बीच पति-पत्नी के रिश्ते रहें या न रहें लेकिन उन के बीच जो दोस्ती का रिश्ता है वह नहीं टूटेगा। तो आप की सारी समस्याएँ समाप्त हो जाएँगी। आप यह कर सकते हैं। कैसे करेंगे? यही आप को सोचना है और करना है। आप चाहें तो इस के लिए किसी अच्छे काउंसलर से मदद ले सकते हैं। पहले आप अपने दोस्ताना संबंध अपनी पत्नी से बनाइए तो सही। आप सोचते हैं कि आप के परिवार की इज्जत उछल चुकी है,  इस सोच को छोड

भाई-भाभी के बीच संबंधों को बनाए रखने में अपनी भूमिका अदा करें

मेरी भाभी जुलाई 2007 में अपने मायके गई थी, उस ने पुणें में नौकरी कर ली और तभी से भाई के साथ कोई संपर्क नहीं रख रही है।  भाभी ने चार वर्ष से भैया से फोन पर भी बात नहीं की है भाभी ने अपने फोन नं. भी बदल लिए हैं।  हम लोग भाभी को तीन बार लेने भी गए लेकिन उन के पापा ने नहीं भेजा और बोला कि वह पुणे में नौकरी कर रही है।  उस के बाद हम ने मार्च 2011 में तलाक के लिए नोटिस भेजा लेकिन कोई उत्तर नहीं आया।  हम ने दूसरा नोटिस भेजा तो उन की ओर से उत्तर आया कि मैं पति के साथ रहना चाहती हूँ। लेकिन जवाब में सभी बिन्दुओं का उत्तर झूठा दिया। अभी हमारे पास यह खबर भिजवाई गई है कि भाभी हमारे परिवार में विभाजन के लिेए किसी तांत्रिक की मदद ले रही है और पुणे में नौकरी कर रही है।  भाई भाभी का विवाह रतलाम में 2004 में हुआ था, उन के छह वर्ष का एक पुत्र है। भाई और भाभी ने अंतिम बार इंदौर में साथ निवास किया था। भाई अभी भी इंदौर में ही निवास करते हैं। भाई अब तलाक लेना चाहते हैं, उन्हें क्या करना चाहिए?
 उत्तर –
विवाहित जीवन में कभी-कभी पति-पत्नी के बीच आपसी व्यवहार को ले कर दूरी बन जाती है, तो इस तरह के परिणाम सामने आते हैं। पत्नी अपनी ससुराल से अलग अपना परिवार बसाना चाहती है और उसे अपने पति से आर्थिक सहयोग चाहिए होता है। लेकिन पति की अपने माता-पिता के परिवार के प्रति जिम्मेदारियाँ होती हैं। वह पहले उन्हें निभाना चाहता है और उस के लिए वह अपने स्वयं के परिवार की आवश्यकताओं का बलिदान करता है।  एक सीमा तक पत्नी इस बलिदान को सह लेती है लेकिन सीमा से परे जाने पर उसे लगता है कि उस की और उस की संतान की उपेक्षा की जा रही है। पति-पत्नी के मध्य घोर विवाद चलता रहता है जो परिजनों के  सामने नहीं आता है। इस विवाद के आपस में हल न होने की स्थिति में अक्सर पत्नी यह तय कर के कि वह पति से स्वतंत्र अपने अस्तित्व का निर्माण करेगी और अपनी संतान को अच्छे से विकसित कर के योग्य बनाएगी, एक नए मार्ग पर चल पड़ती है। तब पत्नी वास्तव में अपने पति से लगभग पूरी तरह अलग हो चुकी होती है, लेकिन अपने वैवाहिक संबंध को समाप्त नहीं करना चाहती, वह स्वयं दूसरा विवाह नहीं करना चाहती है और यह भी नहीं चाहती कि उस का पति भी दूसरा विवाह करे। यह अत्यन्त जटिल परिस्थिति है जिस का सामाजिक संमाधान अत्यन्त दुष्कर लेकिन असंभव नहीं है।
ब दूसरे नोटिस के उत्तर में आप की भाभी ने पति के साथ रहने की इच्छा प्रकट की है तो प्रयास इस बात का करना चाहिए कि भाई-भाभी के बीच के रिश्ते सामान्य हो जाएँ। आप की भाभी और भाई के बीच संबंध इतने अधिक बिगड़ चुके हैं कि वे इस विवाद को आपस में हल नहीं कर सकते। इस के लिए किसी अन्य व्यक्ति की मध्यस्थता की आवश्यकता है। यह भूमिका आप भली तरह निभा सकते हैं। मेरी राय में आप को यह कार्य करना चाहिए। आप भाभी के देवर हैं। भाभी-देवर क

गलती स्वीकार कर के पत्नी को मना कर घर ले आइए

त्नी अपनी माँ के यहाँ जून की छुट्टी में राजी-खुशी से गई थी। अब जीवन भर के लिए रुक गई है। 7 वर्ष का पुत्र और चार वर्ष की बेटी उस के पास हैं। बेटा दूसरी क्लास में केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ता है।  एक महिने बाद लेने गया तो आने से मना कर दिया और मेरी जम कर बेइज्जती की। मैं 28.06.2011 को उन के यहाँ चचेरे भाई की मृत्यु पर वित्तीय असुविधा के काण नहीं पहुँच सका। लेकिन 04.07.2011 को पहुँच गया था। न तो फोन करती है और न ही फोन पर कोई उत्तर देती है। आप बताएँ कि मैं क्या करूँ? बेटे की पढ़ाई का नुकसान और उन की जिन्दगी बरबाद हो जाएगी। 
  उत्तर –
प की समस्या एकदम नितांत घरेलू किस्म की है। आप की पत्नी आप से बहुत नाराज हैं। किस कारण से हैं? यह आप बेहतर जानते हैं। लेकिन बताना नहीं चाहते। मेरे पास जो पारिवारिक समस्याएँ आती हैं, उन में से अधिकांश में यही होता है। चाहे स्त्री हो या पुरुष वह सिर्फ अपनी बात कहता है, अपने साथी की नहीं। यहाँ आप कह रहे हैं कि आप की पत्नी राजी-खुशी से अपने मायके गयी थी। आप वित्तीय असुविधा के कारण पत्नी के चचेरे भाई की मृत्यु पर नहीं जा पाए, यह बात समझ नहीं आई। मृत्यु और विवाह ऐसे सामाजिक अवसर हैं कि वहाँ आवश्यक होने पर नहीं पहुँचना पति-पत्नी के बीच विवाद का कारण हो सकता है। आप की पत्नी वहाँ पहले से थीं और आप नहीं पहुँचे। आप की अनुपस्थिति में हो सकता है लोगों ने कहा हो कि आप ऐसे अवसर पर भी नहीं आए। आप की पत्नी ने सामाजिक रूप से स्वयं को अत्यधिक अपमानित महसूस किया हो और वही आप के और आप की पत्नी के बीच इस विवाद का कारण बन गया हो। 
प अपनी पत्नी को लेने के लिए गए तब आप को बहुत बेइज्जत किए जाने का आपने उल्लेख किया है। लेकिन यह सब आप और आप की पत्नी के बीच हुआ है। अधिक से अधिक आप की पत्नी के परिवार के लोग वहाँ रहे हों। यह पारिवारिक घटना मात्र है। इस में बेइज्जती महसूस करने वाली कोई बात नहीं है। आप की पत्नी ने या फिर उस के परिवार वालों ने उक्त कारण से या किसी और कारण से आप को भला-बुरा कहा और आप उसे अपनी बेइज्जती समझ रहे हैं, यह ठीक नहीं है। ऐसा तो पारिवारिक रिश्तों में  होता रहता है। आप ने अपनी बेइज्जती महसूस कर ली। लेकिन शायद सामाजिक रूप से आप की पत्नी को जो बेइज्जती सहन करनी पड़ी ( जो केवल आप की पत्नी की ही नहीं आप की भी थी) उसे आप महसूस नहीं कर पाए। मुझे  तो लगता है कि आप के बीच विवाद का यही कारण है। 
प को महसूस करना चाहिए कि जो भी कारण रहा हो लेकिन आप का पत्नी के चचेरे भाई की मृत्यु पर न पहुँचना आप की पत्नी को बहुत-बहुत बुरा लगा है और उस सामाजिक अपमान से वह अंदर तक आहत हो गई है। आहत व्यक्ति को मरहम लगाया जाता है, उस से विवाद नहीं किया जाता। उस के स्थान पर शायद आप न पहुँचने के औचित्य को सिद्ध करते रह गए हों। आहत व्यक्ति आप के बताए औचित्य पर कैसे विचार करे? जब उसे मरहम की आवश्यकता हो। मरहम तो सिर्फ अपनी गलती स्वीकार कर लेने और भविष्य में न दोहराने का वचन देने से ही लग सकता

लाचारी को त्यागें और अपना आत्म सम्मान पुनः हासिल करें

मस्या-
मेरी शादी 18 फरवरी 2006 को हुई थी मेरे 2 बच्चे हैं एक पाँच वर्ष का दूसार तीन वर्ष का।  मेरी नौकरी जा चुकी है।  2008 में मेरा एक्सीडेंट हो गया था जिस में मेरा एक पैर टूट गया था।  मेरी पत्नी मुझे लंगड़ा कहती है।  दो माह पहले तक हम साथ रहते थे। लेकिन मेरा पैरा मुझे काम करने में  मदद नहीं करता है जिस के कारण मैं अपने घर आ गया।  तब वह कहने लगी कि मैं गाँव में नहीं रहूँगी।  वह चरित्रहीन है। फिर पतनी मेरी लड़की को छोड़ कर लड़के को ले कर अपने मायके चली गई।  जब हम उसे लेने गए तो पता चला कि वह लखनऊ गई है, हम लखनऊ गए तो वहाँ हमें बहुत बुरा भला कहा और कहा कि मैं लंगड़े के साथ नहीं जाउंगी।  हमें खाने पीने के लिए भी नहीं पूछा।  जब हम वापस आने लगे तो मेरा बेटा वापस मेरे साथ आ गया।  10 दिन बाद पता चला कि हमारे ऊपर हाईकोर्ट में  बंदी प्रत्यक्षीकरण का केस चला दिया है। हमें पुलिस पकड़ कर ले गई तब हम ने बयान दिया।  उस के बाद मैं ने जिला न्यायालय में धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर दिया है।  जब भी मैं पत्नी से बात करता हूँ तो वह गाली देती है और साथ न रहने को कहती है।  मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहना चाहता हूँ।  क्या मेरी पत्नी मेरे पास नहीं आएगी? क्या वह मेरे पुत्र को ले लेगी?
समाधान-
दुनिया में किसी भी व्यक्ति को उस की इच्छा के विरुद्ध किसी के साथ रहने को बाध्य नहीं किया जा सकता।  यदि आप की पत्नी आप के साथ नहीं रहना चाहती है तो कानून के पास ऐसा कोई उपाय नहीं कि आप की पत्नी को आप के पास जबरन रहने को कहा जाए।  यदि आप की पत्नी के पास ऐसा कोई उचित और वैध कारण नहीं है कि वह आप से अलग रह सके तो आप ने जो धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम का आवेदन प्रस्तुत किया है उस में आप के पक्ष में डिक्री पारित कर दी जाएगी कि आप की पत्नी आप के साथ आ कर रहे। यदि ऐसी डिक्री पारित होने से एक वर्ष की अवधि में आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहती है तो फिर आप उस से इसी आधार पर तलाक ले सकते हैं।
सा प्रतीत होता है कि आप की पत्नी आप के साथ रहने की इच्छुक नहीं रही है।  वह अब आप से स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहती है।  जब तक उस की यह इच्छा आप के साथ रहने की इच्छा में परिवर्तित नहीं होती है।  आप की उस के साथ रहने की इच्छा की पूर्ति संभव नहीं है।  यह कानून से संभव नहीं है।  इस के लिए तो काउंसलिंग और सामाजिक दबाव ही उपाय हैं।  यदि दोनों संभव  नहीं हों तो अधिक अच्छा यह है कि दोनों पक्ष आपस में बैठ कर तय कर लें कि आगे क्या करना है।   यदि पत्नी आप के साथ नहीं ही रहना चाहती है तो फिर आपसी सहमति से तलाक लेना ही आप के लिए बेहतर होगा।
प के दो बच्चे हैं एक लड़का और एक लड़की।  आप की पत्नी लड़के को तो अपने पास रखना चाहती है लेकिन लड़की को नहीं।  लेकिन ऐसी स्थिति में न्यायालय को इस बात पर विचार करना होगा कि दोनों बच्चों को अलग किया जाए या नहीं, न्यायालय को इस बात पर भी विचार करना होगा कि दोनों बच्चों का लालन पालन कहाँ बेहतर तरीके से हो सकता है और उन के हित कहाँ अधिक सुरक्षित हैं।  यह भी देखा जाएगा कि दोनों बच्चे खुद को कहाँ अच्छा महसूस करते हैं।  जब भी न्यायालय किसी बच्चे की अभिरक्षा के विषय पर विचार करता है तो सर्वोपरि तथ्य यही होता है कि बच्चे का हित किस की अभिरक्षा में हो सकता है।
भी आप के पैर के कारण आप को लाचार स्थिति में ला दिया है।  आप पत्नी की निगाह में  अपना सम्मान खो चुके हैं।  आप को हर हालत में इस लाचारी से निजात पानी पड़ेगी और अपना आत्म सम्मान वापस हासिल करना होगा।  तभी आप के और आप की पत्नी के बीच के स्थितियाँ ठीक हो सकेंगी।  किसी भी स्थिति में लाचारी का त्याग तो करना ही होगा।  मेरे विचार में आप को अपने पैर की चिकित्सा पर अधिक ध्यान देना चाहिए और पैर के उपयोग से संबंधित अधिक से अधिक क्षमता हासिल करनी चाहिए।  यदि आप अपने पैरों पर खड़े होंगे तो बहुत सारी समस्याएँ उसी से हल हो जाएंगी।

पति- पत्नी एक दूसरे को समझने के लिए वक्त जुटाएँ।

समस्या-
मेरी शादी 21/01/2011 को मुरादाबाद में हिंदू रीति रिवाज़ के साथ संपन्न हुई।  शादी की पहली रात से ही मेरी पत्नी का व्यवहार आश्चर्यजनक लगा।  पहली रात को मेरा उससे कोई शारीरिक संबंध स्थपित नही हुआ। वह संबंध बनाने में हमेशा आपत्ति जताती थी, जिससे हमारा निरंतर झगड़ा होता रहता था।  उसका मेरे घर में मन ही नहीं लगता था। 2 साल 6 महीने की शादी में वह मेरे साथ मात्र 4 महीने ही रही है और 6/07/2012 से वो निरंतर अपने मायके में ही रह रही है। मैं और मेरे परिवारजन उस के पिताजी से उन के घर जाकर मिले और उसे अपने घर लाने का बहुत प्रयास किया लेकिन सफलता नही मिली। मैं ने स्वयं 16/06/1013 को अपने परिवारजनों के साथ जा कर उस से और उनके परिवारजनों से वार्ता की तो मेरी पत्नी और उसके पिताजी मुझ पर, मेरी माँ पर मारने पीटने का आरोप लगाने लगे  और कहने लगे की मेरी बेटी आपके घर सुरक्षित नहीं है।  इस पर मैं ने कहा कि अगर मुझ से और मेरे परिवार से आप को और आपकी बेटी को इतनी समस्या है तो हम दोनों अपना रास्ता अलग कर लें ताकि दोनो की जिंदगी सम्हल जाए।  तो वो इसपर भी राज़ी नहीं हैं। मेरी पत्नी कहती है कि जब मैं कुछ बन जाऊंगी तब आऊँगी जिस की उसने कोई समय सीमा भी नहीं दी और मेरे छोटे भाई पर यौन शोषण का आरोप लगाने लगी जो कि निरर्थक है। मुझ से कहने लगी कि मैं उसके घर आ के संबंध बनाऊँ। मुझे लगता है कि वो सब मेरी जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और मुझे कारण लगता है कि उस में माँ बनने की योग्यता ही नहीं है। क्यों कि जब भी डॉक्टर से चेक अप कराने की बात होती है तो उस के पिताजी अपने घर लिवा के चले जाते हैं और अब तो भेजने को तैयार भी नहीं हैं।  बस आरोप लगा रहे हैं, कोई सार्थक बात भी नहीं कर रहे हैं। बस समय खींच रहे हैं ताकि मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाए। मेरे साथ अन्याय हो रहा है।  मैं इस से निजात पाना चाहता हूँ। अपनी पत्नी के साथ रहने में अब मैं सुरक्षित भी महसूस नही कर पाता हूँ, क्यों कि उनके घरवाले अच्छे लोग नही हैं, गुंडागर्दी की बातें करते हैं और अच्छे संबंध बनाने में मेरी पत्नी भी मेरा सहयोग नहीं कर रही है। बस अपनी मनमानी कर रही है जिस में उस के पिताजी और भाई सहयोग कर रहे हैं। मैं बहुत परेशान हूँ, मुझे रास्ता बताएँ।
समाधान-
प की बात से लगता है कि आप अब अपना विवाह विच्छेद कर अपनी पत्नी से मुक्त होने की इच्छा रखते हैं। लेकिन विवाह विच्छेद के लिए कोई न कोई आधार चाहिए। वर्तमान में केवल एक आधार हो सकता है कि आप की पत्नी बिना किसी कारण के आप को छोड़ कर एक वर्ष से अधिक समय से अपने मायके में है और आना नहीं चाहती है। आप की कुछ शिकायतें तो वाजिब नहीं लगती। एक लड़की जो आप को कल तक जानती नहीं थी आप की पत्नी बन कर आती है आप घुलना मिलना चाहती है और आप पहली ही रात्रि को उस से शारीरिक संबंध बनाना चाहते हैं बिना एक दूसरे को जाने समझे। पहले ऐसा होता था लेकिन अब चीजें बदल चुकी हैं और यह लगभग संभव नहीं रहा है। वैसे भी इस की इतनी जल्दी क्या है। पति-पत्नी विवाह के उपरान्त कुछ समय एक दूसरे को समझने में ले सकते हैं। मुझे लगता है कि आप ने अपनी जल्दबाजी से यह अवसर खो दिया है।
प की पत्नी कहती है कि वह तब आएगी जब वह कुछ बन जाएगी। इस से लगता है कि आप की पत्नी को यह लगता है कि वह कुछ बन चुकने के बाद ही आप के परिवार में आत्मसम्मान पाएगी। हो सकता है तब तक वह बच्चे की माँ नहीं बनना चाहती हो। ये सब लड़कियों में विकसित हो रहे नए मूल्य हैं। आज हर लड़की आत्मनिर्भर होना चाहती है और इस में पुरुषों का ही भला है।  हमें इन नए मूल्यों का सम्मान करना चाहिए। मुझे लगता है कि आप और आप की पत्नी अभी तक एक दूसरे को ठीक से नहीं समझ सके हैं और आप दोनों को परिजनों की मध्यस्थता के स्थान पर किसी काउंसलर की मध्यस्थता की आवश्यकता है,  या संभव हो तो बिना किसी मध्यस्थता के आप दोनों एक दूसरे को समझने की कोशिश करें।
प की पत्नी का प्रस्ताव बुरा नहीं है। आप बिना कोई आग्रह दुराग्रह लिए उस के मायके में जाएँ, उस के साथ संबंध बनाए रखें। दोनों के बीच अभी प्रेम नहीं उपजा। उसे उपजने के लिए अवसर दें। एक दो दिन उस के साथ रुक कर आएँ। और हर माह इस क्रम को दो बार दोहराने का प्रयत्न करें। पत्नी को समझने की कोशिश करें और और उसे भी आप को समझने दें। मुझे लगता है इसी से आप की समस्याएँ हल हो सकती हैं।

पत्नी पतिगृह छोड़, मुकदमा क्यों करती है?

समस्या-
मैंने आज तक जहाँ भी देखा है हर मामले में पत्नी अपने मायके में जाकर पति के ऊपर मुकदमा करती हुई मिली है।  आपके तीसरा खंबा में भी जितने मामले मैंने पढ़े है उन में भी पत्नी ने किसी न किसी कारण से पति का घर छोड़ अपने मायके जाकर पति के ऊपर मुकदमा किया है।  लेकिन मेरे मामले में बिलकुल उलट है मेरी पत्नी ने मेरे ही घर में रह करके मेरे ऊपर 498ए और घरेलू हिंसा अधिनियम में झूठे मुकदमे किए हैं।  मुझे मेरे ही घर से निकाल दिया है और खुद मेरे ही घर में मेरे बच्चों के साथ रह रही है। खुद 10,000/- रुपए महिने की नौकरी कर रही है।  क्या इस तरह के मामलों के लिए कोई खास धारा नहीं है? ये तो सभी जानते हैं कि पति के साथ गलत हो रहा है, पर पुलिस और प्रशासन कुछ करने को तैयार नहीं होता है।  मेरी सुनने वाला कोई नहीं है। घरेलू हिंसा अधिनियम में तो अदालत ने एक-तरफ़ा कार्यवाही करते हुए मुझ से अंतरिम खर्चा दिलाने की अंतिम 24.07.2012 दी है।  अब आप ही बताएँ मैं क्या करूँ?
समाधान-
त्नी क्यों पतिगृह छोड़ कर मायके जाती है और वहाँ जा कर मुकदमा क्यों करती है?  यह प्रश्न कानूनी कम और सामाजिक अधिक है।  इस मामले में सामाजिक अध्ययन किए जाने चाहिए जिस से उन कारणों का पता लगाया जा सके कि ऐसा क्यों हो रहा है?  जब तक इस तरह के सामाजिक अध्ययन समाज विज्ञानियों द्वारा नहीं किए जाएंगे और कोई अधिकारिक रिपोर्टें समाज के सामने नहीं होंगी तब तक उन कारणों के उन्मूलन और कानूनो के कारण हो रहे पति-उत्पीड़न का उन्मूलन संभव नहीं है।  वर्तमान में कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है यह सभी मानते और समझते हैं।  लेकिन कानूनों में कोई त्रुटि भी नहीं है जिस से उन्हें बदले या संशोधित करने का मार्ग प्रशस्त हो।  धारा 498-ए में बदलाव लाने के प्रयास जारी हैं।  इस संबंध में विधि आयोग ने प्रयास किए हैं और हो सकता है कि उन प्रयासों के नतीजे शीघ्र आएँ।  लेकिन यदि कानूनों में परिवर्तन हुए तो वे परिवर्तन की तिथि से ही लागू होंगे।  आज जिन लोगों के विरुद्ध मुकदमे चल रहे हैं उन्हें उन परिवर्तनों का लाभ नहीं मिलेगा।
कानूनों के दुरुपयोग की समस्या दो तरह की है।  धारा 498-ए में कोई बुराई नहीं है लेकिन पहली समस्या तो सामाजिक है। किसी पत्नी या बहू के साथ इस धारा के अंतर्गत मानसिक या शारीरिक क्रूरता का बर्ताव किए जाने पर अपराध बनता है।   लेकिन यदि आप ने एक बार भी अपनी पत्नी पर थप्पड़ मार दिया या किसी और के सामने यह कह भर दिया कि थप्पड़ मारूंगा तो वह भी क्रूरता है।  अब आप देखें कि भारत में कितने पुरुष ऐसे मिलेंगे जिन्हों ने इस तरह का बर्ताव अपनी पत्नी के प्रति नहीं किया होगा? ऐसे पुरुषों की संख्या नगण्य होगी। इस का अर्थ हम यही ले सकते हैं कि हमारा समाज हमारे कानून की अपेक्षा बहुत पिछड़ा हुआ है।  लेकिन भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिस के लिए यही कानून उपयुक्त है।  हमारे सामने यह चुनौती है कि हम हमारे समाज को कानून की इस स्थिति तक विकसित करें।  एक बार एक प्रगतिशील कानून का निर्माण करने के बाद उस से पीछे तो नहीं ही हटा जा सकता।  कुल मिला कर यह एक सामाजिक समस्या है।
दूसरी समस्या पुलिस के व्यवहार के संबंध में है।  जब कोई महिला अपने पति के विरुद्ध शिकायत करना चाहती है तो वह किसी वकील से संपर्क करती है।  वकील को भी काम चाहिए।  वह महिला को उस के पति को परेशान करने के सारे तरीके बताता है, यहाँ तक कि वकीलों का एक ऐसा वर्ग विकसित हो गया है जो इस तरह के मामलों का स्वयं को विशेषज्ञ बताता है।  वह महिला को सिखाता है और सारे प्रकार के मुकदमे दर्ज करवाता है।  मामला पुलिस के पास पहुँचता है तो पुलिस की बाँछें खिल जाती हैं।  पुलिस को तो ऐसे ही मुकदमे चाहिए जिस में आरोपी जेल जाने से और सामाजिक प्रतिष्ठा के खराब होने से डरता है।  ऐसे ही मामलों में पुलिसकर्मियों को अच्छा खासा पैसा बनाने को मिल जाता है।  जो लोग धन खर्च कर सकते हैं उन के विरुद्ध पुलिस मुकदमा ही खराब कर देती है, उन का कुछ नहीं बिगड़ता और जो लोग पुलिस को संतुष्ट करने में असमर्थ रहते हैं उन्हें पुलिस बुरी तरह फाँस देती है।  इस तरह यह समस्या कानून की नहीं अपितु पुलिस और सरकारी मशीनरी में फैले भ्रष्टाचार से संबंधित है।  कुल मिला कर सामाजिक-राजनैतिक समस्या है।  इस के लिए तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ना पड़ेगा।
क बार पुलिस जब न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत करती है तो न्यायालयों का यह कर्तव्य हो जाता है कि वे उस मामले का विचारण करें।  देश में न्यायालय जरूरत के 20 प्रतिशत से भी कम हैं।  विचारण में बहुत समय लगता है और यही समय न केवल पतियों और उन के रिश्तेदारों के लिए भारी होता है अपितु पति-पत्नी संबंधों के बीच भी बाधक बन जाता है।  तलाक का मुकदमा होने पर वह इतना लंबा खिंच जाता है कि कई बार दोनों पति-पत्नी के जीवन का अच्छा समय उसी में निकल जाता है।  जब निर्णय होता तो नया जीवन आरंभ करने का समय निकल चुका होता है। कुल मिला कर समस्या सामाजिक-राजनैतिक है और सामाजिक-राजनैतिक तरीकों से ही हल की जा सकती है।  न्यायालय केवल कानून की व्याख्या कर सकते हैं, वे कानून नहीं बना सकते।
ब आप के मामले पर आएँ।  आप की पत्नी ने आप को अपने ही घर से कैसे निकाल दिया यह बात समझ नहीं आती।  या तो आप ने किसी भय से खुद ही घर छोड़ दिया है, या फिर आप ने वह घऱ अपनी पत्नी के नाम से बनाया हुआ हो सकता है।  मुझे कोई अन्य कारण नहीं दिखाई देता है।  यदि घर आप का है तो आप को वहाँ रहने से कौन रोक रहा है?  जब तक वह आप की पत्नी है आप उसे निकाल भी नहीं सकते।  आप पत्नी से तलाक ले लें तो फिर आप को यह अधिकार मिल सकता है कि आप उसे अपने मकान में न रहने दें। यह सब निर्णय हो सकते हैं लेकिन अदालतें कम होने के कारण इस में बरसों लगेंगे। यही सब से बड़ा दुख है और समस्या है।  पर इस का हल भी राजनैतिक ही है।  पर्याप्त संख्या में न्यायालय स्थापित करने का काम तो सरकारों का ही है और सरकारें सिर्फ वे काम करती हैं जिन के कारण राजनैतिक दलों को वोट मिलते हैं। जिस दिन राजनैतिक दलों को यह अहसास होगा कि पर्याप्त अदालतें न होने के कारण उन्हें वोट नहीं मिलेंगे उस दिन सरकार पर्याप्त अदालतें स्थापित करने का काम कर देंगी।
रेलू हिंसा के मामले के एक-तरफा होने का कारण तो केवल यही हो सकता है कि आप स्वयं सूचना होने के बाद भी न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए हैं या हो गए हैं तो फिर अगली पेशियों पर आप स्वयं या आप का कोई वकील न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ।  ऐसे में न्यायालय के पास इस के सिवा क्या चारा है कि वह एक-तरफा कार्यवाही कर के निर्णय करे।  आप को सूचना है तो आप स्वयं न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो कर एक-तरफा सुनवाई किए जाने के आदेश को अपास्त करवा सकते हैं।  उस के बाद न्यायालय आप को सुन कर ही निर्णय करेगा।  यदि आप की पत्नी की आय 10,000/- रुपया प्रतिमाह है और आप इस को न्यायालय के समक्ष साबित  कर देंगे तो न्यायालय आप की पत्नी को गुजारा भत्ता नहीं दिलाएगा।  लेकिन आप के बच्चे जिन्हें वह पाल रही है उन्हें पालने की जिम्मेदारी उस अकेली की थोड़े ही है।  वह आप की भी है।  न्यायालय बच्चों के लिए गुजारा भत्ता देने का आदेश तो आप के विरुद्ध अवश्य ही करेगा।


पत्नी के रहते दूसरी स्त्री के साथ संबंध न सुलझने वाली जटिलताएँ उत्पन्न करता है।


प्रश्न-
सर!
मेरी शादी 1992 में हुई थी। (अठारह वर्ष हो चुके हैं) लेकिन मेरी पत्नी दो वर्ष रहने के बाद अपने मायके चली गई और उस के बाद वापस नहीं आई।  (इस बात को भी सोलह वर्ष हो चुके हैं) मेरे दो बच्चे हैं। मैं ने बहुत प्रयास किया लेकिन पत्नी वापस नहीं आई। उस के बाद मैं बहुत तनाव में रहने लगा और मैं ने सहारे के लिए एक लड़की कृति से प्रेम किया और एक साल बाद वह भी मेरे बच्चे की माँ बन गई। अब वह मेरे साथ रहती है। जब मेरी पत्नी को पता लगा तो उस ने धारा 494 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत मुकदमा कर दिया कि मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली है जब कि मैं ने कृति से शादी नहीं की है। हालांकि कृति से मेरे संबंध आज भी हैं और अपब उस से मेरे तीन बच्चे भी हैं।  मैं ने केवल सहारे के लिए प्रेम किया था लेकिन आज भी मेरा लगाव मेरी पत्नी के साथ है। मैं चाहता हूँ कि मैं दोनों को साथ-साथ रखूँ क्यूँ कि मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से किसी का जीवन बरबाद हो। मैं ने जब से होश संभाला है तब से ले कर आज तक मैं ने कोई काम ऐसा नहीं किया जो मुझे नहीं करना चाहिए था। हाँ मुझ से एक गलती हुई है कि मैं ने प्रेम किया  और उस से बच्चे पैदा हो गए। मैं ने यह सब अपने जीवन को बचाने के लिए किया था, यदि यह सब नहीं करता तो शायद आज मैं जीवित नहीं होता। मेरा आप से नम्र निवेदन है कि मुझे आप उचित सलाह दें जिस से मैं अपनी पत्नी के और कृति के साथ रह कर शेष जीवन गुजार सकूँ। मेरी पत्नी ने जो भी साक्ष्य/सबूत अदालत में पेश किए हैं वह गलत पेश किए हैं। कृति से संबंध बनाने से पहले मैं ने उस से साफ तौर पर कह दिया था कि मैं तुम से मैं तुम से शादी नहरीं कर सकता क्यों कि मैं पहले से शादीशुदा हूँ और दूसरी शादी करना कानूनी तौर पर अपराध है। कृति इस के लिए तैयार हो गई। अभी आज ही मेरी पत्नी का मेरे पास फोन आया था कि आप जिस के साथ रह रहे हैं उसे तलाक दे दीजिए तब मैं आप के साथ रह सकती हूँ लेकिन मैं दोनों में से किसी को मंझधार मे नहीं छोड़ना चाहता। कृपया मुझे उचित सलाह दें कि इस में यदि दुर्भाग्यवश मुझे सजा हो गई तो क्या कृति को कानूनी पत्नी का दर्जा प्राप्त होगा।   
उत्तर
        समस्या विकट है या नहीं? इस प्रश्न पर मैं क्या सलाह दे सकता हूँ? लेकिन चूँकि वकील हूँ, कानूनी सलाह देना मेरा पेशा है, इस कारण से मैं इन्हें बिना सलाह दिए तो वापस नहीं लौटा सकता। निश्चित ही मुझे इन्हें कानूनी सलाह तो देनी होगी। इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि सलाह कानूनी हो,  उस से बचने की नहीं हो। ऐसी सलाह दी जाए जिस से तीन वयस्कों तथा पाँच अवयस्कों के जीवन में और अधिक मुश्किलें न आएँ, उन के जीवन की कठिनाइयाँ कम हो सकें। चलिए  पर विचार करते हैं।
प्रकाश जी ने इस बात तो प्रकट नहीं किया कि उन की पत्नी किस .किन कारणों से उन्हें छोड़ कर चली गई। यदि वे कारण बता भी देते तो आज की परिस्थितियों में उस से कोई अंतर नहीं पड़ता। विवाह में किसी भी पत्नी या पति का अपने जीवन साथी को छोड़ कर अलग रहने लग जाना सदैव इसी तरह की जटिलताओं को उत्पन्न करता है। यहाँ प्रकाश जी की त्रुटि यह है कि यदि पत्नी उन्हें छोड़ कर चली गई थी तो उन को चाहिए था कि उसे वापस लाने का प्रयत्न करते। कानूनी रूप से हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत न्यायालय में वैवाहिक संबंधों की प्रत्यास्थापना के लिए आवेदन प्रस्तुत करते, डिक्री प्राप्त करते। यदि डिक्री प्राप्त नहीं हो सकने के उपरांत भी पत्नी वापस आ कर उन के साथ नहीं रहती तो उस से तलाक हो सकता था। उस स्थिति में वे दूसरा विवाह कर सकते थे। इस तरह उन्हें अपनी प्रेमिका कृति के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने की आवश्यकता नहीं होती।
प्रकाश जी ने ऐसा नहीं किया। वे पत्नी का इंतजार करते रहे इसी इंतजार के बीच उन्हों ने कृति से संबंध बना लिया। उन के द्वारा इस तरह का संबंध बना लिया जाना कानून के अंतर्गत किसी भी प्रकार से दंडनीय अपराध नहीं है। क्यों कि उन्हों ने यह संबंध बनाने के पहले ही कृति को यह बता दिया था कि वह उस से विवाह नहीं कर सकता, क्यों कि वह विवाहित है, विवाह करना अपराध होगा। भारतीय दंड संहिता की धारा 494 में पति या पत्नी द्वारा अपने जीवनसाथी के रहते दूसरा विवाह करना अपराध है लेकिन बिना विवाह किए यौन संबंध बनाना या किसी को साथ रखना अपराध नहीं है। इस कारण से उन की पत्नी ने जो मुकदमा किया है वह सही नहीं है और यदि इस मुकदमे में प्रकाश जी ने ठीक से अपना बचाव किया तो  किसी भी प्रकार से यह साबित किया जाना संभव नहीं हो सकेगा कि प्रकाश जी ने कृति के साथ विवाह किया है। इस मुकदमे में वे बरी हो जाएँगे।
प्रकाश जी पूरी ईमानदारी के साथ अपनी पत्नी और कृति दोनों को साथ रखना चाहते हैं, हो सकता है कि कृति इस के लिए तैयार हो लेकिन उन की पत्नी इस के लिए तैयार नहीं है। यह तो तभी संभव हो सकता है जब उन की पत्नी इस के लिए तैयार हो जाए। हाँ एक विकल्प यह हो सकता है कि वे कृति को अलग रहने को तैयार हो जाएँ प्रकाश जी उसे अलग रखें और पत्नी को अपने साथ रखें। प्रकाश जी के जीवन में यह जटिलता तो उन्हों ने स्वयं उत्पन्न की है। उसे उन्हें भुगतना ही पड़ेगा।
प्रकाश जी ने एक प्रश्न यह और किया है कि क्या कृति को उन की पत्नी के अधिकार मिल सकते हैं तो उस का उत्तर स्पष्ट है कि उसे यह अधिकार नहीं मिल सकते। एक पत्नी के रहते उन्हों ने कृति के साथ विवाह कर भी लिया होता तब भी उसे यह अधिकार इस लिए नहीं मिलता क्यों कि वह विवाह अवैध होता। उन्हों ने संतानों के संबंध मे मुझ से कोई प्रश्न नहीं पूछा है। उन के दो संताने अपनी पत्नी से और तीन संताने कृति से हैं। पाँचो ही संतानों के वे पिता हैं। किसी पुश्तैनी संपत्ति में यदि प्रकाश जी का कोई भाग हुआ तो उस संपत्ति में उन की पत्नी की संतानों को तो अधिकार है लेकिन कृति से उत्पन्न संतानों को कोई अधिकार नहीं है। यदि प्रकाश जी की कोई स्वअर्जित संपत्ति है तो अपने जीवनकाल में वे उस के स्वामी हैं। उस का वे अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकते हैं, उसे किसी को भी दे सकते हैं। लेकिन उन के जीवन काल के उपरांत उन की संपत्ति पर उन की पत्नी उस की संतानों के साथ-साथ कृति की संतानों का भी बराबर का अधिकार होगा लेकिन स्वयं कृति का उन की स्वअर्जित संपत्ति में भी अधिकार नहीं होगा।  
स तरह हम देखते हैं कि एक पत्नी के रहते हुए किसी अन्य स्त्री के साथ संबंध बना लेना सदैव ही जटिलताएँ उत्पन्न करता है और ये जटिलताएं उन के जीवन तक ही सीमित नहीं रहती हैं अपितु उन की संतानों के मध्य भी संपत्ति के अधिकार को ले कर झगड़े उत्पन्न करती है। प्रकाश जी इन जटिलताओं में उलझ गए हैं इन से छुटकारा प्राप्त कर पाना संभव नहीं है। उन के पास एक ही मार्ग शेष है कि वे अपनी पत्नी के साथ और कृति के साथ सहमतियाँ बनाएँ और अपनी संतानों के लिए संपत्ति के अधिकारों को सहमति के साथ सुनिश्चित कर दें।

प्रतिरक्षा करने वाले पक्ष को मुकदमे में किए गए विरोधाभासी कथनों का लाभ मिलता है

प्रश्न 3. क्या एक ही महिला द्वारा धारा 498-ए, 406 और 125 के तहत किये मुकद्दमों में कहानी अलग- अलग हो तो क्या इसका फायदा पति को मिल सकता है। जबकि दोनों कहानी पढ़ने से मालूम होता है कि यह दोनों मामले सिर्फ परेशान करने के व लालच के उद्देश्य दर्ज करवाए गए हैं।
 उत्तर – – – 

क ही महिला अपने पति के विरुद्ध क्रूरता के लिए धारा 498-ए भा.दं.संहिता, स्त्री-धन न लौटाने के लिए धारा 406 भा.दं.संहिता में एक मुकदमा करती है और धारा 125 दं.प्र.संहिता का भरण-पोषण के लिए अलग मुकदमा करती है तो निश्चित रूप से दोनों मुकदमों में किए गए अभिवचनों में कोई अंतरविरोध नहीं होना चाहिए। ऐसा तो हो सकता है कि मुकदमे की आवश्यकता के अनुसार एक मुकदमे में कुछ तथ्य प्रस्तुत किए गए हों और दूसरे मुकदमे में कुछ तथ्य और भी प्रस्तुत किए गये हों तथा पहले के कुछ तथ्यों को अभिवचनों में शामिल नहीं किया हो। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि दोनों मुकदमों में एक दूसरे के विरोधी तथ्य अंकित किए गए हों। यदि दो मुकदमों में एक दूसरे के विपरीत कथन किए गए हों तो निश्चित रूप से यह परिवादी/प्रार्थी के लिए घातक है। स्वयं प्रार्थी/परिवादी के विरोधाभासी अभिकथन ही इस बात को सिद्ध कर देंगे कि जो तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं वे बनावटी और मिथ्या हैं।
 स बात को साबित करने के लिए प्रतिरक्षा करने वाले पति को चाहिए कि वह दोनों मुकदमों में किए गए अभिवचनों और बयानों की प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त कर दूसरे मुकदमों में प्रस्तुत करे और जब भी पत्नी बयान देने के लिए आए तो जिरह के दौरान प्रश्न पूछ कर यह साबित किया जाए कि उस ने विरोधाभासी कथन किए हैं। इस से स्त्री के दोनों मुकदमे कमजोर होंगे और पति को उस का लाभ प्राप्त होगा। इस तरह के मामलों यदि पति की पैरवी कोई अनुभवी वकील कर रहा होगा तो इस परिस्थिति का लाभ अवश्य लेगा। लेकिन पत्नी की लालच और परेशान करने की  नीयत साबित करने के लिए प्रतिरक्षा करने वाले पति को अतिरिक्त साक्ष्य अवश्य प्रस्तुत करनी होगी। उस के बिना केवल विरोधाभासी कथनों के आधार पर पत्नी के इरादे को साबित नहीं किया जा सकता।

पुत्री के भरण पोषण की जिम्मेदारी उस के विवाह होने या आत्मनिर्भर होने तक पिता, माता के समर्थ होने पर दोनों की।

समस्या-
मेरा विवाह 13 मार्च 2008 को हिन्दू रीति रिवाज से सम्पन्न हुआ था। हमारे एक बेटी लगभग 4 वर्ष की भी है। जो मेरी पत्नी के साथ ही रहती है। लगभग डेढ़ वर्ष तक पत्नी मेरे साथ रही और घर छोडकर आपने मायके चली गयी। तब से वह वहीं रह रही है। अब मार्च 2013 में मेरे खिलाफ धारा-125 दंड प्रक्रिया संहिता में भरण पोषण का तथा तलाक का मुकदमा दायर कर दिया है। मेरठ कोर्ट में चल रहा है। मेरी पत्नी मुझसे खर्चे की तथा तलाक की मांग कर रही है। मैं एक ग्रेजुएट हूँ और मैं एक प्राईवेट नौकरी करता हूँ जिससे मुझे लगभग 5000/-रूपये की आय होती है। और मेरी पत्नी डबल एम0ए0 और बी0एड0 है। लेकिन अभी नौकरी नहीं करती है। मेरा प्रश्न है कि क्या मुझे धारा-125 के तहत पत्नी को खर्चा देना पडेगा। मैं खर्चा देने की स्थिति में नहीं हूँ।
समाधान-
प ने यह नहीं बताया कि पत्नी ने तलाक किन आधारों पर चाहा है। वैसे यदि तलाक भी हो जाता है तब भी आप को अपनी पत्नी को जब तक वह स्वयं आत्मनिर्भर नहीं हो जाती है या दूसरा विवाह नहीं कर लेती है उस के भरण पोषण का खर्चा देना पड़ सकता है। बेटी के भरण पोषण का भार तो आप को जब तक उस का विवाह नहीं हो जाता या वह खुद आत्मनिर्भर नहीं हो जाती तब तक उठाना पड़ सकता है। हाँ, यदि आप की पत्नी कमाने लगे तो दोनों की कमाई के अनुपात में दोनों को बेटी के भरण पोषण की राशि देनी पड़ सकती है।
प की पत्नी और बेटी के भरण पोषण की राशि आप की कुल मासिक आय की दो तिहाई तक हो सकती है। अपनी आय के एक तिहाई में ही आप को गुजारा करना पड़ सकता है। इस के लिए आप को साबित करना पड़ेगा कि आप की  आय उतनी ही है जितना आप को नौकरी से वेतन मिलता है और आप की अन्य कोई आय नहीं है। न्यायालय आप को यह आदेश दे सकता कि भरण पोषण की राशि आप अपनी पत्नी को उस के द्वारा धारा 125 का आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से अदा करें।

क्रूरता के आधार पर न्यायिक पृथक्करण के साथ आवास और भरण पोषण प्राप्त किया जा सकता है।

समस्या
मेरे पति में मेरे लिए कोई संवेदनाएँ नही हैं,  मेंटली, एमोशनली, कोई संवेदनाएँ नही हैं। ना कभी टाइम दिया, चाहे में कितना भी कष्ट में रहूँ।  उन्हें सिर्फ़ अपने काम से लगाव है। जब कि मेरी कोई वित्तीय मांग उन से कभी नहीं रही।  ये घर में सब जानते हैं। में सिंपल लिविंग हाइ थिंकिंग में विश्वास रखती हूँ। अगर कभी किसी बात पर कोई मनमुटाव या उदासी हो जाती है तो ये उसे भी नज़रअंदाज करते हैं। चाहे मैं रोती रहूं, सामने बैठ खाना खा लेते हैं। मैं ने इन्हे कई बार बोलकर, लिख कर समझाने की कोशिश की है कि जब भी मेरा चेहरा उदास हो तो तुरंत बात कर लिया करो, लेकिन ये नज़रअंदाज करते हैं। मेरी शादी को 25 साल हो गये हैं। तब से ही मैं ने बहुत आँसू बहाए हैं। अब इन का अटिट्यूड बर्दाश्त नहीं होता। जिंदगी घिसट रही है। मेरे बेटे (22 वर्ष) ने भी कह दिया है कि अब कोई एक्सपेक्टेशन मत रखो।  बेटे ने भी कई बार उन्हे समझाने की कोशिश की है। मैं नोन वर्किंग हूँ, बेटा लास्ट सेमेस्टर बी.टेक में है।
क बात और शादी से पहले ये अपने एक खास दोस्त से ये बात करते थे कि हम अपनी पत्नियों को बदल लेंगे।  ये बात मुझे ग़लत लगी और मैं ने ऐसा करने से मना किया तो इन्हें अच्छा नहीं लगा। हालाँकि इनके दोस्त की पत्नी इस बात के लिए तैयार थी। मैं ने उस परिवार से संबंध विच्छेद कर लिए जो इन्हें (मेरे पति) को अच्छा नहीं लगा।. पहले कहीं घूमने का प्रोग्राम बनता था तो केवल उस परिवार के साथ ही बनता था और प्रोग्राम भी वही परिवार बनाता था।  जब से उस परिवार से संबंध विच्छेद हुए हैं।  तब से ये कोई प्रोग्राम नहीं बनाते ना ही मेरे साथ कोई वैल्युएबल समय बिताते हैं। इन का रूटीन सिर्फ़ सर्विसिंग, फीडिंग, स्लीपिंग है। मेरा संबंध तीन साल से तो बहुत बोझिल हो गया है।  में तो हर संभव बात कर साथ रहने का प्रयास किया है, ये मेरा बेटा भी जानता है।
ब मुझे आप बताएँ कि अलग रहने के लिए मुझे इनसे लीगली क्या मिलेगा?
समाधान-
प की बात बहुत स्पष्ट है जिसे किसी व्याख्या की कोई आवश्यकता नहीं है। आप के साथ क्रूरता पूर्ण व्यवहार हो रहा है और 25 वर्ष से उसे बर्दाश्त करती आ रही हैं और अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है। आप के पति स्त्री को अपनी संपत्ति समझते हैं। वे समझते हैं कि उसे पति की हर बात चाहे वह कैसी भी क्यों न हो मान लेनी चाहिए। इसी कारण वे आप से दूर चले गए। उन्हें यौन शुचिता में विश्वास नहीं है और स्त्री के यौन अधिकारों की वे कोई परवाह नहीं करते। आप का अलग होने का निर्णय मुझे पूरी तरह उचित लगता है।
क्रूरता केवल शारीरिक नहीं होती वह मानसिक भी होती है। आप शारीरिक व मानसिक क्रूरता के आधार पर उन से न्यायिक पृथक्करण अथवा विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकती हैं। न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के बाद आप को आप के परिवार की हैसियत के अनुसार भरण पोषण भत्ता प्राप्त होगा। महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा कानून के अन्तर्गत आप उन के मकान में ही पृथक आवास, भरण पोषण का खर्च प्राप्त सकती हैं और यह आदेश भी प्राप्त कर सकती हैं कि आप के पति आप से किसी तरह का कोई संबंध न रखें और आप के सामान्य जीवन में किसी प्रकार का कोई दखल न दें।
प का पुत्र बीटेक का विद्यार्थी है। आप ने 25 वर्ष क्रूरता सहन की है। आप बेटे के लिए कुछ समय और भी सहन कर सकती हैं। मेरे विचार में बेटे के आत्मनिर्भर होने तक किसी भी तरह की कोई कार्यवाही किया जाना बेटे पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकता है। इस कारण तब तक आप कोई कार्यवाही करना मुल्तवी करें तो बेहतर है। संसद द्वारा पत्नी को तलाक के बाद पति की संपत्ति का हिस्सा देने का कानून बनाया जाना शेष है। यदि विवाह विच्छेद उस कानून के आने के बाद होता है तो आप विवाह विच्छेद के बाद पति की संपत्ति का आधा हिस्सा तक प्राप्त कर सकती हैं।

बच्चे की अभिरक्षा के लिए न्यायालय बच्चे का हित देखेगा।

समस्या-
मेरी शादी 8 साल पहले हुई थी। मेरा एक 7 वर्ष का पुत्र भी है। पिछले तीन सालों से मेरी पत्नी मेरे बेटे को ले कर अपने मायके में निवास कर रही है क्यों कि उस के मायके में सिर्फ माँ अकेली है, पिता का देहान्त हो चुका है। और भाई शहर के बाहर नौकरी करता है। उस की माँ अपने गृहनगर में ही राज्य सरकार की नौकरी करती है। अब पत्नी मेरे साथ नहीं आना चाहती और आपसी सहमति से तलाक लेना चाहती है। उस के लिए मैं भी तैयार हूँ। लेकिन मैं अपने पुत्र की कस्टड़ी लेना चाहता हूँ। मुझे क्या करना चाहिए।
समाधान-
वास्तव में आप की कोई समस्या ही नहीं है। यदि आप की पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहती है तो आप उस के सामने शर्त रख सकते हैं कि आप तभी तलाक देंगे जब वह स्वेच्छा से आप के पुत्र की कस्टड़ी आप को दे देगी। इस के लिए यदि वह तैयार हो जाती है तो आप सहमति से तलाक लेंगे तब तलाक की अर्जी में लिख सकते हैं कि पुत्र आप के साथ रहेगा। वैसे भी सहमति से तलाक की अर्जी में आप दोनों को बताना पड़ेगा कि पुत्र किस के पास रहेगा।
पुत्र किस की कस्टड़ी में रहेगा या तो आप दोनों सहमति से तय कर सकते हैं, या फिर न्यायालय तय कर सकता है। यदि न्यायालय कस्टड़ी की बात तय करता है तो वह आप दोनों की इच्छा से तय नहीं करेगा बल्कि  देखेगा कि उस का हित किस के साथ रहने में है। यह तथ्यों के आधार पर ही निश्चित किया जा सकता है कि बच्चे की कस्टड़ी किसे प्राप्त होगी। वैसे पुत्र 7 वर्ष का हो चुका है और आप आवेदन करेंगे तो उस की कस्टड़ी आप को मिल सकती है। क्यों कि आप की पत्नी के पास आय का अपना साधन है यह आप ने स्पष्ट नहीं किया। जहाँ तक देख रेख का प्रश्न है तो निश्चित रूप से चाहे लड़का हो या लड़की माँ अपने बच्चों का पालन पोषण पिता से अधिक अच्छे से कर सकती है।
मारी राय है कि आप को बच्चे की कस्टड़ी के सवाल को अभी त्याग देना चाहिए और आपसी सहमति से तलाक ले लेना चाहिए। उस से आप एक नए जीवनसाथी के साथ अपना नया दाम्पत्य आरम्भ कर सकते हैं। बाद में आप को लगता है कि बच्चे का भविष्य माँ से बेहतर आप के साथ हो सकता है तो आप बाद में भी इस के लिए आवेदन कर सकते हैं।